हमारे बच्चों के आँसू: पहला न्यूज़लेटर (2025)
फ़िलिस्तीन से लेकर सूडान तक साम्राज्यवादी जंग बच्चों की जिंदगियाँ तबाह कर रही है। बचपन में लगे सदमे का शारीरिक-मानसिक प्रभाव लंबे समय तक उनपर बना रहेगा।
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वक़्त से पहले चुराया गया बचपन, मलक मत्तार (ग़ज़ा, अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र), 2023.
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
दिसंबर में एक शोध प्रकाशित हुआ, जिसे पढ़कर मुझे रोना आ गया। शोध का विषय थाः ‘ज़रूरियात पर शोध: ग़ज़ा की जंग का कमज़ोर बच्चों और परिवारों पर असर’। यह शोध ग़ज़ा के कम्यूनिटी ट्रेनिंग सेंटर फ़ॉर क्राइसिस मैनेजमेंट (सीटीसीसीएम) ने करवाया था। इसकी भाषा एकदम सरकारी रिपोर्ट जैसी है इसलिए इसका मुझ पर ऐसा असर नहीं होना चाहिए था। लेकिन हुआ, क्योंकि इससे जो तथ्य सामने आए वे झकझोर देने वाले हैं। उनमें से कुछ आपके सामने हैं:
- ग़ज़ा में 79% बच्चों को बुरे सपने आते हैं।
- 87% को बेहद डर लगता है।
- 38% रोते हुए बिस्तर गीला कर देते हैं।
- बच्चों की देखभाल करने वाले 49% कर्मियों ने कहा कि उनके पास जो बच्चे हैं उन्हें लगता है वे जंग में मारे जाएँगे।
- ग़ज़ा में 96% बच्चों को लगता है कि उनका मरना तय है।
साफ़-साफ़ कहा जाए तो ग़ज़ा के बच्चों को लगता है वे सब मरने वाले हैं।
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शीर्षकहीन, ग़लाल यूसिफ़ ग़ोली (सूडान), 2024.
यह साल 2025 का पहला न्यूज़लेटर है जो पिछले वाक्य के साथ ख़त्म हो सकता था। इससे ज़्यादा और क्या कहा जा सकता है? लेकिन अभी बहुत कुछ बाक़ी है।
मार्च 2024 में संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएन) की बच्चों के अधिकारों के लिए बनी समिति ने सूडान में सूडानी सैन्य बलों और अर्द्ध-सैन्य रैपिड सपोर्ट फ़ॉर्सेज़ के बीच चल रहे युद्ध पर एक तीखा बयान जारी किया। सूडान में इन दोनों पक्षों को कई विदेशी ताक़तों का समर्थन मिला हुआ है। इसमें भी कई अहम तथ्य थे:
- सूडान में 4 करोड़ बच्चे ( जो देश की कुल 5 करोड़ की आबादी का लगभग आधा हैं) एक ‘पीढ़ीगत तबाही’ के ख़तरे से जूझ रहे हैं।
- 9 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जा पाते।
- 40 लाख बच्चे विस्थापित हैं।
- 37 लाख बच्चे घोर कुपोषण का शिकार हैं।
पहले बिंदु में सूडान के सभी बच्चों की बात हो रही है जो एक ‘पीढ़ीगत तबाही’ के ख़तरे को झेल रहे हैं। यूएन ने सबसे पहले कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान बच्चों को लगे सदमे के लिए पीढ़ीगत तबाही की अवधारणा का इस्तेमाल किया था। इसका मतलब है कि युद्ध की वजह से सूडान के बच्चों पर जो संकट आया है वे उससे कभी उबर नहीं पाएँगे। इस देश में हालात सामान्य होने में पीढ़ियाँ लग जाएँगीं।
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जीवन का जल, पासिटा आबाद (फ़िलिपींस), 1980.
2017 के वैज्ञानिक शोध में पाया गया था कि बचपन में लगे गहरे सदमे का व्यक्ति पर गहरा शारीरिक और मानसिक प्रभाव पड़ता है। सदमे से बच्चों के तंत्रिका तंत्र का विकास सही दिशा में नहीं हो पाता जिससे वे दशकों तक अति सतर्क और बेचैन रह सकते हैं। शोध के लेखकों के मुताबिक़ यह प्रक्रिया ‘enhanced threat processing’ (यह एक ऐसी मानसिक स्थिति है जिसमें दिमाग़ उन सूचनाओं को अपेक्षाकृत जल्दी प्रॉसेस करता है जो ख़तरे का अंदेशा देती हैं) का एक मैकेनिज्म विकसित करती है। जो बच्चे युद्ध झेल चुके हैं उनके बारे में अध्ययनों से पता चलता है कि उन्हें बाक़ी बच्चों के मुक़ाबले ज़्यादा बीमारियाँ होती हैं, इनमें दिल की बीमारी और कैंसर भी शामिल है।
मार्च 2022 में अफ़ग़ानिस्तान, भारत, आयरलैंड और श्रीलंका के पाँच डॉक्टरों ने ‘द लैंसेट’ के लिए एक भावुकतापूर्ण ख़त लिखा, जिसमें उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के बच्चों के दुख की याद दिलाई। 2019 तक अफ़ग़ानिस्तान में हर बच्चा जंग के माहौल में पैदा और बड़ा हुआ। उनमें से एक ने भी कभी शांति का अनुभव नहीं किया था। ख़त के लेखकों ने लिखा कि ‘अफ़ग़ान बच्चों और किशोरों से जुड़े मनोचिकित्सकीय शोध बहुत कम हुए हैं और इस तरह के जो प्रयास हुए भी हैं, वे निम्न स्तरीय हैं’। इसलिए उन्होंने प्रस्ताव रखा कि अफ़ग़ान बच्चों के लिए एक समग्र स्वास्थ्य योजना तैयार की जाए जो फ़ोन इत्यादि से स्वास्थ्य सुविधाएँ देने और ग़ैर-मेडिकल कर्मियों पर आधारित हो। किसी दूसरी दुनिया में इस प्रस्ताव पर बहस संभव थी। युद्ध के दौरान हथियार बेचने वालों को अमीर बनाने में जो धन लगाया गया, उसमें से कुछ शायद इस प्रस्ताव के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था। लेकिन हमारी दुनिया में ऐसा कहाँ हो सकता है!
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शीर्षकहीन (अहमद 9), महूद अहमद (इराक़), 1976.
हथियार व्यापारियों से जुड़ी बात यूँ ही नहीं कही गयी। स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस इंस्टीट्यूट की दिसंबर 2024 की फ़ैक्ट शीट के मुताबिक़ दुनिया की सबसे बड़ी 100 हथियार बनाने वाली और सैन्य सेवाएँ देने वाली कंपनियों की आय 2023 में 4.2% बढ़कर 63200 करोड़ डॉलर तक हो गयी। इस आय का एक-तिहाई हिस्सा अमेरिका स्थित पाँच कंपनियों के पास है। इन 100 कंपनियों की 2015 से 2023 के बीच हथियारों की बिक्री से होने वाली आय 19% बढ़ी। फ़िलहाल 2024 के पूरे आँकड़े सामने नहीं आए हैं लेकिन अगर मौत के इन मुख्य सौदागरों के तिमाही के आँकड़े देखें तो पता चलेगा कि इनका मुनाफ़ा और भी बढ़ गया है। जंगखोरों के लिए ख़रबों रुपये हैं लेकिन इन जंग के मैदानों में पैदा हो रहे बच्चों के लिए कुछ भी नहीं।
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हम नहीं जाएँगे, इस्माइल शम्मौत (ग़ज़ा, अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र), 1987.
2014 में इज़राइल ने ग़ज़ा पर बमबारी की जिसमें बेक़सूर बच्चों की मौत हुई। इनमें से जुलाई की दो घटनाएँ बहुत अहम हैं। पहली, इज़राइल ने 9 जुलाई को रात के 11:30 बजे ख़ान यूनिस के फ़न टाइम बीच कैफ़े (वक़्त अल-मराह) पर मिसाइल से हमला किया। यह कैफ़े दरअसल भूमध्य सागर से लगभग तीस मीटर दूर एक कामचलाऊ सी इमारत था, जहाँ कई लोग अर्जेंटीना और नीदरलैंड्ज के बीच 2014 के फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप का सेमीफाइनल देखने के लिए आए थे। ये सब फुटबॉल के बड़े प्रशंसक थे। इज़राइलियों ने नौ जवान लोगों को मारा: मूसा अस्तल (उम्र 16), सूलेमान अस्तल (उम्र 16), अहमद अस्तल (उम्र 18), मोहम्मद फ़वाना (उम्र 18), हामिद सवल्ली (उम्र 20), मोहम्मद गनान (उम्र 24), इब्राहिम गनान (उम्र 25) और इब्राहिम सवल्ली (उम्र 28)। ये सब नहीं देखपाए कि कैसे पेनल्टी शूटआउट में अर्जेंटीना ने वो मैच जीता और इसके कुछ ही दिन बाद एक कड़े मुक़ाबले में जर्मनी ने प्रतियोगिता जीती।
इस दौरान इज़राइल की बमबारी बिना रुकावट जारी थी। तीन दिन बाद 16 जुलाई को कई बच्चे शायद वर्ल्ड कप का खेल दोहराते हुए ग़ज़ा के समुद्र तट पर फ़ुटबॉल खेल रहे थे कि एक इज़राइली नौसेना के जहाज़ ने पहले तो जेटी (समंदर के किनारे मानव निर्मित ढाँचा) पर हमला किया और जब धमाके से डरकर बच्चे भागने लगे तो उन पर। इज़राइलियों ने उनमें से चार बच्चों को मार डाला – इस्माइल महमूद बक़्र (उम्र 9), ज़करिया अहद बक़्र (उम्र 10), अहद आतिफ़ बक़्र (उम्र 10), और मोहम्मद रमेज़ बक़्र (उम्र 11), इस हमले में दूसरे बच्चे भी घायल हुए।
2014 में इज़राइल ने ग़ज़ा पर जो क़हर ढाया उसमें 150 बच्चों की मौत हुई। जब मानवाधिकार संस्था बीत्सेलम ने इज़राइली टेलीविज़न चैनल पर मारे गए बच्चों के नाम जारी करने के लिए एक विज्ञापन निकाला तो इज़राइल की ब्रॉड्कास्ट अथॉरिटी ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया। ब्रिटिश कवि माइकल रोज़ेन ने इन हत्याओं और प्रतिबंध पर एक बेहतरीन कविता लिखी ‘डोंट मेंशन दि चिल्ड्रेन’:
बच्चों का ज़िक़्र न करो।
मारे गये बच्चों के नाम मत लो।
लोगों को न पता चले, मारे गए
बच्चों के नाम।
इन बच्चों के नाम छिपे रहने चाहिए।
इन बच्चों को बेनाम रहना होगा।
इन बच्चों को दुनिया से विदा होना होगा
बेनाम।
किसी को न पता चले
मारे गए बच्चों के नाम।
कोई न पुकारे
मारे गए बच्चों के नाम।
कोई सोचे भी नहीं कि हो सकते हैं
मारे गए बच्चों के नाम।
लोगों को समझना होगा कितना ख़तरनाक है जानना
मारे गए बच्चों के नाम।
लोगों को बचाना होगा जानने से
मारे गए बच्चों के नाम।
बच्चों के नाम फैल सकते हैं
जंगल की आग़ की मानिंद।
लोग नहीं रहेंगे सुरक्षित अगर वो जान जाएँगे
मारे गए बच्चों के नाम।
मत लो मारे गए बच्चों के नाम।
मत याद रखो मारे गए बच्चों के नाम।
मत सोचो मारे गए बच्चों के बारे।
मत कहो: मारे गए बच्चे।
हाँ, बच्चों के नाम हैं। हम हर उस बच्चे का नाम दोहराते रहेंगे जो हमें याद है। हम उन्हें भूलेंगे नहीं। सितंबर 2024 में फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने अक्टूबर 2023 से अगस्त 2024 की बीच यूएस-इज़राइली जनसंहार में मारे गये बच्चों के नामों की नवीनतम सूची जारी की। इस सूची में 710 नवजात बच्चे हैं जिनकी उम्र ज़ीरो दर्ज है। इनमें से कइयों के नाम कुछ ही पहले रखे गये थे।
हालाँकि यहाँ पूरी सूची देना मुश्किल है क्योंकि वह बहुत लम्बी है लेकिन अयस्सेल और अस्सेर अल-कमसन के बारे में जानकर हालात समझे जा सकते हैं। 13 अगस्त 2024 को मोहम्मद अबु अल-कमसन देर अल-बलह के अपने अपार्टमेंट से निकलकर मध्य ग़ज़ा के ‘सुरक्षित इलाक़े’ में गया अपने नवजात बच्चों अयस्सेल और अस्सेर के नाम दर्ज करवाने। वो अपने बच्चों को उनकी माँ डॉक्टर ज़माना अरफ़ा (उम्र 29) के साथ छोड़कर गया, बच्चों का जन्म तीन दिन पहले नुसेरात के अल-अवदा हॉस्पिटल में हुआ था। डॉक्टर ज़माना अरफ़ा ने ग़ज़ा के अल-अज़हर विश्वविद्यालय से फार्मासिस्ट का प्रशिक्षण हासिल किया था। अपने बच्चों को जन्म देने के कुछ दिन पहले उन्होंने फ़ेसबुक पर इज़राइल द्वारा बच्चों पर हमले करने के बारे में लिखा था और सीबीएस न्यूज के ‘चिल्ड्रेन ऑफ ग़ज़ा’ प्रोग्राम में यहूदी-अमेरिकी डॉक्टर मार्क पर्ल्मटर के एक इंटरव्यू को साझा किया था। जब मोहम्मद अपने बच्चों के नाम रजिस्टर करवाकर घर लौटा तो उसका घर तबाह हो चुका था। उसकी पत्नी, नवजात बच्चे और सास सब इज़राइल के हमले में मारे जा चुके थे।
अयस्सेल अल-कमसन
अस्सेर अल-कमसन
बेहद ज़रूरी है कि हम मारे गए बच्चों के नाम लें।
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शेर की आग़ोश में बच्चा, मलक मत्तार (ग़ज़ा, अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र), 2024.
सस्नेह,
विजय