हम भविष्य का निर्माण करेंगे: पृथ्वी को बचाने की योजना
डोज़ियर नं. 48 (जनवरी 2022)
मौजूदा दौर का सबसे शर्मनाक तथ्य यह है कि 2.37 अरब लोग खाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इनमें से अधिकतर विकासशील देशों में रहते हैं, लेकिन कई विकसित औद्योगिक देशों के रहने वाले भी हैं। विकसित देशों की सरकारें कहती हैं कि उनके पास भूख मिटाने या आधुनिक युग की अन्य समस्याओं जैसे अशिक्षा, बदहाल स्वास्थ्य या आवास की कमी का हल करने के लिए पर्याप्त धन नहीं है। हालांकि, महामारी के दौरान इन देशों के केंद्रीय बैंकों ने डगमगाती पूंजीवादी व्यवस्था को बचाने के लिए 16 ट्रिलियन डॉलर इकट्ठे किए थे। फर्मों को बचाने के लिए संसाधन आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, लेकिन भूखे लोगों को बचाने के लिए पैसे नहीं होते: यह है हमारे समय की नैतिकता।
इस दौरान पूंजीपति देशों के शोध संस्थानों ने नई संस्थाएँ स्थापित की, जिन्होंने ‘पूंजीवाद को बचाने‘ के कथित उपायों की पेशकश करते हुए कई रिपोर्टें प्रकाशित की हैं। इन नए संस्थानों में, काउन्सिल फ़ोर इन्क्लूसिव कैपिटलिज़म (बैंक ऑफ इंग्लैंड और वेटिकन जिसके भागीदार हैं) और बी कॉरपोरेशन मूवमेंट शामिल हैं। विश्व आर्थिक फोरम (डब्ल्यूईएफ़) और फाइनेंशियल टाइम्स ने पूंजीवाद को ‘अधिक समावेशी‘ बनाने के मकसद से ‘ग्रेट रीसेट’ के लिए आधार तैयार किया। डब्ल्यूईएफ़ के संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष क्लॉस श्वाब ने कहा था, ‘महामारी ने विश्व को लेकर नए सिरे से विचार करने, नई कल्पना करने और उसके पुनर्निर्माण का सीमित किंतु दुर्लभ अवसर उपलब्ध कराया है।‘ दुनिया को विनाश की दहलीज पर ला खड़ा करने वालों का दावा है कि वे जानते हैं कि हमारी दुनिया को कैसे ठीक करना है। जैसी कि उम्मीद थी, उनका ‘समावेशी पूंजीवाद‘ कोरी बयानबाज़ी के अलावा कोई स्पष्ट कार्यक्रम नहीं सुझाता है।
इस बीच, 2021 के मध्य में, दुनिया भर के छब्बीस शोध संस्थानों ने वर्तमान संकट से निपटने के मकसद से एक कार्यक्रम का मसौदा तैयार करने के लिए बैठकें शुरू कीं। बोलिवेरियन एलायंस फ़ॉर द पीपल्ज़ ऑफ़ आवर अमेरिका – पीपल्स ट्रेड ट्रीटी (ALBA-TCP) के नेतृत्व में हुई हमारी बैठकों में हमने ‘ग्रह को बचाने की योजना’ नामक एक दस्तावेज़ तैयार किया। वह योजना इस डोज़ियर का हिस्सा है। हम चाहते हैं कि योजना पर आगे चर्चा और बहस हो।
पृथ्वी को बचाने की योजना और ‘समावेशी पूंजीवाद‘ के हक़ में लिखे गए दस्तावेज़ों में ख़ास फ़र्क़ यह है कि है हम इस बात को नहीं मानते कि पूंजीवाद –चाहे उसे कोई भी नाम दे दिया जाए– एक ऐसी व्यवस्था है जिससे मानवजाति को लाभ हो सकता है और हम यह भी नहीं मानते कि मानवजाति के सामने खड़े मौजूदा संकट को ‘कोरोनावायरस संकट‘ कह कर टाला जा सकता है। इसके बजाय, हम मानते हैं कि दुनिया पूंजीवाद के सामान्य संकट का सामना कर रही है, जिसे मज़दूर और किसान वर्ग की ज़रूरतों और एक टिकाऊ प्राकृतिक संसार की आवश्यकताओं के इर्द–गिर्द बनाई गई व्यवस्था की दिशा में समाज का निर्माण करके ही दूर किया जा सकता है। इस डोज़ियर का बड़ा हिस्सा हमारी समझ, सिद्धांतों और पक्षधरता के बारे में बताता है। यह परिचय ‘समावेशी पूंजीवाद‘ के तर्कों की जांच करता है और बताता है कि कैसे अंततः ये सभी तर्क पूंजीवाद की विफलताओं से ध्यान भटकाना चाहते हैं और पूंजीवाद की सभी बीमारियों के लिए चीन को दोषी ठहराना चाहते हैं।
पूंजीवाद का संकट
इसे ‘कोरोनावायरस संकट‘ कहकर, पूंजीवाद के प्रबंधक वैश्विक आर्थिक पतन के लिए सामाजिक व्यवस्था की बजाय महामारी को दोष देना चाहते हैं। इससे दो बातें होती हैं: पहली, यह कि पूंजीवाद का संकट छुप जाता है; और दूसरी, यह कि इससे मज़दूर वर्ग की ख़राब होती परिस्थितियों के लिए मुनाफ़े को आबादी के हितों से ऊपर रखने वाली प्रणाली की बजाय महामारी पर दोष डाला जा सकता है।
जब महामारी ने दस्तक दी, तो पूंजीवादी देशों की खोखली हो चुकी संस्थाएँ और समाज धराशायी हो गए। महामारी ने समस्याओं को उजागर किया है, उन्हें पैदा नहीं किया है। बल्कि, राज्य की संस्थाओं और सामाजिक जीवन का लम्बे –समय से जारी क्षरण एक संरचनात्मक संकट की देन हैं, जिसके तीन आयाम हैं:
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पूंजीवाद का सामान्य संकट: प्रतिस्पर्धा और लाभ के उद्देश्यों की उग्रता सिस्टम पर हावी हो जाती है। यह दीर्घकालिक संकट सिस्टम में समय–समय पर गिरावटें और उछाल लेकर आता है। और इन गिरावटों से उबरने के लिए कमजोर पूंजीपतियों को किनारे लगाना, शोषण के नए रूपों का विकास करना, और नए बाजारों का निर्माण ज़रूरी होता है।
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नवउदारवाद से उत्पन्न संकट: पूंजीवादी वर्गों ने बाज़ार में हस्तक्षेप करने और श्रमिकों के हित में योजनाएं लागू करने की राज्य की क्षमता को कम करने के लिए राज्य पर पूरी ताक़त से दबाव बनाया है। इसमें स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक कल्याण पर होने वाले ख़र्च में भारी कटौतियाँ करना शामिल है।
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2007-08 के वित्तीय पतन के बाद से मंदी–जैसा दीर्घकालिक संकट: जिसका प्रभाव वित्तीयकरण की संरचना और वैश्विक मूल्य श्रृंखला प्रणाली से गहराई से जुड़ा हुआ है। वित्त से होने वाला लाभ विनिर्माण से होने वाले लाभ से ज़्यादा होता है, इसलिए गैर–उत्पादक क्षेत्रों में निवेश बढ़ा है; और वैश्विक मूल्य श्रृंखला प्रणाली उत्पादक नौकरियों को दुनिया के उन हिस्सों में ले जाती है जहां साम्राज्यवाद के दबाव के कारण मज़दूरी की दर बेहद शर्मनाक रहती है।
इन तीन तरह के संकटों ने पूंजीवाद को अलग–अलग तीव्रता के साथ गंभीर झटका लगाया है। जब तक उत्पादकता और रोज़गार वृद्धि को बढ़ाने के लिए उन्नत पूंजीवादी देशों में नई तकनीकें नहीं विकसित की जाती तब तक इस संकट से उबरना नामुमकिन लगता है।पूंजीवादी वर्ग का अवसरवादी तबक़ा जलवायु परिवर्तन की बहस का प्रयोग कर सार्वजनिक धन को निजी हाथों में ले जाने और पूंजीवाद का आधुनिकीकरण करने का प्रयास कर रहा है।
समस्या को इस आँकड़े से समझा जा सकता है कि, 2007 में कुल ऋण विश्व सकल घरेलू उत्पाद का 269% था; जो 2020 के अंत तक बढ़ कर 331% पर पहुंच गया था। वित्तीय बाजार दूसरे ग्रह पर रहते हैं। वित्तीय बुलबुले लगातार फूलते रहते हैं और निष्क्रिय पूंजी तेज़ी से जोखिम भरे संसाधन में बदल रही है। इसके साथ– साथ, श्रम के क्षेत्र में ‘ऊबरीकरण’ (तकनीक की मदद से अस्थायी नियुक्ति) की प्रक्रिया तेज़ हो रही है: जहाँ मज़दूर अनिश्चित परिस्थितियों में काम करते हुए हर प्रकार के जोखिम को सहने के लिए मजबूर हैं, अक्सर बिना किसी अनुबंध या किसी प्रकार की सुरक्षा के, जबकि पूंजीपति सारा मुनाफ़ा कमाते हैं।
वर्तमान संकटों की वजह से पूंजीवादी फर्मों को श्रम बाज़ारों में ‘सुधार‘ करने का मौक़ा मिल गया है। वे श्रम सुरक्षा को नष्ट कर रहे हैं और हर प्रकार के श्रम का ऊबरीकरण करते जा रहे हैं। प्लैटफॉर्म पूंजीवाद अब जोर पकड़ता जा रहा है। (2020 में, 2010 के मुक़ाबले पांच गुना ज़्यादा प्लैटफॉर्म कंपनियाँ थीं)। आपूर्ति श्रृंखला अवरुद्ध होने का हवाला देकर और माल जल्दी मंगवाने के लिए नए क़ानून लागू किए जा रहे हैं और विनियमन के नियम कमज़ोर किए जा रहे हैं। अगर यह संकट कोरोना वायरस की वजह से है तो ये ‘आपातकालीन‘ उपाय महामारी ख़त्म होने के बाद बंद कर दिए जाने चाहिए। लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे। पूंजीगत लाभ, भले ही वह एक आपात स्थिति में हासिल किया गया हो, बरक़रार रखा जाता है। श्रमिकों को बड़े संघर्ष के बिना कुछ भी वापस नहीं मिलता। मज़दूरी, काम के घंटे और काम करने की स्थिति व बर्ख़ास्तगी प्रक्रियाओं पर नियोक्ताओं का नियंत्रण, श्रम अधिकारों के क्षरण के सामान्य रूप हैं, और नियोक्ता उन श्रमिकों को तरजीह देते हैं जो सामूहिक रूप से अपने हक़ के लिए सौदेबाजी करने में असमर्थ हों और अपने लिए सामाजिक सुरक्षा न हासिल कर सकें। नियोक्ता उत्पादन प्रक्रिया में श्रमिकों की यूनियन को तोड़ने के लिए तकनीकी विकास का लाभ उठाते हैं और निगमों के लिए श्रमिकों के संगठित होने के प्रयासों में बाधा डालना आसान बनाते हैं। वर्तमान समय के ये दो लक्षण हैं: पूंजी महामारी की आड़ में अपना व्यवस्थागत संकट छुपा रही है और श्रम संबंधी मामलों में फ़ायदा उठाने के लिए महामारी का उपयोग कर रही है।
पूंजीवाद को निर्दोष बताने के ठोस प्रयासों के बावजूद, उदारवादी आलोचक भी स्वीकार कर रहे हैं कि इस सिस्टम में गंभीर समस्याएँ हैं। मुख्यधारा की बहस में इन दो मुद्दों को व्यापक रूप से स्वीकार किया जा रहा है:
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बढ़ती असमानता दर सामाजिक स्थिरता के लिए ख़तरा है। ऑर्गनाइज़ेशन फ़ॉर इकनॉमिक कोऑपरेशन एंड डिवेलपमेंट (ओईसीडी) –जो कि दुनिया के सबसे अमीर 38 देशों का संगठन है– मानता है कि उसके सदस्यों के बीच की आय असमानत ‘पिछली आधी शताब्दी के उच्चतम स्तर पर है। ओईसीडी के सबसे अमीर 10% लोगों की औसत आय सबसे ग़रीब 10% जनसंख्या की औसत आय से लगभग नौ गुना ज़्यादा है, जो कि 25 साल पहले सात गुना ज़्यादा थी‘। और यह सिर्फ़ ओईसीडी की जनसंख्या की बात है। यदि हम वैश्विक असमानता को देखें, तो विश्व के सबसे अमीर 1% लोगों के पास 6.9 अरब लोगों के कुल धन के दोगुने धन से ज्यादा धन है। दूसरी तरह से समझें, तो दुनिया के 22 सबसे धनी आदमियों के पास अफ्रीका की सभी महिलाओं की तुलना में अधिक धन है। यह अत्यधिक असमानता बड़ी सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न करती है।
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आर्थिक गतिविधि तेज़ी से लोकतांत्रिक संस्थानों से अलग होती जा रही है। अमीर दुनिया की दौलत अपने क़ब्ज़े में करते जा रहे हैं और उन्नत पूंजीवादी देशों की राजनीति में अपने पैसे के साथ प्रवेश कर, सार्वजनिक नीति को अपने हिसाब से परिभाषित कर रहे हैं। लोकतंत्र ख़त्म हो चुका है। इससे भी ज़्यादा, आर्थिक गतिविधियों के तेज़ी से सरकारी विनियमन से परे होने के साथ, सामाजिक जीवन के बड़े हिस्से लोकतांत्रिक जांच के दायरे से बाहर धकेले जा रहे हैं और टेक्नोक्रेट्स व निगमों के हाथों में सौंपे जा रहे हैं। इससे निगमों को एकाधिकारवादी तरीके से व्यवहार करने की हिम्मत मिलती है। यही कारण है कि वे ऐसी श्रम व्यवस्थाओं को लागू कर रहे हैं जिसमें मानव शरीर के दुरुपयोग की कोई सीमा नहीं है। इसका अर्थ यह भी है कि बुर्जुआ सरकार गंभीर संकट में है, क्योंकि आबादी के बड़े हिस्से को अब मतदान जैसी बुनियादी लोकतांत्रिक गतिविधियों में विश्वास नहीं रहा।
उन्नत पूंजीवादी देशों के प्रबंधक इस संकट को समझते हैं और इससे डरते भी हैं। लेकिन वे किसी भी प्रकार की ठोस जवाबदेही से ध्यान हटाना चाहते हैं, क्योंकि सभी सवाल अनिवार्य रूप से सिस्टम पर ही उठेंगे। इसकी बजाय, उन्होंने चीन को दोष देने की आदत बना ली है।
चीन को दोष देना
एडेलमैन द्वारा 2020 में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि दुनिया भर में 56% लोग इस कथन से सहमत हैं कि, ‘पूंजीवाद आज के मौजूदा रूप में दुनिया का भला करने से ज्यादा नुकसान करता है‘। जनता चीन को बलि का बकरा बनाने के बजाय सिस्टम को देखना समझना चाहती है; लेकिन पूंजीवादी ताकतें एक नए शीत युद्ध के माध्यम से ध्यान भटकाना चाहती हैं। वही कहानियाँ बार–बार सुनाई जाती हैं:
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संकट महामारी के कारण पैदा हुआ है, जिसके लिए चीन ज़िम्मेदार है।
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संकट पैदा हुआ है क्योंकि विश्व व्यापार में चीन ने धोखाधड़ी की; या चीन और भारत ने कार्बन प्रदूषण के माध्यम से ऊर्जा लागत कम करके सस्ते में सामान उत्पादित किया; या चीन के तकनीकी विकास द्वारा, जिसने वैश्विक सुरक्षा को नुकसान पहुँचाया है।
ये सभी कहानियाँ झूठी हैं। इनमें से पहली कहानी –कि महामारी संकट के लिए ज़िम्मेदार है– का हम पहले से ही पूंजीवाद के दीर्घकालिक संकट के तीन आयामों पर बात करते हुए विश्लेषण कर चुके हैं। और चीन पर व्यापार नियमों के उल्लंघन या प्रौद्योगिकी पर स्वामित्व का आरोप भी सिरे से ग़लत है (यहां तक कि फ़ॉरेन पॉलिसी पत्रिका तक इस विचार को ख़ारिज करती है, और इसके बजाय यह स्वीकार करती है कि व्यापार तंत्र एक ‘धांधली‘ है)।
पश्चिम द्वारा प्रायोजित–प्रचारित नए शीत युद्ध के चार तात्कालिक प्रभाव पड़े हैं:
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यह पूंजीवादी समाजों में मज़दूर वर्ग पर पूंजीवाद द्वारा किए गए आघातों से ध्यान हटाता है।
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यह उन्नत पूंजीवादी देशों को चीन के ख़िलाफ़ प्रचार करने का अवसर देता है, जो चीन पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हैं और उसे वैश्विक सुरक्षा के लिए एक ख़तरे के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
क) इससे पश्चिम को कई तरह के समाचारों को दबाने का मौक़ा मिल जाता है, जैसे कि चीन ने अत्यधिक ग़रीबी को ख़त्म कर दिया है या कि वह महामारी का प्रबंधन करने में सक्षम रहा है आदि। चीन–विरोधी ख़बरें सिर्फ़ चीन को निशाना नहीं बनातीं; इसका उपयोग पश्चिम द्वारा प्रचारित ‘समावेशी पूंजीवाद‘ के किसी भी प्रकार के विकल्प की कल्पना को ध्वस्त करने के लिए किया जाता है।
ख) यह तीसरी दुनिया में चीन के लाभकारी हस्तक्षेपों, जैसे राष्ट्रपति शी ने 40 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की और कोविड-19 की वैक्सीन की 100 करोड़ ख़ुराकें अफ्रीकी महाद्वीप को डोनेट कीं, को कमज़ोर कर चीन के क़दमों को छल–कपट की तरह पेश कर दुनिया में डर पैदा करने के पश्चिमी प्रयास को ताक़त देता है।
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यह उन्नत पूंजीवादी देशों की सरकारों और उनके सहयोगियों को हथियारों के लिए उकसा कर पहले से ही बड़े पैमाने पर फैले हथियार उद्योग के और विस्तार को प्रेरित करता है। स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय शांति अनुसंधान संस्थान के अनुसार महामारी के दौरान हथियारों की बिक्री बढ़ी है,और हथियारों के कारोबार में अमेरिका का दबदबा अब भी क़ायम है: 2020 में शीर्ष 100 हथियार कंपनियों द्वारा की गई बिक्री में से 54 फीसदी कंपनियाँ अमेरिकी निर्माताओं की थीं,और अमेरिका सैन्य गतिविधियों पर अब तक का सबसे बड़ा ख़र्च करने वाला देश है। वह सेना पर लगभग $1 ट्रिलियन डॉलर ख़र्च करता है –यानी सेना पर दुनिया में होने वाले कुल ख़र्च का 39%। अमेरिका के विपरीत, चीन अपने सैन्य ख़र्च का उपयोग अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए करता है, न कि दूसरे देशों को धमकाने के लिए। फिर भी, पश्चिमी मीडिया की प्रकृति ऐसी है कि वह चीन द्वारा अपनी सीमाओं की रक्षा करने को पश्चिमी व्यवस्था के लिए ख़तरे के रूप में पेश करता है।
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यह सैन्य ख़तरों को गंभीर रूप से बढ़ाता है और परमाणु हमले तक ले जा सकता है। इस बढ़ते सैन्यवाद को हम एशिया में क्वाड को मजबूत करने के प्रयासों, तथाकथित ‘नेविगेशन की स्वतंत्रता‘ मिशन के नाम पर दक्षिण चीन सागर में बढ़ती गतिविधियों, एयूकेयूएस परमाणु पनडुब्बी सौदे की घोषण और यूएस इंडो–पैसिफिक कमांड के इस क्षेत्र के अन्य देशों में अंतर–संचालन युद्धाभ्यासों के रूप में देख सकते हैं। कैरिबियन क्षेत्र में होने वाले अमेरिकी युद्धाभ्यास –जैसे कि हाल ही गयाना में समाप्त हुए ट्रेडविंड्स 2021 और पनामा में हुए पैनामेक्स 2021- भी इसका हिस्सा हैं; इस तरह के अभ्यास अपनी संप्रभुता की रक्षा और चीन के साथ रचनात्मक संबंध बनाए रखने की इच्छा रखने वाले लैटिन अमेरिकी देशों को अमेरिका की ताक़त दिखाने के लिए आयोजित किए जाते हैं।
तीसरी दुनिया के दृष्टिकोण से, वैश्विक मंच पर चीन का एक सत्ता के रूप में उदय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विकास एजेंडे का विकल्प प्रदान करता है। पिछले पांच दशकों से, आईएमएफ़ ने जिन नीतियों को आगे बढ़ाया है, उन्हें भले कुछ भी नाम दिए गए हों, लेकिन उनका मूल उपनाम –संरचनात्मक समायोजन नीतियाँ– ही उनकी असलियत बयान करती है। आईएमएफ विकासशील दुनिया की सरकारों से कहता है कि वह उन्हें तब तक अच्छी क्रेडिट रेटिंग नहीं देगा जब तक कि ये देश संरचनात्मक रूप से अपनी घरेलू नीतियों को समायोजित नहीं करते। संरचनात्मक समायोजन में सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण करना, मुद्रास्फीति को बढ़ाने वाली व्यवस्थाएँ लागू करना, (सब्सिडी और टैरिफ कटौती जैसे उपाय) व्यापार नीति को उदार बनाना और मानव विकास पर ख़र्च में कटौती करने की नीतियाँ शामिल हैं। इन नीतियों ने राष्ट्रीय संप्रभुता को नष्ट कर दिया है, अधिकांश आबादी के लिए समस्याओं को बढ़ाया है और महिलाओं द्वारा किए जाने वाले कार्य को बाधित कर लिंग आधारित ग़ैर–बराबरी को और बढ़ाया है तथा महत्वपूर्ण सामाजिक ढाँचों को नष्ट कर दिया– ये सब कुछ होते हुए भी विकसित देशों में बैठे धनी बांडधारकों ने क़र्ज़ चुकाए जाने की अपनी माँग बरक़रार रखी है। महामारी के दौरान ऑक्सफैम ने पाया कि ‘दुनिया के 64 सबसे गरीब देशों ने स्वास्थ्य रक्षा क्षेत्र की तुलना में अमीर देशों और वित्तीय संस्थानों का क़र्ज़ चुकाने में ज़्यादा ख़र्च किया‘। 1960 के बाद से, विकसित देश विकासशील दुनिया से 152 लाख करोड़ डॉलर वसूल कर चुके हैं; आईएमएफ के विकास मॉडल का ये सबसे अच्छा उदाहरण है। यही कारण है कि उदाहरण के लिए, 3.3 करोड़ की आबादी वाले पेरू देश के 30% लोग ग़रीबी में रहते हैं।
यह स्पष्ट है कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का निवेश और विकास मॉडल आईएमएफ के बजट कटौती और निजीकरण मॉडल को चुनौती दे रहा है। पचास वर्षों से, आईएमएफ ख़ुद को आर्थिक विकास के एकमात्र विकल्प और नवउदारवाद को एकमात्र नीतिगत ढांचे के रूप में पेश करता रहा है। इसके विपरीत बुनियादी ढांचे में निवेश और मानव विकास के एजेंडे के साथ बीआरआई वैश्विक दक्षिण के देशों को एक विकल्प प्रदान करता है। आईएमएफ के विकल्प के रूप में बीआरआई के उदय ने लैटिन अमेरिका, एशिया के कुछ हिस्सों और अफ्रीका में चीनी निवेश का मुक़ाबला करने के लिए अमेरिका को उकसाया है। अर्जेंटीना, बोलीविया, क्यूबा, निकारागुआ, वेनेजुएला और पेरू जैसे देश बीआरआई द्वारा उन्हें उपलब्ध कराए गए विकल्प का स्वागत करते हैं। वो दिन जल्द ही आएगा, जब दक्षिण के देशों को पेरिस क्लब जैसे सरकारी लेनदारों और लंदन क्लब जैसे निजी लेनदारों के सामने क़र्ज़ माफ़ी के लिए झोली फैला कर नहीं जाना पड़ेगा, और न ही उन्हें आईएमएफ द्वारा उनके कुछ दिनों के अध्ययन के आधार पर किए गए स्थाई निर्णयों पर निर्भर रहना पड़ेगा। संप्रभु विकास परियोजनाओं को कल्पना करने की जगह चाहिए होती है; बीआरआई द्वारा बनाई गई जगह दक्षिण के देशों को अपने आगे के रास्ते की कल्पना करने का अवसर देती है। चीन की वृद्धि और उसके द्वारा पश्चिम को दी जा रही वाणिज्यिक चुनौती का यह शुद्ध लाभ है।
वैश्विक वर्ग संघर्ष
एक तरफ़ पूंजीवाद का संकट गहरा रहा है और दूसरी ओर वैश्विक वर्ग संघर्ष तेज़ हो रहा है। यहाँ पर हम वर्तमान समय के तीन प्रमुख उदाहरणों पर बात करेंगे:
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भारतीय किसानों का संघर्ष: भारत के किसानों ने तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ संघर्ष किया; ये क़ानून कृषि उत्पादन को प्रभावी ढंग से ऊबरनुमा (ठेका प्रणाली) कर देते। उनके एक साल के लंबे संघर्ष ने भारत की सरकार को ये क़ानून वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। उनकी जीत हुई। लेकिन उनका संघर्ष जारी है। वो न्यूनतम समर्थन मूल्य, बिजली पर सब्सिडी और सरकार का कृषि प्रणाली में हस्तक्षेप व सामाजिक भूमिका बढ़ाने जैसी कई अन्य माँगों पर संघर्ष कर रहे हैं। किसान जानते हैं कि यह एक अस्तित्वगत संघर्ष है, इसलिए वे पीछे नहीं हटेंगे।
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मेक ऐमज़ॉन पे (ऐमज़ॉन पैसा दे): यह बांग्लादेश और कंबोडिया के कपड़ा मज़दूरों से लेकर इटली और संयुक्त राज्य अमेरिका के डिलीविरी वर्कर्स द्वारा चलाया जा रहा एक अंतर्राष्ट्रीय अभियान है, जिसकी माँग है कि कंपनी ‘उचित वेतन दे, अपने टैक्स भरे, और ग्रह पर इसके प्रभाव के लिए भुगतान करे‘। अमेज़ॅन 1 लाख करोड़ डॉलर की कंपनी है, जिसने 2019 में अपने गृह देश अमेरिका में केवल 1.2% टैक्स भुगतान किया और जिसने एशिया स्थित अपने मज़दूरों को नौकरी से निकाले जाने का भत्ता नहीं दिया है। कंबोडिया में, हुलु गारमेंट ने नौकरी से निकाले जाने पर भत्ता न देकर अपने श्रमिकों के साथ 36 लाख डॉलर की धोखाधड़ी की; कुल मिलाकर, पूरे कंबोडिया के कपड़ा मज़दूरों के महामरी के दौरान वेतन न दिए जाने या नौकरी से निकाले जाने पर भत्ता न दिए जाने के 3930 लाख डॉलर बकाया हैं। वैश्विक मूल्य श्रृंखला में संघर्ष तेज़ हो गया है।
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केयर वर्कर्स का संघर्ष: संयुक्त राज्य अमेरिका से लेकर दक्षिण अफ्रीका, ग्रीस, केन्या, गिनी बिसाऊ, पोलैंड और तुर्की के स्वास्थ्य सेवा कर्मियों ने कम वेतन और काम करने की ख़राब परिस्थितियों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए हड़तालें आयोजित की हैं। ग्रीस में, यूनियनों ने अस्पतालों के निजीकरण और स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को ऊबर मज़दूरों में बदलने के ख़िलाफ़ संघर्ष किया। इस बीच, 28 देशों की नर्सों ने ‘कोविड-19 मुजरिमों‘ के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र में शिकायत दर्ज की है; उन्होंने कहा है कि ‘इन देशों ने हमारे अधिकारों और हमारे मरीज़ों, नर्सों, अन्य सेवाकर्मियों और जिनकी हमने देखभाल करते हैं, उनके अधिकारों का उल्लंघन किया है और अनगिनत लोगों के जीवन को नुकसान पहुँचाया है‘। पिछले साल, ब्राजील की स्वास्थ्य सेवा यूनियनों ने बोल्सोनारो की सरकार के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय में मुक़दमा दर्ज किया था और उस पर मानवता के ख़िलाफ़ अपराध करने का आरोप लगाया था।
हम इस धारणा के तहत काम कर रहे हैं कि, हालांकि वर्ग संघर्ष को तेज़ करने की वस्तुपरक स्थितियाँ मौजूद हैं, लेकिन इसकी व्यक्तिपरक स्थितियाँ आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। इसका कारण यह है कि पूंजीवाद की प्रवृत्ति होती है कि वह मज़दूर वर्ग में सुधारवादी चेतना उत्पन्न कर देता है या कट्टर राष्ट्रवादी विचारधारा को बढ़ावा देता है। सुधारवाद उद्ममवृत्ति (आन्ट्रप्रनर्शिप) के सहारे उपरिमुखी गतिशीलता के सपने को भुनाने वाले लोकतांत्रिक और नवउदारवादी दोनों वर्गों का पक्ष लेता है और राष्ट्रीय कट्टरता दक्षिणपंथ का हथियार है; हालांकि बुर्जुआ राजनीतिक अभिनेता इन दोनों प्रवृत्तियों का इस्तेमाल करते हैं।
दुनिया भर में हमारे आंदोलन सुधारवाद और अंध राष्ट्रवाद का सामना कर रहे हैं। पृथ्वी को बचाने की योजना, जिस पर हमारा यह डोज़ियर आधारित है, निरंतर चल रही विचारों की लड़ाई –जो कि वैश्विक वर्ग संघर्ष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है– को आगे बढ़ाती है। इस योजना में हमने, मज़दूरों और किसानों के संगठनों की माँगों को दोहराया है। और प्रगतिवादी ताक़तों के बीच इस पर चर्चा शुरू हो गई है। इन विचारों को भौतिक रूप देने वाले हमारे समय के महान संघर्षों से निकल कर ही हमें बेहतर मानव होने और प्रकृति को बेहतर ढंग से पनपने देने वाली व्यवस्था में हमारा आत्मविश्वास बढ़ेगा और उसे बनाने की ताक़त हम में बढ़ेगी।
पृथ्वी को बचाने की योजना
प्रस्तावना
साचा लोरेंटी
कोविड-19 से संक्रमित होकर पैंतालिस लाख लोग मारे गए। इस वैश्विक त्रासदी को केंद्र में रखकर हमें यह विश्लेषण करना चाहिए कि हमारे ग्रह पर राज करने वाली व्यवस्था कैसे और किसके हित में काम करती है।
कुछ ही महीनों के अंतराल में, महामारी ने राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों को प्रभावित कर दिया, जिसके परिणाम अन्य परिस्थितियों में प्रकट होने में अभी कई साल लगेंगे।
जो कुछ मुद्दे महामारी के क्रम में स्पष्ट रूप से नज़र आए वे हैं, नौकरी की असुरक्षा, स्वास्थ्य प्रणालियों में कमी, असमानता, उत्तर–दक्षिण संबंध, सामूहिक प्रयास का समन्वयन करने में संयुक्त राष्ट्र की विफलता, बहुत से लोगों को नियंत्रित करने और दंडित करने के लिए एक हथियार के रूप दबाव बनाने के एकतरफ़ा उपाय, विश्व अर्थव्यवस्था की कमज़ोरी और राज्य की भूमिका।
पृथ्वी पर मनुष्य और अन्य जीवों के सामने खड़ा बहुआयामी और अस्तित्वगत संकट हमें इस बात के लिए बाध्य करता है कि हम पूरी क्षमता के साथ, सभी संभावनाओं का उपयोग करते हुए सबके लिए एक विशाल समावेशी, सबके योग्य दायरा बनाएं। इससे हमारी तमाम राजनीतिक–सामाजिक पहलकदमियों को नई गति मिलेगी।
इस संदर्भ में एएलबीए–टीसीपी के कार्यकारी सचिवालय और इंस्टिट्यूटो साइमन बोलिवर फ़ॉर पीस एंड सॉलिडैरिटी अमंग पीपल्ज़ व ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने मिलकर पृथ्वी को बचाने की योजना तैयार करने के चुनौतीपूर्ण और ज़रूरी कार्य को पूरा करने के लिए अन्य अनुसंधान संस्थानों के साथ बैठकें आयोजित करने का निर्णय किया।
काम के कई सत्रों के बाद, अब हमारे पास उन प्रस्तावों की सूची मौजूद है जो उस रास्ते को बदलने में हमारी मदद करेंगे जिसकी ओर पूंजीवादी व्यवस्था हमारी प्रजातियों और हमारे ग्रह पर रहने वाले सभी जीवित प्राणियों को लेकर जा रही है।
यह दस्तावेज़ अब मुकम्मल रूप में आ चुका है। यह उन सभी लोगों और समुदायों का है जो इसमें सुधार करना चाहते हैं और साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद और पूंजीवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष में इसे एक उपकरण की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं।
परिचय
कार्लोस रॉन और विजय प्रसाद
महामारी के दौरान मानव समाज की भंगुरता को लेकर जागरूकता बढ़ी।कोविड-19 के आगे दुनिया के बहुत से हिस्से धराशायी हो गए, जबकि जलवायु परिवर्तन ने हमारा परिचय इस वास्तविकता से कराया कि पौधों और जानवरों की कई प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। हमारे ग्रह का भाग्य विनाश और विलुप्त होने के बीच खड़ा है।
एएलबीए–टीसीपी के कार्यकारी सचिव, साचा लोरेंटी ने पृथ्वी को बचाने की योजना का मसौदा तैयार करने के लिए अनुसंधान संस्थानों के एक समूह को इकट्ठा किया। इस योजना को आर्थिक सहयोग और विकास के संगठन (ओईसीडी) और विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ़) जैसे अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों के लाभ–केंद्रित दृष्टिकोण के विपरीत एक जन–केंद्रित दृष्टिकोण के साथ लिखा जाना था। यह दस्तावेज़ उसी दृष्टि से लिखा गया है।
एएलबीए–टीसीपी क्या है?
बोलिवेरियन एलायंस फ़ॉर द पीपल्ज़ अव आवर अमेरिका यानी एएलबीए का जन्म 2004 में हवाना, क्यूबा में हुआ था, जब कमांडर ह्यूगो शावेज फ्रीस और फिदेल कास्त्रो रुज ने एक संयुक्त घोषणा और कार्यान्वयन समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। अप्रैल 2006 में, इसके सिद्धांतों के पूरक की तरह बोलीविया भी इस एलायंस में शामिल हो गया, और पीपुल्स ट्रेड ट्रीटी (स्पैनिश में टीसीपी) शुरू हुआ, जो पूरकता, एकजुटता, और सहयोग के आधार पर व्यापार को बढ़ावा देता है।
एएलबीए–टीसीपी नौ राज्यों का एक अंतर–राज्यीय निकाय है जो बाहरी वर्चस्व से संप्रभुता और आंतरिक उन्नति के लिए एकीकरण के दोहरे लक्ष्यों को बढ़ावा देता है। एकीकरण के लिए अपनाई जाने वाले उपायों में अंतर–क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए एक आम क्षेत्रीय मुद्रा (सुक्रे) का विकास करना, सामाजिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए (पेट्रो कैरिब और पेट्रोसुर जैसी) क्षेत्रीय ऊर्जा फर्मों का निर्माण करना और वैश्विक संचार प्रणाली का लोकतंत्रीकरण करने के लिए एक टेलीविजन नेटवर्क (टेलीसुर) की स्थापना करना शामिल हैं। एएलबीए–टीसीपी संप्रभुता और एकीकरण को बढ़ावा देने वाले यूनियन ऑफ़ साउथ अमेरिकन नेशंज़ (यूनासुर) और कम्यूनिटी ऑफ़ लैटिन अमेरिकन एंड कैरेबियन स्टेट्स (सीईएलएसी) जैसे क्षेत्रीय संगठनों में से एक है।
अनुसंधान संस्थान नेटवर्क क्या है?
पृथ्वी को बचाने की योजना तैयार करने के लिए, एएलबीए–टीसीपी ने दो शोध संस्थानों के साथ काम किया: इंस्टिट्यूटो साइमन बोलिवर फ़ॉर पीस एंड सॉलिडैरिटी अमंग पीपल्ज़ व ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान। हम दो संस्थानों ने अन्य शोध संस्थानों को इकट्ठा किया, जिनके साथ हम वर्षों से काम कर रहे हैं और इस दस्तावेज़ को तैयार करने के लिए एक वर्किंग नेटवर्क स्थापित किया। यह नेटवर्क एक अनौपचारिक समूह है जो हमारे साझा कामों को मज़बूत करता है और जो भविष्य में ज़्यादा से ज़्यादा सामूहिक परियोजनाओं को बढ़ावा देगा। यदि अन्य शोध संस्थान इस नेटवर्क से जुड़ना चाहते हैं तो कृपया हमें plan@thetricontinental.org पर लिखें।
पृथ्वी को बचाने की योजना क्या है?
1974 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने न्यू इंटरनेशनल इकनॉमिक ऑर्डर (एनआईईओ) नामक एक नया प्रस्ताव अपनाया था, जिसे गुटनिरपेक्ष आंदोलन, जी-77, और व्यापार व विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा विकसित किया गया था। वह प्रस्ताव ‘सभी देशों, भले ही उनकी आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था कैसी भी हो, के बीच निष्पक्षता, संप्रभु समानता, अन्योन्याश्रयता, सामान्य हित और सहयोग पर आधारित था, ताकि असमानताओं को दूर किया जा सके और मौजूदा अन्यायों का निवारण किया जा सके, विकसित और विकासशील देशों के बीच बढ़ती खाई को ख़त्म किया जा सके और लगातार बढ़ता आर्थिक और सामाजिक विकास तथा वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए शांति और न्याय सुनिश्चित किया जा सके‘। इनमें से एक भी प्रस्ताव में फेर–बदल करने की ज़रूरत नहीं है।
तीसरी दुनिया की परियोजना के कमज़ोर होने, यूएसएसआर और पूर्वी यूरोप में साम्यवादी राज्य की समाप्ति और उन्नत पूंजीवादी देशों में सामाजिक लोकतंत्र के पतन का नतीजा यह हुआ कि एनआईईओ –और विकास के इसके पूरे एजेंडा को– अलग रख दिया गया। उनके स्थान पर नवउदारवाद का बजट कटौती और सुरक्षा (युद्ध) का एजेंडा केंद्र में आ गया। 1987 और 1990 के बीच जूलियस न्येरेरे के नेतृत्व में स्थापित हुआ दक्षिण आयोग एनआईईओ को पुनर्जीवित करने का एक प्रयास था, लेकिन इसके अंतिम दस्तावेज़, द चैलेंज टू द साउथ, पर उतनी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया जितना दिया जाना चाहिए था। पृथ्वी को बचाने की योजना एनआईईओ (1974) और द चैलेंज टू द साउथ (1990) की परंपरा में लिखा गया है।
पृथ्वी को बचाने की योजना एक अनंतिम दस्तावेज़ है, हमारे जन आंदोलन और सरकारों के विश्लेषणों और मांगों के आधार पर तैयार किया गया एक मसौदा है। इसे पढ़े जाने और इस पर चर्चा करने की ज़रूरत है, इसकी आलोचना कर इसे आगे और विकसित करने की ज़रूरत है। यह आने वाले कई मसौदों में से पहला मसौदा है। कृपया अपनी आलोचनाओं और सुझावों के साथ हमसे plan@thetricontinental.org पर संपर्क करें, क्योंकि यह एक जीवित दस्तावेज है। यह दस्तावेज़ अंततः हमारे आंदोलनों और हमारे संस्थानों के माध्यम से ही आगे बढ़ेगा, और आने वाले समय में हमारे ग्रह को बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का रूप लेगा।
पृथ्वी को बचाने की योजना
पृथ्वी को विभिन्न प्रकार की असुरक्षाओं ने जकड़ रखा है। कोविड-19 महामारी के प्रभाव ने महामंदी के बाद से सबसे बड़ी आर्थिक गिरावट पैदा की है। यह गिरावट स्टॉक क़ीमतों या बहुराष्ट्रीय निगमों की आय रिपोर्टों में नहीं दिख रही है, पर बेरोज़गारी और असमानता के बढ़ते आँकड़ों, बढ़ती भुखमरी दर और जनता में बढ़ती निराशा और क्रोध के रूप में दिख रही है। अनुमान है कि करोड़ों लोग कोविड-19 महामारी के प्रभाव के कारण संपूर्ण ग़रीबी में चले जाएँगे। जो लोग बहुत से देशों को विनाशकारी ऋण और निराशा की ओर जाते हुए देख रहे हैं उनके लिए यह बुरी ख़बरों के सागर में से यह केवल एक आँकड़ा है। इसके परिणाम को रोकने के लिए एक आपातकालीन वैश्विक कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए। ज़रूरी है कि देश संकीर्ण राष्ट्रवादी चिंताओं को अलग रखकर इस संकट का एक साथ मिलकर उपाय करें।
पैसा, दवा और भोजन के तीन रंगभेद से हमारी वर्तमान दुनिया संचालित हैः
पैसे का रंगभेद: विकासशील देशों के कंधों पर 11 ट्रिलियन डॉलर का विदेशी क़र्ज़ लदा हुआ है। ऐसा अनुमान है कि साल 2021 के अंत तक इस क़र्ज़ के ब्याज आदि पर इन देशों को लगभग 4 ट्रीलियन डॉलर का भुगतान करना पड़ेगा। साल 2020 के दौरान चौंसठ देशों ने स्वास्थ्य सेवा की तुलना में क़र्ज़ के भुगतान के ऊपर ज़्यादा ख़र्च किया था। विभिन्न बहुपक्षीय एजेंसियों की तरफ़ से छोटी–मोटी सहायता के सहारे क़र्ज़ के भुगतान को स्थगित करने की बात चल रही थी। क़र्ज़ स्थगन की यह बातचीत उस समय चलनी शुरू हुई जब अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने देशों को आदेश दिया कि वो ज़्यादा क़र्ज़ लें क्योंकि ब्याज दर कम हैं। ज़्यादा क़र्ज़ देने की जगह पर क्यों न विदेशी क़र्ज़ को रद्द कर दिया जाए और साथ–ही–साथ अवैध करमुक्त देशों में इकट्ठा कम–से–कम 37 ट्रिलियन डॉलर की रक़म को भी ज़ब्त किया जाए? क़र्ज़ को निरस्त करने की प्रक्रिया को अक्सर “माफ़ी” नामक शब्द से परिभाषित किया जाता है। लेकिन इसमें माफ़ करने वाली कोई बात नहीं है। यह क़र्ज़ औपनिवेशिक लूट और चोरी के लंबे इतिहास का परिणाम है। जहाँ धनी देश निम्न और शून्य ब्याज दर पर क़र्ज़ लेने में सक्षम होते हैं, वहीं विकासशील दुनिया को अधिक ब्याज दरों का भुगतान करना पड़ता है तथा कोविड-19 संक्रमण के चक्र को तोड़ने के लिए उपयोग की जाने वाली धनराशि को भी क़र्ज़ चुकाने में लगाना पड़ता है।
दवा का रंगभेद: विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम घेबरेयेसस ने हाल ही में कहा कि दुनिया एक ‘भयावह नैतिक विफलता‘ के कगार पर खड़ी है। वो पूंजीवादी परियोजना को परिभाषित करने वाले वैक्सीन राष्ट्रवाद और वैक्सीन की जमाख़ोरी का उल्लेख कर रहे थे। उत्तर अटलांटिक (कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और कई यूरोपीय राज्यों) देशों ने वैक्सीन से जुड़े हुए बौद्धिक संपदा के नियमों को निलंबित करने की भारत और दक्षिण अफ़्रीका की प्रार्थना को दरकिनार कर दिया। इन उत्तरी देशों ने कोवैक्स परियोजना को समुचित रूप से वित्तपोषित नहीं किया जिसके परिणामस्वरूप इसके असफल होने का जोखिम बढ़ गया। उत्तर अटलांटिक देशों ने वैक्सीन की जमाख़ोरी की। कोवैक्स की वैक्सीनों की जमाख़ोरी करके कनाडा ने प्रति व्यक्ति 5 वैक्सीन जमा किया। घेबरेयेसस इसे ‘वैक्सीन रंगभेद‘ कहते हैं।
भोजन का रंगभेद: 2005 से 2014 के दरम्यान कम होती वैश्विक भूख में अब फिर से वृद्धि होने लगी है (इस अवधि के दौरान चीन द्वारा ग़रीबी का पूर्ण उन्मूलन करने के बावजूद ऐसा हुआ है)। अब वैश्विक भूख 2010 के स्तर पर है। खाद्य असुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफ़एओ) की 2021 में जारी रिपोर्ट –द स्टेट ऑफ़ फ़ूड इन्सिक्युरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड– के अनुसार ‘विश्व के लगभग तीन में से एक व्यक्ति (237 करोड़ लोगों) की 2020 में पर्याप्त भोजन तक पहुँच नहीं थी, पिछले साल के मुक़ाबले यह संख्या 32 करोड़ बढ़ गई है‘। भूख असहनीय है। संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम का अनुमान है कि ‘यदि त्वरित कार्रवाई नहीं की जाती‘ तो भूखे लोगों की संख्या महामारी ख़त्म होने से पहले दोगुनी हो सकती है।
इन तीन रंगभेदों का कारण क्या है? वैश्विक अर्थव्यवस्था पर मुट्ठी भर कंपनियों और सरकारों का नियंत्रण:
1. विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर नियंत्रण
2. वित्तीय प्रणालियों पर नियंत्रण
3. संसाधनों तक पहुंच पर नियंत्रण
4. हथियारों पर नियंत्रण
5. संचार पर नियंत्रण
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हम, अनुसंधान संस्थानों का एक नेटवर्क हैं, जो नवउदारवादी कटौतियों, प्रेरित ऋण व्यवस्था, विकृत विकास के दीर्घकालिक संकटों का करीब से अध्ययन कर रहे हैं और हमने एक नई विश्व व्यवस्था की दिशा में कुछ नीतियाँ तैयार की हैं। हमारी योजना –जो कि एनआईईओ की परंपरा में लिखी गई है– वर्तमान और तत्काल भविष्य की एक कल्पना है जो बारह प्रमुख विषयों पर केंद्रित है: लोकतंत्र और विश्व व्यवस्था, पर्यावरण, वित्त, स्वास्थ्य, आवास, भोजन, शिक्षा, रोज़गार, देखभाल, महिलाएँ एवं एलजीबीटीक्यू समुदाय , संस्कृति, और डिजिटल दुनिया। यह एक परिपूर्ण योजना– जिसे हम इस साल के अंत तक प्रकाशित करेंगे– की रूप रेखा है।
लोकतंत्र और विश्व व्यवस्था
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संयुक्त राष्ट्र चार्टर (1945) में पूर्ण विश्वास रखें।
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ज़ोर दें कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश प्रतिबंधों और बल के उपयोग की विशिष्ट आवश्यकताओं (अध्याय VI और VII) सहित इस चार्टर का पालन करें।
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बहुपक्षीय प्रणाली के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करने वाले निर्णयों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एकाधिकार शक्ति पर पुनर्विचार करें; संयुक्त राष्ट्र महासभा को वैश्विक व्यवस्था के अंदर लोकतंत्र पर गंभीर संवाद में शामिल करें।
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इस बात पर जोर दें कि बहुपक्षीय निकाय –जैसे कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ)- संयुक्त राष्ट्र चार्टर और मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948) के अनुसार नीतियां बनाएँ; ग़रीबी, भुखमरी, आवासहीनता और आशिक्षा बढ़ाने वाली नीतियों को रद्द करें।
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सुरक्षा, व्यापार नीति और वित्तीय विनियमन के प्रमुख क्षेत्रों में बहुपक्षीय प्रणाली की केंद्रीयता को स्वीकार किया जाए ताकि नाटो जैसे क्षेत्रीय निकाय और आर्थिक सहयोग और विकास के संगठन (ओईसीडी) जैसे रूढ़िवादी संस्थान संयुक्त राष्ट्र और उसकी एजेंसियों (जैसे व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन) के अनुसार अपनी नीतियों का निर्माण करें।
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क्षेत्रीय तंत्र और विकासशील देशों के एकीकरण को मजबूत करने वाली नीतियाँ बनाएँ।
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आतंकवाद और नशीले पदार्थों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के नाम पर इन्हीं के अलग रूपों को बढ़ावा दिया जा रहा है, इसलिए इस तरह की कार्रवाई को रोकें ताकि दुनिया की सामाजिक चुनौतियों का समाधान हो।
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हथियारों और सैन्यवाद पर ख़र्च की ऊपरी सीमा तय करें; सुनिश्चित करें कि वाह्य अंतरिक्ष को विसैन्यीकृत किया जाए।
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हथियारों के उत्पादन पर ख़र्च किए गए जाने वाले संसाधनों को सामाजिक रूप से लाभकारी उत्पादन पर ख़र्च करें।
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सुनिश्चित करें कि सभी अधिकार किसी राज्य के नागरिकों के बजाय सभी लोगों के लिए उपलब्ध हों; ये अधिकार अब तक के सभी हाशिए के समुदायों, जैसे महिलाओं, आदिवासियों, अश्वेत लोगों, प्रवासियों, अनिर्दिष्ट लोगों, विकलांगों, एलजीबीटीक्यू समुदायों , उत्पीड़ित जातियों के लोगों और ग़रीबों पर लागू होने चाहिए।
पर्यावरण
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1992 के संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन पर आधारित फार्मूले ‘सामान्य लेकिन विषम जिम्मेदारियाँ‘ के अनुसार विकसित देशों को जलवायु संकट पैदा करने के लिए कार्बन उत्सर्जन में तेज़ी से कटौती करने की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए ताकि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाने से रोका जा सके।
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मांग करें कि विकसित देश प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन को 2030 तक अधिकतम 2.3 टन तक कम कर दें, यह सीमा जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल ने वैश्विक ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए तय की है।
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सुनिश्चित करें कि उत्तरी गोलार्ध के विकसित देश कार्बन उत्सर्जन से होने वाली क्षति और नुकसान के लिए जलवायु मुआवजा दें और कार्बन आधारित ऊर्जा पर निर्भरता को बदलने के लिए सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को धन दें।
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पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते में किए वादों –कि विकासशील देशों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए विकसित देश प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर प्रदान करें– को पूरा करें। इन ज़रूरतों में जलवायु परिवर्तन के वास्तविक और विनाशकारी प्रभाव, जो कि पहले से विकासशील देशों (विशेष रूप से समुद्री स्तर के आधार पर निचले देशों और छोटे द्वीप वाले देशों) में दिखाई देने लगे हैं, से बचने के लिए अपने को तैयार करना।
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कार्बन आधारित ऊर्जा प्रणालियों पर निर्भरता ख़त्म करने और शमन और अनुकूलन के लिए विकासशील देशों में प्रौद्योगिकी और वित्त हस्तांतरित करें।
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माँग करें कि विकसित देश, जो पानी, मिट्टी और हवा को जहरीले और ख़तरनाक कचरे –और परमाणु अपशिष्ट– के साथ प्रदूषित करने के लिए जिम्मेदार हैं, इनकी सफाई का ख़र्चा उठाएँ और जहरीले कचरे का उत्पादन व उपयोग बंद करें।
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विकासशील देशों की तात्कालिक ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए कार्बन ऊर्जा प्रणाली का उपयोग कम करने के लिए एक नया समेकित कार्यक्रम बनाएं। इसमें विकासशील देशों को राशि प्रदान करने के लिए कई स्रोतों का प्रावधान हो। उनकी सीधी भागीदारी हो। उन्हें ज़रूरत के हिसाब से और वित्त का समन्वय करने की इच्छा के हिसाब से शामिल किया जाए। इस कार्यक्रम के तहत निकट भविष्य में ऊर्जा में बदलाव के लिए विभिन्न देशों को कच्चा माल उपलब्ध कराना होगा।
वित्त
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विकासशील देशों के सभी व्यर्थ के बाहरी ऋणों पर फिर से बात करें।
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दासता सहित, उपनिवेशवादी लूट की क्षतिपूर्ति के बारे में चर्चा शुरू करें।
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अवैध करमुक्त देशों में रखी संपत्ति को जब्त करें।
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वाणिज्यिक और बहुपक्षीय ऋणदाताओं द्वारा विकासशील देशों पर लगाई जाने वाली ब्याज दरों की ऊपरी सीमा तय करें।
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बहुराष्ट्रीय निगमों की लाभ स्थानांतरण गतिविधियों को हतोत्साहित करें और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सहायक कंपनियों द्वारा उत्पन्न वैश्विक लाभ के हिस्से पर कर लगाने के लिए एकात्मक दृष्टिकोण अपनाएँ।
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अर्जित धन और विरासत में मिली संपत्ति पर कर लागू करें।
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सभी गैर–बैंक कॉर्पोरेट संस्थाओं द्वारा सट्टेबाजी के माध्यम से कमाई गये लाभ पर उच्च दरों पर कर लगाएँ।
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सार्वजनिक बैंकिंग की भूमिका और आकार का विस्तार करके और निजी बैंकिंग पर अधिक विनियमन और पारदर्शिता लागू करके बैंकिंग प्रणाली का लोकतंत्रीकरण करें।
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वाणिज्यिक बैंकों की सट्टा बैंकिंग गतिविधि पर देनदारियों के प्रतिशत के रूप में उच्चतम सीमा लागू करें।
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आवास ऋण की तरह विशिष्ट वस्तुओं पर बैंक द्वारा ली जाने वाली ब्याज दरों को विनियमित करें।
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पूँजी के पलायन को रोकने के लिए पूँजी नियंत्रण निर्धारित करें।
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विकास कार्यक्रमों के लिए आईएमएफ और विश्व बैंक आधारित वित्त के जन–केंद्रित विकल्प बनाएँ।
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क्षेत्रीय व्यापार सुलह तंत्र के निर्माण को प्रोत्साहित करें।
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पेंशन निधि पर कड़े नियम लागू करें ताकि सट्टेबाजी के लिए लोगों की बचत का लापरवाही के साथ इस्तेमाल न हो; सार्वजनिक क्षेत्र के पेंशन कोष के निर्माण को प्रोत्साहित करें।
स्वास्थ्य
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कोविड-19 और भविष्य में हो सकने वाली बीमारियों के लिए पीपल्स वैक्सीन के काम को आगे बढ़ाएँ।
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आवश्यक दवाओं पर पेटेंट नियंत्रण हटाएँ और विकासशील देशों तक चिकित्सा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करें।
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सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों का वस्तुकरण करना बंद करें, उन्हें विकसित करें और निवेश बढ़ाकर उन्हें मज़बूत बनाएँ।
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विशेष रूप से विकासशील देशों में, सार्वजनिक क्षेत्र के दवा उत्पादन का विकास करें।
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स्वास्थ्य ख़तरों पर संयुक्त राष्ट्र अंतर–सरकारी पैनल का गठन करें।
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कार्यस्थल और अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्यकर्मियों की यूनियनों द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका का समर्थन करें और उसे मजबूत करें।
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सुनिश्चित करें कि वंचित पृष्ठभूमि और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को डॉक्टरों के रूप में प्रशिक्षित किया जाए।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन और क्षेत्रीय निकायों से जुड़े स्वास्थ्य मंचों सहित चिकित्सा एकजुटता को व्यापक बनाएँ।
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प्रजनन और यौन अधिकारों की रक्षा और विस्तार करने वाले अभियानों और कार्यों को संगठित करें।
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ऐसे पेय पदार्थों और खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने वाले बड़े निगमों पर स्वास्थ्य कर लगाएँ, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठनों द्वारा व्यापक रूप से बच्चों और सामान्य सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है (जैसे कि वे जो मोटापे या अन्य स्थाई बीमारियों का कारण बनते हैं)।
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दवा निगमों की प्रचार गतिविधियों और विज्ञापन व्यय पर अंकुश लगाएँ।
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सुलभ और सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित डायग्नॉस्टिक (नैदानिक) केंद्रों का एक नेटवर्क बनाएँ और नैदानिक परीक्षणों की सलाह और कीमतों को सख्ती से विनियमित करें।
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सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के हिस्से की तरह मनोवैज्ञानिक चिकित्सा प्रदान करें।
आवास
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आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्रों को साथ लाकर विविध मोहल्ले विकसित करने पर ज़ोर देते हुए पर्याप्त आवास का निर्माण सुनिश्चित करें।
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किराये की आवास इकाइयों पर किराया नियंत्रण लागू करें।
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खाली पड़ी संपत्तियों को सामुदायिक केंद्रों या आवास इकाइयों में पुनर्व्यवस्थित करें।
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निजी परिवहन जैसे कारों की आवश्यकता को कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों से जुड़े आवास का निर्माण करें और पुराने आवास को इस दिशा में पुनर्व्यवस्थित करें।
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2,000 मीटर से ऊँची सभी इमारतों के लिए छत पर बग़ीचे बनाना या सोलर पैनल लगाना अनिवार्य बनाएँ।
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थर्मल रेज़िस्टैन्स दिखाने वाली नवीन सामग्री के साथ नई आवास इकाइयों का विकास करें।
भोजन
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राष्ट्रीय और क्षेत्रीय खाद्य प्रणालियों को बढ़ावा दें।
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सार्वजनिक खाद्य प्रणालियों और सार्वजनिक खाद्य खरीद को प्रतिबंधित या दंडित करने वाले द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों की समीक्षा करें और उन्हें निरस्त करें।
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सुनिश्चित करें कि विकसित देश, जो विकासशील देशों को सब्सिडी देने से रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तंत्र का उपयोग करते हैं, उन्हें अपने देश के कृषि व्यवसाय को सब्सिडी देने जैसी पाखंडी नीतियों का पालन करने से मना किया जाए; विश्व व्यापार संगठन के नियमों का विकास को सुगम बनाने के लिए इस्तेमाल करें न कि विकासशील देशों को ग़ुलाम बनाने के लिए।
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जनता के एक सार्वजनिक संसाधन के रूप में मान्यता देते हुए, भूमि का पुनर्वितरण करें; भू–स्वामित्व पर सीमा लगाएँ और घरेलू व कॉर्पोरेट संपत्ति की सीमा निर्धारित करें।
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ख़राब मौसम में खेती करने के लिए किसानों की सहायता हेतु सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित, टिकाऊ सिंचाई और उससे संबंधित बुनियादी ढांचे का विकास करें।
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भुखमारी ख़त्म करने पर विशेष ध्यान देते हुए सार्वजनिक वितरण प्रणाली का निर्माण करें।
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विकासशील देशों में किसानों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के समर्थन को बढ़ावा दें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कृषि कार्य से किसानों और खेत मज़दूरों को अच्छी आय मिले।
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खेती को बरक़रार रखने और खेतों से होने वाली आय को बाहर जाने से रोकने हेतु किसानों के लिए क्रेडिट सिस्टम विकसित करें।
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सहकारी क्षेत्र के खाद्य उत्पादन को बढ़ावा दें और खाद्य उत्पादन व वितरण प्रणालियों में जनता की भागीदारी को प्रोत्साहित करें।
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सहकारी खेतों और बाज़ारों की स्थापना के लिए सस्ते ऋण, रियायती इनपुट, मुफ़्त तकनीकी सहायता और भूमि प्रदान करें।
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भंडारण सुविधाओं सहित सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित परिवहन नेटवर्क विकसित करें, यह सुनिश्चित करने के लिए कि छोटे किसान अपनी उपज बाज़ारों में ले जा सकें।
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सुनिश्चित करें कि सरकारी स्कूलों और क्रेच में स्वस्थ भोजन उपलब्ध हो।
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टिकाऊ और पारिस्थितिक कृषि के लिए तकनीकी और वैज्ञानिक क्षमता का निर्माण करें।
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बीजों पर पेटेंट हटाएँ और कृषि व्यवसायियों द्वारा देशी बीजों के वस्तुकरण को रोकने के लिए कानूनी ढांचे को बढ़ावा दें।
शिक्षा
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शिक्षा का वस्तुकरण बंद करें, जिसमें सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को मजबूत करना व शिक्षा के निजीकरण को रोकना शामिल है।
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शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन में शिक्षकों की भूमिका को बढ़ावा दें।
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सुनिश्चित करें कि समाज के वंचित वर्गों को शिक्षक बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाए।
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बिजली और डिजिटल विभाजन को समाप्त करें।
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सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित और सार्वजनिक रूप से नियंत्रित हाई–स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट सिस्टम बनाएँ।
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सुनिश्चित करें कि सभी स्कूली बच्चों की पाठ्येतर गतिविधियों सहित शिक्षा प्रक्रिया के सभी तत्त्वों तक पहुंच हो।
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हर प्रकार की उच्च शिक्षा में छात्र–छात्राओं के लिए निर्णय प्रक्रियाओं में भाग लेने के चैनल विकसित करें।
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शिक्षा को जीवन भर का अनुभव बनाएँ, ताकि जीवन के हर स्तर पर लोग विभिन्न प्रकार के संस्थानों में सीखने की प्रथा का आनंद ले सकें। इससे इस बात को बढ़ावा मिलेगा कि शिक्षा केवल करियर बनाने का ज़रिया नहीं है, बल्कि एक ऐसे समाज के निर्माण का ज़रिया भी है जो दिमाग़ और समुदाय की निरंतर वृद्धि और विकास का समर्थन करता है।
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हर उम्र के श्रमिकों के लिए उनके व्यवसायों से संबंधित क्षेत्रों में उच्च शिक्षा और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में सब्सिडी दें।
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उच्च शिक्षा सहित शिक्षा के सभी स्तरों को विभिन्न बोलियों में उपलब्ध कराएँ; सुनिश्चित करें कि सरकारें अनुवाद और अन्य साधनों के माध्यम से अपने देश में बोली जाने वाली भाषाओं में शिक्षण सामग्री प्रदान करने की ज़िम्मेदारी लें।
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औद्योगिक, कृषि और सेवा क्षेत्र की सहकारी समितियों की ज़रूरतों को पूरा करने वाले प्रबंधन शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जाए।
रोज़गार
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माँग करें कि सरकारें यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी लें कि उनके श्रम कानून अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के सम्मेलनों, विशेष रूप से संगठन बनाने और सामूहिक समझौते के अधिकारों पर सम्मेलन 87 और 98, का पालन करते हैं।
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वेतन पर पड़ने वाले दबाव को कम करने के लिए सामाजिक सुविधाओं –जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य, सार्वजनिक शिक्षा और सार्वजनिक अवकाश– के स्तर को बढ़ावा दें।
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समान काम के लिए समान वेतन के सिद्धांत को प्रोत्साहित करें।
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श्रमिक संघवाद की संस्कृति को सुदृढ़ करें और कार्यस्थल में शक्ति के अंतर्निहित असंतुलन पर सामूहिक समझौते को बढ़ावा दें, श्रमिकों को लोकतांत्रिक तरीक़े से अपनी बात रखने दें और व्यक्तियों को अपने कार्यस्थल में सुधार लाने के काम के कारण अकेले पड़ने की भावना और बोझिल महसूस कराने से बचें।
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सुनिश्चित करें कि अनौपचारिक और गिग इकॉनमी क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों सहित सभी काम करने वाले लोगों को बुनियादी कार्यस्थल सुरक्षा उपलब्ध हो।
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सामूहिक समझौते की प्रक्रिया के माध्यम से काम के समय के पुनर्वितरण पर ध्यान केंद्रित करें और सभी के लिए वाजिब मजदूरी दर पर पर्याप्त काम के घंटे प्रदान करें।
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सुनिश्चित करें कि प्रत्येक श्रमिक को काम करने की स्वस्थ और सुरक्षित परिस्थितियों का अधिकार हो; सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार बनाएँ कि सुरक्षा मानकों की उचित निगरानी की जाती है और उन्हें ठीक से लागू किया जाता है।
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रोज़गार की तलाश में बेरोज़गारों की सहायता के लिए सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित रोजगार केंद्र बनाएँ; ये केंद्र, उदाहरण के तौर पर, बेरोज़गारों की यूनियन के नेटवर्क से संबद्ध हो सकते हैं।
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किसी परीक्षण और काम की आवश्यकता की शर्तों के बिना सामाजिक कल्याण की मज़बूत, सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित प्रणाली विकसित करें।
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सेवानिवृत्ति की आयु वाले सभी नागरिकों को पर्याप्त पेंशन की गारंटी दें।
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सुनिश्चित करें कि सरकार काम के दौरान घायल या विकलांग हुए लोगों, विशेष रूप से असंगठित, अनिश्चित और स्व–नियोजित श्रमिकों को पर्याप्त मुआवज़ा और पेंशन प्रदान करे, ।
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सुनिश्चित करें कि सरकारें श्रमिकों की सहकारी समितियों को बढ़ावा दें, ऐसी सहकारी समितियों की प्रारंभिक पूँजी में योगदान करें और ऋण और उचित मूल्य उपलब्ध कराएँ।
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ऐसी सहकारी समितियों, सार्वजनिक अनुसंधान व तकनीकी संस्थानों और बैंकों के सहयोग से देशों के बुनियादी ढांचे का विकास करें; सुनिश्चित करें कि सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे पर किए जाने वाले ख़र्च का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ऐसी सहकारी समितियों को आवंटित किया जाए।
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श्रमिकों द्वारा परिवहन पर बिताए जाने समय और उस पर किए जाने वाले ख़र्च को कम करने के लिए शहरों में एक सस्ता, पर्याप्त, और सार्वजनिक परिवहन (बस, रेल और मेट्रो) नेटवर्क बनाएँ।
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शहरों में सरकार द्वारा समर्थित सहकारी खाद्य दुकानों का एक नेटवर्क बनाएँ और असंगठित, अनिश्चित और प्रवासी श्रमिकों की सेवा करें।
देखभाल
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बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल के कार्यक्रमों सहित सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को बढ़ावा दें।
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बच्चों के लिए सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित और मोहल्ले में संचालित क्रेच की व्यवस्था करें। स्कूल के बाद के समय के लिए सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित और मोहल्ले में संचालित चाइल्डकेयर सुविधाएँ उपलब्ध कराएँ, जो बच्चों को भोजन उपलब्ध कराती हों।
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सामाजिक जीवन और बुजुर्गों की देखभाल के लिए सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित और मोहल्ले में संचालित सुविधाओं की एक प्रणाली का निर्माण करें।
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सुनिश्चित करें कि वृद्धों के लिए उपलब्ध सुविधाओं और क्रेच सुविधाओं के श्रमिकों का अपने कार्यस्थल पर नियंत्रण हो और उन्हें उचित वेतन व प्रशिक्षण मिले।
महिलाएँ और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय
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नीति बनाने वाले प्रभावशाली निकायों में श्रमिक वर्ग के महिला संगठनों की नेताओं को मनोनीत करें।
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श्रमिक संगठनों, सामुदायिक संगठनों और स्वयं सहायता समूहों सहित महिला संगठनों और नेटवर्कों की सहायता करें।
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अनौपचारिक महिला कामगारों के साथ–साथ अवैतनिक घरेलू कार्यों को राष्ट्रीय आय–व्यय के लेखाजोखा में अलग से पहचानना और गिनना शुरू करें। इसमें अनौपचारिक–असंगठित और छिपे हुए क्षेत्रों में काम करने वाली श्रमिक महिलाएँ भी शामिल होनी चाहिए।
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सवैतनिक पैतृक अवकाश की नीतियाँ बनाएँ।
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महिलाओं पर बढ़ते देखभाल के बोझ को कम करें; सुनिश्चित करें कि वित्तीय सहायता पैकेज गैर–मान्यता प्राप्त और अवैतनिक देखभाल कार्य, जिन्हें अक्सर महिलाएँ करती हैं, जैसे चाइल्डकेयर के लिए भी उपलब्ध हो।
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महिला कामगारों को तत्काल नकद राहत, खाद्य राहत और सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराएँ; सुनिश्चित करें कि महिला प्रमुख वाले परिवारों को पुरुष प्रमुख परिवारों के समान ही सहायता प्राप्त हो; तथा सुनिश्चित करें कि एलजीबीटीक्यू+ समुदाय को सामाजिक कार्यक्रमों और सब्सिडी तक समान पहुंच प्रदान की जाए।
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महिला स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों, जिनमें से कइयों को श्रमिकों के रूप में नहीं बल्कि स्वैच्छिक कार्यकर्ता माना जाता है, की विशिष्ट आवश्यकताओं को पहचानें; सुनिश्चित करें कि उन्हें पर्याप्त वेतन और उचित उपकरण मिलें।
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महिला सहकारी समितियों को ऋण प्रदान करें।
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घर में सामाजिक प्रजनन श्रम (बच्चे की देखभाल, सफाई, खाना बनाना आदि) के बंटवारे को प्रोत्साहित करने के लिए कार्यक्रम बनाएँ।
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महिलाओं और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के ख़िलाफ़ हिंसा को खत्म करने वाली प्रणालियाँ स्थापित करें; पितृसत्तात्मक हिंसा को जड़ से खत्म करने के लिए योजनाएँ लागू करें और यह सुनिश्चित करें कि आर्थिक नीतियाँ अनजाने में पितृसत्तात्मक हिंसा की समस्या की अनदेखी न करें।
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सुनिश्चित करें कि लिंग, लैंगिक पहचान, यौनिकता या अन्य हाशिए की पहचानों की परवाह किए बिना, सभी लोगों की सामाजिक कार्यक्रमों और सेवाओं –जैसे साफ़ और सुरक्षित आवास और स्वस्थ भोजन का अधिकार– तक समान पहुंच हो।
संस्कृति
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1945 के यूनेस्को संविधान के विचारों को बढ़ावा दें, विशेष रूप से यह विचार कि संस्कृति और शिक्षा का व्यापक प्रसार मानव गरिमा और शांतिमय दुनिया के लिए अपरिहार्य है।
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गरिमा, समानता और शालीनता के मूल्यों को कायम रखने वाली सांस्कृतिक संस्थाओं को सार्वजनिक समर्थन दें।
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अंध उपभोक्तावाद को बढ़ावा न देने वाली सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करें।
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भेदभाव के सभी रूपों (जैसे नस्लवाद, जातिवाद, स्त्री द्वेष, ट्रांसफोबिया, आदि) के ख़िलाफ़ सांस्कृतिक और कलात्मक पहल को बढ़ावा दें।
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पारिस्थितिक सद्भाव और निजी लाभ के लिए पृथ्वी के संसाधनों की बर्बादी के ख़िलाफ़ संघर्ष को दर्शाने वाली सांस्कृतिक गतिविधियों का समर्थन करें।
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लोगों की पारंपरिक कलाओं को प्रोत्साहित करें और क्रूर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद द्वारा उनके वस्तुकरण और विकृति को रोकें।
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कलाकारों और बुद्धिजीवियों के ईमानदार अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा करें।
डिजिटल दुनिया
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सार्वजनिक रूप से विनियमित और नियंत्रित इंटरनेट स्पेस तक सार्वजनिक पहुंच को बढ़ावा दें और डिजिटल ग्लोबल कॉमन्स का विस्तार करने के लिए संघर्ष करें।
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2016 के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का पालन करें, जो कि इंटरनेट तक पहुँच को एक मानव अधिकार के रूप में परिभाषित करता है।
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दूरसंचार बुनियादी ढांचे का राष्ट्रीयकरण करें और समाज के सभी क्षेत्रों में इंटरनेट तक पहुंच और डिजिटल साक्षरता की गारंटी दें।
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सार्वजनिक और व्यक्तिगत डेटा को अंतर्राष्ट्रीय निगमों के शोषण से सुरक्षित रखें; कम्प्यूटेशनल विश्लेषण और सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए बड़े डेटा के नियंत्रण व उपयोग के लिए भागीदारी प्रणाली का निर्माण करें।
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सार्वजनिक समस्याओं का समाधान प्रदान करने को केंद्र में रखकर मुफ्त हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर विकास को बढ़ावा दें तथा उसके लिए राशि उपलब्ध कराएँ।
अनुसंधान संस्थानों का नेटवर्क
अनुसंधान संस्थानों का नेटवर्क एक अनौपचारिक समूह है जिसे एएलबीए–टीसीपी, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान और इंस्टिट्यूटो सिमन बोलीवर फ़ॉर पीस एंड सॉलिडैरिटी अमंग पीपल ने मिलकर शुरू किया था। ऊपर दी गई योजना इस समूह द्वारा शुरू की गई एक प्रक्रिया का हिस्सा है। निम्नलिखित संस्थान इस समूह का हिस्सा है:
1. América Latina en movimiento, ALAI (Quito, Ecuador)
2. Centre for Research on the Congo (Kinshasa, DR Congo)
3. Centro de Investigaciones de la Economía Mundial (CIEM) (Cuba)
4. Centro de Investigaciones de Política Internacional (CIPI) (Cuba)
5. Centro per la Riforma dello Stato (Roma, Italy)
6. Chris Hani Institute (South Africa)
7. Consultation and Research Institute (Beirut, Lebanon)
8. Dominica Association of Industry & Commerce (Roseau, Dominica)
9. Dominica State College (Roseau, Dominica)
10. Foundation for Education in Social Transformation and Progress (Kenya)
11. The Centre for International Gramscian Studies (GramsciLab), University of Cagliari (Italy)
12. Instituto Simón Bolívar for Peace and Solidarity Among Peoples (Venezuela)
13. Internationale Forschungsstelle DDR (Berlin, Germany)
14. Institute of Employment Rights (London, UK)
15. Marx Memorial Library (London, UK)
16. Instituto Internacional de Investigación ‘Andrés Bello’ (Bolivia)
17. Instituto Patria (Argentina)
18. Instituto Patria Grande (Bolivia)
19. Instituto Samuel Robinson (Venezuela)
20. Observatorio del Sur Global, Argentina
21. Research Group of the Popular Education Initiative (Accra, Ghana)
22. Sam Moyo African Institute of Agrarian Studies (Harare, Zimbabwe)
23. Society for Social and Economic Research (Delhi, India)
24. Tricontinental: Institute for Social Research
a. Instituto Tricontinental de Investigación Social (Argentina)
b. Instituto Tricontinental de Pesquisa Social (Brazil)
c. Tricontinental Research Services (India)
d. Tricontinental South Africa
25. University of the West Indies Open Campus (Roseau, Dominica)
26. Uralungal Labour Contract Cooperative Society Research Institute (Vadakara, Kerala)