Skip to main content
newsletter

आओ विनाश की संस्कृति छोड़ मानवता की संस्कृति अपनाएं: पहला न्यूज़लेटर (2024)

Michael Armitage (Kenya), The Promised Land, 2019.

माइकल आर्मिटेज (केन्या), वादे की ज़मीन, 2019

प्यारे दोस्तो,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

साल 2023 के आख़िरी महीनों ने हमारी उम्मीदें तारतार कर हमें घोर निराशा में डाल दिया। इज़रायल की बढ़ती हिंसा में बीस हज़ार से भी ज़्यादा फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं। कई परिवारों का नामोनिशां तक मिट गया है। फ़िलिस्तीन से आ रही भयावह तस्वीरें और साक्ष्य हर मीडिया में छाए हुए हैं और दुनिया की आबादी के बड़े हिस्से में गहरा दर्द व आक्रोश पैदा कर रहे हैं। इतिहास के उतारचढ़ाव के संदर्भ में देखें तो, यह सामूहिक दुःख सामूहिक शक्ति में बदल रहा है। फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इज़रायल के स्थाई नक़बा (फ़िलिस्तीनियों को बेदख़ल करने की कार्रवाई) के विरोध में दुनिया भर में करोड़ों लोग दिनदिन, सप्ताहदरसप्ताह सड़कों पर उतर रहे हैं। दुनिया भर में नई पीढ़ी में फ़िलिस्तीन के मुक्ति संघर्ष के पक्ष में और नाटोजी7 गुट के पाखंड के ख़िलाफ़ उग्र विचार पनप रहा है। पश्चिम की मानवतावादीबयानबाज़ी की बचीखुची विश्वसनीयता 8 दिसंबर को बिलकुल ख़त्म हो गई, जब संयुक्त राष्ट्र में संयुक्त राज्य अमेरिका के उप राजदूत रॉबर्ट वुड ने अमेरिका की वीटो शक्ति का इस्तेमाल करते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में युद्धविराम के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ अपना एकमात्र वोट देने के लिए हाथ उठाया था (7 अक्टूबर के बाद से यह तीसरी बार था जब अमेरिका ने युद्धविराम के प्रस्ताव को अवरुद्ध करने के लिए अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल किया है)

इस बीच, फ़िलिस्तीन के दक्षिण में स्थित दुबई (संयुक्त अरब अमीरात) में, दुनिया के देश 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक जलवायु परिवर्तन पर 28वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP28) के लिए मिले। यहां आधिकारिक बैठकों पर अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा कंपनियों का प्रभाव रहा, जिन्होंने पूर्व औपनिवेशिक शक्तियों के साथ खड़े होकर गंभीर घोषणाएं तो कीं लेकिन अतिरिक्त कार्बन उत्सर्जन को कम करने की प्रतिबद्धता से इनकार कर दिया। दुबई में हुए किसी भी समझौते को कानून का दर्जा प्राप्त नहीं है; ये केवल मानक हैं जिन तक पहुंचने के लिए देशों को बाध्य नहीं किया गया है। संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के कार्यकारी सचिव साइमन स्टियल ने कहा, ‘हम जीवाश्म ईंधन युग से आगे नहीं बढ़े। उन्होंने फिर कहा कि COP28, ‘अंत की शुरुआत है

अट्ठाइस साल के औसत प्रदर्शन के बाद, यह पूछना उचित है कि क्या स्टियल जीवाश्म ईंधन युग के बजाय दुनिया के अंत की बात कर रहे थे? दुनिया के अंत की व्याख्या संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा जुलाई में की गई घोषणा, कि ग्लोबल वार्मिंग का युग समाप्त हो गया है, [अब] ग्लोबल बॉयलिंग का युग आ चुका है‘, से भी मेल खाती है। एक्सपो सिटी दुबई में, जहां COP28 आयोजित किया गया था, कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया जा सका। COP28 के समाप्त होते ही भवन को आननफ़ानन में खाली करा लिया गया क्योंकि उस रेगिस्तान में एक विंटर सिटी तैयार करनी थी, जहां नक़ली बर्फ़ में नहाए हुए सांटा और उनके बारहसिंगे क्रिसमस के ख़रीदारों को अपनी महत्वपूर्ण ईकोमिशन गतिविधियोंमें शामिल होने के लिए आमंत्रित करने वाले थे। दुबई से दूर, प्रदर्शनकारी अपने हाथों में तख्तियां लिए खड़े रहे जिन पर लिखा था, ‘समुद्र बढ़ रहा है और हम भी।

Emilio Vedova (Italy), Contemporary Crucifixion no. 4, 1953.

एमिलियो वेदोवा (इटली), आज का सलीब नं. 4, 1953

फ़िलिस्तीन और पूरी पृथ्वी के हक़ में हो रहे ये विरोध प्रदर्शन एकदम सड़ चुकी आधुनिक सभ्यता के दरवाज़े पर ज़ोरदार दस्तक हैं। सामाजिक असमानता और युद्ध अब इतना सामान्य हो गया है कि लगता ही नहीं कि सामूहिक यातना और मृत्यु के बग़ैर भी जीवन संभव है। केवल राजनीतिक नेता नहीं बल्कि शिक्षा से लेकर मनोरंजन के क्षेत्र में काम करने वाले सांस्कृतिक कार्यकर्ता भी सख़्त लहजे में बोल रहे हैं। स्वतंत्रता और न्याय जैसी अवधारणाओं पर अमूर्त ढंग से बात हो रही है और इनके नाम पर युद्ध करने वाले इसे अपनी मर्ज़ी से तोड़मरोड़कर पेश कर रहे हैं। राजनीति, मनोरंजन, शिक्षा और आधुनिक जीवन के अन्य क्षेत्रों में, इन अवधारणाओं को उनके ऐतिहासिक संदर्भ से काट कर उत्पादों के रूप में पेश किया जा रहा है, ठीक वैसे ही जैसे श्रमिकों द्वारा उत्पादित सामान को उनके संदर्भ से अलग कर महज उपभोग की वस्तुओं के रूप में पेश किया जाता है। स्वतंत्रता और न्याय अमूर्त नहीं हैं, बल्कि ये अवधारणाएं इतिहास में लाखों लोगों के साहसिक संघर्षों से पैदा हुए विचार और जीवनमूल्य हैं; ये लोग सामान्य मनुष्य ही थे, जिन्होंने भविष्य की पीढ़ियों की बेहतरी के लिए ख़ुद को बलिदान कर दिया। उन्होंने ये अवधारणाएं पाठ्यपुस्तकों और कानून की अदालतों के लिए नहीं विकसित कीं बल्कि हमारे लिए की कि हम संघर्षों के ज़रिए उनके अर्थ को विस्तार दें और उन्हें वास्तविकता में बदलें।

हम स्वतंत्रता और न्याय जैसी अवधारणाओं के अर्थ का विस्तार करने और उन्हें उनके प्रामाणिक इतिहास से जोड़ने के लिए संघर्षरत हैं। हम बख़ूबी समझते हैं कि मानवता निश्चित लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ते हुए ही अपना मुक़ाम हासिल कर सकती है; कार्ल मार्क्स ने इस यात्रा (प्रैक्सिस) को स्वतंत्र, जागरूक गतिविधिके रूप में परिभाषित किया है जिसके माध्यम से हम अपने जीवनयथार्थ में अपने अनुरूप बदलाव कर सकते हैं। युद्ध विराम के लिए या सामाजिक असमानता के ख़िलाफ़ या किसी और मत के पक्ष में खड़े होना केवल एक नीति में बदलाव लाने की कोशिश करना नहीं है बल्कि विनाश की संस्कृति को दृढ़ता के साथ अस्वीकार कर संभावित मानवता की संस्कृति के प्रति पक्षधरता व्यक्त करना है। किसी व्यक्ति द्वारा नैतिक कारणों से व्यक्तिगत रूप से की जाने वाली नेक गतिविधियाँ प्रैक्सिस नहीं हैं; क्योंकि स्वतंत्रता और न्याय जैसी अवधारणाओं के अनैतिहासिक उपयोग की ही तरह ये गतिविधियाँ भी अमूर्त होती हैं। प्रैक्सिस तभी एक नई संस्कृति को जन्म दे सकती है जब इसे नए रिश्ते बनाते हुए लगातार बढ़ते विश्वास के साथ सामूहिक रूप से किया जाए।

एंटोनियो जोस गुज़मैन (पनामा) और इवा जांकोविक (यूगोस्लाविया), ट्रांसअटलांटिक स्टारगेट, 2023

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान का उद्देश्य पतनशील सभ्यता का अभिलेखागार बनना नहीं है, बल्कि मानवता की उस महान धारा का हिस्सा बनना है जो अपनी प्रैक्सिस के साथ दुनिया में उम्मीद को फिर ज़िंदा करेगी। मार्च 2018 में शुरू हुआ हमारा संस्थान नियमित रूप से सत्तर से अधिक मासिक डोसियर व कई महत्त्वपूर्ण अध्ययन और नोटबुक जारी कर चुका है। पिछले महीने जारी हुआ हमारा 71वां डोसियर कल्चर एज़ अ वेपन ऑफ़ स्ट्रगल: द मेडु आर्ट एन्सेम्बल एंड सदर्न अफ़्रीकन लिबरेशनप्रैक्सिस में निहित सांस्कृतिक कर्म की आवश्यकता को उजागर करता है। ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की पूरी टीम की दक्षता उल्लेखनीय है। वे दिनरात मेहनत कर आपके सामने वे अहम अध्ययन सामग्री लाते हैं जो दुनिया में चल रहे आज के संवाद से नदारद हैं। इस नए वर्ष में हम आपके लिए निम्नलिखित विषयों पर बारह डोसियर लाने की योजना बना रहे हैं:

  1. दक्षिण गोलार्ध में नए बदलावों और वैश्विक व्यवस्था पर ग्लोबल साउथ इनसाइट्स संस्थान के साथ मिलकर एक डोसियर।
  2. कर्नाटक में ज्ञान विज्ञान आंदोलन।
  3. नेपाल और मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन पर बामपंथपत्रिका के साथ मिलकर एक डोसियर।
  4.  ब्राज़ील में भूमिहीन श्रमिक आंदोलन (एमएसटी) के चालीस वर्ष।
  5. उत्तरपूर्वी एशिया और नया शीत युद्ध विषय पर इंटरनेशनल स्ट्रैटेजी सेंटर तथा नो कोल्ड वॉर मंच के सहयोग से एक डोसियर।
  6. अपने संसाधनों को नियंत्रित करने के लिए कॉन्गोवासियों के संघर्ष पर सेंटर कल्चरल एंड्री ब्लोइन के सहयोग से एक डोसियर।
  7. बहुध्रुवीयता और लैटिन अमेरिकी विकास मॉडल।
  8. तेलंगाना आंदोलन की सांस्कृतिक राजनीति।
  9. लैटिन अमेरिका में दक्षिणपंथ क्यों आगे बढ़ रहा है?
  10. तंज़ानिया में भूमिहीन श्रमिकों के संघर्ष के विषय पर कृषि श्रमिकों के आंदोलन (MVIWATA) के साथ एक डोसियर।
  11. अफ़्रीका में अंतर्राष्ट्रीय निगमों का भ्रष्टाचार।
  12.  लैटिन अमेरिका में मज़दूर वर्ग की स्थिति।

आपकी प्रतिक्रिया, हमेशा की तरह आवश्यक है।

स्नेहसहित,

विजय