प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
वो दिन ज़रूर आएगा जब दुनिया कोरोनावायरस से मुक्त हो जाएगी। तब, हम उन गुज़रे हुए सालों की तरफ़ मुड़कर देखेंगे जब स्पाइक प्रोटीन वाले इन वायरसों ने लाखों लोगों की जानें लीं थीं और अपने क़हर से सामाजिक जीवन को अस्त–व्यस्त कर दिया था। वायरस की उत्पत्ति और दुनिया भर में इसके प्रसार पर तीखी बहस की जाएगी। दुनिया भर में इसके त्वरित प्रसार ने दिखा दिया है कि आधुनिक परिवहन तकनीक के कारण हम एक-दूसरे के कितने निकट आ चुके हैं। दुनिया दिन-ब-दिन सिमटती जा रही है, हम और क़रीब से क़रीबतर हो रहे हैं और वायरसों व बीमारियों को नयी-नयी जगह ले जा रहे हैं, इन प्रक्रियाओं को अब पीछे लौटाकर नहीं ले जाया जा सकता। जो बीमारियाँ हमारे सामने आ चुकीं हैं- प्लेग के शुरुआती दौर से लेकर अब तक- और भविष्य में आएँगी उन बीमारियों से बचने का यह बिलकुल उचित उपाय नहीं होगा कि सब कुछ बंद कर दिया जाए। हम अभी कोरोनावायरस जैसे वायरसों की उत्पत्ति की संभावना को ख़त्म करने की दिशा में कोई काम नहीं कर पाए हैं। हमारा ध्यान केवल इस बात पर होना चाहिए कि हम अपनी सुरक्षा कैसे करें।
क्या हम कभी पिछली महामारी से सबक़ लेंगे या, बस एक राहत की साँस लेने के बाद, जीत के अहंकार में अगली महामारी की ओर आगे बढ़ चलेंगे? 1918 की इन्फ़्लूएंज़ा महामारी दुनिया के कई देशों में फैली थी। प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद अपने घरों को लौट रहे सिपाही अपने साथ अपने घरों तक वायरस लेकर गए थे। इस महामारी में लगभग 5 से 10 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। इतिहासकार लौरा स्पिन्ने ने अपनी पुस्तक पेल राइडर: द स्पैनिश फ़्लू ऑफ़ 1918 एंड हाउ इट चेंज्ड द वर्ल्ड (2017) में लिखा है कि जब उस महामारी का अंत हुआ, तब ‘लंदन, मॉस्को या वाशिंगटन, डीसी में कोई स्मारक या कोई मक़बरा नहीं बना था। स्पेनिश फ़्लू को व्यक्तिगत रूप से याद किया जाता है, सामूहिक रूप से नहीं। ऐतिहासिक आपदा की तरह नहीं, बल्कि लाखों अलग–अलग, निजी त्रासदियों के रूप में‘।
मॉस्को में भले ही उस महामारी के ख़िलाफ़ जंग का कोई यादगार स्मारक न हो, लेकिन उस समय बने सोवियत संघ (यूएसएसआर) ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का बुनियादी ढाँचा तुरंत विकसित कर लिया था। सोवियत सरकार ने चिकित्सा प्रतिष्ठानों के साथ परामर्श कर इन्फ़्लूएंज़ा से निपटने के लिए एक जनवादी कार्यक्रम और सार्वजनिक स्वास्थ्य योजना बनाई। सोवियत स्वच्छता विज्ञानवेत्ता, स्वास्थ्य संगठनकर्ता, और राष्ट्रीय स्वास्थ्य शिक्षा के संस्थापक ए. वी. मोल्को का कहना था कि ‘आधुनिक अवधारणा में [दवा], अपने जैविक आधार और प्राकृतिक विज्ञान में अपनी जड़ों से मुक्त हुए बिना भी, इसकी प्रकृति और इसके लक्ष्यों के कारण एक समाजशास्त्रीय समस्या है‘। यही कारण है कि सोवियत संघ ने मेडिकल कॉलेजों को ‘भविष्य के चिकित्सक‘ बनाने का आह्वान किया, जिन्हें ‘गंभीर प्राकृतिक विज्ञान की तैयारी‘ के साथ-साथ ‘सामाजिक परिवेश को समझने के लिए पर्याप्त सामाजिक विज्ञान अध्ययन‘ की ज़रूरत होगी व जिनमें ‘बीमारी को जन्म देने वाली व्यावसायिक और सामाजिक स्थितियों का अध्ययन करने और न केवल बीमारी को ठीक करने के, बल्कि इससे बचाव के उपाय सुझाने की क्षमता हो‘। यूएसएसआर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली स्थापित करने वाला पहला देश था।
एक विचार के रूप में सार्वजनिक स्वास्थ्य का इतिहास बरसों पुराना है, लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य की शुरुआती अवधारणा में पूरी जनता के स्वास्थ्य की चिंता कम थी और बीमारी के उन्मूलन की चिंता ज़्यादा थी। बेशक ग़रीबों को इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा। सार्वजनिक स्वास्थ्य की यह पुरानी भेदभावपूर्ण अवधारणा हमारे समय में भी क़ायम है, ख़ास तौर पर बुर्जुआ सरकारों वाले देशों में, जो जनता से ज़्यादा मुनाफ़े के लिए प्रतिबद्ध हैं। लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य की समाजवादी समझ –कि सामाजिक और सरकारी संस्थानों को रोग के रोकथाम और संक्रमण चक्र को तोड़ने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए– 19वीं शताब्दी से विकसित होनी शुरू हुई। आज फिर से इस समझ पर विचार और अमल करने का समय है।
1918 के इन्फ़्लूएंज़ा के बाद, ऑस्ट्रिया के विएना में एक महामारी आयोग की स्थापना की गई थी। ये पहल राष्ट्र संघ स्वास्थ्य संगठन (1920) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी। लेकिन विश्व के एक बड़े हिस्से पर औपनिवेशिक शासन और उनके पूँजीपतियों द्वारा शासित देशों में निजी चिकित्सा कंपनियों की पकड़ ने राष्ट्र संघ का एजेंडा संकुचित कर दिया। 1946 में गठित संयुक्त राष्ट्र संघ की विशेष एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी औपनिवेशिक और पूँजीवादी मानसिकता से संचालित होती रही, हालाँकि डब्ल्यूएचओ के सर्जक – ज़ेमिंग ज़े (चीन), गेराल्डो डे पॉला सूज़ा (ब्राज़ील), और कार्ल इवांग (नॉर्वे)- किसी प्रमुख औपनिवेशिक देश से नहीं थे।
1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन के बाद के तीन दशकों में देशों और डबल्यूएचओ के भीतर स्वास्थ्य क्षेत्र के लोकतांत्रीकरण का संघर्ष गहराता गया। तीसरी दुनिया के जिन देशों ने 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन बनाया और 1964 में संयुक्त राष्ट्र संघ में G77 समूह बनाया था उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था और स्वास्थ्य देखभाल के निजीकरण के बजाय सार्वजनिक स्वास्थ्य में अधिक संसाधनों के लिए एजेंडा चलाया। सितंबर 1978 में अल्मा–अता (यूएसएसआर) में आयोजित प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में यह बहस प्रखरता से सामने आई। अलमा–अता की घोषणा सार्वजनिक स्वास्थ्य के पक्ष में सबसे अच्छा बयान पेश करती है। सार्वजनिक स्वास्थ्य के महत्व को उजागर करने के अलावा, घोषणा में साम्राज्यवादी ब्लॉक के देशों और तीसरी दुनिया के देशों के बीच की बड़ी असमानताओं को इंगित किया गया है। अल्मा–अता घोषणा के सातवें बिंदु को बार–बार पढ़ा जाना चाहिए, इसमें लिखा है कि सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल:
- देश व उसके समुदायों की आर्थिक स्थितियों और समाजशास्त्रीय और राजनीतिक विशेषताओं को प्रकट करती है तथा उन्हीं से विकसित होती है और यह सामाजिक, बायोमेडिकल और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में हुए अनुसंधानों के प्रासंगिक परिणामों तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य अनुभव के प्रयोग पर आधारित है;
- समुदाय की मुख्य स्वास्थ्य समस्याओं को संबोधित करती है, व तदनुसार प्रोत्साहन, निवारक, उपचारात्मक और पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करती है;
- कम–से–कम, मौजूदा स्वास्थ्य समस्याओं और उन्हें रोकथाम व नियंत्रण के तरीक़ों से संबंधित शिक्षा; खाद्य आपूर्ति और उचित पोषण को बढ़ावा देना; सुरक्षित पानी और बुनियादी स्वच्छता की पर्याप्त आपूर्ति; परिवार नियोजन सहित मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल; प्रमुख संक्रामक रोगों के ख़िलाफ़ टीकाकरण; स्थानीय स्थानिक रोगों का रोकथाम और नियंत्रण; सामान्य बीमारियों और चोटों का उचित उपचार; और आवश्यक दवाओं का प्रावधान शामिल हैं
- स्वास्थ्य क्षेत्र के अलावा, इससे संबंधित सभी क्षेत्र एवं राष्ट्रीय और सामुदायिक विकास के पहलू, विशेष रूप से कृषि, पशुपालन, खाद्य, उद्योग, शिक्षा, आवास, सार्वजनिक कार्य, संचार और अन्य क्षेत्र शामिल हैं; और उन सभी क्षेत्रों के समन्वित प्रयासों की माँग करती है
- स्थानीय, राष्ट्रीय और अन्य उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण उपयोग कर प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के नियोजन, संगठन, संचालन और नियंत्रण में अधिकतम सामुदायिक और व्यक्तिगत आत्मनिर्भरता एवं भागीदारी की माँग करती है व इसे बढ़ावा देती है; और इसके लिए समुचित शिक्षा के माध्यम से समुदायों की भागीदारी की क्षमता विकसित करती है
- सबसे अधिक आवश्यकता वाले लोगों को प्राथमिकता देते हुए एकीकृत, कार्यात्मक और पारस्परिक रूप से सहायक रेफ़रल सिस्टम पर आधारित हो, जिससे कि सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल में प्रगतिशील सुधार हो सके
- स्थानीय और रेफ़रल स्तर पर, ज़रूरत अनुसार चिकित्सकों, नर्सों, दाइयों, सहायकों और सामुदायिक कार्यकर्ताओं आदि स्वास्थ्यकर्मियों के साथ–साथ आवश्यकतानुसार पारंपरिक चिकित्सकों, पर निर्भर होगी, जो कि स्वास्थ्य टीम के रूप में काम करने और समुदाय की अभिव्यक्त स्वास्थ्य आवश्यकताओं का ध्यान रखने के लिए लिए सामाजिक व लाक्षणिक नज़र से पूर्णत: प्रशिक्षित हों।
अल्मा–अता घोषणा आज भी प्रासंगिक है। इसे एजेंडे पर वापस लाने की ज़रूरत है।
बुर्जुआ सरकारों ने जिस क्रूरता के साथ महामारी को संभाला है, उनके इस अपराध की जाँच होनी चाहिए। नोम चोम्स्की और मैंने ब्राज़ील से आ रही ख़बरों पर दो हफ़्ते पहले एक नोट लिखा था; इसी तरह की ख़बरें भारत, दक्षिण अफ़्रीका या संयुक्त राज्य अमेरिका की भी हो सकती हैं। हमने जो लिखा था वो इस प्रकार है:
ब्राज़ील के मनौस शहर में कोविड-19 से पीड़ित रोगियों की साँस लेने में समस्या होने से हुई मौतों से एक सप्ताह पहले ही स्थानीय और केंद्रीय सरकार के अधिकारियों के पास ऑक्सीजन की आपूर्ति ख़त्म होने की चेतावनी पहुँच चुकी थी। किसी भी आधुनिक देश –जैसे कि ब्राज़ील– के लिए यह अस्वीकार्य होना चाहिए कि इन चेतावनियों के सामने आने पर उसने कुछ नहीं किया और बस अपने ही नागरिकों को बिना किसी कारण के मरने दिया।
सुप्रीम कोर्ट के एक जज और सॉलिसिटर जनरल ने ब्राज़ील सरकार से कार्रवाई करने की माँग की है, लेकिन इससे जेयर बोलसोनारो प्रशासन पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा है। सॉलिसिटर जनरल जोस लेवी डो अमराल की रिपोर्ट विस्तार से निजीकरण और अक्षमता की सड़ांध को उजागर करती है। स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों को जनवरी की शुरुआत में पता चल गया था कि बहुत जल्द ऑक्सीजन की कमी होने वाली है, लेकिन उनकी चेतावनी में कोई गंभीरता नहीं थी। कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में इस महत्वपूर्ण आपूर्ति के ख़त्म होने से छह दिन पहले एक निजी ठेकेदार, जो ऑक्सीजन उपलब्ध कराता था, ने सरकार को सूचित किया था। ठेकेदार द्वारा दी गई जानकारी के बाद भी, सरकार ने कुछ नहीं किया; और बाद में –सभी वैज्ञानिक सलाहों के ख़िलाफ़ जाकर– [सरकार ने] कहा कि कोरोनावायरस के लिए दिया गया प्रारंभिक उपचार काम नहीं आया। बोलसोनारो सरकार की असंवेदनशीलता और अक्षमता पर सामान्य अभियोजक ऑगस्टो अरस ने विशेष जाँच की माँग की है। जब बोलसोनारो कुछ नहीं कर रहे थे, तब वेनेज़ुएला की सरकार ने एकजुटता दिखाते हुए मनौस को ऑक्सीजन का एक शिपमेंट भेजा।
ब्राज़ील की स्वास्थ्य देखभाल यूनियनों ने अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) में जेयर बोलसोनारो के ख़िलाफ़ केस किया है। जुलाई में होने वाली सुनवाई में सरकार की अयोग्यता, क्रूरता और निजीकरण का विषाक्त मिश्रण इस केस को मज़बूत कर सकता है। लेकिन समस्या अकेले बोलसोनारो या ब्राज़ील के द्वारा की गई ग़लती नहीं है। समस्या नवउदारवादी सरकारों में है, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, भारत, और अन्य देशों की सरकारों में, वे सरकारें जिनकी मुनाफ़ा कमाने वाली फ़र्मों और अरबपतियों के लिए प्रतिबद्धताएँ अपने ही नागरिकों या अपने संविधान के लिए प्रतिबद्धता से कहीं ज़्यादा हैं। ब्राज़ील जैसे देशों में हम जो देख रहे हैं वह मानवता के ख़िलाफ़ एक अपराध है।
कोविड-19 का संक्रमण चक्र तोड़ने में बोरिस जॉनसन, डोनाल्ड ट्रम्प, जेयर बोलसोनारो, नरेंद्र मोदी, और अन्य सरकारों की विफलता की जाँच करने के लिए एक नागरिक न्यायाधिकरण बनाने का समय आ चुका है। ये न्यायाधिकरण तथ्यात्मक जानकारी एकत्र करेगा जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि हम इन सरकारों को अपराध के मामले में छेड़छाड़ करने की अनुमति न दें; ये न्यायाधिकरण मानवता के ख़िलाफ़ इस अपराध की फ़ोरेंसिक जाँच करने के लिए आईसीसी को तभी एक मज़बूत नींव प्रदान करेगा, जब इसकी अपनी राजनीतिक दख़लंदाज़ी कम की जाएगी।
हम सभी को आक्रोशित होना चाहिए। लेकिन आक्रोश एक कारगर शब्द नहीं है।
हाल ही में आई एक रिपोर्ट बताती है कि बोलसोनारो सरकार ने वायरस का प्रसार बढ़ाने की रणनीति अपनाई थी। यह सब कुछ नागरिक न्यायाधिकरण के लिए साक्ष्य बनेगा। हमें कुछ भी भूलने नहीं देना है। हमें याद रखना है और हमें अल्मा–अता घोषणा में निहित विचारों के अनुसार समाज निर्माण करना है।
स्नेह–सहित,
विजय
डैन्येला श्रोडर, अनुवादक, अंतर–क्षेत्रीय कार्यालय
मैं ट्राईकॉन्टिनेंटल:सामाजिक शोध संस्थान के न्यूज़लेटर और अन्य लेखों का इंग्लिश से स्पैनिश में अनुवाद करती हूं। इसके साथ ही मैं अपनी पीएचडी का भी काम कर रही हूँ, जहां मैं चिली की तानाशाही के खिलाफ नारीवादी आंदोलन और महिला आंदोलन से प्रकाशित लेखों का अध्ययन कर रही हूँ। मैं कोआर्डिनेडोरा फेमिनिस्टा 8M के प्रदर्शनों और राजनीतिक बैठकों में भी शामिल होती हूँ। मेरी नई बिल्ली, जिसका नाम लुचा (संघर्ष) है, इन सभी कामों में मेरा साथ देती है।