जनसंहार ने फ़िलिस्तीनियों की ज़िंदगी के कई साल घटा दिए हैं: पाँचवाँ न्यूज़लेटर (2025)
यूएस समर्थित जनसंहार ने फ़िलिस्तीनियों की ज़िंदगी को जिस तरह बर्बाद किया है उसे सुधारने में कई पीढ़ियाँ गुज़र जाएँगी।
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
युद्धविराम का विचार भी युद्ध जितना ही पुराना है। इतिहास को देखें तो पता चलता है कि इंसानों के खाने और सोने के लिए गोलीबारी रोक दी जाती थी। युद्ध के नियम इसी समझ पर तैयार किए गये थे कि दोनों पक्षों को आराम करने और फिर से हिम्मत जुटाने के लिए वक़्त की ज़रूरत होती है। कभी-कभी इस समझ में जानवरों की ज़रूरतों को भी शामिल कर लिया जाता था। मसलन 1916 की ईस्टर राइज़िंग के दौरान आइरिश विद्रोहियों और ब्रिटिश सैनिकों ने डब्लिन के सेंट स्टीवनस ग्रीन के आस-पास गोलियाँ चलाना रोक दिया था ताकि पार्क की देखरेख करने वाले जेम्ज़ कर्नी बतख़ों को खाना खिला सकें। गोलीबारी में आए इसी caesura या विराम को ‘सीज़फ़ायर’ कहा जाने लगा।
ग़ज़ा के फ़िलिस्तीनियों के लिए हर वो युद्धविराम अच्छी ख़बर है जो बमबारी रोकने और राहत सामग्री (ख़ासकर खाना, पानी, दवाएँ और कम्बल) आने देने का वादा करता है। मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के प्रवक्ता येन्स लाएरके ने पुष्टि की कि 19 जनवरी से जब से एक वक़्ती युद्धविराम शुरू हुआ है ग़ज़ा के लोगों तक बहुत सी राहत सामग्री पहुँचने लगी है। युद्धविराम के पहले दिन 630 ट्रक ग़ज़ा में आए – जबकि इज़राइल की बमबारी के दौरान अब तक यह संख्या एक दिन में पचास से सौ ट्रक की ही थी, वे भी बामुश्किल ही घुस पाते थे। लाएरके ने बताया कि इन ट्रकों में ‘खाना आ रहा है, बेक्रियाँ खुल रही हैं, चिकित्सा सामग्रियाँ आ रही हैं, अस्पतालों में ज़रूरी समान पहुँच रहे हैं, पीने के पानी की चरमराती हुई व्यवस्था को दुरुस्त किया जा रहा है, शरणार्थी शिविरों की मरम्मत की जा रही है, बिछड़े परिवारों को मिलवाया जा रहा है’ और दूसरे अहम काम किए जा रहे हैं। लगभग पाँच सौ दिन तक चली जनसंहार की हिंसा के बाद ये सब महज़ राहत सामग्री नहीं। बल्कि साक्षात जीवन है। लेकिन इस युद्धविराम का प्रस्ताव सबसे पहले मई 2024 में पेश किया गया था, तब इसे इज़राइल की सरकार ने मंज़ूरी दे दी थी और हमास ने भी स्वीकार कर लिया था पर अंत में नेतनयाहू ने अस्वीकार कर दिया। यानी गोलियाँ उसी वक़्त थम सकती थीं।
इस जनसंहार का फ़िलिस्तीन पर गहरा असर पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र की विश्व जनसंख्या सम्भावनाएँ 2024 के अनुमान पर ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान और ग्लोबल साउथ इन्सायट्स ने ग़ज़ा में इज़राइली बमबारी की वजह से फ़िलिस्तीनियों की जीवन प्रत्याशा दर में आई गिरावट का विश्लेषण किया और पाया कि साल 2022 और 2023 के बीच फ़िलिस्तीनियों की जन्म के समय जीवन प्रत्याशा दर साढ़े ग्यारह साल गिर गई, यानी 2022 में 76.7 वर्ष से गिरकर 2023 में 65.2 वर्ष। अक्टूबर से दिसंबर 2023 में संयुक्त राज्य (यूएस) समर्थित इज़राइली बमबारी के पहले तीन महीनों में ही जीवन प्रत्याशा दर में यह भारी गिरावट आई। अब एक फ़िलिस्तीनी की ज़िंदगी एक इज़राइली की ज़िंदगी से सत्रह साल छोटी है। यह अंतर दक्षिण अफ़्रीका में नस्लभेद के दौर में श्वेत और अश्वेतों के बीच से भी ज़्यादा है जो 1980 में पंद्रह साल था।
प्रति फ़िलिस्तीनी ज़िंदगी के साढ़े ग्यारह साल कम हो चुके हैं। जनसंहार से बच गए 52 लाख फ़िलिस्तीनियों के हिसाब से देखें तो वे कुल मिलाकर 6 करोड़ साल खो चुके हैं। इसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती। फ़िलिस्तीनी समाज को फिर से जनसंहार से पहले की जीवन प्रत्याशा दर प्राप्त करने में सालों की कड़ी मेहनत लगेगी। स्वास्थ्य व्यवस्था को फिर से खड़ा करना होगा: ग़ज़ा में तबाह कर दिए गए लगभग सभी अस्पताल और क्लिनिकों का ही फिर से निर्माण नहीं करना होगा बल्कि बमबारी में मारे गए डॉक्टरों और नर्सों की जगह लेने के लिए नए डॉक्टर और नर्स भी तैयार करने होंगे। खाद्य व्यवस्था को फिर से बनाना पड़ेगा: न सिर्फ़ बेकरियाँ बनानी पड़ेंगी बल्कि विषैले हो चुके खेतों को फिर से खेती लायक़ बनाना होगा और मछली पकड़ने वाली नौकाओं की मरम्मत करनी होगी। फिर से घर बनाने होंगे क्योंकि ग़ज़ा के 92% घर या तो तबाह हो चुके हैं या बुरी तरह टूट चुके हैं (इसे यूएन ने ‘डोमिसाइड’ का नाम दिया, यानी घरों की तबाही)। बच्चों को जो मानसिक यातना हुई है उसका इलाज करना होगा ताकि वे इन घरों में सुरक्षित महसूस करें और ये उन्हें अपनी क़ब्र न लगें।
आँकड़े बहुत बिखरे हुए हैं। इस क़त्लेआम में हज़ारों फ़िलिस्तीनी मारे गए हैं जिनमें कम-से-कम 14,500 बच्चे थे। डेनिश रेफ़्यूजी काउन्सिल, ऐग्रिकल्चरल डिवेलप्मेंट असोसीएशन और विमनस अफ़ेरस सेंटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ अक्टूबर 2023 और अक्टूबर 2024 के बीच ‘ग़ज़ा की 90% से ज़्यादा आबादी विस्थापित हो चुकी है, इस दौर में लोग औसतन छह बार विस्थापित हुए और कुछ मामलों में तो 19 बार’। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि फ़िलिस्तीनियों को ‘अपर्याप्त चेतावनी’ देकर विस्थापित होने पर मजबूर किया गया और इसके बाद भी वे ‘नामित “सुरक्षा ज़ोन”’ में जान बचाने के लिए संघर्ष करते रहे क्योंकि इन जगहों पर ‘बमबारी की गई और यहाँ मूलभूत ज़रूरत की चीज़ें नहीं थीं’। बच गए लोगों को गम्भीर न्यूरोलॉजिकल समस्याएँ हो गयीं हैं। फ़िलिस्तीन क्रेसेंट सॉसायटी के नेबाल फरसख़ ने बताया कि ‘ग़ज़ा में सभी को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है, ख़ासतौर से बच्चों को बहुत ज़्यादा सदमा लगा है। कम-से-कम 17,000 बच्चे या तो अकेले रह गए हैं या अपने माता-पिता से बिछड़ गए हैं’। इस साल के पहले न्यूज़लेटर में हमने बताया था कि कम्यूनिटी सेंटर क्राइसिस मैनजमेंट इन ग़ज़ा की दिसंबर 2024 की एक रिपोर्ट में पाया गया था कि ‘ग़ज़ा के 96% बच्चों को लगता है कि उनका मरना तय है’।
शुरुआती अंदाज़ा यह है कि ग़ज़ा के पुनर्निर्माण में 8,000 करोड़े डॉलर का खर्च आएगा। यूएन डिवेलप्मेंट प्रोग्राम ने Università Iuav di Venezia के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके तहत एक नए ग़ज़ा का निर्माण होगा। इसमें पहले 50,000 लोगों के लिए एक ‘नूक्लीयस’ या केंद्रीय शहर बनेगा जिसके बाद बाहर की ओर बढ़ते हुए और निर्माण कार्य किया जाएगा। ग़ज़ा में लगभग 50 मिल्यन टन मलबा है जो इसकी दो-तिहाई इमारतों के तबाह कर देने से बना है (इसमें 92% रिहायशी इमारतें भी शामिल हैं), इसे साफ़ करने में सालों लग जाएँगे। इस मलबे में गुमशुदा फ़िलिस्तीनियों के शवों के साथ-साथ ऐसे बम भी दबे हैं जो फटे नहीं और साथ ही ज़हरीले पदार्थ भी: इन्हें बुलडोज़र से हटाकर ग़ज़ा पट्टी के एक कोने से दूसरे कोने तक ले जाना आसान नहीं।
फ़िलिस्तीनी संस्थानों के पास ग़ज़ा को फिर से बसा पाने के लिए धन नहीं है। खाड़ी के अरब देशों के पास पैसा है लेकिन मदद के बदले वे ज़रूर ही फ़िलिस्तीनी राजनीतिक समूहों से बहुत बड़ी राजनीतिक रियायतें माँगेगें। वे देश जो चाहते हैं कि फ़िलिस्तीनियों पर इतनी तबाही लाने के लिए इज़राइल को क़ीमत चुकानी चाहिए उनके पास इतनी राजनीतिक शक्ति नहीं है और न ही वे इज़राइल को हथियार देने वाले देशों (जैसे यूएस, यूनाइटेड किंडम और जर्मनी) को उनके हथियारों द्वारा लाई इस तबाही के लिए मुआवज़ा देने के लिए मजबूर कर सकते हैं।
जनसंहार करने वाले ग़ज़ा को अपने रियल एस्टेट के खेल का मैदान बनाना चाहते हैं। यूएस राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने कहा है ग़ज़ा एक ‘बेहतरीन जगह पर’ है जो फ़िलहाल एक ‘विशाल मलबे के ढेर’ की तरह लग रहा है, यही आँकलन फ़रवरी 2024 में उसके दामाद और मिडल ईस्ट स्ट्रैटेजी के सलाहकार जैरेड कुश्नर का था कि ग़ज़ा की ‘समुद्र से लगी ज़मीन की काफ़ी क़ीमत हो सकती है’। पिछले साल प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहु ने कहा था कि ग़ज़ा शहर सहित ग़ज़ा का उत्तरी भाग मलबे का ढेर ही रहेगा और इस पर क़ब्ज़ा कर लिया जाएगा जबकि बाक़ी ग़ज़ा पर इज़राइल का नियंत्रण रहेगा और इसके किनारे से लगे इलाक़ों को आबादी के बसने लायक़ बनाया जाएगा। सेट्लर मूव्मेंट से जुड़े लोग, जो फ़िलिस्तीनियों के जातीय संहार पर आमादा है और नेतान्याहु का राजनीतिक आधार भी, समुद्र तटों को हथियाने के लिए तैयार बैठे हैं और ख़ुद वहाँ बसना चाहते हैं। इस वक़्ती युद्धविराम के बावजूद फ़िलिस्तीनियों पर ग़ज़ा छोड़ देने का दबाव इसी तरह बना रहेगा।
इस भयावह घटना में फ़िलिस्तीनियों ने जो अपनी ज़िंदगी के साढ़े ग्यारह साल खोए हैं उसके बाद उन्हें जो भी मदद मिले वे उसे स्वीकार करने के लिए मजबूर हैं – ये नाकाफ़ी सा युद्धविराम भी। लेकिन वे इससे कहीं ज़्यादा के हक़दार हैं और उसे हासिल करने के लिए अपने संघर्ष को जारी रखेंगे।
इसलिए 27 जनवरी को ग़ज़ा में जगह-जगह शरण लिए हुए हज़ारों फ़िलिस्तीनियों ने उत्तर की दिशा में अपने घरों को लौटना शुरू किया। वे एक और नक़बा (तबाही) नहीं सहेंगे। अगर ज़रूरत पड़े तो वे अपने हाथों से इस मलबे से ही अपने लिए नए घर बनाएँगे।
सस्नेह,
विजय
P. S. ऊपर दिया गया ग्राफ़ ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान और ग्लोबल साउथ इन्सायट्स (GSI) की एक नए शृंखला – Facts – का हिस्सा है। हर महीने हम GSI के बिग डेटा सिस्टम द्वारा तैयार किए गए शोध पर आधारित एक नया चित्र पेश करेंगे।