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हमें एक शांतिमय दुनिया चाहिए: सैंतालीसवाँ न्यूज़लेटर (2024)

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी रक्षा सचिव का बारहवां दौरा। यानी ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद भी चीन के खिलाफ अमेरिका का नया शीत युद्ध जारी रहेगा।

 

दो सिपाही, अपने नेताओं की सुरक्षा में, हेरी डोनो, 2013.

प्यारे दोस्तो,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

अमेरिकी सेना ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने सहयोगियों के साथ रक्षा संबंधी उद्योगों में आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए 31 मई को एक कार्ययोजना तैयार की। इसमें ऑस्ट्रेलिया में मिसाइल और रॉकेट प्रणालियों का सह-उत्पादन, जापान के साथ मिलकर हाइपरसोनिक मिसाइल इंटरसेप्टर का विकास और तोपखाना प्रणालियों सहित रक्षा प्रौद्योगिकियों पर दक्षिण कोरिया के साथ संभावित साझेदारी शामिल है। इससे द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका द्वारा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बनाए गए साझेदारियों के नेटवर्क का और विस्तार होगा।

इन गहरी साझेदारियों को अमल में लाने के लिए 15 नवंबर को अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड जे. ऑस्टिन III इस क्षेत्र के दौरे पर निकले, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, फिजी, लाओस और फिलीपींस के पड़ाव शामिल थे। ऑस्टिन का दौरा ऑस्ट्रेलिया के डार्विन में शुरू हुआ, जहां उन्होंने अपने जापानी और ऑस्ट्रेलियाई रक्षा मंत्रियों के साथ चौदहवीं त्रिपक्षीय रक्षा मंत्रियों की बैठक (टीडीएमएम) बुलाई। ऑस्ट्रेलिया में ही रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयर फ़ोर्स (RAAF) का अड्डा टिंडल है, जिसके विस्तार के लिए अमेरिका भी आर्थिक सहायता उपलब्ध करा रहा है जिससे अड्डे में अमेरिका के परमाणु युक्त बी-1 और बी-52 बमवर्षक विमान रखे जा सकेंगे। लाओस में, अमेरिकी रक्षा मंत्री चीन की तथाकथित ‘दक्षिण चीन में आक्रामकता’ पर चर्चा करने के लिए दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस में भाग लेंगे। दौरे का उद्देश्य निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन और भावी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के प्रशासन के बीच क्षेत्र में अमेरिकी नीति की निरंतरता को रेखांकित करना है।

किलासियो 2, रुसिएत लाली (फ़िजी), 2017

2020 की शुरुआत में कुछ लोगों ने एक प्लैटफॉर्म की ज़रूरत महसूस की, जिस पर हथियारों के ज़खीरे में बढ़ोतरी और सैन्य समझौतों के ज़रिए अमेरिका द्वारा पूर्वी एशियाई तटों पर किए जा रहे सैन्य विस्तार के ख़तरों पर बातचीत की जाए। यह विस्तार अमेरिका के ‘एशिया की ओर झुकाव’नीति से बढ़ा, जो 2011 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के काल में शुरू हुई थी। इस तरह 2020 में शुरू हुई चर्चा से निकला नो कोल्ड वॉर कलेक्टिव। इसके गठन के लिए एक  बयान जारी हुआ, जिस पर कई व्यक्तियों और संगठनों ने हस्ताक्षर किए। 25 जुलाई 2020 को नो कोल्ड वॉर कलेक्टिव ने अपना पहला सार्वजनिक वेबीनार किया और तब से अब तक यह कई मुद्दों पर 14 दस्तावेज़ जारी कर चुका है। इन मुद्दों में शामिल है यूक्रेन में चल रहा युद्ध और उत्तरपूर्वी एशिया में यूएस-नाटो का सैन्य विस्तार।

यूएस चुनावों के बाद नो कोल्ड वॉर ने दस्तावेज़ संख्या 15 जारी किया है, जिसमें डॉनल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के दुनिया पर संभावित असर की चर्चा की गई है, इसमें विशेष ज़ोर चीन के ख़िलाफ़ यूएस के नए शीत युद्ध को दिया गया है। यह दस्तावेज़ नीचे दिया जा रहा है:

6 नवंबर को डॉनल्ड ट्रम्प को यूएस का 47वाँ राष्ट्रपति चुना गया। जनवरी में उनकी राष्ट्रपति पद पर वापसी होगी, जिसे उन्होंने 2021 में संवैधानिक संकट और चरम-दक्षिणपंथी उपद्रव के असफल होने के बाद खाली किया था। इस तरह उन्होंने इस बार 2016 से भी ज़्यादा स्पष्ट और मज़बूत जीत हासिल की है, जब वे यूएस के इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम में जीतने के बावजूद हिलेरी क्लिंटन से पॉपुलर वोटों में हार गए थे। यह इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम एक बहुत ही अस्पष्ट और अलोकतांत्रिक व्यवस्था है, जिसमें देश की वोट देने योग्य आबादी का महज़ 0.03% विजयी उम्मीदवार तय करता है,और दुनिया में यूएस के सैन्य और आर्थिक वर्चस्व के कारण इसके भारी परिणाम सबको झेलने पड़ते हैं।

इस बार ट्रम्प उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से बीस लाख ज़्यादा वोट हासिल कर राष्ट्रीय पॉपुलर वोट जीतने वाले रिपब्लिकन पार्टी के दो दशकों में पहले उम्मीदवार बने। (यह नतीजा 2020 की तुलना में डेमोक्रेट पार्टी को हुए लगभग एक करोड़ वोट के नुकसान की वजह से ज़्यादा था और ट्रम्प के समर्थन में हुई मामूली बढ़त से कम।) इसका परिणाम यह भी हुआ कि ट्रम्प ने इलेक्टोरल कॉलेज के सभी सात ‘स्विंग स्टेट्स’ (वे राज्य जो पारंपरिक रूप से किसी पार्टी के गढ़ नहीं हैं) जीत लिए।

समकालीन कला पर केंद्रित एक म्यूजियम के उद्घाटन के लिए मथाइस कैवेज की स्कॉटलैंड यात्रा (पापुआ न्यू गिनी), 1999.

स्विंग राज्यों में से मिशिगन का नतीजा बहुत कुछ कह रहा है। यहाँ देश की सबसे बड़ी अरब-अमेरिकी आबादी के वोटर रहते हैं। बाइडन-हैरिस प्रशासन ने ग़ज़ा और लेबनान में इज़राइल की तरफ़ से हो रहे जनसंहार के लिए जो सैन्य और नीतिगत समर्थन ज़ोर-शोर से दिया , माना जा रहा है कि उसी वजह से इस राज्य में उनकी भारी हार हुई है। अरब बहुसंख्यक डिअरबोर्न शहर में हैरिस को बाइडन को 2020 में मिले वोटों के आधे से भी कम वोट मिले हैं और वह ट्रम्प से बहुत पीछे रहीं। जबकि जनसंहार-विरोधी ग्रीन पार्टी की उम्मीदवार जिल स्टाइन को 18% से ज़्यादा वोट मिले। काउन्सल फॉर अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशन्स के राष्ट्रव्यापी एग्ज़िट पोल से पता चला कि 53% मुस्लिम वोटर स्टाइन के समर्थन में रहे और उन्होंने माना कि दोनों मुख्य पार्टियाँ विदेश में इस साम्राज्यवादी लड़ाई में सहयोग करती आई हैं और साथ ही इन्होंने देश के भीतर फिलिस्तीन के समर्थन में चल रहे आंदोलन को हिंसक रूप से दबाया है।

डेमोक्रेटिक पार्टी के पारंपरिक जनाधार ने बाइडन-हैरिस प्रशासन का साथ इनकी हत्यारी विदेश नीति की वजह से छोड़ दिया। लेकिन आने वाला ट्रम्प प्रशासन भी फिलिस्तिनियों को एक साल से ज़्यादा से जारी जनसंहार से बचाएगा नहीं। ट्रम्प ने कई बार कहा है कि वह नेतन्याहू को ग़ज़ा में ‘काम पूरा करने’ देंगे। फिलहाल स्थिति यही दिख रही है कि वह न सिर्फ़ बाइडन के एक ‘नए मध्य पूर्व’ के कार्यक्रम को बरकरार रखेंगे, बल्कि उसे और तेज़ करेंगे। यह ‘नया मध्य पूर्व’ पूरी तरह से यहूदीवाद और यूएस साम्राज्यवाद के अधीन होगा। ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में क़ासिम सुलेमानी की हत्या करवाई और ईरान परमाणु समझौते (जिसे पहले जॉइन्ट काम्प्रीहेन्सिव प्लान ऑफ एक्शन कहा जाता था) को एकतरफ़ा फ़ैसला करके ख़त्म कर दिया। इस सबसे ईरान से युद्ध करने में उनकी पुरानी और मौजूदा दिलचस्पी ज़ाहिर होती है। इसलिए लगता है कि वह एक क्षेत्रीय युद्ध की ओर बढ़ने से बिल्कुल भी हिचकिचाएंगे नहीं। इसका एक स्पष्ट इशारा यही है कि ट्रम्प ने ईरान के ख़िलाफ़ बोलने वाले मार्को रुबिओ को अपना विदेश मंत्री चुना है और सत्ता के हस्तांतरण के लिए ब्रायन हुक को (जिसने ट्रम्प के पहले कार्यकाल में तेहरान के खिलाफ रणनीति पर ‘मैक्सिमम प्रेशर’ नाम की किताब लिखी थी)।

दुनिया की सबसे ख़ुशनुमा जगह, एलमर बोरलॉन्गन, 2017.

रुबिओ जितना ईरान के ख़िलाफ़ रहे हैं, उतना ही रूस के भी, ऐसे में उनका चुना जाना यह गुंजाइश ख़त्म कर देता है कि ट्रम्प कम-से-कम यूक्रेन में नाटो के छद्म युद्ध को और बढ़ावा नहीं देंगे। यह उम्मीद ट्रम्प के करीबी विदेश नीति सलाहकारों की इस योजना से उठी थी कि अमेरिका द्वारा सैन्य मदद उसी हिसाब से दी जाए जितना यूक्रेन रूस के साथ समझौते और एक वक़्ती युद्धविराम के लिए तैयार हो, इसके साथ ही यह ख़तरा भी बरक़रार रखा जाए कि अगर रूस इस पर राज़ी नहीं होता तो ‘तबाही लाई जाएगी’। यह कूटनीति को लेकर किसी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता से प्रेरित नहीं है। इसके पीछे है ऐसी ही युद्धपरस्त राजनीतिक सोच जो चीन को अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन मानती है और चाहती है कि यूएस के सैन्य हथियार इस देश को घेरने के लिए ज़्यादा-से-ज़्यादा इस्तेमाल हों।

ट्रम्प के करीबी एलड्रिज ए. कॉलबी ने चीन को उकसाकर, उसे ताइवान में युद्ध में झोंकने का एक विस्तृत प्लान पेश किया है। इसे उसके चुने गए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वॉल्स लागू करने के लिए तैयार रहेंगे। यह तय है कि ट्रम्प ने अपने पिछले कार्यकाल में चीन के विरुद्ध जिस छद्म युद्ध को बढ़ावा दिया था और जिसे बाइडन काल में बिना रोकटोक जारी रखा गया, वह ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में और तेज़ होगा। यह छद्म युद्ध न सिर्फ़ सैन्य क्षेत्र में लड़ा जा रहा है, बल्कि सूचना और व्यापार नीति के क्षेत्र में भी। ट्रम्प ने खासतौर से यूएस में आयात पर कम-से-कम 10-20% कर वृद्धि का प्रस्ताव रखा है और यदि आयात चीन से हो तो 60%। इससे उपभोक्ताओं के लिए चीज़ों के दाम कई गुना बढ़ जाएंगे और टैक्स पॉलिसी सेंटर के मुताबिक हर घर पर इसका औसत बोझ सालाना 3,000 डॉलर होगा।

चेहरे, एम. वी. एंग्वेनिया (मोज़ाम्बिक), 1972.

इस तरह की नीति से पहले से ही बाइडन-हैरिस प्रशासन के मज़दूर वर्ग के जीवन स्तर पर हमले को झेल रही आबादी और भी ग़रीबी में धकेल दी जाएगी। बाइडन-हैरिस की यही नीतियाँ डेमोक्रेट पार्टी की हार का कारण भी मानी जा रही हैं। बाइडन के काल में प्रति सप्ताह वास्तविक आय में बहुत गिरावट देखने को मिली और इसके साथ ही असमानता की दर काफ़ी बढ़ी (दिसंबर 2023 तक नौ में से एक वयस्क महिला ग़रीबी में जी रही थी, इसमें 16.6% अश्वेत महिलाएँ और 16.8% लैटिन अमेरिकी महिलाएँ थीं)। जबकि दूसरी ओर मार्च 2020 और मार्च 2024 के बीच यूएस के अरबपतियों की कुल संपत्ति में 88% (5.5 खरब डॉलर) का धमाकेदार उछाल आया, और एसएंडपी 500 इंडेक्स से पता चला कि कैपिटल वेल्थ 72% बढ़ी। इसमें हैरानी की बात नहीं कि सालाना 100,000 डॉलर से कम आय वाले घरों ने बड़ी संख्या में ट्रम्प का समर्थन किया है (इसमें वे 74% भी शामिल हैं जिन्होंने बढ़ती महंगाई के चलते ‘बेहद परेशानी’ महसूस की)। जबकि ट्रम्प को 100,000 डॉलर से ज़्यादा सालाना आय वाले वर्ग में नुक़सान झेलना पड़ा। 2020 में जिस तरह का पक्षपात देखा गया था यह उससे बिल्कुल उलट था और अब तक के राष्ट्रपति चुनावों के रुझानों से भी। .

इतने गहरे आर्थिक संकट की वजह से ट्रम्प इतने भारी मतों से जीते कि तीसरी पार्टी को मिले वोट का कोई मतलब ही नहीं रहा। यह डेमोक्रेट्स के लिए और भी शर्म की बात है क्योंकि उन्होंने प्रगतिशील और जनसंहार-विरोधी उम्मीदवारों को चुनावों से दूर रखने के भरपूर प्रयास किए। बाइडन-हैरिस प्रशासन द्वारा बड़े पैमाने पर चलाए गए घरेलू ख़र्च के कार्यक्रमों की विफलता से अनेक मतदाताओं के निराश होने की बात पहली नज़र में बाइडन की विदेश नीति के कारण हैरिस की हार की दलील को थोड़ा उलझा देती है। किसी देश के बजट को घरेलूकैसे कहा जा सकता है जबकि इसमें सैन्य बजट शामिल है – इसी में शामिल हैं दुनियाभर में फैले 900 सैन्य अड्डों के साम्राज्य की देखरेख, यूक्रेन में चल रहे छद्म युद्ध में 175 अरब डॉलर का निवेश और इज़राइल द्वारा चलाए जा रहे जनसंहार पर 18 अरब डॉलर का ख़र्च। इसके साथ ही वास्तविक सैन्य ख़र्च आधिकारिक आँकड़े से दोगुना है यानी सिर्फ़ साल 2022 में ही 1.5 खरब डॉलर। ट्रम्पवाद तमाम तरह के अतिवादों की खिचड़ी है, जिसमें ख़ुद को दुनिया से अलग रखने का विचार भी है और युद्धपरस्ती भी, इसमें लोकलुभावनवाद भी है और देशीयता भी, लेकिन सब कुछ असल में साम्राज्य के इस हिंसक पतन के ही लक्षण हैं।

समरूप लोग, एंडी लेसी’उआओ ( आओतेओरोआ, न्यूजीलैंड) 2017.

दस्तावेज़ संख्या 15 में जैसा कि बताया गया है कि ये भयानक लक्षण अमेरिकी शासक वर्ग की चीन के आर्थिक विकास को रोकने के लिए युद्ध करने की इच्छा दर्शाते हैं। यह बेहद ख़तरनाक है। हमें उन लोगों की बात सुननी चाहिए जो जानते हैं कि युद्ध अपने साथ क्या-क्या लाते हैं। पूर्वी हान साम्राज्य के दौर में एक सिपहसालार त्साओ त्साओ ने एक कविता में इसकी चेतावनी दी:

एक अरसे से पहने कवचों पर रेंगने लगते हैं कीड़े;
हज़ारों लोगों की लाशें सड़ती रहती हैं।
कंकाल बिखरे रहते हैं मैदानों में,
मीलों मील मुर्गे की बांग भी नहीं देता सुनाई।
सौ में से ज़िंदा बचता है एक;
इस ख़याल से ही दिल टूट जाता है।

सस्नेह,

विजय