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ये पीड़ा के गीत हैं, युद्ध के नहीं : 21 वां न्यूज़लेटर (2024)

अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने हाल ही में इज़राइल, ताइवान, यूक्रेन और अमेरिका के लिए आवंटित 95.3 अरब डॉलर की सैन्य फंडिंग का जश्न मनाने के लिए कीव का दौरा किया। यानी ग़ज़ा में इज़रायली नरसंहार का समर्थन जारी रहेगा, 'रूस को कमजोर देखने' के लिए नाटो के विस्तार के प्रयास में यूक्रेन का इस्तेमाल जारी रहेगा, और नए शीत युद्ध के तहत चीन को रोकने के प्रयासों में ताइवान का इस्तेमाल किया जाएगा। हमारा नया डोसियर अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति के संदर्भ में इन घटनाक्रमों के पीछे की रूपरेखा और उद्देश्यों को उजागर करता है।

इरी और तोशी मारुकी, XV नागासाकी, 1982, हिरोशिमा पैनल्स से साभार

प्यारे दोस्तो,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

प्रबीर के लिए, जो अब जेल से बाहर आ गए हैं।

14 मई की शाम को, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन यूक्रेन स्थित बर्मन डिक्टेट के मंच पर चढ़ गए और इलेक्ट्रिक गिटार लेकर यूक्रेनी पंक बैंड 19.99 के साथ गाने लगे। उन्होंने कहा, यूक्रेनी ‘स्वतंत्र यूक्रेन के लिए ही नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र दुनिया के लिए लड़ रहे हैं।’ इसके बाद ब्लिंकन और 19.99 ने नील यंग के ‘रॉकिन’ इन द फ्री वर्ल्ड’ गाने की धुन बजाई। उन्हें – डॉनल्ड ट्रम्प की तरह, जिन्होंने यंग की असहमति के बाद भी अपने 2015-2016 के राष्ट्रपति अभियान में यंग का यह गाना इस्तेमाल किया था – गानों के आशय से कोई मतलब नहीं है।

फरवरी 1989 में, जब यंग को ख़बर मिली कि यूएसएसआर में उनके बैंड का दौरा रद्द हो गया है, तो उन्होंने रीगन के कार्यकाल और जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश के राष्ट्रपति पद के पहले महीने पर कटाक्ष करते हुए एक गीत लिखा। हालांकि यह गीत ऊपरी तौर पर देशभक्ति से परिपूर्ण लगता है, पर असल में यह गाना ब्रूस स्प्रिंगस्टीन के ‘बॉर्न इन द यूएसए (1984)’ गाने की तरह पूंजीवादी समाज में निहित शोषण और विभाजन की गहरी आलोचना करता है।

‘रॉकिन’ इन द फ्री वर्ल्ड’ के तीन छंद निराश जनता की तस्वीर पेश करते हैं (‘पीपल शफलिंग देयर फ़ीट/ पीपल स्लीपिंग इन देयर शूज़’) जिसमें, ग़रीबों में नशे की महामारी (‘पुट्स द किड अवे/एंड शी इज़ गॉन टू गेट अ हिट’), शैक्षिक अवसरों की कमी (‘देयर इज़ वन मोर किड/दैट विल नेवर गो टू स्कूल’), और सड़क पर रहने को मजबूर बढ़ती आबादी (‘वी गॉट अ थाउज़ंड प्वाइंट्स ऑफ़ लाइट/ फ़ॉर द होमलेस मैन’) का ज़िक्र है। स्प्रिंगस्टीन का गीत वियतनाम पर अमेरिकी युद्ध की छाया में लिखा गया था (‘सो दे पुट अ राइफ़ल इन माई हैंड/ सेंट मी ऑफ़ टू अ फ़ॉरेन लैंड/ टू गो एंड किल द येलो मैन), और अमेरिका में मज़दूर वर्ग की दुर्दशा को दिखाता है, जिनमें से कइयों को -उनकी इच्छा के विरुद्ध हुए- युद्ध से लौटने के बाद नौकरी नहीं मिल रही थी (‘डाउन इन द शैडो ऑफ़ द पेनिटेंशरी/ आउट बाई द गैस फ़ाइअर्स ऑफ़ द रिफ़ाइनरी/ आई एम टेन यीर्ज़ बर्निंग डाउन द रोड/ नोवेयर टू रन ऐंट गॉट नोवेयर टू गो)।

ये पीड़ा के गीत हैं, युद्ध के गीत नहीं। ‘बॉर्न इन द यूएस’ या ‘कीप ऑन रॉकिंग इन द फ़्री वर्ल्ड’ गाने से वैश्विक उत्तर के प्रति गर्व की भावना उत्पन्न नहीं होती, बल्कि ये उनके द्वारा दुनिया पर थोपे गए क्रूर युद्धों की तीखी आलोचना हैं। ‘कीप ऑन रॉकिंग इन द फ़्री वर्ल्ड’ व्यंग्य है। न तो ये ब्लिंकन को समझ आया, और न ही ट्रम्प को। वे इस गीत की धुन के आकर्षण का इस्तेमाल करना चाहते हैं, पर इस में दर्ज पीड़ा पर ध्यान नहीं देते। वे यह नहीं समझते कि नील यंग द्वारा 1989 में गया गया यह गाना पनामा (1989-1999), इराक (1990-1991), यूगोस्लाविया (1999), अफ़ग़ानिस्तान (2001-2021), इराक (2003-11) आदि के ख़िलाफ़ हुए अमेरिकी युद्धों के प्रतिरोध का गीत है।

इरी और तोशी मारुकी, XIII अमेरिकी वॉर प्रिज़नर्स की मौत, 1971, द हिरोशिमा पैनल्स से साभार

ब्लिंकन अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में तीन विधेयकों के पारित होने का जश्न मनाने के लिए कीयव गए थे, जिनके तहत इज़राइल, ताइवान, यूक्रेन और संयुक्त राज्य अमेरिका की सेनाओं के लिए 95.3 अरब डॉलर का प्रावधान किया गया है। यह अमेरिका द्वारा हर साल अपनी सेना पर ख़र्च किए जाने वाले 1500 अरब डॉलर से अतिरिक्त व्यय है। अमेरिका ने ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार के लिए इज़रायल को घातक हथियारों की आपूर्ति जारी रखी है और नए बिलों के तहत इज़रायल को 26.4 अरब डॉलर और देने का वादा किया है, लेकिन दूसरी तरफ़ वह फ़िलिस्तीनियों की भुखमरी और नरसंहार के लिए चिंतित होने का दिखावा करता है। यह भयावह है कि अमेरिका यूक्रेन और रूस के बीच शांति वार्ता नहीं होने दे रहा, और यूक्रेन की हतोत्साहित सेना को लगातार वित्त पोषित कर रहा है (और नए बिल पास होने के बाद वह हथियारों के लिए यूक्रेन को 60.8 अरब डॉलर और देगा)। ये सब इसलिए क्योंकि अमेरिका इस टकराव का उपयोग ‘रूस को कमज़ोर देखने‘ के लिए करना चाहता है।

इसी तरह, यूरेशिया के दूसरे छोर पर, अमेरिका चीन को ‘कमज़ोर’ देखने के लिए ताइवान के मुद्दे का इस्तेमाल कर रहा है। यही कारण है कि इस पूरक अनुदान के ज़रिए ‘इंडो-पैसिफिक सुरक्षा’ के लिए 8.1 अरब डॉलर आवंटित किया गया है, जिसमें ताइवान के लिए 3.9 अरब डॉलर के हथियार और अमेरिका में पनडुब्बी निर्माण के लिए 3.3 अरब डॉलर शामिल हैं। चीन के ख़िलाफ़ इस दबाव अभियान में ताइवान के साथ और भी देशों को इस्तेमाल के लिए तैयार किया जा रहा है। जैसे ऑस्ट्रेलिया, जापान, फिलीपींस और अमेरिका से बने नए स्क्वॉड का मक़सद है फिलीपींस और चीन के बीच समाधान योग्य मुद्दों का इस्तेमाल कर टकराव पैदा करना, ताकि चीन को प्रतिक्रिया के लिए भड़काया जा सके और अमेरिका को उस पर हमला करने का बहाना मिल जाए।

इरी और तोशी मारुकी, XIV कौवे, 1972, द हिरोशिमा पैनल्स से साभार

इंटरनैशनल स्ट्रैटेजी सेंटर (सियोल, दक्षिण कोरिया) और नो कोल्ड वॉर के सहयोग से प्रकाशित हमारे नए डोसियर ‘द न्यू कोल्ड वॉर इज़ सेंडिंग ट्रेमर्स थ्रू नॉर्थईस्ट एशिया’ के अनुसार, ‘चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका के नेतृत्व वाला नया शीत युद्ध पूर्वोत्तर एशिया को अस्थिर कर रहा है। क्षेत्र के ऐतिहासिक मुद्दों का इस्तेमाल कर जापान और दक्षिण कोरिया से ताइवान जलडमरूमध्य और फ़िलीपींस से आगे ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत द्वीप समूह तक व्यापक सैन्यीकरण अभियान चलाया जा रहा है। अमेरिका द्वारा चीन को घेरने में भारत की भूमिका निर्धारित करने के लिए ही ‘इंडो-पैसिफिक’ नाम चलाया गया और इस क्षेत्र में जारी इन गतिविधियों के अंतर्गत उत्तर कोरिया का हौआ खड़ा कर उसके परमाणु एवं मिसाइल कार्यक्रमों का इस्तेमाल प्रशांत क्षेत्र के एशिया किनारे में असीमित लामबंदी को उचित ठहराने के लिए किया जाता है। 2023 में दक्षिण कोरिया का सैन्य बजट (47.9 अरब डॉलर) उसी वर्ष उत्तर कोरिया के सकल घरेलू उत्पाद (20.6 अरब डोल्लर) के दोगुने से भी अधिक था। यह एक उदाहरण है जो इस असंतुलन को उजागर करता है। डोसियर में कहा गया है कि उत्तर कोरिया को इस तरह इस्तेमाल करना, ‘हमेशा से ही अमेरिका की दबाव रणनीतियों का अहम हिस्सा रहा है – पहले सोवियत संघ के ख़िलाफ़ और आज चीन के ख़िलाफ़’।

इरी और तोशी मारुकी, XII तैरते लालटेन, 1968, द हिरोशिमा पैनल्स से साभार

अमेरिका की ‘इंडो-पैसिफिक रणनीति’ के शुरुआती वर्षों में, हू बो, चेन जिमिन और फेंग ज़ेन्नन जैसे चीनी विद्वानों ने कहा था कि यह संबोधन केवल वैचारिक है, और चीन पर दबाव बनाने को लेकर इस रणनीति में शामिल देशों के बीच मौजूद विरोधाभासों के कारण सीमित है। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में, चीन में नया दृष्टिकोण विकसित हुआ है कि प्रशांत क्षेत्र में ये बदलाव चीन के लिए एक गंभीर ख़तरा पैदा करते हैं और चीन को किसी भी उकसावे को रोकने के लिए स्पष्टता से जवाब देना चाहिए। अमेरिका द्वारा चीन पर दबाव बनाने के लिए तैयार किए जा रहे नए गठबंधन (क्वाड, ऑकस, जेकस और स्क्वाड) और वैश्विक उत्तर के उग्र-साम्राज्यवाद के आगे डटे रहने का चीनी संकल्प, आज एशिया में गंभीर ख़तरे का सबब है।

डोसियर के अंतिम खंड ‘उत्तर पूर्व एशिया में शांति का मार्ग’ में ओकिनावा (जापान), कोरियाई प्रायद्वीप और चीन के जन-आंदोलनों के बारे में बताया गया है जो शांति का रास्ता बनाने का प्रयास कर रहे हैं। पांच सरल सिद्धांत इस रास्ते का आधार हैं: ख़तरनाक गठबंधनों का अंत, क्षेत्र में अमेरिका के नेतृत्व वाले युद्धाभ्यासों व अमेरिकी हस्तक्षेप का अंत, क्षेत्र में विभिन्न आंदोलनों में आपसी सहयोग और एशिया में सैन्यीकरण को समाप्त करने को प्रतिबद्ध आंदोलनों के लिए समर्थन। ओकिनावा के कडेना एयर बेस, हेनोको खाड़ी, दक्षिण कोरिया के टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस इंस्टॉलेशन, और जेजू नौसेना अड्डा के पास रहने वाले लोग कई मोर्चों पर सैन्यीकरण को सीधी चुनौती दे रहे हैं।

इरी और तोशी मारुकी, X याचिका, 1955, द हिरोशिमा पैनल्स से साभार

कई साल पहले, मैं सैतामा में हिगाशी-मात्सुयामा शहर के बाहर बनी मारुकी गैलरी में गया था, जहां मैंने अमेरिकी सरकार द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों की भयानक हिंसा की याद में इरा मारुकी (1901-1995) और तोशी मारुकी (1912-2000) द्वारा बनाए गए उल्लेखनीय भित्ति चित्र देखे। जापान की पारंपरिक इंक-वश शैली (सुमी-ई) में बने ये भित्ति चित्र, आधुनिक युद्ध की कुरूपता को दर्शाते हैं। चीफ़ क्यूरेटर युकिनोरी ओकामुरा और अंतर्राष्ट्रीय समन्वयक युमी इवासाकी की मदद से, हम उनमें से कुछ भित्ति चित्र अपने डोसियर और इस न्यूज़लेटर में शामिल कर पाए।

1980 में, दक्षिण कोरिया में सैन्य तानाशाही ने किम नाम-जू (1945-1994) और पैंतीस अन्य वामपंथियों को इस आधार पर गिरफ़्तार कर लिया कि वे नेशनल लिबरेशन फ्रंट प्रिपरेशन कमेटी में भाग ले रहे थे। किम एक कवि और अनुवादक थे, जिन्होंने फ्रांत्ज़ फैनन की ‘ब्लैक स्किन, व्हाइट मास्क’ और हो ची मिन्ह की रचनाओं को कोरियाई भाषा में अनूदित किया था। आठ साल तक ग्वांगजू जेल में रहते हुए, किम ने कई प्रभावशाली कविताएँ लिखीं, जिन्हें किसी तरह बाहर लाकर प्रकाशित किया गया। उन कविताओं में से एक है ‘चीजें वास्तव में बदल गई हैं‘। यह कविता अपने ही प्रायद्वीप में कोरियाई लोगों की दमित महत्वाकांक्षाओं के बारे में है।

जापानी साम्राज्यवाद में यदि जोसोन लोग
कहते ‘आजादी जिंदाबाद!’
जापानी पुलिसकर्मी आते और उन्हें ले जाते
जापानी वकील उनसे पूछताछ करते
जापानी न्यायाधीश उन पर मुक़दमा चलाते

जापान चला गया तो अमेरिका आ गया
अब यदि कोरियाई
‘यैंकी गो होम’ कहें
कोरियाई पुलिस आती है और उन्हें ले जाती है
कोरियाई वकील उनसे पूछताछ करते हैं
कोरियाई न्यायाधीश उन पर मुक़दमा चलाते हैं

आज़ादी के बाद चीज़ें सचमुच बदल गई हैं
क्योंकि मैंने कहा था ‘विदेशी आक्रमणकारियों को बाहर निकालो!’
मेरे अपने देश के लोगों ने
मुझे गिरफ़्तार किया, मुझसे पूछताछ की और मुझ पर मुक़दमा चलाया

स्नेह-सहित,

विजय