प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
वैश्विक कर विनियमन की मौजूदा स्थिति को लेकर संयुक्त राष्ट्र के भीतर बहस चल रही है, जिसके बारे में कम ही लोगों को मालूम है। अगस्त 2023 में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने संयुक्त राष्ट्र में समावेशी व प्रभावी अंतरराष्ट्रीय कर सहयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित एक मसौदा जारी किया था। यह दस्तावेज़ अंतरराष्ट्रीय निगमों के अनियमित व्यवहार (विशेष रूप से कराधान से बचने के लिए उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रास्तों) और कर विनियमन पर उत्तरी गोलार्ध (विशेष रूप से अड़तालीस सबसे अमीर देशों के आर्थिक सहयोग एवं विकास [ओईसीडी] जैसे संगठनों) के वर्चस्व पर दक्षिणी गोलार्ध के नेतृत्व में चली एक लंबी बहस से निकला है। पिछले साल अगस्त में, नाइजीरिया सरकार ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक अंतरराष्ट्रीय कर सहयोग संधि पारित करने और विनियमन बहस को संयुक्त राष्ट्र के अधिकार–क्षेत्र में लाने का एक प्रस्ताव पेश किया था। दिसंबर 2022 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वह नाइजीरियाई प्रस्ताव पारित किया, जिसमें गुटेरेस को एक रिपोर्ट और एक नया अंतरराष्ट्रीय कर एजेंडा पेश करने को कहा गया था।
गुटेरेस ने अपने अगस्त 2023 के बयान में एक ‘समावेशी और प्रभावी‘ कर संधि की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि आधार क्षरण और लाभ हस्तांतरण पर समावेशी ढांचे (बीईपीएस) के लिए ओईसीडी और जी–20 का ‘दो–स्तंभ समाधान‘ अपर्याप्त है। इस समाधान का दूसरा स्तंभ है ‘अतिरिक्त लाभ‘ पर वैश्विक न्यूनतम प्रभावी कर विकसित करना; लेकिन चूँकि यह कर क्षेत्राधिकार के आधार पर लगाया जाएगा, इसलिए पूरी प्रक्रिया अराजक साबित होगी। इसके अलावा, ओईसीडी और जी–20 नीति को मुट्ठी भर देशों ने सभी देशों के लिए एक आदर्श के रूप में विकसित किया है। यहां तक कि जब ओईसीडी और जी–20 देश अन्य मुल्कों से राय मांगते हैं, तो गुटेरेस लिखते हैं, ‘उनमें से कई देशों को लगता है कि एजेंडा तैयार करने और निर्णय लेने में उन्हें बड़ी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।‘ गुटेरेस ने कहा कि यह अन्यायपूर्ण है। कराधान पर एक नई अंतरराष्ट्रीय संधि के निर्माण का काम संयुक्त राष्ट्र की ज़िम्मेदारी है, न कि ओईसीडी और जी–20 जैसे निकायों की।
वैसे ओईसीडी को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उसने कई महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव लाए जैसे कि 2021 का वैश्विक कर समझौता, जिस पर 136 देशों ने सहमति व्यक्त की थी। लेकिन, अंतरराष्ट्रीय निगमों (और संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार) के दबाव के चलते यह समझौता लागू नहीं किया जा सका है। अवैध टैक्स हेवन से लीक हुए दस्तावेज़ों (जैसे पैराडाइज़ पेपर्स और लक्ज़मबर्ग लीक्स) ने वित्तीय प्रवाह के विनियमन के मुद्दे को फिर से बहस में ला दिया है, जिससे ओईसीडी और जी–20 पर अपने वादों को पूरा करने का दबाव बन रहा है। जुलाई 2023 में ओईसीडी की ‘आउटकम स्टेट्मेंट‘ ने इस मुद्दे को फिर से उठा दिया। दो स्तंभ कर व्यवस्था जनवरी 2024 से लागू होने वाली है जिसके तहत €75 करोड़ से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने वाले अंतरराष्ट्रीय निगमों को 15% का वैश्विक न्यूनतम कर प्रत्येक क्षेत्राधिकार में देना होगा। लेकिन यहां भी, सरलीकृत प्रभावी कर दर, नियमित लाभ परीक्षण और डी मिनिमिस (नगण्य) परीक्षण जैसी प्रथाओं के ज़रिए, साल 2028 तक अंतरराष्ट्रीय निगमों को संरक्षण दे दिया गया है (क्योंकि इन उपकरणों को सही से लागू करने के लिए आधारभूत अकाउंटेंसी प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी)। यानी, अंतरराष्ट्रीय निगमों को विनियमित करने के लिए तैयार की गई प्रणाली से वैश्विक अकाउंटेंसी फर्मों के लिए व्यावसायिक अवसर पैदा किए जाएँगे। ये फ़र्में अंतरराष्ट्रीय निगमों को अपने मुनाफ़े सुरक्षित रखने में मदद करते हुए खुद भी पैसे कमाएँगी। (2022 में चार बड़ी अकाउंटिंग फर्मों ने राजस्व में 60 अरब डॉलर कमाए थे, लेकिन इस साल अकेले डेलॉइट ने 64.9 अरब डॉलर कमाए हैं।)
जुलाई 2023 में, टैक्स जस्टिस नेटवर्क ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया कि कर पर पूरी बहस ‘एक संख्या – 4.8 ट्रिलियन डॉलर – पर अटक गई है। हमारा अनुमान है कि ओईसीडी के कर नेतृत्व की वर्तमान दिशा के तहत सबसे धनाढ्य निगम और व्यक्ति अगले एक दशक के दौरान इतने कर की चोरी करेंगे।‘ आँकड़ों से पता चलता है कि ‘उच्च आय वाले देश वास्तविक रूप से राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा खो देंगे; और यह भी कि वैश्विक स्तर पर समस्या का सबसे बड़ा कारण भी वही देश हैं।‘ इस ‘वित्तीय गोपनीयता‘ में शीर्ष दस योगदानकर्ता – घटते क्रम में – यूनाइटेड किंगडम, नीदरलैंड, केमैन द्वीप, सऊदी अरब, लक्ज़मबर्ग, बरमूडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, सिंगापुर, आयरलैंड और हांगकांग हैं (जहां केमैन द्वीप और बरमूडा दोनों ही ब्रिटिश क्षेत्र हैं)। लेकिन, निम्न आय वाले देशों को ‘सबसे अधिक नुकसान होगा, वे अपने वर्तमान कर राजस्व या सार्वजनिक व्यय आवश्यकताओं का अब तक का सबसे बड़ा हिस्सा खोएँगे’। ‘अफ़्रीका में कर पारदर्शिता 2023‘ नामक एक अध्ययन से पता चलता है कि महाद्वीप के देशों को अवैध वित्तीय प्रवाह के कारण हर साल कम से कम 60 अरब डॉलर का नुकसान होता है। टैक्स जस्टिस नेटवर्क की रिपोर्ट एक स्पष्ट आह्वान के साथ समाप्त होती है:
देशों के पास दो ही विकल्प हैं: पैसा, और उसके साथ ही अपना भविष्य, दुनिया के मुट्ठी भर सबसे अमीर लोगों के हाथ में दे दें, या उसे अपने हाथ में लेकर एक ऐसा भविष्य बनाएँ जहाँ राजाओं और सामंतों की तरह आज के सबसे धनी निगमों और अरबपतियों की शक्ति लोकतंत्र की फ़तह के साथ चकनाचूर हो जाए। एक ऐसा भविष्य जहाँ हमारे समाज के सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने तथा एक निष्पक्ष, हरित और समावेशी दुनिया के निर्माण के लिए कर हमारा सबसे शक्तिशाली उपकरण बने।
1975 में, संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय निगम सूचना एवं अनुसंधान केंद्र (यूएनसीटीसी) की स्थापना की थी। दो घटनाओं के कारण यूएनसीटीसी का निर्माण हुआ था: पहला, 1974 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने नई अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (एनआईईओ) पारित की थी, और दूसरा, सितंबर 1973 में चिली के राष्ट्रपति साल्वाडोर अलेंदे की पॉप्युलर यूनिटी सरकार के खिलाफ तख़्तापलट हुआ था। दरअसल, ये दोनों घटनाएँ आपस में जुड़ी हुई थीं क्योंकि एनआईईओ के निर्माण की प्रक्रिया 1972 से अलेंदे के नेतृत्व में चल रही थी, जिसके तहत चिली जैसे देशों को अपने कच्चे माल पर संप्रभुता देने की तैयारी हो रही थी। अलेंदे ने सैंटियागो में यूएनसीटीडी III की बैठक (अप्रैल 1972) और संयुक्त राष्ट्र महासभा (दिसंबर 1972) में इन मुद्दों पर जोरदार ढंग से बात की थी; जिसे हमने अपने डोसियर 68 (सितंबर 2023) ‘तीसरी दुनिया के खिलाफ तख्तापलट: चिली, 1973’ में विस्तार से पेश किया है। अलेंदे के ख़िलाफ़ तख़्तापलट ने तीसरी दुनिया में दूरसंचार निगम आईटीटी और तांबे की कंपनी एनाकोंडा जैसी अंतरराष्ट्रीय निगमों (जिन्होंने चिली तख़्तापलट में निर्णायक भूमिका निभाई थी) पर निगरानी और विनियमन स्थापित करने की इच्छाशक्ति को मज़बूत कर दिया। इसलिए, यूएनसीटीसी के निर्माण का कारण एनआईईओ और चिली तख़्तापलट, दोनों रहे।
यूएनसीटीसी का मिशन सीधा सा था: अंतरराष्ट्रीय निगमों की गतिविधियों के बारे में एक सूचना प्रणाली का निर्माण करना; इन कंपनियों के साथ बातचीत हेतु तीसरी दुनिया की सरकारों के लिए तकनीकी सहायता के कार्यक्रम बनाना; और इन कंपनियों की अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों के लिए एक आचार संहिता तैयार करना। तैंतीस कर्मचारियों के बावजूद यूएनसीटीसी 1977 तक अपना काम शुरू नहीं कर सका। इसका कारण था कि शुरू से ही यूएनसीटीसी पर इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स और कई अमेरिका–आधारित संस्थानों का दबाव था, जो अमेरिकी सरकार से उसके कामकाज को रोकने की पैरवी कर रहे थे।
बहरहाल, यूएनसीटीसी के कर्मचारियों ने अंतरराष्ट्रीय निगमों और द्विपक्षीय निवेश संधियों के सामाजिक प्रभाव आदि विषयों पर 265 दस्तावेज़ तैयार किए। यूएनसीटीसी का काम अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक आचार संहिता के निर्माण की दिशा में धीरे–धीरे आगे बढ़ रहा था, जिससे (हस्तांतरण मूल्य निर्धारण और मुनाफे के प्रेषण सहित) अवैध वित्तीय प्रवाह के ज़रिए वित्तीय लूट का तंत्र विकसित करने की उनकी ताक़त पर अंकुश लगता। 1987 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने यूएनसीटीसी से आचार संहिता को अंतिम रूप देने और संहिता पर चर्चा के लिए एक विशेष सत्र आयोजित करने का आग्रह किया।
उसी साल, संयुक्त राज्य अमेरिका की हेरिटेज फाउंडेशन ने तर्क दिया कि यूएनसीटीसी ‘जानबूझकर पश्चिम विरोधी और मुक्त उद्यम विरोधी रुख‘ अपना रहा था। मार्च 1991 में, अमेरिकी विदेश विभाग ने आचार संहिता के ख़िलाफ़ पैरवी करने के लिए अपने दूतावासों को एक पत्र भेजा, जिसमें आचार संहिता को ‘किसी पुराने युग का अवशेष‘ कहा गया ‘जहाँ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को काफी चिंता के साथ देखा जाता था‘। अमेरिका ने अगले संयुक्त राष्ट्र महासचिव बुट्रोस बुट्रोस घाली पर यूएनसीटीसी को ख़त्म करने का दबाव डाला और घाली ने व्यापक संयुक्त राष्ट्र सुधार एजेंडे के तहत इसे भंग कर दिया। इस तरह विनियमन के मुद्दे का अंत हो गया। फिर ओईसीडी ने कार्य संभाला और सुनिश्चित किया कि उदारवाद के छद्मावरण के नीचे अंतरराष्ट्रीय निगम बिना किसी रोक–टोक वाले वैश्विक वातावरण में खुल कर काम कर सकें। अब बीते कुछ साल पहले शुरू हुई बहस का मक़सद है कि वैश्विक कर नीति – और कुछ हद तक अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के विनियमन – की ज़िम्मेदारी उत्तरी गोलार्ध के प्रभुत्व वाले ओईसीडी की बजाय वापस संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के हाथों में दी जाए।
1976 में पेरू की क्रांतिकारी कवयित्री मैग्डा पोर्टल (1900-1989) ने निकारागुआ के कवि अर्नेस्टो कार्डेनल के लिए एक कविता लिखी थी। कविता का सार था कि असमानता तथा दुख हमारे शहरों में सदियों से व्याप्त रहा है, लेकिन ‘अंतरराष्ट्रीय निगम और उनके गुर्गे‘ जो कर रहे हैं वो कहीं ज़्यादा बदतर है। वो लिखती हैं कि:
‘अमेरिका के इस तरफ़ आप उन लोगों की उबकाई और जहरीली सांसों को महसूस कर सकते हैं जो केवल हमारी खदानें, हमारा सोना और हमारा भोजन तक हड़पना चाहते हैं।‘
…
उनींदी धरती पर इससे ज़्यादा दर्द कभी नहीं फैला था।
अब गला फाड़ कर पूरी तेज़ आवाज़ के साथ,
विरोध, अस्वीकृति जताए बिना
और न्याय की माँग उठाए बिना
ज़िंदा रहने से ज़्यादा निंदनीय कुछ नहीं बचा।
लेकिन किसके आगे करें ये आलाप?
हम रोजाना इस तरह कैसे जीते रह सकते हैं,
जुगाली करते हुए, भोजन का आनंद लेते हुए
जबकि धरती पर लाखों लोग अपने ही खून में डूबने को मजबूर हैं?
मैं अश्वेत अफ़्रीका में, रंगभेद और स्वेटो की यातनाओं से पीड़ित,
और नामीबिया और रोडेशिया में, और एशिया में,
लेबनान और उत्तरी आयरलैंड में
लोग सज़ा–ए–मौत के इंतज़ार में।
क्या हम ऐसे ही जीते रह सकते हैं
जबकि एक ही दर्द दौड़ रहा है पूरी दुनिया की रीढ़ से?
स्नेह–सहित,
विजय।