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एक नए शीत युद्ध से उत्तर-पूर्व एशिया में हड़कंप

यह डोसियर चीन के ख़िलाफ़ यूएस के नए शीत युद्ध से उत्तर-पूर्व एशिया में मचे हड़कंप को समझने का प्रयास है।

 
Iri and Toshi Maruki, IX Yaizu, 1955, from The Hiroshima Panels. Sumi ink, pigment, glue, charcoal or conté on paper, 180 × 720 cm.

यह डोसियर सियोल स्थित इंटरनैशनल स्ट्रैटिजी सेंटर (आईएससी) के साथ मिलकर तैयार किया गया है और इसे डे-हान सॉन्ग ने लिखा है। आईएससी की सामग्री तैयार करने वाली टीम (एलिस किम, जिओवानी वासतीदा, ग्रेग चंग, मरियम इब्राहीम, मैथ्यू फिलिप्स और ज़ोइ युंगमि ब्लैंक) का ख़ास तौर से शुक्रिया और साथ ही ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान का उनके सहयोग, सुझाव और संपादन के लिए शुक्रिया, जिससे यह डोसियर संभव हो सका।

जापानी दंपति मारुकी इरी (1901-1995) और मारुकी तोषी (1912-2000) ने बत्तीस साल में ‘द हिरोशिमा पैनल्स’ (चित्रों की एक शृंखला) तैयार किया। इनके ज़रिए वे अगस्त 1945 में संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों से हुई तबाही को दिखाना चाहते थे। इस बत्तीस साल के अरसे में उन्होंने हिरोशिमा और नागासाकी के नरसंहार को दर्शाते हुए लगभग 900 मानव आकृतियां बनाईं (इस हमले में कितने लोग मारे गए, इसका सटीक आँकड़ा नहीं है, लेकिन अनुमान है कि 220,000 लोगों की मौत हुई थी)।1 सुमी-ई नाम की पारंपरिक जापानी वाश तकनीक से बनी यह शृंखला जंग के ख़िलाफ़ और शांति के पक्ष में एक ज़ोरदार आवाज़ है और यही आवाज़ यह डोसियर इस क्षेत्र और बाक़ी दुनिया के लिए बुलंद कर रहा है।

इरी और तोषी मारुकी, I प्रेत, 1950 , हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

18 अगस्त 2023 को संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के राष्ट्र प्रमुख कैम्प डेविड में एक ऐतिहासिक सम्मेलन के लिए इकट्ठा हुए। मेरीलैंड के फ्रेडरिक काउंटी में राष्ट्रपति के एकांतवास पर तीनों नेताओं ने उत्तर-पूर्व एशिया में मुख्यत: चीन के उभार को रोकने के लिए ‘त्रिपक्षीय सुरक्षा सहयोग’ के लिए एक नए समझौते की घोषणा की।2 इससे पहले ऐसी संधि करने की वाशिंगटन की कोशिशों पर जापान और दक्षिण कोरिया के आपसी संबंधों की कटुता की छाया पड़ती रही थी, जिसकी जड़ें जापानी उपनिवेशवाद के इतिहास में हैं। लेकिन इस बार यह सैन्य गुट बन पाया क्योंकि औपनिवेशिक और युद्ध अपराधों के लिए जापान को जो क्षतिपूर्ति चुकानी थी, वो दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यूं सुक येओल ने माफ़ कर दी।

यूएस के नेतृत्व में चीन के ख़िलाफ़ चल रहे नए शीत युद्ध की वजह से उत्तर-पूर्व एशिया में अस्थिरता पैदा हो रही है। आपसी टकराहट की वजह से अशांति के ख़तरे से ग्रस्त इस इलाक़े में एक विस्तृत सैन्यकरण अभियान चल रहा है, जो जापान और दक्षिण कोरिया से लेकर ताइवान जलडमरूमध्य और फ़िलिपींस से लेकर ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर के द्वीपों तक फैला हुआ है। वाशिंगटन की शह पर जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने अपने देश को फिर से हथियारबंद करने की प्रक्रिया तेज़ कर दी है। उनका लक्ष्य है 2027 तक सैन्य ख़र्च को दोगुना करना और दुश्मन पर निशाना साधने के लिए लंबी दूरी की मिसाइलें हासिल करना।3 इस बीच जैसे-जैसे यूएस इस क्षेत्र में अपनी शक्ति बढ़ाने की कोशिश कर रहा है कोरिया की शांति प्रक्रिया कमज़ोर हो गई है। हालांकि सैन्यकरण के लिए प्रायः उत्तरी कोरिया को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है लेकिन यह हमेशा से अपना दबदबा बनाए रखने की रणनीतियों के लिए एक बहाना रहा है – पहले यह सोवियत संघ के विरुद्ध इस्तेमाल किया जाता था और अब चीन के विरुद्ध।

सच कहा जाए तो उत्तर-पूर्व एशिया में ‘पुराना’ शीत युद्ध कभी ख़त्म ही नहीं हुआ, आज भी इसकी आग कोरियाई प्रायद्वीप और ताइवान जलडमरूमध्य में सुलग रही है। सोवियत संघ के विघटन और वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन को सम्मिलित किए जाने के बावजूद, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद द्विपक्षीय सैन्य समझौतों का जो यूएस नेटवर्क या जाल तैयार किया गया था, उसने आज भी इस क्षेत्र को विभाजित कर रखा है। पर आपसी टकराहट के बीच ऐसे बहुत से सकारात्मक आंदोलन हैं, जो ओकिनावा द्वीप से लेकर चहल-पहल भरे सियोल महानगर तक उत्तरपूर्व एशिया में शांति, पर्यावरण को बचाने और लोगों की बेहतरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। शांतिमय और सहयोगपूर्ण भविष्य के लिए ज़रूरी है कि यूएस के नेतृत्व में चल रहे इस नए शीत युद्ध को रोका जाए और पिछले 70 सालों से इस क्षेत्र में न्याय और सुलह के रास्ते का रोड़ा बने द्विपक्षीय समझौतों को ख़त्म किया जाए।


इरी और तोषी मारुकी, II अग्नि, 1950 , हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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भाग I: नया शीत युद्ध

 यूएस की एशिया केंद्रित नीति

2008 के अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संकट के बाद से वैश्विक व्यवस्था में बदलाव आया है। यह अब संयुक्त राज्य अमेरिका की अगुआई वाले सात देशों के समूह (जी7) पर केंद्रित न रहकर कुछ कम एकध्रुवीय हो गई है, हालांकि अब तक इस नई व्यवस्था को ठीक से परिभाषित नहीं किया जा सका है। विश्व में जारी आर्थिक संकट (या तीसरी महामंदी) से निपट पाने में अमेरिका और उसके साथियों की अक्षमता, चीन के आर्थिक उत्थान और विश्व राजनीतिक परिदृश्य में ग्लोबल दक्षिण के मुल्कों के, ख़ासकर ब्रिक्स के ज़रिए आगमन से पश्चिमी ताक़तों के नेतृत्व और उनकी नीतियों की वैधता ख़तरे में पड़ गई है।4

इस संदर्भ में यूएस की तमाम सरकारों की विदेश नीति लगातार पूर्व की ओर केंद्रित होती जा रही है ताकि चीन के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके। वाशिंगटन विश्व में चले आ रहे अपने वर्चस्व के लिए चीन को सबसे बड़ा ख़तरा समझता है। ओबामा प्रशासन ने इस नीति को ‘पिवट टू एशिया’ (एशिया केंद्रित नीति) का नाम दिया। यह एक रणनीतिक परिवर्तन था जिसके आर्थिक और सैन्य, दोनों पहलू थे। एक तरफ ट्रांस-पेसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) का ओबामा के शब्दों में उद्देश्य था ‘इस सदी में दुनिया की अर्थव्यवस्था के नियम संयुक्त राज्य अमेरिका लिखे न कि चीन जैसे देश’।5 दूसरी तरफ़ यह तय हुआ कि यूएस पेसिफिक कमांड (जिसका नाम 2018 में इंडो-पेसिफिक कमांड कर दिया गया) के विस्तार के साथ साल 2020 तक यूएस के 60% युद्धपोत एशिया- प्रशांत क्षेत्र में तैनात हों।6 यहाँ याद रखना चाहिए कि चीनी सरकार ने साफ़ कर दिया था कि वह विश्व पर अपना वर्चस्व नहीं जमाना चाहती। उसके बाद भी यूएस ने इस शत्रुतापूर्ण विदेश नीति की शुरुआत की। उदाहरण के लिए, 2012 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) ने अपनी 18वें राष्ट्रीय कांग्रेस में एक ऐसी विदेश नीति पेश की जिसका मकसद ‘एक नए तरीके के शक्ति संबंध’ बनाना था, जिसमें चीन का ‘शांतिपूर्ण उत्थान’ सीधे-सीधे संयुक्त राज्य अमेरिका के विरोध में नहीं होगा।7

ट्रम्प और बाइडन दोनों ने अपने-अपने तरीक़ों से ओबामा की एशिया केंद्रित नीति को ही जारी रखा, लेकिन इसमें एक बड़ा अंतर भी था। जब तक ट्रम्प ने राष्ट्रपति पद संभाला तब तक साफ़ हो चुका था कि यूएस कांग्रेस टीपीपी का समर्थन नहीं करने वाली। यह जल्दी ही बिखर गया (जबकि एशियाई देश – जिनमें चीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है – 2020 में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) पर हस्ताक्षर कर एकजुट हो गए)। चीन के ख़िलाफ़ ट्रम्प के व्यापार युद्ध ने इस क्षेत्र में ओबामा के बहुपक्षीय आर्थिक हस्तक्षेप की जगह ले ली, क्योंकि वाशिंगटन अब बीजिंग के प्रति ज़्यादा आक्रामक रुख अपना रहा था।8 ट्रम्प सरकार ने अपनी नैशनल सिक्युरिटी स्ट्रैटिजी,2017 (राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, 2017) में ‘फ्री एण्ड ओपन इंडो-पेसिफिक’ (मुक्त और खुला हिंद-प्रशांत) को रेखांकित करते हुए चीन को एक मुख्य ख़तरे के रूप में पेश किया; उस पर आरोप लगाया कि वह ‘अमेरिका की ताक़त, प्रभाव और हितों को चुनौती देना’ चाहता है और अंतत: ‘अमेरिकी मूल्यों और हितों के विपरीत एक दुनिया गढ़ना’ चाहता है।9

बाइडन सरकार ने ट्रम्प की आर्थिक संरक्षणवाद (जिसे कई बार ‘डिकप्लिंग’ यानी अलग होने की नीति भी कहा जाता है) और सैन्यवाद की नीति को और सख़्त बनाया। बाइडन सरकार ने कई तरह के निर्यात नियंत्रणों के ज़रिए कोशिश की चीन के लिए सबसे बेहतरीन सेमीकंडक्टर (जिन्हें चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए सबसे अहम माना जाता है) हासिल करना मुश्किल हो जाए और इससे जुड़ी अन्य तकनीकें भी; साथ ही सेमीकंडक्टर उद्योग में अग्रणी देशों जैसे दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान और नीदरलैंड पर भी दबाव डाला कि वे चीन पर इसी तरह के प्रतिबंध लगाएँ।10 इसी बीच चिप्स एण्ड साइंस ऐक्ट (2022) के ज़रिए बाइडन ने सेमीकंडक्टर निर्माण की यूएस में ‘पुनर्स्थापना’ को बढ़ावा देने की कोशिश की।11 पेंटागन के एक भूतपूर्व अधिकारी जॉन बेटमैन ने जो बाइडन की नीतियों के बारे में कहा, ‘रणनीतिक लक्ष्य और राजनीतिक प्रतिबद्धताएँ इससे पहले कभी इतनी स्पष्ट नहीं थीं। चीन का तकनीकी विकास किसी भी क़ीमत पर धीमा कर दिया जाएगा।… [यूएस] खुले तौर पर चीन को अपना एक विकसित आर्थिक समकक्ष बनने से रोकेगा।’12

इससे भी ज़्यादा ख़तरनाक यह है कि बाइडन ने अपनी पिछली सरकारों के इंडो-पेसिफिक सैन्यकरण की रणनीति को और भी तेज़ कर दिया। बाइडन प्रशासन ने ट्रम्प शासन के दौर में दोबारा शुरू हुए ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और यूएस के एक रणनीतिक ग्रुप ‘ चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’ (क्वाड) को और भी मज़बूत किया, इसके साथ ही नए गुट भी बनाए गए जैसे ऑस्ट्रेलिया-यूनाइटेड किंगडम-संयुक्त राज्य अमेरिका (AUKUS) परमाणु-संचालित पनडुब्बी समझौता और जापान-दक्षिण कोरिया-संयुक्त राज्य अमेरिका (JAKUS) सुरक्षा पार्टनरशिप। इन सब क़दमों से एशिया में तनाव और हथियारों के लिए होड़ बढ़ रही है, ख़ासतौर से उत्तर-पूर्व एशिया में जहाँ यूएस सेना की विदेशी क्षेत्रों में मौजूदगी दुनिया में किसी दूसरे क्षेत्र से सबसे ज़्यादा है।13

इरी और तोषी मारुकी, III जल, 1950 , हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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एक एशियाई नाटो के निर्माण की कोशिश?

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के नेतृत्व वाली ‘नियम-आधारित व्यवस्था’ को उसकी भारी-भरकम सैन्य उपस्थिति के माध्यम से बनाए रखा जाता है, जो हवाई और गुआम से लेकर चीन के तट तक फैली हुई है। उत्तर-पूर्व एशिया में यह सेना मुख्यत: जापान और दक्षिण कोरिया में मौजूद है। इन दोनों को मिलाकर 80,000 से ज़्यादा सैनिक और 193 अमेरिकी सैन्य अड्डे हैं, जो यूएस के विदेशी ज़मीन पर सैन्य अड्डों का लगभग एक चौथाई हैं।14 इतने बड़े पैमाने पर सैन्य तैनाती से अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया की त्रिपक्षीय सैन्य साझेदारी काफ़ी हद तक उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के स्तर पर पहुंच गई है। 2023 कैम्प डेविड सम्मेलन के अंत में अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया ने एक साझा वक्तव्य जारी किया, जो उनकी ‘त्रिपक्षीय सुरक्षा सहयोग’ का ख़ाका सामने रखता है। इसमें उन्होंने ‘एक-दूसरे से मशविरा करने’ और ‘क्षेत्रीय चुनौतियों, उकसावे और ख़तरों का जवाब देने में समन्वय’ का वादा किया, उन्होंने चीन और उत्तर कोरिया का नाम अपनी ‘साझा चिंताओं’ के तौर पर सामने रखा। सबसे बड़ी बात यह कि यूएस ने स्पष्ट शब्दों में दोहराया कि वह जापान और दक्षिण कोरिया को किसी भी तरह के सैन्य हमले से बचाने के लिए दृढ़संकल्प है और इसके लिए अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करेगा।15 इन्हें समग्रता में देखने से पता चलता है कि ये वादे नाटो सैन्य संधि के ‘संयुक्त सुरक्षा’ के सिद्धांत के कितने ज़्यादा करीब हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका इस तरह की तुलना को छुपाने की फ़िराक़ में रहता है। इसके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलीवन ने कहा कि JAKUS समझौता ‘पेसिफिक के लिए एक नाटो नहीं’ है और इस बात पर भी ज़ोर दिया कि यह यूएस की विदेश नीति के लिए कोई ‘नया कदम’ भी नहीं। लेकिन इसके साथ ही सलीवन ने इस समझौते को एक ‘महत्त्वपूर्ण सफलता’ मानते हुए ख़ुशी भी ज़ाहिर की।16 JAKUS समझौते के तहत जो ‘मशविरा’ और ‘संयुक्त जवाबी कारवाई’ के वादे हैं, वे भले ही नाटो के ‘संयुक्त सुरक्षा’ के सिद्धांत से कुछ कम हों, लेकिन यूएस अधिकारियों ने फिर भी इस समझौते को ‘सुरक्षा और व्यापक सहयोग को बुनियादी तौर से अगले स्तर तक पहुँचाने’ वाला समझौता कहकर ख़ूब सराहा है।17 तीनों देशों ने कुछ साझे मूल्यों की रक्षा करने का वचन दिया, चीन को एक ख़तरा माना और मिसाइल सुरक्षा और सालाना त्रिपक्षीय अभ्यासों के लिए भी हामी भरी, इससे ज़ाहिर है कि JAKUS सुरक्षा समझौते में अहम सैन्य संधि वाले पहलू हैं जो दक्षिण कोरिया और जापान को यूएस-चीन के बीच के किसी तनाव में घसीट सकते हैं, खासतौर से ताइवान के इर्द-गिर्द।

सैन्य दृष्टि से देखें तो JAKUS समझौता चीन के तट के पास ‘प्रथम द्वीप शृंखला’- जो जापान से शुरू होकर ताइवान और फ़िलिपींस से होते हुए मलेशिया तक फैली है- तक यूएस की पहुँच बना देगा। शीत युद्ध के दौरान यूएस अधिकारियों ने इस द्वीपों की ‘शृंखला’ की अवधारणा तैयार की थी, यह उनके लिए नियंत्रण रेखा थी, जिसका इस्तेमाल उन्होंने सोवियत संघ और चीन पर अंकुश लगाने की अपनी रणनीति के तहत किया। पहले सैन्य अभ्यास कभी-कभार ज़रूरत के आधार पर होते थे, लेकिन अब ये वार्षिक, बहु-क्षेत्रीय त्रिपक्षीय अभ्यासों की तरह नियमित रूप ले चुके हैं, जिनसे इन तीनों देशों की सेनाओं में आपसी तालमेल बेहतर हुआ है।18 व्यापक स्तर पर देखा जाए तो संयुक्त राज्य अमेरिका इस त्रिपक्षीय समझौते का इस्तेमाल इस क्षेत्र में अपनी ताक़त को बचाए रखने और मज़बूत करने के लिए करना चाहता है। इसके लिए वह एकीकृत वायु और मिसाइल सुरक्षा (आईएएमडी) रणनीति के ज़रिए चीन के ए2/एडी (एंटी एक्सेस/एरिया डिनायल) मिसाइल सिस्टम को निशाना बनाना चाहता है, जो यूएस नौसेना के जहाज़ों को इस क्षेत्र तक पहुंचने और किसी तरह की घेरेबंदी का प्रयास करने से रोकता है।19 चीन की ए2/एडी रणनीति के तहत लंबी दूरी की मिसाइलें तैनात की गई हैं, जो यूएस विमान वाहक पोतों को चीनी तटों के आसपास किसी तरह की कार्रवाई नहीं करने देतीं। इसके जवाब में IAMD ने कोरिया में टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) मिसाइलों से लेकर जापानी एजिस युद्धपोतों तक सैन्य प्रणाली को ‘आक्रामक-रक्षात्मक एकीकरण’ के तहत एक संयुक्त नेटवर्क में जोड़ने की योजना बनाई है ताकि किसी भी तरह के हमले से बचाव हो सके।20 इसके साथ ही तीनों देशों के रडारों को भी हवाई में यूएस के प्लैटफॉर्म में ही एकीकृत कर दिया जाएगा।21

दक्षिण कोरिया और जापान पर अधिक सुरक्षा सहयोग स्थापित करने के लिए जो अमेरिकी दबाव रहा है, वह मुख्यतः इस एकीकृत नेटवर्क के निर्माण के लिए ही है, जिसमें 2016 में हस्ताक्षरित सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (GSOMIA) के माध्यम से सैन्य खुफ़िया जानकारी साझा करना शामिल है। GSOMIA को वैसे तो उत्तर कोरिया की मिसाइली कार्रवाई से निपटने के लिए एक ज़रिया बताया जाता है लेकिन इसके तहत व्यापक जानकारियां साझा करने का मतलब है कि समझौते के सभी पक्षों के लिए चीन और रूस से जुड़ी जानकारियाँ भी साझा करना अनिवार्य है। यूएस के साथ दक्षिण कोरिया और जापान के पहले से मौजूद द्विपक्षीय समझौतों की बुनियाद पर GSOMIA ने रियल-टाइम मिसाइल की चेतावनी का डाटा सहित त्रिपक्षीय खुफ़िया जानकारी साझा करने के रास्ते खोल दिए हैं।23

इरी और तोषी मारुकी, IV इंद्रधनुष, 1951, हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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उत्तर कोरिया का हौवा

दूसरा ताइवान की ‘रक्षा’ की ज़रूरत। लेकिन यह याद रखा जाना चाहिए कि यूएस के लिए उत्तर कोरिया के साथ शांति क़ायम करना कभी भी सोवियत संघ और चीन के प्रभाव को रोकने की रणनीतियाँ बनाने से ज़्यादा ज़रूरी नहीं रहा। 1953 में कोरिया युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद से यूएस ने कभी भी उत्तर कोरिया के साथ अमन क़ायम करने की कोई निरंतर प्रक्रिया चलाने की कोशिश नहीं की है। इतने दशकों में अगर कभी बातचीत की शुरुआत भी हुई तो उसे नाकाम किया गया, रोक दिया गया या सत्ता परिवर्तन की वजह से नज़रंदाज़ किया जाता रहा है। उदाहरण के लिए क्लिंटन के कार्यकाल में यूएस और उत्तर कोरिया ने ‘अग्रीड फ्रेमवर्क’ (1994) पर हस्ताक्षर किए, जिससे शांति क़ायम होने और परमाणु हथियारों से मुक्ति का रास्ता लगभग खुल रहा था, लेकिन रिप्ब्लिकन पार्टी के दबदबे वाली यूएस कांग्रेस ने इसे रोक दिया और फिर बुश द्वितीय के शासन काल में नवरूढ़िवादी जॉन बोल्टन और रॉबर्ट जोसेफ ने इसे ख़त्म कर दिया।24 यही सिलसिला 2019 में दोहराया गया, जब यूएस और उत्तर कोरिया की बातचीत बंद हो गई क्योंकि ट्रम्प प्रशासन ने वियतनाम के हनोई में एक सम्मेलन के दौरान संभावित समझौते की शर्तें अचानक बदल दीं (एक बार फिर बोल्टन ने इसमें अहम भूमिका निभाई)।25

कोरियाई प्रायद्वीप में एक नियंत्रित तनाव और टकराव बनाए रखना यूएस के लिए इस क्षेत्र में सैन्य कार्रवाई बरक़रार रखने का एक अच्छा बहाना है। मसलन 2017 में यूएस के THAAD मिसाइल रोधी सिस्टम दक्षिण कोरिया में यह कहकर लगाया गया कि यह उत्तर कोरिया के हमले से रक्षा करेगा, लेकिन इसे जहाँ लगाया गया था वहाँ से यह सियोल महानगरीय क्षेत्र समेत देश की आधी आबादी की रक्षा नहीं कर सकता था।26 लेकिन THAAD इस जगह से चीन के मिसाइल सिस्टम को काफी अंदर तक भेद सकता है।27 नए शीत युद्ध के ज़रिए यूएस ने कोरियाई प्रायद्वीप में शांति प्रक्रिया को लटका रखा है और भू-राजनीतिक बँटवारों को और बढ़ा रहा है, इस बँटवारे में दक्षिण के देश अमेरिका की तरफ़ और उत्तर के मुल्क रूस और चीन की तरफ़ जा रहे हैं।

इरी और तोषी मारुकी, V लड़के और लड़कियाँ, 1951 , हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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तनाव का केंद्र ताइवान

इसी तरह ताइवान जलडमरूमध्य में भी शांति स्थापित करना यूएस के लिए कभी मुख्य उद्देश्य नहीं रहा है। वैसे तो बीजिंग, ताइपे और वाशिंगटन, तीनों ही ने औपचारिक तौर पर इस द्वीप और मुख्य भूमि को ‘एक चीन’ का हिस्सा स्वीकार किया है, लेकिन यूएस की दखलंदाजी की वजह से 1949 में चीन के गृहयुद्ध खत्म होने के बाद से ही ये दोनों बँटे हुए हैं। ताइवान से जुड़ा हालिया तनाव 2016 में हुआ, जब यूएस-समर्थक और अलगाववादी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) के साई इंग-वन चुनाव जीते। डीपीपी का मानना है कि ताइवान एक ‘संप्रभु राज्य’ है और ‘चीनी जनवादी गणराज्य का हिस्सा नहीं है’।28 यह स्थिति ट्रम्प और बाइडन दोनों के ही शासन में बिगड़ी है, जब इस दौरान यूएस अधिकारियों और दोनों ही मुख्य राजनीतिक दलों से जुड़े नीति निर्माताओं के इस द्वीप पर अभूतपूर्व और विवादित दौरे हुए। 2020 में ट्रम्प के स्वास्थ्य मंत्री एलेक्स अज़ार 1979 के बाद ताइवान के आधिकारिक दौरे पर जाने वाले अमेरिकी मंत्रिमंडल के सबसे बड़े अधिकारी बने। इसके दो साल बाद बाइडन के कार्यकाल में अमेरिकी सभा की स्पीकर नैन्सी पेलोसी इस द्वीप के दौरे पर गईं और 1997 के बाद ऐसा करने वाली पहली पदेन स्पीकर बनीं। इनके दौरों ने चीन को व्यापक स्तर के सैन्य अभ्यासों के ज़रिए जवाब देने के लिए उकसाया, जो उसके 2005 के अलगाव-विरोधी क़ानून के मुताबिक था कि ‘चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने के लिए ग़ैर-शांतिपूर्ण तरीके और अन्य आवश्यक तरीके अपनाये जा सकते है’ यदि ‘पुन: एकीकरण की शांतिपूर्ण संभावनाएँ… पूर्ण रूप से चुक गई हों’।29 2022 में सीपीसी की 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस में चीन के राष्ट्रपति शी चिन फिंग ने पुरज़ोर तरीक़े से अपना मत फिर से सामने रखा:

ताइवान चीन का ताइवान है। ताइवान का प्रश्न सुलझाना चीन का मुद्दा है और इसे चीन ही सुलझाएगा। हम शांतिपूर्ण तरीके से पुन: एकीकरण की पूरी ईमानदारी से कोशिश करेंगे, लेकिन हम ताकत का इस्तेमाल न करने का वादा कभी नहीं करेंगे और हम हर आवश्यक विकल्प चुनने का अधिकार रखते हैं। यह सिर्फ़ और सिर्फ़ इस मामले में हस्तक्षेप कर रही बाहरी ताक़तों और ‘स्वतंत्र ताइवान’ चाहने वाले कुछ अलगाववादियों और उनकी फिरकापरस्त गतिविधियों के लिए है: यह बात ताइवान के हमारे हमवतनों के लिए बिल्कुल भी लागू नहीं होती।30

ताइवान पर वाशिंगटन का बढ़ता फोकस इस बात का संकेत है कि ताइवान में बैठी यूएस समर्थित सेना की ताक़त चीनी सामने कमज़ोर पड़ रही है। जैसा कि 2002 में यूएस कांग्रेस की अनुसंधान सेवा की एक रिपोर्ट में माना गया था, ‘दशकों तक ताइवान की सेना चीन की सेना से ज़्यादा विकसित थी… जैसे-जैसे चीन की वायु, जल, मिसाइल और उभयचर सेनाएँ और सक्षम हुईं, ताइवान जलडमरूमध्य में शक्ति का संतुलन बहुत हद तक पीआरसी (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) के पक्ष में झुक गया है’।31 एक अधिक सक्षम चीन का सामना होने पर यूनाइटिड स्टेट्स ने ताइवान पर ‘ पॉर्क्यूपाइन रणनीति’ ( इसे साही रणनीति कहते हैं। साही एक जानवर है, जिसके पूरे बदन पर कांटे होते हैं। कोई जानवर उस पर हमला करता है तो वे कांटे खड़े हो जाते हैं, जिससे हमलावर जानवर घायल होकर भाग खड़ा होता है। ऐसे ही कोई कमज़ोर देश इस तरह अपनी तैयारी करता है कि वह बड़े हमलावर देश को भारी नुक़सान पहुंचाकर अपने क़दम पीछे खींचने पर मजबूर कर सके। इसके तहत ताइवान ने अपने समुद्री तटों में ‘साही के कांटों’ की तरह घातक हथियार जमा रखे हैं। शहरों में छापामार युद्ध की योजना बनाई है। ताइपे में कुछ भवनों का निर्माण ऐसा किया गया है कि इसे कभी भी हालात के अनुसार बैरक में बदला जा सकता है।) अपनाने का दबाव डाला जिसके तहत इस द्वीप को धड़ल्ले से हथियार बेचे गए ताकि अगर बीजिंग जबरन पुन: एकीकरण की कोशिश करे तो चीन की मुख्य धरती को काफी हद तक नुकसान पहुँचाना ताइवान के लिए मुमकिन हो।32 यह रणनीति अंतत: इस बात पर निर्भर करती है कि ताइवान, चीन की धरती पर भारी जनहानि और बर्बादी तथा उससे भी बड़े स्तर पर ताइवान के विध्वंस को स्वीकार करने के लिए तैयार है कि नहीं।

इरी और तोषी मारुकी, VI परमाणु रण, 1952 , हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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सैन्य तनाव बढ़ने का ख़तरा

अगर यह माना जाए कि मिसाइल रक्षा तकनीक यूएस और उसके साथियों की हिफ़ाज़त करेगी, जिससे नए शीतयुद्ध में सैन्य तनाव कम होगा, तो इसका दूसरा पहलू यह भी है कि यह सुरक्षा कवच अपने आप में अभेद्य नहीं है। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मिसाइलों का पता लगाने के लिए रडार और उन्हें निष्क्रिय करने के लिए इंटरसेप्टर बनाने में कितने संसाधन ख़र्च किए जाते हैं, मिसाइलों की अपेक्षाकृत सस्ती लागत और आसान उत्पादन हमलावर देश को इस सुरक्षा तंत्र को छिन्न-भिन्न करने के लिए और अधिक मिसाइलें बनाने को प्रेरित करता है।33 ऐसा इसलिए है क्योंकि सुरक्षा तंत्र को आक्रामक मिसाइलों की तुलना में अधिक सटीकता की आवश्यकता होती है, क्योंकि उन्हें आकाश में एक गतिशील वस्तु पर निशाना लगाकर उसे नष्ट करना होता है। इसका मतलब हुआ कि आत्मरक्षा के लिए एक गोली को गोली से तबाह करना होता है। सही मायनों में ग्राउन्ड-बेस्ड मिडकोर्स डिफेन्स (GMD) सिस्टम, जो मिसाइल हमलों से यूएस की रक्षा करता है, बेहद नियंत्रित अभ्यासों के दौरान सिर्फ़ 55% ही कारगर रहा है। 90 % तक कारगर होने के लिए GMD सिस्टम को आते हुए हर वॉरहेड (मिसाइल) के लिए तीन इंटरसेप्टर (हमलावर मिसाइल को नष्ट करने के लिए जवाबी मिसाइल) दागने पड़ेंगे। पूरे यूएस मिसाइल आत्मरक्षा नेटवर्क में अब तक के अभ्यासों में सफलता लगभग 80% तक ही सीमित रही है।34 मिसाइल आत्मरक्षा तकनीक संयुक्त राज्य अमेरिका को भी पूरी तरह से बचाने के लिए नाकाफ़ी हैं, ताइवान, दक्षिण कोरिया और जापान की क्या ही बात की जाए। परिस्थिति का बिगड़ना सिर्फ़ एक चीज़ से ‘रुका हुआ’ है, वह है तुरंत व्यापक स्तर पर जवाबी कार्रवाई का डर जिसकी वजह से टकराव नियंत्रण से बाहर हो जाएगा और परिणाम होगा दोनों पक्षों की भारी क्षति।

इरी और तोषी मारुकी, VII बैम्बू ग्रोव, 1954, हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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भाग II: ‘पुराना’ शीत युद्ध कभी ख़त्म हुआ ही नहीं

उत्तर-पूर्व एशिया में मौजूदा तनाव इस क्षेत्र में ‘पुराने’ शीत युद्ध के दौरान पड़ी दरार के अंदर ही सुलगता चला आ रहा है। इस दरार के एक तरफ़ थे यूएस, दक्षिण कोरिया, जापान और ताइवान तो दूसरी तरफ़ थे सोवियत संघ, चीन और उत्तर कोरिया। इस नए शीत युद्ध को समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि इस इतिहास ने किस तरह जापान, कोरियाई प्रायद्वीप और ताइवान को गढ़ा है।

इरी और तोषी मारुकी, VIII राहत कार्य, 1954, हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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जापान की फिर से हथियारबंदी

1947 में द्वितीय विश्व युद्ध में हार के बाद जापान ने एक नया ‘शांति संविधान’ लागू किया जिसमें इसने संकल्प लिया कि ‘हमेशा के लिए युद्ध… और अंतर्राष्ट्रीय मतभेदों को खत्म करने के लिए धमकी या ताकत के इस्तेमाल को त्याग देगा’।35 लेकिन जल्द ही चीनी क्रांति हुई और कम्यूनिज़्म के विस्तार के डर से संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान को इस क्षेत्र में एक कम्युनिस्ट-विरोधी दीवार बनाने का काम किया। जैसा कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय के इतिहासकार याद करते हैं, ‘एक बार फिर से हथियारबंद और युद्धप्रिय जापान का विचार अब यूएस अधिकारियों को नहीं डराता था; बल्कि असली ख़तरा कम्यूनिज़्म के विस्तार का लगने लगा था, ख़ासतौर से एशिया में’।36 मित्र देशों और जापान के बीच 1951 में सैन फ्रांसिस्को शांति संधि की शुरुआत करते हुए, अमेरिका ने इस क्षेत्र में द्विपक्षीय गठबंधनों का एक नेटवर्क बनाया, जिसे सैन फ्रांसिस्को प्रणाली के रूप में जाना जाता है, जिसने पूर्वोत्तर एशिया को ताइवान जलडमरूमध्य और कोरियाई प्रायद्वीप के साथ विभाजित किया।37 सात दशकों से भी ज़्यादा से सैन फ्रांसिस्को प्रणाली ने इस क्षेत्र में एक अंदरूनी बँटवारे को बनाए रखा है, साथ ही ताइवान जलडमरूमध्य और कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव की चिंगारी को भी।

संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए मुख्य मुद्दा युद्धोत्तर एशिया में शांति स्थापित करना नहीं था, बल्कि कम्यूनिज़्म के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई के लिए सैन्य शक्ति को बढ़ाना था। सैन फ्रांसिस्को संधि में यूएस की तरफ से मुख्य मध्यस्थ जॉन फॉस्टर डल्स ने वाशिंगटन का मत इस तरह पेश किया: ‘क्या हमें जापान में अपने जितने चाहे सैनिक, जहाँ चाहे और जब तक चाहे रखने का अधिकार है? यही मुख्य प्रश्न है’।38 यह लक्ष्य पाने के लिए यूएस ने युद्ध के बाद न्याय की प्रक्रियाओं को बाधित किया, उपनिवेशवादी और युद्ध अपराधों के लिए जापान की जिम्मेदारियों को नज़रंदाज किया (जिसमें नरसंहार, जैविक युद्ध, यौन ग़ुलामी, मनुष्यों पर परीक्षण और बंधुआ मज़दूरी शामिल थे)।39 जापान के युद्ध अपराधों का जिन्होंने सबसे ज़्यादा दंश झेला, उन्हें किसी भी तरह की क्षतिपूर्ति देने से जापान को इस संधि ने आज़ाद कर दिया। लेकिन सैन फ्रांसिस्को संधि पर हस्ताक्षर करने वाले 51 भागीदारों में जो देश नहीं शामिल थे वे थे चीन, ताइवान और उत्तर तथा दक्षिण कोरिया – इन सब ने जापान का क़ब्ज़ा झेला था। इसके साथ ही जापानी साम्राज्य (1868-1945) के कई युद्ध अपराधियों और उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों को द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद यूएस द्वारा माफ़ी दे दी गई और उन्हें उनके पदों पर बहाल भी कर दिया गया। यूएस का ध्यान सिर्फ और सिर्फ शीत युद्ध में ख़ुद को मज़बूत करने पर था।

इनमें से ही था उत्तरपूर्व चीन में जापान के कठपुतली राज्य मान्चुको का गवर्नर नोबुसुके किशी, जो ‘शोवा युग के राक्षस’ के तौर पर कुख्यात था।40 युद्ध के बाद किशी को प्रथम श्रेणी के युद्ध अपराधी के रूप में गिरफ़्तार किया गया था, लेकिन उसे रिहा कर दिया गया, और यूएस के समर्थन से वह 1957 से 1960 तक जापान का राष्ट्रपति रहा।41 किशी की दक्षिणपंथी, राष्ट्रवादी लिबरल डेमोक्रैटिक पार्टी को शीतयुद्ध के दौरान सीआईए से लाखों डॉलर की सहायता मिली और जापान में 1955 से (1993-1994 और 2009-2012 को छोड़कर) लगातार इसी का शासन रहा है।42 इतिहासकार एंड्रू लेवीडिस के शब्दों में, ‘किशी और वर्तमान के बीच एक सीधी रेखा है जो जापान के [मौजूदा] रूढ़िवादी अभिजात वर्ग और साम्राज्यवादी युग को जोड़ती है’।43

दक्षिणपंथ को सत्ता में रखकर, संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान को अपने साम्राज्यवादी अतीत पर विचार करने से रोका और जापान के फिर से सैन्यीकरण को बढ़ावा देने और एशिया में अमेरिकी रणनीतिक स्थिति को मज़बूत करने के लिए उसके इतिहास पर पर्दा डाल दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के ख़त्म होने के बाद से यूएस ने जापान में सैन्य मौजूदगी बनाए रखी है जिसमें ओकिनावा पर कब्ज़ा भी शामिल है जो 1945 से 1972 तक चला (1972 में ओकिनावा को जापान को लौटा दिया गया लेकिन इस द्वीप पर यूएस सेना बनी रही)। इस दौर में यूएस के कहने पर जापान लगातार फिर से हथियारबंद हुआ है और उसने अपनी सेना का विस्तार किया है। इस संबंध में कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य हैं:

  • 1954 में एक नई सेना तैयार की गई जपानीज़ सेल्फ-डिफेन्स फोर्सेस (JSDF) जबकि युद्ध से परेशान देश की जनता इसके प्रतिरोध में खड़ी हुई।
  • 1960 में JSDF ने प्रतिबद्धता ज़ाहिर की कि वह जापानी क्षेत्रों में मौजूद यूएस की सेना पर हमलों का जवाब देगा।
  • 1992 में जापानी सेना ने अंतर्राष्ट्रीय शांति मिशनों में हिस्सा लेना शुरू किया।
  • 1997 में यूएस और जापान ने नए नियम अपनाये जिनसे JSDF को ‘आस-पास के क्षेत्रों’ में कार्रवाई करने की छूट मिल गई।
  • 2000 के दशक में जापान ने यूएस के समर्थन से अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ में विदेशी क्षेत्र में सैन्य कार्रवाइयों में हिस्सेदारी की।44

आज दुनिया के किसी भी दूसरे देश से ज़्यादा यूएस के सैनिक अड्डे (120) और सैनिक (लगभग 54,000) जापान में हैं।45

यूएस के एशिया की ओर रुझान के साथ ही जापान की नए सिरे से हथियारबंदी बहुत तेज़ी से बढ़ी है। 2014 में तत्कालीन प्रधानमंत्री आबे शिन्ज़ो (नोबुसुके किशी के पोते) ने जापान के युद्धोत्तर संविधान की पुनर्व्याख्या करने के लिए ‘सक्रिय शांतिवाद’ का विचार सामने रखा।46 इस पुनर्व्याख्या ने जापान को ‘सामूहिक आत्म-रक्षा’ की स्थिति में शक्ति का प्रयोग करने की इजाज़त दे दी, इस ‘सामूहिक आत्म-रक्षा’ की स्थिति में ‘किसी ऐसी विदेशी राष्ट्र पर सशस्त्र हमला जिसके जापान से करीबी रिश्ते हों और ऐसे हमले की वजह से जापान के अस्तित्व को ख़तरा हो’।47 दिसम्बर 2022 में प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा के शासन में जापान ने एक नई नैशनल सिक्युरिटी स्ट्रैटिजी (राष्ट्रीय सुरक्षा नीति) जारी की जिसमें चीन को ‘जापान में शांति और सुरक्षा बरक़रार रखने तथा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में शांति और स्थिरता के लिए सबसे बड़ा ख़तरा’ बताया गया।48 इसके साथ ही किशिदा ने सैन्य ख़र्च पर 1976 से लागू उच्च सीमा को भी ख़त्म कर दिया जिसके तहत यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1% से ज़्यादा नहीं हो सकता था और घोषणा की कि जापान 2027 तक इसे बढ़ाकर जीडीपी का 2% कर देगा – यह नाटो सदस्यों के ख़र्च के लक्ष्य के बराबर है और इससे जापान दुनिया में सैन्य ख़र्च के मामले में तीसरे नंबर का देश बन जाएगा।49 2022 में ही जापान का प्रति व्यक्ति सैन्य ख़र्च चीन से लगभग दोगुना था, जापान का सैन्य खर्च बढ़ाने से यह फ़र्क भी बढ़ता ही जाएगा।50

इरी और तोषी मारुकी, IX Yaizu, 1955, हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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कोरिया का बँटवारा

जापान के औपनिवेशिक शासन (1910-1945) से कोरिया के आज़ादी हासिल करने के तुरंत बाद 15 अगस्त 1945 को यूएस ने 38 डिग्री उत्तरी अक्षांश के आधार पर प्रायद्वीप का बँटवारा कर दिया, जिससे दक्षिण में कोरिया गणराज्य (ROK) बना और उत्तर में कोरिया लोकतांत्रिक जनवादी गणराज्य (DPRK) बना। इस बँटवारे का, जो आज भी बरक़रार है, कोई भी ऐतिहासिक आधार नहीं, सिवाय यूएस हस्तक्षेप के: दो यूएस कर्नलों ने एक नैशनल जिओग्रैफिक के मानचित्र पर मनमर्ज़ी से लकीर खींच दी और एक झटके में एक जनता को दो हिस्सों में बाँट दिया।51 इसके पाँच साल बाद कोरिया युद्ध छिड़ गया। यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी मिलिटरी गवर्नमेंट (USAMGIK) यूँ तो उदार लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने का दावा करता है लेकिन दक्षिण में इसने, इतिहासकार ब्रूस कमिंगस के शब्दों में, ‘कोरिया को कोरिया की जनता के हवाले’ करने से मना कर दिया।52 कोरिया प्रायद्वीप में ज़मीनी स्तर पर लोकतांत्रिक जनता की विधानसभाओं को मान्यता देने की बजाय USAMGIK ने उन्हें कम्युनिस्ट होने का आरोप लगाकर उनका दमन किया, उन्हें तरह-तरह से परेशान किया। दक्षिण की आबादी – जिसके बारे में कमिंगस कहते हैं ‘इसमें बड़ा हिस्सा गरीब किसानों का था और आबादी के बहुत छोटे हिस्से के पास ही ज़्यादातर संपत्ति केंद्रित थी’ – के भीतर बाज़ार व्यवस्था के प्रति रुझान पैदा करने के लिए यूएस ने छोटे से अभिजात वर्ग को सहारा देकर ऊँचा उठाया, यह वही वर्ग था जिसने जापानी कब्ज़े के दौरान भी उनसे हाथ मिलाया था।53

यह थी कोरियाई प्रायद्वीप के विभाजन और कोरिया युद्ध की पृष्ठभूमि। इस युद्ध के छद्म चरित्र के बावजूद इसकी विभीषिका, मौतों और बर्बादी ने दक्षिण में एक कम्युनिस्ट विरोधी विचारधारा को पनपने की ज़मीन दी जिससे तानाशाहों को सहारा मिला और दशकों तक राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत असहमति की आवाज़ को लगातार कुचला गया।54 उत्तर कोरिया के साथ मेल-मिलाप के सिलसिले ने रेड-बेटिंग (किसी विचार को कम्युनिस्ट मानकर उस पर हमला करना) के ज़रिए पैदा ध्रुवीकरण को कम ज़रूर किया है, लेकिन कम्युनिस्ट-विरोधी सोच की वजह से दक्षिण कोरिया में अब भी सही और खुली बहस नहीं हो पा रही। इसके साथ ही औपनिवेशिक काल के दौरान दक्षिण में साथ मिलकर चलने की परंपरा के बारे में चर्चा नहीं होती और यही आज उसका चरित्र बन गया है। कोरिया की आज़ादी की 70वीं वर्षगांठ के मौके पर समाचार समूह Newstapa ने एक डाक्यूमेंट्री Collaboration and Forgetting (2015) [समझौते करना और भूल जाना] में ख़ुलासा किया कि दक्षिण में कोरिया के कई स्वतंत्रता सेनानियों के वंशज ग़रीबी में जी रहे हैं क्योंकि उनके परिवारों को कम्युनिस्ट मानकर उनका बहिष्कार किया गया, जबकि जापानी शासन से समझौते करने वालों के वंशज अपनी बड़ी ज़मीनों के सहारे बड़े आराम की ज़िंदगी काट रहे हैं।55

JAKUS त्रिपक्षीय सुरक्षा समझौता इसी इतिहास का नया अध्याय है। पहले कोरिया के एक जापानी उपनिवेश होने की सच्चाई ने कभी भी जापान और दक्षिण कोरिया में इस तरह की कोई साझेदारी नहीं होने दी। इस रुकावट को पार करने के लिए दक्षिण कोरिया के रूढ़िवादी यूं सुक-येओल ने जापान को उसके अपराधों की ज़िम्मेदारी से आज़ाद कर दिया। उदाहरण के लिए यूं ने 2018 में आए दक्षिण कोरिया के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को नज़रअंदाज़ किया, जिसमें जापानी कंपनी मित्सुबिशी को कोरियाई लोगों से जबरन काम कराने के लिए ज़िम्मेदार माना गया था।56 इसके अतिरिक्त यूएस और चीन के प्रति पूर्ववर्ती प्रशासन (मून जे-इन) की संतुलित नीति के उलट यूं प्रशासन ने खुले तौर पर यूएस परस्त नीति अपनाई है।57 यूं की पीपल्स पावर पार्टी दक्षिण कोरिया के रूढ़िवादी आंदोलन की सबसे बड़ा राजनीतिक पुनरावृत्ति है, इस आंदोलन की जड़ें जापानी उपनिवेशवाद से समझौते और यूएस कब्ज़े में दिखती हैं।58

इरी और तोषी मारुकी, X अर्ज़ी, 1955, हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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ताइवान, एक ‘न डूब सकने वाला विमान वाहक पोत’

चीन का गृह युद्ध कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CPC) और राष्ट्रवादी कुओमिनतांग (KMT) के बीच 1927 से लेकर 1945 तक रुक-रुक कर चला। किसी भी हाल में कम्युनिस्टों की विजय को रोकने के मकसद से यूएस ने KMT की हर संभव मदद की, जैसे इसे 1945 और 1949 के बीच 200 करोड़ डॉलर की मदद दी।59 फिर भी जीत CPC की हुई और चीन की मुख्य भूमि पर पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) की नींव पड़ी जबकि KMT भागकर ताइवान चली गई, जहाँ उसने एक निर्वासित सरकार बनाई यानी रिपब्लिक ऑफ चाइना (POC)। मुख्यभूमि से लगभग 150 किलोमीटर दूर स्थित ताइवान को वाशिंगटन ने बीजिंग पर दबाव बनाने और उसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में अलग-थलग करने के लिए इस्तेमाल किया (मसलन, 1949-1971 के बीच यूएस और KMT, PRC को संयुक्त राष्ट्र से बाहर रखने में कामयाब रहे क्योंकि उनका मत था कि ताइवान स्थित ROC प्रशासन ही पूरे चीन की एकमात्र जायज़ सरकार थी)। यूएस अधिकारी तो खुलेआम इस द्वीप को एक ‘न डूब सकने वाला विमान वाहक पोत’ कहते थे।60

शीत युद्ध के दौरान यूएस के समर्थन वाली ROC ने ताइवान में एक दमनकारी तानाशाही स्थापित की, जिसमें 1949-1987 का 38 साल का लंबा सैन्य शासन भी शामिल है जिसे ‘व्हाइट टेरर’ [सफेद आतंक] कहा गया। इन सालों में जबर्दस्त राजनीतिक दमन किया गया। 140,000-200,000 लोग जेल और और उत्पीड़न के शिकार हुए और 3,000-4,000 लोगों को मृत्युदंड दिया गया।61 हालांकि वाशिंगटन ने 1970 के दशक में चीन से अपने संबंधों को सामान्य करने के दौरान आधिकारिक तौर से ताइवान से अपने संबंध ख़त्म कर दिए लेकिन इसने द्वीप से ‘अनौपचारिक’ रिश्ते बनाए रखे जिसमें बहुत गहरे सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक संबंध शामिल हैं। अब अपने नए शीत युद्ध के तहत यूएस ताइवान के शस्त्रीकरण के अपने कार्यक्रम को ज़ोर-शोर से चला रहा है जिसमें इसका साथ अलगाववादी ताक़तें दे रही हैं।62 चीन ने साफ़ कर दिया है कि उसके लिए ताइवान एक ‘लक्ष्मण रेखा है जिसे लाँघा नहीं जाना चाहिए’, ऐसे में यूएस के लगातार हस्तक्षेप से इस क्षेत्र में बड़ा तनाव शुरू होने का ख़तरा मंडरा रहा है।63

इरी और तोषी मारुकी, XI माँ और बच्चा, 1959, हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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भाग III: उत्तर-पूर्व एशिया में शांति की राह

उत्तर-पूर्व एशिया में टकराव शुरू होने से रोकने के लिए ज़रूरी है कि यूएस के नेतृत्व में सैन्य समझौतों की योजना और इस क्षेत्र में तनाव बढ़ाने वाले सैन्यीकरण की प्रवृत्ति समाप्त हो। लेकिन सतत शांति स्थापित करने के लिए सामाजिक आंदोलनों और सरकारों को इससे भी आगे जाना होगा और उपनिवेशवाद, शीत युद्ध और लगातार चल रहे विदेशी हस्तक्षेप ने यहाँ जो ऐतिहासिक बँटवारे तैयार कर दिए हैं, उन्हें ख़त्म करना होगा। दोनों कोरियाई देशों को शांति और सुलह का अपना रास्ता चुनने की आज़ादी दी जानी चाहिए। चीन की मुख्यभूमि और ताइवान को विदेशी दख़ल के बिना अपने आज़ाद भविष्य को चुनने की आज़ादी दी जानी चाहिए। जापान को अपने साम्राज्यवादी इतिहास की ज़िम्मेदारी लेनी होगी और उसके साथ जीना सीखना होगा। और इस सबसे बढ़कर यूएस को यहाँ से बाहर होना होगा।

28-29 अक्टूबर 2023 को इंटरनैशनल स्ट्रैटिजी सेंटर (ISC) [अंतर्राष्ट्रीय रणनीति केंद्र] ने एक अंतर्राष्ट्रीय फ़ोरम आयोजित किया जिसका नाम था ‘शांति की स्थापना : उत्तर-पूर्व एशिया में युद्ध का प्रतिकार’ इसमें यूएस सैन्यवाद के ख़िलाफ़ पहली पंक्ति में लड़ाई लड़ रहे कई संगठनों और व्यक्तियों ने हिस्सा लिया।64 इस फ़ोरम और दूसरी जगहों से प्राप्त इस क्षेत्र में ज़मीनी आंदोलनों के अनुभव ने शांति की राह की रुकावटों और संभावनाओं दोनों को रेखांकित करने में मदद की।

इरी और तोषी मारुकी, XII तैरते चिराग़, 1968, हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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ओकिनावा में सैन्यीकरण विरोधी संघर्ष

ओकिनावा द्वीप जापान की कुल ज़मीन के महज़ 1% हिस्से में है, लेकिन यूएस सेना ने अपने कुल अड्डों का 74% यहीं बना रखा है।65 2019 में एक ग़ैर-बाध्यकारी जनमत संग्रह में ओकिनावा की 72% जनता ने फूटेनमा मरीन कॉर्प्स एयर स्टेशन के बदले हेनोको-औरा खाड़ी में यूएस के एक नए सैन्य अड्डे के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट किया।66 यह विरोध यूएस क़ब्ज़े के एक बेहद हिंसक इतिहास – जिसमें 1995 में यूएस सैनिकों द्वारा एक बारह साल की लड़की का सामूहिक बलात्कार भी शामिल है – और इस द्वीप से जापान की धोखाधड़ी के इतिहास की वजह से है। उदाहरण के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब यूएस सेना इस ओर बढ़ रही थी तो सबसे भीषण लड़ाइयों में जापान ने मुख्य भूमि को बचाने के लिए ओकिनावा के नागरिकों को ढाल की तरह इस्तेमाल किया।67 ओकिनावा को तब अमेरिकी सैन्य शासन के लिए बलिदान कर दिया गया था ताकि जापान सैन फ्रांसिस्को शांति संधि के हिस्से के रूप में अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता को पुनः प्राप्त कर सके।

शांति की तलाश के साथ-साथ ओकिनावा के सामाजिक आंदोलनकारी पर्यावरण, जन स्वास्थ्य और जेन्डर-आधारित हिंसा से जुड़े कारणों की वजह से यूएस सेना के अड्डों की मौजूदगी के ख़िलाफ़ भी लड़ाई लड़ रहे हैं। मसलन, ओकिनावा एनवायरनमेंट जस्टिस प्रोजेक्ट [ओकिनावा पर्यावरण न्याय कार्यक्रम] फूटेनमा अड्डे को हेनोको-औरा खाड़ी ले जाने का विरोध कर रहा है क्योंकि यूएस सैनिक अड्डों से जहरीला प्रदूषण फैलता हैं।68 जबकि कादेना एयर बेस के ख़िलाफ़ संघर्ष यूएस सैनिकों द्वारा यौन हिंसा के साथ-साथ शहरी इलाक़ों के ऊपर से उड़ने वाले विमानों से जुड़े हादसों के मामलों को लेकर किया जा रहा है। अमूमन जो आंदोलन किन्हीं अन्य कारणों से शुरू होते हैं वो शांति और न्याय के संघर्षों में तब्दील हो जाते हैं।

जापान में सैन्य ख़र्च बढ़ाने के लिए सरकार को या तो करों में बढ़ोत्तरी करनी होगी या सामाजिक कल्याण की योजनाओं के ख़र्च में कटौती, दोनों ही सूरतों में उसके लिए जनता का समर्थन कम हो जाएगा। इस समर्थन को बढ़ाने के लिए जापान की सरकार ने JSDF सेना को ओकिनावा के दक्षिणी द्वीपों के कुछ हिस्सों में तैनात करने की कोशिश की है। इन द्वीपों की जनता के युद्ध और क़ब्ज़े को लेकर वे अनुभव नहीं, जो दूसरों के हैं और यह काफ़ी हद तक चीन, ताइवान और उत्तर कोरिया को ख़तरनाक साबित करने वाले दुष्प्रचार पर भरोसा करके चलती है। ओकिनावा एनवायरनमेंट जस्टिस प्रोजेक्ट के निर्देशक हिदेकी योशीकावा के मुताबिक ज़मीनी संगठन कोशिश कर रहे हैं कि ‘एक व्यापक और समन्वित शांति आंदोलन तैयार करें’, कार्यक्रम और रैलियाँ आयोजित करें जिनसे जापान की मुख्यभूमि और विदेशों के शांति संगठन एक साथ आ सकें। योशीकावा का कहना है कि बढ़ते हुए JAKUS त्रिपक्षीय समझौते ने तीनों देशों में ‘शांति आंदोलनों के बीच एक जवाबी समझौते की नींव रख दी है’।69

इरी और तोषी मारुकी, XIII अमेरिकी युद्ध बंधकों की मौत, 1971, हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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कोरियाई प्रायद्वीप में एक शांति समझौता

जून 2020 से जुलाई 2023 तक यानी कोरिया युद्ध छिड़ने और युद्धविराम समझौते की क्रमश: 70वीं वर्षगांठों के मौक़े पर दक्षिण कोरिया और दुनिया के बाक़ी हिस्सों के आंदोलनों और लोगों ने कोरिया युद्ध को हमेशा के लिए ख़त्म करने के लिए एक शांति संधि की माँग के समर्थन में हज़ारों हस्ताक्षर इकट्ठा किए। शांति और पुनर्एकीकरण का यह संघर्ष सिविल सोसाइटी के प्रयासों से शुरू हुआ और 13-15 जून 2000 को प्योंगयांग में आयोजित पहले अंतर-कोरिया सम्मेलन में इसका व्यापक और संगठित रूप सामने आया, जहाँ दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति किम डे-जुंग और उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग-इल द्वारा संयुक्त घोषणा जारी हुई। यह मुलाक़ात उत्तर कोरिया में गुप्त रूप से हुई (ताकि यूएस अड़ंगा न लगाए), जिसमें घोषणा हुई कि शांति और पुनर्एकीकरण का रास्ता ‘देश के सर्वेसर्वा कोरिया के लोगों के संयुक्त प्रयासों’ से हासिल किया जाएगा। 70 लेकिन यूएस की मंशा कुछ और ही थी। 11 सितंबर के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमलों के बाद यूएस राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने उत्तर कोरिया को ईरान और इराक़ के साथ ‘बुराई की धुरी’ का हिस्सा बताया, जिससे दक्षिण कोरिया के लिए उम्मीद के स्रोत की तरह आई प्रारम्भिक शांति प्रक्रिया का रास्ता रुक गया। इस प्रक्रिया का समर्थन बुश के पूर्ववर्ती बिल क्लिंटन ने भी किया था। यह एक और मौक़ा था जब कोरियाई प्रायद्वीप में शांति यूएस के भूराजनीतिक हितों की गिरफ़्त में आ गई।

कोरियाई युद्ध को ख़त्म करने के इन सिविल और राजनयिक कोशिशों के अलावा दक्षिण कोरिया के लोगों ने प्रायद्वीप में यूएस की सेना की मौजूदगी के ख़िलाफ़ हमेशा संघर्ष जारी रखा है। 2007 से गैंगजेओंग के गाँववासियों ने एक नौसेना अड्डे के निर्माण का विरोध किया है, जिससे जेजू आइलैंड पर यूएस के युद्धपोत खड़े हो सकेंगे। ओकिनावा के हेनोको-औरा खाड़ी के संघर्ष की ही तरह यह आंदोलन भी पहले पर्यावरण को ख़तरे के अंदेशे से शुरू हुआ लेकिन जल्दी ही सैन्यीकरण के ख़िलाफ़ एक बड़ी लड़ाई में बदल गया। जेजू में सैन्य अड्डा विरोधी आंदोलन वक़्त के साथ छोटा हो गया है लेकिन इसके बावजूद यह जारी है और साबित कर रहा है कि सैन्यीकरण कैसे प्रभावित समुदायों को शांति की लौ में बदल देता है।

इरी और तोषी मारुकी, XIV कौवे, 1972, हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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ताइवान जलडमरूमध्य में शांति

दक्षिण कोरिया और जापान के मुकाबले ताइवान में शांति आंदोलन कम विकसित है। नैशनल यांग-मिंग चाओ-थोंग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और ISC के अंतर्राष्ट्रीय फ़ोरम में भाग लेने वाले, तायवे फ़ू के मुताबिक ताइवान की आबादी लगभग द्वीप की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति के मुताबिक ही बँटी हुई है, 50% चाहते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ जुड़े रहना चाहिए (इनमें भी 10% स्वतंत्रता के पक्ष में हैं जबकि 40% यूएस परस्त स्थिति के) और बाकी के 50% चाहते हैं चीन की तरह ज़्यादा संतुलन फिर से बैठाया जाए (इनमें 10% फिर से चीन में विलय चाहते हैं और बाकी 40% एक तटस्थ स्थिति)। फू पॉर्क्युपाइन रणनीति की आलोचना करते हुए कहते हैं कि यह रणनीति ताइवान के सैन्यकरण और ज्यादा सामाजिक व्यय की ज़रूरत के बीच विरोधाभास को सामने लाती है। यह रणनीति अमेरिका की सलाह पर ताइपेई ने यह मानकर अपनाई कि उसके ऊपर हमले का अंदेशा है, जिसमें ताइवान जलडमरूमध्य के असंख्य नागरिक मारे जा सकते हैं।

हालांकि जनवरी 2024 के आम चुनावों में सत्तारूढ़, अलगाववादी रुझान वाली डेमोक्रैटिक प्रग्रेसिव पार्टी (DPP) की जीत हुई लेकिन हाल के चुनावी आँकड़ों से पता चलता है कि ताइवान की जनता के विचार शायद बदल रहे हैं। 2016 और 2020 के चुनावों में जहाँ DPP को बहुमत मिला था, 2024 के चुनावों में DPP का वोट प्रतिशत गिरकर 40% रह गया, 2020 से सत्रह अंक नीचे। जबकि बीजिंग के साथ अच्छे संबंध रखने वाली विपक्षी पार्टियाँ – KMT और ताइवान पीपल्स पार्टी – ने मिलकर 2024 में 60% वोट हासिल किए। इसके साथ ही चुनावों से पहले अमेरिकन पोर्ट्रेट सर्वे में पता चला कि ताइवान की 34% आबादी मानती है कि यूएस भरोसेमंद देश है, यह आँकड़ा 2021 के आँकड़े से ग्यारह अंक नीचे आ गया, कुछ समीक्षकों ने इशारा किया कि यूक्रेन में चल रहे युद्ध की वजह से यूएस की साख को धक्का लगा है।71

इरी और तोषी मारुकी, XV नागासाकी, 1972, हिरोशिमा पैनलस् से। काग़ज़ पर सु’मी स्याही, रंग, गोंद, चारकोल से बने, 180 x 720 cm

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शांति आंदोलन के लिए एक प्रस्ताव

संयुक्त राज्य अमेरिका चीन के विरुद्ध एक नया शीत युद्ध चला रहा है ताकि उसका वैश्विक वर्चस्व बना रहे और साथ ही उसकी बनाई हुई ‘नियम बद्ध व्यवस्था’ भी। इन ‘नियमों’ को अमूमन संयुक्त राष्ट्र के चार्टरों के समान बताया जाता है लेकिन ये दोनों एक समान नहीं हैं।72 यूएन के चार्टर 193 सदस्य देशों की सर्वसम्मति को दर्शाते हैं जबकि ‘नियम बद्ध व्यवस्था’ के ‘नियम’ अंतर्राष्ट्रीय कानूनों से नहीं निकले; बल्कि इन्हें यूएस ने अपने हितों की रक्षा के लिए थोपा है। इसी बिन्दु पर ‘काउन्सल ऑन फ़ॉरन रिलेशन्स’ की 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया कि ‘मानव अधिकारों और पर्यावरण संधियों की पुष्टि के मामले में यूएस सबसे खराब रिकार्ड वाले देशों में से है’।73

‘नियम बद्ध व्यवस्था’ की अमानवीयता इज़राइल द्वारा गज़ा में फिलिस्तीनियों के क़त्लेआम में पूरी तरह खुलकर सामने आ गई है, क्योंकि इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका पूरी तरह इज़राइल को समर्थन दे रहा है। इस सबसे से कहीं ज़्यादा, यह व्यवस्था मानव अधिकारों, न्याय या आज़ादी को बचाने की कोशिश नहीं कर रही बल्कि यह रक्षा कर रही है उस दुनिया की जिसमें यूएस का वर्चस्व है और जो 900 यूएस सैन्य अड्डों – जिनमें से सैंकड़ों चीन को घेरे हुए हैं – के वैश्विक जाल को कमर पर बाँधे खड़ी है।74

उत्तर-पूर्व एशिया में जो भारी बदलाव हो रहे हैं, वो इस क्षेत्र को युद्ध की ओर धकेल रहे हैं। ऐसे समय में इस क्षेत्र के शांति आंदोलनों को कुछ विशेष माँगों और आदर्शों के आधार पर एकजुट हो जाना चाहिए, जिनमें महत्त्वपूर्ण हैं:

  1. JAKUS सुरक्षा समझौते की समाप्ति- बहुआयामी सैन्य समझौते, जिनका स्वरूप ही दूसरे देशों को अकेला कर देना या निशाना बनाना है, क्षेत्रों को विपरीत गुटों या कैम्पों में बाँटते हैं, तनाव बढ़ाते और सैन्य ख़र्च को बढ़ावा देते हैं। यूएस, जापान और दक्षिक कोरिया के बीच का त्रिपक्षीय समझौता भी इससे अलग नहीं है।
  2. यूएस के युद्ध अभ्यासों का ख़ात्मा- वैसे तो इन सैन्य अभ्यासों को ‘सामान्य’ कह दिया जाता है लेकिन ये शत्रुतापूर्ण और भड़काऊ होते हैं। उदाहरण के लिए, यूएस और दक्षिण कोरिया के बीच संयुक्त युद्ध अभ्यासों में उत्तर कोरिया के ख़िलाफ़ परमाणु हमले का, इसके राजनीतिक नेतृत्व के ‘सर कलम’ करने और पूरी तरह से घुसपैठ करने का अभ्यास हुआ। जबकि यूएस और ऑस्ट्रेलिया तथा फ़िलिपींस के युद्ध अभ्यासों में चीन की मुख्य भूमि पर लंबी दूरी की मिसाइल दागने का अभ्यास किया गया। ये बाज जैसी कार्रवाइयाँ राजनयिक बातचीत के रास्ते बंद कर देती हैं और दूसरे देशों के पास अपनी सेनाओं को जवाबी कार्रवाई के लिए संगठित करने के अलावा और कोई चारा नहीं छोड़तीं।
  3. यूएस के हस्तक्षेप का ख़ात्मा- सत्तर साल से ज़्यादा से यूएस ने उत्तर-पूर्व एशिया, ख़ासतौर से कोरियाई प्रायद्वीप और ताइवान की खाड़ी में तनाव को हवा देने का काम कर रहा है। पूरे एशिया-प्रशांत में, यहाँ के लोगों को अपना भविष्य और शांति पथ चुनने का अधिकार होना चाहिए, इसमें किसी भी तरह के विदेशी हस्तक्षेप और सैन्यीकरण की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।
  4. एक दूसरे के संघर्षों का सहयोग- उत्तर-पूर्व एशिया में शांति के लिए संघर्ष पूरे क्षेत्र का होना चाहिए। हालांकि स्थानीय संघर्षों की तत्काल माँगों में खो जाना आसान है लेकिन इस क्षेत्र के मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं। इन्हें सुलझाने के लिए दूरदर्शी होना और तमाम संघर्षों को मज़बूत करने की प्रतिबद्धता होना ज़रूरी है। इसके लिए संगठनों को सक्रिय रूप से पूरे क्षेत्र में चल रहे अभियानों और संघर्षों का हिस्सा बनना पड़ेगा न कि सिर्फ़ अपने देश के, जैसे कि हर साल मई में ओकिनावा में एक शांति मार्च निकलता है, 15 जून 2000 को अंतर-कोरियाई सम्मेलन और दूसरे प्रयासों को याद करने के लिए।
  5. अगली पंक्ति के संघर्षों का सहयोग- युद्ध और सैन्यीकरण भले ही अमूर्त और रोज़मर्रा के जीवन से दूर की चीज़ लगते हों, लेकिन जो लोग संघर्ष की ज़मीन पर रह रहे हैं, उन अग्रिम पंक्ति के पास रह रहे लोगों के लिए ये बहुत ठोस और तत्कालीन सच्चाई हैं, जैसे कि कादेना एयर बेस और हेनोको खाड़ी (ओकिनावा में) और सोसेओन्ग-री में THAAD का लगाया जाना और जेजू में नेवल बेस बनाया जाना (दक्षिण कोरिया में)। इन जगहों पर संघर्षों की शुरुआत तो कमोबेश लोगों के जीवन पर पड़ रहे तात्कालिक, स्थानीय प्रभावों की वजह से हुई लेकिन प्रतिरोध ने इसमें शामिल लोगों और व्यापक जनता में बदलाव लाने का काम किया।

हम जोख़िम भरे दौर में रह रहे हैं। यह जरूरी है कि हम साझा ज़मीन और समझ तलाशें ताकि हम सामरिक और रणनीतिक उद्देश्यों पर मिलकर काम कर सकें। ऐसा कर पाने की हमारी क्षमता ही यह तय करेगी कि हम युद्ध रोक पाते हैं या नहीं और इस क्षेत्र में तथा सारी दुनिया में शांति बहाल कर पाते हैं या नहीं। ऐसा करके ही हम लोगों और दुनिया में सुधार पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।


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Notes

1 Alex Wellerstein, ‘Counting the dead at Hiroshima and Nagasaki’, Bulletin of the Atomic Scientists, 4 August 2020, https://thebulletin.org/2020/08/counting-the-dead-at-hiroshima-and-nagasaki/.

2 ‘The Spirit of Camp David: Joint Statement of Japan, the Republic of Korea, and the United States’, The White House, 18 August 2023, https://www.whitehouse.gov/briefing-room/statements-releases/2023/08/18/the-spirit-of-camp-david-joint-statement-of-japan-the-republic-of-korea-and-the-united-states/.

3 Mike Yeo, ‘New Japanese Strategy to up Defence Spending, Counterstrike Purchases’, Defence News, 20 December 2022, https://www.defensenews.com/global/asia-pacific/2022/12/20/new-japanese-strategy-to-up-defense-spending-counterstrike-purchases/.

4 For more on the Third Great Depression, see Tricontinental: Institute for Social Research, The World in Economic Depression: A Marxist Analysis of Crisis, notebook no. 4, 10 October 2023, https://dev.thetricontinental.org/dossier-notebook-4-economic-crisis/; for more on the Global North economies and contemporary imperialism, see Tricontinental: Institute for Social Research, Hyper-Imperialism: A Dangerous Decadent New Stage, Studies on Contemporary Dilemmas no. 4, 23 January 2024, https://dev.thetricontinental.org/studies-on-contemporary-dilemmas-4-hyper-imperialism/.

5 ‘President Obama: “Writing the Rules for 21st Century Trade”’, The White House, 18 February 2015, https://obamawhitehouse.archives.gov/blog/2015/02/18/president-obama-writing-rules-21st-century-trade.

6 ‘Leon Panetta: US to Deploy 60% of Navy Fleet to Pacific’, BBC News, 2 June 2012, https://www.bbc.com/news/world-us-canada-18305750.

7 Ren Xiao, ‘Modeling a “New Type of Great Power Relations”: A Chinese Viewpoint’, The Asan Forum, 4 October 2013, https://theasanforum.org/modeling-a-new-type-of-great-power-relations-a-chinese-viewpoint/.

8 For more on trade wars, see Tricontinental: Institute for Social Research, The Imperialism of Finance Capital and ‘Trade Wars’, dossier no. 7, 5 August 2018 https://dev.thetricontinental.org/the-imperialism-of-finance-capital-and-trade-wars/.

9 Donald J. Trump, National Security Strategy of the United States of America (Washington, DC: The White House, 2017), https://trumpwhitehouse.archives.gov/wp-content/uploads/2017/12/NSS-Final-12-18-2017-0905.pdf.

10 Sujai Shivakumar, Charles Wessner, and Thomas Howell, ‘Balancing the Ledger: Export Controls on US Chip Technology to China’, Center for Strategic and International Studies, 21 February 2024, https://www.csis.org/analysis/balancing-ledger-export-controls-us-chip-technology-china.

11 Mary Lovely, ‘US CHIPS Act Threatens to Hollow out Asian Semiconductor Industry’, East Asia Forum Quarterly 15, no. 4 (November 2023), https://eastasiaforum.org/2023/11/26/us-chips-act-threatens-to-hollow-out-asian-semiconductor-industry/.

12 Jon Bateman, ‘Biden Is All-In on Taking Out China, Whatever the Consequences’, Foreign Policy, 12 October 2022, https://foreignpolicy.com/2022/10/12/biden-china-semiconductor-chips-exports-decouple/.

13 Mohammed Hussein and Mohammed Haddad, ‘US Military Presence around the World’, Al Jazeera, 10 September 2021, https://www.aljazeera.com/news/2021/9/10/infographic-us-military-presence-around-the-world-interactive.

14 Hussein and Haddad, ‘US Military Presence around the World’.

15 ‘The Spirit of Camp David’.

16 ‘Press Gaggle by National Security Advisor Jake Sullivan’, The White House, 18 August 2023, https://www.whitehouse.gov/briefing-room/statements-releases/2023/08/18/press-gaggle-by-national-security-advisor-jake-sullivan-thurmont-md/.

17 Justin Katz, ‘US-Japan-ROK to Make “Pledge” to Consult Each Other in Security Crises’, Breaking Defence, 18 August 2023, https://breakingdefense.sites.breakingmedia.com/2023/08/us-japan-rok-to-make-pledge-to-consult-each-other-in-security-crises/.

18 ‘US, Japan, Republic of Korea Conduct Trilateral Aerial Exercise’, United States Indo-Pacific Command, 22 October 2023, https://www.pacom.mil/Media/News/Spotlight/Article/3564925/us-japan-republic-of-korea-conduct-trilateral-aerial-exercise/.

19 Lynn Savage, ‘US INDOPACOM’s Integrated Air and Missile Defence Vision 2028: Integrated Deterrence toward a Free and Open Indo-Pacific’, Journal of Indo-Pacific Affairs, January 2022, https://media.defense.gov/2022/Jan/27/2002929057/-1/-1/1/JIPA%20-%20SAVAGE.PDF.

20 ‘INDOPACOM IAMD Vision 2028’, United States Indo-Pacific Command, 3 November 2021, https://community.apan.org/wg/pic/philippines-pic-portal/m/documents/396455.

21 Gabriel Dominguez, ‘Japan, US, South Korea to Share Missile-Warning Data’, The Japan Times, 13 November 2023, https://www.japantimes.co.jp/news/2023/11/13/japan/politics/japan-us-south-korea-trilateral-analysis/.

22 ‘GSOMIA vs TISA: What is the Big Deal?’, Pacific Forum, 11 February 2020, https://pacforum.org/publications/yl-blog-19-gsomia-vs-tisa-what-is-the-big-deal/.

23 Dominguez, ‘Japan, US, South Korea to Share Missile-Warning Data’.

24 Siegfried Hecker, Hinge Points: An Inside Look at North Korea’s Nuclear Program, (Stanford: Stanford University Press, 2023), 77, 86.

25 Yeon-cheol Seong, ‘Bolton Sabotaged the Korean Peninsula Peace Process at Every Opportunity’, The Hankyoreh, 24 June 2020, https://english.hani.co.kr/arti/PRINT/950798.html.

26 Chery Kang, ‘“THAAD” Anti-Missile System Can’t Protect South Korea from Missile Attacks by Itself’, CNBC, 11 September 2017, https://www.cnbc.com/2017/09/11/south-korea-missile-defense-thaad-system-cant-do-the-job-alone.html.

27 Adam Taylor, ‘Why China Is So Mad about THAAD, a Missile Defence System Aimed at Deterring North Korea’, The Washington Post, 7 March 2017, https://www.washingtonpost.com/news/worldviews/wp/2017/03/07/why-china-is-so-mad-about-thaad-a-missile-defense-system-aimed-at-deterring-north-korea/.

28 Democratic Progressive Party of Taiwan, ‘Party Platform’, accessed 9 April 2024, https://www.dpp.org.tw/en/upload/download/Party_Platform.pdf.

29 ‘Anti-Secession Law (Full Text)’, Embassy of the People’s Republic of China in the United States, 15 March 2005, http://us.china-embassy.gov.cn/eng/zt/twwt/200503/t20050315_4912997.htm.

30 Xi Jinping, ‘Hold High the Great Banner of Socialism with Chinese Characteristics and Strive in Unity to Build a Modern Socialist Country in All Respects: Report to the 20th National Congress of the Communist Party of China’, 16 October 2022, https://www.fmprc.gov.cn/eng/zxxx_662805/202210/t20221025_10791908.html.

31 Susan V. Lawrence and Caitlin Campbell, ‘Taiwan: Political and Security Issues’ (Washington, DC: Congressional Research Service, 4 April 2022), https://crsreports.congress.gov/product/pdf/IF/IF10275/57.

32 Siddarth Kaushal, ‘US Weapons Sales to Taiwan: Upholding the Porcupine Strategy’, Royal United Services Institute, 8 December 2020, https://rusi.org/explore-our-research/publications/commentary/us-weapons-sales-taiwan-upholding-porcupine-strategy.

33 ‘GMD: Frequently Asked Questions’, Center for Arms Control and Non-Proliferation, accessed 6 March 2024, https://armscontrolcenter.org/issues/missile-defense/gmd-frequently-asked-questions/.

34 ‘GMD: Frequently Asked Questions’.

35 ‘The Constitution of Japan’, Prime Minister’s Office of Japan, 1947, https://japan.kantei.go.jp/constitution_and_government_of_japan/constitution_e.html.

36 ‘Occupation and Reconstruction of Japan, 1945-52’, United States Department of State, Office of the Historian, accessed 10 April 2024, https://history.state.gov/milestones/1945-1952/japan-reconstruction.

37 San Francisco Peace Treaty Project, accessed 10 April 2024, http://www.sfpeacetreaty.org/.

38 Foreign Relations of the United States, 1951: Asia and the Pacific, Volume VI, Part 1 (Washington, DC: US Government Printing Office, 1977), 812, https://books.google.ca/books?id=gm5NEc9kWSEC;pg=PA812#v=onepage;f=false.

39 For further reading on the role of the United States in rehabilitating war criminals in Japan, see Jeanne Guillemin, Hidden Atrocities: Japanese Germ Warfare and American Obstruction of Justice at the Tokyo Trial (Ithaca: Cornell University Press, 2017).

40 The Shōwa era refers to the reign of Emperor Shōwa (1926–1989), the beginning of which marked the rise of militarism in Japan.

41 Andrew Levidis, ‘The End of the Kishi Era’, East Asia Forum Quarterly 14, no. 3 (July–September 2022), https://eastasiaforum.org/2022/09/13/the-end-of-the-kishi-era/.

42 Tim Weiner, ‘CIA Spent Millions to Support Japanese Right in 50’s and 60’s’, The New York Times, 9 October 1994, https://www.nytimes.com/1994/10/09/world/cia-spent-millions-to-support-japanese-right-in-50-s-and-60-s.html.

43 Levidis, ‘The End of the Kishi Era’.

44 Lindsay Maizland and Nathanael Cheng, ‘The US-Japan Security Alliance’, Council on Foreign Relations, 4 November 2021, https://www.cfr.org/backgrounder/us-japan-security-alliance.

45 Hussein and Haddad, ‘US Military Presence around the World’.

46 The 2014 reinterpretation of the post-war constitution circumvented the established process of constitutional amendment and was instead made by way of a cabinet decision. Abe’s cabinet was dominated by members of the Nippon Kaigi, a far-right Japanese non-governmental organisation of which Abe himself is also a member. See Akira Kawasaki and Céline Nahory, ‘Japan’s Decision on Collective Self-Defence in Context’, The Diplomat, 3 October 2014, https://thediplomat.com/2014/10/japans-decision-on-collective-self-defense-in-context/.

47 ‘Cabinet Decision on Development of Seamless Security Legislation to Ensure Japan’s Survival and Protect Its People’, Ministry of Foreign Affairs of Japan, 1 July 2014, https://www.mofa.go.jp/fp/nsp/page23e_000273.html.

48 National Security Strategy of Japan (Tokyo: The Government of Japan, 2022), https://www.cas.go.jp/jp/siryou/221216anzenhoshou/national_security_strategy_2022_pamphlet-e.pdf.

49 Yeo, ‘New Japanese Strategy’.

50 Stockholm International Peace Research Institute, ‘SIPRI Military Expenditure Database’, accessed 10 April 2024, https://milex.sipri.org/sipri.

51 Michael Fry, ‘National Geographic, Korea, and the 38th Parallel’, National Geographic, 8 May 2013, https://www.nationalgeographic.com/science/article/130805-korean-war-dmz-armistice-38-parallel-geography.

52 Bruce Cumings, Korea’s Place in the Sun: A Modern History (New York: WW Norton & Company, 2005), 200.

53 Cumings, Korea’s Place in the Sun, 193.

54 Kim-Hwang Kyung-san, ‘Peace, A New Beginning – National Security Law, Our Task Ahead’, The International Strategy Center, 7 June 2018, https://www.goisc.org/englishblog/2018/6/7/peace-a-new-beginning-national-security-law-our-task-ahead.

55 Of the 430 square kilometres of South Korean land that was owned by collaborationists during the Japanese occupation – equivalent to roughly two-thirds the size of Seoul – only 3% has returned to state ownership since liberation. See Kim Ri-taek, ‘The Ever Persistent Cancer of Japanese Collaborators in Modern S Korean History’, The Hankyoreh, 26 February 2019, https://english.hani.co.kr/arti/english_edition/english_editorials/883678.

56 Lee Je-Hun, ‘Yoon Suk-Yeol’s Plan for Forced Labor Compensation Is a Complete Victory for Japan’, The Hankyoreh, 6 March 2023, https://english.hani.co.kr/arti/english_edition/e_national/1082375.

57 The Moon administration committed to the ‘three no’s’: no additional THAAD deployment, no participation in the US missile defence network, and no establishment of a trilateral military alliance with the US and Japan. The Yoon Administration, on the other hand, embraced the US’s ‘free and open Indo-Pacific’. Furthermore, Yoon was the first president to participate in a NATO summit. See Park Byong-su, ‘South Korea’s “Three No’s’”. Announcement Key to Restoring Relations with China’, The Hankyoreh, 2 November 2017, https://english.hani.co.kr/arti/english_edition/e_international/817213.

58 The roots of the People’s Power Party and broader conservative movement in South Korea can be traced back to the Park Chung-hee military dictatorship (1961–1979) and are steeped in an anti-communist ideology. Prior to Korea’s liberation from Japan, Park served in the Imperial Japanese Army, helping to hunt independence fighters. Later, Japan would provide both the inspiration and the funds for Park’s modernisation projects. Park’s daughter, Park Geun-hye, served as South Korea’s president from 2013 to 2017, when she was impeached and convicted on corruption charges. In the aftermath of this scandal, the People’s Power Party was formed through the merger of multiple conservative parties, including the successor to Park Geun-Hye’s Saenuri Party.

59 United States Department of State, The China White Paper, August 1949, ed. Lyman P. Van Slyke (Stanford: Stanford University Press, 1967).

60 ‘National Affairs: An Unsinkable Aircraft Carrier’, Time, 4 September 1950, https://content.time.com/time/subscriber/article/0,33009,856644,00.html.

61 ‘Teaching Human Rights through Documentaries’, Ministry of Culture (Taiwan), 20 April 2014, https://web.archive.org/web/20230330181047/https://www.moc.gov.tw/en/information_196_75811.html.

62 Rupert Wingfield-Hayes, ‘The US Is Quietly Arming Taiwan to the Teeth’, BBC News, 5 November 2023, https://www.bbc.com/news/world-asia-67282107.

63 No Cold War, ‘Taiwan Is a Red Line Issue’, briefing no. 6, 9 February 2023, https://dev.thetricontinental.org/newsletterissue/taiwan/.

64 ‘Building Peace: Preventing War in Northeast Asia’, International Strategy Center, 28–29 October 2023, available at https://www.youtube.com/watch?v=ep4sMtZz5cE.

65 Maia Hibbett, ‘In Their Fight to Stop a New US Military Base, Okinawans Confront Two Colonizers’, The Nation, 16 May 2019, https://www.thenation.com/article/archive/okinawa-japan-us-military/.

66 Hibbett, ‘In Their Fight’.

67 Dae-Han Song, ‘Okinawa: A Bastion for Peace?’, CounterPunch, 6 October 2023, https://www.counterpunch.org/2023/10/06/okinawa-a-bastion-for-peace/.

68 ‘About the Project’, Okinawa Environmental Justice Project, accessed 11 April 2024, https://okinawaejp.blogspot.com/p/about-project.html.

69 Song, ‘Okinawa’.

70 ‘South-North Joint Declaration’, United Nations Peacemaker, 15 June 2000, https://peacemaker.un.org/koreadprk-southnorthdeclaration.

71 Chi Hui Lin, ‘Taiwan Poll Shows Dip in US Trust amid Growing Concern over China’, The Guardian, 23 November 2023, https://www.theguardian.com/world/2023/nov/23/taiwan-poll-shows-dip-in-us-trust-amid-growing-concern-over-china.

72 For more on the ‘rules-based order’ and the UN system, see Tricontinental: Institute for Social Research, Sovereignty, Dignity, and Regionalism in the New International Order, dossier no. 62, 14 March 2023, https://dev.thetricontinental.org/dossier-regionalism-new-international-order/.

73 Anya Wahal, ‘On International Treaties, the United States Refuses to Play Ball’, Council on Foreign Relations, 7 January 2022, https://www.cfr.org/blog/international-treaties-united-states-refuses-play-ball.

74 Tricontinental: Institute for Social Research, The Churning of the Global Order, dossier no. 72, 23 January 2024, https://dev.thetricontinental.org/dossier-72-the-churning-of-the-global-order/; Hussein and Haddad, ‘US Military Presence around the World’.