प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
पिछले पंद्रह सालों में यूरोपीय देशों के सामने बेहतरीन अवसर आए हैं और उन्हें जटिल विकल्पों का चुनाव भी करना पड़ा है। व्यापार और निवेश के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका पर अरक्षणीय निर्भरता और ब्रेक्सिट से उत्पन्न व्याकुलता ने यूरोप के देशों को रूस के ऊर्जा बाज़ारों के साथ नियमित एकीकरण के लिए, और चीनी निवेश के अवसरों तथा चीन के निर्माण कौशल का अधिक लाभ उठाने के लिए प्रेरित किया।
यूरोप और इन दो बड़े एशियाई देशों (चीन और रूस) के बीच घनिष्ठ संबंधों ने अमेरिका को इनके एकीकरण को रोकने या इसमें बाधा डालने का एजेंडा अपनाने के लिए उकसाया। यह एजेंडा, अब जर्मनी में हाल ही में हुई ग्रुप ऑफ़ 7 (जी7) मीटिंग और स्पेन में हुई नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन (नाटो) समिट के दौरान, और भी मज़बूत हो गया है, और दुनिया के लिए ख़तरनाक स्थिति पैदा कर रहा है।
बात 2007-08 के वित्तीय संकट से शुरू होती है, जब अमेरिका का आवास बाज़ार और कई प्रमुख अमेरिकी वित्तीय संस्थान डगमगा रहे थे। इस संकट से दुनिया के बाक़ी हिस्सों को संकेत मिला कि अमेरिका-केंद्रित वित्तीय प्रणाली अविश्वसनीय है। अमेरिका का बाज़ार विश्व की वस्तुओं की माँग के लिए अंतिम सहारा नहीं रहा। जी7 देश – जो ख़ुद को वैश्विक पूँजीवादी व्यवस्था के संरक्षक के रूप में देखते थे – अपने दायरे से बाहर के देशों, जैसे चीन और भारत, से अपने अधिशेष को पश्चिमी वित्तीय प्रणाली में डालने के लिए कहने लगे ताकि उसकी कुल मंदी को रोका जा सके। इस मेहरबानी के बदले में, जी7 के बाहर के देशों से कहा गया कि अब से जी20 विश्व व्यवस्था का कार्यकारी निकाय होगा और जी7 धीरे-धीरे ख़त्म हो गया। फिर भी, आज लगभग बीस साल बाद भी, जी7 न केवल ज़िंदा है बल्कि वह विश्व नेता होने का दावा भी करता है। इतना ही नहीं, नाटो, अमेरिका का ट्रोजन हॉर्स, अब दुनिया पर एक पुलिसवाले की तरह हावी हो रहा है।
नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने कहा है कि नाटो ‘शीत युद्ध के बाद से सामूहिक निवारण और रक्षा’ में अब तक के सबसे बड़े बदलाव से गुज़रेगा। नाटो के सदस्य देश, अब फ़िनलैंड और स्वीडन के आने के बाद, अपने ‘उच्च तत्परता बलों’ में 40,000 सैनिकों से 300,000 सैनिकों तक का विस्तार करेंगे; घातक हथियारों से लैस ये सैनिक, ‘गठबंधन के पूर्वी हिस्से [यानी रूसी सीमा] के विशिष्ट क्षेत्रों में तैनात होने के लिए तैयार रहेंगे’। यूनाइटेड किंगडम के जनरल स्टाफ़ के नये प्रमुख, जनरल सर पैट्रिक सैंडर्स ने कहा है कि इन सशस्त्र बलों को रूस के ख़िलाफ़ युद्ध में ‘लड़ने और जीतने’ के लिए तैयार रहना चाहिए।
यूक्रेन में जारी युद्ध को देखते हुए, यह स्पष्ट था कि नाटो मैड्रिड शिखर सम्मेलन में रूस को निशाने पर रखेगा। लेकिन नाटो द्वारा पेश की गई सामग्री ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसका मक़सद केवल यूक्रेन या रूस नहीं, बल्कि यूरेशियाई एकीकरण को रोकना है। 2019 की लंदन बैठक में किसी नाटो दस्तावेज़ में पहली बार चीन का उल्लेख किया गया था; कहा गया था कि चीन ने ‘अवसर और चुनौतियाँ दोनों’ प्रस्तुत की हैं। 2021 तक, यह धुन बदल चुकी थी, और नाटो के ब्रसेल्स शिखर सम्मेलन में चीन पर ‘नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए व्यवस्थित चुनौतियाँ खड़ी करने’ का आरोप लगाया गया था। 2022 के संशोधित स्ट्रटीजिक कॉन्सेप्ट में यह ख़तरनाक बयानबाज़ी और तेज़ हो गई है, और आरोप लगाया गया है कि चीन की ‘प्रणालीगत प्रतिस्पर्धा … हमारे हितों, सुरक्षा और मूल्यों को चुनौती देती है और नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को कमज़ोर करने की कोशिश करती है’।
चार ग़ैर-नाटो देश, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूज़ीलैंड और दक्षिण कोरिया (एशिया-पैसिफ़िक फ़ोर) पहली बार नाटो शिखर सम्मेलन में शामिल होकर चीन पर दबाव बनाने के लिए अमेरिका तथा नाटो के एजेंडे के सहयोगी हो गए हैं। भारत और अमेरिका के साथ ऑस्ट्रेलिया और जापान, चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (क्वाड) का हिस्सा हैं, जिसे अक्सर एशियाई नाटो कहा जाता है, जिसका स्पष्ट जनादेश प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की भागीदारी को बाधित करना है। एशिया-पैसिफ़िक फ़ोर ने शिखर सम्मेलन के दौरान चीन के ख़िलाफ़ सैन्य सहयोग पर चर्चा करने के लिए एक बैठक कर नाटो और उसके सहयोगियों के इरादों के बारे में किसी भी प्रकार के संदेह को दूर कर दिया है।
2007-08 का वित्तीय संकट सामने आने और जी7 द्वारा वादे तोड़े जाने के मद्देनज़र, चीन ने अमेरिकी उपभोक्ता बाज़ार से अधिक स्वतंत्रता हासिल करने के लिए दो रास्ते अपनाए। सबसे पहले, उन्होंने सामाजिक मज़दूरी में वृद्धि, चीन के पश्चिमी प्रांतों को अर्थव्यवस्था में एकीकृत करके और पूर्ण ग़रीबी के उन्मूलन जैसे क़दम उठाकर चीन के घरेलू बाज़ार में सुधार किया। दूसरा, उन्होंने ऐसी व्यापार, विकास और वित्तीय प्रणालियों का निर्माण किया जो अमेरिका केंद्रित नहीं थीं। ब्रिक्स प्रक्रिया (2009) को गति देने के लिए चीन ने ब्राज़ील, भारत, रूस और दक्षिण अफ़्रीका के साथ सक्रिय रूप से भाग लिया और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई 2013) में उन्होंने काफ़ी संसाधन लगाए। चीन और रूस ने लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाकर अपने सीमा पार व्यापार को बढ़ाया, और एक रणनीतिक सहयोग विकसित किया (लेकिन, पश्चिम के विपरीत, उन्होंने कोई सैन्य संधि नहीं की)।
इस दौरान, चीन और यूरोप में रूसी ऊर्जा की बिक्री बढ़ी और कई यूरोपीय देश बीआरआई में शामिल हो गए जिससे यूरोप और चीन के बीच पारस्परिक निवेश में वृद्धि हुई। यूरेशिया में वैश्वीकरण के पुराने रूप उपनिवेशवाद और शीत युद्ध तक सीमित थे; लेकिन 200 सालों में यह पहली बार हुआ था कि पूरे क्षेत्र में बराबरी के आधार पर एकीकरण शुरू हुआ। यूरोप के व्यापार और निवेश विकल्प पूरी तरह से तर्कसंगत थे, क्योंकि नॉर्ड स्ट्रीम 2 के माध्यम से पाइप द्वारा आने वाली प्राकृतिक गैस फ़ारस की खाड़ी और मैक्सिको की खाड़ी से आनी वाली तरल प्राकृतिक गैस की तुलना में बहुत सस्ती और कम ख़तरनाक थी। ब्रेक्सिट और ट्रान्साटलांटिक व्यापार और निवेश साझेदारी को शुरू करने में आ रही कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए, यूरोप के अधिकांश हिस्सों को चीनी निवेश के अवसर अन्य विकल्पों की तुलना में कहीं अधिक उदार और भरोसेमंद लगे। इसके विपरीत, वॉल स्ट्रीट की निजी इक्विटी यूरोपीय वित्तीय क्षेत्र के लिए कम आकर्षक बन गई, क्योंकि उसमें जोखिम भी बड़े थे और किराया भी वसूला जाना था।
यूरोप लगातार एशिया की ओर बढ़ रहा था, जिसने अमेरिका के प्रभुत्व वाली आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था (जिसे ‘नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था’ भी कहा जाता है) के आधार को ख़तरे में डाल दिया। 2018 में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सार्वजनिक रूप से नाटो के स्टोल्टेनबर्ग को यह कहते हुए फटकारा था ‘तो, हम जर्मनी की रक्षा कर रहे हैं। हम फ़्रांस की रक्षा कर रहे हैं। हम इन सभी देशों की रक्षा कर रहे हैं। और फिर इन देशों में से कई बाहर जा रहे हैं और रूस के साथ एक पाइपलाइन सौदा कर रहे हैं, जहाँ वे रूस के ख़ज़ाने में अरबों डॉलर का भुगतान कर रहे हैं … जर्मनी रूस का बंदी है … मुझे लगता है कि यह बहुत ग़लत है’।
हालाँकि नाटो की भाषा चीन और रूस के ख़िलाफ़ युद्ध की धमकियों में बदल गई है, लेकिन जी7 ने एक नयी परियोजना – वैश्विक बुनियादी ढाँचे और निवेश के लिए साझेदारी (पीजीआईआई) – के विकास के द्वारा चीन की पहल को चुनौती देने का वादा किया है; यह योजना दक्षिणी गोलार्ध के देशों में निवेश करने के लिए 200 बिलियन डॉलर का फ़ंड है। दूसरी ओर, उसी समय आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में, वहाँ के नेताओं ने मौजूदा समय का गंभीर मूल्यांकन करते हुए यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने और दुनिया के ग़रीबों द्वारा अनुभव किए जा रहे व्यापक संकटों को रोकने की दिशा में काम करने का आह्वान किया। दुनिया की 40% आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले इस निकाय के मंच से युद्ध की कोई बात नहीं हुई; और यह तब है जबकि ब्रिक्स की ताक़त आने वाले समय में बढ़ सकती है क्योंकि अर्जेंटीना और ईरान ने ब्लॉक में शामिल होने के लिए आवेदन किया है।
अमेरिका और उसके सहयोगी या तो चीन और रूस को कमज़ोर कर अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं या वे इन दोनों देशों के चारों ओर एक नया घेरा (आयरन कर्टेन) खड़ा करना चाहते हैं। ये दोनों ही क़दम आत्मघाती सैन्य संघर्ष का कारण बन सकते हैं। दक्षिणी गोलार्ध को अधिकांश देश चाहते हैं कि दुनिया यूरेशियाई एकीकरण की वास्तविकता को अपनाते हुए राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय संप्रभुता और सभी मनुष्यों की गरिमा पर आधारित विश्व व्यवस्था की दिशा में आगे बढ़े। इनमें से कोई भी उद्देश्य युद्ध और विभाजन से हासिल नहीं किया जा सकता है।
पहले कभी नहीं देखे गए स्तर के युद्ध की आशंका, इराक़ी कवि सादी युसूफ़ (1934–2021) द्वारा 2003 में इराक़ पर अमेरिका की घातक बमबारी शुरू होने से ठीक पहले लिखी गई कविता ‘ए पर्सनल सॉन्ग’ की याद दिलाती है:
क्या यह इराक़ है?
ख़ुशनसीब है वो जिसने कहा था
मैं उस रास्ते को जानता हूँ जो वहाँ तक ले जाता है;
ख़ुशनसीब है वो जिसके होंठों ने कहा:
इराक़, इराक़, कुछ नहीं बस इराक़।
दूर से आ रही मिसाइलें शोर मचाएँगी;
दांतों तक लैस सैनिक हम पर धावा बोलेंगे;
मीनारें और घर उजड़ जाएँगे;
ताड़ के पेड़ बमबारी में धँस जाएँगे;
तटों पर भीड़ हो जाएगी
तैरती लाशों की।
हम शायद ही कभी अल-तहरीर स्क्वायर देखेंगे
शोक गीतों की किताबों या तस्वीरों में;
रेस्टोरेंट और होटल आश्रय के इस स्वर्ग में
हमारे रोडमैप और हमारे घर बन जाएँगे:
मैकडॉनल्ड्स
केएफ़सी
हॉलिडे इन;
और हम डूब होंगे
तुम्हारे नाम की तरह, हे इराक़,
इराक़, इराक़, कुछ नहीं बस इराक़।
स्नेह-सहित,
विजय।