प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
जून में, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास समाधान नेटवर्क ने अपनी सतत विकास रिपोर्ट 2023 प्रकाशित की है। यह रिपोर्ट सत्रह सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की दिशा में 193 सदस्य देशों की प्रगति की पड़ताल करती है। रिपोर्ट के अनुसार ‘2015 से 2019 तक दुनिया ने एसडीजी [लक्ष्यों] पर कुछ प्रगति हासिल की थी, हालांकि वह प्रगति लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपर्याप्त थी। लेकिन, 2020 में महामारी और उसके साथ आए अन्य संकटों के बाद से, वैश्विक स्तर पर एसडीजी की प्रगति रुक गई है‘। 2015 में अपनाए गए ये विकास लक्ष्य 2030 तक पूरे किए जाने थे। लेकिन रिपोर्ट के अनुसार कुल समय सीमा की आधी अवधि बीत जाने के बाद भी ‘सारे एसडीजी अपने लक्ष्यों से कोसों दूर हैं‘। संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश अपनी एसडीजी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में असमर्थ क्यों हैं? रिपोर्ट के अनुसार ‘एसडीजी लक्ष्य मूल रूप से एक निवेश एजेंडा हैं: [इसलिए] यह जरूरी है कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश एसडीजी उद्दीपन को अपनाएं व लागू करें और वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के व्यापक सुधार का समर्थन करें‘। फिर भी, कुछ ही देश अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा कर सके हैं। दरअसल, एसडीजी एजेंडे को साकार करने के लिए गरीब देशों को प्रति वर्ष कम से कम 4 ट्रिलियन डॉलर के अतिरिक्त निवेश की ज़रूरत है।
पर इन दिनों किसी भी तरह का विकास संभव नहीं है, क्योंकि अधिकांश गरीब देश स्थायी ऋण संकट की चपेट में हैं। यही कारण है कि सतत विकास रिपोर्ट 2023 में क्रेडिट रेटिंग प्रणाली में संशोधन की मांग की गई है; यह प्रणाली देशों की उधार लेने की प्रक्रिया को बाधित करती है (और जब उन्हें उधार मिलता भी है, तो अमीर देशों की तुलना में काफ़ी ऊँची ब्याज दर पर मिलता है)। इसके अलावा, यह रिपोर्ट ‘संप्रभु ऋण (sovereign debt) के परिप्रेक्ष्य में स्व–पूर्ति बैंकिंग (self-fulfilling banking) और भुगतान संतुलन संकटों (balance-of-payments crises) को रोकने के लिए‘ गरीब देशों की तरलता संरचनाओं को संशोधित करने के लिए बैंकिंग प्रणाली का आह्वान भी करती है।
विकास पर होने वाली चर्चाओं में संप्रभु ऋण संकट पर अहम रूप से बातचीत की जानी चाहिए। व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) का अनुमान है कि ‘चीन को छोड़कर, विकासशील देशों का सार्वजनिक ऋण 2021 में 11.5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया था‘। उसी साल, विकासशील देशों ने अपने ऋण को चुकाने के लिए 400 बिलियन डॉलर का भुगतान किया था – यह राशि उन्हें मिली आधिकारिक विकास सहायता के दोगुने से भी अधिक थी। अधिकांश देश अपनी आबादी में निवेश करने के लिए नहीं बल्कि बॉन्ड–धारकों को भुगतान करने के लिए पैसा उधार ले रहे हैं। इसीलिए हम इसे विकास हेतु वित्तपोषण कहने के बजाय ऋण–सेवा हेतु वित्तपोषण मानते हैं।
विकास के विषय में संयुक्त राष्ट्र द्वारा और अकादमिक जगत में लिखा गया साहित्य निराश करता है। चर्चाएँ लाइलाज और स्थायी ऋण संकट की निंदा के चक्रव्यूह में उलझ जाती हैं। कर्ज़ का बोझ दुनिया के लोगों की वास्तविक प्रगति की संभावना को खत्म कर देता है। तमाम रिपोर्टों के निष्कर्ष ‘ऐसा या वैसा होना चाहिए‘ का नैतिक आह्वान पेश करते हैं; लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था की नव–उपनिवेशवादी संरचना के तथ्यों के आधार पर स्थिति का आकलन नहीं पेश करते: कि संसाधनों से समृद्ध विकासशील देशों को उनके निर्यात की सही कीमतें नहीं मिलतीं, जिसके कारण वे न तो अपनी आबादी की ज़रूरतों के अनुसार औद्योगीकरण हेतु पर्याप्त धन जमा कर पाते हैं, और न ही अपनी आबादी के लिए आवश्यक सामाजिक वस्तुओं का वित्तपोषण कर पाते हैं। दम घोंटू ऋण और अकादमिक विकास सिद्धांत के खोखलेपन के कारण स्थाई ऋण और बजट कटौतियों के चक्र से बाहर निकलने का रास्ता दिखाने वाले समग्र यथार्थवादी विकास एजेंडा की रूपरेखा पेश करने वाली कोई प्रभावी सैद्धांतिक दिशा भी उपलब्ध नहीं है।
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान में हम एक नए, जन–आंदोलनों व प्रगतिशील सरकारों की परियोजनाओं के अनुभवों से लैस, समाजवादी विकास सिद्धांत की आवश्यकता के बारे में चर्चा शुरू करना चाहते हैं। इसी कड़ी में, हमने अपना हालिया डोसियर ‘दुनिया को नए समाजवादी विकास सिद्धांत की ज़रूरत है‘ जारी किया है। यह डोसियर 1945 से लेकर आज तक विकास सिद्धांत में हुए बदलावों की पड़ताल करता है, और मौजूदा दौर के लिए जरूरी नए प्रतिमान का प्रस्ताव रखता है। हमारे डोसियर के अनुसार:
तथ्यों के साथ शुरूआत करने के लिए आवश्यक है कि कर्ज़ तथा विऔद्योगीकरण की समस्याओं, प्राथमिक उत्पादों के निर्यात पर निर्भरता, बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा रॉयल्टियों को हथियाने के लिए हस्तांतरण मूल्य निर्धारण (Transfer pricing) का प्रयोग, नई औद्योगिक रणनीतियों के निर्माण में आने वाली कठिनाइयों और दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में लोगों की तकनीकी, वैज्ञानिक एवं नौकरशाही की क्षमताओं की निर्माण प्रक्रिया में आने वाली समस्याओं को स्वीकार किया जाए। इन कठिनाइयों से पार पाना वैश्विक दक्षिण की सरकारों के लिए हमेशा से ही एक दुष्कर कार्य रहा है। हालाँकि अब, दक्षिण–दक्षिण के नए खिलाड़ियों तथा चीनी सार्वजनिक संस्थानों के उद्भव ने इन सरकारों के सामने बहुत से विकल्प पैदा कर दिए हैं। अब ये सरकारें पश्चिमी देशों द्वारा नियंत्रित वित्तीय एवं व्यापारिक संस्थानों पर आश्रित नहीं हैं। इन नई सच्चाइयों का जन्म नये विकास सिद्धांतों के प्रतिपादन और दुराग्रही सामाजिक निराशा से पार पाने हेतु नये नज़रियों के निर्माण की माँग करता है। दूसरे शब्दों में, राष्ट्रीय नियोजन तथा क्षेत्रीय सहयोग के साथ–साथ वित्त एवं व्यापार के लिए एक बेहतर बाहरी वातावरण बनाने की लड़ाई की नितांत आवश्यकता है।
इंटरनेशनल रिसर्च सेंटर डीडीआर (आईएफ डीडीआर), बर्लिन में हमारे सहयोगियों के साथ हाल ही में हुई बातचीत से यह एहसास हुआ कि यह डोजियर सोवियत संघ, जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य (German Democratic Republic, DDR), यूगोस्लाविया और व्यापक अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन में हुए विकास पर चली बहस व चर्चाओं को शामिल करने में विफल रहा है। 1920 में मॉस्को में आयोजित कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की दूसरी कांग्रेस के समय से ही, कम्युनिस्टों ने उपनिवेशिकृत समाजों के लिए ‘गैर–पूंजीवादी विकास (Non-capitalist development, एनसीडी)’ सिद्धांत तैयार करना शुरू कर दिया था; इन समाजों में पूंजीवादी विश्व अर्थव्यवस्था में एकीकृत हो जाने के साथ साथ पूर्व–पूँजीवादी उत्पादन संबंध और सामाजिक भेदभाव भी बरकरार थे। एनसीडी सिद्धांत की सामान्य समझ यह थी कि उपनिवेश से आज़ाद हुए समाज पूंजीवाद को दरकिनार कर, राष्ट्रीय–लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से सीधे समाजवाद की ओर आगे बढ़ सकते हैं। एनसीडी सिद्धांत कम्युनिस्ट और श्रमिक दलों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में विकसित हुआ और वर्ल्ड मार्क्सिस्ट रिव्यू जैसी पत्रिकाओं में रोस्टिस्लाव ए. उल्यानोव्स्की तथा सर्गेई टिउलपानोव जैसे सोवियत संघ के विद्वानों ने इसका विस्तार कियाथा। यह सिद्धांत तीन महत्वपूर्ण परिवर्तनों पर केंद्रित था:
● किसानों को गरीबी की स्थिति से बाहर निकालने और जमींदारों के वर्चस्व को तोड़ने के लिए कृषि सुधार करना।
● विदेशी एकाधिकार की शक्ति को प्रतिबंधित करने के लिए उद्योग और व्यापार जैसे प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों का राष्ट्रीयकरण करना।
● समाजवाद की सामाजिक–राजनीतिक नींव मज़बूत करने के लिए राजनीतिक संरचनाओं, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा का लोकतांत्रिकरण करना।
लैटिन अमेरिका के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग (ECLA) जैसे संस्थानों द्वारा पेश की गई उन्नत आयात–प्रतिस्थापन औद्योगीकरण नीति के विपरीत, एनसीडी सिद्धांत ने केवल व्यापार की शर्तों को बदलने के बजाय समाज के लोकतांत्रिकरण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। आईएफ डीडीआर की ‘फ्रेंडशिप‘ सीरीज़ में मैथ्यू रीड द्वारा लिखे गए एक लेख में 1960 के दशक के दौरान माली में एनसीडी सिद्धांत के व्यावहारिक अनुप्रयोग का एक शक्तिशाली विवरण मिलता है। आईएफ डीडीआर और ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान भविष्य में एनसीडी सिद्धांत का व्यापक अध्ययन करेंगे।
उपनिवेशवाद से पहले ही, पश्चिम अफ़्रीका में अफ़्रीकी और अरब विद्वानों ने विकास सिद्धांत के तत्वों पर काम करना शुरू कर दिया था। उदाहरण के लिए, सोकोतो ख़लीफ़ा (1804-1903) की स्थापना करने वाले फुलानी शेख, उथमान इब्न मुहम्मद इब्न उथमान इब्न फोड्यो (1754-1817), ने ख़ुद को और अपने अनुयायियों को ग़ुरबत से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए उसुल अल-‘अदल ली–वुल्लत अल–उमुर वा–अहल अल–फदल वा–अल–सलातिन (‘गवर्नरों, राजकुमारों और मेधावी शासकों के लिए न्याय का प्रशासन‘) लिखी थी। इस पुस्तक में शामिल सिद्धांत दिलचस्प हैं, लेकिन उस समय मौजूद सामाजिक उत्पादन के स्तर के चलते यह ख़लीफ़ा निम्न तकनीकी उत्पादकता और गुलामगिरी पर निर्भर था। इससे पहले कि पश्चिमी अफ़्रीका के लोग ख़लीफ़ा से सत्ता छीनकर ख़ुद अपने समाज को आगे बढ़ाने की राह पकड़ते, अंतिम ख़लीफ़ा को अंग्रेजों ने मार डाला। इसके बाद अंग्रेजों ने जर्मन व फ्रांसीसियों के साथ मिलकर उनकी ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लिया और उनके इतिहास को यूरोप के अधीन कर दिया। इसके पांच दशक बाद, एक कम्युनिस्ट नेता मोदिबो कीता ने माली के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया। उनका मक़सद एनसीडी परियोजना के माध्यम से अफ़्रीका की ज़मीन को अधीनता की बेड़ियों से आज़ाद करना था। कीता प्रत्यक्ष रूप से इब्न फोड्यो, जिनके विचारों की छाप पूरे पश्चिम अफ़्रीका पर मौजूद है, के अनुयायी नहीं थे। लेकिन हम अपने समय की क्रूर सामाजिक संरचनाओं की सीमाओं में जकड़े पुराने विचारों और तीसरी दुनिया के बुद्धिजीवियों द्वारा पेश किए गए नए विचारों के बीच निरंतरता देख सकते हैं।
स्नेह–सहित,
विजय।