माई हार्ट मेक्स माई हेड स्विम: 20वां न्यूज़लेटर (2024)
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
इस न्यूज़लेटर का शीर्षक, ‘माई हार्ट मेक्स माई हेड स्विम’, फ्रांत्ज़ फैनन की पुस्तक ‘ब्लैक स्किन, व्हाइट मास्क’ (1952) से लिया गया है। पुस्तक के ‘द फैक्ट ऑफ ब्लैकनेस’ नामक अध्याय में फैनन नस्लवाद से पैदा होने वाली निराशा के बारे में लिखते हैं, एक ऐसी दुनिया में रहने की जद्दोजहद जहां तय कर लिया गया है कि कुछ लोग इंसान ही नहीं हैं या पर्याप्त रूप से इंसान नहीं हैं। इन्हें भगवान की कमतर संतान माना जाता है, इन लोगों के जीवन को शक्तिशाली और संपत्तिवान लोगों के जीवन की तुलना में कम महत्त्व दिया जाता है। मानवता का एक अंतरराष्ट्रीय विभाजन दुनिया को टुकड़ों में तोड़ देता है, बड़ी संख्या में लोगों को पीड़ा और विस्मृति की आग में झोंक देता है।
ग़ज़ा के दक्षिणी शहर राफ़ा में जो हो रहा है, वह भयानक है। अक्टूबर 2023 से इज़रायल वाडी ग़ज़ा की आद्र भूमि से लेकर राफ़ा के किनारे तक इज़रायली सशस्त्र बलों द्वारा लगातार हमले बढ़ा कर ग़ज़ा के 23 लाख फ़िलिस्तीनियों को दक्षिण की ओर धकेल चुका है। इज़रायली सेना के किलोमीटर दर किलोमीटर आगे बढ़ने के साथ तथाकथित सुरक्षित क्षेत्र दक्षिण की ओर खिसकता जा रहा है। दिसंबर में इज़रायली सरकार ने बड़ी क्रूरता के साथ अल-मवासी के तम्बू शहर (जो कि राफ़ा के पश्चिम में भूमध्यसागर के किनारे पर है) को नया सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया था। मात्र 6.5 वर्ग किलोमीटर (लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे के आधे हिस्से के बराबर) का अल-मवासी क्षेत्र राफ़ा में रहने वाले दस लाख से अधिक फ़िलिस्तीनियों के रहने के लिए किसी भी रूप में पर्याप्त नहीं है। इज़रायल द्वारा यह कहना कि अल-मवासी शरणस्थल होगा, बेतुका तो था ही, बल्कि – युद्ध के कानूनों के अनुसार – अनुचित भी था चूँकि सुरक्षित क्षेत्र को लेकर सभी पक्षों में सहमति होनी चाहिए।
फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) के कमिश्नर-जनरल फिलिप लाज़ारिनी ने पूछा कि, ‘युद्ध क्षेत्र में कोई क्षेत्र कैसे सुरक्षित हो सकता है यदि उसे एक पार्टी द्वारा एकतरफा रूप से तय किया गया हो?’; ‘इससे केवल इस भ्रम को बढ़ावा दिया जा सकता है कि यह सुरक्षित होगा।’ इसके अलावा, कई मौक़ों पर, इज़रायल अल-मवासी पर, जिस क्षेत्र को वह सुरक्षित बताता है, बमबारी कर चुका है। 20 फरवरी को, इज़रायल ने डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स/मेडेकिन्स सैन्स फ्रंटियर्स द्वारा संचालित शिविर पर हमला किया, जिसमें संगठन-कर्मचारियों के परिवारों के दो सदस्यों की मौत हो गई। इस सप्ताह, 13 मई को इज़रायली सेना ने संयुक्त राष्ट्र के वाहन पर गोलीबारी की, जिसमें एक अंतरराष्ट्रीय संयुक्त राष्ट्र स्टाफ सदस्य की मौत हो गई। सहायताकर्मियों पर लक्षित बमबारी के अलावा ग़ज़ा में अब तक लगभग 200 संयुक्त राष्ट्र कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं।
इज़रायल ने न केवल राफ़ा पर बमबारी शुरू कर दी, बल्कि एकमात्र बॉर्डर पर क़ब्ज़ा करने के लिए टैंक भेज दिए, जहां से प्रतिदिन राहत सामग्री पहुंचाने वाले कुछ ट्रकों को आने-जाने की अनुमति मिलती थी। राफ़ा सीमा पर क़ब्ज़ा करने के बाद, इज़रायल ने ग़ज़ा में राहत सामग्री के प्रवेश को पूरी तरह से रोक दिया है। फ़िलीस्तीनियों को भूखा रखना लंबे समय से इज़रायल की नीति रही है, जो निश्चित रूप से एक युद्ध अपराध है। ग़ज़ा में सहायता न जाने देना मानवता के अंतरराष्ट्रीय विभाजन का हिस्सा है, जिससे ज़ाहिर होता है कि वहां किस तरह नरसंहार किया जा रहा है। इससे यह भी पता चलता है कि 1967 से पूर्वी येरुशलम, ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में फ़िलिस्तीनी भूमि पर क़ब्ज़े और 1948 के नक़बा (‘तबाही’) के बाद इज़रायल द्वारा चिह्नित सीमाओं के भीतर रंगभेद जारी है।
उपरोक्त वाक्य में, रंगभेद, क़ब्ज़ा और नरसंहार, ऐसे तीन शब्द ऐसे हैं जिन पर इज़रायल ऐतराज करता है। इज़रायल और उसके वैश्विक उत्तर (ग्लोबल नॉर्थ) के सहयोगी यह दावा करना चाहते हैं कि इज़रायली नीतियों, यहूदीवाद या फ़िलिस्तीनियों के उत्पीड़न की चर्चा करने के लिए इन शब्दों का उपयोग यहूदी-विरोधीवाद के समान है। लेकिन, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र और कई सम्मानित मानवाधिकार समूहों ने नोट किया है, ये तीन शब्द ज़मीनी हक़ीक़त का बयान करते हैं, न कि जल्दबाज़ी में लिया गया नैतिक निर्णय या यहूदी-विरोधी भावना। खंडन के उनके दावों का प्रतिकार करने के लिए इन तीन अवधारणाओं पर समझ बनाना आवश्यक है।
रंगभेद: इज़रायली सरकार 1948 में घोषित (21%) सीमाओं के भीतर रहने वाली फ़िलिस्तीनी अल्पसंख्यक आबादी को दूसरे दर्जे का नागरिक मानती है। कम से कम पैंसठ इज़रायली क़ानून इज़रायल के फ़िलिस्तीनी नागरिकों से भेदभाव करते हैं। उनमें से 2018 में पारित हुआ एक क़ानून, देश को ‘यहूदियों का राष्ट्र’ घोषित करता है। इज़रायली दार्शनिक ओमरी बोहम ने लिखा है, यह नया क़ानून दर्शाता है कि इज़रायल सरकार ‘इज़रायल की मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर रंगभेद के तरीक़ों’ के उपयोग का ‘औपचारिक रूप से समर्थन’ करती है। संयुक्त राष्ट्र और ह्यूमन राइट्स वॉच दोनों ने कहा है कि फ़िलिस्तीनियों के साथ इज़रायल का व्यवहार रंगभेद की परिभाषा के अंतर्गत आता है। इस शब्द का प्रयोग पूर्णतः तथ्यात्मक है।
क़ब्ज़ा: 1967 में इज़रायल ने पूर्वी येरुशलम, ग़ज़ा और वेस्ट बैंक के तीन फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर लिया। 1967 से 1999 तक, इन तीन क्षेत्रों को अधिकृत अरब क्षेत्र बताया गया (जिनमें अलग-अलग समय पर मिस्र का सिनाई प्रायद्वीप, सीरिया का गोलान क्षेत्र और दक्षिणी लेबनान भी शामिल थे)। 1999 से, इन्हें अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र (ओपीटी) कहा जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के दस्तावेज़ों और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में इज़रायल को ‘क़ब्ज़ा’ करने वाली शक्ति’ बताया जाता है, जिसके तहत इज़रायल को उन लोगों के प्रति कुछ दायित्वों का पालन करना चाहिए जिन पर उसने क़ब्ज़ा किया है। हालांकि 1993 के ओस्लो समझौते ने फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण की स्थापना की, लेकिन इज़रायल आज भी ओपीटी पर कब्ज़ा करने वाली शक्ति घोषित है, इस संबोधन को संशोधित नहीं किया गया है। क़ब्ज़ा औपनिवेशिक शासन की तरह होता है: जहां एक विदेशी शक्ति लोगों की मातृभूमि पर उनका शोषण करती है और उन्हें संप्रभुता व अधिकारों से वंचित कर देती है। 2005 में ग़ज़ा से इज़रायल की सैन्य वापसी (जिसमें इक्कीस अवैध बस्तियों को नष्ट करना शामिल था) के बावजूद इज़रायल ने ग़ज़ा पट्टी के चारों ओर एक बाड़ का निर्माण करके और ग़ज़ा के भूमध्यसागरीय जल पर नियंत्रण करके ग़ज़ा पर अपना क़ब्ज़ा बरक़रार रखा है। पूर्वी येरुशलम और वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों पर क़ब्ज़ा और ग़ज़ा पर समय-समय पर बमबारी, क़ब्ज़े करने वाली शक्ति के रूप में इज़रायल के दायित्वों का उल्लंघन है।
कब्ज़ा, अधिकृत जनता पर हिंसा की संरचनात्मक स्थिति थोपता है। इसीलिए अंतरराष्ट्रीय क़ानून मानता है कि जिन लोगों पर क़ब्ज़ा हुआ है उन्हें विरोध करने का अधिकार है। 1965 में, पुर्तगाली उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ गिनी बिसाऊ के संघर्ष के बीच, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव 2105 (‘औपनिवेशिक देशों और लोगों को स्वतंत्रता देने की घोषणा का कार्यान्वयन’) पारित किया था। इस संकल्प का पैराग्राफ 10 ध्यान से पढ़ने लायक है: ‘महासभा… [आर] औपनिवेशिक शासन के तहत लोगों द्वारा आत्मनिर्णय और स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग करने के लिए संघर्ष की वैधता को मान्यता देती है और सभी राज्यों को औपनिवेशिक क्षेत्रों में राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों के लिए सामग्री व नैतिक सहायता प्रदान करने हेतु आमंत्रित करती है। इसमें कोई अस्पष्टता नहीं है। जिन लोगों पर क़ब्ज़ा हुआ है उन्हें विरोध करने का अधिकार है, और संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों को उनकी सहायता करने का भी आदेश है। क़ब्ज़ा करने वाली, और इस समय आक्रामक नरसंहार कर रही शक्ति को हथियार बेचने के बजाय संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों – विशेष रूप से वैश्विक उत्तर के देशों – को फ़िलिस्तीनियों की सहायता करनी चाहिए।
नरसंहार: 26 जनवरी को प्रकाशित अपने आदेश में, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने कहा था कि ‘यह स्वीकार किया जा सकता है’ कि इज़रायल फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार कर रहा है। मार्च में, क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीनी क्षेत्र (ओपीटी) में मानवाधिकारों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत फ्रांसेस्का अल्बानीज़ ने ‘एनाटॉमी ऑफ़ ए जेनोसाइड’ नामक एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इस रिपोर्ट में अल्बानीज़ ने लिखा है कि ‘यह मानने के उचित आधार हैं कि इज़रायल नरसंहार कर रहा है’। उन्होंने लिखा, ‘पर्याप्त संकेत हैं कि फ़िलिस्तीन में इज़राइल की कार्रवाई उसकी उपनिवेशवादी-औपनिवेशिक परियोजना में निहित नरसंहार के तर्क से प्रेरित है, जो एक त्रासदी की भविष्यवाणी का संकेत है।’
इज़रायली बमबारी के संदर्भ में नरसंहार का इरादा आसानी से साबित हो जाता है। अक्टूबर 2023 में इज़रायल के राष्ट्रपति इसहाक हर्ज़ोग ने कहा कि 7 अक्टूबर के हमलों के लिए ‘एक पूरा देश ज़िम्मेदार है’, और यह सच नहीं है कि ‘नागरिक जागरूक नहीं थे, शामिल नहीं थे।’ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने अन्य बातों के अलावा, इस कथन की ओर भी इशारा किया, क्योंकि यह इज़रायल के ‘सामूहिक दंड’ देने के इरादे को दर्शाता है। उसके अगले महीने, इज़रायल के येरुशलम मामलों और विरासत मंत्री अमीचाई एलियाहू ने कहा कि ग़ज़ा पर परमाणु बम गिराना ‘एक विकल्प’ है क्योंकि ‘ग़ज़ा में कोई गैर-लड़ाकू नहीं हैं’। आईसीजे का फ़ैसला प्रकाशित होने से पहले, प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की लिकुड पार्टी के सांसद मोशे सादा ने कहा कि ‘सभी ग़ज़ावासियों को नष्ट कर दिया जाना चाहिए’। ये भावनाएं, किसी भी अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुसार, नरसंहार करने के इरादे को ज़ाहिर करती हैं। ‘रंगभेद’ और ‘क़ब्ज़े’ की तरह, ‘नरसंहार’ शब्द का उपयोग भी पूरी तरह से सटीक है।
इस साल की शुरुआत में, इंकानी बुक्स, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के दक्षिण अफ्रीका में स्थित एक प्रोजेक्ट, ने फैनन की ‘द रेचेड ऑफ द अर्थ’ पुस्तक का इसीज़ुलु (अफ़्रीका के दक्षिणी भाग में लगभग एक करोड़ लोगो द्वारा बोली जाने वाली भाषा ) अनुवाद प्रकाशित किया। ‘इज़म्पाबंगा ज़ोम्लाबा‘ के शीर्षक से अनूदित इस पुस्तक का अनुवाद मखोसाज़ाना ज़ाबा ने किया था। हमें इस उपलब्धि पर बहुत गर्व है, फैनन के काम को एक अन्य अफ्रीकी भाषा में लाया जा रहा है (इसके पहले पुस्तक का अरबी और स्वाहिली में अनुवाद किया जा चुका है)।
जब मैं पिछली बार फ़िलिस्तीन में था, तब मैंने छोटे बच्चों से उनकी आकांक्षाओं के बारे में बात की थी। उन्होंने मुझे जो बताया उससे मुझे ‘द रेचेड ऑफ द अर्थ‘ का एक खंड याद आ गया: ‘बारह या तेरह साल की उम्र में गांव के बच्चे उन बूढ़ों के नाम जानते हैं जिन्होंने पिछले विद्रोह में भाग लिया था, और शिविर में या अपने गांवों में वो जो सपने देखते हैं, उनमें शहरी बच्चों की तरह, पैसा, या किसी परीक्षा में पास होना आदि नहीं होता, बल्कि वे किसी न किसी विद्रोही के साथ अपनी पहचान के सपने देखते हैं, जिनकी वीरतापूर्ण मृत्यु की कहानी आज भी उनकी आँखें भर देती है।’
ग़ज़ा के बच्चे इस नरसंहार को कम से कम उसी शिद्दत से याद रखेंगे जैसे उनके पूर्वजों को 1948 याद था और जैसे उनके माता-पिता को उस क़ब्ज़े की याद है, जो उनके अपने बचपन से ज़मीन के इस छोटे से टुकड़े पर जारी है। दक्षिण अफ़्रीका के बच्चे इसिज़ुलु में फैनन की इन पंक्तियों को पढ़ेंगे और उन लोगों को याद करेंगे जो तीस साल पहले एक नए दक्षिण अफ़्रीका का निर्माण करने के लिए आए थे।
स्नेह-सहित,
विजय