प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
नौजवान हो ची मिन्ह (1890-1969) 1911 में फ़्रांस पहुँचे। फ़्रांस ने उनके वतन वियतनाम को अपना उपनिवेश बना रखा था। यद्यपि हो ची मिन्ह उपनिवेशवाद–विरोधी देशभक्ति की भावना के साथ बड़े हुए थे, लेकिन हो ची मिन्ह के स्वभाव ने उन्हें पीछे मुड़कर स्वच्छन्दतावाद की तरफ़ जाने की अनुमति नहीं दी। उन्होंने यह महसूस किया कि वियतनाम के लोगों को अपने ख़ुद के इतिहास और परंपराओं के साथ–साथ दुनिया भर के क्रांतिकारी आंदोलनों से उपजे लोकतांत्रिक धाराओं से सबक़ लेने की आवश्यकता है। फ़्रांस में रहते हुए वो समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए। इस आंदोलन से उन्हें यूरोप के मज़दूरों के वर्ग संघर्षों के बारे में जानकारी मिली। हालाँकि फ़्रांसीसी समाजवादी अपने देश की औपनिवेशिक नीतियों से ख़ुद को अलग नहीं कर सके। इससे हो ची मिन्ह बेहद आक्रोशित हुए। जब समाजवादी जीन लोंगुएट ने उन्हें कार्ल मार्क्स द्वारा रचित पूँजी का अध्ययन करने के लिए कहा तो हो ची मिन्ह को यह एक मुश्किल काम लगा। बाद में हो ची मिन्ह ने बताया कि उन्होंने इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से तकिये की तरह किया।
सोवियत गणराज्य की नींव रखने वाली 1917 की अक्टूबर क्रांति ने हो ची मिन्ह के हौसले में इज़ाफ़ा किया। न केवल श्रमिक वर्ग और किसानों ने राज्य को अपने क़ब्ज़े में लेकर नये सिरे से इसका निर्माण करने की कोशिश की, बल्कि इस नये राज्य के नेतृत्व ने उपनिवेश–विरोधी आंदोलनों का मज़बूती से बचाव किया। हो ची मिन्ह ने वी. आई. लेनिन द्वारा लिखी गई ‘थीसिस ऑन द नेशनल ऐंड कॉलोनियल क्वेश्चन’ को बड़े हर्ष के साथ पढ़ा, जिसे लेनिन ने 1920 की कम्युनिस्ट इंटरनेश्नल की सभा के लिए लिखा था। इस नौजवान वियतनामी उग्रपंथी को, जिसका देश 1887 से ग़ुलामी की बेड़ियों में क़ैद था, इस ग्रंथ तथा अन्य ग्रंथों द्वारा अपना आंदोलन खड़ा करने के लिए आवश्यक सैद्धांतिक और व्यावहारिक आधार मिला। हो ची मिन्ह पहले मास्को, फिर चीन गए, और उसके बाद अपने देश को औपनिवेशिक उत्पीड़न से आज़ाद कराने और फ़्रांस तथा संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा थोपे गए युद्ध (यह युद्ध हो ची मिन्ह की मृत्यु के छ: वर्षों के पश्चात वियतनाम की विजय के साथ समाप्त हुआ) से वियतनाम को बाहर निकालने के लिए आख़िरकार अपने वतन लौट आए।
हो ची मिन्ह ने 1929 में कहा कि ‘वर्ग संघर्ष अपने–आप को उस तरह से परिलक्षित नहीं करता जिस तरह से वो पश्चिम में करता है’। उनका मतलब यह नहीं था कि पश्चिम और पूर्व के बीच की खाई सांस्कृतिक थी; उनका मतलब था कि भूतपूर्व रूसी साम्राज्य और भारत–चीन जैसी जगहों के संघर्षों को दुनिया के इन हिस्सों में मौजूद विशेष कारकों को ध्यान में रखना होगा: औपनिवेशिक वर्चस्व की संरचना, जानबूझकर अविकसित रखे गए उत्पादक बल, किसानों और भूमिहीन खेतिहर मज़दूरों की बहुतायत संख्या, और सामंती इतिहास से विरासत में मिली तथा पुनरुत्पादित असामनता (जैसेकि जाति और पितृसत्ता)। ऐसी दशा में रचनात्मकता अतिआवश्यक थी, और इसी आवश्यकता के कारण औपनिवेशिक क्षेत्रों के मार्क्सवादियों ने अपने जटिल यथार्थों के ठोस अध्ययन पर आधारित संघर्ष के सिद्धांतों को विकसित किया। हो ची मिन्ह जैसे लोगों द्वारा लिखे गए ग्रंथ उस वक़्त के हालात के विवरणमात्र प्रतीत हो सकते हैं, लेकिन वास्तव में ये मार्क्सवादी उन विशिष्ट संदर्भों के आधार पर अपने संघर्ष के सिद्धांतों का विकास कर रहे थे जिनसे मार्क्स और यूरोप के भीतर के उनके मुख्य उत्तराधिकारी (जैसे कार्ल कौत्स्की और एडुआर्ड बर्नस्टीन) अनजान थे।
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान का डॉज़ियर संख्या 37, सवेरा: मार्क्सवाद और राष्ट्रीय मुक्ति, पेरू के जोस कार्लोस मारियातेगी से लेकर लेबनान के महदी अमेल के माध्यम से दक्षिण गोलार्ध के देशों में मार्क्सवाद की इस रचनात्मक व्याख्या की पड़ताल करता है। यह डॉज़ियर संवाद स्थापित करने का एक प्रयास है। यह डॉज़ियर मार्क्सवाद और राष्ट्रीय मुक्ति की जटिल परंपरा के विषय में संवाद के लिए निमंत्रण है, जो 1917 की अक्टूबर क्रांति से निकलती है और बीसवीं तथा इक्कीसवीं सदी की उपनिवेश–विरोधी संघर्षों में मज़बूती पाती है।
जब मार्क्सवाद की श्रेणियाँ उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र की सीमाओं से बाहर की तरफ़ फैलीं, तो उनके ‘दायरों का विस्तार’ करना पड़ा। फ्रांत्ज़ फ़ैनॉन ने रेचेड ऑफ़ द अर्थ (1963) में अपनी लेखनी के माध्यम से यही किया। इसके साथ–साथ ऐतिहासिक भौतिकवाद के कथानक को बेहतर करना पड़ा। इन श्रेणियों की उपयोगिता सभी जगहों पर तो थी, लेकिन उनको हर जगह पर एक ही प्रकार से लागू नहीं किया जा सकता था। मार्क्सवाद के आधार पर खड़े सभी आंदोलनों ने मार्क्सवाद को अपने परिवेश के अनुकूल ढालकर अपनाया। इसका एक उदाहरण हो ची मिन्ह के नेतृत्व में वियतनाम को आज़ाद कराने के लिए चलाया गया आंदोलन है। उपनिवेशों में मार्क्सवाद के सामने सबड़े बड़ी समस्या यह थी कि साम्राज्यवाद ने दुनिया के इन हिस्सों में उत्पादक शक्तियों को पंगु बना दिया था और लोकतंत्र की धाराएँ प्राचीन सामाजिक असमानताओं को उखाड़ पाने में असफल रहीं थीं। ऐसी परिस्थिति में सामाजिक धन के अभाव से ग्रसित जगहों पर क्रांति की आधारशिला आख़िर कैसे रखी जाती?
लेनिन के विचार हो ची मिन्ह जैसे लोगों को सहज ही समझ में आ गए क्योंकि लेनिन ने कहा था कि भारत और मिस्र जैसी जगहों में साम्राज्यवाद उत्पादक बलों को विकसित नहीं होने देगा। ये देश वैश्विक तंत्र में कच्चे माल का उत्पादन करने और यूरोप के कारख़ानों के तैयार उत्पादों को ख़रीदने की भूमिका निभाते थे। दुनिया के इन क्षेत्रों में उपनिवेशवाद की ख़िलाफ़त या मानव मुक्ति के प्रति प्रतिबद्ध उदारवादी अभिजात वर्ग उभर नहीं पाया था। उपनिवेशों में उपनिवेशवाद की ख़िलाफ़त और सामाजिक क्रांति हेतु संघर्ष का सारा दारोमदार वामपंथ के कंधों पर था। इसका अर्थ यह था कि वामपंथ को सामाजिक समानता के लिए आधार तैयार करना था, जिसमें उत्पादक बलों की उन्नति भी शामिल थी। वामपंथ को औपनिवेशिक लूट के बाद बचे–खुचे संसाधनों का उपयोग करना था जिसे जनता की भागीदारी और उत्साह ने सुगम बनाया। वामपंथ को मशीनों के प्रयोग और श्रम को बेहतर ढंग से संगठित करके उत्पादन का समाजीकरण, और शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण एवं संस्कृति का विकास करने के लिए धन का समाजीकरण करना था।
अक्टूबर 1917 के पश्चात की समाजवादी क्रांतियाँ निर्धन उपनिवेशों में हुईं। मंगोलिया (1921), वियतनाम(1945), चीन(1949), क्यूबा(1959), गिनी बिसाऊ और काबो वर्डे(1975), तथा बुर्किना फ़ासो इसके उदाहरण हैं। ये मुख्य रूप से कृषकीय समाज थे। उनकी पूँजी को उनके औपनिवेशिक शासकों ने लूट लिया था और उनकी उत्पादक शक्तियों का उतना ही विकास हो सका था जिससे कि वो कच्चे माल का निर्यात और तैयार माल का आयात कर सकें। हर क्रांति को रुख़सत हो रहे अपने औपनिशिक शासकों के हाथों भीषण हिंसा का सामना करना पड़ा। इन औपनिवेशिक शासकों ने अपने उपनिवेशों के बचे–खुचे धन का विनाश करने के लिए हर तरह का तरीक़ा अपनाया।
वियतनाम के ख़िलाफ़ युद्ध इस हिंसा का एक ज्वलंत उदाहरण है। ऑपरेशन हेड्स नामक एक अभियान इसको बख़ूबी दर्शाता है: 1961 से 1971 के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार ने वियतनाम में पेड़–पौधों को नष्ट करने के लिए 73 मिलियन लीटर रासायनिक हथियारों का छिड़काव किया। वियतनाम की अधिकांश कृषि पट्टी पर उस समय के सबसे भयानक रासायनिक हथियार एजेंट ऑरेंज का इस्तेमाल किया गया था। इस युद्ध ने न केवल लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया, बल्कि इसने समाजवादी वियतनाम के भाग्य में एक भयानक विरासत भी छोड़ा: दसियों हज़ारों वियतनामी बच्चे गंभीर चुनौतियों (स्पाइना बिफिडा, सेरेब्रल पाल्सी) के साथ पैदा हुए और इन हथियारों के प्रयोग के कारण लाखों एकड़ के अच्छे खेत विषाक्त बन गए। स्वास्थ्य और खेती की इस तबाही का प्रभाव कम–से–कम पाँच पीढ़ियों तक मौजूद रहा है। तबाही के इस भयानक असर के आने वाली कई पीढ़ियों तक बने रहने की पूरी संभावना है। वियतनाम के समाजवादियों को अपने देश का निर्माण समाजवाद के आदर्शवादी मॉडल के आधार पर नहीं, बल्कि साम्राज्यवाद द्वारा थोपी गई विकृतियों का सामना करते हुए करना था। उनके समाजवादी रास्तों को अपने इतिहास और यथार्थ से पैदा हुए वीभत्स यथार्थों से होकर गुज़रना था।
हमारा डॉज़ियर यह रेखांकित करता है कि औपनिवेशिक दुनिया के कई मार्क्सवादियों ने मार्क्स को कभी नहीं पढ़ा था। उन्होंने सस्ते पर्चों की सहायता से मार्क्सवाद का अध्ययन किया और लेनिन से परिचित हुए। उन दिनों किताबें बहुत महंगी थीं और उन्हें पढ़ पाना अक्सर एक दुष्कर कार्य हुआ करता था। क्यूबा के कार्लोस बालीनो (1848-1926) और दक्षिण अफ़्रीका के जोसी पामर (1903-1979) जैसे लोग मामूली पृष्ठभूमि के लोग थे। मार्क्स की आलोचना करने वाली बौद्धिक परंपराएँ उनकी पहुँच से दूर थीं। लेकिन उन्होंने अपने संघर्षों, अपने अध्ययन और अपने अनुभवों के माध्यम से इसके मूलभाव को समझकर अपनी परिस्थितियों के अनुकूल सिद्धांतों का विकास किया।
आज, हमारे आंदोलनों और बेहतर भविष्य के निर्माण की हमारी उम्मीदों के लिए अध्ययन एक आधारस्तम्भ बना हुआ है। यही कारण है कि हर साल की 21 फ़रवरी को ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान रेड बुक्स डे में हिस्सा लेता है। पिछले साल, 21 फ़रवरी 1848 को प्रकाशित कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र की 172 वीं वर्षगांठ पर साठ हज़ार से अधिक लोगों ने सार्वजनिक स्थानों पर इकट्ठा होकर इसको पढ़ा। इस साल, महामारी के कारण ज़्यादातर कार्यक्रमों को ऑनलाइन आयोजित किया जाएगा। हम उम्मीद करते हैं कि आप अपने क्षेत्र में मौजूद उन प्रकाशकों की तलाश करेंगे जो रेड बुक्स डे आयोजित कर रहे हैं, और आप उसमें शामिल होंगे। अगर आपके आस–पास कोई कार्यक्रम नहीं हो रहा है तो कृपया अपना ख़ुद का कार्यक्रम आयोजित करें या फिर सोशल मीडिया के सहारे अपनी पसंदीदा रेड बुक और अपने संघर्षो के संदर्भ में इसकी अहमियत के विषय के बारे में बात करें। हम आशा करते हैं कि रेड बुक्स डे हमारे कैलेंडर में उतना ही महत्वपूर्ण बन जाएगा जितना कि मई दिवस है।
हो ची मिन्ह – जिनके नाम का अर्थ ’प्रकाश की आकांक्षा’ है – को लगभग हमेशा ही लकी स्ट्राइक सिगरेट की डिब्बी और हाथ में किताब के साथ देखा गया। वह पढ़ना और बातें करना पसंद करते थे। इन दोनों गतिविधियों ने परिवर्तनशील दुनिया के बारे में उनकी समझ को विकसित करने में उनकी मदद की। इस न्यूज़लेटर को पढ़ने के दौरान आपके पास में कौन–सी लाल किताब रखी हुई है? क्या आप रेड बुक्स डे में हमारे साथ शामिल होंगे और हमारे नये डॉज़ियर को अपनी रेड बुक की सूची में शामिल करेंगे?
स्नेह–सहित,
विजय।
मैं ट्राईकॉन्टिनेंटल हूँ:
डैफने मेलो, अनुवादक, अंत:क्षेत्रीय कार्यालय
मैं ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के विभिन्न प्रकाशनों का अंग्रेज़ी तथा स्पेनिश भाषा से ब्राज़ीलियन पुर्तगाली भाषा में अनुवाद करती हूँ। मैं साप्ताहिक न्यूज़लेटर नोतीसियस दा चीना (चीनी समाचार) का संपादन भी करती हूँ। मैं मनोचिकित्सा की पढ़ाई कर रही हूँ और रोगियों को अकेले और समूहों में देख रही हूँ। वर्तमान में महामारी के कारण रोगियों को ऑनलाइन ही देख रही हूँ। मुझे विशेष रूप से समूह मनोविश्लेषण और महत्वपूर्ण सामाजिक परिस्थितियों, साथ–साथ मनोविश्लेषण और लिंग पर चल रहे बहसों में दिलचस्पी है। अगले साल, मैं महिलाओं पर पुरनुत्पादित श्रम के मनोवैज्ञानिक प्रभावों पर शोध करना शुरू करूँगी। मैं अपने घर और अपनी दो साल की बेटी की देखभाल करती हूँ। इन कामों को मैं अपने साथी के साथ मिलकर करती हूँ ताकि मैं अपना काम और पढ़ाई दोनों जारी रख सकूँ।