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परमाणु युद्ध कभी मामूली नहीं होते: छब्बीसवाँ न्यूज़लेटर (2024)

यूएस और नाटो की तरफ से हाल ही में जो घोषणाएँ हुईं हैं, उससे यूक्रेन में लड़ाई भयावह रूप ले सकती है और परिस्थिति क्यूबाई मिसाइल संकट से भी ज़्यादा ख़तरनाक बन सकती है।

एरिक बुलाटव (यूएसएसआर), पीपल इन द लैंडस्केप, 1976

प्यारे दोस्तो,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन

एक दौर था, जब परमाणु-मुक्त यूरोप के नारे पूरे महाद्वीप में गूँजते थे। इसका प्रारंभ हुआ था स्टॉकहोम अपील (1950) से, जिसमें कहा गया थाः ‘हम माँग करते हैं कि डराने और बड़े पैमाने पर लोगों की हत्या के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण के रूप में परमाणु हथियारों को गैर-कानूनी करार दिया जाए’। यह नारा आगे चलकर अपील फॉर यूरोपियन न्यूक्लियर डिसआर्ममेंट (1980) के तहत और भी बुलंद हुआ। इस अपील में चेतावनी दी गई थी कि ‘हम मानव इतिहास के सबसे ख़तरनाक दशक में दाख़िल हो रहे हैं’। लगभग 27.4 करोड़ लोगों ने स्टॉकहोम अपील पर हस्ताक्षर किए। जैसा कि अनेक रिपोर्ट बताते हैं कि सोवियत संघ की सारी वयस्क जनता ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। इसके बावजूद 1980 की यूरोपियन अपील के बाद से ऐसा लग रहा है कि दशक-दर-दशक हम पहले से ख़तरनाक दौर में जाते जा रहे हैं। बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स एक ‘डूम्स डे क्लॉक’ या कयामत की घड़ी का संचालन करता है। परमाणु वैज्ञानिकों के बुलेटिन के सदस्यों की राय में, प्रलय का दिन एक प्रतीक है जो मानव निर्मित वैश्विक तबाही की संभावना का प्रतिनिधित्व करता है। 1947 से बनी यह घड़ी अनियंत्रित वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति से मानवता को होने वाले खतरों का एक रूपक है। बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स के संपादकों ने जनवरी में लिखा कि ‘अब भी मध्यरात्रि में 90 सेकंड बाकी हैं’। मध्यरात्रि के मायने हैं महायुद्ध। 1949 में इस घड़ी के काँटे इस मध्यरात्रि से तीन मिनट दूर थे। 1980 में इनके बीच की दूरी कुछ बढ़ी तथा दुनिया और महायुद्ध के बीच का अंतर बढ़कर सात मिनट हो गया। लेकिन 2023 तक आते-आते इस घड़ी के काँटों ने बहुत लंबा सफ़र तय कर लिया और मध्यरात्रि से 90 सेकंड की दूरी पर आकर थम गए और तब से वहीं रुके हुए हैं, दुनिया पूर्ण विनाश के इतने करीब पहली बार आ खड़ी हुई है।

आज स्थिति इतनी अनिश्चित है कि यूरोप किसी भी वक़्त छिड़ जाने वाले एक भयानक युद्ध के मुहाने पर खड़ा है। यूक्रेन को लेकर जिस तरह उकसाने वाले हालात लगातार पैदा किए जा रहे हैं उसके कितने ख़तरनाक परिणाम हो सकते हैं, उन्हें समझने के लिए हमने नो कोल्ड वॉर के साथ मिलकर तैयार किया ब्रीफिंग नंबर 14, ‘यूक्रेन में नाटो की कार्रवाई क्यूबा मिसाइल संकट से ज़्यादा ख़तरनाक है’। कृपया इस पूरी जानकारी को ध्यान से पढ़ें और जितना हो सके इसे दूसरों के साथ साझा करें।

पिछले दो सालों से यूक्रेन में यूरोप की 1945 के बाद से अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई चल रही है। इस लड़ाई की मुख्य वजह है यूएस की ओर से यूक्रेन में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के विस्तार की कोशिश। ये कोशिश उन वादों को तोड़कर की जा रही है जो शीत युद्ध को खत्म करते समय पश्चिमी देशों ने सोवियत संघ से किए थे। उदाहरण के लिए 1990 में अमेरिकी विदेश मंत्री जेम्स बेकर ने सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव को विश्वास दिलाया था कि नाटो ‘पूर्व की तरफ एक इंच भी नहीं बढ़ेगा’। पिछले दशक के दौरान ग्लोबल नॉर्थ ने लगातार सुरक्षा गारंटियों को लेकर रूस की माँगों को नज़रंदाज़ किया है। रूस की चिंताओं की यह उपेक्षा ही आगे चलकर 2014 के टकराव और 2022 की लड़ाई का कारण बनी।

आज यूक्रेन में परमाणु सम्पन्न नाटो और परमाणु सम्पन्न रूस आमने-सामने हैं। इस लड़ाई को ख़त्म करने की बजाय नाटो ने पिछले महीनों में ऐसी कई घोषणाएँ की हैं, जो स्थिति को और बिगाड़ने का ख़तरा पैदा कर रही हैं, जिससे यह टकराव यूक्रेन की सीमाओं को लाँघकर दूसरे हिस्सों तक फैल सकता है। यह कहना कोई गलत नहीं होगा कि क्यूबाई मिसाइल संकट (1962) के बाद इस टकराव ने दुनिया में शांति के लिए सबसे बड़ा ख़तरा पैदा कर दिया है।

इस बेहद ख़तरनाक स्थिति से साबित होता है कि रूस और पूर्वी यूरोप के मामले में अमेरिका के अधिकतर विशेषज्ञ नाटो को पूर्वी यूरोप में घुसपैठ न करने की जो चेतावनी देते आ रहे थे, वो सही थी। शीत युद्ध पर अमेरिकी नीति के मुख्य रणनीतिकार जॉर्ज केनन ने 1997 में कहा था कि यह रणनीति ‘शीत युद्ध के बाद के पूरे दौर में अमेरिकी नीति की सबसे अहम चूक है’। उनकी यह चेतावनी कितनी गंभीर है, यह यूक्रेन की लड़ाई और परिस्थिति के और बिगड़ने की आशंका से साबित हो रहा है।

एलिफ़ उरास (तुर्की), कैपिटल, 2009

कैसे नाटो यूक्रेन में  हालात और बिगाड़ रहा है?

इस संघर्ष से जुड़ी सबसे ख़तरनाक हालिया घटनाएँ हैं यूएस और ब्रिटेन द्वारा मई में किए गए फ़ैसले। इनमें यूक्रेन को अधिकार दे दिया गया है कि इन दोनों देशों से मुहैया कराए गए हथियारों का इस्तेमाल वो रूस की सीमाओं के अंदर सैन्य हमलों के लिए कर सकता है। यूक्रेन की सरकार ने तुरंत ही इस फ़ैसले का फ़ायदा उठाते हुए एक उकसाने वाला कदम उठाया और रूस के बलिस्टिक मिसाइल के वॉर्निंग सिस्टम (चेतावनी तंत्र) पर हमला कर दिया। किसी रणनीतिक परमाणु हमले से बचने के लिए रूस के रक्षा तंत्र में इस वॉर्निंग सिस्टम की एक विशेष भूमिका है, लेकिन यूक्रेन युद्ध से इस सिस्टम का कोई लेना-देना नहीं है। इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार ने यूक्रेन को स्टॉर्म शैडो मिसाइल भी मुहैया करवाईं जो 250 किलोमीटर तक हमला कर सकती हैं। इनसे न सिर्फ युद्ध क्षेत्र में बल्कि रूस के काफ़ी अंदर तक निशाना लगाया जा सकता है। नाटो के हथियारों से रूस पर हमला कर यूक्रेन रूस की तरफ़ से बराबर की जवाबी कार्रवाई का ख़तरा खड़ा कर चुका है। इसके साथ ही इस युद्ध के यूक्रेन के बाहर फैलने का डर पैदा हो गया है।

उक्त घटनाओं के बाद नाटो के सेक्रेटरी-जनरल जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने पिछले दिनों ऐलान किया कि यूक्रेन की लड़ाई में जंगी कार्रवाइयों के लिए नाटो का एक हेडक्वार्टर जर्मनी के विस्बाडेन में बनाया गया है और इसमें 700 लोगों का शुरुआती स्टाफ भी रखा गया है। 7 जून को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि उनकी सरकार यूक्रेन में अपने सैनिक भेजकर यूक्रेन की सेना को ‘प्रशिक्षण’ देने को तैयार नाटो देशों के एक ‘गठबंधन को अंतिम रूप दे रही है’। इससे नाटो की सेनाएँ सीधे तौर से इस लड़ाई में शामिल हो जाएँगी। वियतनाम युद्ध और दूसरी लड़ाइयों में पहले ही देखा जा चुका है कि ऐसे ‘प्रशिक्षण देने वाले’ आग में घी डालने का काम करते हैं। वे जंग में भाग लेते हैं, उसका दिशा-निर्देशन करते हैं, और इस वजह से हमलों का शिकार बनते हैं।

नदिया अबु-ऐताह (स्विट्ज़रलैंड), ब्रेकिंग फ्री, 2021

यूक्रेन में बढ़ता तनाव क्यूबाई मिसाइल संकट से ज़्यादा खतरनाक क्यों है?

क्यूबाई मिसाइल संकट सोवियत अधिकारियों के एक ग़लत अनुमान का नतीजा था कि अमेरिका के सबसे निकतम तट से महज़ 144 किलोमीटर और वाशिंगटन से लगभग 1,800 किलोमीटर दूर सोवियत परमाणु मिसाइल की मौजूदगी यूएस बर्दाश्त कर लेगा। अगर ऐसा हो जाता तो यूएस के लिए ख़ुद को किसी परमाणु हमले से बचा पाना नामुमकिन हो जाता। इससे एक ‘बराबरी की स्थिति’ भी बन जाती क्योंकि सोवियत संघ के ख़िलाफ़ इस तरह के हमले की क्षमता यूएस के पास पहले से ही थी। जैसा कि अनुमान था, यूएस ने बिल्कुल साफ़ कर दिया कि वो ऐसा कोई कदम हरगिज़ बर्दाश्त नहीं करेगा और इसे रोकने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकता है, यहाँ तक कि परमाणु युद्ध तक भी। उस समय डूम्स डे क्लॉक मध्यरात्रि से 12 मिनट के फासले पर पहुँच गई थी और सोवियत अधिकारियों को अपने ग़लत अनुमान का अंदाज़ा हो गया, कुछ दिनों के बेहद संगीन संकट के बाद उन्होंने मिसाइलें वापस ले लीं। इसके बाद अमेरिका-सोवियत के आपसी तनाव में कुछ नरमी आई और पहली परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (1963) लागू हुई।

1962 में यूएस और यूएसएसआर के बीच गोलियाँ नहीं चलीं। क्यूबाई मिसाइल संकट बेहद ख़तरनाक था, जिससे बड़े स्तर का युद्ध भड़क सकता था और जिसमें परमाणु हमले की भी गुंजाइश थी। लेकिन यह आकस्मिक घटना थी जो यूक्रेन युद्ध की तरह यूएस और यूएसएसआर के बीच पहले से चली आ रही तथा बढ़ती जा रही किसी युद्ध की स्थिति की वजह से नहीं घटी थी। इसलिए बेहद ख़तरनाक होते हुए भी इस मामले को तुरंत सुलझाया जा सकता था और ऐसा हुआ भी।

यूक्रेन की स्थिति और चीन के साथ बढ़ता तनाव, दोनों ही बुनियादी तौर से ज़्यादा खतरनाक हैं। नाटो और रूस में सीधा टकराव हो रहा है, ऐसे में यूएस ने सीधे सैन्य हमलों की अनुमति दे दी है (सोचिए अगर 1962 के संकट के दौरान सोवियत संघ द्वारा प्रशिक्षित क्यूबाई ताक़तों ने फ्लोरिडा पर सैन्य हमले किए होते तो क्या होता)। इस बीच अमेरिका लगातार ताइवान और दक्षिणी चीन सागर तथा कोरियाई प्रायद्वीप को लेकर चीन के साथ सैन्य तनाव बढ़ाता जा रहा है। अमेरिकी सरकार जानती है कि दुनिया में अब उसका रुतबा कम होता जा रहा है और उसका यह विश्वास भी सही है कि चीन के हाथों वो अपना आर्थिक दबदबा गँवा सकती है। इसीलिए वह लगातार सैन्य मामलों को बढ़ावा दे रही है क्योंकि वहाँ उसकी स्थिति अब भी दूसरों से बेहतर है। गज़ा को लेकर यूएस की नीति इसी समझ पर टिकी है कि यूएस अपने सैन्य प्रभुत्व पर किसी तरह का झटका बर्दाश्त नहीं कर सकता। और उसका यह सैन्य प्रभुत्व इज़रायल पर उसके नियंत्रण में स्पष्टतः सामने आता है।

यूएस और उसके नाटो सहयोगी दुनिया भर में सैन्य ख़र्चे के 74.3% हिस्से के लिए ज़िम्मेदार हैं। इस पृष्ठभूमि में युद्ध और सैन्य कार्रवाईयों के लिए यूएस का उतावलापन, यूक्रेन के हालात और चीन से सीधे टकराव की आशंका, ये सब बहुत खतरनाक हैं, शायद क्यूबाई मिसाइल संकट से भी ज़्यादा।

ततियाना ग्रीनविच (बेलारूस), द रिवर ऑफ विशिस्, 2012

युद्धरत देशों में समझौता कैसे हो?

रूस के यूक्रेन में दाख़िल होने के कुछ घंटों के भीतर ही दोनों देश इस तनाव के बुरे परिणामों के बारे में बात करने लगे थे। यह समझौते बेलारूस और तुर्की में हुए लेकिन इसके बाद नाटो ने रूस को ‘कमज़ोर‘ करने के लिए यूक्रेन को अंतहीन समर्थन का आश्वासन दे दिया। अगर उन शुरुआती दिनों में कोई समझौता हो जाता तो हज़ारों जानें बच सकती थीं। इस तरह के सभी युद्धों का अंत समझौतों से ही होता है इसलिए समझौता जितनी जल्दी हो उतना ही अच्छा है। यूक्रेन के लोग भी अब इस बात को खुलकर मान रहे हैं। द इकोनॉमिस्ट को यूक्रेन सैन्य खुफ़िया सूचना विभाग के उप-प्रमुख वादीम स्कीबिट्स्की ने बताया कि समझौता होने ही वाला है।

काफ़ी समय से रूस-यूक्रेन के मोर्चों पर कोई बड़ी हलचल नहीं हुई है। फरवरी 2024 में चीनी सरकार ने शांति प्रक्रिया को चलाने के नियमों के तौर पर बारह-बिन्दु जारी किए थे। युद्धरत पक्षों को इनके बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए, इन बिंदुओं में ‘शीत युद्ध की मानसिकता को त्यागने’ की भी बात कही गई है। लेकिन नाटो देशों ने इन्हें सिरे से नज़रंदाज़ कर दिया। कई महीनों बाद 15-16 जून को स्विट्ज़रलैंड में यूक्रेन के मुद्दे पर एक सम्मेलन हुआ जिसमें रूस को नहीं बुलाया गया। इस सम्मेलन का अंत एक विज्ञप्ति से हुआ जिसमें काफी कुछ चीन के सुझावों से लिया गया था जैसे परमाणु सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और कैदियों की अदला-बदली।

वेलीस्लावा गेचएवा (बुल्गारिया), होमो फोटोग्राफिक्स, 2014

अल्बानिया से उरुग्वे तक कई देशों ने इस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए लेकिन दूसरे देशों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कई कारण दिए, जिनमें से एक था कि उनके हिसाब से यह दस्तावेज़ सुरक्षा को लेकर रूस की चिंताओं को गंभीरता से नहीं लेता। जिन देशों ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए वे थे आर्मेनिया, बहरीन, ब्राज़ील, भारत, इंडोनेशिया, जोर्डन, लीबिया, मॉरीशस, मेक्सिको, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड और संयुक्त अरब अमीरात। स्विट्ज़रलैंड के सम्मेलन से कुछ दिन पहले ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शांति को लेकर अपनी शर्तें रखी थीं जिनमें से एक थी कि यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होगा। स्विट्ज़रलैंड के दस्तावेज़ पर जिन ग्लोबल साउथ के देशों ने हस्ताक्षर नहीं किए उनकी भी यही सोच थी।

रूस और यूक्रेन दोनों समझौता करने के लिए तैयार हैं। ऐसी स्थिति में नाटो देशों को क्या हक़ है कि वो विश्व शांति के लिए ख़तरा बनी हुई इस लड़ाई को लगातार चलाते जाएँ? इस साल 9-11 जुलाई को वाशिंगटन में होने जा रहे नाटो के सम्मेलन में यह बात उन्हें बिल्कुल स्पष्ट और बुलंद आवाज़ में सुन लेनी चाहिए कि दुनिया को न ही उनका यह युद्ध मंज़ूर है और न ही उनका पतित सैन्यवाद। दुनिया के लोग पुल बनाना चाहते हैं उन्हें धमाकों से उड़ाना नहीं।

मैक्सिम कांतोर (रूस), टू वर्ज़न्स ऑफ हिस्ट्री, 1993

यूक्रेन में तनाव के मौजूदा ख़तरों पर लिखा गया बेहद स्पष्ट दस्तावेज़ — ब्रीफिंग नं. 13 उन्हीं बातों की अहमियत पेश करता है जो मोरक्को की ‘वर्कर्स डेमोक्रेटिक वे’ पार्टी के अब्दुल्ला अल हरिफ़ के साथ मिलकर मैंने युद्ध की तैयारियों के ख़िलाफ़ बोफ़िशा अपील (2020) में लिखी थीं। कि हम, दुनिया के लोग:

  • अमेरिकी साम्राज्यवाद की जंगखोरी का विरोध करते हैं, जो पहले से ही नाज़ुक हालात झेल रही हमारी इस दुनिया पर ख़तरनाक युद्धों को थोप रही है।
  • इस दुनिया को तमाम तरह के हथियारों से भर देने की कवायद का विरोध करते हैं, हथियार आपसी टकराव को भड़काते हैं और राजनीतिक प्रक्रियाओं को अंतहीन युद्धों की तरफ धकेल देते हैं।
  • दुनिया के लोगों के सामाजिक विकास को रोकने के लिए सैन्य ताक़त के इस्तेमाल के खिलाफ हैं।
  • दुनिया के तमाम देशों की संप्रभुता और उनके आत्मसम्मान के अधिकार की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।

दुनिया भर के संवेदनशील लोगों को सड़कों और सत्ता के गलियारों में अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी ताकि यह ख़तरनाक युद्ध ख़त्म हो सके और हम सब बढ़ सकें एक ऐसी दुनिया की ओर जो पूँजीवाद के अंतहीन युद्धों से मुक्त हो।

स्नेह सहित,

विजय