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जलवायु परिवर्तन की मार झेलता शहरी ग़रीब

जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकटों से बुरी तरह प्रभावित शहरी ग़रीब वर्ग होता है, जो कि वर्ग न्यूनतम जल निकासी और सीवरेज सुविधाओं वाले निचले इलाक़ों में झुग्गी झोपड़ियों में रहता है। जबकि यह वह आबादी है जो सबसे कम प्रदूषण बढ़ाती है। यह वास्तव में शहर की रीढ़ है, जो शहर को सस्ता और सुलभ श्रम प्रदान करती है।
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खुले में शौच के लिए मजबूर बेघर स्त्रियां

बेघर लोगों का जीवन निश्चय ही बेहद कठिन होता है, ख़ासकर स्त्रियों का, लेकिन हमारी सामाजिक कंडीशनिंग मूल रूप से पितृसत्तात्मक है, शायद इसलिए हम उस नारकीयता की कल्पना ही नहीं कर पाते, जिसमें वे दिन रात रहती हैं।
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डिलीवरी ब्वॉय: ख़ुशियों की डिलीवरी करता ख़तरों से जूझता एक इंसान

डिलीवरी ब्वॉय का काम असंगठित क्षेत्र में आता है व उन्हें कोई सरकारी संरक्षण हासिल नहीं है। पूरे देश के स्तर पर ऐसी नीतियां अपनाने और कानून बनाए जाने की ज़रूरत है, जिससे डिलीवरी ब्वॉय का काम करने वाले लाखों लोगों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिल सके।
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बजट 2024: मेहनतकशों से ज़्यादा मालिकों की चिंता

इस सरकार ने जो बजट पेश किया है, वह ऐसी धारणा बनाता है कि अर्थव्यवस्था के मामले में ऐसा कुछ तो हुआ ही नहीं है, जिस पर तुरंत ध्यान दिए जाने की ज़रूरत हो। ढीठपने का यह प्रदर्शन हैरान करने वाला है।
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महानगरों में फल-फूल रही है कट्टरता 

माना गया था कि शहरीकरण की प्रक्रिया से जातिगत या धार्मिक रूढ़ियां कमज़ोर पड़ जाएंगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। क्या शहरीकरण और सामाजिक बदलाव में इतना सीधा रिश्ता नहीं है या भारत में शहरीकरण की प्रक्रिया में ही कोई बुनियादी खोट है?
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पूंजीवाद के स्वर्ग में बेघर हो रहे मेहनतकश

अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। लेकिन यह समृद्धि सबके लिए नहीं है। एक तरफ़ पूंजी का अंबार है, तो दूसरी तरफ़ बेरोज़गारी और भुखमरी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में 5 से 6 लाख तक लोग बेघर हैं। जबकि बेघर होने की तलवार तो लाखों लोगों के सिर पर लटकती रहती है।
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दलित चेतना के उत्स और अंतर्विरोध

दलित चेतना एक प्रति-सांस्कृतिक चेतना है। इस चेतना का उत्स जाति पर आधारित भारतीय सामाजिक संरचना है, जिसे धार्मिक वैधता प्राप्त है। इस चेतना में जाति-व्यवस्था के सांस्कृतिक वर्चस्व का निषेध स्वाभाविक…
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ग्लोबल वार्मिंग में वैश्विक उत्तर बनाम वैश्विक दक्षिण

ग्लोबल वार्मिंग के कारण आज हमारे अस्तित्व पर ख़तरा पैदा हो गया है, लेकिन इससे निपटने की जो कोशिशें चल रही हैं, वे एक ख़ास तबक़े की मनमानी के कारण ज़ोर नहीं…
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मैं जगी थी यहाँ जब पृथ्वी नयी नयी थी: 34वाँ (2021)

COP26 में शक्तिशाली उत्तरी गोलार्ध एक बार फिर ‘नेट ज़ीरो’ कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन पर जोर देगा और इस तरह अपने स्वयं के उत्सर्जन में कटौती करने की माँगों को अस्वीकार कर देगा,…
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बच्चों को हरे खेत दिखाओ और सूरज की रौशनी उनकी ज़ेहन में उतरने दो: 32वाँ न्यूज़लेटर (2021)

ब्राज़ील में 2020 के अंत तक, लगभग 15 लाख बच्चों और किशोरों ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी और 37 लाख बच्चे औपचारिक रूप से नामांकित तो थे लेकिन दूरस्थ कक्षाओं तक…
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चीन ग़रीबी ख़त्म कर रहा है और अरबपति अपने मज़े के लिए अंतरिक्ष में घूमने जा रहे हैं: 31वाँ न्यूज़लेटर (2021)

दुनिया में लगभग तीन में से एक व्यक्ति (2.37 बिलियन) के पास 2020 में पर्याप्त भोजन नहीं था। खाद्य दंगे बढ़ रहे हैं लेकिन अकेले बेजोस ने चार मिनट की अंतरिक्ष यात्रा…
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हमारे समय का सबसे बड़ा मुक़ाबला मानवता और साम्राज्यवाद के बीच है: 30वाँ न्यूज़लेटर (2021)

कोविड-19 महामारी के बीच क्यूबा पर अमेरिकी नाकेबंदी ख़त्म करने का आह्वान करना बहुत ज़रूरी हो गया है। महामारी में सहयोग और सहानुभूति का रास्ता अपनाने की बजाए, अमेरिका ने विज्ञान विरोधी,…
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