प्रशांत महासागर और उसके द्वीप न निषिद्ध हैं और न उन्हें भुला दिया गया है: उनतीसवाँ न्यूज़लेटर (2024)
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
पूर्वी ऑस्ट्रेलिया से लगभग 1,500 किलोमीटर दूर प्रशांत महासागर में स्थित एक द्वीपसमूह कनाकी (न्यू कैलेडोनिया) में मई के महीने में एक बहुत मजबूत संघर्ष खड़ा हुआ। यह द्वीप एशिया–प्रशांत क्षेत्र में फ़्रांसीसी शासन वाले उन पाँच विदेशी इलाकों में से एक है, जो 1853 से फ्रांस के औपनिवेशिक शासन के अधीन हैं। एमेन्युएल मैक्रो की फ्रांसीसी सरकार ने यहाँ के प्रादेशिक चुनावों में फ्रांस से आकर बसे लोगों को भी वोट देने का अधिकार दे दिया जिसके बाद से ही यहाँ के मूलनिवासी कनाक लोगों ने विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू कर दिया। इस अशांति के चलते मैक्रो को यह फैसला वापस लेना पड़ा लेकिन इसके साथ ही द्वीपवासियों का बहुत दमन भी किया गया। पिछले महीनों में फ्रांस की सरकार ने इन द्वीपों पर आपातकाल लगा दिया और हज़ारों की तादाद में यहाँ फ्रांसीसी सैनिक तैनात कर दिए गए। मैक्रो का कहना है कि यह स्थिति तब तक बरकरार रहेगी ‘जब तक ज़रूरी है’। फ्रांसीसी प्रशासन अब तक हज़ार से ज़्यादा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर चुका है, जिसमें कोऑर्डनैशन सेल फॉर फ़ील्ड एक्शनस् या ज़मीनी कार्रवाइयों के लिए समन्वय सेल (सेल्यूल डे कोऑर्डनैशन दे एक्शनस् डे टरैन या सीसीएटी) के नेता क्रिश्चियन टाइन जैसे कनाक स्वतंत्रता कार्यकर्ता भी हैं। इनमें से कुछ पर मुकदमा चलाने के लिए उन्हें फ्रांस भेज दिया गया है। टाइन और दूसरे लोगों पर संगठित अपराध जैसे जो आरोप लगे हैं उनके अंजाम इतने संगीन न होते तो उन पर कोई भी हँस देता।
न्यू कैलेडोनिया के प्रदर्शनकारियों को फ्रांस ने इतनी बर्बरता से इसलिए कुचला है क्योंकि साम्राज्यवाद का यह पुराना पुरोधा अपने उपनिवेशों का इस्तेमाल दुनिया भर में अपनी राजनीतिक पहुँच बढ़ाने के लिए करता है — मौजूदा मामले में वह चीन के इलाके में अपनी सैन्य मौजूदगी चाह रहा है। यह कोई नई कहानी नहीं, फ्रांस ने इन द्वीपों और दक्षिण प्रशांत महासागर के दूसरे द्वीपों का इस्तेमाल परमाणु बम निरीक्षणों के लिए किया है। इन्हीं निरीक्षणों में से एक था ऑपरेशन सेन्टॉर (जुलाई 1974) जिसका असर द्वीपसमूहों पर रहने वाले 110,000 लोगों पर पड़ा था। न्यू कैलेडोनिया के कनाक मूल निवासियों की लड़ाई सिर्फ उपनिवेशवाद से आज़ादी की लड़ाई नहीं है बल्कि वैश्विक उत्तर द्वारा यहाँ की ज़मीन और समुद्र पर जो भयावह सैन्य हिंसा थोपी गई है उसके खिलाफ भी है। 1966 से 1996 तक जो हिंसा फैली रही उसमें इन द्वीपवासियों के लिए फ्रांस की उपेक्षा साफ झलकती थी, उन्हें मलबे की तरह समझा जाता, मानो वो इस ज़मीन से टकराए किसी टूटे जहाज़ की वजह से यहाँ पहुँच गए हों।
न्यू कैलेडोनिया में मौजूदा अशांति की जड़ में है संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में वैश्विक उत्तर द्वारा प्रशांत महासागर का सैन्यकरण बढ़ाया जाना। मौजूदा समय में 29 देशों के 25,000 सैनिक रिम ऑफ द पैसिफिक (रिमपैक) चला रहे हैं, यह एक सैन्य अभ्यास है जो हवाई से लेकर एशियाई ज़मीन के किनारे तक होता है। इस खतरनाक परिस्थिति को लेकर ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने कई संस्थाओं के साथ मिलकर रेड अलर्ट नं 18 तैयार किया, इन संस्थाओं में से कई प्रशांत और हिन्द महासागर के क्षेत्रों से ही हैं। इनके नाम नीचे दिए गए हैं।
वे प्रशांत महासागर को खतरनाक बना रहे हैं
रिमपैक क्या है?
यूएस और उसके सहयोगी देश 1971 से रिम ऑफ द पैसिफिक (रिमपैक) युद्ध अभ्यास करते आ रहे हैं। इस सैन्य अभ्यास के शुरुआती सदस्य थे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैंड (आओटेरोआ), यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका। यह पाँचों देश फाइव आईज़ (जो अब फॉर्टीन आईज़ हो चुका है) के संस्थापक सदस्य भी थे, यह एक खुफिया जानकारी नेटवर्क है जिसका काम जानकारियाँ साझा करना और संयुक्त निगरानी अभियान चलाना है।
ये देश उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो, स्थापना 1949) के प्रमुख अंग्रेज़ी–भाषी देश हैं तथा 1951 में जिस ऑस्ट्रेलिया–न्यूज़ीलैंड (आओटेरोआ)-यूएस सुरक्षा संधि यानी ANZUS पर हस्ताक्षर हुए थे, उसके सदस्य हैं। रिमपैक एक बड़े द्विवार्षिक सैन्य अभ्यास के तौर पर विकसित हो चुका है जिससे दुनिया के कई ऐसे देश जुड़ चुके हैं, जो किसी न किसी तरह से वैश्विक उत्तर के वफादार हैं (बेल्जियम, ब्राज़ील, ब्रुनेई, चिली, कोलंबिया, इक्वाडोर, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इस्राइल, इटली, जापान, मलेशिया, मेक्सिको, नीदरलैंड, पेरू, फ़िलिपींस, कोरिया गणराज्य, सिंगापूर, श्रीलंका, थायलैंड और टोंगा)।
रिमपैक 2024, 28 जून को शुरू होकर 2 अगस्त तक चलेगा। इसमें 150 हवाई विमान, 40 पानी के जहाज़, तीन पनडुब्बियाँ, 14 राष्ट्रों की थल सेनाएँ और 29 देशों के अन्य सैन्य उपकरण शामिल रहेंगे, हालांकि इनमें से ज़्यादातर बेड़े संयुक्त राज्य अमेरिका के ही हैं। इस सैन्य अभ्यास का मुख्य लक्ष्य है ‘अंतरसंचालनीयता’ यानी एक–दूसरे के साथ मिलकर काम करना, इस अभ्यास के असल मायने है संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना के साथ दूसरे देशों की सेनाओं (मुख्यत: जल सेना) को जोड़ना। इस अभ्यास का मुख्य आदेश और नियंत्रण यूएस के पास है, जो एक तरह से रिमपैक की आत्मा है।
रिमपैक इतना खतरनाक क्यों है?रिमपैक के दस्तावेज़ों और आधिकारिक वक्तव्यों से पता चलता है कि इन अभ्यासों से इन स्थानीय [सेनाओं] को ‘दुनिया भर में होने वाले तमाम तरह के संभावित ऑपरेशनों के लिए’ प्रशिक्षण दिया जा सकता है। लेकिन यूएस के रणनीतिक दस्तावेज़ों और रिमपैक चलाने वाले यूएस अधिकारियों के बर्ताव से बिल्कुल साफ है कि इस अभ्यास का पूरा ध्यान चीन पर है। रणनीतिक दस्तावेज़ों से यह भी साफ हो जाता है कि यूएस चीन को अपने वर्चस्व के लिए एक बड़ा खतरा मानता है, बल्कि कह सकते हैं कि सबसे प्रमुख खतरा मानता है, और मानता है कि इस खतरे को रोकाना ज़रूरी है।
यह रोक चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध से लगी है, लेकिन यह काम संयुक्त राज्य अमेरिका के सैन्य युद्धाभ्यासों के जाल से ज़्यादा बेहतर तरीके से हुआ। इसमें शामिल था चीन के आस–पास के क्षेत्रों और देशों में यूएस सैन्य अड्डे स्थापित करना; यूएस और उसके सहयोगियों के सैन्य पोत का नौवहन की स्वतंत्रता (फ्रीडम ऑफ नेवीगेशन) के बहाने से इस्तेमाल कर चीन को उकसाना; यूएस की कम रेंज वाली परमाणु मिसाइलों को ताइवान सहित यूएस के सहयोगी देशों और क्षेत्रों में तैनात करने की धमकी देना; ऑस्ट्रेलिया के डार्विन में एयरफ़ील्ड का विस्तार करना ताकि वहाँ यूएस के परमाणु मिसाइल से लैस हवाई लड़ाकू विमान खड़े किए जा सकें; पूर्वी एशिया में यूएस के मित्र राष्ट्रों के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाना जिसका स्पष्ट उद्देश्य चीन को धमकाना है; और रिमपैक युद्धाभ्यास करना, खासतौर से पिछले कुछ सालों में। हालांकि चीन को भी रिमपैक 2014 और रिमपैक 2016 में बुलाया गया था, उस समय तनाव इतने चरम पर नहीं था, लेकिन रिमपैक 2018 के बाद से चीन को न्यौता नहीं दिया गया है।
रिमपैक के दस्तावेज़ कहते तो हैं कि यह सैन्य अभ्यास मानवीय उद्देश्यों से किए जा रहे हैं लेकिन यह सिर्फ छलावा है। यह छलावा और भी स्पष्ट हो गया जब रिमपैक 2000 में सेनाओं ने स्ट्रॉंग ऐन्जल अंतर्राष्ट्रीय मानवीय प्रतिक्रिया प्रशिक्षण अभ्यास किया। 2013 में हैयान चक्रवात की तबाही के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और फ़िलिपींस ने साथ मिलकर मानवीय सहायता पहुँचाई। इस सहयोग के कुछ ही समय बाद यूएस और फ़िलिपींस ने उन्नत रक्षा सहयोग समझौते (2014) पर हस्ताक्षर किए जिससे यूएस को छूट मिल गई कि वो अपने हथियारों के भंडारण और सैनिकों को रखने के लिए फ़िलिपींस सेना के सैन्य अड्डों का इस्तेमाल कर सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मानवीय कार्रवाईयों ने सैन्य सहयोग को और भी मज़बूत करने की राह खोल दी है।
रिमपैक सैन्य अभ्यासों में असली असलाह इस्तेमाल किया जाता है। इस अभ्यास का सबसे शानदार हिस्सा होता है जब सेवा मुक्त हो चुके बेड़ों को निशाना बनाकर हवाई के तट के पास डुबाया जाता है। रिमपैक 2024 में यह निशाना होगा सेवामुक्त हो चुका यूएसएस तरावा, एक 40,000 टन का ऐम्फिबीअस युद्धपोत जो अपने समय का सबसे बड़ा युद्धपोत हुआ करता था। इस तरह द्वीप देशों के तटों के पास जहाज़ों को डुबाने से पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ते हैं इसकी कोई जाँच नहीं की जाती। प्रशांत महासागर या दुनिया के किसी अन्य भाग में इतने बड़े सैन्य अभ्यासों के पर्यावरण पर क्या असर पड़ते हैं इस पर भी कोई गौर नहीं किया जाता।
रिमपैक दरअसल इस इलाके में चीन के विरुद्ध यूएस द्वारा थोपे गए नए शीत युद्ध का एक हिस्सा है। इसे तनाव पैदा करने के लिए तैयार किया गया है। इसलिए रिमपैक एक बेहद खतरनाक प्रक्रिया है।
रिमपैक में इज़राइल की क्या भूमिका है?इज़राइल की कोई भी तटीय सीमा प्रशांत महासागर से नहीं मिलती लेकिन फिर भी इस देश ने कई दफ़ा रिमपैक में हिस्सा लिया, पहली बार रिमपैक 2018 में, फिर रिमपैक 2022 और रिमपैक 2024 में भी। हालांकि इन सैन्य अभ्यासों में इज़राइल का कोई लड़ाकू विमान या जहाज़ शामिल नहीं थे लेकिन फिर भी यह ‘अंतरसंचालनीयता’ के लिए इसमें शामिल था। इसके तहत इज़राइल ने इस अभ्यास के आदेश और नियंत्रण के साथ–साथ खुफिया जानकारी और लॉजिस्टिकल प्रक्रिया में भी हिस्सा लिया। इज़राइल फिलहाल गज़ा में फिलिस्तीनियों का नरसंहार करने के लिए जंग छेड़े हुए है, इसके बावजूद वो रिमपैक 2024 में शिरकत कर रहा है। जबकि रिमपैक 2024 के कई पर्यवेक्षक देशों (जैसे चिली और कोलंबिया) ने खुलकर इस नरसंहार की निंदा की है, फिर भी रिमपैक 2024 में वे इज़राइल की सेना के साथ शामिल रहेंगे। इन खतरनाक संयुक्त सैन्य अभ्यासों में इज़राइल के शामिल होने पर इन्होंने किसी तरह की झिझक नहीं दिखाई है।
इज़राइल एक सेटलर–उपनिवेशवादी देश है (यानी वह फ़िलिस्तीन में अपने लोगों को बसा रहा है और मूल निवासियों को बाहर कर रहा है) और ये देश लगातार फिलिस्तिनियों के साथ नस्ली भेदभाव और उनका नरसंहार कर रहा है। पूरे प्रशांत महासागर में, आओटेरोआ (न्यूज़ीलैंड) से लेकर हवाई के मूलनिवासी समुदायों तक, सबने पिछले 50 सालों में रिमपैक का विरोध किया है। उनका कहना है कि ये अभ्यास चुराई हुई ज़मीन और समुद्र में होते हैं, इनका उन मूलनिवासियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिनकी ज़मीनों और समुद्र पर ये असली असलाह से लैस अभ्यास किए जाते हैं (इनमें ऐसे इलाके भी शामिल हैं जहाँ पहले परमाणु हथियार परीक्षण किए जा चुके हैं); साथ ही साथ इन अभ्यासों से जलवायु संकट में इज़ाफ़ा होता है जिससे पानी का स्तर बढ़ रहा है और द्वीपों पर रहने वाले लोगों की ज़िंदगियाँ खतरे में आ रही हैं। वैसे तो इज़राइल की इस अभ्यास में भागीदारी कोई चौंकाने वाली बात नहीं है लेकिन समस्या सिर्फ इसके रिमपैक में भागीदारी की ही नहीं है, बल्कि पूरे रिमपैक अभ्यास की ही है। इज़राइल एक नस्लभेद आधारित देश है जो नरसंहार कर रहा है और रिमपैक एक उपनिवेशवादी कार्यक्रम है जो प्रशांत महसागर में बसने वालों और चीन के लोगों के खिलाफ जंग छेड़कर उनका खात्मा कर देने वाला एक खतरा बन चुका है।
ते कुआका (आओटेरोआ)
रेड एंट (ऑस्ट्रेलिया)
वर्कर्स पार्टी ऑफ बांग्लादेश (बांग्लादेश)
कोर्डिनैडोरा पोर पैलेस्टिना (चिली)
ज्यूडिक्स एंटिसियोनिस्टास कॉन्ट्रा ला ऑक्यूपासियोन ई एल अपार्थेड (चिली)
पार्टिडो कॉम्यून्स (कोलंबिया)
कांग्रेसो डी लॉस पुएब्लोस (कोलंबिया)
कोऑर्डिनैसियोन पोलिटिका ई सोशल, मार्चा पैट्रिओटिका (कोलंबिया)
पार्टिडो सोशलिस्टा डी तिमोर (तिमोर लेस्ते)
हुई अलोहा ‘इना (हवाई‘)
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी–लेनिनवादी) लिबरेशन (भारत)
फेडेरासी सेरीकाट बुरुह डेमोक्रैटिक केराक्यटन (इंडोनेशिया)
फेडेरासी सेरीकाट बुरुह मिलिटन (इंडोनेशिया)
फेडरासी सेरीकट बुरुह पेरकेबुनान पैट्रियटिक (इंडोनेशिया)
पुसट पेरजुआंगन महासिसवा अनटुक पेम्बेबासन नैशनल (इंडोनेशिया)
सॉलिडेरिटास.नेट (इंडोनेशिया)
गेगर अमेरिका (मलेशिया)
पार्टी सोसियालिस मलेशिया (मलेशिया)
नो कोल्ड वॉर
अवामी वर्कर्स पार्टी (पाकिस्तान)
हकूक–ए–खल्क पार्टी (पाकिस्तान)
मजदूर किसान पार्टी (पाकिस्तान)
पार्टिडो मंग्गागावा (फिलीपींस)
पार्टिडो सोसियालिस्टा न्ग पिलिपिनास (फिलीपींस)
इंटर्नैशनल स्ट्रैटेजी सेंटर (कोरिया गणराज्य)
जनता विमुक्ति पेरामुना (श्रीलंका)
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान
नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (यूनिफाइड सोशलिस्ट)
कोडपिंक: वुमेन फॉर पीस (संयुक्त राज्य अमेरिका)
नोडुतडोल (संयुक्त राज्य अमेरिका)
पार्टी फॉर सोशलिज्म एंड लिबरेशन (संयुक्त राज्य अमेरिका)
मई में न्यू कैलेडोनिया में जब विरोध प्रदर्शन शुरू हुए तो मैं कनाक स्वतंत्रता की नेता डेवे गोरोड (1949-2022) की कविताओं की एक किताब खोजने लगा, जिसका शीर्षक था Sous les cendres des conques (शंखों की राख़ के नीचे, 1974)। ये किताब उसी साल लिखी गई थी जिस साल गोरोड रेड स्कार्फ़ (Foulard rouges) नाम के मार्क्सवादी राजनीतिक संगठन में शामिल हुई थीं। इस किताब में उन्होंने ‘निषिद्ध क्षेत्र’ (Zone interdite) नाम की कविता लिखी, जिसकी अंतिम पंक्तियाँ हैं:
रेओ वहीताही नुकुतावके
पिनाकी तेमातांगी वनावना
ट्यूरिया मारिया मारुटिया
मंगरेवा मोरूरोआ फंगटौफा
निषिद्ध क्षेत्र
तथाकथित ‘फ्रेंच’ पोलिनेशिया
में कहीं
यह उन द्वीपों के नाम हैं जो फ्रांसीसी परमाणु बम परीक्षणों की मार पहले ही झेल चुके हैं। इनके नामों के बीच कोई विराम चिह्न नहीं है, जिससे दो बातें पता चलती हैं: पहली, किसी द्वीप या देश के खत्म हो जाने से परमाणु संदूषण या प्रदूषण खत्म नहीं हो जाता, और दूसरा, द्वीपों के किनारों से टकराती हुई लहरें इतने विशाल समंदर में दूर–दराज बसे लोगों को आपस में बाँटती नहीं हैं बल्कि उन्हें साम्राज्यवाद के खिलाफ एकजुट करती हैं। इसी भावना से गोरोड ने ग्रुप 1878 की स्थापना की (इसका यह नाम उस साल हुए कनाक विद्रोह पर रखा गया) और इसके बाद 1976 में कनाक स्वतंत्रता पार्टी (पार्टी डे लिबरैशन कनाक या पालिका) की स्थापना की, जो ग्रुप 1878 से ही निकली थी। प्रशासन ने 1974 से 1977 के बीच बार–बार गोरोड को गिरफ्तार किया क्योंकि वे फ्रांस से आज़ादी के लिए पालिका के संघर्ष का नेतृत्व कर रही थीं।
जेल में रहते हुए गोरोड ने सुज़ाना औने के साथ मिलकर आंदोलनरत प्रताड़ित कनाक महिलाओं का ग्रुप (ग्रुप डे फ़ेम कनाक एक्स्प्लॉइटीस एन लुट्टे) की स्थापना की। जब ये दोनों महिलाएँ जेल से बाहर आईं तो इन्होंने 1984 में कनाक लिबरैशन एण्ड सोशलिस्ट फ्रन्ट (फ्रन्ट डे लिबरैशन नैशनेल कनाक एत सोशिअलिस्ते) की स्थापना में मदद की। एक मज़बूत संघर्ष के बाद गोरोड 2001 में न्यू कैलेडोनिया की उप–राष्ट्रपति चुनी गईं।
1985 में दक्षिण प्रशांत महासागर के तेरह देशों ने रारोटोंगा की संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट से दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट के बीच का सारा क्षेत्र परमाणु मुक्त घोषित कर दिया गया। फ्रांस के उपनिवेश के तौर पर न्यू कैलेडोनिया ने इस पर दस्तखत नहीं किए, लेकिन दूसरे द्वीपों जैसे सोलोमन आइलैंड और कुकी आइरानी (कूक द्वीपसमूह) ने इस पर हस्ताक्षर किए। गोरोड अब इस दुनिया में नहीं हैं और यूएस परमाणु हथियार अब इस संधि को तोड़ते हुए उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में दाखिल होने को तैयार हैं। लेकिन संघर्ष कभी मरता नहीं।
रास्ते भले ही बंद हैं लेकिन दिल अब भी खुले हैं।
सस्नेह,
विजय