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पूंजीवाद के स्वर्ग में बेघर हो रहे मेहनतकश

स्वदेश कुमार सिन्हा

इस वर्ष अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में अनुदारवादी रिपब्लिकन पार्टी के अनुदार नेता तथा भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के एक बार पुनः सत्ता में आने की संभावना व्यक्त की जा है, इसका अर्थ है कि शेष दुनिया की‌ तरह अमेरिका में भी फासीवाद का संकट बढ़ रहा है। ट्रम्प शुरू से अमेरिका में बढ़ रहे आर्थिक संकट का कारण प्रवासियों विशेष रूप से मैक्सिको और भारत से आए कामगारों को मानते रहे हैं।

अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 2022‌ में उसकी जीडीपी 25 ट्रिलियन से भी ज़्यादा डॉलर की रही थी, इसका दूसरा मतलब यह है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिका की हिस्सेदारी 24 फीसदी है। 2022 की फोर्ब्स लिस्ट में 2000 कंपनियों में से 560 अमेरिकी कंपनियां थीं। फोर्ब्स की इस लिस्ट की टॉप-20 कंपनियों में 11 अमेरिकी थीं।‌ कंपनियों के अलावा दुनिया के सबसे ज़्यादा अरबपति भी अमेरिकी ही हैं। फोर्ब्स की लिस्ट में 2022 में 735‌ अरबपति अमेरिकी थे, जिनके पास 4.7 ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति थी। इस समय दुनिया के दस सबसे रईस लोगों में सात अमेरिकी ही हैं। टेस्ला और स्पेस एक्स के फाउंडर एलन मस्क दुनिया के दूसरे सबसे रईस हैं, जिनके पास 188 अरब डॉलर से ज़्यादा की संपत्ति है।

इतनी समृद्धि के बावज़ूद पूंजीवाद के ‘स्वर्ग’ कहे जाने वाले अमेरिका में सब ठीकठाक नहीं है। साम्राज्यवादी पूंजी के बड़े चौधरी अमेरिका में जहां एक तरफ़ पूंजी का अंबार है, तो दूसरी तरफ़ बेरोज़गारी और भुखमरी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में 5 से 6 लाख तक लोग बेघर हैं। बेघर होने की तलवार तो लाखों लोगों के सिर पर लटकती रहती है। सन् 2000 से लेकर 2010 तक के दशक में 36 लाख लोगों को घर खाली करने का नोटिस मिला था। कोरोना लॉकडाउन अमेरिका में बाक़ी दुनिया की तरह ग़रीबों के लिए भारी मुसीबतें लेकर आया था। इस दौर में पहले के मुक़ाबले घरों के किराए 25 फ़ीसदी बढ़ गए थे। जनगणना ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार अगले दो महीनों में 38 लाख लोगों को घर छोड़ने के आदेश मिल सकते हैं। जो 38 लाख लोग घर छोड़ने की प्रक्रिया में शामिल होंगे, उनमें थोड़े से कुछ समय के लिए अपने रिश्तेदारों और जानकारों के घर जा सकते हैं, पर एक बड़ा तबक़ा बेघर हो जाएगा।

अमेरिका ईट्स (इट्स यंग/ इट्स ओल्ड), ऐडम टर्ल

पूंजीवादी सभ्यता के सबसे बड़े रोल मॉडल अमेरिका में लोगों को किस तरह बेघर किया जाता है, उसका एक उदाहरण पेश हैः 15 दिसंबर 2021 के ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ में एलीसासलोव का घर खाली करवाने के लिए ज़ि‍म्मेदार एक पुलिस कर्मचारी लेनी के बारे में लिखा गया है कि वह रोज़ाना कंधे पर बंदूक रखकर किराया ना भर सकने वाले घरों में जाता था। पुलिस अधिकारी ने बताया कि उसने अकेले ही दो दशकों में 20,000 से ज़्यादा घर खाली करवाए। उसे आदेश दिया गया था कि एक फ़्लैट 10 मिनट में ख़ाली करवाए। उसने बताया कि वह बिना किसी आगामी सूचना के घर का दरवाजा खटखटाता था और 10 मिनट में घर खाली करने का आदेश सुना देता था। छोटे बच्चों वाले परिवार के लिए भी कोई छूट नहीं थी।

घर खाली करवाने वाला वह अकेला अधिकारी नहीं था। अमेरिका में घर खाली करवाने का औसत लगभग 10,000 रोज़ाना है। यानी 1 घंटे में 420 और 1 मिनट में 7। अस्थाई बेघर लोग भी अमेरिका में काफ़ी बड़ी संख्या में मिल जाते हैं। जब तक किसी घर का प्रबंध नहीं होता, लोग किसी शेल्टर या कार में रहने के लिए मजबूर होते हैं। घर खाली करने से पहले भी बकाया देनदारी की समस्या भी काफ़ी गंभीर होती है। उलटा किराए में देरी करने पर जुर्माना भी वसूल किया जाता है। एक बार जिससे घर खाली करवाया जाता है,उसे आगे नया घर लेते समय बहुत मुश्किल आती है। क्योंकि उसके रिकॉर्ड में लिखा जाता है कि,उससे घर खाली करवाया गया है’। इससे नया मकान मिलना मुश्किल हो जाता है।

मकान मालिक के मुक़ाबले किराएदार की क़ानून तक पहुंच भी कम होती है। आमतौर पर ग़रीब किराएदार नोटिस मिलने पर एकदम पैसों का प्रबंध कर सकने की हालत में नहीं होते हैं। घरों की समस्या में वर्गीय और नस्लीय कारक भी काम करते हैं। वर्गीय कारक तो सीधेसीधे अर्थव्यवस्था से संबंधित हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार कम आमदनी वाले लोग और नस्लीय अल्पसंख्यक के एक तिहाई लोग किराए के घरों में रहते हैं।

वैसे अमेरिका में मकानों की कोई कमी नहीं है। कुल घरों के 10 फीसदी मकान खाली पड़े रहते हैं। पर ग़रीबों की पहुंच वाले घरों की बहुत कमी है। कैलिफ़ोर्निया में 100 किराएदारों पर सिर्फ़ 23 घर ऐसे हैं, जिनका किराया भर पाना उनकी पहुंच में होता है। इस समय राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की पहुंच वाले 70 लाख मकानों की कमी है। वर्तमान समय में 10000 अमेरिकी लोगों के पीछे 17 लोग बेघर हैं। अमेरिका के बेघरों की कुल आबादी के 40 प्रतिशत अफ़्रीकी मूल के अमेरिकी हैं। अमेरिकी बेघरों में 20 प्रतिशत बच्चे हैं। बेघर लोगों के मानसम्मान को तो ठेस पहुंचती ही है, बल्कि नए रोज़गार ढूंढने में भी समस्या आती है। औरतों और बच्चों को ज़्यादा कष्ट झेलने पड़ते हैं। बेघर लोगों की समस्याओं पर बनी फ़िल्म का ज़िक्र करते हुए एलीसासलोव एक घटना का विवरण लिखते हैं, जिसमें अचानक घर खाली करते समय एक साल का बच्चा अपनी माँ की टाँगों से लिपट जाता है। इस भावुक दृश्य को देखकर दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस अन्यायपूर्ण हालत की तरफ़ सरकार का रवैया बहुत बेरुख़ी वाला है। कम आमदनी वाले लोगों के लिए घर की योजना का अमेरिकी पूंजीपति डटकर विरोध करते हैं। उनका तर्क है कि इससे उनकी जायदाद की क़ीमत और उसका स्तर गिरता है। इसी दबाव के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन घरों की समस्या संबंधी अपने चुनावी वायदों से पीछे हट गए हैं।

स्लीप बिटवीन, कैरन हेडॉक

आख़िर अमेरिकी मज़दूरों की पहुंच में रहने लायक घर क्यों नहीं हैं? अमेरिका में न्यूनतम वेतन का स्तर इतना नहीं है कि कम वेतन वाले मज़दूर मकान का किराया दे सकें। एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में न्यूनतम वेतन 7.25 डॉलर प्रति घंटा है। कई राज्यों में न्यूनतम वेतन इससे थोड़ा ज़्यादा है। कई राज्य अगले वर्षों में न्यूनतम वेतन 15 डॉलर प्रति घंटा करने पर विचार कर रहे हैं। पर 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार एक किराएदार को घर हासिल करने के लिए दिन का पूरा समय 20.40 डॉलर प्रति घंटा कमाने की ज़रूरत है, वह भी सिर्फ़ एक बेडरूम वाले रहने लायक घर के लिए। वैसे दो बेडरूम वाला घर लेने के लिए 24.90 डॉलर प्रति घंटा की कमाई ज़रूरी है। कम आमदनी वाले परिवारों के राष्ट्रीय गठबंधन की ‘पहुंच से बाहर’ रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के 93 प्रतिशत ज़िलों के कम वेतन वाले मज़दूर एक बेडरूम वाला घर लेने में सक्षम नहीं हैं। पूरा समय काम करने वाले मज़दूर की आमदनी का 30 फीसदी घरों के किराए में चला जाता है। 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार औसतन मज़दूर इस समय 18.70 डॉलर भी प्रति घंटा कमाते हैं,जो न्यूनतम ज़रूरत से भी 6 डॉलर प्रति घंटा कम है। एक मज़दूर को घर हासिल करने के लिए हफ़्ते में 97 घंटे काम करने की ज़रूरत है। अमेरिका में यह समय मज़दूरों के पूरा समय काम करने से दोगुना बनता है। रिपोर्ट से साफ़ है कि मज़दूरों का कम वेतन घरों की समस्या का मुख्य कारण है।

वास्तव में 2020 के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था गंभीर आर्थिक संकट और मंदी का शिकार हो गई। अमेरिका की तबाही के पीछे विश्व में उसके वर्चस्व का सवाल भी प्रमुख है। आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से अमेरिका को जहां एक ओर यूरोपीय यूनियन चुनौती दे रहा है, वहीं दूसरी ओर चीन दुनिया के पहले नंबर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है तथा वह सैन्य दृष्टि से भी अमेरिका को चुनौती दे रहा है। रूस, चीन और ईरान का गठजोड़ भी आज अमेरिका पर भारी पड़ रहा है। अमेरिका का यह संकट बढ़ते हुए विश्व पूंजीवाद के संकट का ही एक रूप है। वास्तव में इन आर्थिक संकटों का सबसे ज़्यादा ख़मियाजा सबसे पहले समाज के बेघर और ग़रीब तबके को भुगतना पड़ता है। आज हम अमेरिका में यही देख रहे हैं।