इससे पहले कि वो दुनिया के लिए अपनी कहानी लिख पाती, उसे बेरहमी से कत्ल कर दिया गया: पैतींसवाँ न्यूज़लेटर (2024)
कोलकाता में एक युवा महिला डॉकटर की हत्या के बाद स्वास्थ्य कर्मियों, मेडिकल यूनियनों, तथा महिला संगठनों ने देश भर में लामबंद होकर लैंगिक हिंसा तथा स्वास्थ्य कर्मियों ने खतरनाक काम की परिस्थितियों का विरोध करना शुरू कर दिया है।
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
8 अगस्त 2024 को कोलकाता के आर.जी. कार मेडिकल कॉलेज में 31 वर्षीय डॉक्टर ने अस्पताल में अपनी 36 घंटे की शिफ्ट पूरी की, अपने सहकर्मियों के साथ खाना खाया और अगली शिफ्ट शुरू होने से पहले आराम करने के लिए कॉलेज के सेमिनार हॉल में गई। अगले दिन उसके लापता होने की सूचना मिलने के कुछ ही समय बाद भयानक हिंसा के निशान से भरा उसका बेजान शरीर सेमिनार कक्ष में मिला। चूँकि भारतीय कानून के अनुसार यौन अपराधों के पीड़ितों का नाम उजागर नहीं किया जा सकता, इसलिए इस न्यूज़लेटर में पीड़िता के नाम का ज़िक्र नहीं किया जाएगा।
इस युवा डॉक्टर की कहानी इस तरह की अकेली घटना नहीं है। भारत में हर पंद्रह मिनट में एक महिला बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराती है। 2022 में कम से कम 31,000 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए। 2020 की तुलना में 2022 में बलात्कार के मामलों में 12% की वृद्धि हुई। हालाँकि ये आँकड़े यौन अपराधों की वास्तविक स्थिति को ठीक से सामने नहीं लाते हैं। सामाजिक बाहिष्कार और पितृसत्तात्मक संदेह के डर की वजह बहुत से बलात्कार के मामले दर्ज ही नहीं कराए जाते हैं। 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 161 देशों के 2000 और 2018 के बीच के आँकड़ों का प्रयोग करके महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर एक व्यापक अध्ययन प्रकाशित किया था। इस अध्ययन के अनुसार लगभग हर तीन में से एक महिला अपने साथी या गैर–साथी अथवा दोनों द्वारा शारीरिक और/या यौन हिंसा का शिकार होती है। यह युवा डॉक्टर हमारे समाज में शर्मनाक रूप से ‘आम’ वीभत्स घटना का शिकार हुई।
युवा डॉक्टर की लाश मिलने के तुरंत बाद ही आर.जी. कार कॉलेज के प्राचार्य डॉ. संदीप घोष ने पीड़िता के नाम का खुलासा कर दिया और इस अनहोनी का दोष पीड़िता के मत्थे मढ़ दिया। अस्पताल के अधिकारियों ने युवा डॉक्टर के माता–पिता को बताया कि उसने आत्महत्या की है। उन्होंने अधिकारियों से पोस्टमार्टम की अनुमति मिलने का घंटों इंतजार किया। पोस्टमार्टम को जल्दबाजी में निपटा दिया गया। पीड़िता की माँ ने कहा: ‘वो मेरी इकलौती बेटी थी। मैंने उसे डॉक्टर बनाने के लिए कड़ी मेहनत की और अब वह इस दुनिया को छोड़ कर जा चुकी है‘। पुलिस ने पीड़िता के घर को घेर लिया और किसी को भी उनसे मिलने की अनुमति नहीं दी। सरकार ने पीड़िता के परिवार पर शव का जल्दी से अंतिम संस्कार करने के लिए दबाव डाला और दाह संस्कार की पूरी प्रक्रिया को सरकार खुद करवाना चाहती थी। सरकार सच पर पर्दा डालना चाहती थी। भारत की जनवादी नौजवान सभा (DYFI) के कार्यकर्ताओं ने एम्बुलेंस रोक दिया जिससे परिवार के लिए पीड़िता के शव को देख पाना संभव हो पाया।
युवा डॉक्टर का शव मिलने के अगले दिन, 10 अगस्त को , DYFI, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI), भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और अन्य संगठनों ने न्याय सुनिश्चित करने के लिए पूरे पश्चिम बंगाल में विरोध प्रदर्शन किए। ये विरोध प्रदर्शन तेजी से फैले। पहले पूरे पश्चिम बंगाल और फिर देश भर में चिकित्सा कर्मी अपना राजनीतिक आक्रोश व्यक्त करने के लिए अपने कार्यस्थलों के बाहर तख्तियाँ लेकर निकल आए। 2012 में दिल्ली में एक युवा महिला के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के साथ खड़े हुए महिला आंदोलन के जैसा ही एक आंदोलन सड़कों पर उतर आया। इन विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने वाली युवा महिलाओं की संख्या भारतीय समाज में यौन हिंसा के स्तर को दर्शाती है। इन युवा प्रदर्शनकारियों के भाषण और पोस्टर दुख और आक्रोश से ओत–प्रोत थे। भारत के स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पहले, 14 अगस्त को, पूरे पश्चिम बंगाल में विरोध प्रदर्शन करती हुई हजारों महिलाओं ने ‘रात हमारी है‘ नारे का उद्घोष किया।
इस विरोध आंदोलन का सबसे उल्लेखनीय पहलू मेडिकल यूनियनों और डॉक्टरों की लामबंदी थी। मृत डॉक्टर फेडरेशन ऑफ रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA) से जुड़ी हुई थी। FORDA ने सभी डॉक्टरों से 12 अगस्त को गैर–आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं को निलंबित रखने का आह्वान किया। देश भर के कई सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर अपने सफेद कोट पहनकर आए और इस आह्वान को माना। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के प्रमुख डॉ. आर.वी. अशोकन ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा से मुलाकात कर पाँच माँगे सामने रखीं:
अस्पताल को सुरक्षित ज़ोन घोषित किया जाना चाहिए;
स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु केंद्र सरकार को एक कानून पारित करना चाहिए;
पीड़िता के परिवार को पर्याप्त मुआवजा दिया जाना चाहिए;
सरकार को समयबद्ध जाँच करानी चाहिए; और
रेज़िडेंट डॉक्टरों के काम के हालात बेहतर होने चाहिए (उन्हें 36 घंटे लंबी पाली में काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए)।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार तकरीबन 38% स्वास्थ्य कर्मचारी अपने करियर के दौरान शारीरिक हिंसा का शिकार होते हैं। लेकिन भारत के मामले में यह संख्या इससे भी ज्यादा है। उदाहरण के लिए, लगभग 75% भारतीय डॉक्टर किसी न किसी प्रकार की हिंसा का अनुभव करते हैं। 80% से अधिक डॉक्टरों का कहना है कि वे अत्यधिक तनावग्रस्त हैं और 56% पर्याप्त नींद नहीं ले पाते हैं। इनमें से अधिकतर डॉक्टर मरीजों को समुचित देखभाल नहीं मिलने से नाखुश उनके परिवारवालों के हमलों का सामना करते हैं। विरोध प्रदर्शन में शामिल महिला डॉक्टरों के बयानों से संकेत मिलता है कि उन्हें न केवल मरीजों, बल्कि अस्पताल के अन्य कर्मचारियों से भी यौन उत्पीड़न और यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है। उनमें से कई का कहना है कि इन संस्थानों का खतरनाक महौल असहनीय है। यौन उत्पीड़न तथा अन्य प्रकार के उत्पीड़नों के कारण नर्सों की आत्महत्या की उच्च दर इस बात की तस्दीक करती है। ‘नर्स‘, ‘भारत‘, ‘यौन उत्पीड़न‘ और ‘आत्महत्या‘ जैसे शब्दों का प्रयोग करके अगर ऑनलाइन सर्च किया जाए तो पिछले साल हुई इस तरह की तमाम घटनाएँ सामने आती हैं। यह बताता है कि आर.जी. कार में युवा डॉक्टर की मौत पर डॉक्टरों और नर्सों ने इतनी तीखी प्रतिक्रिया क्यों व्यक्त की है।
13 अगस्त को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पुलिस को इस मामले को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंपने का आदेश दिया। 14 अगस्त की रात को उपद्रवियों ने परिसर की संपत्ति को भारी नुकसान पहुँचाया, निगरानी कर रहे डॉक्टरों पर हमला किया, पास मौजूद पुलिस पर पत्थर फेंके और घटनास्थल पर बचे हुए सुबूतों को नष्ट कर दिया। जिस सेमिनार हॉल में युवा डॉक्टर का शव मिला था उसे भी क्षति पहुँचाई गई। इससे साफ पता चलता है कि तहकीकात को बाधित करने का प्रयास किया गया। इस हमले के जवाब में FORDA ने अपनी हड़लात फिर से शुरू कर दी।
हमलावरों को गिरफ्तार करने के बजाय अधिकारियों ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के नेताओं पर दोषी होने का आरोप लगाया। शुरूआती विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाले DYFI और SFI नेताओं को भी निशाना बनाया गया। पश्चिम बंगाल की DYFI सचिव मिनाक्षी मुखर्जी को इस बाबत पुलिस ने तलब किया। उन्होंने पूछा, ‘अस्पताल के हमलावर नागरिक समाज के लोग नहीं हो सकते। आखिर इनको बचा कौन रहा है?’
पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बारे में गलत सूचना फैलाने के आरोप में दो डॉक्टरों डॉ. सुबर्ण गोस्वामी और डॉ. कुणाल सरकार को भी थाने में तलब किया। ये दोनों ही डॉक्टर बंगाल सरकार के मुखर आलोचक हैं। डॉक्टर समुदाय ने इसे डराने के मकसद से की गई कार्रवाई के रूप में देखा और इसके खिलाफ़ पुलिस थाने तक मार्च निकाला।
अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल की सरकार के खिलाफ़ लोगों में भारी असंतोष है। अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस 1998 में गठित एक दक्षिणपंथी झुकाव वाला एक मध्यपंथी दल है जो 2011 से पश्चिम बंगाल की सत्ता पर क़ाबिज़ है। लोगों में राज्य सरकार के प्रति अविश्वास का एक बड़ा कारण आर.जी. कार से इस्तीफा देने के बाद डॉ. घोष को कोलकाता के नेशनल मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य पद पर बिठाने का राज्य सरकार फैसला है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस फैसले के लिए सरकार को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि जाँच जारी रहने तक डॉ. घोष को छुट्टी पर भेजा जाए।
डॉ. घोष पर न केवल इस युवा डॉक्टर की हत्या के मामले में ठीक ढंग से काम नहीं करने का आरोप लगा है: बल्कि उनपर धोखाधड़ी के आरोप भी हैं। यह आरोप पूरे देश में फैल रहा है कि मृत डॉक्टर कॉलेज में डॉ. घोष के भ्रष्टाचार के खिलाफ़ सबूत जारी करने वाली थी और इन अपराधों को छुपाने के लिए यौन हिंसा और हत्या का प्रयोग किया गया। ताकतवर लोगों को जिस तरह से संरक्षण मिलता है उसको देखते हुए सरकार द्वारा इन आरोपों की जाँच की संभावना ना के बराबर लगती है।
पश्चिम बंगाल सरकार जनता से डरी हुई है। राज्य की दो प्रतिष्ठित फुटबॉल टीमें ईस्ट बंगाल और मोहन बागान 18 अगस्त को डूरंड कप के लिए खेलने के लिए तैयार थीं। जब सरकार को यह पता चला कि प्रशंसक युवा डॉक्टर की हत्या को लेकर स्टैंड से विरोध करने वाले हैं तब सरकार ने मैच ही रद्द कर दिया। इसके बाद इन दोनों टीमों के प्रशंसकों ने पश्चिम बंगाल की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण फुटबॉल टीम मोहम्मडन स्पोर्टिंग के प्रशंसकों के साथ मिलकर मैच रद्द होने और युवा डॉक्टर की हत्या के विरोध में युवा भारती स्टेडियम के बाहर प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा, ‘हम आर.जी. मामले में न्याय चाहते हैं।‘ इसके जवाब में उनको पुलिसिया दमन का सामना करना पड़ा।
कवयित्री सुभो दासगुप्ता ने कई साल पहले एक प्रभावशाली कविता ‘आमी शेई मेये’ (मैं वही लड़की हूँ) लिखी थी। यह कविता वर्तमान संघर्षों का ऐन्थम बन सकती है:
मैं वही लड़की हूँ।
जिसे तुम हर रोज़ बस में, ट्रेन में, सड़क पर देखते हो।
जिसकी साड़ी, माथा, बालियाँ, और एड़ियाँ
तुम हर रोज़ देखते हो
और
और ज़्यादा देखने का सपना देखते हो।
तुम मुझे अपने सपने में
अपनी इच्छा–अनुसार देखते हो।
मैं वही लड़की हूँ।
…
मैं वही लड़की हूँ – आसाम के चाय बागान के कमीन बस्ती के एक झोपड़े में रहने वाली
जिसे तुम रात के अंधेरे में उठाकर साहिबी बंगला ले जाना चाहते हो,
भट्ठी की आग के नशे में चूर आँखों से जिसके नग्न शरीर को देखना चाहते हो।
मैं वही लड़की हूँ।
…
संकट के दिनों में, मैं अपने परिवार का सहारा बनती हूँ।
मेरे माँ की दवाई मेरे ट्यूशन की कमाई से आती है।
मेरे बोनस से मेरे भाई की किताबें आती हैं।
उस पर मुसीबत के काले बादल आए
तो मेरा शरीर भीगा था।
मैं एक छाता हूँ।
मेरा परिवार खुश रहता है मेरी देख रेख में।
…
जंगल की आग की तरह
मैं आगे बढ़ती रहूँगी! और मेरे रास्ते के दोनों तरफ
अनन्य निर्मुंड शरीर
सहते रहेंगे
भीषण दर्द:
सभ्यता का शरीर
प्रगति का शरीर
बेहतरी का शरीर
समाज का शरीर।
शायद मैं वही लड़की हूँ! शायद! शायद…
इस न्यूज़लेटर के सारे चित्र बंगाल में पैदा हुईं औरतों द्वारा बनाए गए हैं।
सस्नेह,
विजय