लैटिन अमेरिका का वर्तमान परिदृश्य: हेक्टर बेजर के साथ बातचीत
डोसियर संख्या 49
महामारी के बीच, 30 देशों से 27 संगठनों के 162 कलाकारों ने साम्राज्यवाद विरोधी पोस्टर प्रदर्शनियों में भाग लिया था। इन कलाकारों ने हमारे समय को परिभाषित करने वाली चार अवधारणाओं (पूंजीवाद, नव-उदारवाद, साम्राज्यवाद और हाइब्रिड युद्ध) पर पोस्टर बनाए। यह एक प्रायोगिक प्रक्रिया थी, जिसे ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान और इंटरनेशनल वीक ऑफ एंटी-इंपीरियलिस्ट स्ट्रगल ने संयुक्त रूप से आयोजित किया था। इस डोसियर में हमने अमेरिका के कलाकारों द्वारा बनाए गए पोस्टरों को शामिल किया है।
महामारी के बीच, 30 देशों से 27 संगठनों के 162 कलाकारों ने साम्राज्यवाद विरोधी पोस्टर प्रदर्शनियों में भाग लिया था। इन कलाकारों ने हमारे समय को परिभाषित करने वाली चार अवधारणाओं (पूंजीवाद, नव-उदारवाद, साम्राज्यवाद और हाइब्रिड युद्ध) पर पोस्टर बनाए। यह एक प्रायोगिक प्रक्रिया थी, जिसे ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान और इंटरनेशनल वीक ऑफ एंटी-इंपीरियलिस्ट स्ट्रगल ने संयुक्त रूप से आयोजित किया था। इस डोसियर में हमने अमेरिका के कलाकारों द्वारा बनाए गए पोस्टरों को शामिल किया है।
भूमिका
चिली (1973), पेरू (1992), होंडुरास (2009), और बोलीविया (2019) के जिन तख़्तापलटों की अकसर मिसाल दी जाती है – वे अब काफ़ी हद तक पलटे जा चुके हैं। ये चारों तख़्तापलट सेना और संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार के समर्थन में धुर दक्षिणपंथी राजनीतिक ताक़तों द्वारा किए गए थे। चिली के राष्ट्रपति गेब्रियल बोरिक, होंडुरास की राष्ट्रपति ज़िओमारा कास्त्रो, बोलीविया के राष्ट्रपति लुइस आर्स और पेरू के पूर्व राष्ट्रपति पेड्रो कैस्टिलो की गिनती उन राष्ट्र प्रमुखों में होती है, जो वामपंथी राजनीतिक ताक़तों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन सभी ने संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार द्वारा समर्थित फ़ासीवादी राजनीतिक ताक़तों के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा था। वाशिंगटन की यह इच्छा थी कि फ़ासीवादी ताक़तें सत्ता में आएँ और अपना एजेंडा आगे बढ़ाएँ ताकि पूरे लैटिन अमेरिका में वामपंथियों को रोका जा सके। लेकिन इन नेताओं ने अमेरिका के मंसूबे पूरे नहीं होने दिए। मज़दूरों और किसानों के व्यापक गठबंधन, शहरी ग़रीबों की ख़राब होती हालत और सिकुड़ते मध्यवर्ग ने उनकी जीत की परिस्थितियाँ तैयार कीं। इनके चुनाव अभियानों में बोलीविया के पहाड़ी इलाक़ों से लेकर होंडुरास के कैरेबियाई इलाक़ों में लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए।
नवउदारवाद की भयावहता
1973 में जनरल ऑगस्टो पिनोशे द्वारा राष्ट्रपति सल्वाडोर अलेंदे की समाजवादी परियोजना को उखाड़ फेंकने के बाद से चिली नवउदारवादी नीति की प्रयोगशाला बन गया। पिनोशे ने अमेरिका स्थित बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बेहतरीन सौदे दिलवाने के लिए और चिली के कुलीन वर्ग को टैक्स भरने से छूट देने के लिए और अति आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं व कार्यक्रमों (जैसे पेन्शन आदि) का निजीकरण करने के लिए शिकागो बॉयज़ के नाम से विख्यात मुक्त-बाज़ार समर्थक अर्थशास्त्रियों के समूह की सहायता ली। संगठित श्रम और समाजवादी क्षेत्रों के ख़िलाफ़ दमन और तांबे की ऊँची क़ीमतों के कारण ही पिनोशे का शासन 1990 तक चला सका। 1990 के बाद लोकतंत्र की बहाली उदारवादियों के बीच एक समझौते -कंसर्टेसियन- के आधार पर हो सकी, जिसकी शर्त थी कि नवउदारवादी परियोजना को ख़त्म नहीं किया जाएगा, बल्कि केवल सेना को बैरकों में वापस भेज दिया जाएगा।
पिनोशे शासन की नीतियों के प्रति उदारवादियों का आत्मसमर्पण केवल चिली में होने वाली घटना नहीं थी। 1980 के दशक में तीसरी दुनिया के ऋण संकट और 1991 में यूएसएसआर के पतन ने किसी भी नयी समाजवादी परियोजना को प्रस्तावित करने की वामपंथी ताक़तों की क्षमता को भी दबा दिया था। यही कारण था कि इस अवधि में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) लैटिन अमेरिकी राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी बन गया, जिसने उन समाजों पर नवउदारवादी नीतियों को थोपा, जो सार्वजनिक क्षेत्र में कटौती को सहन नहीं कर सकते थे। जब 1990 के दशक की शुरुआत में आईएमएफ़ ने पेरू में कटौतियाँ लागू करने की माँग की, तो दक्षिणपंथी राष्ट्रपति अल्बर्टो फुजीमोरी ने कांग्रेस और न्यायपालिका को भंग कर के ग़ैरक़ानूनी रूप से असाधारण शक्तियाँ ग्रहण कर लीं (जिसे आत्म-तख़्तापलट के रूप में जाना जाता है)। इस क्षेत्र के अन्य देशों में इस तरह के तख़्तापलट की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि इन देशों में उदारवादियों ने बिना किसी झिझक के आईएमएफ़ की नीतियों को स्वीकार कर लिया था। फुजीमोरी के आत्म-तख़्तापलट से कुछ महीने पहले, वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति कार्लोस एंड्रेस पेरेज़ ने ख़ास तौर पर ईंधन सब्सिडी में बड़े पैमाने पर कटौतियाँ कर आईएमएफ़ का पैकेज अपना लिया था। नवउदारवादी उपायों के इस पैकेज के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर विद्रोह हुआ। काराकाज़ो के नाम से विख्यात इस विद्रोह ने ह्यूगो शावेज़ नाम के एक युवा सैन्य अधिकारी को राजनीति में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया। युवा शावेज़ उस हिंसा से बहुत आहत थे, जो पेरेज़ शासन द्वारा जनता को आईएमएफ़ के नवउदारवादी उपायों के अनुसार अनुशासित करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे थे।
शावेज़ ने जब 1998 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया, तो वो केवल वेनेज़ुएला के लोगों के बात नहीं करते थे; उनकी आवाज़ में पेटागोनिया से लेकर मैक्सिको-अमेरिका सीमा तक के लोगों के हितों की बात होती थी। उन्होंने नवउदारवाद की निंदा की, जिसे वे सामूहिक भुखमरी की नीति मानते थे। नवउदारवाद विरोधी मंच से शावेज़ की चुनावी जीत और महाद्वीप-व्यापी एकता के लिए बोलिवेरियन नीति -जिसका नाम स्पेनिश अमेरिका के महान मुक्तिदाता साइमन बोलिवार के नाम पर रखा गया था – की उनकी समझ ने लैटिन अमेरिका और कैरिबियन क्षेत्रों में कई प्रकार की राजनीतिक ताक़तों को प्रारित किया। यह उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र के देशों ने इसके बाद के वर्षों में कितनी जल्दी वामपंथी राजनीतिक दलों को चुना: हैती (2000), अर्जेंटीना (2003), ब्राज़ील (2002), उरुग्वे (2004), बोलीविया (2005), होंडुरास (2005), इक्वाडोर (2006), निकारागुआ (2006), ग्वाटेमाला (2007), पराग्वे (2008), और अल सल्वाडोर (2009)। हालाँकि ये नई शासन-व्यवस्थाएं शावेज़ और क्यूबा की क्रांति की तरह वामपंथी नहीं थीं, फिर भी उन्होंने निश्चित रूप से नवउदारवाद से अलग नयी दिशाओं को खोलना शुरू किया था। इराक पर अमेरिका के अवैध युद्ध (2003), वैश्विक वित्तीय संकट (2007-08) और अमेरिकी वैश्विक शक्ति की सामान्य कमज़ोरी ने गुलाबी ज्वार( पिंक टाइड) के उभार के लिए अंतरराष्ट्रीय माहौल बनाया।
हाइब्रिड युद्धों का दौर
अमेरिकी वर्चस्व के कमज़ोर होने का यह मतलब नहीं था कि संयुक्त राज्य अमेरिका इन परियोजनाओं को बिना कोई चुनौती खड़ा किए उन जगहों पर विकसित होने देगा, जिन्हें वो 1823 के मुनरो सिद्धांत के बाद से अपने ‘पिछवाड़े’ की तरह मानता रहा है। पिंक टाइड के ख़िलाफ़ पहला हमला हैती में हुआ, जहाँ राष्ट्रपति जीन-बर्ट्रेंड एरिस्टाइड को 2004 में एक शातिराना तख़्तापलट द्वारा हटा दिया गया था (उन्होंने पहले 1991 में संयुक्त राज्य अमेरिका समर्थित तख़्तापलट देखा था, लेकिन 1994 में वह सत्ता में वापस लौट आए थे)। अमेरिका, फ़्रांस और कनाडा ने बाक़ायदा एरिस्टाइड का अपहरण किया और उन्हें दक्षिण अफ़्रीका भेज दिया, और उनके राजनीतिक सहयोगियों का सफ़ाया देश के अंदर के अधिकारियों ने किया।
एरिस्टाइड के ख़िलाफ़ अमेरिकी तख़्तापलट के पाँच साल बाद होंडुरास के उदारवादी राष्ट्रपति मैनुअल ज़ेलया का तख़्तापलट हुआ। उन्हें हिंसक रूप से कार्यालय से हटा दिया गया और डोमिनिकन गणराज्य भेज दिया गया। इन तख़्तापलटों के साथ-साथ ऊपर से शांतिपूर्ण दिखनेवाली लेकिन अंदर से बेहद क्रूरतापूर्ण हाइब्रिड युद्ध भी छेड़ दिया गया, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका ने लैटिन अमेरिका के दक्षिणपंथी कुलीन वर्ग के साथ मिलकर आर्थिक युद्ध, राजनयिक युद्ध, संचार युद्ध व अन्य तरीक़ों का उपयोग कर अपने विरोधियों को नुक़सान पहुँचाया।
1960 के दशक से ही क्यूबा के ख़िलाफ़ हाइब्रिड युद्ध की तकनीकें विकसित की जा चुकी थीं: 1962 में अमेरिकी राज्यों के संगठन (ओएएस) से क्यूबा को बाहर कर उसे अकेला करने का प्रयास किया गया (मेक्सिको इसके ख़िलाफ़ था); क्यूबा की अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुँचाने के लिए देश के ख़िलाफ़ नाकेबंदी की गई और प्रतिबंध लगाए गए (जो यूएसएसआर की अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के चलते टूटे); देश के कम्युनिस्ट नेतृत्व को अपमानित करने के लिए संचार युद्ध शुरू किया गया; और 1961 में बे ऑफ़ पिग्स तथा कास्त्रो की हत्या के 638 प्रयासों सहित क्यूबा के ख़िलाफ़ कई तरह के खुले आक्रमण शुरू हुए। बोलीविया, निकारागुआ, वेनेज़ुएला के ख़िलाफ़ भी इसी तरह के हाइब्रिड युद्ध शुरू किए गए तथा इनके अलावा अन्य जगहों पर वामपंथी परियोजनाओं के ख़िलाफ़ क़ानून को भी हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया जैसे 2012 में पराग्वे के राष्ट्रपति फर्नांडो लूगो, 2016 में ब्राज़ील के राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ़ के ख़िलाफ़ कदाचार का मुक़दमा चलाया गया और 2018 में ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला डा सिल्वा को जेल में डाल दिया गया। 2017 में इक्वाडोर के राष्ट्रपति लेनिन मोरेनो के आत्म-तख़्तापलट के साथ अमेरिकी बहुराष्ट्रीय तेल कंपनियों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई वापस ले ली गई और आईएमएफ़ से उधार लेने के बदले में जूलियन असांजे को ब्रिटिश अधिकारियों को सौंप दिया गया। 2017 में बने लीमा ग्रुप -जो कि अमेरिका और कनाडा की सोच का नतीजा था- का उद्देश्य है- वेनेज़ुएला के संसाधनों की चोरी और फ़र्ज़ी राष्ट्रपति जुआन गुआडो को बिठाकर वेनेज़ुएला की राजनीतिक प्रक्रिया की वैधता को ख़त्म कर वहां बोलिवेरियन क्रांति को कमज़ोर करना। अमेरिकी सरकार ने ‘मानवाधिकार’ और ‘लोकतंत्र’ के नाम पर लैटिन अमेरिकी और कैरिबियाई लोगों के ख़िलाफ़ भीषण युद्ध छेड़ रखा है।
वामपंथ की वापसी
लैटिन अमेरिका में वामपंथ कभी इकहरा नहीं रहा। 1970 और 1980 के दशक की तानाशाही से पुरानी धाराओं को बहुत नुक़सान हुआ था, जिसमें हज़ारों कार्यकर्ता और समर्थक मारे गए थे और नयी पीढ़ी के लिए वामपंथी विचार और प्रक्रिया की पूरी परंपरा खो गई थी। 1990 के दशक में जो कुछ फिर से हासिल हुआ उसके पीछे ये कारण थे: क्यूबा की क्रांति, शावेज़ का दूरदर्शी नेतृत्व और नवउदारवादी उपायों व नस्लवाद (विशेषकर गोलार्ध में स्वदेशी समुदायों के ख़िलाफ़ होने वाले नस्लवाद) के विरोध में तथा सामाजिक अधिकारों (विशेषकर महिलाओं के अधिकारों और यौन अल्पसंख्यकों के अधिकारों) के विस्तार और प्रकृति के साथ एक सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाने के पक्ष में उभरे नये सामाजिक आंदोलन। वामपंथी विचार की विभिन्न परंपराएँ विकसित हुईं, जिनके लिए वामपंथी होने के अलग-अलग मायने थे। इन्हीं परंपराओं में से एक मैक्सिको के ज़ापातिस्ता से प्रेरित होकर 1994 में उभरी थी।
शावेज़ इसलिए महत्त्वपूर्ण थे क्योंकि उन्होंने इन विभिन्न धाराओं को एक साथ लाने का काम किया और पार्टियों के माध्यम से राजनीतिक गतिविधि का समर्थन करने वाले और सामाजिक आंदोलनों के माध्यम से राजनीतिक गतिविधि का समर्थन करने वाले दो धड़ों के बीच राजनीतिक संदेह दूर कर उन्हें जोड़ा। वेनेज़ुएला और महाद्वीप में शावेज़ की जबर्दस्त राजनीतिक प्रगति के साथ-साथ इस तरह के अन्य वामपंथी सामाजिक संगठन उभरने लगे। गोलार्ध में वामपंथी ताक़तों के बीच महान एकता का शिखर 2005 में महाअमेरिका (अमेरिकाज़- जिसमें उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप के देश शामिल हैं) के चौथे शिखर सम्मेलन के दौरान मार डेल प्लाटा (अर्जेंटीना) में आया, शावेज़ ने लैटिन अमेरिकी देशों को अमेरिका समर्थित फ़्री ट्रेड एरिया इन अमेरिकाज़ (एफ़टीएए) को अस्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। इसके तुरंत बाद हुए एंटी-समिट में, शावेज़ ने बोलीविया के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार इवो मोरालेस, अर्जेंटीना के दिग्गज फ़ुटबॉल खिलाड़ी डिएगो माराडोना और क्यूबा के गायक सिल्वियो रोड्रिग्ज़ के साथ खड़े होकर वाशिंगटन कन्सेंशस की निंदा की। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ब्राज़ील, अर्जेंटीना और वेनेज़ुएला के साथ मिलकर एफ़टीएए का विरोध करने के लिए शामिल हुई, तो और रास्ते खुलने की संभावना बनी।
हालाँकि, 2010 के बाद से वस्तुओं की गिरती क़ीमतों और 2013 में शावेज़ की मृत्यु के साथ, अमेरिकी साम्राज्यवादी एजेंडे को फ़ायदा मिला। 2019 में ‘लोकतंत्र’ के नाम पर इवो मोरालेस का तख़्तापलट किया गया था, जिसे उदारवादी ताक़तों ने नस्लवादी, फ़ासीवादी कट्टरपंथियों के साथ खड़े होकर समर्थन दिया -जो कि अंतरिम राष्ट्रपति के कथानुसार ‘पैशाचिक आदिवासी रीति-रिवाजों से मुक्त बोलीविया का सपना देखते थे’। यही वो ताक़तें थीं जिन्होंने तख़्तापलट को अंजाम दिया, और जिन्हें लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए आदिवासी राष्ट्रपति से ज़्यादा ‘लोकतांत्रिक’ समझा गया। क्यूबा, निकारागुआ और वेनेज़ुएला को ‘अत्याचार के रथ’ के रूप में व्याख्यायित करके, संयुक्त राज्य अमेरिका वामपंथियों के भीतर दीवार खड़ी करने में सक्षम हुआ और उन धड़ों को अलग करने में कामयाब हो गया, जो अब इन क्रांतिकारी प्रक्रियाओं से असहज महसूस कर रहे थे या इनके साथ गठबंधन में होने के कारण दंडात्मक कार्रवाइयों का सामना कर रहे थे। इन विभाजनों को पैदा करने में हाइब्रिड युद्ध की सफलता ने कई देशों में वामपंथ की वापसी विलंबित कर दी और इसके बजाय नव फ़ासिवादियों के सत्ता में आने का रास्ता बनाया -जैसे ब्राज़ील में राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो। विभाजन बरक़रार है, चिली, कोलंबिया और पेरू की प्रगतिशील ताक़तें अमेरिकी प्रचार द्वारा प्रदान की गई शब्दावली का उपयोग कर क्यूबा, निकारागुआ और वेनेज़ुएला से ख़ुद को अलग करना चाहती हैं।
बहरहाल, दुष्कर नवउदारवादी उपायों ने वामपंथी ताक़तों के लिए फिर से संगठित होने और वापस हमला करने की गुंजाइश बनाई है। मोरालेस की पार्टी मूवमेंट फ़ॉर सोशलिज़्म बिखरी नहीं, बल्कि उसने बहादुरी के साथ तख़्तापलट के बाद आए शासन का विरोध किया, महामारी के दौरान चुनाव कराने के लिए संघर्ष किया, और 2020 में बहुमत के साथ बोलीविया में सत्ता में लौट आई। जबकि होंडुरास में वाम और वाम-उदारवादी ताक़तें 2009 के तख़्तापलट के बाद कमज़ोर हो गई थीं, 2013 और 2017 के चुनावों में कड़े संघर्ष के बावजूद -विशेषज्ञों के अनुसार व्यापक चुनावी धोखाधड़ी के कारण उनकी हार हुई। शियोमारा कास्त्रो, जो 2013 में हारे थे, को अंततः 2021 में लगभग निर्णायक जीत हासिल हुई। पेरू में, शिक्षक संघ के नेता, पेड्रो कैस्टिलो की उम्मीदवारी के पक्ष में एक कमज़ोर गठबंधन बना और वो दक्षिणपंथी उम्मीदवार कीको फुजीमोरी -1992 में आत्म-तख़्तापलट करने वाले अल्बर्टो फुजीमोरी की बेटी- से कुछ वोटों से जीत गए। बोलीविया में समाजवाद के विकास के आंदोलन की जड़ें बहुत गहरी हैं और इवो मोरालेस के चौदह साल के नेतृत्व में हासिल की गई सफलता से और मज़बूत हुई हैं, इसके बरअक्स होंडुरास और पेरू में जड़ें बहुत कम गहरी हैं। पेड्रो कैस्टिलो पहले से ही अपने आंदोलन से काफ़ी हद तक अलग रहे हैं और वो जिस एजेंडे को आगे बढ़ाने में सक्षम हुए हैं, वह निश्चित रूप से उदारवादी है।
वस्तुओं की क़ीमतें, जिनके राजस्व ने बीस साल पहले पिंक टाइड को संभव बनाया था, अब भी कम ही हैं। लेकिन अब चीन के हस्तक्षेप के कारण पूरे क्षेत्र में परिदृश्य बदल गया है। लैटिन अमेरिका में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के विस्तार में चीन की दिलचस्पी ने क्षेत्र में विकास के लिए निवेश और वित्तपोषण के नये स्रोत प्रदान किए हैं। लैटिन अमेरिका में यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि बीआरआई परियोजना वाशिंगटन की बड़े पैमाने पर बदनाम आईएमएफ़ परियोजना और नवउदारवादी कटौती के एजेंडे की काट (एंटीडोट) है। लैटिन अमेरिका में निवेश करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के पास मूल पूँजी कम है, उसके पास मुख्य रूप से चीनी निवेश के ख़िलाफ़ सिर्फ़ अपनी सैन्य और राजनयिक शक्ति है। इसलिए, लैटिन अमेरिका संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा चीन के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे शीत युद्ध में एक प्रमुख मोर्चा बन गया है। इस क्षेत्र की प्रत्येक नयी वामपंथी परियोजना में चीन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यही कारण है कि ज़िओमारा कास्त्रो ने कहा है कि उनकी शुरुआती यात्रा बीजिंग की होगी और निकारागुआ के डैनियल ओर्टेगा ने संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में चीन के वैध प्रतिनिधि के रूप में चीन के जनवादी गणराज्य को मान्यता देने का फ़ैसला किया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मेक्सिको से लेकर चिली तक, चीनी निवेश ने ताक़तों का संतुलन बदल दिया है और संभावित रूप से उन राजनीतिक समूहों को एक साथ लाने का काम करेगा, जो वैसे एक दूसरे को बर्दाश्त नहीं करते। अमेरिका चीन को एक ‘तानाशाह’ के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रहा है ताकि प्रगतिशील बहुमत के उन वर्गों को अपनी ओर किया जा सके जो पहले से ही क्यूबा और बोलीविया की क्रांतिकारी परियोजनाओं पर संदेह करना सीख चुके हैं।
2022 के अहम चुनाव में ब्राज़ील में लूला फिर से राष्ट्रपति पद पर लौटे। अमेरिका के पुराने सहयोगी, कोलंबिया, जहाँ अनुदार कुलीन वर्ग सत्ता क़ायम रखने के लिए जनता पर हिंसा बरपाता रहा है, में भी वामपंथ के लोकप्रिय उम्मीदवार गुस्तावो पेट्रो की जीत हुई। इन दोनों की जीत से लैटिन अमेरिका एक ऐसी नयी क्षेत्रीय परियोजना की स्थापना के क़रीब आ गया है, जो कि अमेरिका द्वारा संचालित आर्थिक कटौती, संसाधन चोरी और राजनीतिक अधीनता द्वारा परिभाषित नहीं होगी।
पतन की ओर अग्रसर एक साम्राज्य
लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में मौजूदा माहौल को समझने के लिए हमने, पेरू के पूर्व राष्ट्रपति पेड्रो कैस्टिलो के कैबिनेट में विदेश मंत्री रहे हेक्टर बेजर से बात की। बेजर लैटिन अमेरिकी गोलार्ध के सबसे प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों में से एक हैं, जिन्होंने अपने देश के इतिहास के बारे में और वामपंथ पर विशेष ज़ोर देते हुए हमारे समय में सामाजिक परिवर्तन की संभावनाओं के बारे में भावनात्मक ढंग से लिखा है।
1961 में, 26 साल की उम्र में, बेजर ने एक गुरिल्ला बनने का प्रशिक्षण लेने के लिए क्यूबा की यात्रा की। उसके अगले साल, उन्होंने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर, जिनमें जेवियर हेराउड, जूलियो डैगनिनो, एलेन एलियास और जुआन पाब्लो चांग शामिल थे, नेशनल लिबरेशन आर्मी (ईएलएन) का गठन किया, जिसने पेरू की संकटग्रस्त स्थिति को बदलने की माँग की। पेरू लौटने पर, उन्हें जेल में डाल दिया गया, जहाँ उन्हें सत्रह साल की जेल की सज़ा सुनाई जा सकती थी। कालजयी किताब, पेरू 1965: अपुन्टेस सोब्रे उना एक्सपीरिएंसिया गुरिल्लेरा (‘पेरू 1965: एक गुरिल्ला के अनुभवों के नोट्स), के लिए उन्हें 1969 में कासा डे लास अमेरिकाज़ पुरस्कार मिला।
सामाजिक न्याय के लिए उनकी प्रतिबद्धता और बुद्धिमत्ता का इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि 1970 में तत्कालीन राष्ट्रपति जुआन वेलास्को अल्वाराडो ने उन्हें दोषमुक्त कर भूमि सुधार के एजेंडे पर काम करने के लिए कहा। पेरू को लोकतांत्रिक बनाने के वेलास्को के प्रयास की विफलता ने बेजर तथा उनके साथियों को सेंटर ऑफ़ स्टडीज़ फ़ॉर डेवलपमेंट एंड पार्टिसिपेशन (सीईडीईपी) बनाने के लिए प्रेरित किया, जिसकी पत्रिका -सोशलिस्मो ई पार्टिसिपेसियोन (‘समाजवाद और भागीदारी’)- को बेजर 1977 से 2009 तक संपादित करते रहे। यह पत्रिका न केवल पेरू, बल्कि पूरे क्षेत्र के विकास के बारे में जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत थी। बेजर ने इस पत्रिका में प्रकाशित अपने लेखों के आधार पर कालजयी किताबें लिखीं। इन किताबों में शामिल हैं, ला रिवॉल्यूशन एन ला ट्रैम्पा (‘जंजाल में फँसी क्रांति’), 1976; ला ऑर्गेनाइज़ेशन कैम्पेसिना (‘किसान संगठन’), 1980; और मिटो ई यूटोपिया: रिलेटो अल्टरनेटिवो डेल ऑरिजेन रिपब्लिकानो डेल पेरू, (‘मिथक और आदर्शलोक: पेरू के लोकतांत्रिक मूल का वर्णन‘), 2012।
राष्ट्रपति पेड्रो कैस्टिलो के कहने पर बेजर ने उनकी सरकार में विदेश मंत्री पद संभाला। लेकिन, बेजर का कार्यकाल कुछ ही हफ़्तों में ख़त्म हो गया: 29 जुलाई 2021 से 17 अगस्त 2021। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कैस्टिलो सरकार पर पेरू के सबसे सम्मानित वामपंथी बुद्धिजीवी को सरकार से हटाने का ज़बरदस्त दबाव डाला गया।
जोस कार्लोस लेरेना रोबल्स, ला जुंटा और एएलबीए मूविमिएंटोस (पेरू) के सदस्य, ने ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से बेजर के साथ लैटिन अमेरिका और कैरिबियन क्षेत्र में वर्तमान राजनीतिक स्थितियों के बारे में बात की। तीन दिन तक चली उनकी बातचीत में इस संदर्भ में उठाए गए मुद्दों में से कुछ पर शानदार चर्चा हुई। ‘लैटिन अमेरिका का वर्तमान परिदृश्य: हेक्टर बेजर के साथ एक साक्षात्कार’ (डोज़ियर संख्या 49) में आप जो पढ़ेंगे वह उस बातचीत का एक संक्षिप्त संस्करण है।
भाग 1: लैटिन अमेरिका और अमेरिकी साम्राज्यवाद
2013 में कमांडेंट ह्यूगो शावेज़ की मृत्यु के बाद वामपंथ और जन-आंदोलनों के संदर्भ में आप लैटिन अमेरिका की संकटग्रस्त स्थिति की किस तरह व्याख्या करेंगे?
हर देश की अपनी वास्तविकता होती है; हर देश विशिष्ट है। लेकिन मैं नकारात्मक मूल्यांकन नहीं करूँगा -बल्कि उसके विपरीत बोलूँगा। अगर मैं दक्षिणपंथी होता, तो मुझे चिंता होती। पीआरडी (डोमिनिकन रिवोल्यूशनरी पार्टी) का डोमिनिकन गणराज्य पर शासन जारी है। क्यूबा की क्रांति और बोलिवेरियन क्रांति को हराया नहीं जा सका है। निकारागुआ है, जहाँ सैंडिनिस्टाज़ ने अभी-अभी चुनाव जीता है। मेक्सिको में एंड्रेस मैनुअल लोपेज़ ओब्रेडोर (एएमएलओ) राष्ट्रपति हैं। शियोमारा कास्त्रो ने हाल ही में होंडुरास में जीत हासिल की है। चिली में, एक वामपंथी उम्मीदवार गैब्रियल बोरिक जीते हैं, जो जन-आंदोलन से उभरे थे। बोलीविया में राष्ट्रपति लुइस एर्स हैं, अर्जेंटीना में राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडीज़ हैं, और बारबाडोस ने ख़ुद को हाल ही में एक गणराज्य घोषित किया है।
यदि आप इसकी तुलना 1970 के दशक की स्थिति से करें तो मुझे लगता है कि स्थिति समग्र रूप से सकारात्मक है। वह लिक्विडेशन का दौर था, वामपंथी नेताओं की व्यवस्थित हत्यायों का दौर, जो कि कुछ मायनों में आज भी कोलंबिया में जारी है, और जो हमेशा एक ख़तरा बना रहता है। लेकिन अगर आप उसकी तुलना वर्तमान स्थिति से करते हैं, तो आप पाएँगे कि वामपंथ -यानी लैटिन अमेरिका और कैरिबियन का वामपंथ- ने ज़बरदस्त प्रगति हासिल की है, और जिसे हम दक्षिणपंथ कहते हैं उसका दुनिया में बड़े पैमाने पर और सचेत रूप से राजनीतिक परित्याग हो रहा है।
दूसरी चीज़, निश्चित रूप से, आर्थिक व्यवस्था है; दुनिया अभी भी बैंकों की है। सांस्कृतिक दुनिया में, वामपंथ के पास सब कुछ है, दक्षिणपंथ के पास कुछ भी नहीं है। राजनीतिक दुनिया में, गतिरोध है। मेरा मानना है कि लैटिन अमेरिका में एक गम्भीर प्रक्रिया चल रही है, बड़े प्रदर्शन की तरह। इसलिए, जल्दबाज़ी में कोई बयान देना मुश्किल है। क्षेत्र की प्रत्येक प्रक्रिया की विशेषताओं को बारीकी से देखते हुए उनका अध्ययन करना ज़रूरी है। कुछ जगहों पर वामपंथियों को अपनी भाषा को संयत करना पड़ा है क्योंकि उसे गठबंधनों में अन्य राजनीतिक तबक़ों पर जीत हासिल करने की ज़रूरत है। उदाहरण के लिए, होंडुरास में अभी यही हुआ है। अन्य जगहों पर ऐसा नहीं है। लेकिन फिर भी, यह क्षेत्र तेज़ी से गुलाबी हो रहा है।
1959 में क्यूबा की क्रांति से लेकर 1967 में चे ग्वेरा की मृत्यु तक, लैटिन अमेरिकी वामपंथ में ग्रामीण और शहरी गुरिल्ला सेनाएँ थीं। इन गुरिल्ला समूहों के समाजवादी कार्यक्रम थे। चे की मृत्यु और, निश्चित रूप से, 1973 में सल्वाडोर अलेंदे के ख़िलाफ़ हुए तख़्तापलट के बाद एक नया दौर शुरू हुआ: तानाशाही का दौर, ऑपरेशन कोंडोर की तानाशाही, जो कि 1975 और 1983 के बीच हज़ारों कार्यकर्ताओं को ख़त्म करने की योजना थी, जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोग से क्षेत्र की सेना द्वारा अंजाम दिया गया था। उरुग्वे में टुपमारोज़, अर्जेंटीना में मोंटोनरोज़ और ब्राज़ील में शहरी गुरिल्ला और कार्लोस मारिघेला की बड़े पैमाने पर हत्याएँ हुईं। पूरी प्रक्रिया को फिर से खोजा गया, हम कह सकते हैं कि मध्यवर्ती प्रक्रियाओं वाला एक विशिष्ट वामपंथ उभरा।
यह वामपंथ स्पेन में फ़्रेंको के लोकतंत्र की दिशा में बढ़ने और मोनक्लोआ समझौतों से परिभाषित हुआ, जहाँ देश में हड़तालों को स्थगित करने के लिए वामपंथ मध्यमार्गी दलों के साथ आ गया। ब्राज़ील में फ़र्नांडो हेनरिक कार्डोसो के नेतृत्व में सैन्य तानाशाही से लोकतंत्र की दिशा में आगे बढ़ने में भी इसे देखा जा सकता है, जो कि अपने आप में एक पूरी प्रक्रिया है। यह राउल अल्फ़ोन्सिन के नेतृत्व में अर्जेंटीना के बदलाव के द्वारा परिलक्षित हुआ, जो कि पहले विफल रहा, लेकिन बाद में किर्चनर्स नेतृत्व में पेरोनिज़्म के पुनर्गठन द्वारा समाने आया। चिली में, यह एक नियंत्रित बदलाव, कॉन्सरटेसियोन के रूप में चिह्नित हुआ। यह एक ऐसा दौर था जिसमें, जैसा कि मैंने कहा, गुरिल्ला सेनाओं के हार के बाद राजनीतिक व्यवस्था में प्रवेश पाने के लिए वामपंथियों को बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी।
यह दौर अभी ख़त्म नहीं हुआ है; अभी भी चिली के कॉन्सरटेसियोन, मोनक्लोआ समझौतों, और तानाशाही से ब्राज़ील का बदलाव अहम रूप से पूरे लैटिन अमेरिका को परिभाषित करता है। यह केवल लैटिन अमेरिका का ही मामला नहीं है -उदाहरण के तौर पर दक्षिण अफ़्रीका में भी ऐसा ही है। ये ऐसी प्रक्रियाएँ हैं जो बदलाव होने पर अतीत को भूल जाने की बात करती हैं। लेकिन, जैसा कि हम जानते हैं, अतीत को कभी भुलाया नहीं जा सकता। स्पेन में भी ऐसा ही है, जहाँ स्पेनिश गृहयुद्ध और फ्रैंको के दमन की सच्चाई अभी भी छिपी हुई है; इसे उजागर करने की किसी की हिम्मत नहीं है। ब्राज़ील या उरुग्वे में कोई सत्य आयोग नहीं बना। केवल अर्जेंटीना में किर्चनर्स ने साहसी काम किया है, जिन्होंने अर्जेंटीना के तानाशाहों को जेल में डालने का साहस किया। यह एक असाधारण उदाहरण है। पिनोशे अपनी स्वाभाविक मौत मरा और उसे कॉन्सरटेसियोन द्वारा सम्मानित किया गया। लेकिन यही राजनीति है, है ना? आप क़ीमत चुकाते हैं, और मेरा मानना है कि लैटिन अमेरिकी वामपंथ वही क़ीमत चुका रहा है। मेरा मतलब यह नहीं है कि इसे क़ीमत नहीं चुकानी चाहिए, न ही मैं यह कह रहा हूँ कि यह कोई विश्वासघात है या ऐसा कुछ और है; मेरा मतलब है कि वास्तविकता उसे ऐसा करने के लिए मजबूर करती है।
कुल मिलाकर स्थिति गतिरोध की नहीं है। मेरा मानना है कि जब कोई गतिरोध की बात करता है, तो वो किसी स्थिर स्थिति की बात करता है, और मैं नहीं मानता कि ऐसा है; बल्कि, यह तो एक सी-सॉ जैसी, काफ़ी गतिशील परिस्थिति है। जिस ख़तरे को कोई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता, इन सबके बीच सबसे महत्त्वपूर्ण जोखिम यही है कि लोग सामान्य रूप से राजनीतिक व्यवस्था से घृणा करने लगते हैं और वामपंथ की पहचान राजनीतिक तंत्र से करने लगते हैं। नतीजतन, पूरे लैटिन अमेरिका में चुनाव का बहिष्कार बढ़ रहा है। होंडुरास जैसे कुछ अपवाद भी हैं, लेकिन यह असाधारण स्थिति उन परिस्थितियों के कारण है जिनसे देश गुज़रा है।[1]
लोकप्रिय खेमे के लिए इसमें क्या चुनौतियाँ और ख़तरे हैं, जो कि इन आवश्यक राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों को क्रांतिकारी दृष्टिकोण से अंजाम देना चाहता है? नयी प्रगतिशील लहर और आपके द्वारा की जाने वाली इसकी व्याख्या के संबंध में पूछ रहा हूँ, जिसमें वामपंथी ताक़तें राजनीतिक पहलुओं से ऊपर तकनीकी पहलुओं को महत्त्व दे रही हैं और कुछ हद तक लोकप्रिय तत्वों को छोड़ देती हैं, जैसा कि हमने पेरू, चिली और इक्वाडोर में देखा है। वे अंत में लोगों की भावना के साथ गतिरोध पैदा कर, दक्षिणपंथी, नवसाम्राज्यवादी और अति-नवउदारवादी विकल्प के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।
जिसे हम लोकप्रिय खेमा कहते हैं, वह हर देश में अलग-अलग तरीक़े का है। बेशक, जिसे मैं सबसे अच्छी तरह जानता हूँ वह पेरू का लोकप्रिय खेमा है, जो बोलीविया के खेमे जैसा है। एक ‘लोकप्रिय पूँजीपति वर्ग’ है। तस्करी, हर तरह की ट्रैफ़िकिंग, खनन उद्योग, वाणिज्य और माइक्रो-कॉमर्स से भारी मात्रा में धन उत्पन्न होता है जो कि लोकप्रिय खेमे में जाता है। इसके बाद, यहीं से पैदा होते हैं वो जिन्हें हम उभरते पूँजीपति, या यदि आप चाहें तो उभरते माफ़िया, कह सकते हैं क्योंकि यह सब भ्रष्टाचार से संक्रमित है। फ़िलहाल, पेरू जैसे देशों में लोकप्रिय खेमे में शामिल विभिन्न क्षेत्रों के बीच अंतर करना बहुत मुश्किल है। लोकप्रिय खेमे में अत्यधिक ग़रीब तबक़े -जिन लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है- से लेकर बहुत पैसे वाले भी शामिल हैं। लोकप्रिय पूँजीपति, यह शब्द विरोधाभासी लग सकता है, लेकिन मैं सामाजिक वास्तविकता के बारे में कुछ व्यक्त करने की कोशिश कर रहा हूँ।
मुझे नहीं लगता कि लैटिन अमेरिका में केवल एक तरह का वामपंथ है; बल्कि, कई तरह के वामपंथ हैं, इनमें वो भी शामिल हैं जिन्हें कोई जानता नहीं हैं कि वे वास्तव में वामपंथी हैं, या दक्षिणपंथी हैं, मध्यमार्गी-दक्षिणपंथी हैं या धुर-वामपंथी हैं। फिर जन-आंदोलनों का क्षेत्र है, जो ख़ुद को वामपंथी के रूप में परिभाषित नहीं करता है, लेकिन जो व्यवहार में वामपंथ की ओर है, और जो मुझे सबसे महत्त्वपूर्ण बात लगती है। दक्षिणी पेरू के एक शहर, यौरी के लोग, जिन्होंने प्रदूषणकारी तांबे और सोने के खनन उद्योग के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया है, शायद बहुत कैथोलिक, रूढ़िवादी और जो बिंदु वामपंथ के लिए महत्त्वपूर्ण हैं उन बिंदुओं पर वह दक्षिणपंथी समझ रखते हैं, लेकिन वे वामपंथ का हिस्सा हैं। क्यों? क्योंकि वे खनन प्रदूषण का विरोध करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप सैंडिनिस्मो को देखें, निकारागुआ के वामपंथ की राजनीति को देखें तो पाएँगे कि निकारागुआ यौन और प्रजनन अधिकारों के मामले में अत्यंत रूढ़िवादी है। इसलिए, मुझे लगता है कि हमें राजनीतिक मेलजोल की एक व्यापक प्रक्रिया का संचालन करना होगा। पेरू के मामले में, आम जनता वामपंथी नहीं है। वह लोकप्रिय जनता है। उनमें से निश्चित रूप से कुछ लोग वामपंथी हैं, लेकिन मैं एक रोन्डेरो (किसान ग्रामीण रक्षक और राष्ट्रपति पेड्रो कैस्टिलो के समर्थन के मुख्य आधार) को वामपंथी व्यक्ति के रूप में परिभाषित नहीं करता। जब शादी की बात आती है, तो वह बेहद रूढ़िवादी और निश्चित रूप से एक धर्मनिष्ठ कैथोलिक है। और किसी भी तरीक़े से आप उससे गर्भपात या नस्लवाद के बारे में बात नहीं कर सकते -क्योंकि दोनों तरफ़ नस्लवाद है।
पेरू के कुछ हिस्सों में एक प्रकार का लीमा विरोधी क्षेत्रवाद भी है; मुझे नहीं पता कि इसे लीमा की ओर से प्रांतों के ख़िलाफ़ नस्लवाद से जोड़ा जा सकता है या नहीं। इसलिए, ऐसी कई चीज़ें हैं जो आपस में जुड़ी हुई हैं और जिसका कभी-कभी दक्षिणपंथ फ़ायदा भी उठाता है। यदि वे बुद्धिमान होते तो इससे बहुत ज़्यादा फ़ायदा उठाते।
मुझे लगता है कि हमें इस बात का एक तटस्थ विश्लेषण करना चाहिए कि जिसे हम लोकप्रिय आंदोलन कहते हैं उसका विकास कैसे हो रहा है -कि वास्तव में लोकप्रिय आंदोलन क्या है और क्या नहीं। पेरू में पिछले कुछ सालों में देखे गए बड़े से बड़े प्रदर्शनों में भी हज़ारों लोग ऐसे रहे हैं जो लामबंद नहीं हुए हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि लीमा की जनसंख्या एक करोड़ है और मैंने अभी तक लीमा में एक लाख लोगों का प्रदर्शन नहीं देखा है।
आप दक्षिण अमेरिकी, मेसोअमेरिकन और कैरेबियन क्षेत्र के लोकप्रिय आंदोलनों के इस विश्लेषण को महाद्वीप-व्यापी परियोजना के निर्माण की संभावना से जोड़कर कैसे देखते हैं? उदाहरण के लिए, हमारे सामने सिमोन बोलिवर, जोस फ़ॉस्टिनो सांचेज़ कैरियन, ख़ुद ह्यूगो शावेज़ और हाल के संदर्भ में, कॉमरेड इवो मोरालेस की विरासतें जीवित हैं। ये सभी साम्राज्यवाद के विरोध में एक बहुराष्ट्रीय लैटिन अमेरिका की बात करते थे।[2]
मेरा मानना है कि इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए, लेकिन इसके लिए कई अलग-अलग स्तरों पर कार्रवाई की आवश्यकता होगी। एक आंदोलन के भीतर कई आंदोलन करने होंगे। उदाहरण के लिए, पेरू, बोलीविया और चिली के आयमारा लोगों के बीच मौजूदा संचार शक्तिशाली है। यह अपने आप में एक पूरी दुनिया है, जहाँ आपको केवल इतना करने की ज़रूरत है कि उसे राजनीतिक सामग्री दें, क्योंकि इस तबक़े में ज़बरदस्त आर्थिक शक्ति और एक विशाल सांस्कृतिक पहचान है। और यही स्थिति अन्य तबक़ों की भी है, हालाँकि इस हद तक नहीं। उदाहरण के लिए, आज लोकप्रिय आंदोलन इंटरनेट का उपयोग करते हैं। अमेज़न के स्वदेशी/आदिवासी लोगों के मामले में देखें, तो इसका दायरा विश्वव्यापी है। इसलिए, मुझे लगता है कि क्षेत्रीय, लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई निकायों को स्थापित करना काफ़ी आसान है क्योंकि वे पहले से ही विश्व स्तर पर मौजूद हैं। वैश्विक स्वदेशी नेटवर्क भी मौजूद हैं। संयुक्त राष्ट्र में उनकी मौजूदगी है। उनकी एक आवाज़ है।
वे अहम पदों पर भी हैं। ट्रेड यूनियन एक अन्य घटक हैं; हालाँकि ट्रेड यूनियन आंदोलन बेहद कमज़ोर हो गए हैं, फिर भी ब्राज़ील में, अर्जेंटीना में, कुछ हद तक पेरू और कोलंबिया आदि में ट्रेड यूनियन संगठन हैं। फिर प्रगतिशील सरकारें हैं, जिनमें साओ पाउलो फ़ोरम और पुएब्ला ग्रुप हैं। मुझे लगता है कि टेलीविज़न में टेलीसुर अत्यंत महत्त्वपूर्ण है; इसे सोने की तरह संजोया जाना चाहिए और विकसित किया जाना चाहिए। लैटिन अमेरिकी विचारों को विकसित करने के लिए हमारे पास एक लैटिन अमेरिकी प्रकाशन संस्थान भी होना चाहिए। ये किया जाना बाक़ी है। और फिर हमारे पास सभी आधिकारिक निकाय हैं -जैसे यूएनएएसयूआर, सीईएलएसी, आदि।[3] अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न निकाय हैं जिन्हें एक व्यापक लेकिन बहुमुखी आंदोलन बनाने के लिए एक साथ मज़बूत किया जा सकता है।
साठ और सत्तर के दशक में जब क्यूबाई क्रांति अपने शिखर पर थी, जब साम्राज्यवादी दुश्मन ख़ास विशेषताओं और ख़ास प्रारूप के साथ लड़ रहे थे, तब के गुरिल्ला संघर्ष के साथ आपके अनुभव को ध्यान में रखते हुए, मैं आपसे पूछना चाहता हूँ: आपको क्या लगता है कि आज के संदर्भ में ‘दूसरी तरफ़’ क्या हो रहा है? भले ही अमेरिकी आधिपत्य चीन की प्रगति के आगे अपनी ज़मीन खो रहा है, पर वह नुएस्ट्रा अमेरिका (‘हमारे अमेरिका’)[4] और कैरिबियन क्षेत्र में अपने पंजे लगातार गड़ा रहा है, और अब हम एक तरह का ‘युद्ध का नवउदारवाद’ देख रहे हैं जो नशीले पदार्थों की तस्करी (ड्रग ट्रैफ़िकिंग) और नशीली पदार्थों के ख़िलाफ़ जंग (वॉर ऑन ड्रग्स) के बीच झूल रहा है, और जिसका प्रमुख केंद्र कोलंबिया है।
मैं हमेशा से सोचता रहा हूँ कि दुश्मन से लड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा उन्हें जान लेना है। पेरू में वास्तव में कोई अंतरराष्ट्रीय राजनीति नहीं है और न ही वामपंथी ताक़तों की ही कोई अंतरराष्ट्रीय समझ है। वे नहीं जानते कि यूरोप में क्या हो रहा है या संयुक्त राज्य अमेरिका में क्या हो रहा है, और यह अक्षम्य है। किसी को भी पता होना चाहिए कि संयुक्त राज्य अमेरिका में क्या हो रहा है। यह एक कर्तव्य है क्योंकि साम्राज्य आपका दुश्मन है। तो ऐसा कैसे हो सकता है कि आप इससे परिचित न हों? आपको ये सब जानना चाहिए, वहाँ काम करना चाहिए, और संयुक्त राज्य अमेरिका में मौजूद महत्त्वपूर्ण सामाजिक आंदोलनों -जो कि बढ़ रहे हैं- के साथ संबंध स्थापित करना चाहिए।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपना महत्त्व खो दिया है – यह पतन की ओर अग्रसर साम्राज्य है। लैटिन अमेरिका और कैरिबियन क्षेत्र में अमेरिकी निवेश अब महत्त्वपूर्ण नहीं रह गया है। मैं कहूँगा कि आज उसके पास जो एक नाख़ून बचा है वो है उसकी सेना, जो कि अमेरिकी सेना के पराक्रम में प्रशिक्षित और दीक्षित है; वे इससे ज़्यादा कुछ नहीं हैं क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका न केवल आर्थिक संकट में डूबा हुआ है, बल्कि एक बड़े राजनीतिक संकट में भी डूबा हुआ है। अमेरिका में भी एक तरह का गतिरोध है। यथास्थिति पर सवाल उठाने वाले आंदोलन हर स्तर पर उभर रहे हैं। पुरानी डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टियाँ सामान्य रूप से कमज़ोर हो रही हैं। पेशेवर राजनीति से अमेरिकी लोगों का अलगाव हो रहा है। और इन सब से अमेरिकी साम्राज्यवाद कमज़ोर हो रहा है। और, ख़ैर, क्या हो रहा है कि हम लैटिन अमेरिकी इस स्थिति को पहचानने से इनकार कर रहे हैं और संयुक्त राज्य अमेरिका को लेकर हमारी कोई राजनीति नहीं है।
साम्राज्यवाद की पुरानी अवधारणा किसी काम की नहीं है; यह दोहराने का कोई फ़ायदा नहीं है कि संयुक्त राज्य अमेरिका साम्राज्यवादी है और आप साम्राज्यवाद विरोधी हैं। जो होना चाहिए वो यह है कि आप संयुक्त राज्य अमेरिका को समझें और यह देखने की आवश्यकता है कि आप उन समूहों को कैसे अलग कर सकते हैं जो अभी भी बहुत ख़तरनाक हैं, जो अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों और सैन्यवाद पर आधारित हैं। इसके अलावा, निश्चित रूप से, केंद्र-बिंदु अब औपचारिक अमेरिकी निवेश नहीं है, बल्कि अनौपचारिक नेटवर्क हैं, जो कि अमेरिकी हस्तक्षेप के दूसरे महत्त्वपूर्ण हिस्से हैं: मेक्सिको में ड्रग मार्केट और हथियारों की तस्करी। कोलंबिया आज भी संयुक्त राज्य का एक प्रांत बना हुआ है। यह एक आपराधिक देश है जहाँ सामाजिक नेताओं की व्यवस्थित रूप से हत्या कर दी जाती है, और निश्चित रूप से यह कोकीन का दुनिया में प्रमुख निर्यातक है।
भाग 2: पेरू
पेरू में वर्तमान में हम जिस राजनीतिक स्थिति का अनुभव कर रहे हैं, उसे आप कैसे बयान करेंगे? आपकी पुस्तक विएजा क्रॉनिका ई माल गोबिएर्नो (पुराने इतिहास और अनैतिक सरकार) में, आप कहते हैं कि आज का पेरू प्रारंभिक व भ्रामक स्वतंत्रता और फिर एक गणतंत्र के निर्माण की असफल प्रक्रिया के दो सौ सालों का परिणाम है, और यह भी कि हम माफ़िया और प्लेब्स (हाशिए की जनता) के बीच विभाजित हैं।
पेरू में, समाज और चुनावी प्रणाली के बीच अंतर किया जाना ज़रूरी है। समाज इसलिए संगठित हो रहा है क्योंकि जिन वर्गों का समाज पर वर्चस्व है, वे पेरू को लूट रहे हैं, विशेष रूप से खनन के माध्यम से, तेल के दोहन से लेकर लकड़ी के दोहन तक। जब बाहरी दुनिया की बात आती है, तो पेरू के उत्पादक तंत्र पर एकाधिकार समूहों (मोनोप्लीज़) का प्रभुत्व है। पेरू का समाज इसके विरोध में लामबंद हो रहा है क्योंकि ये एकाधिकार समूह अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए जो कुछ करते हैं वह पेरू के समाज के दैनिक और उत्पादक जीवन को अनिवार्य रूप से प्रभावित करता है। जैसे ही कोई पानी में ज़हर घोल देता है और आप उसे नहीं पी सकते, या आपको पता चलता है कि आपके बच्चों के ख़ून में सीसा है क्योंकि उनकी नाक से ख़ून आने लगता है या उन्हें मनोवैज्ञानिक समस्याएँ होने लगती हैं, तो आप विरोध करते हैं और प्रदर्शन करते हैं। यह प्रतिरोध एक ऐसे समाज के भीतर मौजूद है जो आम तौर पर बहुत निष्क्रिय है। उस अर्थ में, मैंने प्लेब्स शब्द का प्रयोग किया है, किसी अपमानजनक अर्थ में नहीं बल्कि कमोबेश किसी अवर्णनीय अवधारणा के रूप में। सामाजिक आंदोलन लामबंद करते हैं; कुछ मामलों में वे निष्क्रिय हैं और अन्य मामलों में वे अपने प्रतिरोध और विरोध में प्रभावी हैं, लेकिन वे हमेशा विलंब की स्थिति में रहते हैं। ये नेटवर्क लगातार मौजूद हैं। तो, आपके पास तीन तबक़े हैं: लूटने वाले आर्थिक समूह, कमोबेश उदासीन समाज, और इस उदासीन समाज के भीतर मौजूद नेटवर्क जो लोगों को लामबंद करते हैं।
राजनीतिक व्यवस्था इस सामाजिक व्यवस्था, जिसमें कुलीन समूहों का वर्चस्व है, के आधार पर बनी है। ये कुलीन समूह -जो बैंकों और कंपनियों जैसे आर्थिक समूहों के हितों की रक्षा सेवा करते हैं- अनिवार्य रूप से व्यवसाय के वकील और राजनेता हैं। इस प्रणाली में एक ओर अति-रूढ़िवादी समूह हैं, और दूसरी ओर, वो हैं जिन्हें वामपंथ कहा जा सकता है, जो कि अपेक्षाकृत अपरिभाष्य हैं। इस वामपंथ का नेतृत्व सबसे सक्रिय समूह करते हैं, जो दो तरह के हैं: एक तरफ़ हैं उदारवादी वामपंथी, जिन्हें मुश्किल से क्रियोल सामाजिक लोकतंत्र के एक प्रकार या कमोबेश सभ्य दक्षिणपंथ या मध्यमार्गी दक्षिणपंथ से अलग किया जा सकता है, और, दूसरी ओर हैं, (आदिवासी संस्कारों वाले) चोलो[5], प्रादेशिक, बहुत ही कठोर वामपंथी, ज़्यादा लाल वामपंथी। अपने सबसे अच्छे प्रदर्शन में भी पेरू के चुनावी वामपंथ ने 30% से अधिक समर्थन हासिल नहीं किया है, यहाँ तक कि कैस्टिलो के समय में भी ऐसा ही था।
कैस्टिलो सरकार के लिए शासन करना मुश्किल था क्योंकि उसके पास राजनीतिक संस्कृति का अभाव रहा। उसके वैश्विक ज्ञान में कमी थी, और उसके पास शासन चलाने का कम अनुभव -जिसका कोई कारण नहीं है- अब तक वो लोग शासन चलाते रहे थे जो चुनाव में हारे हैं। पेरू की वर्तमान समस्या यही है। लेकिन मैं इस विवरण को इस बात पर ध्यान दिलाए बिना समाप्त नहीं कर सकता कि कुल मिलाकर पेरू का समाज आज बहुत मामूली राजनीतिक हैसियत वाला समाज है।
1990 के दशक में नवउदारवादी कार्यक्रम के लागू होने के बाद से पेरू को भारी झटका लगा है। इसका मतलब यह हुआ कि शिक्षा में कटौती हुई, शिक्षक प्रशिक्षण में कटौती हुई, सैन्य क्षेत्रों में बहुत स्पष्ट कटौती हुई और खुला भ्रष्टाचार बढ़ा, देश में सामान्य रूप से भ्रष्टाचार बढ़ा और सरकारी तंत्र में भी भ्रष्टाचार बढ़ा। इसलिए, राज्य का प्रबंधन करने की आशा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को न केवल एक भ्रष्ट राज्य के साथ, बल्कि एक भ्रष्ट समाज के साथ काम करना पड़ेगा, ऐसा इसलिए क्योंकि जब हम भ्रष्ट राज्य के बारे में बात करते हैं, तो हम भूल जाते हैं कि भ्रष्टाचार हमेशा दोधारी होता है: एक भ्रष्ट होने वाला और एक भ्रष्ट करने वाला। तो, एक भ्रष्ट राज्य का मतलब है कि जो राज्य का प्रबंधन करते हैं वे भ्रष्ट हैं।
पेरू के व्यापार मालिकों ने बहुत समय पहले सरकार पर नियंत्रण कर लिया था। हमारे यहाँ व्यापार मालिक मंत्री रहे हैं और एक ऐसी चक्रीय व्यवस्था काम करती है जिसमें बड़े व्यवसाय के अधिकारी आज मंत्री और कल कंपनी के निदेशक बन जाते हैं। इसलिए, ‘सरकार’ शब्द का उल्लेख हम यह जोड़े बिना नहीं कर सकते हैं कि यह व्यापार द्वारा उपनिवेशित सरकार है, एक ऐसी सरकार जो उनके हितों के लिए लागातार काम करती रही है और अब भी कर रही है। इसलिए, जब पेड्रो कैस्टिलो जैसा कोई बाहरी व्यक्ति आता है, तो ज़ाहिर है कि वह इसे संभालने में सक्षम नहीं होता, क्योंकि उसे आर्थिक समूहों के कुछ 2,500 ऑपरेटरों का प्रबंधन करना पड़ा, जो मुख्य सरकारी एजेंसियों से संबद्ध थे। अगर आप मुझसे पूछें तो यही मुख्य समस्या रही है। मैं इसे एक हज़ार बार कह चुका हूँ और कैस्टिलो ने ख़ुद चुनावी अभियान के दौरान कहा था: मैं ज़ोर देकर कहता हूँ कि आगे बढ़ने का एकमात्र तरीक़ा यही है कि इस मकड़ी के जाले -जिसमें कैस्टिलो फँसे हुए रहे- को तोड़ना होगा। ज़रूरत है इस जाल को तोड़ने की और उस सुप्त लोकप्रिय नेटवर्क और क्षेत्रों तक पहुँचने और उन्हें सक्रिय करने की। लेकिन कैस्टिलो ऐसा नहीं करना चाहते थे, क्योंकि शायद उन्हें लगता था कि दक्षिणपंथी और अंतरराष्ट्रीय दक्षिणपंथ के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखने से वो सत्ता में बने रह सकते हैं।
लोकप्रिय आंदोलन उदासीन जनता के बीच काम करता है। ये जनता असल में इसलिए उदासीन है क्योंकि उसे रोज़ की गुज़र-बसर की चिंता करनी पड़ती है; वो एक-एक दिन के लिए जीती है। इन सबके बीच एक छोटा और आक्रामक दक्षिणपंथ है: जो रूढ़िवादी, असभ्य, फ़ासीवादी है। बेशक, यह संभवतः पेरू के पुराने दक्षिणपंथ का बचा हुआ आख़िरी अंश हो। पेरू बाहर के देशों द्वारा नियंत्रित देश रहा है। वैश्विक शक्ति को केवल इसके खनिजों में रुचि है, और खनिजों को निकालने के लिए आपको बहुत कम लोगों की ज़रूरत होती है। व्यापार मालिकों के दृष्टिकोण से बाक़ी सब कुछ अधिशेष है।
पेरू की हज़ारों साल पुरानी ज़बरदस्त संस्कृति है। मैं इस बात पर ज़ोर देता रहूँगा कि पेरू एक सांस्कृतिक शक्ति है, लेकिन राजनीति में बौना है, क्योंकि राजनीतिक रूप से, हम साठ साल की बेकार, नवउदारवादी सरकारों की क़ीमत चुका रहे हैं, जिन्होंने हमें एक जर्जर, संकुचित देश बनाकर छोड़ दिया है। कांग्रेस और मीडिया अविकसित हैं। पेरू के पास विज्ञान है, तकनीक है। लेकिन प्रौद्योगिकी मंत्रालय, जो कि कैस्टिलो के अभियान का एक केंद्रीय घटक था, उसका क्या हुआ? कुछ नहीं। पेरू में बेहद मूल्यवान लोग हैं, लेकिन केवल दक्षिणपंथ ही नहीं, बल्कि वामपंथ के द्वारा भी उन्हें व्यवस्थित रूप से सरकार से बाहर कर दिया जाता है। तो, हम कह सकते हैं कि यह वामपंथी सरकार है, लेकिन हम ‘वामपंथ’ शब्द की परिभाषा को बढ़ा रहे हैं। देश में एक आक्रामक दक्षिणपंथ भी है; इसके परिणामस्वरूप हमारा कोई ख़ास महत्व नहीं रह जाता।
पेरू में बहुत कुछ नष्ट हो गया है: स्कूल नष्ट हो गए हैं, शिक्षा नष्ट हो गई है, व्यवसाय नष्ट हो गए हैं। केवल खदानें और कृषि-निर्यात कंपनियाँ बची हैं। बाक़ी सब कुछ नष्ट कर दिया गया है। जिसे हम लोकप्रिय नेटवर्क कहते हैं, वह सुसुप्तावस्था में है, उनका कोई स्थायी, संस्थागत स्वरूप नहीं है। तो, इस स्थिति में, कौन-सी एक चीज़ बची है? मेरी राय में, परिवार, वो भी संकट में है। लेकिन अभी भी ऐसे विस्तृत परिवार हैं जो कार्य कर रहे हैं, जो लीमा और पेरू की सीमाओं से भी आगे तक फैले हैं और प्रांतों को राजधानी और बाक़ी दुनिया से जोड़ते हैं। पारिवारिक नेटवर्क इसलिए बनते हैं क्योंकि वे भरोसे पर आधारित होते हैं। पेरू इन नेटवर्कों से बना है, जिनका स्वरूप माफ़िया जैसा है। मैं माफ़िया को नकारात्मक अर्थ नहीं देता -मैं इस शब्द का उपयोग तर्क, सामाजिक स्थिति की तर्कसंगतता को समझाने के लिए कर रहा हूँ। ये नेटवर्क उदारवादी राज्य से अलग हैं।
उदारवादी राज्य की पहचान निजी संपत्ति और सार्वजनिक संपत्ति के बीच के अंतर से होती है। लेकिन परिवार का संगठन निजी संपत्ति और सार्वजनिक संपत्ति के बीच अंतर नहीं करता है, और यह सार्वजनिक संपत्ति का अतिक्रमण करता है। ग़रीब परिवार और अमीर परिवार दोनों सार्वजनिक संपत्ति का अतिक्रमण करते हैं। अमीर परिवार सरकार में घुसते हैं और अपने फ़ायदे के लिए इसका प्रबंधन करते हैं; ग़रीब परिवार सड़कों और गलियों में जहाँ भी अतिक्रमण कर सकते हैं करते हैं। वे चौक पर, मुहल्लों में, हर जगह घुस जाते हैं। कोई सीमा नहीं हैं। तो, अंत में, इसे ही हम भ्रष्टाचार कहते हैं। वर्तमान प्रारूप में यह पेरू के सरकार की बुनियाद है। पेरू में सार्वजनिक और निजी में कोई फ़र्क़ नहीं है; वह भेद निश्चित रूप से कई तरह से मिटा हुआ है।
राष्ट्रपति कैस्टिलो इसका एक और उदाहरण थे, जब वे अपनी पत्नी, अपने भतीजे, अपने गाँव के लोगों को ले आए , क्योंकि वो उन पर भरोसा करते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा करके कुछ असाधारण नहीं किया। पूर्व राष्ट्रपति एलेजांद्रो टोलेडो (2001-06) ने और पूर्व राष्ट्रपति एलन गार्सिया ने (1985-90, 2006-11) ने भी ऐसा किया था, फ़र्क़ बस इतना था कि वे श्वेत थे या (टोलेडो के मामले में) चोलो थे। और पूर्व राष्ट्रपति फ़र्नांडो बेलॉन्डे (1963-68, 1980-85) का क्या? बेलॉन्डे की सरकार में बेलॉन्डेस क़बीले के लोगों की संख्या देखें, जो अभी भी सरकार में काम कर रहे हैं। कैस्टिलो जनता को इसलिए आकर्षित कर पा रहे थे, क्योंकि लोग कैस्टिलो से उसकी माँग कर रहे थे, जो उन्होंने पिछली सरकारों से नहीं माँगा था।
एनीबल क्विजानो ने जिसे उपनिवेशवादिता कहा है, वह वास्तव में औपनिवेशिक मानसिकता, उपनिवेशवादी मानसिकता है, मुझे लगता है कि हम उसे बड़े पैमाने पर साझा करते हैं।[6] जब हम उपनिवेशवादी मानसिकता की बात करते हैं तो हम उस मानसिकता की बात कर रहे होते हैं जो स्पेन पर हमारी निर्भरता से उपजी है। हम इसका आरोप उन लोगों पर नहीं लगा सकते जिनके हाथ में पेरू की सत्ता है; बल्कि, मेरा मानना है कि यह उपनिवेशवादी मानसिकता पेरू के समाज के एक बड़े हिस्से पर हावी है। यह भी उन वास्तविकताओं में से एक है जिसे हम स्वीकार करने से इनकार करते हैं।
पेरू एक ऐसा देश है जिसका शासक वर्ग अत्यंत रूढ़िवादी रहा है; वे इस हद तक हिस्पैनिकवादी रहे हैं जितना कि स्पेन फ़ासीवादी था, लेकिन स्पेन के गृहयुद्ध के दौरान, जब स्पेन एक गणतंत्र था, उन्होंने हिस्पैनिक-विरोधी होने में संकोच नहीं किया था। हिस्पैनवाद या एंटी-हिस्पैनवाद की एक प्रभावी वर्ग चेतना भी है, और जो बाद में इंग्लैंड और फिर संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों में स्थानांतरित हो गई थी।[7] आज, पेरू की आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियाँ और गतिविधियाँ बहुत तरह से उपनिवेशवादी मानसिकता से जुड़ी हैं। उदाहरण के तौर पर, यह उन लोगों से जुड़ी है जो आपको बताते हैं कि हम निवेशकों के बिना नहीं रह सकते। जब वे निवेशकों के बारे में बात करते हैं, तो वे पेरू के निवेश के बारे में बात नहीं करते, क्योंकि पेरू में प्रमुख निवेशक प्रवासी हैं; पेरू के प्रवासी निवेशक हैं -जो विदेशों में हैं, जो पेरू के परिवारों को सीधे तौर पर सालाना लगभग पाँच अरब डॉलर का योगदान दे रहे हैं। अन्य निवेशक हैं पेरू के लघु उद्यमी। और फिर भी, जब वे निवेश के बारे में बात करते हैं, तो वे केवल खनन कंपनियों के बारे में बात करते हैं, जो कि पेरू की अर्थव्यवस्था में सबसे कम योगदान करती हैं। इसे साबित किया जा सकता है, ख़ासकर तब जब हम टैक्स पोर्टफ़ोलियो के बारे में बात करें।
यहीं पर उपनिवेशवादी मानसिकता काम करती है, लेकिन यह उसका केवल एक ही पहलू है। यह अवधारणा कई अन्य क्षेत्रों तक फैली हुई है और इस तथ्य से जुड़ी है कि हमें औपनिवेशिक मानसिकता से औपनिवेशिक नस्लवाद विरासत में मिला है; कहने का तात्पर्य यह है कि अब हम श्वेत पूँजीपति वर्ग और चोलो पूँजीपति वर्ग के बीच अंतर कर रहे हैं। एक श्वेत या श्वेत हो चुका पूँजीपति है जो पेरू में श्वेत शक्ति को संचालित करता है, जिसके मुक़ाबले में है एक चोलो बुर्जुआ, जो एक ऐसे रंग का है जो श्वेत नहीं है। यह कहने में थोड़ा व्यंग्यात्मक और अप्रिय लग सकता है, लेकिन ऐसा हो रहा है। बहुत-सी चीज़ें ऐसी हैं जो रेस्तराँ में, शहरों के कामकाज में दिख रही हैं; उदाहरण के लिए, शिक्षा और स्वास्थ्य में हमारी बहुत स्पष्ट नस्लीय और जातिवादी ग़ैर-बराबरियाँ हैं। भले ही चोलो बुर्जुआ बहुत पैसे और शायद श्वेत पूँजीपति वर्ग की तुलना में अधिक पैसा के साथ उभर रहा है, लेकिन वो पेरू की राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक और मीडिया प्रणाली के भीतर प्रवेश करने में कामयाब नहीं हुआ है, जहाँ अब भी पुराने उपनिवेशवादी तौर तरीक़े लागू होते हैं।
अपनी पुस्तक में, आपने वेलास्को अल्वाराडो की सरकार (1968-75)[8] का ज़िक़्र किया है। पिछली सरकारों से जोड़कर इस विशिष्ट और विशेष समय को हम कैसे समझ सकते हैं? (वेलास्को सरकार के दौरान हुए पहले सुधार के बाद) अब जब हम दूसरे कृषि सुधार की माँग कर रहे हैं, तो अब हम जो अनुभव कर रहे हैं, उससे इसका क्या संबंध है?
वेलास्को के शासन के दौरान, सभी ग्रह-नक्षत्र सही जगह पर थे: 1960 के दशक के अंत में लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के आर्थिक आयोग (ईसीएलएसी) पर लैटिन अमेरिका की निर्भरता का सिद्धांत और जो कुछ भी हम उस सिद्धांत के बारे में जानते हैं; द्वितीय वेटिकन परिषद (1962-65); संयुक्त राज्य अमेरिका में 1950-60 के दशक से शुरू हुई नागरिक अधिकार क्रांतियाँ; संपूर्ण यूरोपीय चर्चा जिसकी परिणति 1968 की विश्वविद्यालय क्रांतियों में हुई; आदि। उस समय पूँजीवाद पर पूरी तरह से सवाल खड़ा हो गया था, जो अब कोई नहीं करता। इन सभी संदर्भों ने पूँजीवाद पर ही सवाल उठा दिया था और मुझे लगता है कि सशस्त्र बलों पर इसका निर्णायक प्रभाव पड़ा था। यह एक असाधारण समय था, केवल पेरू में ही नहीं: अर्जेंटीना में दूसरी पेरोन सरकार, चिली में एलेन्डे, बोलीविया में जुआन जोस टोरेस, डोमिनिकन गणराज्य में अरमांडो तामायो तथा जुआन बॉश के शासनकाल में अलग-अलग तरीक़ों से ऐसा ही अनुभव किया गया था। निकारागुआ में क्रांति का पहला प्रयास किया गया। उससे पहले क्यूबा की क्रांति हो ही चुकी थी। संक्षेप में कहें, तो इन सभी संदर्भों ने, और पेरू में लोकप्रिय किसान संघर्ष ने वेलास्को के उन सात सालों का निर्माण किया था। हालाँकि वे साल ख़त्म हो गए, फिर भी दो सौ साल के इतिहास में स्पष्ट रूप से अपवाद ही थे। यह एक ऐसी प्रक्रिया थी जिसे वामपंथी समझ नहीं सके। सैन्यवाद का विरोध तेज़ था। कौन विश्वास कर सकता था कि सेना जनता के हाथ में सत्ता सौंपने वाली थी? यह आश्चर्य की बात थी। कौन विश्वास कर सकता था कि सेना क्रांति करना चाहती थी? बहुत कम लोग।
1930 के दशक के बाद से और जोस कार्लोस मारियातेगी से भी पहले, पेरू के वामपंथ में हमेशा एक कठिन सह-अस्तित्व रहा, यह सह-अस्तित्व वास्तविकता के एक चरमपंथी दृष्टिकोण और वास्तविकता को संयमित दृष्टिकोण के बीच रहा है।[9] 1970 के दशक में वेलास्को शासन के दौरान भी यह स्थिति बनी रही; जिसके कारण वेलास्को के पक्ष में और उनके ख़िलाफ़ दो दृष्टिकोण बन गए और 1969 में स्थापित सेंडेरो लुमिनोसो (चमकता रास्ता) के उद्भव के साथ उनकी सरकार के अंतिम वर्षों में एक संकट शुरू हो गया। वर्तमान के वामपंथ को इस मुद्दे में, या ऐतिहासिक दस्तावेज़ों और इतिहास का अध्ययन करने में कोई रूचि नहीं है और इस मुद्दे पर बहस छेड़ने की इच्छा में कमी के चलते इसे दफ़न करना ज़्यादा पसंद किया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उसे पता है कि वह दक्षिणपंथ के मुक़ाबले नुक़सान में है, जो किसी भी समय यह कह कर कि सेंडेरो लुमिनोसो वामपंथी परियोजना थी इसका अधिकतम लाभ उठा सकता है, जैसा कि वे अब कह रहे हैं कि वामपंथ समग्र रूप में आतंकवादी है। इसलिए, यह एक जटिल समस्या है जो अभी भी विद्यमान है।
इस मुद्दे का एक हिस्सा दूसरे पक्ष का विश्लेषण भी है कि विरोधी धड़े में -सेना के धड़े में- क्या हुआ। यह पेरू से जुड़ा है जो कि अपने अतीत की जाँच करने से इनकार कर रहा है, उन रूढ़िवादी परिवारों की तरह जो अपने परिवार के अपराधों को क़ालीन के नीचे दबा देते हैं, क्योंकि अंत में, सेंडेरो लुमिनोसो द्वारा किए गए अपराध और सेना द्वारा किए गए अपराध दोनों एक ही देश का हिस्सा हैं। इस प्रसंग का नेतृत्व करने वाले दोनों पक्षों को अपना रहे थे: सेंडेरो लुमिनोसो के कुछ सदस्य सैनिक बन गए थे और ऐसे सैनिक भी थे जो सेंडेरो लुमिनोसो के सदस्य बन गए थे। सेंडेरो लुमिनोसो ने सेना में घुसपैठ की, और सेना की ख़ुफ़िया दस्ते ने सेंडेरो लुमिनोसो में घुसपैठ की। किस हद तक? हम नहीं जानते, इसलिए क्योंकि हमने इस मुद्दे पर वास्तविक चर्चा करने से इनकार कर दिया है। मेरा तर्क है कि अगर हम वास्तव में पेरू में आतंकवाद की भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक जड़ों की जाँच करने में रुचि रखते हैं, तो इसे सेंडेरो लुमिनोसो तथा पेरू के सशस्त्र बलों दोनों पर लागू करना चाहिए और इसके साथ ही पेरू के पूरे समाज पर भी। हम इस तथ्य को भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं कि सेंडेरो लुमिनोसो के तरीक़ों का इस्तेमाल पेरू समाज के अन्य समूहों द्वारा हिसाब बराबर करने के लिए भी किया गया। क्रांतिकारी गुरिल्ला समूह टुपैक अमारू रिवोल्यूशनरी मूवमेंट (एमआरटीए) और सेंडेरो लुमिनोसो की अधिकतर कार्रवाइयाँ -या जो एमआरटीए या सेंडेरो लुमिनोसो की कार्रवाई प्रतीत होती थी- न तो एमआरटीए और न ही सेंडेरो लुमिनोसो के द्वारा की गई थीं। वे अन्य समूहों द्वारा अंजाम दी गई थीं जिन्होंने आपस में हिसाब बराबर किया और लोगों की हत्या की तथा उनकी लाश पर एक हथौड़ा और दरांती लगा दिया। हमने इसका कोई विस्तृत, वस्तुनिष्ठ ऐतिहासिक विश्लेषण भी नहीं किया है, और ऐसा इसलिए है क्योंकि हम ऐसा करना नहीं चाहते हैं।
मैं नहीं मानता कि वामपंथ ने सशस्त्र संघर्ष के दौर से इनकार किया; मुझे लगता है कि उसे बस नयी परिस्थितियों के अनुकूल होने के लिए मजबूर किया गया। और हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि सशस्त्र संघर्ष का पतन हो गया था। उदाहरण के लिए, यदि हम चे की मृत्यु के बाद अर्जेंटीना में गुरिल्ला अनुभव को संक्षेप में देखें, तो हमें मोंटोनेरोस का बहुत ही विवादास्पद अनुभव मिलेगा, जिसका अंत रक्तपात के साथ हुआ। मैं इसके बारे में और नहीं बोलना चाहता क्योंकि यह एक बहुत ही जटिल मुद्दा है जिसे समझने के लिए अधिक दस्तावेज़ों की ज़रूरत है। मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि एक गतिरोध था, और उस गतिरोध के दौरान उससे बाहर निकलने का शायद राउल अल्फोन्सिन के नेतृत्व के अलावा वामपंथियों के पास कोई और लोकतांत्रिक रास्ता नहीं था। ऐसा ही कुछ उरुग्वे में हुआ। इसलिए, मुझे लगता है कि राजनीतिक परिस्थितियों और लैटिन अमेरिका की स्थिति ने वामपंथियों को ख़ुद को पुनर्गठित करने के लिए मजबूर किया। ज़ाहिर है, यह सब कुछ बिना कोई क़ीमत चुकाए नहीं होता। पेरू में, इसकी क़ीमत थी सेंडेरो लुमिनोसो, और जिसे हमने एक आंतरिक सशस्त्र संघर्ष के रूप में ग़लत तरीक़े से रेखांकित किया, जो वास्तव में एक आंतरिक युद्ध था, जिसमें वामपंथ का एक हिस्सा उलझा हुआ था।
भाग 3: विचार
संस्कृति और विचारों की लड़ाई में पेरू और महाद्वीप के वामपंथ की प्रतिबद्धता को आप कैसे देखते हैं? उदाहरण के लिए, इस पर क्यूबा में ज़ोर दिया गया है, जहाँ कलात्मक समुदाय के क्षेत्रों ने क्यूबा क्रांति पर सवाल उठाया है।
दो बुनियादी विचार हैं। एक है अधिकारों का विस्तार, जिससे हमारा तात्पर्य मानवाधिकारों से है। अगर हम कहते हैं कि हम एक ऐसा लोकतंत्र चाहते हैं जो बैंकों द्वारा शासित न हो और सशस्त्र बलों द्वारा संरक्षित लोकतंत्र से अलग हो, तो हम एक ऐसे लोकतंत्र की बात कर रहे होते हैं जिसमें नागरिकता का पुराना उदारवादी विचार पूरा होगा। अधिकार स्थिर नहीं होते; वे गतिशील होते हैं, वे बढ़ते हैं, उन्हें समय के साथ नवीनीकृत किया जाता है, और इसलिए वे फैलते हैं। राजनीतिक प्रगति वास्तव में अधिकारों के विस्तार का परिणाम होती है। यह पहला विचार है, और दूसरा विचार यह है कि हमें पीछे नहीं जाना चाहिए। लेकिन, दुनिया साफ़ तौर पर पीछे की ओर जा रही है, और कई मामलों में, जैसे कि उदाहरण के लिए, श्रम अधिकारों के मामले में दुनिया पीछे जा रही है। इसके अलावा, अधिकारों को केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामूहिक रूप में देखा जाना चाहिए।
पेरू एक सांस्कृतिक शक्ति है; इसकी संस्कृति बहुत प्राचीन संस्कृति है, जो आज भी काफ़ी हद तक क़ायम है, और जिसे पुनर्जीवित भी किया गया है। यह शक्ति सामूहिक जीवन के कई रूपों से जुड़ी हुई है। वामपंथी ताक़तों ने संस्कृति के केवल एक अभिजात्य विचार को छोड़कर सामूहिक जीवन के इन रूपों से जुड़ने और पेरू के लोगों की विविध सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों और उनकी प्रगति को समझने की अच्छी कोशिश की है। एक विचार है कि सुसंस्कृत लोग वे हैं जो किताबें पढ़ते हैं, उपन्यास लिखते हैं, या वे जो नृत्य करते हैं या गाते हैं या संगीत बनाते हैं -लेकिन सिर्फ़ वही संस्कृति नहीं है। संस्कृति के ऐसे रूप भी हैं जो रोज़मर्रा के सामूहिक जीवन से जुड़े हैं। यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अवधारणा है, जिसे सौभाग्य से वामपंथियों ने हाल के समय में अपनाया और समझा है।
संयुक्त राज्य अमेरिका एक ऐसा देश है जो एक निश्चित प्रकार के विचारों के निर्माता की भूमिका निभाता है। उन संस्थानों के माध्यम से जो मोंट पेलेरिन सोसाइटी ऑफ़ नियोलिबरल्स के सदस्य, मारियो वर्गास लोसा जैसे लोगों को फ़ंड देती हैं, लेखकों और बुद्धिजीवियों को अनुदान और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। ये संस्थान नये प्रकार के सामाजिक विज्ञान का भी निर्माण करती हैं। यह सांस्कृतिक संघर्ष का हिस्सा है।
जैसा आपने कहा, क्यूबा की क्रांति में यह ताक़त थी और अब भी है, लेकिन इस सांस्कृतिक संघर्ष में यह लगभग स्वाभाविक है कि असंतोष होगा ही, और एक क्रांतिकारी प्रक्रिया के लिए मुश्किल बात यह है कि आप असंतोष को कैसे संभालते हैं। आप इसे कैसे संभालते हैं? संस्कृति एक फूल है, जैसा कि माओ ने कहा था, तो सभी फूलों को खिलने दो; यही मूल रूप से किया जाना चाहिए। जिन देशों की घेराबंदी की गई है, या नाकेबंदी की गई है, जैसे क्यूबा, वहाँ सीमाएँ हैं। आप जिस सामाजिक व्यवस्था में रहते हैं यदि आप उस पर सवाल उठाने लगते हैं, तो आप स्वयं क्रांति द्वारा बनाई गई सीमाओं के ख़िलाफ़ खड़े हो जाते हैं। हमारे देशों में, इस बुर्जुआ, पूँजीवादी लोकतंत्र की भी वो सीमाएँ हैं, है ना? सभी देशों में सीमाएँ होती हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि मुझे विचार की संपूर्ण स्वतंत्रता पसंद है।
आप स्पेन में वोक्स के उद्भव और इस फ़ासीवादी लहर, जो शायद यूरोप में लैटिन अमेरिका की तुलना में अधिक मज़बूत है, को बढ़ावा देने के लिए जन और लोकप्रिय संस्कृति के विभिन्न उपकरणों और यंत्रों के उपयोग का मूल्यांकन कैसे करेंगे?
मुझे लगता है कि यूरोप में और लैटिन अमेरिका में भी दक्षिणपंथ के दो पहलू हैं: अपनी ‘महानता’ के बारे में इसका पूर्वव्यापी दृष्टिकोण और वर्तमान का भय। ‘महानता’ की ओर यह वापसी एक प्रतिक्रियावादी दृष्टि है। हंगरी के विक्टर ओरबान महान मग्यार साम्राज्य के बारे में बात करते हैं। थैचर इन विचारों की अग्रदूत थीं; वो ब्रिटिश साम्राज्य की महानता के दिनों में लौटना चाहती थीं। ट्रम्प उस महान अमेरिका की बात करते हैं जो कभी था ही नहीं। स्पेन का दक्षिणपंथ हिस्पैनोस्फेरा, हिस्पैनिदाद की बात करता है। इन सब के पीछे एक उपनिवेशवादी दृष्टिकोण है। इसका दूसरा पक्ष है विदेशियों का भय, विशेष रूप से यूरोपीय लोगों के मामले में: इस्लामियों का भय, मुसलमानों का भय, इस्लाम का भय, प्रवासियों का भय। यही सब संयुक्त राज्य अमेरिका और स्पेन में भी काम कर रहा है। स्पेन का धुर-दक्षिणपंथ सोचता है कि वह श्वेत है और गहरे रंग की चमड़ी वालों, और मूरिश लोगों के प्रति अपनी घृणा उजागर करता है। फ़्रांस का नया आंदोलन पुनर्जागरण की बात करता है। साम्राज्यवादी पोलैंड के पोल्स भी कोई अपवाद नहीं हैं; एक पोलिश साम्राज्य था जो बहुत कम समय तक चला, लेकिन वह अभी भी रूसियों के प्रति अविश्वास और आक्रोश भड़काता है। मैं यूरोपीय और लैटिन अमेरिकी धुर-दक्षिणपंथ के आधार को बेहतर ढंग से समझने के लिए इतिहास का अध्ययन कर रहा हूँ क्योंकि वो भी हर बात में इतिहास ले आते हैं। यह सबसे पहले एक ऐतिहासिक बहस है।
वेनेज़ुएला और बोलीविया में, यह कहा जा सकता है कि अकादमिक और बौद्धिक ढाँचे से अलग लोकप्रिय प्रक्रिया और क्रांतिकारी प्रक्रिया क्या है और क्या नहीं है इसके बारे में बुद्धिजीवियों ने बहुत कम समझ दिखाई है। यहाँ तक कि बोलीविया में हाल के मामले में भी, वे जानबूझकर या अनजाने में, या यूँ कहें कि स्वेच्छा से या अनैच्छिक रूप से, अमेरिकी साम्राज्यवाद द्वारा बढ़ावा दी गई और स्थानीय कुलीन वर्गों द्वारा अंजाम दी गई तख़्तापलट की रणनीतियों को अस्थिर करने के लिए झुक गए हैं। लैटिन अमेरिका में बुद्धिजीवियों की भूमिका के बारे में आपका विश्लेषण और आकलन क्या है?
मैं कहूँगा कि दक्षिणपंथ बौद्धिक रूप से बहुत ग़रीब है। हर जगह दक्षिणपंथी बुद्धिजीवियों की कमी है, लेकिन पेरू में यह बहुत ज़्यादा विशिष्ट है। आप इसकी तुलना उस समय से नहीं कर सकते जब आपके पास जॉर्ज बसद्रे थे; राउल पोरस, जो स्पष्ट रूप से एक हिस्पैनिकवादी थे, लेकिन एक बुद्धिजीवी थे; विक्टर एंड्रेस बेलांडे थे, जो पूरी तरह से प्रतिक्रियावादी थे, लेकिन वे एक बुद्धिजीवी थे जिनकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि बहुत व्यापक थी। आज, आपको पेरू में रूढ़िवादी बुद्धिजीवियों के संदर्भ में कुछ भी नहीं मिलता है।
मुझे लगता है कि जो हमें दिखता है वो है बुद्धिजीवियों में एक तरह की असुरक्षा, स्पष्टता की कमी। मेरा तर्क है कि यह दो तत्त्वों से प्रेरित है। सबसे पहले, मुझे नहीं लगता कि कोई भी बुद्धिजीवी ग़लती करना पसंद करता है, इसलिए वे जोखिम लेने से हिचकते हैं और वे सामाजिक प्रक्रियाओं के विकास के बारे में बहुत असुरक्षित होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो, परिवर्तन की एक प्रक्रिया शुरू होती है, और वे मानते हैं -उन्हें डर लगता है- कि यह प्रक्रिया विफल हो जाएगी या तानाशाही बन जाएगी। बेशक, यह उनकी छवि को कमज़ोर करता है जो कि उन्हें बहुत प्रिय होती है और जिसे वे बनाए रखने का इरादा रखते हैं। किसी भी बुद्धिजीवी का अपने पाठकों/दर्शकों/श्रोताओं के साथ संबंध उनके लिए बहुत क़ीमती होता है, इसलिए वे जोखिम नहीं लेते या तो लेना नहीं चाहते, या उससे डरते हैं। और इसका मतलब है कि उनकी बहुत भयाक्रांत दृष्टि होती है और वे प्रक्रियाओं की समझ भी खो देते हैं। वे आमतौर पर प्रक्रियाओं से तब अवगत होते हैं जब वे पहले ही घट चुकी होती हैं; वे उन्हें पहले से नहीं देख पाते, और ऐसा इसलिए नहीं होता क्योंकि उनके पास ऐसा करने की क्षमता नहीं होती, बल्कि शायद इसलिए क्योंकि वे ऐसा करना नहीं चाहते। दूसरे, सभी बुद्धिजीवी फ़ंड पर निर्भर होते हैं। हम सभी जानते हैं कि बौद्धिक ज्ञान के उत्पादन और वैज्ञानिक ज्ञान के उत्पादन के लिए वर्तमान वैश्विक फ़ंडिंग नेटवर्क, वैश्विक शक्ति और एकाधिकार हितों पर निर्भर है। इसलिए, यदि आप एक ऐसे पुरुष या महिला हैं, जो इस प्रणाली की बहुत अधिक आलोचना करते हैं, तो आपको न तो अनुदान मिलेगा, न ही आपको सेमिनारों में आमंत्रित किया जाएगा और न ही सरकारों द्वारा परामर्श के लिए बुलाया जाएगा। यह भी संभव है कि विश्वविद्यालय स्वयं आपको अलग-थलग कर दें या आपको नौकरी पर न रखें, क्योंकि अभी विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसरों की नौकरी की स्थिरता न के बराबर है, और जिस तरह कोई श्रम अधिकार नहीं है, वैसे ही कोई बौद्धिक अधिकार भी नहीं है। ऐसी स्थिति में वे कोई जोखिम नहीं लेना चाहता। मैं इन्हीं कारणों को विश्लेषण की कमी के मूलभूत कारणों के रूप में देखता हूँ। लेकिन मैं इस मामले में एक यांत्रिक दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहता: ऐसे कई लोग हैं जो वैधता और ईमानदारी के साथ आलोचना करते हैं, या जिन्हें राय न व्यक्त करने, प्रतीक्षा करने का भी अधिकार है। मैं उन लोगों में से नहीं हूँ जो किसी से उस चीज़ की माँग करे जिसके लिए वह व्यक्ति तैयार ही नहीं है।
पेरू के मामले में, यह अध्ययन करना आवश्यक है कि सामाजिक आंदोलनों में क्या हो रहा है। लेकिन हमारे पास वास्तव में इसके बारे में विश्वसनीय अध्ययन नहीं है। पेरू में सांख्यिकी आँकड़ों में अत्यधिक हेरफेर किया जाता है और सामाजिक अध्ययन बहुत सीमित हैं, और इसलिए जो कुछ है उसका एक बड़ा हिस्सा धारणाएँ, अनुमान हैं, वे अभी परिकल्पनाएँ भी नहीं हैं -ऐसा मानने वालों में मैं ख़ुद को भी शामिल करता हूँ। तो, आप इस तरह काम कर रहे हैं जैसे कि आप एक जवाब तलाश रहे हों, जो हो सकता है उसकी गिनती नहीं कर रहे। पेरू में यह बहुत बड़ी कमी है।
फ्यूअरबैक पर कार्ल मार्क्स की तीसरी थीसिस में, वो इस तथ्य के बारे में बात करते हैं कि शिक्षक को राजनीतिक शिक्षा प्रदान करना आवश्यक है। यह शिक्षक को शिक्षित करने वाले जन-आंदोलनों से नज़दीक से जुड़ा हुआ है। इस राजनीतिक शिक्षा की परिकल्पना कैसे की जा सकती है? शायद परिवर्तन की प्रक्रिया का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध बुद्धिजीवी वर्ग, जैसी प्रक्रिया हम वर्तमान में पेरू के संदर्भ में जिसका अनुभव कर रहे हैं, इसे आगे लेकर जा सकते हैं ताकि उनका योगदान प्रभावी, कुशल और ठोस हो।
एक आपसी अविश्वास है, आपसी मनमुटाव है, जिसकी जड़ें बहुत पुरानी हैं। मारियातेगी से पहले, और मारियातेगी व हया डे ला टोरे के समय से, बौद्धिक कार्य राजनीतिक कार्य से अलग हो गए थे।[10] यही कारण है कि मारियातेगी द्वारा स्थापित सांस्कृतिक और साक्षरता पत्रिका ‘अमाउता’, 1930 तक केवल चार साल के लिए चली। और यह अफ़सोस की बात है, है ना? एक तरफ़ बुद्धिजीवी पीछे हट गए और दूसरी तरफ़ राजनेता पीछे हट गए। चूँकि राजनेता राजनीति करने में व्यस्त हैं और वे सोचते नहीं हैं -वे केवल राजनीतिक दृष्टि से सोचते हैं- राजनेता के स्वयं के पतन का एक बड़ा जोखिम है। और चूँकि बुद्धिजीवी राजनीति में भाग नहीं लेते, वे वास्तविकता से नहीं जुड़ते, और इसलिए उनकी सोच कमोबेश खोखली हो जाती है। बड़े अफ़सोस की बात है ये। और पेरू के वामपंथियों के लिए यह आज के समय में एक त्रासदी है।
मेरे लिए, नोम चॉम्स्की एक संदर्भ-बिंदु है, उसी तरह से वो अर्थशास्त्री भी जो उदारवादी हैं लेकिन नवउदारवाद के आलोचक हैं, जैसे जोसेफ़ स्टिग्लिट्ज़ और पॉल क्रुगमैन, और मैनुअल उगार्टेचे और कुछ विश्वविद्यालयों के प्रोफ़ेसरों का काम भी। लेकिन, दुर्भाग्य से, उनका लेखन आर्थिक भाषा में है और जनता के लिए सुलभ नहीं हैं।
पेड्रो कैस्टिलो के पक्ष में हुए प्रदर्शनों में इस्तेमाल हुए प्रतीकों में से एक थी पेंसिल, जो कि लोकप्रिय संस्कृति की प्रतीक है। ये पेंसिलें लोगों ने बनाई थीं, विभिन्न कलाकारों द्वारा डिज़ाइन किए गए ग्राफ़िक्स के रूप में पोस्टर पर छपी थीं और एक तरह से लीमा के वामपंथ से आगे निकल चुके संगीत में सुनाई पड़ीं। विभिन्न स्थानों का लोकप्रिय संगीत बज रहा था। कुछ लोग ऐसे भी थे जो कह रहे थे कि उन्होंने लंबे समय से इतनी जीवंत मरियातेगी-प्रेरित प्रक्रिया को नहीं देखा था। संक्षेप में कहें तो लंबे समय से किसी संघर्ष, या किसी चुनावी अभियान, में संस्कृति इतनी स्पष्टता के साथ नहीं सामने आई थी। आपने इसका अनुभव किस रूप में किया?
लोकप्रिय क्षेत्रों द्वारा सांस्कृतिक उत्पादन का पेरू में एक लंबा इतिहास रहा है। भित्तिचित्र, स्क्रीन-प्रिंटिंग, थिएटर ग्रुप, पॉप रॉक और हिप-हॉप संगीत -ये सब कुछ कैस्टिलो के पहले से हो रहा है। शायद हम यह भी कह सकते हैं कि आपके द्वारा वर्णित चुनावी अभियान उसी इतिहास का एक उत्पाद है, न कि उसका परिणाम। यह उस तरह का लोकप्रिय सांस्कृतिक उत्पादन है जो एक लोकप्रिय उम्मीदवार को भी पैदा करता है। कैस्टिलो मुझे शुरू से ही एक दिलचस्प घटना के रूप में दिखाई दे रहे थे। वो पेरू की पारंपरिक राजनीति में एक नये तत्त्व थे, हालाँकि पहले भी इसके उदाहरण रहे हैं। पेरू के उभरते समूहों (नये लोकप्रिय पूँजीपति, माफ़िया, आदि) के साथ उनकी विशेष लोकप्रिय चेतना ऐतिहासिक गुट के नज़रिए से नयी थी।
नोट
[1] अनुवादक की टिप्पणी: 2009 के सैन्य तख़्तापलट में नेशनल पार्टी के सत्ता में आने के बारह साल बाद, होंडुरांस ने नवउदारवादी व्यवस्था और व्यापक सरकारी भ्रष्टाचार को ज़ोरदार तरीक़े से खारिज किया और 2021 में बदलाव के वादे पर 68% मतदाताओं ने शियोमारा कास्त्रो को ऐतिहासिक मतदान कर के जिताया।
[2] अनुवादक की टिप्पणी: वेनेज़ुएला के सैन्य और राजनीतिक नेता साइमन बोलिवर (24 जुलाई 1783-17 दिसंबर 1830), जिन्हें ‘अमेरिकाओं के मुक्तिदाता’ के रूप में जाना जाता है, ने आज के कोलंबिया, वेनेज़ुएला, इक्वाडोर, पनामा, पेरू, और बोलीविया में स्पैनिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। उनके विचार वेनेज़ुएला की बोलिवेरियन क्रांति के प्रेरणास्रोत हैं। पेरू के राजनेता जोस फॉस्टिनो सांचेज़ कैरियन स्पेन से स्वतंत्रता के बाद देश के पहले संविधान के लेखकों में से एक थे और उन्होंने सरकार की गणतांत्रिक प्रणाली की स्थापना में एक अग्रणी भूमिका निभाई थी।
[3] अनुवादक की टिप्पणी: दक्षिण अमेरिकी देशों का संघ (यूएनएसएयूआर) 2004 में एक अंतर-सरकारी क्षेत्रीय संगठन के रूप में बनाया गया था। लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई राज्यों का समुदाय (सीईएलएसी) लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों का एक क्षेत्रीय ब्लॉक है जो 23 फ़रवरी 2010 को रियो ग्रुप-कैरेबियन सामुदायिक एकता शिखर सम्मेलन में स्थापित किया गया था और 3 दिसंबर 2011 को कराकास की घोषणा के हस्ताक्षर के साथ स्थापित किया गया था। यह एकमात्र ऐसा क्षेत्रीय ब्लॉक है जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा को छोड़कर लैटिन अमेरिका और कैरिबियन क्षेत्र के सभी 33 देश शामिल हैं।
[4] अनुवादक की टिप्पणी: नुएस्ट्रा अमेरिका, या ‘हमारा अमेरिका’, मध्य और दक्षिण अमेरिका के क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने और यूरोपीय और अमेरिकी सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के विरोध में एक लैटिन अमेरिकी पहचान बनाने से जुड़ी एक अवधारणा है। यह अवधारणा क्यूबा के राष्ट्रीय नायक जोसे मार्ती के 1981 में प्रकाशित एक निबंध के शीर्षक से उपजी है।
[5] अनुवादक की टिप्पणी: चोलो शब्द अर्जेंटीना, बोलीविया, इक्वाडोर और पेरू के कुछ हिस्सों में इस्तेमाल किया जाता है, विशेष रूप से स्वदेशी (ज्य़ादातर क्वेचुआ या आयमारा) और यूरोपीय मिश्रित विरासत के व्यक्तियों के संदर्भ में। पेरू में इसका उपयोग स्वदेशियों/आदिवासियों के लिए भी किया जाता है। हालाँकि यह शब्द ऐतिहासिक रूप से भेदभावपूर्ण और नस्लवादी रहा है, लेकिन अब इनमें से कुछ समुदायों द्वारा यह शब्द पहचान और गर्व के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, और कुछ राजनीतिक ताक़तों द्वारा आम लोगों की तरफ़ इशारा करने के लिए भी उपयोग किया जाता है।
[6] अनुवादक की टिप्पणी: पेरू के समाजशास्त्री एनिबल क्विजानो (17 नवंबर 1930 – 31 मई 2018) ने यूरोपीय उपनिवेशवाद से उत्पन्न शक्ति संरचनाओं का वर्णन करने के लिए ‘सत्ता के उपनिवेशवाद (कॉलोनीएलिटी ऑफ़ पावर)’ की अवधारणा विकसित की थी। उनके काम ने डीकॉलोनीयल स्टडीज़ और क्रिटिकल थियरी को प्रभावित किया है।
[7] अनुवादक की टिप्पणी: हिस्पैनिकवादी का अर्थ है स्पेनिश संस्कृति के विशेषज्ञ या, यहाँ, जो स्पेन से प्यार करता है या उसकी प्रशंसा करता है। हिस्पैनिदाद, या हिस्पैनिज़्म, या हिस्पैनवाद स्पेन और लैटिन अमेरिका की सांस्कृतिक एकता को फिर से स्थापित करने के लिए एक उदार रूढ़िवादी आंदोलन की ओर इशारा करता है, जो कि सामान्य मूल्यों और सांस्कृतिक दृष्टिकोण पर आधारित है, और विशेष रूप से राजनीतिक उद्देश्यों की ओर निर्देशित है। स्पेन के वोक्स पार्टी के नेता सैंटियागो एबास्कल ने 1990 के दशक से ब्रिटिश रूढ़िवाद के यूरोसेप्टिक सर्कल द्वारा गढ़े गए एक शब्द, एंग्लोस्फीयर, की अवधारणा के एक स्पष्ट अनुकूलन के रूप में, हिस्पैनोस्फेरा (‘हिस्पैनोस्फीयर’) की अवधारणा को बढ़ावा दिया है।
[8] अनुवादक की टिप्पणी: पेरू के जनरल जुआन फ्रांसिस्को वेलास्को अल्वाराडो (16 जून 1910–24 दिसंबर 1977) ने फ़र्नांडो बेलांडे सरकार के ख़िलाफ़ 1968 के तख़्तापलट के बाद पेरू के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया था। उनकी लोकलुभावनवादी सैन्य सरकार ने इस क्षेत्र के अन्य सैन्य शासनों के विपरीत, पेरू में बड़ा बदलाव लाया। उनकी सरकार द्वारा लागू किए गए सुधारों में, परिवहन, संचार और बिजली का राष्ट्रीयकरण, पेरू में अमेरिकी आर्थिक प्रभाव को सीमित करना, और पहले निजी स्वामित्व वाले खेतों पर कार्यकर्ता-प्रबंधित सहकारी समितियों की स्थापना करना शामिल थे।
[9] अनुवादक की टिप्पणी: पेरू के बुद्धिजीवी, पत्रकार, कार्यकर्ता, और दार्शनिक जोस कार्लोस मारियातेगी ला चिरा (14 जून 1894-16 अप्रैल 1930) का 35 वर्ष की कम उम्र में निधन हो गया था। उन्हें देश की समस्याओं को समझने के लिए ऐतिहासिक भौतिकवाद के मार्क्सवादी मॉडल को लागू करने वाले पेरू के पहले बुद्धिजीवी के रूप में जाना जाता है और बीसवीं सदी के लैटिन अमेरिका के सबसे प्रभावशाली समाजवादियों में से एक माना जाता है। पेरू की वास्तविकता पर उनके सात व्याख्यात्मक निबंध ‘सेवन इंटर्प्रेटिव एसेज़ ऑन पेरूवीयन रीऐलिटी (1928)’ आज भी काफ़ी पढ़ा जाता है।
[10] अनुवादक की टिप्पणी: विक्टर हया डे ला टोरे (1895-1979) पेरू के एक राजनेता, दार्शनिक और लेखक थे, जिन्होंने राजनीतिक आंदोलन अमेरिकी लोकप्रिय क्रांतिकारी गठबंधन (एलियांज़ा पॉपुलर रेवोलुसिनेरिया अमेरिकाना, एपीआरए) की स्थापना की थी, जिसे पेरू के अप्रिस्टा पार्टी (पार्टिडो अप्रिस्टा पेरुआनो, पीएपी) के रूप में जाना जाता है। ये पेरू की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी रही है।