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ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
घाना के पहले राष्ट्रपति क्वामे न्क्रूमा ने 1963 में प्रकाशित अपनी पुस्तक, अफ़्रीका मस्ट यूनाइट, में लिखा था कि , ‘अफ़्रीका के पास एक शक्तिशाली, आधुनिक और औद्योगीकृत महाद्वीप बनने के लिए जरूरी सभी चीज़ें मौजूद हैं। संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं ने हाल ही में दिखाया है कि अफ्रीका में संसाधनों का अभाव नहीं बल्कि संभवतः दुनिया के लगभग किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में औद्योगीकरण के लिए सबसे ज़्यादा संसाधन उपलब्ध हैं‘। न्क्रूमा ने यह दावा संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1958 में किए गए गैर–स्वशासी क्षेत्रों में आर्थिक स्थितियाँ एवं विकास नामक एक विशेष अध्ययन के हवाले से किया था। इस अध्ययन में महाद्वीप के विशाल प्राकृतिक संसाधनों का विवरण दिया गया था। न्क्रूमा ने लिखा, ‘अफ्रीका में औद्योगिक विकास की धीमी गति का असली कारण औपनिवेशिक काल की नीतियों में निहित है। व्यावहारिक रूप से हमारे सभी प्राकृतिक संसाधन, और व्यापार, शिपिंग, बैंकिंग, निर्माण इत्यादि पर ऐसे विदेशियों का कब्जा रहा है जो विदेशी निवेशकों को समृद्ध बनाना चाहते हैं और स्थानीय आर्थिक पहल को अवरुद्ध करना चाहते हैं‘। न्क्रूमा ने इस विचार का 1965 में प्रकाशित अपनी उल्लेखनीय पुस्तक, नवउपवेशवाद: साम्राज्यवाद का का आखिरी चरण ( Neo-Colonialism: the Last Stage of Imperialism) में और विस्तार किया।
घाना सरकार के नेता के रूप में, न्क्रूमा ने इस यथार्थ को बदलने के लिए नीतिगत कदम उठाए। उन्होंने सार्वजनिक शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने; बिजली, सड़क व रेलवे आदि का बुनियादी ढांचा सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत सार्वजनिक क्षेत्र का निर्माण; और सस्ती क़ीमत पर निर्यात होने वाले कच्चे माल का मूल्य बढ़ाने के लिए औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने जैसे कदम उठाए। लेकिन वे जानते थे कि यदि कोई एक देश अकेला ये उपाय करता है तो यह परियोजना विफल हो जाएगी। यही कारण है कि न्क्रूमा अफ़्रीकी एकता के बड़े समर्थक थे, और इस ज़रूरत को उन्होंने 1963 में प्रकाशित अपनी पुस्तक अफ़्रीका को एकताबद्ध होना पड़ेगा (Africa Must Unite) में विस्तार से समझाया है। यह उनके दृढ़ संकल्प का ही परिणाम था कि अफ़्रीकी देशों ने उसी वर्ष ऑर्गनाइजेशन ऑफ अफ़्रीकन यूनिटी (OAU) का गठन किया, जिस वर्ष उनकी पुस्तक प्रकाशित हुई थी। 1999 में, OAU अफ़्रीकी संघ बन गया।
जब घाना और अफ़्रीका राष्ट्रीय और महाद्वीपीय संप्रभुता स्थापित करने के लिए ये छोटे कदम उठा रहे थे, तब कुछ अन्य लोग कोई और ही तैयारी कर रहे थे। 1966 में पश्चिम–समर्थित तख़्तापलट द्वारा न्क्रूमा को पद से हटा दिया गया। इससे पाँच साल पहले कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के प्रधान मंत्री पैट्रिस लुमुम्बा की तख़्तापलट के बाद हत्या कर दी गई थी। अफ़्रीकी महाद्वीप की संप्रभुता और अफ़्रीकी लोगों की गरिमा के लिए जिस किसी नेता ने भी कोई परियोजना चलाई, उसे या तो पद से हटा दिया गया, या मार दिया गया।
इन तख़्तापलटों के बाद स्थापित होने वाली पश्चिम–समर्थित सरकारों ने अक्सर राष्ट्रीय संप्रभुता और महाद्वीपीय एकता के निर्माण के लिए शुरू की गई नीतियों के विपरीत चलने का काम किया। उदाहरण के लिए, 1966 में, घाना की नेशनल लिबरेशन काउंसिल के सैन्य नेताओं ने गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक शिक्षा और औद्योगिकीकरण व महाद्वीपीय व्यापार पर आधारित सार्वजनिक क्षेत्र स्थापित करने की नीति को अवरुद्ध करना शुरू कर दिया। आयात–प्रतिस्थापन नीतियाँ, जो तीसरी दुनिया के नए देशों की उन्नति के लिए अति महत्वपूर्ण थीं, ख़ारिज कर सस्ते कच्चे माल के निर्यात और महंगे तैयार उत्पादों के आयात की व्यवस्था लागू की गई। इसके परिणामस्वरूप पूरा अफ़्रीकी महाद्वीप कर्ज़ और निर्भरता के चक्र में धँसता चला गया। 1980 के दशक के ऋण संकट के दौरान शुरू किए गये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रमों ने हालात बद से बदतर बना दिये। 2009 में साउथ सेंटर से जारी एक शोध पत्र में कहा गया है कि ‘महाद्वीप दुनिया का सबसे कम औद्योगिकीकृत क्षेत्र है, जबकि वैश्विक विनिर्माण मूल्य में उप–सहारा अफ्रीका की हिस्सेदारी वास्तव में 1990 और 2000 के बीच अधिकांश क्षेत्रों में घटी है।‘ इस शोध पत्र में अफ्रीका की स्थिति को ‘वी–औद्योगिकीकरण‘ के रूप में संदर्भित किया गया था।
अप्रैल 1980 में, अफ़्रीकी नेता अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रमों के क्रूर अत्याचारों, जिनके तहत अफ़्रीकी देशों की राजकोषीय नीतियाँ तो बदली जा रही थीं लेकिन अंतरराष्ट्रीय ॠण बाजारों में कोई बदलाव नहीं किया जा रहा था, पर विचार–विमर्श करने के लिए OAU के तत्वावधान में लेगास, नाइजीरिया में एकत्र हुए। इस बैठक में लागोस कार्ययोजना (1980-2000) तैयार की गई, जिसमें यह तर्क दिया गया कि अफ़्रीकी देश अंतरराष्ट्रीय पूंजी से अपनी संप्रभुता स्थापित करें और अपने देशों तथा महाद्वीप के लिए औद्योगिक नीतियाँ लागू करें। यह कार्ययोजना 1960 के दशक में न्क्रूमा द्वारा लागू की गई नीतियों का ही नया रूप थी। लागोस कार्ययोजना के साथ, संयुक्त राष्ट्र ने अफ़्रीका के लिए औद्योगिक विकास दशक (1980-1990) की स्थापना की। 1989 तक OAU गहराते नवउदारवाद में बजट कटौतियों और निर्यात के ज़रिए अफ्रीकी संसाधनों की बढ़ती चोरी के मद्देनज़र औद्योगिक विकास दशक की विफलता को भाँप चुका था। OAU ने संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर 20 नवंबर को अफ़्रीका औद्योगीकरण दिवस के रूप में स्थापित किया। पहले औद्योगिक विकास दशक की विफलता के बाद दूसरा दशक (1993-2002) और फिर तीसरा (2016-2025) स्थापित किया गया। जनवरी 2015 में, अफ़्रीकी संघ ने औद्योगीकरण की अनिवार्यता को सतत विकास लक्ष्यों के प्रति अफ़्रीका की प्रतिबद्धता के साथ जोड़ने के लिए एजेंडा 2063 अपनाया। ‘दशक‘ मानना या एजेंडा 2063 जैसे कदम प्रतीकात्मक बन चुके हैं। बाहरी ऋण और ऋण सेवा के बोझ को कम करने का कोई एजेंडा सामने नहीं है और न ही औद्योगिक विकास को आगे बढ़ाने या बुनियादी जरूरतों के प्रावधान को वित्तपोषित करने के लिए एक माकूल माहौल बनाने की कोई नीति मौजूद है।
जोहान्सबर्ग में पंद्रहवें ब्रिक्स (ब्राजील–रूस–भारत–चीन–दक्षिण अफ्रीका) शिखर सम्मेलन के मौके पर चीन और अफ़्रीकी नेताओं के बीच आयोजित संवाद में, चीन ने ‘विनिर्माण क्षेत्र बढ़ाने और औद्योगीकरण तथा आर्थिक विविधीकरण को साकार बनाने में अफ़्रीका का समर्थन करने के लिए ‘इनिशियेटिव ऑन सपोर्टिंग अफ़्रीका‘स इंडस्ट्रीयलाईज़ेशन ‘ (अफ़्रीकी औद्योगीकरण को सहायता प्रदान करने की पहल) शुरू की। चीनी सरकार ने बुनियादी ढांचे के निर्माण, औद्योगिक पार्क बनाने और अफ़्रीकी सरकारों व फर्मों की औद्योगिक नीतियाँ और उद्योग विकसित करने में सहायता करने के लिए अपनी फंडिंग बढ़ाने का वादा किया है। यह नई पहल चीन–अफ्रीका सहयोग मंच के 2018 बीजिंग शिखर सम्मेलन से एक कदम आगे ले जाएगी। बीजिंग सम्मेलन में महाद्वीप पर बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, औद्योगीकरण के अनुभवों को साझा करने और IMF या अन्य एजेंसियों द्वारा थोपी गई नहीं, बल्कि अफ़्रीकी अनुभव से उभरने वाली विकास परियोजना स्थापित करने में चीन की प्रतिबद्धता को सशक्त करेंगे।
इस सप्ताह, ट्राइकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान और डोंगशेंग ने वेनहुआ ज़ोंगहेंग (文化纵横) पत्रिका के अंतर्राष्ट्रीय संस्करण का तीसरा अंक प्रकाशित किया है। इस अंक का शीर्षक है ‘बेल्ट एंड रोड युग में चीन–अफ़्रीका संबंध‘। इस अंक में ग्रिव चेलवा, झोउ जिनयान और तांग शियाओयांग द्वारा लिखित तीन लेख शामिल हैं। प्रोफेसर झोउ, साउथ सेंटर की रिपोर्ट से सहमति जताते हुए कहते हैं कि 1980 के दशक से ‘अफ़्रीकी देश विशेष रूप से वी–औद्योगिकीकृत किए गए थे‘ और अफ़्रीकी देशों ने जो भी विकास हासिल किया वह निर्यातित कच्चे माल की बढ़ी कीमतों का परिणाम था। वो बताती हैं कि ऋण, सहायता और संरचनात्मक समायोजन की पेशकश करने वाले पश्चिमी देश ‘अफ़्रीकी औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित नहीं हैं‘। अफ़्रीका के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग और अधिकांश अफ़्रीकी देशों की औद्योगिक नीतियों के विश्लेषण के आधार पर , प्रोफेसर झोउ ने चार महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला: पहला, राज्य को हर औद्योगिक विकास में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए; दूसरा, औद्योगीकरण क्षेत्रीय और महाद्वीपीय स्तर पर होना चाहिए – अकेले अफ़्रीकी राज्यों के भीतर नहीं, क्योंकि अफ़्रीका के कुल व्यापार का 86 प्रतिशत ‘अभी भी दुनिया के अन्य क्षेत्रों के साथ होता है, [केवल] महाद्वीप के भीतर नहीं होता; तीसरा, शहरीकरण और औद्योगीकरण को इस प्रकार समन्वित किया जाना चाहिए कि महाद्वीप के शहर बेरोजगार युवाओं से भरी बड़ी झुग्गियों में न बदल जाएँ; और चौथा, सेवा क्षेत्र के बजाय विनिर्माण ही अफ़्रीका के आर्थिक विकास का इंजन होगा।
इन बिंदुओं के आधार पर प्रोफेसर झोउ ने चीन द्वारा अफ़्रीकी औद्योगीकरण की प्रक्रिया में समर्थन के विभिन्न आयामों का आकलन किया है। अफ़्रीकी देशों के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए, उन्होंने कहा कि ‘चीन की विफलताएँ‘ उसकी सफलताओं जितनी ही महत्वपूर्ण हैं।
प्रोफेसर टैंग ने अपने लेख में महाद्वीप पर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के विस्तार को ट्रैक किया है। 2013 में स्थापित, बीआरआई केवल एक दशक पुरानी परियोजना है; इसलिए इतने कम समय में इस विशाल, वैश्विक और औद्योगिक विकास परियोजना का पूरी तरह से आकलन करना असंभव है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए दूसरे बेल्ट एंड रोड फोरम (अप्रैल 2019) में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा था कि, ‘इतने बड़े नियोजित निवेश के साथ, [बीआरआई] अधिक न्यायसंगत निर्माण, सभी के लिए समृद्ध विश्व, और जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों से लड़ने में सहायक हो सकता है‘। 2022 में, संयुक्त राष्ट्र ने बीआरआई की भूमिका पर एक रिपोर्ट ‘पार्ट्नरिंग फ़ोर अ ब्राइटर शेअर्ड फ़्यूचर‘ (एक साझा उज्जवल भविष्य के लिए साझेदारी) जारी की थी, जिसमें कहा गया कि बीआरआई – अधिकांश अन्य विकास परियोजनाओं के विपरीत – बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए महत्वपूर्ण धन प्रदान करता है जो उन क्षेत्रों में औद्योगीकरण का आधार बन सकता है जो अभी तक कच्चे माल के निर्यातक और विनिर्मित उत्पादों के आयातक रहे हैं।
बीआरआई के उपरोक्त आकलन के आधार पर, प्रोफेसर टैंग तीन व्यावहारिक तरीके पेश करते हैं जिनसे बीआरआई ने अफ़्रीकी महाद्वीप पर औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया है: पहला, एकीकृत ऊर्जा स्रोतों के साथ औद्योगिक पार्कों का निर्माण और परस्पर जुड़ी फर्मों के औद्योगिक समूह बना कर; दूसरा, ढांचागत सामग्री की आपूर्ति के लिए उद्योगों का निर्माण करके; और तीसरा, निर्यात के बजाय स्थानीय बाजारों के लिए उत्पादन को प्राथमिकता देकर। अफ़्रीकी देशों पर थोपी गई IMF की नीतियों के विपरीत, प्रोफेसर टैंग का तर्क है कि ‘चीन प्रत्येक देश को विकास के अपने रास्ते पर चलने और किसी भी मॉडल का आँख बंद करके पालन न करने के लिए प्रोत्साहित करता है।‘
न तो तांग, न झोउ और न ही चेलवा यह संकेत देते हैं कि चीन किसी तरह अफ़्रीका का रक्षक है। वो दिन चले गए। कोई भी देश या महाद्वीप अपना उद्धार किसी और द्वारा नहीं करवाना चाहता। अफ़्रीका का रास्ता अफ़्रीकियों द्वारा ही बनाया जाएगा। बहरहाल, निर्भरता को पुन: उत्पन्न करने वाली संरचना के विरुद्ध विनिर्माण के अपने अनुभवों को देखते हुए, चीन के पास साझा करने के लिए बहुत कुछ है। चूँकि उसके पास विशाल वित्तीय भंडार है और वह पश्चिमी शैली की कोई शर्त नहीं लगाता है, चीन निस्संदेह वैकल्पिक विकास परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण का एक स्रोत हो सकता है।
दिसंबर 2022 में, अफ़्रीकी विकास बैंक के अध्यक्ष अकिंवुमी एडेसिना ने कहा कि ‘अफ़्रीका की समृद्धि अब कच्चे माल के निर्यात पर नहीं बल्कि मूल्यवर्धित तैयार उत्पादों पर निर्भर होनी चाहिए।‘ ‘अफ़्रीका में‘, उन्होंने आगे कहा, ‘हमें कोको बीन्स को चॉकलेट में, कपास को कपड़े और परिधान में, कॉफी बीन्स को ब्रूड कॉफी में बदलने की जरूरत है।‘ समय के साथ कदम मिलाते हुए, हम यह जोड़ सकते हैं कि अफ़्रीका को कोबाल्ट और निकल को लिथियम–आयन बैटरी और इलेक्ट्रिक कारों में बदलना चाहिए और तांबे और चांदी को स्मार्टफोन में बदलना चाहिए। एडेसिना के बयान में नक्रूमा का सपना बोल रहा है: जैसा कि उन्होंने 1963 में लिखा था, ‘अफ़्रीका के पास एक शक्तिशाली, आधुनिकऔर औद्योगीकृत महाद्वीप बनने के लिए जरूरी सभी चीज़ें मौजूद हैं।
स्नेह–सहित,
विजय