प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
नये साल का पहला न्यूज़लेटर मैंने अपने दोस्त, महान भाषाविद, नोम चॉम्स्की के साथ मिलकर लिखा है। आगे आप जो कुछ पढ़ेंगे वो नोम और मेरे द्वारा जारी किया गया एक संयुक्त बयान है।
धरती पर जीवन के लिए उत्पन्न तीन प्रमुख चुनौतियाँ, हमें 2021 में जिनका समाधान करना होगा: नोम चॉम्सकी और विजय प्रशाद द्वारा लिखा गया नोट
चीन और कुछ अन्य देशों को छोड़कर, दुनिया के बड़े हिस्से एक वायरस के प्रकोप का सामना कर रहे हैं, जिसे सरकारों की आपराधिक अक्षमता के चलते रोका नहीं जा सका है। जिस प्रकार से धनी देशों की सरकारों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य वैज्ञानिक संगठनों द्वारा जारी किए गए बुनियादी वैज्ञानिक प्रोटोकॉल को नज़रंदाज़ किया, उसने उनके द्वेषपूर्ण व्यवहार को स्पष्ट कर दिया है। वायरस को रोकने के लिए टेस्टिंग, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और आयसोलेशन –और यदि ये उपाय पर्याप्त नहीं हों तो अस्थायी लॉकडाउन लगाने– जैसे क़दमों पर ध्यान केंद्रित करने से कम कुछ भी करना मूर्खतापूर्ण है। यह बात भी उतनी ही परेशान करने वाली है कि इन अमीर देशों ने ‘जनता के लिए वैक्सीन‘ बनाने की नीति अपनाने के बजाय संभावित वैक्सीन का एकत्रीकरण करके ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ की नीति अपनाया है। बौद्धिक संपदा नियमों का त्याग कर सभी लोगों के लिए सार्वभौमिक टीके बनाने की प्रक्रिया विकसित करना ही मानवता के लिए विवेकपूर्ण क़दम होगा।
हालाँकि महामारी हम सभी के दिमाग़ में इस समय प्रमुख मुद्दा है, लेकिन कई अहम मुद्दे हैं जो हमारी प्रजाति और हमारे ग्रह की लंबी उम्र के लिए ख़तरा बने हुए हैं। ये मुद्दे हैं:
नाभिकीय विध्वंस: जनवरी 2020 में, बुलेटिन ऑफ़ एटॉमिक साइंटिस्ट्स ने 2020 के क़यामत के दिन की घड़ी (डूम्ज़्डे क्लॉक) को रात बारह बजे से 100 सेकंड पहले पर सेट किया, सुविधा के लिहाज़ से बहुत थोड़ी कम समय सीमा के साथ। 1945 में पहले परमाणु हथियारों के विकसित होने के दो साल बाद यह घड़ी बनाई गई थी। इस घड़ी का मूल्यांकन बुलेटिन के साइन्स एंड सिक्योरिटी बोर्ड द्वारा अपने बोर्ड ऑफ़ स्पॉन्सर्स के परामर्श से प्रतिवर्ष किया जाता है। इस मूल्यांकन से तय होता है कि घड़ी में मिनट की सुई को हिलाना है या नहीं। जब वे घड़ी को फिर से सेट करेंगे, हो सकता है हम विनाश के बेहद क़रीब पहुँच चुके हों। पहले से ही सीमित हथियार नियंत्रण संधियों को भी ख़त्म किया जा रहा है। प्रमुख शक्तियों के पास तक़रीबन 13,500 परमाणु हथियार हैं (जिनमें से 90% से अधिक अकेले रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के पास हैं)। इन हथियारों में होने वाली बढ़ौतरी आसानी से इस ग्रह को रहने के लिए और भी अयोग्य बना सकती है। संयुक्त राज्य अमेरिका की नौसेना पहले से ही कम विस्फोट क्षमता वाले सामरिक परमाणु हथियार W76-2 तैनात कर चुकी है। परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में तत्काल कार्यवाही दुनिया के एजेंडे पर मज़बूती से लाया जाना चाहिए। हर साल 6 अगस्त को मनाया जाने वाला हिरोशिमा दिवस, निर्भीक चिंतन और प्रतिरोध का ठोस दिन बनना चाहिए।
जलवायु आपदा: 2018 में एक वैज्ञानिक लेख प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक व्याकुल करने वाला था: ‘मोस्ट ऐटॉल्ज़ विल बी अनइनहैबिटेबल बाए द मिड-21स्ट सेंचरी बीकोज़ ऑफ़ सी–लेवल राइज़ एक्सासरबेटिंग वेव–ड्रिवेन फ़्लडिंग‘ (समुद्री–स्तर में वृद्धि से होने वाली लहर–संचालित बाढ़ के कारण 21वीं सदी के मध्य तक अधिकांश द्वीप रहने लायक़ नहीं बचेंगे)। लेखकों ने अपने शोध में पाया कि सेशेल्स से लेकर मार्शल द्वीप तक स्थित प्रवाल द्वीप लुप्त हो जाएँगे। संयुक्त राष्ट्र संघ की 2019 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि लगभग दस लाख जानवरों और पौधों की प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं। इसके साथ जंगलों में लगने वाली विनाशकारी आग और मूंगे की चट्टानों का तीव्र अपरदन जोड़ लें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि हमें अब इस बात पर बहस करने की ज़रूरत नहीं है कि जलवायु आपदा के लिए कौन से कारक ज़िम्मेदार हैं; ख़तरा भविष्य में आने वाला नहीं है, बल्कि वर्तमान में ही मौजूद है। प्रमुख शक्तियों –जो अभी तक जीवाश्म ईंधन की जगह नया विकल्प अपनाने में पूरी तरह विफल रही हैं– के लिए आवश्यक है कि वे पर्यावरण और विकास पर 1992 की रिओ घोषणा के ‘समान लेकिन अलग–अलग ज़िम्मेदारियों‘ के दृष्टिकोण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाएँ। यह बताया जाना ज़रूरी है कि जमैका और मंगोलिया जैसे देशों ने 2020 ख़त्म होने से पहले –पेरिस समझौते के अनुसार– अपनी जलवायु योजनाओं में सुधार कर संयुक्त राष्ट्र संघ को पेश किया है, हालाँकि ये देश वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का एक छोटा हिस्सा ही उत्सर्जित करते हैं। विकासशील देशों को इस प्रक्रिया में शामिल करने के लिए जो धनराशि दी गई थी, वह लगभग ख़त्म हो चुकी है, जबकि बाहरी ऋण की मात्रा बढ़ी है। यह ‘अंतर्राष्ट्रीय समुदाय‘ की बुनियादी गंभीरता की कमी को दर्शाता है।
सामाजिक अनुबंध का नवउदारवादी विनाश: उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों ने राज्य को मुनाफ़ाख़ोरों के हवाले कर और निजी कम्पनियों के माध्यम से नागरिक समाज का निजीकरण कर अपने सार्वजनिक कार्यों से ख़ुद को मुक्त कर लिया है। इसका मतलब यह है कि दुनिया के इन हिस्सों में सामाजिक परिवर्तन की जगहें आश्चर्यजनक रूप से अवरुद्ध हुई हैं। भयावह स्तर की सामाजिक असमानता श्रमिक वर्ग की अपेक्षाकृत राजनीतिक निर्बलता का परिणाम है। यही निर्बलता है जिससे अरबपतियों को ऐसी नीतियाँ बनाने की हिम्मत मिलती हैं जिनसे भुखमरी बढ़ती है। देशों को उनके संविधान में लिखे गए शब्दों से नहीं, बल्कि उनके सालाना बजट से आँका जाना चाहिए; उदाहरण के लिए, अमेरिका (यदि आप उसके अनुमानित ख़ुफ़िया बजट को जोड़ते हैं तो) अपने हथियारों पर लगभग एक ट्रिलियन डॉलर ख़र्च करता है, जबकि वह इसका छोटा–सा हिस्सा ही सार्वजनिक क्षेत्रों (जैसे स्वास्थ्य देखभाल, जो कि महामारी के दौरान स्पष्ट भी हुआ) पर ख़र्च करता है। पश्चिमी देशों की विदेश नीतियाँ हथियार सौदों से लैस हैं: संयुक्त अरब अमीरात और मोरक्को ने इज़रायल को इस शर्त पर मान्यता देने पर सहमति व्यक्त की कि वे क्रमशः 23 बिलियन डॉलर और 1 बिलियन डॉलर के अमेरिकी–हथियार ख़रीदेंगे। फ़िलिस्तीनियों, सहरावियों और यमनी लोगों के अधिकारों के लिए इन सौदों में कोई जगह नहीं थी। क्यूबा, ईरान, और वेनेज़ुएला सहित तीस देशों के ख़िलाफ़ संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अवैध प्रतिबंधों का इस्तेमाल जीवन का एक सामान्य हिस्सा बन गया है; कोविड-19 महामारी के कारण जब पूरी दुनिया सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रही है तब भी ये प्रतिबंध जारी है। यह राजनीतिक प्रणाली की विफलता है कि पूँजीवादी हिस्सों की जनता अपनी सरकारों –जिनमें से अधिकतर केवल नाम से ही लोकतांत्रिक हैं– को इस आपातकाल के बारे में वैश्विक परिप्रेक्ष्य में सोचने के लिए मजबूर करने में असमर्थ रही है। भुखमरी की बढ़ती दर बताती है कि दुनिया के अरबों लोगों की ज़िंदगी का मतलब ही ज़िंदा रहने का संघर्ष है (जबकि हम देख रहे हैं कि चीन संपूर्ण ग़रीबी को ख़त्म करने और भुखमरी को ख़त्म करने में सक्षम रहा है)।
परमाणु विनाश और जलवायु आपदा पृथ्वी के सामने खड़े दो बड़े ख़तरे हैं। दूसरी ओर, नवउदारवादी हमले जिससे पिछली पीढ़ी के लोग इस तरह परेशान हैं और ज़िंदा रहने के लिए छोटी–मोटी तात्कालिक समस्याओं से जूँझते रहते हैं कि वे हमें हमारे बच्चों और बच्चों के बच्चों के भाग्य के बारे में बुनियादी सवाल उठाने का मौक़ा ही नहीं देता है।
टीबीटी: चॉम्स्की, 1928-
इन बड़ी वैश्विक समस्याओं के लिए वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है। 1960 के दशक में तीसरी दुनिया के देशों से बढ़ते दबाव के कारण, प्रमुख शक्तियों ने परमाणु हथियारों के अप्रसार के लिए बनी संधि (1968) पर सहमति व्यक्त की थी, हालाँकि उन्होंने इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण नये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आदेश की घोषणा (1974) मानने से इनकार कर दिया था। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इस तरह के वर्गीय एजेंडे को मज़बूती से रखने के लिए ज़रूरी ताक़तों का संतुलन समाप्त चुका है; विशेष रूप से पश्चिम के देशों, और साथ ही विकासशील दुनिया के बड़े देशों (जैसे ब्राज़ील, भारत, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका) की राजनीतिक गतिविधियाँ सरकारों के चरित्र को बदलने के लिए आवश्यक हैं। परमाणु युद्ध, जलवायु आपदा और सामाजिक पतन द्वारा विनाशकारी ख़तरों पर पर्याप्त और तत्काल ध्यान देने के लिए ठोस अंतर्राष्ट्रीयतावाद आवश्यक है। हमारे सामने लक्ष्य कठिन हैं, लेकिन उन्हें स्थगित नहीं किया जा सकता है।
नोम चॉम्स्की और मेरे द्वारा लिखा गया यह नोट धन, सेना और और पाखंडी नैतिकता की ताक़तों के ख़िलाफ़ एकजुट होकर संघर्ष करने की अपील करता है। इस वर्ष, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान में हम हमारे सामने उपस्थित इन सभी ख़तरों, और ख़ास तौर पर युद्ध के ख़तरे के ख़िलाफ़ काम करेंगे। हिरोशिमा पर संयुक्त राज्य अमेरिका के परमाणु बम हमले के बाद, शीनो शॉदा ने हमले को कभी न भूलने के लिए तनका कविताएँ (छोटे गीत) लिखनी शुरू की। अमेरिका के आधिपत्य के बाद से उनके और उनकी तरह लिखने वालों के कामों पर प्रतिबंध लग गया। शॉदा ने हिरोशिमा जेल के एक गार्ड से अपनी किताब की 150 प्रतियाँ हाथ से लिखवाकर उन्हें विस्फोट में बच गए लोगों तक भिजवाया। इन कविताओं में से एक है:
इतनी सारी नन्ही खोपड़ियाँ
हैं एक साथ पड़ीं यहाँ
इसलिए लगता है
ये बड़ी हड्डियाँ
इनकी शिक्षिका की होंगी।
मानवता विलुप्त होने के ख़तरे से जूझ रही है। हमें केवल जीवन को संरक्षित रखने के लिए नहीं बल्कि मनुष्यों और हमारे ग्रह दोनों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए भी लड़ना होगा ।
स्नेह–सहित,
विजय।
मैं हूँ ट्राईकॉन्टिनेंटल:
लूसियाना बालबुएना, शोधार्थी, अर्जेंटीना कार्यालय।
सोकर जगने के बाद रोज़ सुबह मेरे मन में एक ही सवाल होता है: हम संस्थान के अनुसंधान को कैसे दूसरों तक पहुँचा सकते हैं? मैं कंप्यूटर के सामने बैठ जाती हूँ और सोचती हूँ कि इस काम को एक योजना और समय सीमा के भीतर कैसे किया जाए। इस चुनौतियों का सामना करते हुए हमने अपने काम को संप्रेषित करने के लिए नये तरीक़ों का सहारा लेना शुरू किया है। ब्यूनस आयर्स में, हमने अपना पहला पॉडकास्ट, डेस्टापार ला क्राइसिस, या ‘संकट को उजागर करना’ शुरू किया है। मैं स्कूलों की कक्षाओं में वापस जाने और युवाओं से मिलने के लिए तत्पर हूँ। मुझे उनके साथ हँसने और सीखने को बहुत मिस करती हूँ।