एक शांतिमय या पुरसुकून दुनिया बनाना ही एकमात्र यथार्थवादी काम है: अट्ठाईसवाँ न्यूज़लेटर (2024)
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन
ज़िंदगी में कुछ लम्हे ऐसे आते हैं जब आप पेचीदगियों से परे हटकर चीज़ों के मूल की तरफ लौट आना चाहते हैं। पिछले हफ्ते मैं कॅरीबियाई या कैरेबियन सागर के बीच एक नाव पर सवार था, मैं इस्ला ग्रांडे से कोलंबिया की मुख्य भूमि की ओर जा रहा था कि अचानक बारिश होने लगी। हालांकि हमारी नाव ठीक-ठाक सी थी पर चूंकि उसकी कमान एवर डे ला रोज़ा मोरालेस के हाथों में थी इसलिए हमें कोई खास खतरा नहीं था; वो (करतागेना के तट के पास) सत्ताईस द्वीपों के समूह रोसारियो आइलैंड्स पर बसे एक एफ्रो-कोलंबियाई समुदाय की नेता हैं। मूसलाधार बारिश के बीच मेरे मन में कई एहसास आए, डर से लेकर ज़िंदादिली तक सब कुछ। यह बारिश बेरिल चक्रवात की वजह से हो रही थी, जो जमैका में आया अब तक का सबसे खतरनाक चौथे स्तर का तूफान था और बाद में मेक्सिको की तरफ बढ़ते हुए थोड़ा शिथिल पड़ गया।
हैती के कवि फ्रेंकेटिएन गाते हैं ‘सिरफिरे चक्रवातों की बोलियों’, ‘आपस में भिड़ती हवाओं की मूर्खता’ और ‘दहाड़ते समुद्रों के हिस्टेरिया’ के बारे में। कुदरत की ताकत हमारे सामने जैसे आती है उसे बयान करने के लिए यह बिल्कुल सटीक शब्द हैं, यह ताकत पूँजीवाद द्वारा किए नुकसानों की वजह से अब दुगुनी हो चली है। जलवायु पर अंतर-सरकारी पैनल की पाँचवी मूल्यांकन रिपोर्ट बताती है कि 1970 के दशक के बाद से उत्तरी अटलांटिक में पहले के मुकाबले ज़्यादा ताकतवर और ज़्यादा संख्या में चक्रवात आ रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्रीनहाउस गैस के लंबे समय से चले आ रहे उत्सर्जन की वजह से महासागरों का तापमान बढ़ गया है, जिससे वो ज़्यादा नमी और ऊर्जा सोखने लगे हैं और इससे शक्तिशाली हवा और ज़्यादा बारिश की स्थिति आ गई है।
पाँच सौ साल पहले इस्ला ग्रांडे पर समुद्री डाकू अपनी लूट का खज़ाना छिपाने आते थे और अफ्रीकी लोग दासता से बचने के लिए भी यहीं भागकर आए थे। इस द्वीप पर जुलाई के शुरुआती दिनों में हुई एक सभा में यहाँ रहने वाले लोगों ने एक बिजली संयंत्र की ज़रूरत पर चर्चा की। यह सभा लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष की ही एक कड़ी है, इसी संघर्ष के चलते इन लोगों को इस द्वीप पर बसे रहने का अधिकार मिला। हालांकि कोलंबियाई कुलीनतंत्र ने 1984 में इन्हें यहाँ से बेदखल कर देने की पूरी कोशिश की थी फिर भी इन्होंने संघर्ष किया और इस्ला ग्रांडे की सबसे बेहतरीन ज़मीन के अमीर मालिक को निकालने में सफल हुए। इसके बाद उस ज़मीन पर उन्होंने ओरिका नाम का एक शहर बसाया, यह शहर मींगा (सामुदायिक एकजुटता) के सिद्धांत से बसाया गया था। इनके सामुदायिक कार्रवाई बोर्ड (जुन्टा दे एक्सिओन कॉम्यूनल) ने अपनी ज़मीन को बचाने की लड़ाई का नेतृत्व किया था और इसे आज रोसारिओ आइलैंड की सामुदायिक काउन्सल (कोंसेहो कॉम्युनिटारियो दे ला इस्लास् डेल रोसारिओ) कहा जाता है। इस काउन्सल के ही एक भाग ने यह सभा बुलाई थी। यह सतत सामुदायिक एकजुटता (मींगा) की मिसाल है।
यह द्वीप मींगा की भावना से बना है और मैंग्रोव के पेड़ों से घिरा है, से जो बढ़ते पानी से रक्षा कर इस जगह को रहने लायक बनाए रखते हैं। सभा में इकट्ठा हुए निवासियों को पता है कि ईको-पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ अपने निजी इस्तेमाल के लिए भी उन्हें बिजली पैदा करने की क्षमता को बढ़ाने की ज़रूरत है। लेकिन इतने छोटे द्वीपों पर ये लोग बिजली कैसे पैदा करें?
इस बारिश वाले दिन कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो सबानालार्गा (अटलांटिको) शहर गए थे, पाँच सोलर पार्कों के एक कॉम्प्लेक्स, कोलंबिया सोलर फॉरेस्ट, के उद्घाटन के लिए। इस कॉम्प्लेक्स से 100 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है। इस पार्क से 4,00,000 कोलंबियाई जनता को फ़ायदा होगा और CO2 उत्सर्जन में 110,121 टन की कटौती होगी; यह बैरेंक्विला और कार्टाजेना के बीच 43 लाख बार कार से सफर करने के बराबर है। इस कार्यक्रम में पेट्रो ने कोलंबियाई कैरेबियन के मेयरों का आह्वान किया कि वे हर नगरपालिका के लिए दस-मेगावाट के सोलर फार्म बनायें, बिजली के दाम घटाएँ, अर्थव्यवस्था को कार्बन मुक्त बनायें और सतत विकास को बढ़ावा दें। इन द्वीपों के तट बढ़ते पानी से खत्म होते जा रहे हैं और इनके लिए इस समस्या का यह अब तक का शायद सबसे ठोस उपाय है।
सबानालार्गा में जब पेट्रो बोल रहे थे तो मुझे पिछले साल संयुक्त राष्ट्र में दिया उनका भाषण याद आ गया, जिसमें उन्होंने दुनिया के नेताओं से ‘जीवन के संकट’ की ओर गंभीर रुख़ अपनाने और ‘एक दूसरे को मारने में समय बर्बाद करने’ की बजाय अपनी समस्याओं को मिलकर सुलझाने का विनय किया था। उस भाषण में पेट्रो ने अब से छियालीस साल बाद 2070 की भावी परिस्थिति का चित्रण करते हुए कहा था कि, उस साल कोलंबिया के लहलहाते जंगल रेगिस्तान हो जायेंगे और ‘लोग उत्तर की तरफ पलायन करेंगे, लेकिन तब ये पलायन चकाचौंध कर देने वाली समृद्धि के लिए नहीं बल्कि एक सामान्य और बेहद अहम चीज़ – पानी– के लिए होगा। उन्होंने कहा ‘अरबों लोग’ पानी के बचे हुए स्रोतों की तलाश में ‘सेनाओं की मुखालिफ़त करते हुए धरती को बदल देंगे’।
इस तरह के डिस्टोपिया को हर हाल में रोका जाना चाहिए। पेट्रो ने कहा ऐसा करने के लिए 2015 में संधि के तहत स्थापित सत्रह सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के लिए न्यूनतम अनिवार्य फंड दिया जाना चाहिए। हालांकि इन एसडीजी को तैयार करने की प्रक्रिया में समस्याएँ थीं जैसे कि अंतरंग तरह से आपस में जुड़े मुद्दों (उदाहरण के लिए गरीबी और पानी) को अलग कर दिया गया, लेकिन फिर भी इन लक्ष्यों और दुनिया के नेताओं की इन पर सहमति की वजह से एक अवसर तो मिलता है कि इन्हें गंभीरता से लेने का आग्रह किया जाए। 8 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद ने सतत विकास के लिए उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच 2024 की शुरुआत की जो दस दिन तक चला। विकासशील देशों में तमाम एसडीजी के लिए जितनी राशि का वायदा किया गया था और वास्तव में जितनी राशि मुहैया कराई गई उसमें अब 4 ट्रिलियन डॉलर प्रतिवर्ष का अंतर है (2019 में यह 2.5 ट्रिलियन डॉलर था)। बिना पर्याप्त धनराशि के लगता नहीं कि यह फोरम कोई अर्थवान काम कर पाएगा।
फोरम से पहले, यूएन ने सतत विकास लक्ष्य रिपोर्ट 2024 जारी की जिसमें दिखाया गया कि सत्रह में से आधे लक्ष्यों को पाने के लिए ‘न्यूनतम या कम ही’ काम हो पाया है, जबकि एक तिहाई या तो रुके हुए हैं या काम पहले से भी पीछे हो गया है। पहला सतत विकास लक्ष्य है गरीबी का खात्मा करना, जिसके लिए रिपोर्ट में दर्ज किया गया है कि ‘2020 में वैश्विक अत्यंत गरीबी दर दशकों बाद पहली बार बढ़ गई’, और यह भी कि 2030 तक 59 करोड़ लोग अत्यंत गरीबी की चपेट में होंगे और 33% से भी कम देश अपने देश में गरीबी को आधा कर पाएंगे। ऐसे ही दूसरा लक्ष्य है भुखमरी को खत्म करना, लेकिन 2022 में दस में से एक इंसान भुखमरी का शिकार था, 240 करोड़ लोग कुछ हद तक या बेहद खाद्य असुरक्षा झेल रहे थे और पाँच साल की उम्र से कम 14.8 करोड़ बच्चे स्टंटिंग का शिकार थे। गरीबी और भुखमरी को खत्म करने के इन दो लक्ष्यों को लेकर शायद दुनिया सबसे ज़्यादा एकमत है। फिर भी हम किसी ऐसी स्थिति के करीब भी नहीं जहाँ कहा जा सके कि हमने इनमें कुछ कामयाबी पा ली है। गरीबी और भुखमरी को खत्म करने से पाँचवे नंबर के एसडीजी यानी जेन्डर असमानता को खत्म करने में भी मदद मिलेगी क्योंकि इनसे अमूमन महिलाओं पर पड़ने वाले देखभाल के काम का अतिरिक्त भार कम हो सकेगा। अधिकतर महिलाओं पर ही सरकारी खर्च कम करने के लिए लागू की जाने वाली मितव्ययिता नीतियों की सबसे ज़्यादा मार पड़ती है।
जैसा कि राष्ट्रपति पेट्रो ने कहा कि फिलहाल एक ‘जीवन का संकट’ मौजूद है। हम मौत को ज़िंदगी से ज़्यादा तवज्जो देते नज़र आ रहे हैं। हर साल हम वैश्विक सैन्य क्षेत्र पर ज़्यादा से ज़्यादा खर्च करते चले जा रहे हैं। 2022 तक यह आँकड़ा 2.8 ट्रिलियन डॉलर पहुँच चुका था – ये रकम सभी सत्रह एसडीजी के लिए एक साल के लिए जितनी राशि चाहिए लगभग उसके बराबर है। बड़ी अजीब बात है कि दुनिया में युद्ध के हिमायती दावा करते हैं कि वे यथार्थवादी है जबकि दुनिया में अमन चाहने वाले लोग आदर्शवादी कहे जाते हैं। जबकि सच तो यह है कि जो लोग दुनिया में युद्ध चाहते हैं वो संहारक हैं और जो दुनिया में शांति और अमन चाहते हैं वो ही वाहिद यथार्थवादी हैं। यथार्थ युद्ध नहीं शांति चाहता है, उसकी सबसे बड़ी इच्छा है हमारे बेशकीमती संसाधनों का इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन, गरीबी, भुखमरी और अशिक्षा जैसी सबकी समस्याओं को खत्म करने के लिए किया जाए।
सितंबर 2023 में, गज़ा पर हमले के एक महीने पहले, पेट्रो ने माँग की थी कि यूएन दो शांति सम्मेलन करवाए, एक यूक्रेन के लिए और दूसरा फिलिस्तीन के लिए। पेट्रो ने कहा अगर इन दो संकट की जगहों पर शांति हो सके तो ‘इनसे हम दुनिया में बाकी हर जगह पर भी शांति बहाल करने की सीख ले सकेंगे’। यह एक बहुत लाज़मी सुझाव था जिसे तब भी नजरंदाज़ किया गया और आज भी किया जा रहा है। खैर, पेट्रो ने हार नहीं मानी है और उन्होंने जुलाई की शुरुआत में लैटिन अमेरिका में फिलिस्तीन के पक्ष में एक बहुत बड़ा संगीत समारोह आयोजित किया।
हमारे इंतिख़ाब या चुनने की प्रक्रिया में एक पागलपन होता है। दुनिया के सबसे बड़े पाँच सैन्य हथियारों के कारोबारियों (जो सभी यूनाइटेड स्टेट्स में रहते हैं) की आमदनी अकेले साल 2022 में लगभग 276 बिलियन डॉलर थी, यह आँकड़ा अपने आप में ही इंसानियत के लिए बहुत बड़ी गाली है। इस्राइल ने गज़ा पर लगभग 13,050 एमके-84 ‘बहरे बॉम्ब’ फेंके हैं जिनकी विस्फोटक क्षमता 900 किलोग्राम प्रति बॉम्ब है। ऐसे एक बॉम्ब की कीमत होती है 16,000 डॉलर, यानी अब तक जितने बॉम्ब गिराए जा चुके हैं उनकी कुल लागत 20 करोड़ डॉलर से भी ज़्यादा है। अजीब बात है कि जो सरकारें इस्राइल को ये बॉम्ब दे रही हैं और इसे राजनीतिक संरक्षण भी दे रही हैं (जिसमें यूएस भी शामिल है), वही सरकारें यूएन को फंड भी दे रही हैं ताकि गज़ा में बमबारी रुकने के बीच उन सभी बहरे बॉम्ब को तबाह किया जा सके जो फटे नहीं। दूसरी तरफ अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र (जिसमें गज़ा भी शामिल है) में राहत और विकास के लिए दिए जाने वाली सालाना राशि कभी लाखों का आँकड़ा पार नहीं कर पाई। हथियारों पर खर्च ज़्यादा होता है और ज़िंदगी पर कम – हमारी इंसानियत की यह बदसूरत शक्ल बदली जानी चाहिए।
युवा कलाकार मोहम्मद सुलैमान अल्जेरिया में पश्चिमी सहारा से विस्थापित लोगों के समारा शरणार्थी कैम्प में बड़े हुए। अल्जेरियाज़ यूनिवर्सिटी ऑफ बताना से पढ़ने के बाद सुलैमान ने कैम्प में वापसी की ताकि सहरावी लोगों के मौखिक इतिहास और समसामयिक अरबी लेखकों की कविताओं का इस्तेमाल कर कैलीग्राफी की परंपराओं पर आधारित कला रच सके। 2016 में सुलैमान ने मोटिफ़ आर्ट स्टूडियो की स्थापना की, जो रीसाइकल समान से बना है और पारंपरिक रेगिस्तानी घरों की तरह लगता है। 2017 में खुले अपने इस स्टूडियो में सुलैमान ने रेड लिबर्टी (लाल आज़ादी) पेंटिंग टाँगी हुई है जिसमें मिस्र के कवि अहमद शौकी (1868–1932) की लिखी एक लाइन है: लाल आज़ादी का एक दरवाज़ा है, जिसे हर खून से लथपथ हाथ खटखटाता है’। यह लाइन ‘द प्लाइट ऑफ डमस्कस’(दमिश्क की दुर्दशा) कविता से ली गई है, जिसमें अरब विद्रोह से बदला लेने के लिए 1916 में दमिश्क में फ्रांस द्वारा की गई तबाही को दर्शाया गया है। इस कविता में न सिर्फ युद्ध की बदसूरती दिखाई गई है बल्कि एक भविष्य का वायदा भी किया गया है:
मातृभूमियों का एक हाथ है जिसने पहले ही एक
एहसान कर दिया है
और हम सब आज़ाद लोग इस हाथ के कर्ज़दार हैं।
यह खून से लथपथ हाथ है हमसे पहले आए उन लोगों का, जो एक बेहतर दुनिया बनाने की कोशिश कर रहे थे, जिनमें से शायद कई इस कोशिश में खत्म हो गए। हम इनके और आने वाली नस्लों के कर्ज़दार हैं। हमें इस ‘जीवन के संकट’ को ‘कयामत और विलुप्त हो जाने के दौर से दूर ज़िंदा रहने’ के एक मौके में बदलना ही होगा। जैसा कि पेट्रो ने पिछले साल कहा था कि; ‘आज के तूफान और अंधेरे के बीच से एक खूबसूरत क्षितिज [झाँक रहा], एक क्षितिज जिसका स्वाद उम्मीद जैसा है’।
सस्नेह,
विजय