प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
छोटे बच्चे पूँजीवादी समाजों के स्पष्ट विरोधाभास के बारे में बेहद अचम्भित होकर पूछते हैं: हमारे पास खाने के सामानों से भरी दुकानें होने के बावजूद हम क्यों सड़कों पर भूखे लोग देखते हैं? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है; लेकिन युवा मन की साफ़ समझ को भ्रमित करने के लिए विभिन्न स्पष्टीकरणों का उपयोग किया जाता है, और समय के साथ–साथ उनका यह सवाल नैतिक महत्वाकांक्षा के कोहरे में ग़ायब हो जाता है। सबसे ज़्यादा उलझन में डालने वाला जवाब होता है कि भूखे लोग इसलिए भूखे रहते हैं क्योंकि उनके पास पैसे नहीं है, और किसी तरह से धन का अभाव –मानवीय रचनाओं में से सबसे रहस्यमयी निर्मिति– लोगों को भूखा रहने देने के लिए पर्याप्त कारण बन जाता है। चूँकि सभी लोगों के खाने के लिए पर्याप्त खाद्य पदार्थ उपलब्ध हैं, और चूँकि बहुत से लोगों के पास भोजन ख़रीदने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है, इसलिए खाने के सामानों को भूखे लोगों से बचाया जाना चाहिए।
इसका मतलब है कि हम –मनुष्य के रूप में– भूखे लोगों से खाद्य पदार्थों की रक्षा करने के लिए पुलिस बलों को हिंसा के उपयोग की अनुमति देते हैं। पत्रकार की हैसियत से अपनी शुरुआती रिपोर्टों में से एक में, कार्ल मार्क्स ने राइनलैंड के किसानों पर की जाने वाली हिंसा के बारे में लिखा, जो आग जलाने के लिए गिरी हुई लकड़ियाँ जंगल से बटोर कर लाते थे। मार्क्स ने लिखा, किसानों को इसकी सज़ा (मौत तक) पता है, लेकिन वे बस अपना अपराध नहीं जानते। वे नहीं जानते थे कि किस कारण से उन्हें पीटा और जान से मारा जा रहा है? जंगल में से ख़ुद–ब–ख़ुद टूटकर नीचे गिर चुकी लकड़ियाँ बटोरना आपराधिक कार्य के रूप में नहीं देखा जा सकता, और न ही किसी भूखे व्यक्ति द्वारा खाना खोजने की बुनियादी मानवीय ज़रूरत को अपराध की तरह देखा जा सकता है। लेकिन फिर भी, श्रेणियों में बँटे हुए समाज का अधिकतम सामाजिक धन, पुलिस से लेकर सेना जैसे बड़े–बड़े दमनकारी संस्थानों के निर्माण में झोंका जाता है।
आप सोचेंगे कि महामारी के बीच, जब रोज़गार ख़त्म हो रहे हैं और भुखमरी बढ़ रही है, सामाजिक धन पुलिस और सैन्य बलों पर ख़र्च करने के बजाये भुखमरी मिटाने पर ख़र्च किया जाएगा, लेकिन वर्गों में विभाजित समाज में ऐसे काम नहीं होता। जुलाई में, खाद्य और कृषि संगठन (एफ़एओ) और अन्य संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने एक रिपोर्ट –द स्टेट ऑफ़ फ़ूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड– जारी की है, जिससे पता चलता है कि 2014 से पहले विश्व स्तर पर भुखमरी के आँकड़े कम हो रहे थे; उसके बाद से भूखे लोगों की संख्या नाटकीय रूप से बढ़ी, और अब ग्रेट लॉकडाउन के बाद से ये संख्या गुणात्मक रूप से बढ़ रही है। दुनिया के भूखे लोगों में से आधे एशिया में रहते हैं, और इनमें से अधिकतम भारत में। लगभग तीस करोड़ लोग पौष्टिक आहार नहीं खा पाते। खाद्य भंडार थोड़े समय के लिए खोले जाते हैं, और मामूली–सी राहत सामग्री वितरित की जाती है। भूख की महामारी से प्रभावित लोग भोजन की माँग करने या खाद्य सुरक्षा के अपने अधिकारों का बचाव करने के लिए जब सड़कों पर उतरते हैं, तो उन्हें राज्य की दमनकारी हिंसा का सामना करना पड़ता है।
अगस्त 2020 में, दक्षिण अफ़्रीका के हमारे कार्यालय ने डोसियर संख्या 31 ‘ख़ून की राजनीति’: दक्षिण अफ़्रीका में राजनीतिक दमन प्रकाशित किया; यह महत्वपूर्ण लेख एक दर्दनाक तथ्य उजागर करता है: कि रंगभेद युग में स्थापित हुए राज्य के हिंसक संस्थान, रंगभेद के बाद के दक्षिण अफ़्रीकी राज्य में 1994 से ही क़ायम रहे हैं। रंगभेद (अपार्थाइड) से लोकतंत्र में परिवर्तन के दौरान ‘आम जनता की भागीदारी पर आधारित लोक–सम्मत लोकतांत्रिक शक्ति बनाने के लिए लाखों–लाख लोगों द्वारा किए जा रहे संघर्ष को चुनावों, अदालतों व एक स्वतंत्र लाभोन्मुख प्रेस में बदल दिया गया और जन–संगठनों के लोकतांत्रिक रूपों को ग़ैर–सरकारी संगठनों में, या आज की भाषा में ‘नागरिक समाज’ में बदल दिया गया।’ रंगभेद के बाद, ‘जनता के संगठित होने के स्वतंत्र तरीक़ों और लोकतंत्र में अधिक भागीदारी करने की जनता की माँग को अक्सर आपराधिक माना जाता था।’ डोसियर से पता चलता है कि हालात इतने दमनकारी हैं कि दक्षिण अफ़्रीका में, ‘पुलिस ज़्यादातर ग़रीबों, वंचितों और अश्वेतों को मारती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में पुलिस के द्वारा मारे गए लोगों की तुलना में इन हत्याओं की प्रति व्यक्ति दर तीन गुना ज़्यादा है।’ ये आँकड़े जितने चौंकाने वाले हैं उतने ही घिनौने और ख़ौफ़नाक हैं दमन के लिए अपनाए जाने वाले हिंसक तरीक़े।
दक्षिण अफ़्रीका में, जन–संगठनों –ट्रेड यूनियनों और झोंपड़ी–वासियों के संगठनों– के ख़िलाफ़ दमन महामारी के दौरान भी कम नहीं हुआ है। इन बीते महीनों में लगभग 3,00,000 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है; सार्वजनिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगे हैं, जिसका अर्थ है कि जनता राज्य की क्रूर हिंसा का मज़बूती से विरोध नहीं कर पा रही है। दमन के प्रमुख जगहों में से एक है डरबन, जहाँ झोंपड़ी–वासियों के आंदोलन –अबाहलाली बासेमजोंडोलो– के नेतृत्व में भूमि पर क़ब्ज़े किए गए, और जहाँ स्थानीय सरकार इन नयी बस्तियों में बसे लोगों के ख़िलाफ़ कठोर हिंसक रवैया अपनाती रही है। उदाहरण के लिए, 28 जुलाई को अफ़्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाली नगरपालिका ने काटो मनोर में ईखेनाना बस्ती पर हमला किया। ईखेनाना ऐतिहासिक रूप से लोगों द्वारा शुरू की गई श्रमिक बस्ती है, जो 1959 में उस जगह से शुरू हुई थी जहाँ डोरोथी न्येम्बे और फ्लोरेंस म्हाइज़ जैसी महिलाओं ने रंगभेदी व्यवस्था के ख़िलाफ़ विद्रोह शुरू किया था, और जिस विद्रोह को अफ़्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस का भारी समर्थन भी मिला था। वो सब कुछ अब भुलाया जा चुका है, और निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के अदालत के आदेशों के बावजूद, उन्हें उनके घरों, उनकी शहरी कृषि परियोजना, और खाद्य संप्रभुता प्रदान करने वाले उनके सहकारिता से उन्हें बेदख़ल करने के लिए राज्य की हिंसा का इस्तेमाल किया गया।
ईखेनाना बस्ती में अबहलाली आंदोलन के परचम के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता के उनके लोकाचार के कारण वहाँ ब्राज़ील के भूमिहीन श्रमिकों के आंदोलन, Movimento dos Trabalhadores Rurais Sem Terra (MST) का झंडा भी लहराता था। पिछले हफ़्ते, ब्राज़ील में, क्विलम्बो कैंपो ग्रांडे समुदाय के ख़िलाफ़ राज्य हिंसा की निर्ममता खुलकर सामने आई। सैन्य पुलिस का साठ घंटे तक प्रतिरोध करते रहने के बाद, कैंप के निवासियों को उनके द्वारा बनाई गई जगह से हटना पड़ा। नोम चॉम्स्की और मैंने समुदाय के परिवारों के लिए एकजुटता भरा संदेश लिखा, जो नीचे दिया गया है।
क्विलम्बो कैंपो ग्रांडे से 450 परिवारों के निष्कासन पर नोम चॉम्स्की और विजय प्रसाद का बयान
12 अगस्त को मिनस गेरैस के गवर्नर रोमू जेमा ने 22 साल पुराने कैंप क्विलम्बो कैंपो ग्रांडे के 450 परिवारों को वहाँ से बेदख़ल करने के लिए सैन्य पुलिस भेजी। तीन दिनों के लिए उन्होंने कैंप घेरकर रखा, और परिवारों को डराया धमकाया, ताकि वे ख़ुद अपनी ज़मीन छोड़कर चले जाएँ, लेकिन भूमिहीन परिवार प्रतिरोध करते रहे। 14 अगस्त को आँसू गैस और साउंड ग्रेनेड का इस्तेमाल करके पुलिस जीत गई। उन्होंने एक समुदाय को उजाड़ दिया, जो अपने घर बना चुका था और (कैफ़े गुआई के नाम से बिकने वाली कॉफ़ी सहित) जैविक फ़सलें उगाता था। 1996 में, भूमिहीन श्रमिक आंदोलन (MST) द्वारा संगठित परिवारों ने एक परित्यक्त चीनी मिल (एरिआडनोपोलिस, जिसपर अज़ीवेदो ब्रधर्ज़ ऐग्रिकल्चरल कम्पनी का स्वामित्व था) पर क़ब्ज़ा किया था। ब्राज़ील के सबसे बड़े कॉफ़ी उत्पादकों में से एक, जोआओ फारिया दा सिल्वा की कम्पनी, जोडिल ऐग्रिकल्चरल होल्डिंग्स, उनको वहाँ से हटाना चाहती थी ताकि वह वहाँ के सहकारी उत्पादन पर क़ब्ज़ा कर सके।
गवर्नर और सैन्य पुलिस ने अपमान करने के दृष्टि से एडुआर्डो गैलेआनो पॉपुलर स्कूल को नष्ट कर दिया, जिसमें बच्चों और वयस्कों को शिक्षित किया जाता था। दक्षिण अमेरिका की अंतरात्मा एडुआर्डो गैलेआनो (1940-2015) के साथी होने के नाते, हम इस निष्कासन और तोड़–फोड़ से ख़ास तौर पर दुखी हैं।
ये निष्कासन बिशप पेड्रो कैसालडलीगा (1928-2020) की मृत्यु के कुछ ही दिनों के बाद किया गया, जिनका जीवन वंचितों की मुक्ति के संघर्षों को समर्पित रहा था। यह निष्कासन उनकी यादों का अपमान करता है। ऐसे व्यक्ति की यादों का जो गाते थे कि:
मैं [ऐसी] अंतर्राष्ट्रीयता में विश्वास रखता हूँ
जहाँ सबके सर हों ऊँचे
जहाँ आपस में बात हो बराबरों की तरह
और जहाँ हाथ हों एकजुट।
जीने का यही तरीक़ा है, हाथों में हाथ लिए, न कि सैन्य पुलिस द्वारा किसानों पर आँसू गैस, बम और गोलियाँ बरसाते जाना।
हम परिवारों के निष्कासन और उनकी भूमि और उनके स्कूल के विनाश की निंदा करते हैं। हम क्विलम्बो कैंपो ग्रांडे के परिवारों के साथ हैं।
1955 में जोहानेसबर्ग (दक्षिण अफ़्रीका) के एलेक्जेंड्रा में एक कारख़ाना–मज़दूर और कवि बेंजामिन मोलोइस का जन्म हुआ। वह उस समय प्रतिबंधित अफ़्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस (एएनसी) में शामिल हो गए और कविताएँ लिखने लगे। 1982 में, मोलोइस पर एक वारंट अधिकारी फिलिपिस सेलेपे की हत्या करने का आरोप लगा। लुसाका (जाम्बिया) के एएनसी नेताओं ने स्वीकार किया कि उन्होंने सेलेपे को मारने का आदेश दिया था, लेकिन साथ ही ये भी कहा कि मोलोइस ने उन्हें नहीं मारा था। मोलोइस को मुक्त करने के लिए चला अंतर्राष्ट्रीय अभियान भी मोलोइस की हत्या करने के रंगभेदी सरकार के इरादे को कमज़ोर नहीं कर पाया। 18 अक्टूबर 1985 को उनकी फाँसी के दिन, पॉलीन मोलोइस –बेंजामिन की माँ– उनसे बीस मिनट के लिए मिलीं। उन्होंने अपनी माँ को बताया कि उन्होंने सेलेपे को नहीं मारा और कहा ‘लेकिन मुझे अपने दोषी ठहराए जाने पर पछतावा नहीं है। लोगों से कहना कि संघर्ष जारी रहना चाहिए।‘ लगभग चार हज़ार लोगों ने जोहानेसबर्ग के अलग–अलग हिस्सों में उनकी मृत्यु पर शोक व्यक्त किया था। मयिहलोमे के नारे के साथ लोगों ने रंगभेद के ख़िलाफ़ अपने संघर्ष को तेज़ करने के लिए सशस्त्र आह्वान किया।
जुलाई के मध्य में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि दक्षिण अफ़्रीका में पाँच में से दो वयस्कों का कहना है कि उनके घर में 27 मार्च 2020 –जब देश में लॉकडाउन शुरू हुआ था– के बाद से आजीविका का मुख्य स्रोत ख़त्म हो गया है। भुखमरी पर इसका नाटकीय प्रभाव पड़ा है, लोगों को भुखमरी से बचाने के लिए सरकार की नीतियाँ नगण्य हैं। लोगों की बस्तियाँ उजाड़ने और उनके खेतों को तबाह करने के लिए हथियारों से लैस पुलिस बलों को भेजने की बजाये, किसी भी सरकार के लिए ये कहीं बेहतर होगा कि वो स्थानीय निकायों के साथ मिलकर आवश्यक वस्तुओं के वितरण की कारगर व्यवस्था करे। यहीं से सारी गड़बड़ी शुरू होती है: निजी संपत्ति की सुरक्षा इन सरकारों के लिए जीवन की सुरक्षा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। जकारांदा के पेड़ों से घिरे हुए एक ठंडे जेल में फाँसी लगने से ठीक पहले मोलोइस ने कहा था ‘लोगों से कहना कि संघर्ष जारी रहना चाहिए।’
स्नेह–सहित,
विजय।