प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
COVID-19 के बारे में चौंकाने वाली ख़बरें ब्राज़ील और भारत से आ रही हैं, जहाँ संक्रमण लगातार फैल रहा है, और मौत के आँकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। ब्राज़ील में (21 करोड़ 10 लाख से अधिक की आबादी में से) लगभग दस लाख लोग संक्रमित हुए हैं। भारत में संक्रमित लोगों की संख्या का अनुमान लगाना मुश्किल है, क्योंकि बहुत कम परीक्षण हो रहा और आँकड़े ख़राब हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ (1 अरब 30 लाख से अधिक की आबादी में से) कम-से-कम अस्सी लाख लोग संक्रमित हुए हैं।
जून की शुरुआत में, ब्राज़ील के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक दिन के लिए अपनी वेबसाइट बंद कर दी; ये वो साइट थी जो COVID-19 के आधिकारिक आँकड़े प्रकाशित कर रही थी। जब साइट अगले दिन वापस खोली गई, तो पिछले COVID-19 मामलों के सभी डेटा ग़ायब हो गए थे। संक्रमण दर या मृत्यु दर के बारे में किसी भी आधिकारिक संख्या का आकलन करने का कोई तरीक़ा नहीं बचा था। बोलसोनारो प्रशासन के विरोधियों ने इसकी आलोचना की। दक्षिपंथी नेता रॉड्रिगो मैया ने ट्विटर पर लिखा कि ‘स्वास्थ्य मंत्रालय सूरज को चलनी से ढँकने की कोशिश कर रहा है। आँकड़ों की विश्वसनीयता को बहाल करना अत्यावश्यक है। एक मंत्रालय जो आँकड़ों को तोड़ता-मरोड़ता है, वह तथ्यों की वास्तविकता का सामना करने से बचने के लिए एक समानांतर ब्रह्मांड बना लेता है।’ ब्राज़ील के सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही आँकड़े पुनर्स्थापित हो सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की 19 जून की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, WHO के हेल्थ इमर्जेंसीज़ प्रोग्राम के कार्यकारी निदेशक डॉ. माइकल रयान ने कहा कि पिछले 24 घंटों में ब्राज़ील में 22,000 से अधिक लोग संक्रमित हुए हैं और 1,230 से अधिक लोगों की मौतें हुई हैं।
इसी दौरान, इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के जर्नल ने दिखाया है कि मई की शुरुआत में देश में संक्रमण की सरकारी रिपोर्ट (35,000) वास्तव में संक्रमणों की सही संख्या (7,00,000) से कम-से-कम बीस गुना कम थी। आधिकारिक सरकारी आँकड़ों के अनुसार जून तक देश में 4,00,000 लोग संक्रमित हो चुके हैं, लेकिन यदि हम आधिकारिक आँकड़ों को बीस से गुणा करें (इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के मूल्यांकन के बाद) तो संक्रमित लोगों की संख्या अस्सी लाख तक हो सकती है। आधिकारिक मृत्यु संख्या 13,000 है, जो कि विश्वसनीय नहीं है। इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के अध्ययन के हालिया निष्कर्षों में से एक यह भी है कि सरकार ने कांटैक्ट ट्रेसिंग करने में किसी प्रकार की गंभीरता नहीं दिखाई है। अध्ययन में यह भी बाताया गया कि भारत सरकार को पता नहीं है कि COVID-19 से संक्रमित लोगों में से 44% कैसे संक्रमित हुए।
न तो ब्राज़ील और न ही भारत की सरकारों ने वायरस पर विज्ञान आधारित रवैया अपनाया है। ब्राज़ील में, बोलसोनारो की सरकार ने दो चिकित्सा विशेषज्ञों -लुइज हेनरिक मैंडेटा (बाल चिकित्सा ऑर्थोपेडिस्ट) और फिर उनके स्थान पर आए नेल्सन टेइच (ऑन्कोलॉजिस्ट) – को स्वास्थ्य मंत्री के पद से हटा दिया और उनकी जगह बिना चिकित्सा प्रशिक्षण वाले सेना के आदमी, एडुअर्डो पज़ुएलो को बिठा दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि कोई भी चिकित्सा विशेषज्ञ सरकार में शामिल होना और बोलसोनारो के मनमाने विकल्पों को बढ़ावा देना नहीं चाहता है, और बोलसोनारो अपने राजनैतिक एजेंडे का खंडन करने वाले वैज्ञानिक साक्ष्य को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है, जैसा कि मैंडेटा की बर्ख़ास्तगी से स्पष्ट है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तरह, बोलसोनारो भी स्वास्थ्य पेशेवर बन गए हैं, और अपने स्वास्थ्य मंत्रालय को रोग के एंटीडोट्स के रूप में क्लोरोक्विन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए कहा है। जबकि, पिछले हफ़्ते WHO ने फिर से अपने सॉलिडैरिटी ट्रायल से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को हटा लिया, क्योंकि इस दवा से कोई फ़ायदा नहीं हुआ (बल्कि इसके अन्य प्रतिकूल दुष्प्रभावों के साथ-साथ कुछ रोगियों में दिल की समस्या पैदा हुई)। अमेरिका के फ़ूड एंड ड्रग अड्मिनिस्ट्रेशन ने सोमवार 15 जून को बीमारी के इलाज के लिए इसके आपातकालीन उपयोग का प्राधिकरण भी रद्द कर दिया; और पिछले शनिवार को, यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ़ हेल्थ ने COVID -19 के इलाज के लिए इस दवा की क्षमता का परीक्षण रोक दिया।
भारत में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर बनने का नारा दिया है; लोगों को वायरस का सामना करने के लिए ख़ुद से उपाय करने को कहा है। ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार, न तो कुछ करेगी और न किसी तरह की कोई ज़िम्मेदारी लेगी। पिछले कई दशकों से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के चिकित्सा संसाधनों से ही निजी स्वास्थ्य क्षेत्र वित्त पोषित होता रहा है, और अब वायरस से संक्रमित लोगों के प्रति निर्दयी बना हुआ है। निजी अस्पताल और क्लीनिक उन मरीज़ों को भी भर्ती करने से माना कर रहे हैं जिनके लक्षणों को वेंटिलेटर और ऑक्सीजन द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। ये मरीज़ बड़े पैमाने पर मध्यम वर्ग के हैं, इसका मतलब है कि श्रमिकों की दुर्दशा पर ध्यान नहीं दिया गया है।
2016 के उत्तरार्ध से, जब राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ़ के आलोकतंत्रिक निष्कासन –सॉफ़्ट तख़्तापलट– के साथ दक्षिणपंथ सत्ता में आया, तब से ब्राज़ील सरकार ने बड़ी कटौतियों कर स्वास्थ्य प्रणाली को प्रभावित किया है। संवैधानिक संशोधन 95 (दिसंबर 2016), जिसे EC-95 भी कहते हैं, 2018 में लागू हुआ और इसने बीस साल के लिए केंद्रीय बजट पर रोक लगा दी, इसका सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। यह संशोधन पारित होने के समय भविष्य की चिंता के साथ प्रोफ़ेसर लिआना सर्ने लिंस ने लिखा था कि EC-95 ‘कड़वी दवा नहीं है। यह वो बीमारी है जो पूरे देश को एक आईसीयू में बदल देगी।’ 2017 में, सरकार ने -तीस साल में पहली बार- संविधान द्वारा निदेशित स्वास्थ्य बजट से कम बजट जारी किया। इसके अलावा, सरकार ने यूनिफ़ाइड हेल्थ सिस्टम (Sistema Único de Saúde) को कमज़ोर करने के लिए निजी स्वास्थ्य योजनाएँ (planos populares) विकसित कीं। प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं और सैनिटेशन पर केंद्रीय संसाधनों का निवेश करने के लिए राज्यों और नगर-पालिकाओं पर लागू विनियमन दायित्वों को कम किया गया, जिसके कारण स्थानीय स्तर की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों कमज़ोर हुईं। बजट कटौतियों ने, थोड़े समय में ही, ब्राज़ील की सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षमता को नष्ट कर दिया, जो कि -कठिन सामाजिक संघर्षों के परिणामस्वरूप- लंबे समय से दुनिया की सबसे मज़बूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों में से एक रहा था।
2014 में जब मोदी ने कार्यभार संभाला, तो उनकी सरकार ने स्वास्थ्य बजट में 20% की कटौती की (इसके बाद से प्रत्येक वर्ष ये प्रतिशत बढ़ा है)। आज, भारत स्वास्थ्य क्षेत्र में अपने सकल घरेलू उत्पाद की एक मामूली राशि (1.15%) ख़र्च करता है, इसका भी बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र को जाता है। भारत सरकार द्वारा 2019 में जारी एक दस्तावेज़ ‘नेशनल हेल्थ प्रोफ़ाइल’ से पता चलता है कि प्रत्येक 10,926 लोगों पर एक डॉक्टर की उपलब्धता है; यह WHO के जनादेश -1,000 लोगों के लिए एक डॉक्टर- के अनुपात की तुलना में दस गुना से भी कम है। भारत में चिकित्सा सेवा लेने की लागत बहुत ज़्यादा है। मरीज़ या उसके परिवार द्वारा, बीमा या सरकारी मुआवज़े के बिना, स्वास्थ्य सेवा प्रदाता को दिए जाने वाले ख़र्च (out-of-pocket expenditure) के मामले में भारत दुनिया भर में सबसे ज़्यादा ख़र्च करने वाले देशों में से एक है। कोरोना वायरस के आने से पहले ही, 5 करोड़ 70 भारतीय हर साल ऐसी चिकित्सा लागतों के परिणामस्वरूप ग़रीबी में धकेल दिए जाते थे। सरकार की बीमा योजना (आयुष्मान भारत-प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना) अस्पतालों की धोखाधड़ी और अक्षमता से प्रभावित है। भारत सरकार के एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, नेशनल हेल्थ मिशन के बजट में 2014 से 2020 तक लगातार गिरावट देखी गई है। यह लगातार गिरावट तब शुरू हुई जब 2014 में मोदी की दक्षिणपंथी सरकार सत्ता में आई। इसका भयावह प्रभाव पड़ा है।
जनता का तिरस्कार बोलसोनारो और मोदी सरकारों की ख़तरनाक अक्षमता का प्रतीक है। वायरस की अत्यधिक संक्रामक प्रकृति पर बोलसोनारो के घमंडी रवैये का मतलब है कि देश में ठीक तरीक़े से लॉकडाउन लागू ही नहीं हुआ। जब बोल्सनारो ने देश को फिर से पूरी तरह खोलने का अभियान शुरू किया, तब साओ पाओलो के मेयर ब्रूनो कोवस ने बोलसोनारो पर जनता के साथ ‘रूसी जूआ’ खेलने का आरोप लगाया था।
WHO द्वारा वैश्विक महामारी घोषित किए जाने के दो सप्ताह बाद, 24 मार्च को, मोदी ने अचानक तीन सप्ताह के लॉकडाउन की घोषणा कर दी। इसके बाद दो दिनों तक कुछ भी नहीं कहा गया, और जब कहा भी गया, तो जो ‘योजना’ पेश की गई थी उसके बारे में कुछ ख़ास नहीं बताया गया। लॉकडाउन से दो दिन पहले, रेल मंत्रालय ने सभी यात्री ट्रेनें निलंबित कर दी थीं; बसों ने काम करना बंद कर दिया था। इसके बाद दिल दहलाने वाली घटनाओं की शुरुआत हुई। लाखों-लाख भारतीय मज़दूर अपने गाँवों और क़स्बों से दूर देश के किसी दूसरे हिस्से में काम करने के लिए रहते हैं। उनमें से कई दिहाड़ी मज़दूर हैं, जिनके पास बचत के नाम पर बहुत कम पैसा होता है, और जिन्हें रहने की जगह तभी मिलती है जब वे काम करते हैं। बिना किसी सूचना के, इस लॉकडाउन द्वारा उन्हें बताया गया कि अब उनके पास आवास या यातायात का कोई विकल्प नहीं बचा है और उन्हें सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घरों तक जाना पड़ेगा। बिना किसी पर्याप्त योजना के लागू किए गए इस लॉकडाउन का ग्रामीण जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है -जैसा कि पीपुल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया और सोसाइटी फ़ॉर सोशल एंड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा किए गए अध्ययनों से उजागर होता है।
दोनों देशों में ग़ुस्सा बढ़ रहा है। लॉकडाउन की आड़ में, इन सरकारों ने अपने अलोकप्रिय एजेंडे पूरे किए हैं -जैसे कि श्रम अधिकारों का हनन करना, स्वास्थ्य सेवा का निजीकरण करना, और बड़ी बजट कटौतियों के तरीक़े अख़्तियार करना। ब्राज़ील में, एक महत्वपूर्ण नारा है Fora Bolsonaro (बाहर जाओ, बोलसोनारो)। यह एक ऐसा नारा है जो भारत में भी गूँजता है, जहाँ वामपंथी पार्टियाँ मोदी सरकार की जनता को नुक़सान पहुँचाने वाली नीतियों के ख़िलाफ़ लगातार आवाज़ उठा रही हैं। बोलसोनारो और मोदी जैसे मर्दों की सरकारों के प्रति बढ़ता असंतोष एक उम्मीद का संकेत है।
सब कुछ टल जाएगा। महामारी भी, और बोलसोनारो और मोदी जैसों की ख़तरनाक अक्षमता भी। 1952 में, हिंदी कवि नागार्जुन (1911-1998) ने अकाल के बारे में एक आकर्षक कविता लिखी थी – ‘अकाल और उसके बाद’। आज जब सुरंग के अंत में रौशनी जलती बुझती है, और कभी-कभी लगता है कि ख़त्म ही हो चुकी है, ऐसे में ये कविता उम्मीद जगाती है।
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।
अंतर्राष्ट्रीय साम्राज्यवाद-विरोधी पोस्टर प्रदर्शनियों के दूसरे चरण के लिए प्रस्तुतियाँ आज से स्वीकार की जाएँगी। इस बार का विषय है ‘नवउदारवाद’। इक्वाडोर के चित्रकार पावेल एग़ुएज़ ने हमारे साथ एक साक्षात्कार में हमें याद दिलाया कि ‘सामाजिक आंदोलन भविष्य के प्रसंग का निर्माण करते हैं ’, और आंदोलनों से उभरने वाले विचार और माँगें ही ‘कला को संभानाओं’ से भर सकती हैं। साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष का अंतर्राष्ट्रीय सप्ताह और ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान साथ मिलकर जन-संघर्षों को विज़ूअल आवाज़ देने के लिए कलाकारों का आह्वान करता है। प्रस्तुतियाँ 16 जुलाई तक भेजी जा सकती हैं, और आप ‘पूँजीवाद’ पर हमारी पहली ऑनलाइन प्रदर्शनी यहाँ देख सकते हैं। हम आपसे आग्रह करते हैं की आप इस प्रदर्शनी को ख़ुद भी देखें और अन्य लोगों को भी दिखाएँ और आने वाली प्रदर्शनी में हिस्सा लेने का प्रयास करें।
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान में हम कोरोनावायरस और दुनिया के लोगों पर इसके प्रभाव पर अध्ययन कर रहे हैं। आप हमारी वेबसाइट पर जाकर इन अध्ययनों को पढ़ सकते हैं (जो आगे भी आपके लिए आते रहेंगे)। ज़रूरी प्रकाशनों की सूची निम्नलिखित है:
डोजियर सं. 28: कोरोना आपदा: वायरस और दुनिया
डोजियर सं. 29: स्वास्थ्य एक राजनीतिक विकल्प है
कोरोनाशॉक अध्ययन सं. 1: चीन और कोरोनाशॉक
कोरोनाशॉक अध्ययन सं. 2: कोरोना शॉक और वेनेजुएला के ख़िलाफ़ हाइब्रिड युद्ध
रेड अलर्ट नं. 7: नोवेल कोरोनवायरस और COVID-19 के बारे में आवश्यक तथ्य
कई दिनों के बाद, बादल छँट जाएँगे, सूरज चमकेगा, और मानवता नव-फ़ासीवाद की ख़तरनाक अक्षमता के पार उतरने में समर्थ होगी।
स्नेह-सहित,
विजय।