इस अनिश्चित दौर में लैटिन अमेरिकी सरकारों की कमज़ोरी: चौतीसवाँ न्यूज़लेटेर (2024)
वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति चुनाव में मदुरो की जीत को स्वीकार न कर पाने पर यूनाइटेड स्टेट्स ने ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ अमेरिकन स्टेट्स में 16 अगस्त को एक प्रस्ताव पारित करवाया जिसमें नैशनल एलेक्टोराल काउन्सल से चुनावी रिकार्ड जारी करने की माँग की गई है। दरअसल OAS ने वेनेज़ुएला से अपने कानून का उल्लंघन करने को कहा है। कई देश जहाँ तथाकथित सेंटर-लेफ्ट या वामपंथी सरकारें हैं – जैसे कि ब्राज़ील, कोलंबिया और चिली – उन प्रस्तावों पर यूएस के साथ खड़े हो गए जो वेनेज़ुएला की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमत्तर और अवैध बताते हैं। ‘दूसरी गुलाबी लहर’ की सरकारों के सामने जो विरोधाभास हैं वे आज लैटिन अमेरिका में वामपंथ की कमज़ोरी दिखाते हैं, जिसकी पड़ताल हमने अपने नवीनतम डोसियर में विस्तार से की है।
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन
16 अगस्त 2024 को ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ अमेरिकन स्टेट्स (OAS) ने वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति चुनावों को लेकर एक प्रस्ताव पर वोट किया, यह संगठन 1948 में शीत युद्ध के दौर में यूनाइटेड स्टेट्स के उकसाने पर बना था। यूएस द्वारा प्रस्तावित इस प्रस्ताव का मुख्य बिंदु था वेनेज़ुएला में चुनाव करवाने वाली नैशनल एलेक्टोराल काउन्सल (CNE) से चुनावों का सारा ब्यौरा जारी करने की माँग करना (इसमें actas यानी स्थानीय वोटिंग स्टेशन के वोटिंग रिकॉर्ड भी शामिल हैं)। यह प्रस्ताव चाहता है कि CNE वेनेज़ुएला के चुनावी प्रक्रिया के जैविक कानून (Ley Orgánica de Procesos Electorales – LOPE) के खिलाफ जाकर काम करे: चूंकि यह कानून इस ब्यौरे को सार्वजनिक करने की बात नहीं करता इसलिए ऐसा करना कानून के खिलाफ जाना होगा। यह कानून कहता है कि CNE को चुनावों के 48 घंटों में नतीजे घोषित करने होंगे (अनुच्छेद 146) और उन्हें 30 दिन के अंदर जारी करना होगा (अनुच्छेद 155) और पोलिंग स्टेशनों (जैसे कि actas) का डाटा तालिका के रूप में जारी होना चाहिए (अनुच्छेद 150)।
कितनी बड़ी विडंबना है कि इस प्रस्ताव पर वोट OAS के वाशिंगटन, डीसी स्थित मुख्यालय के सिमोन बोलिवर कक्ष में हुआ। सिमोन बोलिवर (1783-1830) ने वेनेज़ुएला और आस-पास के क्षेत्रों को स्पेन साम्राज्य से आज़ाद करवाया था और वे चाहते थे कि इस क्षेत्र की संप्रभुता को मज़बूत करने के लिए एक समन्वय की प्रक्रिया शुरू हो। इसीलिए बोलीवेरियन रिपब्लिक ऑफ वेनेज़ुएला ने अपने नाम में उनकी विरासत को सम्मानित किया है। 1998 में जब ह्यूगो चावेज़ ने राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता तो उन्होंने राष्ट्र के राजनीतिक जीवन के केंद्र में बोलिवर को स्थापित किया और इस विरासत को बोलिवेरियन अलायंस फॉर द पीपल्स ऑफ अवर अमेरिका (ALBA) जैसे कार्यक्रमों के ज़रिए आगे बढ़ाते हुए देश और इस क्षेत्र में संप्रभुता स्थापित करने की कोशिश की। 1829 में बोलिवर ने लिखा था, ‘लगता है यूनाइटेड स्टेट्स की किस्मत ही है कि वह आज़ादी के नाम पर [लैटिन] अमेरिका में तबाही ही लाएगा’। हमारे समय में यह तबाही यूएस द्वारा सैन्य तख्तापलट या प्रतिबंधों की मदद से लैटिन अमेरिका के देशों का दम घोंटने की कोशिश के रूप में दिखाई देती है। हाल के वर्षों में बोलीविया, क्यूबा, निकारागुआ और वेनेज़ुएला इस ‘तबाही’ के केंद्र में रहे हैं। OAS का प्रस्ताव इसी ‘दम घोंटने’ की एक कड़ी है।
बोलीविया, होण्डुरस, मेक्सिको और सेंट विंसेंट एंड ग्रेनाडाइन्स वोट करने नहीं गए (क्यूबा भी नहीं क्योंकि इसे 1962 में OAS से निकाल दिया गया था, जिसके बाद कास्त्रो ने इस संगठन को ‘यूनाइटेड स्टेट्स के उपनिवेशों का मंत्रालय’ करार दिया, और निकारागुआ भी नहीं जिसने 2023 में OAS छोड़ दिया था)। मेक्सिको के राष्ट्रपति एंद्रेस मैनुएल लोपेज़ ओब्रादोर (जिन्हें AMLO भी कहा जाता है) ने बताया कि उनके देश ने वोट न करने का फैसला क्यों लिया और क्यों वह यूएस द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव से सहमत नहीं है, इसके लिए उन्होंने मेक्सिको के संविधान के अनुच्छेद 89 की धारा X को उद्धृत किया जिसमें कहा गया है कि मेक्सिको के राष्ट्रपति को ‘अहस्तक्षेप; विवादों के शांतिपूर्ण निपटारे; [और] अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में शक्ति के प्रयोग या धमकी के निषेध’ की नीति का पालन करना होगा। इसलिए AMLO ने कहा कि मेक्सिको ‘देश के उचित संस्थान’ द्वारा विवाद को सुलझाने का इंतज़ार करेगा। वेनेज़ुएला के मामले में सुप्रीम ट्राइब्यूनल ऑफ जस्टिस इस संदर्भ में संबंधित संस्थान है, लेकिन विपक्ष इसकी वैधता पर भी सवाल उठाने से नहीं चूका। यह विपक्ष जिसे हमने एक नए किस्म का चरम दक्षिणपंथ कहा है, वह तरह तरह के हथकंडे – जिसमें यूएस का सैन्य हस्तक्षेप शामिल है- अपनाकर बोलीवेरियन प्रक्रिया को अपदस्थ करना चाहता है। AMLO की वाजिब सोच यूनाइटेड नेशन्स चार्टर के भी मुताबिक है।
कई देश जहाँ साफ तौर से सेंटर-लेफ्ट या वाम सरकारें हैं, वे भी OAS के इस प्रस्ताव पर यूएस के साथ वोटिंग में शामिल हुए। इनमें थे ब्राज़ील, चिली और कोलंबिया। चिली के राष्ट्रपति जो साल्वाडोर अलेंदे से प्रभावित हैं (जिन्हें 1973 में यूएस द्वारा चलाए गए तख्तापलट में मार दिया गया था), उनके इस कदम से कई मुद्दों पर उनकी विदेश नीति में आ रहे बदलाव दिख रहे हैं जो यूएस स्टेट डिपार्ट्मन्ट के साथ खड़ी दिख रही है (इनमें यूक्रेन और वेनेज़ुएला दोनों देशों से संबंधित नीति शामिल है)। 2016 से चिली की सरकार के निमंत्रण पर इस देश में लगभग पाँच लाख वेनेज़ुएला प्रवासी आए हैं, इनमें से कईयों के पास कोई दस्तावेज़ नहीं हैं और अब चिली में बढ़ते प्रतिकूल माहौल में उन पर देश से निकाले जाने का खतरा मंडरा रहा है। ऐसा लग रहा है कि चिली के राष्ट्रपति गेब्रियल बोरिक चाहते हैं कि वेनेज़ुएला के हालात बदलें जिससे वे वेनेज़ुएला से आए प्रवासियों को अपने देश लौटने का आदेश दे सकें। लेकिन यूएस की वेनेज़ुएला को लेकर नीति के प्रति चिली के जोश को समझने का यह दोषदर्शी या सिनिकल तरीका है क्योंकि इससे ब्राज़ील और कोलंबिया की स्थिति स्पष्ट नहीं होती।
हमारे नवीनतम डोसियर To Confront Rising Neofascism, the Latin American Left Must Rediscover Itself (नवफ़ासीवाद से लड़ने के लिए लैटिन अमेरिका के वामपंथ को खुद को फिर से तलाश करना होगा) में इस महाद्वीप के मौजूदा राजनीतिक परिप्रेक्ष्य का विश्लेषण किया गया है। इस विश्लेषण की शुरूआत होती है इस मान्यता की पड़ताल से कि लैटिन अमेरिका में एक द्वितीय ‘पिंक टाइड’ (गुलाबी लहर) या प्रगतिशील सरकारों का चक्र चला है। पहला चक्र शुरू हुआ 1998 में वेनेज़ुएला में ह्यूगो चावेज़ के चुनाव से और खत्म हुआ 2008 के वित्तीय संकट और इस महाद्वीप के खिलाफ यूएस के जवाबी हमले के साथ। इस पहले चक्र ने ‘लैटिन अमेरिका के समन्वय और भू-राजनीतिक संप्रभुता को बढ़ावा देकर यूएस साम्राज्यवाद को सामने से चुनौती दी’। जबकि दूसरे चक्र का रूझान कमोबेश सेंटर-लेफ्ट रहा और यह ‘ज़्यादा कमज़ोर दिखता’ है। ब्राज़ील और कोलंबिया दोनों की परिस्थिति में इसी कमज़ोरी का प्रतीक है जहाँ, क्रमश:, लुइज़ इनासियो लूला डा सिल्वा और गुस्तावो पेट्रो की सरकारें विदेश मंत्रालयों की स्थायी नौकरशाही पर पूरा नियंत्रण हासिल नहीं कर पाई हैं। ब्राज़ील (माउरो विएरा) और कोलंबिया (लुइस गिल्बर्टो मुरिलो) दोनों के ही विदेश मंत्री न तो वामपंथी हैं और न ही सेंटर-लेफ्ट, और दोनों ही यूएस में राजनायिक रह चुके हैं जिसकी वजह से उनके यूएस से करीबी रिश्ते भी हैं। इसका प्रभाव इस बात में दिखता है कि अब भी कोलंबिया में दस से ज़्यादा यूएस सैन्य अड्डे हैं। फिर भी यह सब दूसरे चक्र की कमज़ोरी के उचित कारण नहीं लगते।
डोसियर में हमने इस कमज़ोरी की सात वजह दी हैं:
- दुनियाभर का वित्तीय और पर्यावरण संबंधित संकट, जिसने इस क्षेत्र के देशों को आपस में इस बात पर बाँट दिया कि उन्हें किस राह पर चलना है;
- इस क्षेत्र में यूएस का अपने नियंत्रण को फिर से स्थापित करना, जो इसने पहली प्रगतिशील लहर के दौरान खो दिया था, यहाँ फिर से नियंत्रण हासिल करने के पीछे यूएस की मुख्य वजह थी कि वह लैटिन अमेरिका के बाज़ार में चीन का आना अपने लिए एक चुनौती मानता है। इस बाज़ार में प्राकृतिक और श्रम संपदा दोनों शामिल हैं;
- श्रम बाज़ारों का अत्याधिक शहरीकरण होना, जिससे मज़दूर वर्ग के लिए अनिश्चितता बढ़ गई है और इनकी जन संगठन की क्षमता पर भी बुरा असर पड़ा है। इसका नतीजा यह हुआ है कि बहुत हद तक मज़दूरों के अधिकार उनसे छीन लिए गए हैं और मज़दूर-वर्ग की ताकत कमज़ोर पड़ी है;
- सामाजिक पुनरुत्पादन के ढाँचे में बुनियादी बदलाव, जिसका केंद्र बन गया है सामाजिक कल्याण नीतियों में सार्वजनिक विनिवेश, इसकी वजह से देखभाल या पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी निजी जीवन में आ गई और खासतौर से महिलाओं पर इसका अतिरिक्त बोझ डाल दिया गया है;
- इस क्षेत्र में यूएस ने अपनी गिरती आर्थिक शक्ति की वजह से अपना दबदबा बनाए रखने के लिए सैन्य शक्ति बढ़ा दी है;
- यह तथ्य कि इस क्षेत्र की सरकारें चीन के आर्थिक प्रभाव और अवसरों का फ़ायदा एक संप्रभुता के अजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए नहीं कर पाईं हैं तथा चीन जो कि लैटिन अमेरिका के एक प्रमुख व्यापार पार्टनर के तौर पर उभरा है, वह इस महाद्वीप पर वर्चस्व स्थापित करने के यूएस के अजेंडे को सीधी चुनौती नहीं दे रहा;
- प्रगतिशील सरकारों में आपसी विभाजन, इसके साथ ही महाअमेरिका में नवफ़ासीवाद का उभार, इनसे एक प्रगतिशील क्षेत्रीय अजेंडे के विकास में रूकावट पैदा होती है, इस अजेंडे में महाद्वीप के समन्वय की वह नीतियाँ भी शामिल हैं जो पहली प्रगतिशील लहर में प्रस्तावित नीतियों जैसी हैं।
इन और अन्य कारणों से यह सरकारें न तो अपनी ताकत को पुरज़ोर तरीके से स्थापित नहीं कर पा रहीं और न ही गोलार्द्ध की संप्रभुता और साझेदारी के बोलीवेरियन ख्वाब को साकार कर पाने की अपनी काबलियत को।
इसके अलावा एक ज़रूरी पहलू यह भी है कि ब्राज़ील और कोलंबिया जैसे समाजों में वर्गीय शक्तियों का संतुलन सही मायने में किसी साम्राज्यवाद विरोधी राजनीति के पक्ष में नहीं है। लूला और पेट्रो की 2022 की शानदार चुनावी जीतों का आधार संगठित मज़दूर-वर्ग की व्यापक नींव पर नहीं टिका जो सही मायने में लोगों के अजेंडे के मुताबिक बदलाव के लिए आगे बढ़ने के लिए समाज को मजबूर कर दे। जीते हुए गठबंधनों में सेंटर-लेफ्ट ताकतें मौजूद हैं जिनके पास अब भी सामाजिक शक्ति है और वे इन नेताओं के व्यक्तिगत बेजोड़ क्षमताओं के बावजूद उन्हें खुलकर सरकार चलाने नहीं देतीं। इन सरकारों की कमज़ोरी भी एक वजह है कि खास किस्म के चरम दक्षिणपंथ को विकसित होने का मौका मिल रहा है।
जैसा कि हमने डोसियर में कहा है, ‘एक ऐसा राजनीतिक प्रोजेक्ट का निर्माण नहीं हो पा रहा जो मज़दूर वर्ग की रोज़मर्रा की परेशानियों को खत्म कर सके, इस वजह से ये प्रगतिशील चुनावी प्रोजेक्ट जन ज़रूरतों से कट गए हैं’। अनिश्चित धंधों के जाल में फँसे मज़दूर वर्गों को (राज्य द्वारा संचालित) व्यापक उत्पादन के स्तर पर निवेश की ज़रूरत है, जिसका आधार टिका हो हर देश और पूरे क्षेत्र की संप्रभुता पर। जिस तरह इस क्षेत्र के कई देश वेनेज़ुएला की संप्रभुता को खत्म करने के लिए यूएस के साथ मिल गए उससे साफ है कि इन कमज़ोर चुनावी प्रोजेक्टों में संप्रभुता को बचाने की खास शक्ति नहीं है।
मेक्सिको की कवि कार्मेन बौलओसा ने अपनी कविता ‘Quo Vadis’ में यूएस सरकार के अजेंडे के प्रति वफ़ादारी की प्रवृत्ति के समस्या से भरे चरित्र के बारे में चर्चा की। वे लिखतीं हैं Las balas que vuelan no tienen convicciones (‘दागी गई गोलियों की कोई प्रतिबद्धता नहीं होती’)। इन ‘प्रगतिशील’ सरकारों की इस क्षेत्र के दूसरे देशों में तख्तापलट या अस्थिरता को लेकर कोई प्रतिबद्धता नहीं है। इनसे बहुत कुछ की उम्मीद की जानी चाहिए, लेकिन साथ ही साथ बेहद निराशा भी नाजायज़ है।
सस्नेह,
विजय