जीत, जंग, मृत्यु और अकाल सीधे दिल पर वार करते हैं: ग्यारहवां न्यूज़लेटर (2024)
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
4 मार्च को संयुक्त राष्ट्र की राहत एवं कार्य एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) के महासचिव फिलिप लाज़ारिनी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में ग़ज़ा (फ़िलिस्तीन) की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट पेश की। लेज़ारिनी ने कहा, पिछले 150 दिनों में, इज़रायली बल कम से कम 30,000 फ़िलिस्तीनियों को मार चुके हैं (मरने वालों में लगभग आधे बच्चे हैं)। जो लोग बचे हुए हैं वे इज़रायल के लगातार हमलों का सामना कर रहे हैं, और युद्ध के आघात से भी पीड़ित हैं। बाइबिल की रहस्योद्घाटन (Revelation) पुस्तक में वर्णित चारों विनाशकारी घुड़सवार – जीत, युद्ध, मृत्यु और अकाल – फ़िलवक़्त ग़ज़ा में सरपट दौड़ रहे हैं।
‘सब जगह भुखमरी फैली है’, लज़ारिनी ने कहा। ‘मानव निर्मित अकाल मंडरा रहा है’। लेज़ारिनी के बयान के कुछ दिनों बाद, ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि ग़ज़ा पट्टी के उत्तरी भाग में बाल कुपोषण का स्तर ‘विशेष रूप से ज़्यादा’ है। फ़िलिस्तीन के लिए संयुक्त राष्ट्र के सहायता कार्यक्रम के समन्वयक जेमी मैकगोल्ड्रिक ने कहा कि ‘भुखमरी ख़तरनाक स्तर पर पहुंच गई है।’ मैकगोल्ड्रिक ने कहा, बच्चे ‘भूख से मर रहे हैं’। मार्च के पहले सप्ताह तक कम से कम बीस बच्चे भूख के कारण मर चुके हैं। जिस दिन लेज़ारिनी ने संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात रखी, उसी दिन बेत हनौन (उत्तरी ग़ज़ा) के दस वर्षीय याज़ेन अल-कफ़रना की राफ़ा (दक्षिणी ग़ज़ा) में मृत्यु हुई थी। बच्चे की तस्वीर ने दुनिया की निराश अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया। इज़रायली बमबारी मलबे के साथ-साथ इस तरह की क्रूरतापूर्ण कहानियों का भी ढेर लगा रही है। अल-अवदा अस्पताल, जहां याज़ेन की मृत्यु हुई थी, के डॉ. मोहम्मद सलहा का कहना है कि वहां कुपोषण से पीड़ित कई गर्भवती महिलाएं मृत बच्चों को जन्म दे रही हैं, और कई मामलों में मृत भ्रूण निकालने के लिए बिना एनेस्थिसिया के भी सीजेरियन ऑपरेशन करना पड़ रहा है ।
संभावनाओं के क्षितिज पर युद्धविराम कहीं नहीं दीखता। न ही ग़ज़ा में सहायता पहुंचाने को लेकर कोई वास्तविक प्रतिबद्धता दिखती है। उत्तरी ग़ज़ा विशेष रूप से भुखमरी से जूझ रहा है (28 फरवरी को, संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के उप निदेशक कार्ल स्काऊ ने सुरक्षा परिषद को बताया था कि ‘यदि ख़तरे को टाला नहीं गया तो मई तक [उत्तरी ग़ज़ा में] अकाल पड़ने की पूरी आशंका है, जिससे 500,000 से अधिक लोगों को ख़तरा है’)। प्रतिदिन लगभग 155 सहायता ट्रक ग़ज़ा में प्रवेश कर रहे हैं, जबकि प्रतिदिन 500 ट्रकों को पार जाने की अनुमति है। इन 155 में से कुछ ही ट्रक उत्तरी ग़ज़ा जा रहे हैं। इज़रायली सैनिकों की क्रूरता यहां भी बरक़रार है। 29 फरवरी को, कुछ सहायता ट्रक ग़ज़ा शहर के पश्चिम में अल-नबौल्सी चौराहे पर पहुंचे और हताश लोग उनकी ओर दौड़े, तभी इज़रायली सैनिकों ने गोलीबारी शुरू कर दी जिसमें कम से कम 118 निहत्थे नागरिक मारे गए। इसे ‘अनाज/आटा नरसंहार’ का नाम दिया गया है। हेलिकॉप्टरों से फेंके जा रहे भोजन पार्सल न केवल अपर्याप्त हैं, बल्कि दुःख का सबब बन रहे हैं। ये पार्सल कभी भूमध्यसागर में जा गिरते हैं या लोगों को कुचल देते हैं (अब तक भोजन पार्सल के नीचे दब कर कम से कम पांच लोग मारे जा चुके हैं)।
संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, ने हवा में ही यह घोषणा नहीं की है कि वह समुद्र के माध्यम से सहायता पहुंचाने के लिए दक्षिणी ग़ज़ा में एक ‘अस्थायी घाट’ का निर्माण करेंगे। हालांकि बाइडन ने कुछ बोला नहीं लेकिन इसका संदर्भ साफ़ है: इज़रायल ज़मीनी रास्तों से न्यूनतम मानवीय सहायता की भी अनुमति नहीं दे रहा है, 10 अक्टूबर को इज़रायल ने ग़ज़ा का बंदरगाह नष्ट कर दिया था, और दहनिया में बने ग़ज़ा हवाई अड्डे को 2006 में इज़रायल ने तबाह कर दिया था। इस घोषणा का ठोस कारण है। जो बाइडन फिर से चुनाव लड़ना चाह रहे हैं। और डेमोक्रैट्स इस कोशिश में लगे हैं इस नरसंहार में उनकी भागीदारी का असर उनकी दोबारा उम्मीदवारी के लिए होने वाले चुनाव पर न पड़े।
एक रोटी, रोटी न होने से बेहतर है, लेकिन ये रोटियां ग़ज़ा तक खून के छींटों के साथ आने वाली हैं।
बाइडन की घोषणा खोखली है। सहायता इस अस्थायी घाट पर पहुंच भी जाती है, तो इसका वितरण कैसे होगा। ग़ज़ा में बड़े पैमाने पर किए जाने वाले वितरण का संचालन मुख्य रूप से दो ही संस्थाएं करती आई हैं; पहली है यूएनआरडब्ल्यूए, जिसे अब पश्चिमी देशों ने फंड देने बंद कर दिए हैं, और दूसरी है हमास के नेतृत्व वाली फ़िलिस्तीनी सरकार, जिसे पश्चिमी देश तबाह करने में लगे हैं। ये दोनों संस्थाएं ज़मीन पर मानवीय सहायता वितरण का संचालन नहीं कर पायेंगी और (बाइडन के कथानुसार ‘कोई भी अमेरिकी जवान ज़मीन पर नहीं होग़ा’), तो इस सहायता का होगा क्या?
1949 में संयुक्त राष्ट्र संकल्प 302(4) के पास होने के बाद से ही कार्यरत यूएनआरडब्ल्यूए फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों को राहत प्रदान करने वाला मुख्य संगठन रहा है। इस बीच शरणार्थियों की संख्या सात लाख से बढ़ कर उनसठ लाख हो गई है। यूएनआरडब्ल्यूए को फ़िलिस्तीनियों की हरसंभव सहायता करने का दायित्व सौंपा गया है, लेकिन यह संस्था उन्हें उनके घरों के बाहर स्थायी रूप से बसाने का काम नहीं कर सकती क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संकल्प 194 फ़िलिस्तीनियों को उनके उन घरों में ‘वापसी का अधिकार’ प्रदान करता है, जहां से वे इज़रायली राज्य द्वारा बेदखल किए गए हैं। हालांकि यूएनआरडब्ल्यूए का मुख्य कार्य शिक्षा प्रदान करना रहा है (और इसके 30,000 कर्मचारियों में से दो तिहाई यूएनआरडब्ल्यूए स्कूलों में काम करते हैं) लेकिन यही संस्था सहायता सामग्री के वितरण में सबसे बेहतर है।
पश्चिम ने यूएनआरडब्ल्यूए के निर्माण की अनुमति इसलिए नहीं दी थी कि उसे फ़िलिस्तीनियों की चिंता थी, बल्कि उसके भीतर डर था। अमेरिकी विदेश मंत्रालय (1949) ने महसूस किया था कि – ‘अशांति और निराशा की स्थितियां साम्यवाद के पनपने के लिए उपजाऊ ज़मीन प्रदान करेंगी’। यही कारण है कि पश्चिम ने यूएनआरडब्ल्यूए के लिए धन उपलब्ध कराया (हालाँकि, 1966 से, यह फंड गंभीर प्रतिबंधों के साथ आया है)। 2024 की शुरुआत में, अधिकांश पश्चिमी देशों ने एक निराधार आरोप के आधार पर, कि 7 अक्टूबर के हमले में यूएनआरडब्ल्यूए के कर्मचारी शामिल थे, उसे दी जाने वाली अपनी फंडिंग में कटौती कर दी। जबकि हाल ही में यह बात सामने आई है कि इज़रायली सेना ने यूएनआरडब्ल्यूए के कर्मचारियों को प्रताड़ित कर उन्हें ये बयान देने के लिए मजबूर किया था, लेकिन जिन देशों ने उपरोक्त आरोप के आधार पर अपनी फंडिंग में कटौती की थी, उनमें से (कनाडा और स्वीडन को छोड़) अधिकांश ने फ़ंडिंग बहाल नहीं की है। इस बीच, ब्राज़ील के नेतृत्व में दक्षिणी गोलार्ध के कई देशों ने अपना योगदान बढ़ाया है।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त के फ़िलिपो ग्रांडी 2010 से 2014 के दौरान यूएनआरडबल्यूए की देखरेख कर रहे थे। उन्होंने हाल ही में कहा है कि यदि ‘यूएनआरडबल्यूए के काम में बाधा खड़ी की जाती है, या उसकी फंडिंग रद्द कर दी जाती है, तो मुझे समझ में नहीं आता कि इसका काम और कौन करेगा।’ यूएनआरडब्ल्यूए की पूर्ण भागीदारी के बिना ग़ज़ा के फ़िलिस्तीनियों के लिए अल्पावधि में कोई भी मानवीय राहत कार्यक्रम चला पाना संभव नहीं है। इसके अलावा किसी भी तरह के उपाय पेश करना केवल दिखावा है।
ग़ज़ा में अकाल की हालत के बारे में पढ़ते हुए, मुझे जस्लो (दक्षिणी पोलैंड) में ज़ेबनी कॉन्सेंट्रेशन कैंप पर विस्लावा शिम्बोर्स्का (1923-2012) द्वारा लिखी एक कविता याद आ गई। इस कॉन्सेंट्रेशन कैंप में 1941 से पोलिश यहूदियों, रोमानियों और सोवियत युद्धबंदियों को बंद रखा गया था, सितंबर 1944 में लाल सेना ने कैंप के बंदियों को आज़ाद कराया था। स्जेबनी में नाज़ियों ने क्रूर हिंसा की थी; हजारों यहूदी सामूहिक फांसी में मारे गए थे। शिम्बोर्स्का की कविता, ‘जस्लो के पास भुखमरी शिविर’ (1962), आस-पास मौजूद हिंसा को बयान करती है, और मानवता की संभावना के लिए दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ लिखी गई हैः
लिखो। लिखो। आम स्याही से
साधारण काग़ज़ पर कि उन्हें खाना नहीं दिया गया,
कि वे सब के सब भूख से मर गए। सब। कितने?
यह एक बड़ा घास का मैदान है। कितनी घास घेरता होगा
एक आदमी? लिखो: मुझे पता नहीं।
इतिहास शून्य को पूर्णांक मानकर रखता है कंकालों का हिसाब
एक हज़ार एक, एक हज़ार ही होते हैं।
एक आदमी वहाँ ऐसे होता है गोया वह कभी था ही नहीं
क्या पेट में वह बच्चा फर्ज़ी था ?
उस पालने में क्या कोई नहीं था ?
क्या किसी के लिए बालपोथी के पन्ने खोले ही नहीं गए थे?
क्या हवा में कोई किलकारी नहीं गूँजी थी और न ही कोई रोया था?
क्या कोई बड़ा नहीं हुआ था?
बग़ीचे में खुलनेवाली सुनसान सीढ़ियों के
किसी पायदान पर क्या किसी ने उसे नहीं देखा था?
इसी घास के मैदान पर
वह हाड़-मांस का आदमी बना
लेकिन घास का मैदान
उस गवाह की तरह ख़ामोश है जिसे ख़रीदा जा चुका हो
धूप है, हरियाली है
लकड़ियाँ चबाने के लिए
पास में जँगल है
पीने के लिए
दरख़्तों की छाल से रिसती बूंदें हैं
यही दृश्य दिन-रात दिखता रहता है
जब तक कि तुम अंधे न हो जाओ
ऊपर उड़ते एक पक्षी के मज़बूत पंखों की छाया
उनके होठों पर फड़फड़ा रही है
जबड़े नीचे लटक गए हैं
दाँत किटकिटा रहे हैं
रात में एक हंसिया आसमान में चमक रहा था
रोटी का सपना देखनेवालों के लिए
अंधेरे की फ़सल काट रहा था
काले बुतों जैसे आदमियों के हाथ लहरा रहे थे
हर हाथ में एक ख़ाली कटोरा था
कटीले तारों पर
एक आदमी झूल रहा था
धूल भरे मुँह से कुछ लोगों ने गाना गाया
ज़ंग के खिलाफ़ वही प्यारा-सा गाना
जो सीधे दिल पर लगता है
लिखो! इसमें कितनी शांति है
हाँ! शांति!
इस न्यूज़लेटर में शामिल पेंटिंग और तस्वीरें इज़रायल के नरसंहार के दौरान ग़ज़ा में मारे गए फ़िलिस्तीनी कलाकारों द्वारा बनाई गई थीं। वे मर चुके हैं, लेकिन हमें उनकी कहानियाँ सुनाने के लिए ज़िंदा रहना होगा।
स्नेह-सहित,
विजय