हवाई बमबारी की विभीषिका: इकतालीसवाँ न्यूज़लेटर (2024)
पिछले एक साल से इज़राइल फिलिस्तीनियों का नरसंहार कर रहा है और इस दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका ने उसे 17.9 बिलियन डॉलर की रिकार्ड सैन्य सहायता दी है।
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
1 अक्टूबर को अमरीकी सदन की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष माइकल मक्कॉल ने संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के राष्ट्रपति जो बायडन से आग्रह करते हुए एक बयान जारी किया कि वे ‘इज़राइल पर युद्धविराम के लिए दबाव बनाने की बजाए ईरान और उसके प्रॉक्सियों पर अधिकतम दबाव बनाएँ। इस सरकार ने इज़राइल को हथियार देने में महीनों लगा दिए, हमें जल्द ही 2,000 पाउन्ड [900 किलो] के बम सहित अन्य हथियार इज़राइल तक पहुँचाने चाहिए ताकि उसके पास इन तमाम खतरों से बचने के सब उपाय मौजूद रहें।’ मक्कॉल द्वारा युद्ध की इस तरफ़दारी से कुछ दिन पहले, 27 सितंबर को ही इज़राइल ने यूएस में बने अस्सी से ज़्यादा बम व अन्य हथियार इस्तेमाल कर बेरूत के रिहायशी इलाकों पर हमला किया था। इस हमले में सैंकड़ों नागरिकों सहित हिज़बुल्लाह के नेता सईद हसन नसरल्लाह (1960-2024) मारे गए। इज़राइल ने ‘बंकर बमों’ का भी इस्तेमाल किया, ऐसे बम जो मज़बूत ढाँचों और ज़मीन के नीचे स्थित ठिकानों को तबाह कर सकते हैं, जैसे कान्क्रीट की इमारतें या ज़मीन के नीचे बने सेना के बंकर। इस एक दिन में इज़राइल ने यूएस सेना द्वारा 2003 में इराक़ पर आक्रमण के समय गिराए गए ‘बंकर बमों’ से भी ज़्यादा बम गिराए।
यूएस के एक भूतपूर्व पायलट और यूएस जल सेना के कमांडर ग्राहम स्कारब्रो ने यूएस नेवल इंस्टिट्यूट के लिए इज़राइल के हमलों के सबूतों की जाँच की। उन्होंने अपने एक लेख में कई खुलासे किए; वे लिखते हैं कि इज़राइल ने ‘नागरिकों के क्षति के विषय में पिछले दशकों में यूएस के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग दृष्टिकोण अपनाया है’। हालांकि यूएस ने कभी भी आम जनता की हत्या या ‘नागरिकों की क्षति’ को लेकर कोई खास चिंता नहीं जताई है लेकिन ध्यान देने योग्य है कि इज़राइल जिस हद तक मानव जीवन की बेक़द्री कर रहा है यह बात यूएस सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को भी खटक रही है। स्कारब्रो ने लिखा कि इज़राइल की ‘नागरिक क्षति को बर्दाश्त कर लेने की क्षमता शायद काफ़ी ज़्यादा है… मतलब कि वह तब भी हमले करता है जब नागरिकों की मौत की संभावना बहुत ज़्यादा होती है’।
वाशिंगटन को अच्छे से पता है कि इज़राइल कैसे बिना झिझक गज़ा पर और अब लेबनान पर बमबारी कर रहा है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के इस फ़ैसले के बावजूद कि ‘संभवत:’ इज़राइल गज़ा में फिलिस्तीनियों का नरसंहार कर रहा है, यूएस ने इज़राइल को जानलेवा हथियार देना जारी रखा। 10 अक्टूबर 2023 को बायडन ने कहा था कि ‘हम अतिरिक्त सैन्य सहायता बढ़ा रहे हैं’, और पिछले एक साल से चल रहे नरसंहार के दौरान यह अतिरिक्त सैन्य सहायता राशि 17.9 बिलियन अमरीकी डॉलर (1790 करोड़) तक पहुँच गई तथा अब तक के सब रिकार्ड तोड़ चुकी है। मार्च 2024 में छपी वॉशिंटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक यूएस ने चुपचाप इज़राइल के नाम सौ सैन्य सौदों को मंज़ूरी दी और झटपट आपूर्ति भी कर दी, जिनमें हज़ारों की तादाद में प्रीसिशन गाइडिड युद्ध सामग्री (ऐसे हथियार जिन्हें किसी खास निशाने पर सटीक हमले के लिए इस्तेमाल किया जाता है), लघु व्यास बम (जिन्हें छोटे आकार के कारण बड़ी संख्या में विमानों के द्वारा इधर से उधर ले जाया जा सकता है), छोटे हथियार तथा अन्य जानलेवा हथियार शामिल थे। ये ‘छोटे’ विक्रय यूएस कानून में दी गई फ़रोख़्त की उस न्यूनतम सीमा से कम थे जिसके लिए राष्ट्रपति को कॉंग्रेस से अनुमति लेनी पड़ती है (जो कि वैसे उन्हें मिल ही जानी थी)। इन्हीं में इज़राइल को 2,000 पाउन्ड (900 किलो) के कम से कम 14,000 एमके-84 बम और 500 पाउन्ड (225 किलो) के 6,500 बम भी दिए गए, जिनका इस्तेमाल उसने गज़ा और लेबनान दोनों जगह किया।
गज़ा में इज़राइल लगातार 2,000 पाउन्ड के बम से उन इलाकों पर हमले करता रहा है जहाँ बड़ी संख्या में जनता रह रही है। जबकि इज़राइली प्रशासन ने खुद लोगों को इन इलाकों में शरण लेने के लिए कहा था। न्यू यॉर्क टाइम्ज़ ने रिपोर्ट किया कि ‘युद्ध के पहले दो हफ्तों में इज़राइल ने गज़ा पर जो बम फेंके उनमें से लगभग 90 प्रतिशत 1,000 या 2,000 पाउन्ड के सेटलाइट की मदद से गिराए जाने वाले बम थे’। मार्च 2024 में यूएस सेनट सदस्य बर्नी सेंडर्स ने ट्वीट कर कहा था, ‘यह कितना शर्मनाक है कि एक दिन यूएस नेतनयाहू से आग्रह करता है कि वह आम जनता पर बम न गिराए और दूसरे दिन उसे 2,000 पाउन्ड के हज़ारों बम और दे देता है, जिनसे पूरे के पूरे शहरी ब्लॉक तबाह किए जा सकते हैं’। एक्शन ऑन आर्म्ड वाइअलन्स की 2016 की एक रिपोर्ट में सामूहिक विनाश के हथियारों के बारे में कहा गया था कि:
यह बहुत ही शक्तिशाली बम हैं जो अगर घनी आबादी वाले इलाकों पर इस्तेमाल किए जाएँ तो अकूत विनाश कर सकते हैं। ये इमारतों को चीरते हुए हमले के आस पास सैंकड़ों मीटर तक लोगों को मार या घायल कर सकते हैं। 2,000 पाउन्ड वाले एमके-84 बमों के फटने और विनाश के पैटर्न का अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन ऐसा आमतौर पर कहा जाता है कि इस हथियार का ‘विनाश रेडियस’ (यानी वह दूरी जहां तक आस पास के क्षेत्र में यह बम लोगों को मार सकता है) 360 मीटर तक हो सकता है। ऐसे हथियारों की विस्फोट तरंगों के परिणाम भी दहला देने वाले होते हैं; एक 2,000 पाउन्ड का बम अपने हमले के केंद्र से 800 मीटर तक तबाही मचा सकता है और लोगों को गंभीर रूप से घायल कर सकता है।
मैं कई बार बेरूत में दाहिये के हरेट हरीक इलाके में पैदल घूमा हूँ जहाँ हिज़बुल्लाह के नेता पर हमले के लिए इज़राइल ने बम गिराए थे। यह एक घनी आबादी वाला इलाका है जहां कई-कई मंज़िलों वाली ऊँची रिहायशी इमारतों के बीच कुछ ही मीटर की दूरी है। इन इमारतों पर अस्सी से ज़्यादा शक्तिशाली बम गिराये जाने को ‘सटीक हमला’ तो नहीं कहा जा सकता। बेरूत पर इज़राइल द्वारा बमबारी काफ़ी कुछ गज़ा पर इसके घातक हमलों जैसी ही है और यह बमबारी इज़राइल तथा यूएस की युद्धनीति का प्रतीक भी है जिसमें इंसानी जान का कोई मोल नहीं है। 23 सितंबर को इज़राइल ने लेबनान पर प्रति मिनट एक से ज़्यादा हवाई हमलों की दर से बमबारी की। कुछ ही दिनों में इज़राइल के ‘प्रचंड हवाई हमलों’ ने दस लाख से ज़्यादा लोगों को बेघर कर दिया, जो कि लेबनान की पूरी आबादी का पाँचवा हिस्सा है।
1 नवंबर 1911 को दुनिया में पहली बार हवाई जहाज़ के ज़रिए बम गिराया गया था। यह (डेनमार्क में बना) एक हासन हैंड ग्रिनेड था जो इटली की वायु सेना के लेफ्टिनेंट जिओलियो कवॉत्ती ने लीबिया के त्रिपोलि के पास तजुरा शहर पर गिराया था। इसके सौ वर्ष बाद उस विभत्स घटना को फिर से दोहराया गया जब फ़्रांसीसी और यूएस लड़ाकू विमानों ने लीबिया पर एक बार फिर बमबारी की। इस बार की कार्रवाई मुअम्मर गद्दाफ़ी की सरकार का तख्तापलट करने के उनके अभियान का हिस्सा थी। हवाई बमबारी की विभीषिका उसकी शुरुआत से ही स्पष्ट हो गई थी, जैसा कि स्वेन लिंडकविस्त ने अपनी किताब A History of Bombing [बमबारी का इतिहास] (2003) में दर्ज किया है। मार्च 1924 में यूनाइटेड ब्रिटेन (यूके) के स्कॉड्रन लीडर, आर्थर ‘बॉम्बर’ हैरिस, ने एक रिपोर्ट लिखी थी (जिसे बाद में औपचारिक रिकार्ड से हटा दिया गया)। रिपोर्ट में हैरिस ने इराक़ में अपने द्वारा की गई बमबारी के बारे में और हवाई हमलों के ‘असल’ मायनों के बारे में लिखा था:
अरब और खुर्द [लोगों] को लगता था कि अगर वे हल्के धमाके झेल सकते हैं तो बमबारी भी झेल लेंगे… उन्हें अब समझ आया था कि असली बमबारी क्या होती है, इसमें कितनी मौतें और तबाही होती है; उन्हें अब पता चला था कि पैंतालीस मिनट में एक पूरा गाँव (देखिए कुशन अल-अजाज़ा की संलग्न तस्वीरें) का लगभग नामोनिशाँ मिटाया जा सकता है और इसके एक तिहाई निवासियों को चार-पाँच मशीनों के ज़रिए या तो मारा जा सकता है या घायल किया जा सकता है, ये मशीनें उन्हें जवाबी कार्रवाई का कोई स्पष्ट निशाना भी नहीं देतीं, वे शहीद होने का गौरव भी हासिल नहीं कर पाते, [और] न ही बचकर निकल सकते हैं।
आज सौ साल बाद ‘बॉम्बर’ हैरिस के यह शब्द फिलिस्तीन और लेबनान पर हो रहे बेरहम हमलों का सटीक वर्णन करते हैं।
आप पूछ सकते हैं: उन रॉकेटों का क्या जो हिज़बुल्ला और ईरान ने इज़राइल पर दागे? क्या वे युद्ध की विभीषिका का हिस्सा नहीं? बिल्कुल हैं, ये भी युद्ध के विनाश का हिस्सा हैं लेकिन इन दोनों पक्षों को एक-दूसरे के बरक्स रखना इतना आसान नहीं। इज़राइल ने सीरिया (अप्रैल 2024) में ईरान के दूतावास पर हमला किया, मसूद पेजेशकियान के ईरान के राष्ट्रपति बनने (जुलाई 2024) के बाद तेहरान में हमास के नेता इस्माइल हानिया की हत्या की, नसरल्लाह की बेरूत में हत्या कर दी (सितंबर 2024) और ईरानी सेना के कई अधिकारियों को मारा गया उसके बाद ईरान ने बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं। ध्यान दिया जाना चाहिए कि इज़राइल ने आम जनता, चिकित्सा कर्मियों, पत्रकारों और राहत कर्मियों को निशाना बनाते हुए अनगिनत हमले किए हैं, जबकि ईरान की मिसाइलों ने सिर्फ इज़राइली सेना और खुफ़िया ठिकानों को निशाना बनाया न कि आम जनता के रिहायशी इलाकों को। ईरान और हिज़बुल्ला दोनों ने ही इज़राइली शहरों के घनी आबादी वाले इलाकों पर हमले नहीं किए हैं। 8 अक्टूबर 2023 से इज़राइल ने लेबनान पर जो हवाई हमले किए हैं वो हिज़बुल्ला द्वारा इज़राइल पर किए गए हमलों के मुकाबले कहीं ज़्यादा हैं। मौजूदा लड़ाई से पहले, 10 सितंबर तक इज़राइल लेबनान के 137 नागरिकों की हत्या कर चुका था और लाखों की संख्या में लेबनान के लोगों को बेघर कर चुका था; जबकि हिज़बुल्ला के रॉकेटों ने 14 इज़राइली नागरिकों की जान ली और इनकी वजह से 63,000 इज़राइलियों को उनके घरों से निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया गया। दोनों तरह के हमलों में न सिर्फ हमलों की संख्या का फ़र्क है बल्कि इनमें जिस तरह की हिंसा का इस्तेमाल हुआ उसमें भी गुणात्मक अंतर है। कुछ खास परिस्थितियों में सैन्य ठिकानों आदि पर निशाना लगाकर किए गए सटीक हमलों की अंतर्राष्ट्रीय कानून में इजाज़त दी गई है; लेकिन बिना सोचे समझे की गई हिंसा, जैसे आम जनता पर बमबारी आदि युद्ध के नियमों का उल्लंघन है।
एटेल अदनान (1925-2021) लेबनान की एक कवियत्री थीं जो बेरूत में पली बढ़ीं। ऑटोमन साम्राज्य, जो आधुनिक युग में तुर्की हो गया है, के विघटन के बाद इनके माता-पिता वहाँ से भाग आए। उनकी कविताएँ आघात और विछोह के दर्द को बयान करती हैं। एटेल की आवाज़ अशरफिया, ‘बौना पहाड़’, पर बने इनके अपार्टमेंट की बालकनी में गूँजती रहती जहाँ से वे बंदरगाह पर आते-जाते जहाज़ देखा करती थीं। जब उनकी मौत हुई तो उपन्यासकार इलियास खोरी (1948-2024), जिनकी मृत्यु बेरूत पर दूसरे हमले से ठीक पहले हुई, ने लिखा कि वे एक ऐसी औरत के लिए शोकज़दा हैं जो कभी मर नहीं सकती, लेकिन डरते हैं अपने शहर के लिए जो अब अकेला सब बर्दाश्त कर रहा है। एटेल की कविता ‘बेरूत 1982’ के कुछ अंश पेश हैं, जो हमें याद दिलाते हैं कि हममें किसी सैलाब जैसा रिस (गुस्सा) है।
मैं तसव्वुर नहीं कर सकती
कि अपने बग़ीचे में
दरख़्त लगाना
इंतिक़ाम हो सकता है
*
दरख़्त उगते हैं हर-सम्त
और फिलिस्तीनी भी:
उजाड़े हुए
तितलियों सरीखे नहीं
पर-कटे,
ज़मीन-दोज़,
भार ढोते मोहब्बत का
अपनी सरहदों और अज़िय्यत के लिए,
कोई क़ौम हमेशा नहीं रह सकती
सालाखों के पीछे
या भीगते हुए बारिश में।
…
हमारी आँखों से नहीं गिरने चाहिए आँसू
बहना चाहिए लहू।
…
हम न ही कब्रिस्तानों में अनाज
उगाएँगे
और न ही अपनी हथेलियों पर
हममें सैलाब का रिस है।
सस्नेह,
विजय।