प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
दुनिया भर की महिलाएँ अवैतनिक देखभाल कार्य में हर दिन औसतन चार घंटे पच्चीस मिनट बिताती हैं, जबकि पुरुष उसी काम में प्रति दिन एक घंटा तेईस मिनट बिताते हैं। यह आँकड़ा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा 2018 में किए गए एक अध्ययन का है। देखभाल कार्य क्या है? आईएलओ के अध्ययन के अनुसार देखभाल कार्य में ‘वयस्कों और बच्चों, बुजुर्गों और युवाओं, कमज़ोर/विक्लांग और सक्षम–शरीर वालों की शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए की जाने वाली गतिविधियाँ और संबंध शामिल हैं‘।
आईएलओ के अनुसार देखभाल कार्य मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। पहले प्रकार के देखभाल कार्यों में प्रत्यक्ष देखभाल गतिविधियाँ (जिन्हें कभी–कभार ‘पोषण‘ या ‘संबंधपरक‘ देखभाल भी कहा जाता है) शामिल हैं, जैसे कि ‘बच्चे को खाना खिलाना, बीमार साथी का ख़याल रखना, किसी बुजुर्ग की नहाने–धोने में मदद करना, स्वास्थ्य जाँच करना, या छोटे बच्चों को पढ़ाना‘। दूसरे प्रकार के देखभाल कार्यों में अप्रत्यक्ष देखभाल गतिविधियाँ शामिल होती हैं, ‘जिसमें रू–ब–रू व्यक्तिगत देखभाल नहीं‘ बल्कि ‘सफाई, खाना पकाने, कपड़े धोने और अन्य घरेलू रखरखाव के काम शामिल हैं (जिन्हें कभी–कभी “गैर–संबंधपरक देखभाल” या “घरेलू काम” भी कहा जाता है) जो व्यक्तिगत देखभाल के लिए ज़रूरी माहौल बनाते हैं‘। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष देखभाल कार्य एक साथ चलते हैं, शारीरिक और भावनात्मक श्रम दोनों ही समाज को एक साथ बाँधे रखते हैं।
आईएलओ के अध्ययन के अनुसार, परिवारों और समाज को बनाए रखने के लिए ज़रूरी अवैतनिक देखभाल कार्यों में से तीन चौथाई काम महिलाएँ और लड़कियाँ करती हैं। यदि अवैतनिक देखभाल कार्य करने वालों को अपने–अपने देशों में न्यूनतम वेतन मिलने लगे, तो यह वेतन कुल मिलाकर 11 ट्रिलियन डॉलर के बराबर होगा (यानी वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 15% और डिजिटल अर्थव्यवस्था के बराबर होगा)। इस अवैतनिक देखभाल कार्य –जिसमें बच्चों और बुज़ुर्गों की देखभाल शामिल है– की ज़रूरत के कारण कई महिलाएँ और कुछ पुरुष भी वैतनिक श्रमबल का हिस्सा नहीं बन पाते हैं। 2018 में, आईएलओ के अनुसार, 60.6 करोड़ महिलाओं ने कहा कि अवैतनिक देखभाल कार्य का मतलब है कि वे घर के बाहर वैतनिक रोज़गार की तलाश नहीं कर सकतीं; जबकि केवल 4.1 करोड़ पुरुषों ने ऐसा कहा।
महामारी के दौरान, 6.4 करोड़ महिलाओं ने अपने वैतनिक रोज़गार खो दिए, जबकि अधिकांश महिलाओं ने 2020-21 के लॉकडाउन के दौरान ख़ुद को पहले के मुक़ाबले अवैतनिक देखभाल कार्य पर अधिक समय बिताते हुए पाया। हमारे अध्ययन ‘कोरोनाशॉक एंड पैट्रिआर्की‘ (नवंबर 2020) में हमने पाया था कि महामारी के दौरान ‘देखभाल कार्य में तेज़ी से वृद्धि हुई है, और इसका बोझ महिलाओं पर ही पड़ रहा है‘। अपने बच्चों की पढ़ाई, कम होती आय में भी घर चलाने और कोविड-19 से सबसे ज़्यादा प्रभावित हो सकने वाले बुज़ुर्गों की देखभाल करने जैसे सभी काम अधिकांश रूप से महिलाएँ ही कर रही हैं। यूनिसेफ़ की रिपोर्ट है कि 16.8 करोड़ बच्चे लगभग एक साल से स्कूल नहीं गए हैं।
वहीं दूसरी ओर, हमारे समाजों में नर्सों से लेकर सफ़ाई कर्मचारियों तक अधिकतर अग्रिम पंक्ति की देखभाल कार्य करने वाली महिलाएँ ही हैं। इन महिलाओं को जहाँ एक तरफ़ ज़रूरी श्रमिक (‘इसेंशियल वर्कर्स‘) कह कर सराहा जा रहा है वहीं उनके काम करने की स्थितियाँ लगातार बदतर होती जा रहीं हैं, और उनके वेतनों में कोई वृद्धि नहीं हो रही है। उनके लिए वायरस के संपर्क में आने का ख़तरा लगातार बना हुआ है। पिछले जून में, हमने ‘स्वास्थ्य एक राजनीतिक विकल्प है‘ नामक डोजियर प्रकाशित किया था; इसमें हमने दिखाया था कि कैसे अर्जेंटीना, ब्राज़ील, भारत और दक्षिण अफ्रीका में महिला स्वास्थ्यकर्मी अपनी काम की परिस्थितियों में सुधार लाने और अपने परिवारों की देखभाल करने के लिए पर्याप्त वेतन पाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। डोजियर के अंत में उठाई गईं सोलह माँगें इन देशों में यूनियनों के संघर्षों से निकली हैं; ये माँगें पिछले जून में जितनी महत्वपूर्ण थीं उतनी ही महत्वपूर्ण अब भी हैं। इस महामारी ने स्पष्ट कर दिया है कि पितृसत्ता सामाजिक प्रगति को कैसे अवरुद्ध करता है।
अर्जेंटीना में हमारी टीम ने मैपेओस फ़ेमिनिस्टास नामक संगठन के साथ मिलकर, नारीवादी दृष्टिकोण से महामारी के असमान प्रभावों का पता लगाने के लिए एक पॉडकास्ट शुरू किया था। अर्जेंटीना में लोगों के सामने उत्पन्न संकटों और उनके संघर्षों के दस्तावेज़ीकरण के इस काम ने ही हमारे हालिया डोजियर ‘संकट को उजागर करना: कोरोनावायरस के समय में देखभाल कार्य’ (डॉजियर संख्या 38, मार्च 2021) का प्रारूप तय किया था।
महामारी ने परिवारों के सामने खड़े संकटों को बढ़ाया है; बढ़े हुए बोझ अधिकांशतः महिलाओं पर पड़े हैं। यह संकट सरकारी संस्थानों में लंबे समय से की जा रही कटौतियों का परिणाम हैं, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक मज़दूरी (सोशल वेज) में गिरावट आई है (जैसे कि बच्चों के लिए प्री–स्कूल केयर और स्कूल में पौष्टिक भोजन के प्रावधान कम हुए हैं)। इस दीर्घकालिक संकट को ‘देखभाल का संकट‘ (केयर क्राइसिस) कहा जाता है; यह नाम संयुक्त राष्ट्रसंघ के लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के आर्थिक आयोग (CEPAL) ने 2009 में दिया था। कटौती की नीतियों के चलते, परिवार के मायने बदल रहे हैं क्योंकि केयर–गिवर्ज़ (देखभाल करने वाले) व्यापक समुदाय में से अपने लिए संसाधन ढूँढ़ रहे हैं। परिवार के ये नये नेटवर्क रिश्तेदारियों के दायरे से बाहर से उभरकर आरहे हैं और महामारी के दौरान जीवित रहने के लिए एक आवश्यक आधार के रूप में उभर रहे हैं।
अर्जेंटीना के ट्रांसजेंडर मूवमेंट की लुज़ बेजेरानो ने बताया कि एक ट्रांसजेंडर कॉमरेड ने लोगों को खाना खिलाने के लिए एक आउटडोर किचन खोला है, जहाँ बच्चों को स्नैक्स भी मिलता है। एनकुएंटरो दे ऑर्गनायज़ेसियंस की सिल्विया कैंपो ने बताया कि कैसे उनका संगठन कोविड-19 के मामलों का पता लगाने और स्वास्थ्य क्लीनिकों और सेवाओं के बारे में जनता को जानकारी देने का काम कर रहा है। फ़ेडरेशन ऑफ़ ग्रासरूट्स ऑर्गनाइज़ेशन की मारिया बेनिटेज़ ने अपने पड़ोसियों को सफलतापूर्वक यह कहने के लिए संगठित किया कि वह मकानमालिकों के पास जाकर कह सकें कि वे महामारी के दौरान परिवारों को बेदख़ल नहीं कर सकते। सभी बाधाओं को पार करते हुए लुज़, सिल्विया, मारिया व उनके संगठनों ने समाज को बाँधे रखने का काम किया। इनकी कहानियाँ प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद हैं।
एलिज़ाबेथ गोमेज़ एलकोर्टा आर्जेंटीना सरकार में महिला, लिंग और विविधता मंत्रालय की पहली मंत्री हैं। दिसंबर 2019 में, उनके मंत्रालय ने राष्ट्रीय देखभाल निदेशालय (डिरेक्सीयोन नैसियोनल दे कुईदादोस) की स्थापना की, जिसने चार अहम काम किए हैं। सबसे पहले, देखभाल कार्य के लिए देखभाल और प्रशिक्षण सुविधाओं का एक राष्ट्रीय नक़्शा तैयार किया। दूसरा, फ़रवरी 2020 में, निदेशालय ने विभिन्न देखभाल नीतियों पर काम करने वाले चौदह मंत्रालयों को साथ लाने के लिए केयर नीतियों पर एक अंतर–मंत्रालयीय राउंडटेबल की स्थापना की। तीसरा, अगस्त 2020 में, निदेशालय ने एक अभियान, “समानता के साथ देखभाल: आवश्यकताएँ, अधिकार और कार्य”, शुरू किया है, जिसके तहत देखभाल कार्यकर्ताओं और देखभाल प्रदान करने वालों का प्रमुख मुद्दों पर परिप्रेक्ष्य सुनने के लिए ‘देखभाल संसद‘ आयोजित की जाती है। और अक्टूबर 2020 में, गोमेज़ अलकोर्टा की टीम ने एक ड्राफ़्टिंग कमिशन का गठन किया है जिसमें नौ विशेषज्ञ शामिल हैं, जो कि देश में एक व्यापक देखभाल प्रणाली विकसित करने के लिए एक अध्यादेश बनाएँगे।
गोमेज़ एल्कोर्टा ने कहा, ‘अभियान का नारा – “समानता के साथ देखभाल“- मुझे लगता है कि देखभाल की हमारी अवधारणा के एक बड़े हिस्से को संक्षेप में प्रस्तुत करता है‘। ऐल्कोर्टा ने मुझसे कहा, ‘देखभाल एक आवश्यकता है, क्योंकि हम सभी को अपने जीवन में किसी समय पर देखभाल की आवश्यकता होती है, और यदि यह एक आवश्यकता है, तो देखभाल करने वालों के लिए अधिकार भी होने चाहिए। हमारे सामने लैंगिक दृष्टिकोण से एक व्यापक देखभाल प्रणाली की नींव रखने की बड़ी चुनौती है‘, और इस प्रणाली के लिए अर्जेंटीना की ‘जटिल और विजातीय वास्तविकता‘ को ध्यान में रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, इसीलिए ‘ड्राफ्टिंग कमीशन द्वारा किया जा रहा संवाद बहुत महत्वपूर्ण है। … हम जानते हैं कि परिवारों की वर्तमान संरचना विविधतापूर्ण है, इसलिए एक ओर, हम परिवारों और पहचान की विविधता के संदर्भ में काम कर रहे हैं, सभी स्थितियों पर विचार करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी ओर, हमारे देश पर बड़ा सामाजिक ऋण है, हमारे यहाँ ग़रीबी दर बहुत ऊँची है, और हम जानते हैं कि आर्थिक संकटों से महिलाएँ सबसे अधिक प्रभावित होती हैं। यही कारण है कि हम मानते हैं कि देखभाल कार्यों का बेहतर पुनर्वितरण न केवल अधिक–से–अधिक लैंगिक समानता उत्पन्न करता है बल्कि इसका परिणाम सामाजिक न्याय के रूप में भी अधिक दिखता है‘।
गोमेज़ एल्कोर्टा ने कहा, पितृसत्तात्मक व्यवस्था और रीति–रिवाज ‘टूट रहे हैं’, लेकिन ‘अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाक़ी है’। देखभाल के काम में साझा ज़िम्मेदारी अभी ठोस वास्तविकता नहीं बनी है, यही वजह है कि ‘पुरुषों का [इस कार्य में] अधिक शामिल होना ज़रूरी है, लेकिन हम यह भी जानते हैं कि आदतें और रूढ़ियाँ तोड़ने में समय लग सकती हैं’। बहरहाल, गोमेज़ एल्कोर्टा ने मुझसे कहा, ‘हमारा यह दृढ़ विश्वास है कि हम एक ऐसे परिदृश्य की ओर बढ़ रहे हैं जिसमें देखभाल कार्य बेहतर ढंग से बाँटे जाएँगे और उन्हें सामाजिक मान्यता मिलेगी और इस कार्य को अपने–आप में मूल्यवान समझा जाएगा: यह वो काम है जो दुनिया को काम करने योग्य बनाता है’।
पिछले हफ़्ते के न्यूज़लेटर में, मैंने केरल में विधानसभा चुनाव अभियान के बारे में लिखा था। वाम लोकतांत्रिक मोर्चे ने अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है। उनका एक मुद्दा विशेष रूप से उल्लेखनीय है: यदि वाम मोर्चा फिर से सरकार बनाता है, तो उनकी सरकार गृहिणियों के लिए पेंशन लागू करेगी। घोषणा पत्र में कहा गया है कि ‘घरेलू श्रम के मूल्य को मान्यता दी जाएगी, और गृहिणियों के लिए पेंशन की स्थापना की जाएगी’। इस पेंशन योजना के निहितार्थ बहुत बड़े हैं; ये न केवल यह स्वीकार करता है कि घरेलू श्रम मूल्यवान है बल्कि यह पितृसत्ता की नींव को हिलाता है, जो कि महिलाओं को वित्तीय रूप से निर्भर बना कर रखता है।
अर्जेंटीना और केरल के संघर्ष कवि अलाइदे फोप्पा (1914-1980) के शब्दों को दोहराते हैं। फोप्पा ग्वाटेमाला की कवयित्री और कार्यकर्ता थीं जिनकी 1980 में हत्या कर दी गई थी:
घास के मैदानों से होते हुए
मेरे हलके पैर चले,
नम रेत में
अपनी छाप छोड़ते हुए,
खोए हुए रास्तों की तलाश में,
शहरों के
कठोर फ़ुटपाथों पर चले
और सीढ़ियों पर चढ़े
बिना जाने कि ये फ़ुटपाथ और सीढ़ियाँ उन्हें कहाँ ले जाते थे।
स्नेह–सहित,
विजय।
<मैं ट्राईकॉन्टिनेंटल हूँ>
थिंग्स चाक, डिजाइनर और शोधकर्ता, अंतर क्षेत्रीय कार्यालय।
अच्छे दिनों में, जब मैं बैठकों में जाता थी, तो आमतौर मैं ड्राइंग करती था, पढ़ती -लिखती थी और सामूहिक राजनीतिक परियोजनाओं का निर्माण करने में मदद करती थी। मेरा काम लोगों के संघर्ष से उभरने वाली कला और संस्कृति के इतिहास, प्रथाओं और सिद्धांतों पर केंद्रित है। मैं धीरे–धीरे राष्ट्रीय मुक्ति संघर्षों की कला पर एक पुस्तक तैयार करने की दिशा में अपना ध्यान केंद्रित कर रही हूँ, जिसे हमारे डोजियर सं. 15 जोकि क्यूबा और डोजियर सं. 35 जोकि इंडोनेशिया पर केंद्रित है उसमें शामिल किया जाएगा। मैं ट्राइकॉन्टिनेंटल: सामाजिक अनुसंधान संस्थान के कला विभाग का समन्वय करती हूँ और मैं ख़ुद को ख़ुशक़िस्मत मानती हूँ कि अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क का निर्माण करने की प्रक्रिया में प्रतिदिन प्रतिभावान कलाकारों की टीम के साथ काम करने का मौक़ा मिलता है।