प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
साम्राज्य अपने अस्तित्व को नकारता है। वो ख़ुद को साम्राज्य नहीं बल्कि एक परोपकारी व्यवस्था मानता है; दुनिया भर में मानवाधिकारों और सतत विकास लक्ष्यों को फैलाना जिसका मिशन है। लेकिन, यह दृष्टिकोण हवाना में या काराकास में लागू नहीं होता, जहाँ ‘मानवाधिकारों’ का मतलब है सत्ता परिवर्तन, और जहाँ प्रतिबंधों तथा अवरोधों के माध्यम से जनता का गला घोंटना ‘सतत विकास’ है। साम्राज्य द्वारा उत्पीड़ित जनता के दृष्टिकोण से ही इसे स्पष्टता के साथ समझा जा सकता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जून में उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिकी देशों (अमेरिकाज़) के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करनी है; जिसके बहाने बाइडन यह उम्मीद कर रहे हैं कि अन्य अमेरिकी देशों पर वाशिंगटन के आधिपत्य को और गहरा किया जाए। संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार समझ चुकी है कि उसकी आधिपत्य की परियोजना अमेरिका की चरमराती राजनीतिक व्यवस्था तथा कमज़ोर हो रही अर्थव्यवस्था के चलते अस्तित्वगत संकट का सामना कर रही है। उनके पास बाक़ी दुनिया में क्या, अपने ही देश में निवेश करने के लिए सीमित धन उपलब्ध है। इस सच्चाई के साथ-साथ, अमेरिकी आधिपत्य को चीन से एक गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जिसका बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव लैटिन अमेरिका व कैरिबियन के बड़े हिस्से में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के नवउदारवादी एजेंडे के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। चीनी निवेश के साथ मिलकर काम करने की कोई पहल करने के बजाय, अमेरिका चीन को अन्य अमेरिकी देशों के साथ जुड़ने से रोकने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। इस दिशा में, अमेरिका ने मोनरो सिद्धांत को पुनर्जीवित किया है। यह नीति अगले साल दो सौ साल पुरानी हो जाएगी; इस सिद्धांत का दावा है कि अन्य अमेरिकी देश संयुक्त राज्य अमेरिका का अधीनस्थ राज्य हैं, उसके ‘प्रभाव क्षेत्र’ हैं और उसके ‘पीछे के आहाते (बैकयार्ड)’ हैं। (हालाँकि बाइडेन ने क्यूटली इस क्षेत्र को अमेरिका का ‘फ़्रंट यार्ड ‘आगे का आहाता’ कह दिया है)।
इंटरनेशनल पीपुल्स असेंबली के साथ मिलकर, हमने अमेरिकी शक्ति के दो उपकरणों -अमेरिकी राज्यों का संगठन तथा उत्तरी और दक्षिणी देशों (अमेरिकाज़) के शिखर सम्मेलन- के बारे में तथा अपना आधिपत्य थोपने की कोशिशों में लगे अमेरिका के सामने खड़ी चुनौतियों के बारे में एक रेड अलर्ट तैयार किया है। नीचे के भाग में आप उस रेड अलर्ट को पढ़ सकते हैं व उसका पीडीएफ़ यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं। कृपया इसे पढ़ें, इस पर चर्चा करें और इसे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के साथ साझा करें।
रेड अलर्ट संख्या 14: अमेरिकी उपनिवेश मंत्रालय और उसका शिखर सम्मेलन
अमेरिकी देशों का संगठन क्या है?
अमेरिकी देशों का संगठन (ओएएस) संयुक्त राज्य अमेरिका तथा उसके सहयोगियों द्वारा 1948 में बोगोटा, कोलंबिया में गठित किया गया था। हालाँकि ओएएस का चार्टर बहुपक्षवाद और सहयोग की बात करता है, लेकिन इस संगठन का उपयोग लैटिन अमरीकी व कैरिबियन गोलार्ध में साम्यवाद को रोकने तथा वहाँ के देशों पर अमेरिकी एजेंडा लागू करने के उपकरण के रूप में किया जाता है। ओएएस के फ़ंड का 50% और उसके एक स्वायत्त अंग इंटर-अमेरिकन कमीशन ऑन ह्यूमन राइट्स (आईएसीएचआर) के फ़ंड का 80% धनराशि अमेरिका से आता है। इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि -बजट का अधिकांश हिस्सा उपलब्ध कराने के बावजूद – अमेरिका ने आईएसीएचआर की किसी भी संधि की पुष्टि नहीं की है।
ओएएस ने अपना असली रंग क्यूबा की क्रांति (1959) के बाद दिखाया। क्यूबा, ओएएस के संस्थापक देशों में से एक था लेकिन, 1962 में, पंटा डेल एस्टे (उरुग्वे) में हुई एक बैठक के दौरान क्यूबा को ओएएस से निष्कासित कर दिया गया था। बैठक की घोषणा में कहा गया है कि ‘साम्यवाद के सिद्धांत की अंतर-अमेरिकी प्रणाली के सिद्धांतों के साथ संगति है’। इसके जवाब में, फ़िदेल कास्त्रो ने ओएएस को ‘अमेरिकी उपनिवेश का मंत्रालय’ कहा था।
ओएएस ने 1962 में अंतर्राष्ट्रीय साम्यवाद की विद्रोही कार्रवाई के ख़िलाफ़ सुरक्षा पर विशेष सलाहकार समिति की स्थापना की। इस समिति का उद्देश्य था अन्य अमेरिकी देशों के अभिजात वर्ग को -अमेरिका के नेतृत्व में- उनके अपने देशों में उठ रहे मज़दूर वर्ग तथा किसानों के लोकप्रिय आंदोलनों के ख़िलाफ़ हर संभव तरीक़ा इस्तेमाल करने की अनुमति देना। ओएएस संयुक्त राज्य अमेरिका की सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) के राजनयिक और राजनीतिक कवच की तरह काम करता रहा है, जबकि सीआईए अपनी सम्प्रभुता का प्रयोग करने का प्रयास कर रही सरकारों को उखाड़ फेंकने में भाग लेता रहा है। ये तब है जब कि ओएएस का चार्टर संप्रभुता की गारंटी देता है। एक उपकरण के रूप में ओएएस का इस्तेमाल 1962 में क्यूबा के ओएएस के निष्कासन के बाद से लगातार जारी है। होंडुरास में 2009 तथा बोलीविया में 2019 के तख़्तापलट का आयोजन; निकारागुआ और वेनेज़ुएला की सरकारों को उखाड़ फेंकने के लगातार प्रयास और हैती में मौजूदा हस्तक्षेप, सब इसी संगठन की आड़ में हो रहे हैं।
1962 से, ओएएस, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के बिना ही, देशों पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमेरिकी सरकार के साथ खुले तौर पर काम कर रहा है; इसीलिए ये प्रतिबंध अवैध हैं। इस तरह से यह संगठन अपने ही चार्टर में लिखे ‘ग़ैर-हस्तक्षेप के सिद्धांत’ का नियमित रूप से उल्लंघन करता रहा है। संगठन के चार्टर में लिखा यह सिद्धांत ‘सशस्त्र बल [ही नहीं] बल्कि अन्य किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप या राज्य के व्यक्तित्व के ख़िलाफ़ या उसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तत्वों के ख़िलाफ़ किसी भी तरह का ख़तरा पैदा करने से रोकता है’ (अध्याय 1, अनुच्छेद 2, खंड ख और अध्याय IV, अनुच्छेद 19)।
लैटिन अमेरिकी और कैरिबियन देशों का समुदाय (सीईएलएसी) क्या है?
राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज़ के नेतृत्व में वेनेज़ुएला ने 2000 के दशक की शुरुआत में ऐसे नये क्षेत्रीय संस्थानों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जो कि अमेरिकी नियंत्रण से बाहर हों। इस अवधि में तीन प्रमुख मंच बनाए गए थे: 1) 2004 में बोलिवेरियन एलायंस फ़ॉर द पीपुल्ज़ ऑफ़ आवर अमेरिका (एएलबीए); 2) 2004 में यूनियन ऑफ़ साउथ अमेरिकन नेशंज़ (यूएनएएसयूआर); और 3) 2010 में लैटिन अमेरिकी और कैरिबियन देशों का समुदाय (सीईएलएसी)। इन मंचों ने क्षेत्रीय महत्व के मामलों पर शिखर सम्मेलन और देशीय सीमाओं के पार व्यापार तथा सांस्कृतिक बातचीत को बढ़ाने के लिए तकनीकी संस्थान स्थापित करने के साथ-साथ उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका (अमेरिकाज़) में अंतर-सरकारी संपर्क स्थापित किए। इन सभी मंचों को संयुक्त राज्य अमेरिका से आने वाले ख़तरों का सामना करना पड़ा है। चूँकि इस क्षेत्र की सरकारें राजनीतिक रूप से पेंडुलम की तरह इधर उधर डोलती रही हैं, इन मंचों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता या तो बढ़ जाती है (जब सरकारें वामपंथी होती हैं) या घट जाती है (जब सरकारें संयुक्त राज्य अमेरिका की क़रीबी होती हैं)।
2021 में मैक्सिको सिटी में सीईएलएसी के छठे शिखर सम्मेलन के दौरान, मेक्सिको के राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज़ ओब्रेडोर ने सुझाव दिया था कि ओएएस को भंग कर दिया जाए और सीईएलएसी क्षेत्रीय संघर्षों को हल करने, व्यापार साझेदारी बनाने और यूरोपीय संघ के पैमाने पर एक बहुपक्षीय संगठन बनाने में, तथा उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका की आपसी एकता को बढ़ाने में मदद करे।
उत्तरी तथा दक्षिणा देशों (अमेरिकाज़) का शिखर सम्मेलन क्या है?
सोवियत समाजवादी गणतंत्रों के संघ (यूएसएसआर) के पतन के बाद से, संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी सैन्य शक्ति के सहारे देशों को अनुशासित करके (जैसे पनामा, 1989 और इराक़, 1991), और 1994 में स्थापित विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से अपनी आर्थिक शक्ति को संस्थागत बनाकर दुनिया पर अपना वर्चस्व जमाने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका ने 1994 में उत्तरी तथा दक्षिणी देशों (अमेरिकाज़) के पहले शिखर सम्मेलन के लिए ओएएस सदस्य राज्यों को मियामी बुलाया था। बाद में इस संगठन का प्रबंधन ओएएस को सौंप दिया गया था। यह शिखर सम्मेलन उसके बाद से हर कुछ वर्षों में ‘सामान्य नीतिगत मुद्दों पर चर्चा करने, साझा मूल्यों की पुष्टि करने और राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय स्तर पर ठोस कार्यों पर प्रतिबद्धता’ के लिए आयोजित किया जाता रहा है।
ओएएस पर अपनी मज़बूत पकड़ होने के बावजूद, अमेरिका कभी भी इन शिखर सम्मेलनों में अपने एजेंडे को पूरी तरह से लागू नहीं कर पाया है। क्यूबेक सिटी में आयोजित तीसरे शिखर सम्मेलन (2001) और मार डेल प्लाटा में चौथे शिखर सम्मेलन (2005) के दौरान, लोकप्रिय आंदोलनों ने बड़े विरोध प्रदर्शन आयोजित किए; मार डेल प्लाटा में, वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज की अगुवाई में बड़ा प्रदर्शन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप अमेरिका को अपने द्वारा थोपे गए मुक्त व्यापार क्षेत्रों के समझौते को रद्द करना पड़ा। पोर्ट ऑफ़ स्पेन में 2009 और कार्टाजेना में 2012 में हुए पाँचवें और छठे शिखर सम्मेलन के दौरान क्यूबा के ख़िलाफ़ अमेरिकी नाकाबंदी और ओएएस से क्यूबा के निष्कासन पर बहस हुई। ओएएस के सदस्य देशों के अत्यधिक दबाव के कारण, क्यूबा को संयुक्त राज्य अमेरिका की इच्छा के विरुद्ध पनामा सिटी (2015) और लीमा (2018) में हुए सातवें और आठवें शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था।
हालाँकि अब, जून 2022 में लॉस एंजिल्स में होने जा रहे नौवें शिखर सम्मेलन में संयुक्त राज्य अमेरिका ने क्यूबा, निकारागुआ या वेनेज़ुएला को आमंत्रित नहीं किया है। बोलीविया और मैक्सिको सहित कई देशों ने कहा है कि वे इस बैठक में शामिल नहीं होंगे जब तक कि उत्तरी तथा दक्षिण अमेरिका (अमेरिकाज़) के सभी पैंतीस देशों की इसमें उपस्थिति नहीं होती। 8 से 10 जून तक कई प्रगतिशील संगठन शिखर सम्मेलन के विरोध में और अमेरिकाज़ के सभी लोगों की आवाज़ को बाहर लाने के लिए एक पीपुल्ज़ समिट आयोजित करेंगे।
2010 में, कवि डेरेक वॉलकॉट (1930-2017) ने ‘द लॉस्ट एम्पायर’ कविता लिखी थी। यह कविता कैरिबियन और उनके अपने द्वीप, सेंट लूसिया, से ब्रिटिश साम्राज्यवाद के पीछे हटने का जश्न है। वॉलकॉट उपनिवेशवाद द्वारा पैदा की गई आर्थिक और सांस्कृतिक घुटन, हीन महसूस करवाने वाली कुरूप व्यवस्था, और इनके साथ आने वाली ग़रीबी में बड़े हुए थे। इस माहौल में बड़े होने के सालों बाद, ब्रिटिश शासन के पीछे हटने की ख़ुशी पर विचार करते हुए, वालकॉट ने लिखा कि:
और फिर अचानक कोई साम्राज्य नहीं बचा था।
उसकी किसी फ़तह का कोई मतलब नहीं रहा, उसके अधिराज्य धूल हो गए:
बर्मा, कनाडा, मिस्र, अफ्रीका, भारत, सूडान।
स्कूल के एक बच्चे की क़मीज़ पर जिस नक़्शे का दाग़ लगा था
जैसे ब्लाटिंग पेपर पर लाल स्याही, युद्ध, लंबी घेराबंदियाँ।
डाऊ और फेलुक्का, हिल स्टेशन, चौकी,
शाम को फड़फड़ाते हुए झंडे, उनकी सुनहरी रहनुमाई
सूरज के साथ डूब गई, बड़ी चट्टान पर आख़िरी किरण,
बाघ की आँखों वाले पगड़ी पहने सिक्खों के साथ, [लगती है] राज का झंडा
सुबकती तुरही को।
साम्राज्यवाद का सूरज डूब रहा है, और हम एक ऐसे विश्व में धीरे-धीरे उभर रहे हैं जो अधीनता की बजाय सार्थक समानता चाहता है। सेंट लूसिया के बारे में वाल्कॉट लिखते हैं, ‘यह छोटी-सी जगह’, ‘कुछ भी नहीं पैदा करती है सिवाय सुंदरता के’। यही बात पूरी दुनिया के लिए सच साबित होगी जब हम युद्धों और घेराबंदियों, युद्धपोतों और परमाणु हथियारों के अपने लंबे, आधुनिक इतिहास से आगे निकल जाएँगे।
स्नेह-सहित,
विजय