अफ़्रीका में लोग कहते हैं, ‘फ्रांस, बाहर निकलो!’: 19वां न्यूज़लेटर (2024)
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
2 अक्टूबर 1958 को गिनी ने फ्रांस से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। गिनी के राष्ट्रपति अहमद सेकोउ टूरे फ्रांस के राष्ट्रपति चार्ल्स डी गॉल से भिड़ गए, जो कि टूरे को स्वतंत्रता के अभियान से पीछे हटने के लिए मजबूर कर रहे थे। टूरे ने डी गॉल की धमकियों के बारे में कहा, ‘गिनी गुलामी की अमीरी की तुलना में आज़ादी की गरीबी को प्राथमिकता देता है।‘ 1960 में, फ्रांसीसी सरकार ने गिनी को अस्थिर करने और टूरे को सत्ता से हटाने के लिए ऑपरेशन पर्सिल नामक एक गुप्त ऑपरेशन शुरू किया। इस ऑपरेशन का नाम कपड़े धोने वाले डिटर्जेंट के नाम पर रखा गया था, जिसका उपयोग गंदगी साफ़ करने के लिए किया जाता था। आप इस बात से टूरे सरकार के प्रति फ्रांस के रवैये को समझ सकते हैं। गिनी के विपक्षी दलों के लिए फ्रांस द्वारा भेजे गए हथियारों को सेनेगल में रोक दिया गया, और सेनेगल के राष्ट्रपति मामादौ दीया ने फ्रांसीसी सरकार से शिकायत की। फ्रांस को अफ्रीकी स्वतंत्रता बर्दाश्त नहीं थी, लेकिन अफ्रीका के लोगों के लिए फ्रांस का वर्चस्व बर्दाश्त से बाहर था।
अफ्रीकी संप्रभुता के लिए वह उत्साह आज भी बरकरार है। सेनेगल से लेकर नाइजर तक तब भी ‘फ्रांस, बाहर निकलो‘ का नारा लगाया जाता था, और आज भी लगाया जाता है। इस संघर्ष के अंतर्गत हाल में हुए घटनाक्रमों को बेहतर ढंग से समझने के लिए इस न्यूज़लेटर के बाकी हिस्से में हम साहेल में संप्रभुता के संघर्ष पर नो कोल्ड वॉर और वेस्ट अफ्रीका पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन द्वारा दी गई जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं।
साहेल संप्रभुता चाहता है
फ्रांसीसी उपनिवेशवाद के अवशेषों के ख़िलाफ़ ‘फ्रांस, बाहर निकलो!‘ का नारा लंबे समय से पश्चिम अफ्रीका क्षेत्र में गूंज रहा है। सेनेगल में 2018 के जन–आंदोलनों से लेकर वहां के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बासिरौ दियोमाये फेय द्वारा देश को सीएफए फ्रैंक की नव–उपनिवेशवादी मौद्रिक प्रणाली से मुक्त करवाने के अभियान तक और माली, बुर्किना फासो व नाइजर में लोकप्रिय समर्थन के साथ हुए सैन्य तख़्तापलट, तथा 2021 से 2023 के बीच इन देशों से फ्रांसीसी सैन्य बलों की वापसी आदि दिखाते हैं कि हाल के वर्षों में, इस नारे ने संघर्ष का एक नया मुक़ाम छू लिया है।
मध्य साहेल क्षेत्र के देशों (माली, बुर्किना फासो और नाइजर) की सैन्य नेतृत्व वाली सरकारों ने पश्चिमी एकाधिकार से अपनी संप्रभुता छीनने के लिए, खनन संबंधी नियम–कायदों व अनुबंधों की समीक्षा तथा विदेशी सेनाओं को निष्कासित करने जैसे कदम उठाए हैं, और क्षेत्रीय सहयोग के नए मंच स्थापित किए है। 16 सितंबर 2023 को बुर्किना फासो, माली और नाइजर की सरकारों ने लिप्टाको–गौरमा चार्टर पर हस्ताक्षर किए, जो कि एक पारस्परिक रक्षा समझौता है जिससे साहेल राज्यों के गठबंधन की शुरुआत हुई। यह त्रिपक्षीय साझेदारी नाइजर में जुलाई 2023 में हुए लोकप्रिय तख़्तापलट के बाद पश्चिम अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय (ECOWAS) की ओर से देश में सैन्य हस्तक्षेप व आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकियों का जवाब है।
इस रक्षा सहयोग समझौते के कुछ महीने बाद, तीनों देश ECOWAS क्षेत्रीय ब्लॉक से अलग हो गए। कुछ राजनीतिक टिप्पणीकारों ने दावा किया है कि ये घटनाएं तथा क्षेत्र से फ्रांसीसी सैन्य बलों की बेदखली सामाजिक सुरक्षा, आर्थिक विकास, राजनीतिक स्थिरता और क्षेत्रीय एकीकरण के लिए ‘संकट पैदा‘ कर सकती हैं। पूरे साहेल में फैल रही इस लहर के पीछे क्या कारण है और इस क्षेत्र के लिए यह लहर क्या मायने रखती है?
फ्रांसीसी उपनिवेशवाद के अवशेष
साहेल में वर्षों से साम्राज्यवाद विरोधी भावना पनप रही है। नाइजर, जो कि इस क्षेत्र में प्रतिरोध की लहर का प्रतीक है, के मामले को देखें तो जुलाई 2023 के तख़्तापलट के दौरान, लोग फ्रांसीसी उपनिवेशवाद के हैंगओवर के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आए थे, जिसने संरचनात्मक भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया था और आबादी के बड़े हिस्से को मताधिकार से वंचित कर दिया था।
इस भ्रष्टाचार का अधिकांश हिस्सा नाइजर के खनन क्षेत्र में हुआ है, जो दुनिया के सबसे बड़े उच्च श्रेणी के यूरेनियम भंडारों में से एक है। उदाहरण के लिए, 2014 में, तख़्तापलट से पहले, तत्कालीन नाइजीरियाई राष्ट्रपति महामदौ इस्सौफौ ने खनन गतिविधियों पर टैक्स कम कर, उसके बदले में अप्रत्यक्ष भुगतान प्राप्त किया, जिससे सीधे तौर पर फ्रांसीसी एकाधिकार कंपनियों को लाभ हुआ। इसके अलावा, नाइजर में फ्रांसीसी सेना खनन कंपनियों की रक्षा और यूरोप में प्रवास करने की कोशिश कर रहे लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस की तरह काम कर रही थी।
सोसाइटी डेस माइन्स डे ल‘एयर (सोमैर), यूरेनियम उद्योग में नाइजर और फ्रांस के बीच कथित तौर पर एक ‘संयुक्त उद्यम‘, इस क्षेत्र व महाद्वीप में निरंतर फ्रांसीसी प्रभाव का एक और उदाहरण है। इस ‘संयुक्त उद्यम‘ में फ्रांस के परमाणु ऊर्जा आयोग व दो फ्रांसीसी कंपनियों की 85% हिस्सेदारी है, जबकि नाइजर की सरकार की मात्र 15% हिस्सेदारी है। नाइजर की लगभग आधी आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे रहती है और 90% आबादी बिजली के बिना रहती है, लेकिन साल 2013 में फ्रांस के प्रत्येक तीन लाइटबल्बों में से एक नाइजर से आए यूरेनियम से जलते थे। इसलिए आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि 2023 के तख़्तापलट के तुरंत बाद नाइजर के नागरिकों ने राजधानी नियामी में फ्रांस दूतावास और सैन्य अड्डे पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसके तुरंत बाद फ्रांस ने अपनी सेना वापस बुला ली।
संप्रभुता, सुरक्षा और आतंकवाद
16 मार्च 2024 को नाइजर की सरकार ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक दशक पुराने सैन्य समझौते को रद्द कर दिया। इससे ठीक दो दिन पहले एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने रूस व ईरान के साथ देश की साझेदारी पर चिंता व्यक्त करने के लिए स्थानीय अधिकारियों से मुलाक़ात की थी। एक सार्वजनिक बयान में नाइजर की सरकार ने ‘अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के घमंड तथा नाइजर की सरकार व लोगों से बदला लेने की उनकी धमकी की जोरदार निंदा की।‘ बयान में आगे कहा गया है कि ‘नाइजर संप्रभु नाइजीरियाई लोगों को अपने साझेदार व साझेदारी का रूप चुनने के अधिकार से वंचित करने के अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के इरादे पर खेद व्यक्त करता है, जबकि अमेरिका द्वारा हर प्रकार के सहयोग को निलंबित करने की एकतरफ़ा कार्रवाई के बीच ये साझेदारियाँ हमें वास्तव में आतंकवाद से लड़ने में मदद कर सकती हैं‘। सरकार ने अमेरिका के साथ समझौता रद्द करने के लिए निम्नलिखित कारण भी बताए: इस समझौते की क़ीमत नाइजर के करदाता चुका रहे हैं, घरेलू संचालन व अमेरिका के मिलिटरी बेस की गतिविधियों के बारे में संचार की कमी, अनधिकृत विमान चालन, और अमेरिका का तथाकथित लेकिन अप्रभावी आतंकवाद विरोधी कार्य।
अमेरिका ने अफ्रीकी महाद्वीप पर सबसे बड़ी विदेशी सैन्य उपस्थिति स्थापित की है, जिसकी शुरुआत 2002 में पैन–साहेल इनिशिएटिव से हुई थी और उसके बाद 2007 में यूएस अफ्रीका कमांड (AFRICOM) का निर्माण हुआ, जिसके साथ साहेल में अमेरिकी सैन्य अड्डों का एक बड़ा नेटवर्क स्थापित किया गया। (इनमें से नौ अड्डे अकेले नाइजर में हैं, दो माली में हैं और एक बुर्किना फासो में है)। 2007 में अमेरिकी विदेश विभाग के सलाहकार जे. पीटर फाम ने विदेश मामलों पर अमेरिकी प्रतिनिधि सभा समिति के सामने AFRICOM के रणनीतिक उद्देश्य को इस प्रकार परिभाषित किया था:
किसी भी तरह का जनसंपर्क कार्य साम्राज्यवाद–विरोधी धड़े की चिंता, कि AFRICOM मूल रूप से ट्रांस–नेशनल आतंकवाद और अफ्रीका के तेल, खनिज व लकड़ी तक चीन की पहुंच में दीवार खड़ी करने का एक प्रयास है, को पूरी तरह से शांत नहीं कर सकेगा… AFRICOM की प्रस्तावित संरचना, जिसमें बलों की तैनाती के बिना, चार या पांच अपेक्षाकृत छोटे अड्डे बनाना शामिल है, का मतलब है कि ये [अड्डे] लगभग अदृश्य रहेंगे, मेजबान देशों व समाजों में भी।
फ्रांस और अमेरिका के नेतृत्व में लीबिया के ख़िलाफ़ उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के युद्ध के बाद से साहेल क्षेत्र संघर्षों से जूझ रहा है, जिनमें कई टकराव जिहादी सशस्त्र गतिविधियों, समुद्री डकैती और तस्करी के उभरते रूपों से प्रेरित हैं। फ्रांस और अमेरिका ने इन संघर्षों का बहाना देकर पूरे क्षेत्र में अपने सैन्य हस्तक्षेप को बढ़ाया है। 2014 में, फ्रांस ने G5 साहेल (एक सैन्य व्यवस्था जिसमें बुर्किना फासो, चाड, माली, मॉरिटानिया और नाइजर शामिल थे) की स्थापना की तथा गाओ, (माली), एन‘जामेना (चाड), नियामी ( नाइजर), औगाडौगौ (बुर्किना फासो) में अपने सैन्य अड्डों का विस्तार किया या नए अड्डों का निर्माण किया। 2019 में, अमेरिका ने अगाडेज़ (नाइजर) के बाहर अपने एयर बेस 201 –जो अमेरिकी वायु सेना के इतिहास में सबसे बड़ा निर्माण प्रयास था– से साहेल व सहारा रेगिस्तान में ड्रोन हमले तथा हवाई निगरानी शुरू किए।
वैश्विक आतंकवाद सूचकांक के अनुसार 2023 में साहेल क्षेत्र आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित था। दुनिया भर में होने वाली आतंकवाद संबंधित मौतों में से लगभग आधी इस क्षेत्र में हुई हैं, और आतंकवादी घटनाओं में 26% घटनाएँ इस क्षेत्र में घटी हैं। बुर्किना फासो, माली और नाइजर आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित शीर्ष दस देशों में शुमार हैं। और इस तथ्य को अक्सर नई सैन्य नेतृत्व वाली सरकारों की विफलता की तरह पेश किया जाता है। जबकि, ये हालात 2021-2023 के तख़्तापलट से पहले से जारी हैं और वास्तव में अमेरिका व फ्रांस के सैन्य हस्तक्षेप के दुष्प्रभाव को इंगित करते हैं। 2011 (जब लीबिया के ख़िलाफ़ नाटो ने युद्ध किया) और 2021 (जब साहेल क्षेत्र में माली से तख़्तापलट की लहर शुरू हुई) के बीच, बुर्किना फासो, माली और नाइजर आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित देशों के सूचकांक में क्रमशः 114, 40 और 50 की स्थिति से 4, 7, और 8 पर आ गए हैं। यह स्पष्ट है कि अमेरिका और फ्रांस के ‘आतंकवाद पर युद्ध‘ ने क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ाने की बजाय उसके विपरीत काम किया है।
नए साझेदारों और रास्तों की तलाश
साहेल के लोगों का न केवल पश्चिम की सैन्य रणनीतियों से मोहभंग हो गया है, जैसा कि अन्य देशों के साथ बढ़ते सुरक्षा सहयोग समझौतों से देखा जा सकता है, बल्कि पश्चिमी आर्थिक नीतियों से भी मोहभंग हो गया है, जिनसे बहुत कम सामाजिक विकास हुआ है। क्षेत्र के प्रचुर ऊर्जा संसाधनों (नाइजर के उपरोक्त यूरेनियम भंडार सहित) के बावजूद, साहेल में ऊर्जा उत्पादन और ऊर्जा तक पहुंच का स्तर दुनिया के सबसे निचले स्तर पर है, जहां कम से कम 51% आबादी की बिजली तक पहुंच नहीं है।
हालाँकि साहेल राज्यों का गठबंधन एक रक्षा समझौते के रूप में शुरू हुआ, लेकिन राजनीतिक स्वायत्तता और आर्थिक विकास इसके मुख्य बिंदु हैं। उदाहरण के लिए, इसमें संयुक्त ऊर्जा परियोजनाओं को आगे बढ़ाना और क्षेत्रीय नागरिक परमाणु ऊर्जा पहल स्थापित करने की संभावना तलाशना आदि शामिल है। बुर्किना फासो नए बिजली संयंत्रों के निर्माण के लिए राज्य के स्वामित्व वाली एक रूसी कंपनी रोसाटॉम के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर चुका है, जबकि माली अपनी विकिरण संरक्षण एजेंसी की देखरेख में राष्ट्रीय परमाणु कार्यक्रम के माध्यम से परमाणु ऊर्जा का अनुप्रयोग बढ़ा रहा है।
अंततः, साहेल राज्यों का गठबंधन संप्रभुता और आत्मनिर्णय के अधिकार की मांगों को बनाए रखने के प्रयास का प्रतिनिधित्व करता है – इसी एजेंडे के समर्थन में नाइजर, बुर्किना फासो और माली के लोग सड़कों पर उतर आए हैं।
साहेल में घटनाएँ तेज़ गति से सामने आ रही हैं, लेकिन जैसा कि माली के उपन्यासकार एचा फोफाना ने 2006 में ला फोरमिलिएर (‘द एंटहिल‘) में लिखा था, आधुनिकीकरण पुराने तरीक़ों की कठोरता और ज्ञान से प्रभावित होता है। ‘हम हमेशा उदार रहे हैं‘, ला फोरमिलिएर में एक आदिवासी कथाकार एक युवा व्यक्ति से कहता है जिसके पास समाज को बदलने के बारे में कई विचार हैं। धीरज रखना आवश्यक है। बदलाव आ रहा है। लेकिन वो अपनी गति से आ रहा है।
स्नेह–सहित,
विजय।