प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
8 जनवरी को, ब्राज़ील की राजधानी ब्रासीलिया में बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए। उन्होंने संसद, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति निवास सहित कई सरकारी इमारतों में घुसकर सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुँचाया। पूर्व राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो के समर्थकों द्वारा किया गया हमला किसी तरह की आकस्मिक घटना नहीं थी, क्योंकि दंगाई कई दिनों से सोशल मीडिया पर ‘सप्ताहांत प्रदर्शन‘ की योजना बना रहे थे। जब लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा (जिन्हें आम तौर पर लूला के नाम से जाना जाता है) को औपचारिक रूप से एक सप्ताह पहले, 1 जनवरी को, ब्राज़ील के नये राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई थी, उस दिन किसी प्रकार की हाथापाई नहीं हुई थी; ऐसा प्रतीत होता है कि दंगाई शहर के शांत होने और लूला के शहर से बाहर जाने का इंतज़ार कर रहे थे। उनकी तमाम धमकियों के बावजूद यह हमला कायरता की निशानी है।
इस बीच, चुनाव में पराजित बोलसोनारो ब्रासीलिया के आस–पास नहीं थे। बोलसोनारो लूला के शपथ ग्रहण समारोह से पहले ही, शायद सज़ा से बचने के लिए, ब्राज़ील से भागकर ऑरलैंडो, फ्लोरिडा (संयुक्त राज्य अमेरिका) में शरण ली थी। भले ही बोलसोनारो ब्रासीलिया में नहीं थे, फिर भी उनके समर्थक बोलसोनारिस्टास ने पूरे शहर में अपनी छाप छोड़ दी। पिछले अक्टूबर में बोलसोनारो के लूला से चुनाव हारने से पहले ही, ले मोंडे डिप्लोमैटिक ब्रासिल ने सुझाव दिया था कि ब्राज़ील ‘बोलसोनारो के बिना बोलसोनारोवाद‘ का अनुभव करेगा। इस भविष्यवाणी को आप इस तथ्य से समझ सकते हैं कि धुर दक्षिणपंथी लिबरल पार्टी, जो कि बोलसोनारो के शासनकाल में उनके राजनीतिक वाहक की तरह काम कर रही थी, देश के चैंबर ऑफ़ डेप्युटीज़ और सीनेट में सबसे बड़ा गुट है। इसके साथ–साथ दक्षिणपंथ का विषाक्त प्रभाव ब्राज़ील के निर्वाचित निकायों और राजनीतिक माहौल दोनों जगह, विशेष रूप से सोशल मीडिया, पर लगातार दिखाई दे रहा है।
ब्रासीलिया में सार्वजनिक सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार दोनों व्यक्ति – एंडरसन टोरेस (संघीय ज़िले के सार्वजनिक सुरक्षा सचिव) और इबनीस रोचा (संघीय ज़िले के गवर्नर) – बोलसोनारो के क़रीबी हैं। टोरेस ने बोलसोनारो की सरकार में न्याय और सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री के रूप में काम किया था, जबकि रोचा ने चुनाव के दौरान औपचारिक रूप से बोलसोनारो का समर्थन किया। ऐसा लगता है कि जब बोलसोनारो के समर्थक, बोलसोनारिस्टास, राजधानी पर अपने हमले की तैयारी कर रहे थे, तब इन दोनों पुरुषों ने अपनी ज़िम्मेदारियों से मुँह मोड़ लिया था: टोरेस ऑरलैंडो में छुट्टी पर थे, जबकि रोचा ने तख़्तापलट के इस प्रयास से पहले आख़िरी कार्य दिवस पर दोपहर की छुट्टी ले ली थी। हिंसा की कार्रवाई को शह देने के लिए टोरेस को उनके पद से बर्ख़ास्त कर दिया गया है और उन पर मुक़दमा चलेगा, और रोचा को निलंबित कर दिया गया। संघीय सरकार ने सुरक्षा का ज़िम्मा अपने हाथ ले लिया है और दंगे में शामिल एक हज़ार से अधिक लोगों को गिरफ़्तार कर लिया है। लूला ने इन दंगाइयों को ‘कट्टर नाज़ी‘ कहा। ये ‘कट्टर नाज़ी‘ माफ़ी के लायक़ नहीं हैं।
8 जनवरी को ब्रासीलिया में लगाए गए नारे और पोस्टर, बोलसोनारो के बारे में कम और लूला के प्रति दंगाइयों की नफ़रत और उनकी जन–समर्थक सरकार की क्षमता के बारे में अधिक थे। बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों – मुख्य रूप से कृषि व्यवसाय – से संबंधित लोगों के बीच भी यही भावना है, क्योंकि वे लूला द्वारा प्रस्तावित सुधारों को लेकर ग़ुस्से में हैं। यह हमला जानबूझकर चलाए जा रहे ग़लत सूचना अभियानों के द्वारा लोगों में निर्मित निराशा और न्यायिक प्रणाली का इस्तेमाल कर लूला को अपराधी बताकर उनकी वर्कर्स पार्टी (पीटी) को ‘क़ानूनी हथियार‘ के माध्यम से हटाने के प्रयासों का परिणाम था। जबकि अदालतें लूला के अपराधी होने को ग़लत ठहरा चुकी हैं। यह ब्राज़ील के अभिजात वर्ग की ओर से एक चेतावनी भी थी। ब्रासीलिया पर हुए हमले की अनियंत्रित प्रकृति पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थकों द्वारा यूएस कैपिटल पर 6 जनवरी 2021 के हमले से मिलती जुलती है। दोनों ही मामलों में, धुर–दक्षिणपंथी भ्रम, चाहे वह अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के ‘समाजवाद‘ के ख़तरों के बारे में हो या लूला के ‘साम्यवाद‘ के बारे में हो, नवउदारवादी नीतियों के तहत की जाने वाली कटौतियों को ज़रा सा भी कम करने के ख़िलाफ़ अभिजात वर्ग के शत्रुतापूर्ण विरोध का प्रतीक है।
संयुक्त राज्य अमेरिका (2021) और ब्राज़ील (2023) में सरकारी कार्यालयों पर हमले, और पेरू में हाल ही में हुआ तख़्तापलट (2022), आकस्मिक घटनाएँ नहीं हैं; उनके पीछे एक पैटर्न है जिसकी पड़ताल करने की आवश्यकता है। ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान में, हम पाँच साल पहले अपनी स्थापना के बाद से इस पैटर्न के अध्ययन में लगे हुए हैं; हमारे पहले प्रकाशन, इन द रूइन्स ऑफ़ द प्रेज़ेंट (मार्च 2018) में, हमने इस पैटर्न का प्रारंभिक विश्लेषण पेश किया था। उस विश्लेषण को मैं आगे यहाँ फिर से प्रस्तुत करूँगा।
1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद और ऋण संकट के परिणामस्वरूप तीसरी दुनिया की परियोजना ध्वस्त हो गई, और नवउदारवादी वैश्वीकरण का यूएस–संचालित एजेंडा प्रबल हुआ। इस कार्यक्रम की विशेषता थी पूँजी के नियमन से देश की सरकारों का मुँह मोड़ लेना और सामाजिक कल्याण नीतियों का क्षरण। इस नवउदारवादी ढाँचे के दो प्रमुख परिणाम हुए: (1) सामाजिक असमानता में तेज़ी से वृद्धि हुई, एक ध्रुव पर अरबपतियों की संख्या बढ़ी और दूसरे पर ग़रीबी की वृद्धि हुई, इसके साथ–साथ उत्तर और दक्षिण के बीच की असमानता भी बढ़ी है; और (2) एक ‘केंद्रीयमार्गी‘ राजनीतिक शक्ति का उदय हुआ जिसने तर्क दिया कि इतिहास का अंत हो गया है, और इसलिए राजनीति की भी समाप्ति हो गई है और केवल प्रशासन की ज़रूरत बची है (ब्राज़ील में इस अवधारणा को सेंट्राओ कहा जाता है)। दुनिया भर के अधिकांश देश नवउदारवाद द्वारा प्रायोजित बुनियादी सुविधाओं की कटौती के एजेंडे और ‘राजनीति के अंत‘ की विचारधारा, दोनों के शिकार हुए, और लगातार अलोकतांत्रिक बनते गए। इस तरह से टेक्नोक्रेट्स को प्रभारी बनाने की जगह बनी। जबकि मानवता पर हमला करने के साथ इन नवउदारवादी नीतियों ने सड़कों पर अपनी एक नयी राजनीति का निर्माण किया। इस नयी राजनीति की झलक मिली थी 1980 के दशक में हुए ‘आईएमएफ़ दंगों‘ और ‘रोटी दंगों‘ में और उसके बाद ‘वैश्वीकरण–विरोधी‘ प्रदर्शनों में। अमेरिका द्वारा संचालित वैश्वीकरण के एजेंडे ने नये विरोधाभासों को जन्म दिया जिसने इस तर्क को झुठला दिया कि राजनीति समाप्त हो गई है।
2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट के साथ शुरू हुई महा मंदी ने नवउदारवादी कटौती वाली व्यवस्था को प्रबंधित करने वाले ‘केंद्रवादियों‘ की राजनीतिक साख को तेज़ी से कम कर दिया। विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 नवउदारवाद की विरासत पर लगा अभियोग है। आज, धन असमानता बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों के बराबर पहुँच चुकी है: दुनिया की सबसे ग़रीब आधी आबादी के पास औसतन प्रति वयस्क केवल $4,100 की क्रय शक्ति है, जबकि सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों के पास उनसे 190 गुना ज़्यादा, $771,300 क्रय शक्ति है। आय असमानता की खाई भी इतनी बड़ी है, सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों के पास वैश्विक आय का 52 प्रतिशत हिस्सा है, और सबसे ग़रीब 50 प्रतिशत के पास केवल 8.5 प्रतिशत हिस्सा है। अगर आप अमीरों में भी सबसे अमीरों को देखें तो तस्वीर और भी बुरी है। 1995 और 2021 के दौरान, सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि हुई है। वैश्विक संपत्ति में इनकी हिस्सेदारी 38 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि नीचे के 50 प्रतिशत का केवल ‘दो ही प्रतिशत पर क़ब्ज़ा‘ बढ़ा है। इसी दौरान सबसे अमीर 0.1 प्रतिशत लोगों का वैश्विक संपत्ति में हिस्सा 7 प्रतिशत से बढ़कर 11 प्रतिशत हो गया है। यह अश्लील धन संचय – जिस पर अधिकतर कोई टैक्स नहीं लगता – दुनिया की आबादी के इस छोटे से हिस्से को राजनीतिक जीवन और सूचना प्रसारण पर अधिकाधिक शक्ति प्रदान करता है और ग़रीबों के जीवित रहने की क्षमता को तेज़ी से कम कर रहा है।
विश्व बैंक की वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट (जनवरी 2023) का अनुमान है कि 2024 के अंत में, दुनिया के 92 ग़रीब देशों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) महामारी के ठीक पहले के अपेक्षित स्तर से 6 प्रतिशत नीचे होगा। 2020 और 2024 के बीच, इन देशों को अपने 2019 के सकल घरेलू उत्पाद में संचयी रूप से 30 प्रतिशत का नुक़सान होने का अनुमान है। जैसे–जैसे सबसे अमीर देशों के केंद्रीय बैंक अपनी मौद्रिक नीतियों को सख़्त बना रहे हैं, वैसे–वैसे ग़रीब देशों में निवेश के लिए पूँजी ख़त्म हो रही है और पहले से ही मौजूद ऋणों की लागत बढ़ गई है। इन ग़रीब देशों में कुल क़र्ज़, विश्व बैंक ने नोट किया है, ’50 साल के उच्चतम स्तर पर है‘। मोटे तौर पर इनमें से प्रत्येक पाँच में से एक देश ‘वैश्विक ऋण बाज़ारों से प्रभावी रूप से बाहर‘ है, जबकि 2019 में प्रत्येक पंद्रह में से एक देश ऐसी स्थिति में था। चीन को छोड़कर, इन सभी देशों ने महामारी के दौरान ‘8 प्रतिशत से भी अधिक निवेश में कमी का सामना किया‘ जो कि महा मंदी के तुरंत बाद ‘2009 की तुलना में कहीं अधिक गहरी गिरावट है‘। रिपोर्ट का अनुमान है कि 2024 में इन देशों में कुल निवेश 2020 की अपेक्षा 8 प्रतिशत कम होगा। इस वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए विश्व बैंक ने पूर्वानुमान लगाया है: ‘सुस्त निवेश संभावित उत्पादन की वृद्धि दर को कमज़ोर करता है, व मध्यम आय बढ़ाने, साझा समृद्धि को बढ़ावा देने और ऋण चुकाने की अर्थव्यवस्थाओं की क्षमता को कम करता है‘। दूसरे शब्दों में कहें तो, ग़रीब देश ऋण संकट और सामाजिक संकट की स्थायी स्थिति में चले जाएँगे‘।
विश्व बैंक ने ख़तरे की घंटी बजा दी है, लेकिन अरबपति वर्ग और नवउदारवाद की राजनीति के पक्ष में खड़ी ‘केंद्रवाद‘ की ताक़तें नवउदारवादी तबाही को ख़त्म ही नहीं करना चाहतीं। यदि कोई मध्यमार्गी–वामपंथी या कोई वामपंथी नेता अपने देश को सामाजिक असमानता और ध्रुवीकृत धन वितरण से बाहर निकालने की कोशिश करता है, तो उसे न केवल ‘केंद्रवादियों‘, बल्कि उत्तर के धनी बॉन्डहोल्डरों, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष व पश्चिमी देशों के क्रोध का सामना करना पड़ता है। पेड्रो कैस्टिलो जब जुलाई 2021 में पेरू में राष्ट्रपति पद पर जीते, तो उन्हें सामाजिक लोकतंत्र के स्कैंडिनेवियाई रूप को भी आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं मिली; उनके शपथ समारोह से पहले ही उनके ख़िलाफ़ तख़्तापलट की साज़िश शुरू हो गई थी। भूख और निरक्षरता को समाप्त करने वाली सभ्य राजनीति को अरबपति वर्ग द्वारा आसानी से अनुमति नहीं मिलती। वे अपने असीम धन का इस्तेमाल कर ऐसे थिंक टैंक और मीडिया घराने चलाते हैं जो जन–पक्षीय परियोजनाओं को कमज़ोर करते हैं। वे धुर दक्षिणपंथी ख़तरनाक ताक़तों को फ़ंड देते हैं, जो सामाजिक अराजकता का दोष कर–मुक्त अति–अमीरों पर और पूँजीवादी व्यवस्था पर नहीं मढ़ते बल्कि ग़रीबों पर मढ़ते हैं।
ब्रासीलिया में हुआ हमला उसी पैटर्न का हिस्सा है जिसने पेरू में तख़्तापलट करवाया था। इन तख़्तापलटों के द्वारा ‘केंद्रवादी‘ राजनीतिक ताक़तों को फ़ंड देकर उन्हें दक्षिणी गोलार्ध के देशों में सत्ता में लाया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके अपने नागरिक क़तार में सबसे पीछे रहें, जबकि उत्तरी गोलार्ध के देशों के अमीर कर–मुक्त बॉन्डहोल्डर सबसे आगे रहे।
14 अक्टूबर 1793 को पेरिस की सीमा पर, पेरिस कम्यून के अध्यक्ष पियरे गैसपार्ड चाउमेट, जो ख़ुद उसी तरह मारे गए, जैसे उन्होंने कई अन्य लोगों को मारा था, ने जीन–जैक्स रूसो के इन बेहतरीन शब्दों को उद्धृत किया था: ‘जब लोगों के पास खाने को कुछ नहीं बचेगा, तब वो अमीरों को खा जाएँगे‘।
स्नेह–सहित,
विजय।