प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
18 अगस्त को बमको (माली) के बाहर काटी बैरक के सैनिकों ने राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबकर केइता (आईबीके) और प्रधान मंत्री बाउबो सीसे को गिरफ़्तार कर लिया और नेशनल कमेटी फ़ॉर द साल्वेशन ऑफ़ द पीपल (सीएनएसपी) स्थापित कर दी। 1968 और 2012 में हुए सैन्य तख़्तापलट के बाद माली में यह तीसरा तख़्तापलट है। इस तख़्तापलट को अंजाम देने वाले कर्नलों –मलिक डीयव, इस्माईल वागुए, अस्सिमि गोएता, सादियो कमारा और मोदिबो कोन– ने कहा है कि माली में जैसे ही विश्वसनीय चुनाव कराए जाने की संभावना बनेगी वे सत्ता छोड़ देंगे। ये वे लोग हैं जिन्होंने फ़्रांस से रूस तक सैन्य बलों के साथ काम किया है, और 2012 में कैप्टन अमादौ सनोगो के नेतृत्व में तख़्तापलट करने वाले नेताओं के विपरीत ये लोग चालाक क़िस्म के राजनयिक हैं; वे अभी से ही मीडिया के साथ पैंतरेबाज़ी करके अपना कौशल दिखा चुके हैं।
एल’असोसीएशन पोलिटिक फ़ासो कानू के इब्राहिमा केबे ने कहा, ‘आईबीके ने अपनी क़ब्र अपने ही दाँतों से खोदी है।’ आईबीके एक अनुभवी राजनीतिज्ञ थे, जो 2013 में तब सत्ता में आए थे, जब माली ऑपरेशन सर्वल नामक फ़्रांसीसी सैन्य हस्तक्षेप के कारण अपनी संप्रभुता खो चुका था। फ़्रांसीसियों का दावा था कि उन्होंने माली के उत्तरी इलाक़े को इस्लामी हमले से बचाने के लिए ये हस्तक्षेप किया था। वास्तव में, माली की बिगड़ती परिस्थिति की कई वजहें हैं, जिनमें फ़्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा 2011 की शुरुआत में –नाटो के माध्यम से– लीबिया को नष्ट करने का निर्णय भी शामिल है। लीबिया के युद्ध ने अफ़्रीका के साहेल क्षेत्र को कमज़ोर कर दिया। पहले से ही आर्थिक संकटों और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के दबाव से कमज़ोर हो चुके इस क्षेत्र के देश, अब ख़ुद को फ़्रांसीसी और अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेपों से बचा पाने में असमर्थ हो गए हैं।
माली ने 1960 में बड़ी उम्मीदों के साथ अपनी स्वतंत्रता हासिल की थी। माली के पहले राष्ट्रपति –मोदीबो केइता– ने देश को समाजवादी और अखिल–अफ़्रीकी उद्देश्य की ओर आगे बढ़ाया। केइता का शासनकाल आयात को कम करने वाली आर्थिक नीतियों और सामाजिक वस्तुओं के लिए सार्वजनिक उपक्रम करने वाले ईमानदार प्रशासन के रूप में जाना जाता है। लेकिन माली अपने सकल घरेलू उत्पाद के आधे से भी अधिक के लिए एक फ़सल (कपास) पर निर्भर था, उसके पास प्रसंस्करण और उद्योग बहुत कम विकसित था और ऊर्जा का लगभग कोई स्रोत नहीं था (पूरा तेल आयात किया जाता है, और काइज़ और सोतुबा में बहुत साधारण पनबिजली संयंत्र हैं)। माली के उत्तरी भाग में ख़राब मिट्टी और पानी की कमी से कृषि प्रभावित होती है; और समुद्र से दूर होने के चलते माली के लिए अपने कृषि उत्पादों को बाज़ार तक ले जाना मुश्किल है। इसके अलावा, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका की कपास सब्सिडी व्यवस्था, अर्थव्यवस्था को विकसित करने के माली के सभी प्रयासों को विफल कर देता है। 1968 में साम्राज्यवादियों द्वारा समर्थित तख़्तापलट ने केइता को हटा दिया (नौ साल बाद जेल में उनके मृत्यु हो गई); मिलिट्री कमेटी फ़ॉर नेशनल लिबरेशन के नाम से स्थापित हुई नयी सरकार ने समाजवादी और अखिल–अफ़्रीकी नीतियाँ ख़त्म कर ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं और कम्युनिस्टों का दमन शुरू कर दिया, और माली को फिर से फ़्रांसीसी प्रभाव–क्षेत्र में बदल दिया। 1973 के सूखे और 1980 में आईएमएफ़ के प्रवेश के साथ देश में संकट का चक्र शुरू हो गया, जो मार्च 1991 के लोकतांत्रिक विद्रोह के साथ रुका। इन विरोध प्रदर्शनों के बाद, अल्फा ओमर कोनरे के नेतृत्व वाली अलाइयन्स फ़ॉर डेमोक्रेसी इन माली (एडेमा) की जीत हुई।
कोनरे की सरकार को 3 बिलियन डॉलर से अधिक का आपराधिक ऋण विरासत में मिला। माली की राजकोषीय प्राप्तियों का साठ प्रतिशत हिस्सा ऋण चुकाने में ख़र्च होता रहा। वेतन देना मुश्किल था; कुछ भी करना मुश्किल था। कोनरे, जिन्होंने अपनी युवावस्था में राजनीति की शुरुआत एक मार्क्सवादी के रूप में की थी, लेकिन उदारवादी विचारधारा के साथ राष्ट्रपति बने थे, ने ऋण माफ़ी के लिए अमेरिका से अनुरोध किया। इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ। माली सरकार का क़र्ज़ बढ़ने के साथ-साथ, सरकार ईमानदार नौकरशाही को काम पर रखने में उतनी सक्षम नहीं थी; और सरकार लगातार भ्रष्ट होती चली गई। फ़्रांस और अमेरिका को भ्रष्ट सरकार से परहेज़ नहीं था, क्योंकि भ्रष्ट सरकार का मतलब है, विदेशी गोल्ड माइनिंग फ़र्मों –जैसे कि कनाडा की बैरिक गोल्ड और यूके की हमिंगबर्ड रिसोर्सेज़– के लिए माली के स्वर्ण–भंडारों को कम क़ीमतों पर बेचने वाले वार्ताकारों की आसान उपलब्धता। माली में होने वाली हर घटना के पीछे उसके स्वर्ण भंडार हैं; दुनिया में सोने का तीसरा सबसे बड़ा भंडार माली के पास है। तख़्तापलट के एक दिन बाद छपे रॉयटर के एक लेख से इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है; लेख का शीर्षक था, ‘तख़्तापलट के बावजूद माली के सोना खदानों में खुदाई जारी है।’
अपनी स्वतंत्रता के बाद से माली अब तक फ़्रांस के मुक़ाबले अपने दो गुना बड़े क्षेत्र को एकीकृत करने की कोशिशें करता रहा है। ट्वारेग समुदायों ने 1962 में स्वायत्तता की माँग करते हुए इडुरार एन अहागर पहाड़ों में और अल्जीरिया, लीबिया, नाइजर और माली के बीच अपनी भूमि को विभाजित करने वाली सीमाओं का सम्मान करने से इनकार करते हुए विद्रोह शुरू कर दिया। एक सदी से ख़राब हो रही रेगिस्तान के चारों ओर की भूमि, 1968, 1974, 1980 और 1985 के सूखे के बाद और भी ख़राब हो गई। इससे ट्वारेग समुदायों का ग्रामीण जीवन सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ। बहुत से लोगों को आजीविका की तलाश में माली के शहरों में जाना पड़ा और लीबिया की सेना व असंगठित श्रम क्षेत्र में शामिल होना पड़ा। 1991 और 2006 में माली और ट्वारेग विद्रोहियों के बीच हुए शांति समझौते माली की (आईएमएफ़ के दबाव के कारण सैनिकों के वेतन में हुई कटौतियों की वजह से) कमज़ोर सेना के चलते और अल्जीरिया से निष्कासित विभिन्न इस्लामिक समूहों के इस क्षेत्र में आ जाने के कारण कारगर नहीं रहे।
तीन इस्लामिक दलों –इस्लाम और मुस्लिमों के समर्थन का समूह (जेएनआईएम), ग्रेटर सहारा की इस्लामिक स्टेट (आईएसजीएस), और इस्लामिक मग्रेब में अल–क़ायदा (एक़्यूआईएम)- ने गठबंधन कर 2012-13 में उत्तरी माली पर क़ब्ज़ा कर लिया। ये सभी समूह, विशेष रूप से एक़्यूआईएम, सहारा क्षेत्र में (कोकीन, हथियार, मानव) तस्करी नेटवर्क का हिस्सा थे, और अपहरण व संरक्षण रैकट्स के ज़रिये राजस्व जुटाते थे। इन समूहों द्वारा पैदा किए गए ख़तरे का उपयोग फ़्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका ने मॉरिटानिया से लेकर चाड तक सभी साहेल देशों में अपने सैनिक भेजने के लिए किया। मई 2012 में, फ़्रांस ने इस क्षेत्र में हस्तक्षेप करने की योजना को मंज़ूरी दी; जो कि दिसंबर 2012 के संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव 2085 के पीछे छिपी रही। जी 5 साहेल समझौते ने बुर्किना फासो, चाड, माली, मॉरिटानिया और नाइजर को फ़्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका के सुरक्षा एजेंडे के अधीन कर दिया। फ़्रांसीसी सैनिकों ने माली में अपने पुराने औपनिवेशिक अड्डे टेसालिट को गढ़ बनाया, और अमेरिका ने एजेडेज़ (नाइजर) में दुनिया का सबसे बड़ा ड्रोन बेस बना लिया। उन्होंने इन अफ़्रीकी देशों की संप्रभुता से समझौता करते हुए, यूरोप की प्रभावी दक्षिण सीमा के रूप में, सहारा के दक्षिण में, पूरे साहेल क्षेत्र के साथ एक दीवार बना दी।
मार्च 2020 से इब्राहिम बाउबकर केइता (आईबीके) के फिर से चुने जाने के ख़िलाफ़ विरोध बढ़ रहा था; ट्रेड यूनियन, राजनीतिक दल और धार्मिक समूह सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे थे। मीडिया का ध्यान (‘माली के ख़ुमैनी’ कहे जाने वाले) करिश्माई सलफ़ी उपदेशक महमूद डिको पर केंद्रित रहा; लेकिन डिको सड़कों पर दिख रही जन–शक्ति का केवल एक हिस्सा मात्र थे। 5 जून को, इन संगठनों –जैसे कि मूवमेंट एस्पायर माली कॉउरा, फ़्रंट पोर डि सौवेगार्ड दे ला डेमोक्रेटि डिको के अपने संगठन– ने बमको के इंडिपेंडेंस स्क्वायर में जन–प्रतिरोध का आह्वान किया। उन्होंने मूवमेंट ऑफ़ 5 जून– रैली ऑफ़ पेट्रीआटिक फ़ॉर्सेज़ (एम5-आरएफ़पी) का गठन किया, जो लगातार आईबीके पर इस्तीफ़ा देने के लिए दबाव देती रही। 23 हत्याओं के बाद भी राज्य की हिंसा विरोध–प्रदर्शनों को नहीं रोक पाई। विरोध प्रदर्शनों में न केवल आईबीके के इस्तीफ़े की माँग की जा रही थी, बल्कि औपनिवेशिक हस्तक्षेप को समाप्त करने और माली की (राज्य) प्रणाली के पूर्ण परिवर्तन की माँग उठ रही थी। एम5-आरएफ़पी ने शनिवार, 22 अगस्त को एक रैली की योजना बनाई थी; सेना ने मंगलवार 18 अगस्त को तख़्तापलट कर दिया। लेकिन सड़कों पर विरोध अब भी जारी है, और तख़्तापलट करने वालों को ये पता है।
फ़्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र, अफ़्रीकी संघ और क्षेत्रीय समूह (इकोनॉमिक कम्यूनिटी ऑफ़ वेस्ट अफ़्रीकन स्टेट्स– ईसीओडब्लूएएस) ने तख़्तापलट की निंदा की है और अलग–अलग तरीक़े से यथास्थिति बनाए रखने का संदेश दिया है; लोगों को ये स्वीकार नहीं है। एल’असोसीएशन पोलिटिक फ़ासो कानू ने एम5-आरएफ़पी नेताओं के नेतृत्व में राजनीतिक परिवर्तन करने के लिए तीन साल का प्रस्ताव दिया है, जिसमें इस अवधि के लिए देश की संप्रभुता को फिर से मज़बूत करने के उद्देश्य से औपचारिक सरकारी व्यवस्था से अलग निकाय बनाने का आह्वान किया है। उनका मानना है कि ‘जनता के संघर्ष से ही देश को आज़ादी मिलेगी।
रूथ फ़र्स्ट
1970 में, दक्षिण अफ़्रीकी मार्क्सवादी रूथ फ़र्स्ट –जिनकी 17 अगस्त 1982 को रंगभेद शासन द्वारा हत्या कर दी गई थी– ने बैरल ऑफ़ द गन: पौलिटिकल पावर इन अफ़्रीका एंड द कूप डी‘तात किताब लिखी। माली में 1968 के तख़्तापलट सहित विभिन्न प्रकार के तख़्तापलटों को देखते हुए, फ़र्स्ट ने तर्क दिया कि उत्तर–औपनिवेशिक अफ़्रीका के सैन्य अधिकारियों के अलग–अलग राजनीतिक विचार थे, और उनमें से कई जनता की राष्ट्रीय मुक्ति के सपने को पूरा करने के लिए सत्ता में आए थे। फ़र्स्ट ने लिखा कि ‘तख़्तापलट रसद की उपलब्धता और तख़्तापलट करने वालों की धृष्टता और अहंकार, उनमें से कइयों द्वारा उल्लिखित, उनके उद्देश्यों की निर्जीवता से मेल खाती है।’ इस बात का कोई संकेत नहीं मिलता कि माली के मौजूदा तख़्तापलट में नेताओं का ऐसा कोई रुझान है; अपनी उपलब्धि और अपने बाहरी समर्थकों के बावजूद, उन्हें एक ऐसी जनता का सामना करना पड़ेगा जो एक बार फिर से औपनिवेशिक अतीत और ग़रीबी से निजात पाने के लिए बेचैन है।
कॉल फ़ॉर आर्ट
साम्राज्यवाद दक्षिणी गोलार्ध के देशों के जीवित इतिहास का अभिन्न हिस्सा है, और साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ प्रतिरोध भी हमारे इतिहास में लगातार शामिल रहा है। इसलिए साम्राज्यवाद–विरोधी पोस्टर प्रदर्शनी का तीसरा विषय ‘साम्राज्यवाद’ है। ये प्रदर्शनी अक्टूबर 2020 में साम्राज्यवाद–विरोधी संघर्ष के अंतर्राष्ट्रीय सप्ताह के कार्यक्रमों के साथ लॉन्च की जाएगी। हम चाहते हैं कि आप अपनी कृतियाँ हमें भेजें और अपने जानने वालों से इस प्रदर्शनी की जानकारी साझा करें।
साम्राज्यवाद–विरोधी पोस्टर प्रदर्शनी की प्रबंध समिति द्वारा ‘नवउदारवाद’ के विषय पर हुई प्रदर्शनी की समीक्षा भी पढ़ें।
‘हम चित्र बनाते हैं क्योंकि चिल्लाना काफ़ी नहीं
न रोना और न ही आक्रोशित होना काफ़ी है।
हम चित्र बनाते हैं क्योंकि हमें विश्वास है लोगों पर
और क्योंकि हम हार को जीत लेंगे‘
(मारियो बेनडेटी की कविता ‘हम क्यों गाते हैं’ का रूपांतर)।
स्नेह–सहित,
विजय।
मैं हूँ ट्राईकॉन्टिनेंटल :
पिंडीगा अंबेडकर (@ambhisden), शोधकर्ता, दिल्ली कार्यालय:
मैं एक ट्रेड यूनियन के लिए भारत के निर्यात क्षेत्र के कपड़ा श्रमिकों पर एक शोध कर रहा हूँ; जिसके लिए फ़ील्ड वर्क पूरा हो चुका है। मैं पीपुल्स पॉलीक्लिनिक्स पर छपे डोसियर को एक छोटी पुस्तिका के रूप में विकसित करने का भी काम कर रहा हूँ। इस किताब में भारत के आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में कम्युनिस्ट आंदोलन द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र में किए गए कामों के बारे में चर्चा की जाएगी।