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सबसे अंधेरे समय में भी पढ़ना, गाना और नाचना जारी रहेगा: दसवाँ न्यूज़लेटर (2024)

जब इजरायल फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार जारी रखे हुए है और कांगो के पूर्वी लोकतांत्रिक गणराज्य में भयानक युद्ध बढ़ रहा है, तो खुशी के बारे में सोचना लगभग असंभव है। लेकिन सबसे अंधकारमय समय में भी, मनुष्य आनंद और आशा की तलाश करता है, एक ऐसे क्षितिज की तलाश करता है जो केवल जीवन के तात्कालिक उत्पीड़न से निर्मित न हो। इज़राइल के जेट विमान बम गिरा रहे थे, लेकिन रफ़ा से सलीम ने रेड बुक्स डे के बारे में मुझसे बात करने का समय निकाल लिया। उनके लिए, उनके बच्चों के लिए, वर्तमान परिदृश्य पर्याप्त नहीं है: वे कल्पना करते हैं कि इस क्षितिज के परे क्या है, सर पर खड़े नरसंहार के परे क्या है।
Red Books Day event at the May Day Bookstore in Delhi (India), 2024.

मे डे बुकस्टोर, दिल्ली, में रेड बुक्स डे कार्यक्रम, 2024

प्यारे दोस्तो,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

जब इज़राइल फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ भयावह नरसंहार जारी रखे हुए है और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (डीआरसी) के पूर्वी हिस्से में भयानक युद्ध में तेज़ी आ रही है, ऐसे में ख़ुशी के बारे में सोचना लगभग असंभव है। ग़ाज़ा में और गोमा (डीआरसी) के पास लाखों लोग मारे गए, घायल हुए और कई लाख लोग विस्थापित हुए। तात्कालिक मांग तो यही होनी चाहिए कि इन दोनों जगहों पर हिंसा तुरंत रोकी जाए, लेकिन इसके साथसाथ इस हिंसा की जड़ को भी ख़त्म करने की ज़रूरत है (जैसे फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़ा ख़त्म करना)। जब इस तरह के संघर्ष होते हैं तो हम वर्तमान में फँस जाते हैं और भविष्य के बारे में सोचने में असमर्थ हो जाते हैं। पृथ्वी के अधिकांश हिस्से में अकाल पड़ने से, रोज़मर्रा की ज़िंदगी में गिरावट के कारण, बेहतर दुनिया का सपना देखना असंभव हो गया है। ग़ाज़ा, गोमा और दुनिया भर में हज़ारों जगहों की माँगें एक जैसी हैं: एक बम कम हो, एक रोटी ज़्यादा हो।

हालाँकि, सबसे अंधकारमय समय में भी, मनुष्य आनंद और आशा की तलाश करता है, एक ऐसे क्षितिज की तलाश करता है जो केवल जीवन के तात्कालिक अपमानों से निर्मित न हो। लगभग एक दशक पहले, मैंने एक दोपहर रामल्ला (फ़िलिस्तीन) के उत्तर में जलाज़ोन शिविर में बिताई थी, जहाँ मैंने संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) स्कूल के एक सत्र में भाग लिया था। वेस्ट बैंक में यूएनआरडब्ल्यूए स्कूल के बाहर चौकियों पर इज़रायली सैनिकों द्वारा फ़िलिस्तीनियों की हत्याओं की एक शृंखला की वजह से क़ब्ज़े वाले इलाक़े में तनाव बढ़ गया था।

यूएनआरडब्ल्यूए स्कूल की एक कला कक्षा में मैंने युवा फ़िलिस्तीनी बच्चों को उनके हालिया सपने को दर्शाते हुए एक कहानी बनाते देखा। शिक्षक ने मुझे कक्षा में घूमने और बच्चों के साथ बातचीत करने की अनुमति दी। उनमें से कई ने वही चित्र बनाए जो बच्चे अक्सर बनाते हैं: एक घर, सूरज, घर के बग़ल में एक नदी, झूले या स्लाइड पर खेलते बच्चे। वहाँ रंगभेदी दीवारों का कोई निशान नहीं था, कोई चौकियाँ नहीं थीं और कोई इज़रायली सैनिक नहीं थे। इन सबकी जगह वहाँ केवल वह सरलता थी जिसे वे अनुभव करना चाहते थे। इस तरह उन्होंने ख़ुशी को चित्रित किया।

Red Books Day event at The People’s Forum in New York City (United States), 2024.

पीपुल्स फ़ोरम, न्यूयॉर्क (संयुक्त राज्य अमेरिका) में रेड बुक्स डे कार्यक्रम, 2024

अब, जब मैं ग़ाज़ा में अपने दोस्तों से उनके बच्चों के बारे में पूछता हूँ, तो वे कहते हैं कि युद्ध की आवाज़, बमबारी से उठने वाली धूल और मौत के डर ने उन्हें घेर लिया है। सलीम, जो रफ़ा में रहते हैं, बताते हैं कि उनकी दो युवा बेटियाँ अक्सर अपने चाचा के अपार्टमेंट के फ़र्श पर बैठी रहती हैं, जो भी काग़ज़ का टुकड़ा उन्हें मिल जाता है उस पर चित्र बनाती हैं। वो कहते हैं, ‘अगले साल हम ग़ाज़ा शहर में रेड बुक्स डे मनाएँगे, इंशाल्लाह’। मैंने उससे पूछा, ‘आप कौनसी किताब पढ़ेंगे’? उन्होंने कहा, आपके लिए हम महान फ़िलिस्तीनी कवि दरवेश को पढ़ेंगे। और फिर, वह ‘विस्मृति के लिए स्मृति’ कविता से इन पंक्तियों का पाठ करते हैं:

इस युद्ध में आप क्या लिख रहे हैं, कवि?

मैं अपनी ख़ामोशी लिख रहा हूँ।

क्या आपका मतलब यह है कि अब बंदूक़ें बोलनी चाहिए?

हाँ। उनकी आवाज़ मेरी आवाज़ से ज़्यादा तेज़ है।

तब तुम क्या कर रहे हो?

मैं दृढ़ता का आह्वान कर रहा हूँ।

और क्या आप युद्ध जीतेंगे?

नहीं। महत्वपूर्ण बात है थमे रहना। टिके रहना अपने आप में एक जीत है।

और उसके बाद क्या?

एक नये युग की शुरुआत होगी।

और क्या आप फिर से कविता लिखना शुरू करेंगे?

जब बंदूक़ें थोड़ी शांत हो जाएँगी। जब मैं अपनी ख़ामोशी का तोड़ूँगा, जो इन आवाज़ों से भरी है।

जब मुझे उपयुक्त भाषा मिल जाए।

इज़रायली जेट विमानों ने रफ़ा के किनारों पर बमबारी शुरू कर दी थी, और फिर भी सलीम ने रेड बुक्स डे के बारे में बात करने के लिए समय निकाला। उनके लिए, उनके बच्चों के लिए, वर्तमान पर्याप्त नहीं है। वे कल्पना करना चाहते हैं कि क्षितिज के पार क्या है, सामने हो रहे नरसंहार के पार क्या है।

साइमन बोलिवर इंस्टीट्यूट, काराकास (वेनेज़ुएला) में रेड बुक्स डे कार्यक्रम, 2024

इस वर्ष, इंडोनेशिया से चिली तक, पंद्रह लाख लोगों ने रेड बुक्स डे में भाग लिया, जो अंतर्राष्ट्रीय वामपंथ के कैलेंडर का एक हिस्सा बन रहा है। 2019 में, इंडियन सोसाइटी ऑफ़ लेफ़्ट पब्लिशर्स (आईयूएलपी) ने 21 फ़रवरी को एक उत्सव आयोजित करने के बारे में विचार करना शुरू किया, जो 1848 में ‘द कम्युनिस्ट मेनिफ़ेस्टो’ के प्रकाशन की तिथि थी। दुनिया में सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली इस किताब ने पिछली डेढ़ शताब्दी में अरबों लोगों को समाजवाद की एक ऐसी प्रक्रिया का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया है जिससे पूँजीवाद द्वारा उत्पन्न समस्याएँ (जैसे भूख, अशिक्षा, ग़रीबी, नरसंहार और युद्ध) समाप्त हो जाएँगी। यह पुस्तक हमारे समय में लाखों लोगों को प्रेरित करती रही है, इसके शब्द वर्तमान के संघर्षों को सुलझाने के लिए पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं।

चूँकि इसी तारीख़ (21 फ़रवरी) को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस भी मनाया जाता है, इसलिए लेखकों, प्रकाशकों, किताब की दुकानों और पाठकों के लिए यह विचार था कि वे सार्वजनिक स्थानों पर जाएँ और घोषणापत्र को अपनी भाषाओं में पढ़ें। महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, वेनेज़ुएला से लेकर दक्षिण कोरिया तक 30,000 लोगों ने 2020 में पहले रेड बुक्स डे में भाग लिया, जिसका केंद्र भारत था। जल्द ही, यह स्पष्ट हो गया कि मुद्दा केवल घोषणापत्र को पढ़ने का नहीं था, बल्कि उस दिन किसी भी क्रांतिकारी किताब को पढ़ने का था। वामपंथी आदर्शों के साथ और अधिक गहराई से जुड़ते हुए, कई लोगों ने सामूहिक जीवन को बचाने और वामपंथ की संस्कृतियों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार के समारोह आयोजित करने का निर्णय लिया।

Chemm Parvathy dances to ‘The Internationale’ in Thiruvananthapuram (India) in preparation for Red Books Day.

रेड बुक्स डे की तैयारी के अवसर पर तिरुवनंतपुरम में ‘द इंटरनेशनेल’ थीम पर केम्म पार्वती का नृत्य

इस वर्ष, इंटरनेशनल यूनियन ऑफ़ लेफ़्ट पब्लिशर्स (आईयूएलपी) ने फ़रवरी की शुरुआत में युवा कलाकार और कम्युनिस्ट कार्यकर्ता केम पार्वती द्वारा एक शक्तिशाली नृत्य वीडियो जारी करके रेड बुक्स दिवस उत्सव की शुरुआत की। उन्होंने तिरुवनंतपुरम के बाज़ारों और मज़दूरों के कारख़ानों में नृत्य करते हुए ‘द इंटरनेशनेल’ के फ़्रांसीसी संस्करण पर प्रदर्शन किया। गीत का समापन समुद्र तट पर पार्वती के नृत्य के साथ हुआ, जो कम्युनिस्ट झंडा थामे हुए थीं और लाल सूरज उनके पीछे क्षितिज में डूब रहा था। वीडियो वायरल हो गया और इसने रेड बुक्स डे के लिए माहौल तैयार कर दिया। इस वर्ष के कार्यक्रमों में दुनिया भर के कलाकारों द्वारा डिज़ाइन किए गए मूल स्मारिका पोस्टरों की एक शृंखला भी शामिल थी ताकि अधिक से अधिक लोगों को अपने क्षेत्रों में पाठ और प्रदर्शन आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

2024 में आयोजित कार्यक्रमों का दायरा और उसकी भागीदारी को देखते हुए यह स्पष्ट था कि इस बार का आयोजन पिछले आयोजनों से अधिक व्यापक होगा। इंडोनेशिया और पूर्वी तिमोर में समाजवादी शक्तियों द्वारा सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, जबकि क्यूबा में हवाना पुस्तक मेले में 21 फ़रवरी को कार्यक्रमों के लिए एक विशेष दिन रखा गया। घाना के समाजवादी आंदोलन और ब्राज़ील के भूमिहीन श्रमिक आंदोलन (एमएसटी) के साथसाथ ऑस्ट्रेलिया में रेड एंट और बांग्लादेश में वर्कर्स पार्टी द्वारा लाल किताबों का पाठ किया गया था। नेपाल के छोटे गाँवों में कम्युनिस्टों ने अध्ययन और संघर्ष के महत्व पर चर्चा करने के लिए ऊँचे पहाड़ों में बैठकें आयोजित कीं। न्यूयॉर्क शहर में, पीपुल्स फ़ोरम ने कम्युनिस्ट क्लाउडिया जोन्स के जीवन और लेखन पर एक उत्सव आयोजित किया, जबकि चिली में साल्वाडोर अलेंदे के भाषण ला कैफ़ेबेरिया में पढ़े गए और दक्षिण अफ़्रीका में कम्यून में इस बात की चर्चा की गई कि साम्राज्यवादी शक्तियाँ किस प्रकार मानवाधिकार की अवधारणा का उपयोग करती हैं। आयरलैंड की कम्युनिस्ट पार्टी ने सांस्कृतिक केंद्र एओनाच म्हाचा में पाठ और एक कार्यशाला का आयोजन किया, और यूके यंग कम्युनिस्ट लीग और स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया के एक समूह ने साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में द यंग कार्ल मार्क्स नामक एक फ़िल्म की स्क्रीनिंग का आयोजन किया।

अकरा (घाना), में सोशलिस्ट मूवमेंट द्वारा आयोजित रेड बुक्स डे कार्यक्रम, 2024

रेड बुक्स डे अब भारत के वामपंथ के सांस्कृतिक परिदृश्य का अभिन्न अंग बन गया है। इस वर्ष का रेड बुक्स दिवस 1917 की रूसी क्रांति के नेता वी. आई. लेनिन की 100वीं पुण्यतिथि मनाने का एक मंच भी बन गया। केरल में, 40,000 स्थानों पर पाँच लाख लोग ईएमएस नंबूदरीपाद की किताब ‘लेनिनिज्म एंड द अप्रोच टू द इंडियन रिवोल्यूशन’ को पढ़ने और चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए। इनमें से सबसे बड़ा आयोजन तिरुवनंतपुरम में हुआ, जिसका उद्घाटन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के केरल राज्य सचिव एमवी गोविंदन ने किया। पुरोगमना कला साहित्य संघम (पुकासा या प्रगतिशील कला और साहित्यिक संगठन) ने कम्युनिस्ट घोषणापत्र की समकालीन प्रासंगिकता पर केरल भर में सेमिनार आयोजित किए, और पुकासा नाट्टिका मेखला समिति के वीकेएस गायक समूह ने कम्युनिस्ट घोषणापत्र पर एक संगीत वीडियो तैयार किया। कर्नाटक में, सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो के सदस्य एमए बेबी ने ‘लेनिन और संस्कृति’ पर व्याख्यान दिया, जबकि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में श्रमिकों, किसानों और युवाओं ने (मन मंची पुस्तकम् द्वारा आयोजित एक वेबिनार सहित) लेनिन के जीवन और लेखन पर चर्चा की।

महाराष्ट्र में, गोदावरी परुलेकर की ‘जेव्हा मानुस जग होतो(द अवेकनिंग ऑफ़ ए मैन) पर एक वेबिनार आयोजित किया गया था। भारत के कई हिस्सों में, जैसे असम में, स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया ने कम्युनिस्ट घोषणापत्र का पाठ आयोजित किया। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु दोनों में, लोगों ने द पॉलिटिकल मार्क्स के बांग्ला और तमिल संस्करण का पाठ किया, जिसे मैंने ऐजाज़ अहमद का साथ मिलकर लिखा है। तमिलनाडु में, सीपीआई (एम) के जी. रामकृष्णन ने मध्य चेन्नई में एक वाचन सत्र का उद्घाटन किया, और जन समूह ने लघु पुस्तिका लेनिन: द पोलस्टार ऑफ़ रेवोल्यूशन का पाठ किया और उस पर चर्चा की।

हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी और द इंग्लिश एंड फ़ॉरेन लैंग्वेजेज़ यूनिवर्सिटी के छात्रों ने इस दिन को एक व्यापक सांस्कृतिक आयोजन में तब्दील करने के विचार के साथ पोस्टर प्रदर्शनी और पुस्तक महोत्सव का आयोजन किया। नई दिल्ली के मे डे बुकस्टोर में, गाने और नृत्य के साथसाथ जन नाट्य मंच द्वारा एक नुक्कड़ नाटक का प्रदर्शन किया गया, विभिन्न भारतीय भाषाओं में घोषणापत्र का पाठ और फ़िलिस्तीन के साथ एकजुटता दिखाते हुए कविता पाठ भी हुआ।

भूमिहीन ग्रामीण श्रमिक आंदोलन (एमएसटी) द्वारा ब्रासीलिया (ब्राज़ील) में आयोजित रेड बुक्स डे कार्यक्रम, 2024

रेड बुक्स डे 2025 की ओर बढ़ते हुए, आईयूएलपी हर महीने अपने सोशल मीडिया चैनलों पर एक पोस्टर जारी करेगा, साल के अंतर में इन पोस्टरों को इकट्ठा करके रेड बुक्स डे कैलेंडर तैयार किया जाएगा। विचार यह है कि रेड बुक्स डे केवल एक ही दिन नहीं मनाया जाएगा, बल्कि पूरे वर्ष इससे जुड़ी गतिविधियाँ होंगी और इसका समापन 21 फ़रवरी की मुख्य कार्यक्रम के साथ होगा।

रेड बुक्स डे, रेड बुक्स को लिखने, प्रकाशित करने और पढ़ने के अधिकार की रक्षा करने तथा इन दिनों व्याप्त तर्कहीन विचारों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए व्यापक सांस्कृतिक संघर्ष का हिस्सा है (जैसे कि भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का दावा है कि प्राचीन भारत ने प्लास्टिक सर्जरी में उत्कृष्टता हासिल कर ली थी क्योंकि हिंदू भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश के सिर के स्थान पर हाथी का सिर लगाया था, जिसके बारे में हमने अपने नवीनतम डॉजियर में लिखा है)। हालाँकि रेड बुक्स डे का आयोजन आईयूएलपी द्वारा किया जाता है, जिसमें दुनिया भर के चालीस से अधिक प्रकाशक शामिल हैं, यह पूरी तरह से यूनियनों द्वारा आयोजित नहीं किया जाता है। हम ऐसी उम्मीद करते हैं कि एक दिन यह आयोजन आईयूएलपी के दायरे से आगे निकल जाएगा और वामपंथ के कैलेंडर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाएगा। रेड बुक्स डे को हमारे वामपंथी नेटवर्क से परे फैलते देखना उल्लेखनीय था। रेड बुक्स डे का यही उद्देश्य है: इसे सार्वजनिक संस्कृति का एक अभिन्न अंग बनाना और तर्कसंगत तथा समाजवादी विचारों को समाज के मूलभूत विचारों के रूप में स्थापित करने के लिए संघर्ष करना। हमारा अनुमान है कि इस दशक के अंत तक एक करोड़ से अधिक लोग रेड बुक्स दिवस में भाग लेंगे। अगले साल, ग़ाज़ा में।

स्नेहसहित,

विजय