डिलीवरी ब्वॉय: ख़ुशियों की डिलीवरी करता ख़तरों से जूझता एक इंसान
डिलीवरी ब्वॉय का काम असंगठित क्षेत्र में आता है व उन्हें कोई सरकारी संरक्षण हासिल नहीं है। पूरे देश के स्तर पर ऐसी नीतियां अपनाने और कानून बनाए जाने की ज़रूरत है, जिससे डिलीवरी ब्वॉय का काम करने वाले लाखों लोगों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिल सके।
दीपक भारती
पिछले दिनों फेसबुक पर एक पोस्ट दिखी, – ‘गरमी के इस मौसम में दुकानदार ही सबील लगाकर हमें और आपको शरबत पिला रहे हैं, ई–कॉमर्स कंपनियां नहीं। इसलिए ख़रीदारी दुकान से ही करें, ऑनलाइन नहीं।’ वैसे तो यह महज एक भावुक अपील थी और ऑनलाइन सामान मंगाने का चलन इतना बढ़ चुका है कि उस पर ऐसी किसी अपील का असर पड़ना संभव नहीं लगता। फिर भी दुकान से सामान लेने या ऑनलाइन मंगाने के बीच में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी और भी है, जिसे हम कई बार अनदेखा कर जाते हैं, वह है – डिलीवरी ब्वॉय।
अमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसी ई–कामर्स कंपनियों और जोमैटो, स्विगी जैसी फूड डिलीवरी कंपनियों के लिए उनका उत्पाद, कस्टमर तक पहुंचाने के लिए सबसे ज़रूरी व्यक्ति एक डिलीवरी ब्वॉय ही होता है। दिन के किसी हिस्से में, चाहे सुबह हो, दोपहर, शाम, यहां तक कि रात में दस बजे तक भी, घर की बालकनी या छत पर खड़े होकर अपनी सड़क या गली में देखिए, थोड़ी देर में बाइक पर बड़ा सा झोला लटकाए, आपको डिलीवरी ब्वॉय नजर आ जाएंगे।
यह एक ऐसा रोज़गार है, जो पिछले दस सालों में बेरोज़गार लोगों के लिए उम्मीद बनकर उभरा है, जिसके लिए किसी बड़ी डिग्री या योग्यता की ज़रूरत नहीं होती। इसे ऐसी नौकरी के रूप में जाना जाता है, जो आसानी से मिल जाती है। कुछ ई – कॉमर्स कंपनियां इसके लिए दसवीं तक की पढ़ाई को अनिवार्य मानती हैं ताकि डिलीवरी ब्वॉय उस पते को पढ़ और समझ सके, जहां उसे सामान डिलीवर करना है। इसके अलावा नौकरी के लिए एक डिलीवरी ब्वॉय के पास स्कूटी या बाइक का होना भी जरूरी है क्योंकि इसके बिना वह काम ही नहीं कर सकता।
ऑनलाइन सामान मंगाना, आज के समय में उस उच्च और मध्य वर्ग के उन लोगों के लिए मुफ़ीद भी है, जिनकी जेब में पैसा है लेकिन बाज़ार जाकर सामान ख़रीदने का समय या तो कम है या बिल्कुल नहीं। ऐसे में डिलीवरी ब्वॉय, इस वर्ग को उसकी मर्ज़ी और ज़रूरत का सामान उसके दरवाज़े तक पहुंचाते हैं। तो, इस रोज़गार के पनपने में केवल कंपनियों या डिलीवरी ब्वॉय का ही फ़ायदा नहीं है, यह लगातार उपभोक्तावादी होते जा रहे हमारे समाज के लिए भी ज़रूरी बन गया है।
लेकिन इन डिलीवरी ब्वॉय का काम आसान नहीं है। यू–ट्यूब पर इस पेशे से जुड़ी जानकारियों के वीडियो तैयार करने वाले एक डिलीवरी ब्वॉय संजय सिंह के मुताबिक, ‘काम करते समय सबसे बड़ी व्यावहारिक दिक़्क़त है – ‘पार्सल बड़ा होने पर कस्टमर का मोबाइल बंद होना। हम दिन की शुरुआत में बड़ा पार्सल सबसे पहले डिलीवर करना चाहते हैं, इसलिए कस्टमर को कॉल कर उसकी लोकेशन के लिए निकलते हैं, लेकिन कभी–कभी जब उस कस्टमर का मोबाइल बंद हो जाता है और वह अपने पते पर नहीं मिलता तो बड़ी दिक़्क़त हो जाताी है। फिर वह पार्सल हमें दिन भर संभालकर रखना होता है। अगर वह टूटने वाला हो और ग़लती से टूट भी जाए ता उसका बिल हमें अपनी जेब से भरना पड़ता है।’
वह आगे कहते हैं, ‘इसके अलावा नकदी की दिक़्क़त होती है, कई बार एक दिन में 30 हजार तक नकद रुपये मिल जाते हैं, नकदी अगर कम हो जाए या उसमें से कुछ गुम हो जाए तो वह हमारी लापरवाही मानी जाती है, जिसका दंड हमें चुकाना होता है।’ उनके मुताबिक, दो कस्टमर के पते अलग, लेकिन नाम एक होने पर कभी– कभी एक का सामान दूसरे के पास पहुंच जाता है, तब भी दिक़्क़त होती है।’
यू–ट्यूब पर ही एक अन्य डिलीवरी ब्वॉय के मुताबिक, इस पेशे में कई तरह के जोख़िम हैं, जैसे –
1 – मौसम कितना भी ख़राब क्यों न हो, एक डिलीवरी ब्वॉय को काम करना होता है। अगर वह बैठा रहेगा तो उसे कोई पैसा नहीं मिलेगा।
2 – डिलीवरी ब्वॉय के काम में बहुत मेहनत है, आप जितना काम करेंगे, उतना ही पैसा मिलेगा। अगर काम कम करेंगे, तो पेट्रोल का ख़र्चा निकालना भी मुश्किल हो जाएगा। ग़ौरतलब है कि ज्यादातर ई–कामर्स और फूड डिलीवरी कंपनियां इन लोगों को पेट्रोल का ख़र्च नहीं देतीं।
3 – डिलीवरी ब्वॉय के लिए प्रॉविडेंट फंड या ईएसआई की सुविधा नहीं है। उसकी नौकरी पूरी तरह से असुरक्षित है और कंपनी की तरफ से उसे हेल्थ इंश्योरेंस भी नहीं मिलता।
4 – इसके अलावा कई बार कस्टमर्स का बर्ताव बहुत ख़राब होता है। वे सामान लेने के लिए लोकेशन से थोड़ा सा भी दूर चलकर सामान लेने नहीं आ सकते। कई बार सोसाइटीज में किसी कस्टमर को सामान देने के लिए डिलीवरी ब्वॉय को आठ से दस फ्लोर चढ़ना पड़ता है। उस समय उसकी बाइक बाहर सामान के साथ रिस्क पर खड़ी रहती है। कुछ कस्टमर सामान लेने और पेमेंट करने से पहले तमाम तरह के सवाल पूछकर उसका क़ीमती वक़्त बर्बाद करते हैं।
कस्टमर्स का बुरा बर्ताव कोई नई चीज़ नहीं है। कुछ दिन पहले ही दिल्ली में एक युवती ने अपने साथी के साथ मिलकर फूड डिलीवरी करने आए एक लड़के से खाने के साथ ही उसके साढ़े तीन हजार रुपये लूट लिए थे। ऐसे ही कुछ समय पहले लखनऊ में फूड डिलीवरी करने गए एक मुस्लिम डिलीवरी ब्वॉय के साथ कस्टमर ने मारपीट की थी।
पिछले दस सालों में जाति और धर्म के नाम पर जो हिंसा बढ़ी है, डिलीवरी ब्वॉय कई बार उसका आसान शिकार बन जाते हैं। ख़ासकर, फूड डिलीवरी करने वाले इसकी चपेट में ज़्यादा आते हैं। हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर शाकाहार बनाम मांसाहार की बहस छिड़ी थी। कई शाकाहारी लोग, जब यह जान लेते हैं कि फूड डिलीवर करने वाला डिलीवरी ब्वॉय मुस्लिम है, तो उन्हें यह अपमानजनक और अपने धर्म के ख़िलाफ़ लगता है और वे इस पर भद्दी प्रतिक्रिया भी करते हैं। नौकरी की ख़ातिर एक डिलीवरी ब्वॉय को यह सब झेलने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
डिलीवरी ब्वॉय चूंकि अपने समय के हिसाब से काम करता है और उसका काम असंगठित क्षेत्र में आता है, इसलिए देश के करोड़ों मज़दूरों की तरह उसे भी कोई सरकारी संरक्षण हासिल नहीं है। उसकी नौकरी, सैलरी, काम के घंटों और छुट्टियों आदि को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है। ज़्यादातर कंपनियां चूंकि उनकी नियुक्ति ठेकेदारों के ज़रिये करती हैं, इसलिए वे इन्हें लेकर नीतियां तय करने की अपनी ज़िम्मेदारी से बच जाती हैं। सरकार इस दिशा में ठोस प्रयास करे तो उनकी मुश्किलें कम की जा सकती हैं।
पिछले साल प्रधानमंत्री ने फ्रीलांसर्स की तरह डिलीवरी ब्वॉय को भी गिग वर्कर्स में शामिल कर उसकी कठिनाइयों के समाधान के लिए नीतियां निर्धारित करने की बात कही थी। हालांकि केंद्र में तीसरी बार एनडीए सरकार बन जाने के बावजूद इस दिशा में अभी कोई ऐलान होना बाकी है।
राजस्थान सरकार ने इस दिशा में पहल कर पिछले साल गिग वर्कर्स अधिनियम 2023 लागू किया था। उसने गिग वर्कर्स के लिए बजट में दो सौ करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। इसके लिए फंड ई–कॉमर्स कंपनियों पर एक टैक्स लगाकर जुटाया जाएगा। इस फंड से गिग वर्कर्स के लिए दुर्घटना बीमा, पेंशन आदि सुविधाओं का इंतज़ाम किया जाएगा। कनार्टक सरकार ने भी इसी साल अप्रैल में गिग वर्कर्स ख़ासकर डिलीवरी ब्वॅायज के लिए चार लाख तक के इंश्योरेंस स्कीम की शुरुआत की है। इसके मुताबिक, राज्य सरकार ज़ोमैटो, अमेज़ॅान, फ्लिपकार्ट, स्विगी आदि जैसे ऑनलाइन रिटेलर के लिए काम करने वाले किसी भी पात्र व्यक्ति को जीवन बीमा में 2 लाख और दुर्घटना बीमा में 2 लाख का लाभ प्रदान करेगी। महाराष्ट्र में भी उनके लिए कानून लाने की बात हो रही है। दिल्ली सरकार भी गिग वर्कर्स के लिए कानून लाने की बात कर चुकी है।
राज्य सरकारों की पहल के बावजूद यह कहना ज़रूरी है कि पूरे देश के स्तर पर ऐसी नीतियां अपनाने और कानून बनाए जाने की ज़रूरत है, जिससे डिलीवरी ब्वॉय का काम करने वाले लाखों लोगों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिल सके। अभी की स्थिति यह है कि पूरे ऑनलाइन डिलीवरी मार्केट में कुछ बड़ी ई–कॉमर्स कंपनियों का दबदबा है। इन कंपनियों की ग्लोबल लेवल पर इतनी बड़ी साख है कि बिना सरकारी संरक्षण के कोई डिलीवरी ब्वॉय अकेला इनकी मनमानी के ख़िलाफ़ खड़ा नहीं हो सकता। ये आपस में साठगांठ करके प्रति पैकेट पर डिलीवरी ब्वॉय को मिलने वाले मुनाफ़े को तय कर लेती हैं और वह इसे मानने को बाध्य होता है। अनुमान के मुताबिक, पांच–सात साल पहले उसे एक पैकेट पर 60-70 रुपये मिल जाते थे, जो अब घटकर 25-30 रुपये हो गए हैं। यह स्थिति सरकार से छिपी नहीं है और वह उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए कानून का ऐलान भी कर चुकी है, ज़रूरत उस कानून को लागू करने और उसे अमल में लाने की है।
ई श्रम पोर्टल के मुताबिक, देश में गिग वर्कस यानी फीलांसर्स या थर्ड पार्टी कॉन्ट्रैक्ट पर काम काम करने वाले मज़दूरों की तादाद लगभग दस करोड़ है। इसी साल मार्च में दिल्ली के एक एनजीओ ‘जनपहल’ द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया था कि लगभग 85 फीसदी गिग वर्कर्स दिन में आठ घंटे करते हैं जबकि 21 फीसदी को तो दिन में बारह घंटों तक काम करना पड़ता है। ‘जनपहल’ ने देश के 32 शहरों में लगभग पांच हजार गिग वर्कर्स के बीच सर्वे कर ये आंकड़े जारी किए थे। रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकार को यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि ई–कॉमर्स कंपनियां गिग वर्कर्स के लिए पारदर्शी नीतियां बनाएं, जिससे उन्हें काम करने का बेहतर माहौल मिले।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)