प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
ग्लासगो हवाई अड्डे से अंतिम निजी विमान उड़ने और उसकी धूल जमने के बाद, 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, सीओपी26 के अवशेष ही बचे हैं। अंतिम विज्ञप्तियाँ धीरे-धीरे बासी होती जा रही हैं, उनको उनके सीमित दायरे में लागू करना अनिवार्य है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने यह कहते हुए इस सम्मेलन का अंत किया था कि: ‘हमारा नाज़ुक ग्रह एक धागे से लटक रहा है। हम अभी भी जलवायु आपदा के दरवाज़े पर दस्तक दे रहे हैं। यह आपातकालीन ढंग से काम करने का समय है – या नेट ज़ीरो तक पहुँचने की हमारी संभावना ख़ुद ज़ीरो हो जाएगी’। मुख्य हॉल में इस घोषणा के बाद उतनी उत्तेजना नहीं दिखी जितनी इस बात की घोषणा होने पर दिखी कि अगला सीओपी 2022 में काहिरा, मिस्र में आयोजित किया जाएगा। यह जानना ही काफ़ी लगता है कि अगला सीओपी होगा।
आधिकारिक सीओपी26 प्लेटफ़ार्मों पर कॉर्पोरेट अधिकारियों और उनके समर्थकों की भीड़ थी; शाम को उनकी कॉकटेल पार्टियों में सरकारी अधिकारियों का मनोरंजन किया जाता। कैमरे आधिकारिक भाषणों पर केंद्रित रहे, लेकिन असली काम इन शाम की पार्टियों और निजी कमरों में हो रहा था। वही लोग जो जलवायु आपदा के लिए सबसे अधिक ज़िम्मेदार हैं, उन्होंने ही सीओपी26 में पेश किए गए कई प्रस्तावों को आकार दिया। जलवायु अधिकार कार्यकर्ता स्कॉटिश इवेंट कैंपस (एसईसी सेंटर), जहाँ पर सम्मेलन चल रहा था, से अपनी पुरज़ोर आवाज़ में चीखते रहे। यह जानना ज़रूरी है कि, एसईसी सेंटर उसी जगह पर बना है जहाँ रानी का बंदरगाह हुआ करता था, जो कि उपनिवेशों से लाए गए सामानों को ब्रिटेन में लाने का मार्ग था। अब भी, पुरानी औपनिवेशिक आदतें बची हुईं हैं, जब हम देखते हैं कि विकसित देश -कुछ विकासशील देशों के साथ मिलकर, जो कि अपने कॉर्पोरेट अधिपतियों के क़ब्ज़े में हैं- कार्बन उत्सर्जन सीमा को स्वीकार करने से इनकार कर रहे हैं और जलवायु निधि के लिए आवश्यक फ़ंड का योगदान नहीं कर रहे।
सीओपी26 के आयोजकों ने सम्मेलन में दैनिक कार्रवाई के लिए ऊर्जा, वित्त और परिवहन जैसे विषयों को रखा। लेकिन कृषि की चर्चा के लिए कोई दिन निर्धारित नहीं किया गया था; इसके बजाय, इसे 6 नवंबर के विषय ‘प्रकृति‘ से जोड़ दिया गया था, जिसके दौरान वनों की कटाई मुख्य विषय बना रहा। कृषि प्रक्रियाओं और वैश्विक खाद्य प्रणाली से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन या नाइट्रस ऑक्साइड के बारे में कोई केंद्रित चर्चा नहीं हुई, इस तथ्य के बावजूद कि वैश्विक खाद्य प्रणाली वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 21% से 37% के लिए ज़िम्मेदार है। सीओपी26 से कुछ समय पहले ही, संयुक्त राष्ट्र की तीन एजेंसियों ने एक प्रमुख रिपोर्ट जारी की थी, जिसका मूल्यांकन था कि: ‘ऐसे समय में जब कई देशों का सार्वजनिक वित्त कमज़ोर स्थिति में है, विशेष रूप से विकासशील दुनिया में, उत्पादकों को वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर कृषि सहायता में लगभग 540 अरब डॉलर प्रति वर्ष दिया जाता है। इस सहायता में से दो-तिहाई से अधिक राशि मूल्य-विकृत करती है और पर्यावरण के लिए काफ़ी हद तक हानिकारक है’। फिर भी सीओपी26 में, विकृत खाद्य प्रणाली, जो कि पृथ्वी और हमारे शरीर को प्रदूषित करती है, पर चुप्पी रही; स्वस्थ भोजन के उत्पादन और ग्रह पर जीवन बनाए रखने के लिए खाद्य प्रणाली में किसी तरह के परिवर्तन के बारे में कोई गंभीर बातचीत नहीं हुई।
इसके बजाय, अधिकांश विकसित देशों के समर्थन के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात ने कृषि व्यवसाय और कृषि में बड़े प्रौद्योगिकी निगमों की भूमिका बढ़ाने के हक़ में ‘जलवायु के लिए कृषि नवाचार मिशन’ (AIM4C) कार्यक्रम का प्रस्ताव रखा। बड़ी टेकनॉलोजी कंपनियाँ, जैसे कि अमेज़ॅन और माइक्रोसॉफ़्ट, और कृषि प्रौद्योगिकी (एग टेक) कंपनियाँ -जैसे बेयर, कारगिल और जॉन डीरे- एक नये डिजिटल कृषि मॉडल प्रस्तावित कर रही हैं, जिसके माध्यम से वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के नाम पर वैश्विक खाद्य प्रणालियों पर अपना नियंत्रण मज़बूत करना चाहते हैं। यह आश्चर्यजनक है कि जलवायु परिवर्तन के लिए इस नये, ‘गेम-चेंजिंग’ समाधान के प्रमुख दस्तावेज़ों में कहीं भी किसानों का उल्लेख नहीं किया गया है; ऐसा लगता है कि इस समाधान में एक ऐसे भविष्य की परिकल्पना की गई है जिसमें किसानों की ज़रूरत ही नहीं रहेगी। कृषि उद्योग में कृषि प्रौद्योगिकी और बड़ी प्रौद्योगिकी के प्रवेश का मतलब यह हुआ है कि इनपुट के प्रबंधन से लेकर उपज के विपणन तक की पूरी प्रक्रिया पर उनका वर्चस्व हो गया है। इसका मतलब है कि पूरी खाद्य शृंखला पर दुनिया की कुछ सबसे बड़ी खाद्य वस्तु व्यापार फ़र्मों का वर्चस्व होगा। ये कंपनियाँ, जिन्हें अक्सर एबीसीडी कहा जाता है – ए से आर्चर डेनियल्स मिडलैंड, बी से बंज, की से कारगिल और D से लुई ड्रेफस -अभी ही 70% से अधिक कृषि बाज़ार को नियंत्रित करती हैं।
कृषि प्रौद्योगिकी और बड़ी प्रौद्योगिकी कम्पनियाँ खाद्य उत्पादन के सभी पहलुओं पर हावी होने के प्रयास के साथ खेतों को बाज़ारू वस्तु की तरह बनना चाहती हैं। इसका मतलब है कि हर प्रकार के जोखिम शक्तिहीन छोटे किसानों और खेत मज़दूरों के ज़िम्मे होंगे। कृषि व्यवसाय जोखिम उठाए बिना लाभ प्राप्त करना चाहते हैं। अमेरिकी नॉन-प्रोफ़िट कंपनी प्रिसिजन एग्रीकल्चर फ़ॉर डेवलपमेंट (पीएडी) के साथ जर्मन फ़ॉर्मास्युटिकल कंपनी बेयर की साझेदारी का इरादा है कि ई-विस्तार प्रशिक्षण का उपयोग कर यह नियंत्रित किया जा सके कि किसान क्या और कैसे उगाते हैं। यह नवउदारवाद के काम करने के तरीक़े का एक और उदाहरण है, जिसके तहत उन्हीं श्रमिकों पर जोखिम को विस्थापित कर दिया गया है जिनके श्रम से कृषि प्रौद्योगिकी और बड़ी प्रौद्योगिकी कम्पनियाँ भारी मुनाफ़ा कमाती हैं। इन बड़ी फ़र्मों को ज़मीन या अन्य संसाधनों के मालिक होने में कोई दिलचस्पी नहीं है; वे केवल उत्पादन प्रक्रिया को नियंत्रित करना चाहते हैं ताकि वे शानदार मुनाफ़े कमाना जारी रख सकें।
भारत में, एक साल पहले अक्टूबर 2020 में शुरू हुए किसान आंदोलन के पीछे भी किसानों का डर उचित ही था कि बड़े वैश्विक कृषि व्यवसाय कृषि का डिजिटलीकरण कर देंगे। किसानों को डर है कि बाज़ारों से सरकारी नियम हटने का मतलब होगा कि वे ख़ुद बाज़ार में आ जाएँगे, वो बाज़ार जिसे मेटा (फ़ेसबुक), गूगल और रिलायंस जैसी कंपनियों द्वारा बनाए गए डिजिटल मंच नियंत्रित करेंगे। ये कंपनियाँ न केवल उत्पादन और वितरण को परिभाषित करने के लिए प्लेटफ़ार्मों पर अपने नियंत्रण का उपयोग करेंगी, बल्कि डेटा पर उनकी पकड़ से ये कंपनियाँ उत्पादन रूपों से लेकर उपभोग की आदतों तक पूरे खाद्य चक्र पर अपना वर्चस्व क़ायम करेंगी।
इस साल की शुरुआत में, ब्राज़ील के भूमिहीन श्रमिक आंदोलन (एमएसटी) ने कृषि प्रौद्योगिकी और बड़ी प्रौद्योगिकी कम्पनियाँ जाल और कृषि की दुनिया में उनकी शक्तिशाली उपस्थिति में काम करने की संभावनाओं को बेहतर ढंग से समझने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी और वर्ग संघर्ष पर एक सेमिनार आयोजित किया था। इस सेमिनार में से हमारा नया डोज़ियर नं 46, ‘बिग टेक एंड द करंट चैलेंजेस फ़ेसिंग द क्लास स्ट्रगल’ निकला है, जो कि ‘इन विषयों पर एक विस्तृत चर्चा करने या निष्कर्ष देने’ के बजाय ‘वर्ग संघर्ष के दृष्टिकोण से तकनीकी परिवर्तनों और उनके सामाजिक परिणामों को समझने’ के लिए लिखा गया है। इस डोज़ियर में, प्रौद्योगिकी और पूँजीवाद के संबंध, राज्य और प्रौद्योगिकी की भूमिका, वित्त और तकनीकी फ़र्मों के बीच घनिष्ठ साझेदारी, और खेतों और कारख़ानों में कृषि प्रौद्योगिकी और बड़ी प्रौद्योगिकी कम्पनियाँ की भूमिका जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर समृद्ध चर्चाओं का सारांश प्रस्तुत किया गया है।
‘प्रकृति के ख़िलाफ़ बिग टेक’ के नाम से कृषि पर चर्चा प्रस्तुत करने वाला भाग हमें कृषि व्यवसाय और खेती की दुनिया से परिचित कराता है, एक ऐसी दुनिया जहाँ कृषि प्रौद्योगिकी और बड़ी प्रौद्योगिकी कम्पनियाँ ग्रामीण इलाक़ों के ज्ञान को अवशोषित और नियंत्रित करती हैं, कृषि को बड़ी फ़र्मों के मुनाफ़े के अनुरूप आकार देती हैं, और किसानों को अनिश्चित श्रमिकों में बदल रही है। डोज़ियर के अंत में पाँच प्रमुख शर्तों पर चर्चा की गई है, जो कि डिजिटल अर्थव्यवस्था के विस्तार में सहायक रही हैं, और जो ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि प्रौद्योगिकी के विकास के लिए ज़रूरी हैं:
मुक्त बाज़ार (डेटा के लिए): ये कम्पनियाँ यूज़र डेटा को आराम से चुरा लेती हैं, और कृषि प्रणालियों पर कॉर्पोरेट नियंत्रण को गहरा करने के लिए इसे सूचना में बदल देती हैं।
आर्थिक वित्तीयकरण: डेटा पूँजीवादी कंपनियाँ अपने विकास और संघटन के लिए सट्टा पूँजी के प्रवाह पर निर्भर करती हैं। ये कंपनियाँ, पूँजी को उत्पादक क्षेत्रों से केवल सट्टा-आधारित क्षेत्रों में स्थानांतरित करवाती हैं। इसके कारण उत्पादक क्षेत्रों पर शोषण और अनिश्चितता बढ़ाने का दबाव बढ़ता जाता है।
अधिकारों का वस्तुओं में परिवर्तन: आर्थिक और सामाजिक जीवन के क्षेत्रों में निजी कंपनियों का हस्तक्षेप बढ़ रहा है और सार्वजनिक हस्तक्षेप कम किया जा रहा है, इसके कारण हमारे नागरिक-अधिकार वस्तुओं को ख़रीदने की हमारी क्षमता के अधीन हो गए हैं।
सार्वजनिक जगहों का अभाव: समाज को सामूहिक रूप से कम और व्यक्तियों की खंडित इच्छाओं के रूप में अधिक देखा जाने लगा है, जहाँ पैसा कमाने के लिए किए जाने वाले अस्थाई कामों (गिग वर्क) को निगमों की शक्ति के अधीन होने के रूप में नहीं बल्कि मुक्ति के रूप में देखा जाता है।
संसाधनों, उत्पादक शृंखलाओं और बुनियादी ढाँचे का संकेंद्रण: मुट्ठी भर निगमों के बीच संसाधनों और शक्ति का केंद्रीकरण उन्हें राज्य और समाज पर अपना वर्चस्व बनाने की ताक़त देता है। इन निगमों की केंद्रित शक्ति राजनीतिक, आर्थिक, पर्यावरण और नैतिक प्रश्नों पर किसी भी लोकतांत्रिक और लोक-सम्मत बहस को ख़त्म कर देती है।
2017 में, सीओपी23 में भाग लेने वाले देशों ने कृषि पर कोरोनिविया संयुक्त कार्य (केजेडबल्यूए) की स्थापना की थी; जिसके तहत जलवायु परिवर्तन में कृषि के योगदान पर ध्यान केंद्रित करने का वचन लिया गया था। केजेडबल्यूए ने सीओपी26 में कुछ कार्यक्रम आयोजित किए, लेकिन इन पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया। प्रकृति दिवस के दिन, पैंतालीस देशों ने कृषि में नवाचार के लिए ग्लोबल एक्शन एजेंडा का समर्थन किया, जिसका मुख्य नारा, ‘कृषि में नवाचार’, कृषि प्रौद्योगिकी और बड़ी प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लक्ष्यों से जुड़ा है। यह संदेश सीजीआईएआर के माध्यम से प्रसारित किया जा रहा है, जो कि ‘नये नवाचारों’ को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया एक अंतर-सरकारी निकाय है। किसानों को कृषि प्रौद्योगिकी और बड़ी प्रौद्योगिकी कम्पनियों के हाथों में सौंपा जा रहा है, जिनकी प्राथमिकता जलवायु तबाही को रोकने के बजाये अपनी गतिविधियों को ‘ग्रीन’ दिखाकर अपने लिए सबसे बड़े मुनाफ़े बटोरने की है। मुनाफ़े की यह भूख न तो विश्व की भुखमरी मिटा सकती है और न ही जलवायु विपदा को ख़त्म कर सकती है।
इस न्यूज़लेटर में शामिल चित्र डोज़ियर संख्या 46, ‘बिग टेक एंड द करंट चैलेंजेस फ़ेसिंग द क्लास स्ट्रगल’ सि लिया गया है, जिसका हिंदी संस्करण हम दिसम्बर के महीने में जारी करेंगे। ये चित्र डिजिटल दुनिया को रेखांकित करने वाली अवधारणाओं -जैसे क्लाउड्ज़, माइनिंग, कोड्ज़ आदि- की मनोरंजक समझ के आधार पर बनाए गए हैं। इन अमूर्त अवधारणाओं को कैसे चित्रित किया जाए? ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के अनुसार ‘एक क्लाउड डेटा, किसी स्वर्ग-नुमा जादुई जगह जैसा लगता है। हालाँकि वास्तव में, यह ऐसा बिलकुल नहीं है। इस डोज़ियर की छवियों का उद्देश्य उस डिजिटल दुनिया की भौतिकता की कल्पना करना है जिसमें हम रहते हैं। एक क्लाउड को चिपबोर्ड पर प्रोजेक्ट किया गया है’। ये चित्र हमें याद दिलाते हैं कि प्रौद्योगिकी निष्पक्ष नहीं है; प्रौद्योगिकी वर्ग संघर्ष का एक हिस्सा है।
भारत के किसान इस बात से सहमत होंगे।
स्नेह-सहित,
विजय।