फिलिस्तीन में भी लौटेंगे पंछी: इकत्तीसवाँ न्यूज़लेटर (2024)
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ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
26 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के अधिकारियों ने यूएन सुरक्षा परिषद को गज़ा के भयानक हालात का जायज़ा दिया। फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी (UNRWA) की उप-कमिश्नर जनरल एंटोनिया डे मेओ ने कहा, ‘गज़ा में बीस लाख से ज़्यादा लोग चौंका देने वाले स्तर पर मौत और बर्बादी के अंतहीन चक्रव्यूह में फँसे हुए हैं’। यूएन अधिकारियों ने लिखा कि गज़ा में 6,25,000 बच्चे फँसे हुए हैं, और ‘उनका भविष्य खतरे में है’। विश्व स्वास्थ संगठन ने दर्ज किया ‘हेपटाइटिस ए और दूसरी अनगिनत रोकी जा सकने वाली बीमारियाँ फैल रही हैं’ और चेताया कि ‘कभी भी’ बच्चों में पोलिओ फैल सकता है। जुलाई की शुरुआत में द लैन्सिट में एक चिट्ठी छपी जो कनाडा, फिलिस्तीन और यूनाइटेड किंगडम में काम करने वाले तीन वैज्ञानिकों ने लिखी थी, इसमें कहा गया कि अगर ‘हर प्रत्यक्ष मौत पर चार अप्रत्यक्ष मौत का रूढ़िवादी अनुमान 37,396 दर्ज मौतों पर लगाया जाए तब भी यह अनुमान लगाना अकल्पनीय नहीं होगा कि गज़ा में मौजूदा टकराव की वजह से 186,000 या इससे भी ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं’।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मीटिंग से दो दिन पहले 24 जुलाई को इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यूएस काँग्रेस के दोनों चैम्बरों को संबोधित किया। इस आयोजन से दो महीने पहले अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) ने कहा था कि उसके पास ‘यह मानने के लिए उचित कारण हैं’ कि नेतन्याहू पर ‘युद्ध अपराधों और मानवता के विरुद्ध अपराधों… की आपराधिक ज़िम्मेदारी’ है। यूएस के चुने हुए प्रतिनिधियों ने इस निर्णय को पूरी तरह दरकिनार करते हुए नेतनयाहू का इस तरह स्वागत किया जैसे वो कोई विजयी नायक हो। नेतनयाहू की भाषा दहला देने वाली है: ‘हमें जल्दी औज़ार दो और हम जल्दी काम पूरा कर देंगे’। यह क्या ‘काम’ है जो नेतनयाहू इज़राइल की सेना से पूरा करवाना चाहता है? जनवरी में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने रिपोर्ट किया कि इज़राइल की सेना ‘संभवतः नरसंहार के कृत्य’ कर रही है। तो क्या यह ‘काम’ फिलिस्तीनी जनता का नरसंहार है, जिसे इज़राइल यूएस से ज़्यादा हथियार और पैसे लेकर जल्दी से जल्दी पूरा करना चाहता है?
नेतनयाहू की शिकायत है कि यूएस पर्याप्त हथियार नहीं भेज रहा लेकिन अप्रैल में यूएस सरकार ने 1800 करोड़ डॉलर की लागत वाले पचास एफ़-15 लड़ाकू विमान इज़राइल को बेचे जाने की मंज़ूरी दी थी और जुलाई की शुरुआत में ही कहा कि वह करीब दो हज़ार 500-पाउन्ड के बम भेजेगा जो गज़ा में इस्तेमाल होंगे। नेतनयाहू उस समय भी और चाहता था और आज भी और चाहता है। वो ‘काम पूरा’ करना चाहता है। नरसंहार की इस भाषा को यूएस सरकार पावन मानती है जिसके नुमाइंदों ने सामूहिक हत्या के आह्वान पर खड़े होकर तालियाँ बजाईं।
सरकारी कमरों के बाहर, हज़ारों लोगों ने नेतनयाहू के कॉंग्रेस में आने का विरोध किया। वे सब युवाओं के बड़े जत्थे का हिस्सा थे जो इज़राइल द्वारा फिलिस्तीनियों के नरसंहार और इस हिंसा को यूएस सरकार के पूरे समर्थन के खिलाफ लगातार चल रहे प्रदर्शनों में शामिल रहे हैं। नेतनयाहू ने प्रदर्शनकारियों को ‘ईरान के काम आने वाले मूर्ख’ कहा, अपने देश में अपने जनतांत्रिक अधिकारों का इस्तेमाल कर रहे नागरिकों के लिए किसी विदेशी मेहमान का यह बयान काफी अजीब है। पुलिस ने शांतिपूर्ण और न्यायोचित प्रदर्शनों को रोकने के लिए पैपर स्प्रे और दूसरे हिंसक तरीकों का इस्तेमाल किया।
जब वाशिंगटन युद्ध अपराधी का स्वागत कर रहा था, बीजिंग ने चौदह फिलिस्तीनी संगठनों के नुमाइंदों को बुलाया जिन्होंने अपने आपसी मतभेदों और इज़राइली नरसंहार तथा उपनिवेशवाद के खिलाफ राजनीतिक एकता तैयार करने का रास्ता बनाने पर चर्चा की। कॉंग्रेस के चेम्बर में नेतनयाहू के दाखिल होने के तुरंत पहले इन चौदह नुमाइंदों ने बीजिंग के तियाओयूथाए स्टेट गेस्टहाउस के बाहर एक फोटो खिंचवाई। उनका समझौता, बीजिंग घोषणा, नरसंहार और कब्ज़े के खिलाफ एकसाथ काम करने की उनकी प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाता है। इस घोषणा ने यह भी माना कि उनके आपसी मतभेदों से इज़राइल की ही मदद होती है।
जब 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ, तो दक्षिण अफ्रीका और फिलिस्तीन जैसे कई राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन कमज़ोर पड़ गए और उन्हें अपने उपनिवेशवादियों से तनाव खत्म करने के लिए बहुत सी रियायतें देने पर मजबूर होना पड़ा। कई बार झूठी पहल करने के बाद दक्षिण अफ्रीका का नस्लवादी शासन अप्रैल 1993 में मल्टी पार्टी नेगोशिएटिंग फोरम (बहुदलीय वार्ता मंच) में शामिल हुआ, यह फ़ोरम एक तरह की रियायत ही थी जो आज़ादी चाहने वाली ताकतों ने दी थी (जो उसी महीने कम्युनिस्ट नेता क्रिस हानी की हत्या और नव-नाज़ी अफ्रिकनेर वेर्स्टैंड्सबेवेगिंग के हमलों के कारण कमजोर पड़ गई थीं)। नवंबर 1993 के अंतरिम संविधान के ज़रिए जो सत्ता का हस्तांतरण तय हुआ उसने दक्षिण अफ्रीका में श्वेत सत्ता के ढाँचों को गिराया नहीं। वहीं 1993 और 1995 में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) ने ओस्लो समझौता स्वीकार कर लिया जिसमें पीएलओ ने इज़राइल को एक राष्ट्र मान लिया और फिलिस्तीन राष्ट्र को पूर्वी जेरूसलम, गज़ा और वेस्ट बैंक में बसाना स्वीकार कर लिया। एडवर्ड सईद ने ओस्लो समझौते को ‘फ़िलिस्तीनी वर्सेल्स’ की संज्ञा दी, यह संज्ञा उस समय कठोर मानी गई लेकिन अब देखने पर बिल्कुल सटीक लगती है।
इज़राइल ने ओस्लो समझौते का इस्तेमाल अपने फ़ायदे के लिए किया। उसने फिलिस्तीनी ज़मीन पर गैर-कानूनी बसावटें बनाई और एक-दूसरे से कटे हुए इलाक़ों में फैले फ़िलिस्तीन में फिलिस्तीनियों को आज़ादी से आने-जाने के अधिकार से इनकार कर दिया। 1994 में पीएलओ में शामिल प्रमुख गुटों ने फिलिस्तीनी राष्ट्रीय प्राधिकरण का गठन किया ताकि अलग-अलग गुटों को एक नए राष्ट्र के कार्यक्रम में एकसाथ लाया जा सके, लेकिन जिन गुटों ने ओस्लो समझौते को अस्वीकार किया था वो इज़राइल की ओर से कब्ज़े का प्रबंधन नहीं करना चाहते थे। जनवरी 2006 में हमास ने फिलिस्तीनी विधान परिषद चुनावों में 132 सीटों में से 74 जीतकर सबसे बड़ा ब्लॉक हासिल किया, और जून 2007 तक फतह और हमास ने संबंध तोड़ दिया और ओस्लो समझौते के बाद एक नए फिलिस्तीनी राष्ट्रीय कार्यक्रम की कोशिश को खत्म कर दिया।
मई 2006 में इज़राइल की कठोर जेलों के भीतर से पाँच गुटों का प्रतिनिधित्व करने वाले पाँच फिलिस्तीनियों ने प्रिज़्नरस् डाक्यमेन्ट [कैदियों का दस्तावेज़] लिखा। ये पांच लोग थे: अब्देल खालेक अल-नास (हमास), अब्देल रहीम मल्लूह (फिलिस्तीन की मुक्ति के लिए लोकप्रिय मोर्चा), बासम अल-सादी (इस्लामिक जिहाद), मरवान बरघौटी (फतह) और मुस्तफा बदरनेह (फिलिस्तीन की मुक्ति के लिए डेमोक्रेटिक फ्रंट)। इन पाँच गुटों में शामिल थे दो वाम संगठन, दो इस्लामी संगठन और मुख्य राष्ट्रीय स्वतंत्रता प्लेटफॉर्म। इस अठारह बिंदुओं के दस्तावेज़ ने तमाम संगठनों (हमास और इस्लामिक जिहाद सहित) का आह्वान किया कि पीएलओ को उनके साझे प्लेटफॉर्म के रूप में फिर से सक्रिय किया जाए, फिलिस्तीनी प्राधिकरण को ‘भविष्य के राष्ट्र के केंद्र’ के रूप में स्वीकार किया जाए और कब्ज़े का प्रतिरोध करने के अधिकार को बरकरार रखा जाए। जून में सभी दलों ने इस दस्तावेज़ के दूसरे मसौदे पर हस्ताक्षर कर दिए। एकता बनाने की कोशिश हुई और गज़ा पर इज़राइल के ऑपरेशन समर रेनस् (जून से नवंबर 2006) हमले के दौरान भी जारी रही। इस सबके बावजूद एकजुटता नहीं बन पाई। फिलिस्तीनी संगठनों में आपसी दुश्मनी बनी रही।
इनमें एकता न होने के कारण इज़राइली कब्ज़े को बढ़ने की जगह मिली और फिलिस्तीनी एक केंद्रीय राजनीतिक कार्यक्रम के अभाव में बर्बाद होते गए। फिलिस्तीनी राजनीतिक संगठनों में आपसी गंभीर बातचीत शुरू करने की कई कोशिशें नाकाम रही हैं, इनमें मई 2011 और अक्टूबर 2017 में काइरो तथा अक्टूबर 2022 में अल्जीयर्स के प्रयास शामिल हैं। पिछले साल से चीनी सरकार ने कई क्षेत्रीय राज्यों के साथ मिलकर काम किया है ताकि चौदह फिलिस्तीनी गुटों को आपसी सुलह के लिए बीजिंग बुलाया जा सके। यह गुट हैं:
1. अरब लिबरेशन फ्रंट
2. अस-साइका
3. फिलिस्तीन की मुक्ति के लिए डेमोक्रेटिक फ्रंट
4. फतह
5. हमास
6. इस्लामिक जिहाद मूवमेंट
7. फिलिस्तीनी अरब फ्रंट
8. फिलिस्तीनी डेमोक्रेटिक यूनियन
9. फिलिस्तीनी लिबरेशन फ्रंट
10. फिलिस्तीनी नेशनल इनिशिएटिव
11. फिलिस्तीनी पीपुल्स पार्टी
12. फिलिस्तीनी पॉपुलर स्ट्रगल फ्रंट
13. पॉपुलर फ्रन्ट फॉर द लिबरैशन ऑफ फिलिस्तीन
14. पॉपुलर फ्रन्ट फॉर द लिबरैशन ऑफ फिलिस्तीन (जनरल कमांड)
बीजिंग घोषणा में कैदियों के दस्तावेज़ के फार्मूलों को दोहराते हुए माँग की है कि एक फिलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना हो, फिलिस्तीनियों के कब्ज़े का विरोध करने के अधिकार का सम्मान हो, फिलिस्तीनी राजनीतिक संगठन एक ‘अंतरिम राष्ट्रीय सहमति की सरकार’ बना सकें तथा पीएलओ और इसके घटकों को मज़बूत किया जाए ताकि इज़राइल के खिलाफ संघर्ष में इनकी भूमिका को आगे बढ़ाया जा सके। वैसे तो इस घोषणा में तुरंत युद्धविराम और पूर्वी जेरूसलम तथा वेस्ट बैंक में बसावटें स्थापित करने को रोकने की माँग भी की गई है, लेकिन इसका मुख्य ध्यान राजनीतिक एकता पर है।
चीन की पहल से शुरू हुई इस प्रक्रिया में जब फिलिस्तीनी इज़राइल के साथ बातचीत के लिए बैठेंगे तो क्या कोई नतीजे निकलेंगे, यह तो वक्त ही बताएगा। कम से कम इस की वजह से इस दिशा में कदम तो आगे बढ़ रहे हैं और यह कदम 1995 के दूसरे ओस्लो समझौते के बाद जो एकजुट फिलिस्तीनी कार्यक्रम बिखर गया था उसके लिए एक नया मोड़ सिद्ध हो सकता है। बीजिंग घोषणा यूएस कॉंग्रेस में नेतन्याहू की उग्रता से बिल्कुल उलट है: नेतन्याहू का भाषण नरसंहार की बात करता है और खतरनाक है, जबकि बीजिंग घोषणा एक पेचीदा दुनिया में शांति की तलाश है।
फ़दवा तुक़ान (1917-2003) फिलिस्तीन की सबसे बेहतरीन कवयित्रि हैं जिन्होंने ‘द डेल्यूज एण्ड द ट्री’ [बाढ़ और पेड़] कविता लिखी थी। बाढ़ के कारण पेड़ का गिर जाना उसका अंत नहीं बल्कि एक नई शुरुआत होती है।
जब दरख्त बढ़ेगा, सूरज में
सब्ज़ औ’ ताज़ा शाखें गूंज उठेंगी,
खिल उठेगी दरख्त की हँसी
सूरज के तले
और लौट आएँगे पंछी।
बेशक, लौट आएँगे पंछी।
लौट आएँगे पंछी।
तेहरान (ईरान) में हमास नेता इस्माइल हनीया (1962-2024) की हत्या ने स्थिति को बहुत कठिन बना दिया है, और इससे पंछियों के लिए गाना भी मुश्किल हो जाएगा।
सस्नेह,
विजय