Anujath Sindhu Vinaylal (India), Gender and Child Equality, 2017.

अनुजात सिंधु विनयलाल (भारत), मेरी माँ और पड़ोस की माएँ, 2017।। 

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार के द्वारा पास किए गए तीन कृषिक़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों और खेतमज़दूरों के आंदोलन को अब सौ से ज़्यादा दिन हो गए हैं। वे अपना आंदोलन तब तक जारी रखेंगे जब तक कि सरकार कॉर्पोरेट घरानों को फ़ायदा पहुँचाने वाले ये क़ानून वापिस नहीं ले लेती। किसानों और खेतमज़दूरों का कहना है कि यह उनके अस्तित्व का संघर्ष है। आत्मसमर्पण करना मौत के बराबर होगा: इन क़ानूनों के पारित होने से पहले ही, 1995 से अब तक क़र्ज़ के बोझ के कारण 3,15,000 से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके थे।

अगले डेढ़ महीने में, चार राज्यों (असम, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल) और एक केंद्र शासित प्रदेश (पुडुचेरी) में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इन चार राज्यों में लगभग 22.5 करोड़ लोग रहते हैं। ये आबादी अकेले ही, आबादी के हिसाब से इंडोनेशिया के बाद दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा देश बना सकता है। प्रधानमंत्री मोदी की भारतीय जनता पार्टी इनमें से किसी भी राज्य में अहम दावेदार नहीं है।

 

Gopika Babu (India), Community, 2021.

गोपिका बाबू (भारत), समुदाय, 2021.

 

3.5 करोड़ की आबादी वाले केरल राज्य में पिछले पाँच साल से वाम लोकतांत्रिक मोर्चे की सरकार है, इन पाँच सालों में इस सरकार ने कई गंभीर संकटों का सामना किया है: 2017 में ओकी चक्रवात के बाद के प्रभाव, 2018 में निपा वायरस का प्रकोप, 2018 और 2019 की बाढ़ और फिर कोविड19 महामारी राज्य में संक्रमण चक्र तोड़ने के लिए केरल की स्वास्थ्य मंत्री, के. के. शैलजा द्वारा अपनाए गए त्वरित उपायों और व्यापक दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप उन्हें कोरोनावायरस स्लेयर‘ (कोरोना का नाश करने वाली) कहा जाने लगा हैं। अभी तक के सभी चुनावपूर्व अनुमानों से यही संकेत उभरकर आरहे हैं कि 1980 के बाद से राज्य में जारी सत्तासीन सरकार विरोधी वोटिंग के ट्रेंड को तोड़कर वाम मोर्चा फिर से सरकार बनाएगा।

 

विजय प्रसाद केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक से केरल के आगामी विधान सभा चुनावों के बारे में बात कर रहे हैं। साभार: पीपल्ज़ डिस्पैचपीपुल्स डिस्पैच के साक्षात्कार का वीडियो। 

पिछले पाँच वर्षों में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार द्वारा किए गए कामों को बेहतर ढंग से समझने के लिए मैंने केरल के वित्त मंत्री टी. एम. थॉमस इसाक से बात की। इसाक भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य भी हैं। इसाक ने कहा कि पाँच साल वामपंथी मोर्चा, फिर पाँच साल दक्षिणपंथी मोर्चा सरकार वाले ट्रेंड में ‘​​केरल की सामाजिक उन्नति को गहरा नुक़सान हुआ है इसाक कहते हैं कि अगर वामपंथी फिर से जीतते हैं तो वे दस साल तक लगातार सरकार में रहेंगे। केरल की विकास प्रक्रिया पर एक स्पष्ट छाप छोड़ने के लिए यह पर्याप्त रूप से लम्बा समय है

इसाक ने कहा कि, केरल के विकास के प्रति वामपंथियों के दृष्टिकोण की सामान्य नीति एक प्रकार से हॉप, स्टेप एंड जम्प (कुलाँचे भरना, क़दमताल करना और छलाँग लगना) की रही है:

पहला चरण, हॉप, पुनर्वितरण की राजनीति है। केरल इसके लिए बहुत ही विख्यात रहा है। हमारा ट्रेड यूनियन आंदोलन आय के महत्वपूर्ण पुनर्वितरण में सफल रहा है। केरल में पूरे देश के मुक़ाबले मज़दूरी दर सबसे अधिक है। हमारा किसान आंदोलन एक बहुत ही सफल भूमि सुधार कार्यक्रम के माध्यम से भूसंपत्ति को पुनर्वितरित करने में सक्षम रहा है। शक्तिशाली सामाजिक आंदोलन, जो कि केरल के वाम आंदोलन से भी पुराने हैं, और जिनकी परंपरा वामपंथ आगे बढ़ा रहा है, एक के बाद एक सत्ताधारी सरकारों पर शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, और अन्य बुनियादी ज़रूरतों को सभी के लिए मुहैया करवाने का दबाव डालते रहे हैं। इसलिए, केरल में, एक सामान्य व्यक्ति का जीवन स्तर बाक़ी भारत से बहुत बेहतर है।

लेकिन इस प्रक्रिया में एक समस्या है। क्योंकि हमें सामाजिक क्षेत्र पर इतना ख़र्च करना पड़ता है, इसलिए बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए पर्याप्त धन [या] संसाधन नहीं होंगे। इसलिए आधी सदी से भी अधिक समय के दौरान हुए सामाजिक विकास कार्यक्रमों के बाद, केरल में आधारभूत ढाँचे की भारी कमी है।

हमारी वर्तमान सरकार ने संकटों से निपटने का उल्लेखनीय काम किया है, उसने सुनिश्चित किया कि समाज में किसी प्रकार की परेशानी हो, केरल में कोई भी भूखा रहे, और हर किसी को कोविड ​​के दौरान सही उपचार मिले। लेकिन हमने कुछ और उल्लेखनीय काम किया है।

 

Junaina Muhammed (India), Green Kerala, 2021.

जुनैना मुहम्मद (भारत), हरित केरल, 2021.

 

सरकार ने राज्य में बुनियादी ढाँचे के निर्माण और अर्थव्यवस्था की नींव बदलने पर काम करना शुरू किया। बुनियादी ढाँचे में सुधार करने के लिए लगभग 60,000 करोड़ रुपये (या 11 बिलियन डॉलर) चाहिए। ये धन राशि बेहद ज़्यादा है। इस प्रकार के आधारभूत ढाँचा विकास के वित्तपोषण के लिए एक वामपंथी सरकार कैसे धन जुटाएगी? भारत का एक राज्य होने के नाते, केरल, एक निश्चित सीमा से अधिक उधार नहीं ले सकता है, इसलिए वामपंथी सरकार ने केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फ़ंड बोर्ड (KIIFB) जैसे संस्थानों की स्थापना की। इस बोर्ड के माध्यम से सरकार 10,000 करोड़ रुपये (1.85 बिलियन डॉलर) ख़र्च कर पाई और बुनियादी ढाँचे में एक उल्लेखनीय परिवर्तन कर दिखाया हॉप (पुनर्वितरण) और इन्फ्रास्ट्रक्चरल विकास (स्टेप) के बाद, जंप आता है:

जंप वह कार्यक्रम है जिसे हमने लोगों के सामने रखा है। अब बुनियादी ढाँचा है, [जैसे कि] ट्रांसमिशन लाइनें, आश्वासित बिजली, निवेशकों के लिए निवेश हेतु औद्योगिक पार्क, हमारे पास K-FON [केरलफ़ाइबर ऑप्टिक नेटवर्क] होगा, जो कि इंटरनेट का एक सरकारी सुपरहाईवे होगा, जो किसी भी सेवा प्रदाता के लिए उपलब्ध होगा। यह सभी के लिए समानता सुनिश्चित करेगा; किसी को भी [अनुचित] लाभ नहीं होगा। और हम सबको इंटरनेट उपलब्ध कराने जा रहे हैं। यह प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है। सभी ग़रीबों को मुफ़्त में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी मिलने जा रही है।

इन सभी क़दमों ने हमें अगला बड़ा जंप लेने की जगह दी है। यानी, अब हम अपनी अर्थव्यवस्था के आर्थिक आधार को बदलना चाहते हैं। हमारा आर्थिक आधार व्यावसायिक फ़सलें हैं, जो [खुले व्यापार के कारण] संकट में हैं, या श्रम प्रधान पारंपरिक उद्योग हैं, या प्रदूषणकारी रासायनिक उद्योग हैं। इसलिए, अब हमारा मानना है कि ज्ञान उद्योग, सेवा उद्योग, कौशलआधारित उद्योग जैसे उद्योग हमारे मुख्य उद्योग होंगे। अब आप अपने पारंपरिक आर्थिक आधार से इस नये आधार की ओर शिफ़्ट कैसे करेंगे?

Kadambari Vaiga (India), High-tech School, 2020.

कादम्बरी वैगा (भारत), हाईटेक स्कूल, 2020.

 

केरल के लिए नये आर्थिक अवसर क्या होंगे? सबसे पहले, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म अर्थव्यवस्था में बदलाव के कारण, केरल अब अपने आईटी उद्योग को राज्य की उच्च साक्षरता दर 100% राज्यवित्त पोषित इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ विकसित करेगा जो जल्द ही पूरी आबादी के लिए उपलब्ध होगा। इसके बारे में इसाक ने कहा, ‘महिलाओं के रोज़गार पर ज़बरदस्त प्रभाव पड़ेगा दूसरा, केरल की वाम सरकार नवाचार को बढ़ावा देने और सहकारी उत्पादन के केरल के इतिहास (जिसका एक उदाहरण है, यूरालुंगल लेबर कॉन्ट्रैक्ट कोऑपरेटिव सोसाइटी, जिसने हाल ही में केवल पाँच महीने में एक पुराने पुल को फिर से बनाया है, निर्धारित समय से सात महीने पहले ही) को और प्रभावी बनाने के लिए उच्च शिक्षा में बदलाव करेगी।

केरल गुजरात मॉडल (पूँजीवादी फ़र्मों के लिए विकास की ऊँची दर, लेकिन जनता के लिए मामूली सामाजिक सुरक्षा और कल्याण), उत्तर प्रदेश मॉडल ( उच्च विकास और सामाजिक कल्याण), और उच्च सामाजिक कल्याण लेकिन मामूली औद्योगिक विकास के मॉडल से आगे बढ़ना चाहता है। नयी केरल परियोजना का लक्ष्य होगा उच्च लेकिन प्रबंधित विकास और उच्च स्तर का कल्याण। इसाक ने कहा, हम केरल में जीवन की व्यक्तिगत गरिमा, सुरक्षा और कल्याण के लिए आधार बनाना चाहते हैं, जिसके लिए उद्योग और कल्याण दोनों की आवश्यकता होती है उन्होंने कहा, हम समाजवादी देश नहीं हैं, हम भारतीय पूँजीवाद का हिस्सा हैं। लेकिन इस हिस्से में, अपनी सीमाओं के भीतर, हम एक ऐसे समाज का निर्माण करेंगे, जो भारत के सभी प्रगतिशील विचार वाले लोगों को प्रेरित करेगा। हाँ, कुछ अलग बनाना संभव है। यह केरल का विचार है

 

 

केरल मॉडल का एक प्रमुख तत्व हैं राज्यभर में फैले शक्तिशाली सामाजिक आंदोलन। इन्हीं में से एक है सौ साल पुराने कम्युनिस्ट आंदोलन की अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (ऐडवा), जिसका गठन चालीस साल पहले 1981 में हुआ था और एक करोड़ से ज़्यादा महिलाएँ जिसकी सदस्य हैं। ऐडवा की संस्थापकों में से एक थीं कनक मुखर्जी (1921-2005) कनक दी, जैसा कि उन्हें कहा जाता था, दस साल की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गई थीं और फिर हमारी दुनिया को उपनिवेशवाद और पूँजीवाद की ज़ंजीरों से मुक्त कराने के संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटीं। 1938 में, सत्रह साल की उम्र में, छात्रों और औद्योगिक श्रमिकों को संगठित करने की अपनी अपार प्रतिभा का उपयोग करते हुए कनक दी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्या बनीं। फासीवादविरोधी संघर्ष का हिस्सा होने के नाते कनक दी ने, 1942 में महिला आत्मरक्षा समिति के गठन में मदद की; इस संगठन ने 1943 के बंगाल अकालसाम्राज्यवादी नीतियों के कारण आए अकाल जिसमें तीस लख से अधिक मौतें हुईंसे तबाह हुए लोगों की मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन सभी अनुभवों ने कम्युनिस्ट संघर्ष के प्रति कनक दी की प्रतिबद्धता को और गहरा किया, और उन्होंने अपना बाक़ी जीवन इस संघर्ष को समर्पित कर दिया।

इस अग्रणी कम्युनिस्ट नेता के सम्मान में, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने अपना दूसरा नारीवादी अध्ययन (संघर्षरत महिलाएँ, संघर्ष में महिलाएँ) उनके जीवन और उनके कामों को समर्पित किया है। प्रोफ़ेसर एलिज़ाबेथ आर्मस्ट्रांग, जो इस अध्ययन में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता थीं, ने हाल ही में ऐडवा पर एक किताब प्रकाशित की है, जो अब लेफ़्टवर्ड बुक्स से पेपरबैक में उपलब्ध है।

ऐडवा जैसे संगठनों का मज़दूर वर्ग की महिलाओं और किसान महिलाओं के आत्मविश्वास और उनकी ताक़त को बढ़ाने का काम आज भी जारी है। केरल में और किसान आंदोलन में, और दुनिया भर के संघर्षों में ऐडवा की बड़ी भूमिका रही है। वो केवल अपनी पीड़ाओं के बारे में ही नहीं बल्कि अपनी आकांक्षाओं के बारे में, समाजवादी समाज के उनके महान सपने के बारे में भी बात करती हैंवो सपना जिसे केरल में वाम लोकतांत्रिक मोर्चे की सरकार जैसे अन्य साधनों के साथसाथ ही साकार करने की आवश्यकता है।

स्नेहसहित,

विजय.

 

एमिलियानो लोपेज़

शोधकर्ता, अर्जेंटीना कार्यालय। 

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के शोध कार्यों को पूरा करने, वर्चुअल यूनिवर्सिटी क्लास पढ़ाने और अपने छोटे बच्चों की देखभाल करने में ही मेरा दिन बीतता है। हर दिन मैं यह समझने की कोशिश करती हूँ कि दुनिया इतनी उलटी क्योंकर हो गई है। मैं साम्राज्यवाद की वजह से दक्षिणी गोलार्ध के देशों (ख़ास तौर पर लैटिन अमेरिका, ‘हमारे अमेरिका‘) में बढ़ती असमानता पर अध्ययन कर रही हूँ। मैं हमेशा इस बारे में सोचती हूँ कि हमारे कामों के साथ हम दक्षिणी गोलार्ध की दुनिया में हमारे लोगों के संगठन में किस प्रकार से अपना सहयोग कर सकते हैं।