फ़िलिस्तीनियों से नहीं छीना जा सकता सपने देखने का अधिकार: पांचवां न्यूज़लेटर (2024)
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
26 जनवरी 2024 को, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के न्यायाधीशों ने कहा कि यह ‘स्वीकार किया जा सकता है‘ कि इज़रायल गाज़ा में फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार कर रहा है। आईसीजे ने इज़रायल को नरसंहार अपराध रोकथाम एवं सज़ा पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1948) का उल्लंघन करने वाले ‘सभी कृत्यों को रोकने के लिए अपनी शक्ति के अनुसार सभी उपाय करने‘ का आदेश दिया। हालांकि आईसीजे ने स्पष्ट रूप से युद्धविराम का आदेश नहीं दिया है (जैसा कि उसने 2022 में किया था, जब रूस को यूक्रेन में ‘सैन्य अभियान निलंबित करने‘ का आदेश दिया गया था), लेकिन इस आदेश को फ़ौरी तौर पर पढ़ने से भी यह पता लग जाता है कि इज़रायल को यह युद्ध समाप्त कर देना चाहिए। इन ‘अंतरिम उपायों‘ के तहत, आईसीजे ने इज़रायल से एक महीने के भीतर अदालत को जवाब देने और आदेश पर उसके द्वारा उठाए गए क़दम के संबंध में रिपोर्ट देने को कहा है।
इज़रायल आईसीजे की जांच को ख़ारिज कर चुका है, लेकिन उसके ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दबाव बढ़ता जा रहा है। अल्जीरिया ने आईसीजे के आदेश लागू करने हेतु संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से कार्रवाई करने की माँग की है। दिसंबर 2022 में लागू हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्ताव के अनुसार, इंडोनेशिया और स्लोवेनिया ने अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों पर इज़रायल के नियंत्रण और नीतियों पर राय लेने के लिए आईसीजे में अलग कार्यवाही शुरू की है, जिस पर सुनवाई 19 फरवरी से आरंभ होगी। इसके अलावा, चिली और मैक्सिको ने गाज़ा में हो रहे अपराधों की जांच के लिए अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) से गुहार लगाई है।
आईसीजे के आदेश पर इज़रायल की प्रतिक्रिया उसके स्वभाव के अनुरूप नकारात्मक रही। इज़रायल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन ग्विर ने कहा कि आईसीजे ‘यहूदी–विरोधी अदालत है‘ और यह ‘न्याय नहीं, बल्कि यहूदी लोगों का उत्पीड़न करना चाहती है‘। और तो और, बेन ग्विर ने कहा कि आईसीजे ‘यहूदियों के नरसंहार (होलोकॉस्ट) के दौरान ख़ामोश था‘। यूरोप के यहूदियों, रोमानियों, समलैंगिकों और कम्युनिस्टों के ख़िलाफ़ नाज़ी जर्मन और उसके सहयोगियों द्वारा किया गया नरसंहार 1941 के अंत से मई 1945 के बीच हुआ था (जब सोवियत लाल सेना ने रेवेन्सब्रुक, साक्सेनहाउज़ेन और स्टुट्थोफ के क़ैदियों को मुक्त कराया था)। आईसीजे की स्थापना जून 1945 में हुई थी, यानी नरसंहार ख़त्म होने के एक महीने बाद, और इसने अप्रैल 1946 में काम करना शुरू किया था। जब न्यायालय अस्तित्व में ही नहीं था तब उसे ‘ख़ामोश‘ बताकर अवैध ठहराने की कोशिश करना, और फिर इस झूठ का इस्तेमाल कर आईसीजे को ‘यहूदी–विरोधी अदालत‘ बताने आदि से पता चलता है कि इज़रायल के पास आईसीजे के आदेश का कोई तार्किक जवाब नहीं है।
गाज़ा में फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ बमबारी जारी है। मेरे मित्र न‘ईम जीना, जो जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ़्रीका के एफ्रो–मिडिल ईस्ट केंद्र के निदेशक हैं, गाज़ा के विभिन्न सरकारी मंत्रालयों से उपलब्ध आँकड़ों व मीडिया रिपोर्टों के आधार पर दैनिक सूचना कार्ड तैयार कर रहे हैं। 26 जनवरी को, जब आईसीजे ने अपना आदेश सुनाया, युद्ध का 112वां दिन था। उस दिन का सूचना कार्ड परेशान करने वाला है। 7 अक्टूबर 2023 से अब तक 26,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं (जिनमें से लगभग 11,000 बच्चे हैं), लगभग 8,000 लापता हैं, करीब 69,000 फ़िलिस्तीनी घायल हुए हैं, और लगभग सभी 23 लाख फ़िलिस्तीनी विस्थापित हो गए हैं। इस दौरान, इज़रायल 99 स्कूल कॉलेज नष्ट कर चुका है, जबकि 394 स्कूल कॉलेज क्षतिग्रस्त हुए हैं; इसके अलावा उसने 30 अस्पतालों को नष्ट किया है व 337 चिकित्सा–कर्मियों को मार डाला है। इज़रायली बमबारी के इस भयावह असर के ही कारण यह मामला आईसीजे तक पहुंचा है और न्यायाधीशों ने ‘अंतरिम उपाय‘ का आदेश दिया है (भारत के न्यायाधीश दलवीर भंडारी ने तो सीधे कहा कि यह लड़ाई ‘तत्काल प्रभाव से बंद हो जानी चाहिए‘)।
मारे गए फ़िलिस्तीनियों में कई चित्रकार, कवि, लेखक और मूर्तिकार भी शामिल थे। 1948 के नक़बा से अब तक पिछले 76 सालों में फ़िलिस्तीनी जीवन की एक उल्लेखनीय विशेषता उनका समृद्ध सांस्कृतिक उत्पादन रही है। जेनिन या गाज़ा शहर की किसी भी सड़क पर टहलने चले जाएं तो आपको स्टूडियो और गैलरियों की मौजूदगी से अंदाज़ा लग जाएगा कि फ़िलिस्तीनी लोग कल्पना के अधिकार पर कितना ज़ोर देते हैं। 1974 के अंत में, दक्षिण अफ़्रीका के क्रांतिकारी कलाकार बैरी विंसेंट फ़ीनबर्ग ने अफ़्रो–एशियाई पत्रिका ‘लोटस’ में ‘दक्षिण अफ़्रीका में कविता और राष्ट्रीय मुक्ति‘ नामक एक लेख लिखा था। लेख लंदन में फ़ीनबर्ग और एक ‘युवा फ़िलिस्तीनी कवि‘ के बीच हुई बातचीत से शुरू होता है। फ़ीनबर्ग जानना चाहते थे कि कैसे ‘लोटस’ पत्रिका में ‘बड़ी संख्या में फ़िलिस्तीनी कवियों की कविताएं छपती हैं‘। युवा फ़िलिस्तीनी कवि पहले फ़ीनबर्ग के अवलोकन से चकित हुए और फिर कहा कि, ‘सपने देखने का अधिकार वो एक चीज़ है जिससे मेरे लोगों को कभी वंचित नहीं किया जा सकता‘।
मलक मट्टर, दिसंबर 1999 में जन्मी एक युवा फ़िलिस्तीनी कलाकार, ने सपने देखना बंद नहीं किया है। जब इज़रायल ने गाज़ा में फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज (2014) चलाया था तब मलक सिर्फ़ चोदह साल की थी। उस बमबारी में, इज़रायल ने केवल एक महीने में दो हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी नागरिकों को मार डाला था। अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र पर एक पीढ़ी से जारी बमबारी के बाद ये भयावह आँकड़े सामने आए थे। मलक की मां ने अधिग्रहण के प्रभावों से उबरने के लिए मलक से चित्रकारी करने का आग्रह किया था। मलक के माता–पिता दोनों शरणार्थी हैं: उनके पिता, जो फ़िलिस्तीन के विदेश मंत्रालय में काम करते थे, अल–जोरा (अब, अश्कलोन) से हैं और माँ अल–बतानी अल–शर्की से हैं, जो कि गाज़ा पट्टी के किनारे लगते फ़िलिस्तीनी गांवों में से एक है। 25 नवंबर 1948 को, नवगठित इज़रायली सरकार ने आदेश 40 पारित किया, जिसके तहत इज़रायली सैनिकों को अल–बतानी अल–शर्की जैसे गांवों से फ़िलिस्तीनियों को बाहर निकालने की छूट थी (इजरायली कमांडरों ने लिखा था कि ‘तुम्हारा काम है इन गांवों से अरब शरणार्थियों को बाहर निकालना और गांवों को नष्ट कर उनकी वापसी को रोकना… …गांवों को जला दो और पत्थर के घरों को ध्वस्त कर दो‘)।
मलक के माता–पिता ने इन भयावह यादों के बावजूद अपने बच्चों को – अधिग्रहण और युद्ध की क्रूरता के बीच – सपने देखना और उम्मीद रखना सिखाया। मलक ने पेंट ब्रश के ज़रिए चमकीले रंगों और फ़िलिस्तीनी प्रतीकों की एक सुंदर दुनिया की कल्पना करना शुरू कर दिया। इन प्रतीकों में सुमुद (दृढ़ता) का प्रतीक, जैतून का पेड़ भी शामिल है। किशोरावस्था से मलक बच्चों और सफ़ेद कबूतरों के साथ युवा लड़कियों और महिलाओं के चित्र बना रही है। लेकिन इनके चित्रों में, जैसा कि मलक ने लेखक इंदलीब फ़राज़ी सेबर को बताया, महिलाओं के सिर एक तरफ़ झुके होते हैं। मलक ने 2022 में सेबर से कहा था कि, ‘यदि आप सीधे खड़े होते हैं, तो यह आपकी स्थिरता को दर्शाता है। लेकिन एक तरफ़ झुका हुआ सिर आपके टूट जाने, या आपकी कमजोरी का परिणाम हो सकता है। हम इंसान हैं, युद्धों से गुजर रहे हैं, क्रूर दमन से गुजर रहे हैं… कभी–कभी सहनशक्ति ख़त्म हो जाती है‘।
मलक और मैं मौजूदा हिंसा के दौरान लगातार संपर्क में रहे हैं, उसे डर लगता है, लेकिन उसकी हिम्मत उल्लेखनीय है। जनवरी में मलक ने लिखा था, ‘मैं एक विशाल पेंटिंग पर काम कर रही हूं, जिसमें नरसंहार के कई पहलुओं को दर्शाया जाएगा‘। मलक पांच मीटर के कैनवास पर काम कर रही थी, जो बनते–बनते पिकासो के प्रसिद्ध ग्वेर्निका (1937) जैसा दिखने लगा था, जिसे पिकासो ने बास्क क्षेत्र के एक शहर में फासीवादी स्पेन द्वारा किए गए नरसंहार की याद में बनाया था। 2022 में, यूएनआरडब्ल्यूए द्वारा प्रकाशित एक लेख में मलक को ‘फ़िलिस्तीन की पिकासो‘ कहा गया था, और इस पर मलक ने कहा था कि, ‘मैं पिकासो से इतना प्रभावित थी कि अपनी कला यात्रा की शुरुआत में मैंने उनकी तरह पेंटिंग करने की कोशिश की‘। मलक की यह नई पेंटिंग फ़िलिस्तीनी लोगों के दुख और दृढ़ता को दर्शाती है। यह पेंटिंग इज़रायल पर नरसंहार के आरोप को उजागर करती है और फ़िलिस्तीनियों को सपने देखने के लिए प्रेरित। यदि आप इसे क़रीब से देखेंगे, तो आपको बमबारी के पीड़ित दिखेंगे – चिकित्साकर्मी, पत्रकार और कवि; मस्जिदें और चर्च; दबे हुए शव, नंगे कैदी, और छोटे बच्चों की लाशें; बमों से ध्वस्त कारें और पैदल चलते शरणार्थी। आकाश में एक पतंग है, जो रेफ़ात अलारीर की कविता ‘इफ आई मस्ट डाई‘ के एक प्रतीक को दर्शाती है (अलारीर ने लिखा था ‘[बच्चा] देखेगा पतंग ऊपर उड़ती, मेरी पतंग जो तुमने बनाई थी, और सोचेगा कि एक फ़रिश्ता उसे प्यार भेज रहा है‘)।
मलक अपने चित्र अरबी ईसाई आइकनोग्राफी के इतिहास से प्रेरित फ़िलिस्तीनी परंपराओं के अनुसार बनाती है। अरबी ईसाई आइकनोग्राफी की परंपरा सत्रहवीं शताब्दी में अलेप्पो के यूसुफ अल–हलाबी द्वारा विकसित की गई थी। कला समीक्षक कमल बोलाटा ने इस्तिहदार अल–माकन पत्रिका में लिखा था कि, ‘अलेप्पो शैली‘ इस्लामी लघुचित्रों व कढ़ाई से फूलों व जीवों की चमक को शामिल करते हुए ‘यरुशलम शैली‘ में विकसित हुई। जब मैंने पहली बार मलक का काम देखा तो मुझे लगा कि वह फ़िलिस्तीन के राजनीतिक और सांस्कृतिक नायकों को चित्रित करने वाली, अपने समय के सबसे महत्त्वपूर्ण चित्रकारों में से एक, ज़ुल्फ़ा अल–सा‘दी (1905-1988) को फिर से ज़िंदा कर रही हैं। 1948 के नक़बा के दौरान अल–सा‘दी को यरूशलम छोड़ना पड़ा था और फिर उन्होंने पेंटिंग करना बंद कर दिया; उनके वही चित्र बचे हैं जो वो घोड़े पर अपने साथ ले गई थीं। सा‘दी ने अपना शेष जीवन दमिश्क में फ़िलिस्तीनी बच्चों को यूएनआरडब्ल्यूए स्कूल में कला सिखाते हुए बिताया। ऐसे ही एक यूएनआरडब्ल्यूए स्कूल में मलक ने पेंटिंग करना सीखा था। ऐसा लगता है जैसे वह अल–सा‘दी के पेंट और ब्रश के साथ चित्र बनाना सीख रही थीं।
आश्चर्य नहीं है कि इज़रायल ने यूएनआरडब्ल्यूए पर निशाना साधा है, जिसे 1949 में संयुक्त राष्ट्र महासभा संकल्प 302 द्वारा ‘फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए प्रत्यक्ष राहत और रोज़गार कार्यक्रम चलाने‘ के लिए स्थापित किया गया था। वह उत्तरी गोलार्ध के प्रमुख देशों को एजेंसी के लिए वित्त देने से हतोत्साहित करने में सफल रहा है। हर साल, मलक जैसे पांच लाख फ़िलिस्तीनी बच्चे यूएनआरडब्ल्यूए स्कूलों में पढ़ते हैं। फ़िलिस्तीन आर्थिक नीति अनुसंधान संस्थान (एमएएस) के महानिदेशक राजा खालिदी इस वित्त निलंबन के बारे में कहते हैं कि: ‘यूएनआरडब्ल्यूए के वित्त में लंबे समय से जारी अनिश्चितता को देखते हुए… और फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों और गाज़ा में लगभग 18 लाख विस्थापित लोगों को महत्त्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करने में इसकी आवश्यक भूमिका के आलोक में, ऐसे समय पर वित्त में कटौती करने से फ़िलिस्तीनियों के जीवन पर ख़तरा बढ़ जाएगा, जबकि वो पहले ही नरसंहार की कगार पर हैं‘।
मैं आपसे मलक की पेंटिंग अलग–अलग दीवारों और सार्वजनिक स्थानों पर लगा कर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक ले जाने का अनुरोध करता हूं। इसे उन लोगों को दिखाना बहुत ज़रूरी है जो फ़िलिस्तीनी लोगों के नरसंहार को देखने से इनकार करते हैं।
स्नेह–सहित,
विजय।