नगण्य लोगों का जीवन, उनकी जान लेने वाली गोलियों से ज़्यादा मूल्यवान है: नौवां न्यूज़लेटर (2024)
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
20 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत लिंडा थॉमस–ग्रीनफील्ड ने ग़ज़ा में युद्धविराम हेतु अल्जीरिया द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव को वीटो कर उसे रद्द कर दिया। संयुक्त राष्ट्र में अल्जीरिया के राजदूत अमर बेंजामा ने कहा कि उन्होंने जो प्रस्ताव पेश किया, उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों के बीच चली बातचीत के आधार पर तैयार किया गया है। इसके बावजूद उनसे प्रस्ताव में देरी करने के लिए कहा गया, लेकिन उनके देश ने इनकार कर दिया। ‘चुप रहना सही विकल्प नहीं है‘, उन्होंने जवाब में कहा। ‘यह कुछ करने का समय है, यह सच का समय है।‘ 26 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने पाया था कि यह ‘स्वीकार किया जा सकता है‘ कि ग़ज़ा में इज़रायल नरसंहार कर रहा है, तभी अल्जीरिया ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के ज़रिए तत्काल कार्रवाई करने की ठान ली थी।
7 अक्टूबर के बाद से, इज़रायल ग़ज़ा में लगभग 30,000 फ़िलिस्तीनियों को मार चुका है, जिनमें से 13,000 से अधिक बच्चे थे। 26 जनवरी को आईसीजे द्वारा नरसंहार रोकने का आदेश दिए जाने के बाद भी इज़रायल 3,000 से अधिक फ़िलिस्तीनियों को मार चुका है। महीनों से एक सुरक्षित जगह से दूसरी सुरक्षित जगह पर भागते 15 लाख से अधिक फ़िलिस्तीनी – यानी ग़ज़ा की आधी से ज़्यादा आबादी – अब ग़ज़ा के दक्षिण में राफ़ा में फंसे हुए हैं। इस वक़्त राफ़ा दुनिया में सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र है। इज़रायल एक के बाद एक सुरक्षित जगहों को बमों से तबाह करता रहा है और अब वह राफ़ा पर, जिसकी आबादी 7 अक्टूबर से पहले ही 2,75,000 थी, बमबारी करने पर आमादा है।
इस गंभीर हालात के बावजूद राजदूत थॉमस–ग्रीनफ़ील्ड ने कहा कि अमेरिका युद्धविराम प्रस्ताव का समर्थन नहीं कर सकता क्योंकि इसमें हमास की निंदा नहीं की गई है और इससे बंधकों को रिहा करने के लिए जारी बातचीत ख़तरे में पड़ सकती है। संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत झांग जून ने इस पर असहमति जताते हुए कहा कि वीटो का इस्तेमाल ‘जारी नरसंहार को हरी झंडी दिखने के अलावा कुछ नहीं है‘। उन्होंने कहा कि ‘ग़ज़ा में लगी युद्ध की आग को बुझाकर ही हम इस नरक की आग को पूरे क्षेत्र में फैलने से रोक सकेंगे‘।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में थॉमस–ग्रीनफ़ील्ड के बयान को, उनकी सरकार द्वारा इज़रायल को 14 अरब डॉलर की सैन्य सहायता प्रदान करने के प्रयास के साथ देखा जाना चाहिए। 1948 में इज़रायल के निर्माण के बाद से अमेरिका इज़रायल को 300 अरब डॉलर से अधिक की सहायता प्रदान कर चुका है; इसमें 4 अरब डॉलर की वार्षिक सैन्य सहायता (और 7 अक्टूबर 2023 से लगातार दिए जा रहे अरबों डॉलर) शामिल हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 11 फरवरी को इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से हुई बातचीत में नरसंहार की आलोचना करने के बजाय ‘हमास को पराजित होते देखने और इज़रायल व उसकी जनता की दीर्घकालिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के साझा लक्ष्य‘ पर बात की। थॉमस–ग्रीनफ़ील्ड के वीटो का यही संदर्भ है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो का प्रयोग लगभग 300 बार किया जा चुका है। 1970 के बाद से अमेरिका ने वीटो का उपयोग अन्य किसी भी स्थायी सदस्य (चीन, फ्रांस, रूस और यूनाइटेड किंगडम) से कहीं ज़्यादा किया है। अमेरिका ने कई गंभीर मुद्दों पर नकारात्मक रूप से वीटो का इस्तेमाल किया है, जैसे दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेदी शासन का बचाव करने के लिए, जिसकी शुरुआत के दौरान इज़रायल की स्थापना हुई थी, और फिर हर तरह की आलोचना से इज़रायल का बचाव करने के लिए। मसलन 1988 के बाद से अमेरिका द्वारा प्रयोग किए गए 33 में से 27 वीटो फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इज़रायली कार्रवाई के बचाव में इस्तेमाल किए गए थे। 7 अक्टूबर के बाद से, अमेरिका इज़रायल पर नरसंहार को रोकने का दबाव बनाने वाले तीन प्रस्तावों (18 अक्टूबर, 8 दिसंबर और 20 फरवरी) के ख़िलाफ़ वीटो का इस्तेमाल कर चुका है।
हालांकि अमेरिका इसे बार–बार इस्तेमाल करता है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र चार्टर (1945) में ‘वीटो‘ शब्द का कहीं कोई ज़िक्र नहीं है। हां, चार्टर के अनुच्छेद 27(3) में यह ज़रूर कहा गया है कि सुरक्षा परिषद के सभी निर्णय ‘स्थायी सदस्यों की सहमति वाले मतों सहित, नौ सदस्यों के सकारात्मक वोट द्वारा किए जाएंगे‘। ‘सहमति मत‘ को ‘वीटो के अधिकार‘ के रूप में परिभाषित किया जाता है। दशकों से, संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश सदस्य देश इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद लोकतांत्रिक नहीं है और वीटो शक्ति इसकी विश्वसनीयता को कम करती है। कोई अफ्रीकी या लैटिन अमेरिकी देश परिषद का स्थाई सदस्य नहीं है, और दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश – भारत – भी इस विशेषाधिकार से वंचित है। पी5 ( पांच स्थायी देशों) का सुरक्षा परिषद पर दबदबा है, जिससे संयुक्त राष्ट्र महासभा का महत्त्व कम हुआ है, क्योंकि उसके अपने प्रस्ताव ठोस रूप से लागू नहीं हो पाते।
2005 में संयुक्त राष्ट्र ने विश्व व्यवस्था पर सबसे बड़े ख़तरों का आकलन करने के लिए एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया था। सम्मेलन में कोस्टा रिका के तत्कालीन उपराष्ट्रपति लिनेथ सबोरियो चावेरी ने कहा था कि ‘नरसंहार, युद्ध अपराध, मानवता के ख़िलाफ़ अपराध और मानवाधिकार–उल्लंघन जैसे मामलों में वीटो अधिकार को समाप्त कर दिया जाना चाहिए‘। उस शिखर सम्मेलन के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की वकालत करने के लिए कोस्टा रिका, जॉर्डन, लिकटेंस्टीन, सिंगापुर और स्विट्जरलैंड ने मिलकर स्मॉल फाइव (S5) समूह बनाया था। इस समूह ने महासभा में एक बयान जारी किया कि ‘किसी भी स्थायी सदस्य को नरसंहार, मानवता के ख़िलाफ़ अपराध और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के गंभीर उल्लंघन की स्थिति में चार्टर के अनुच्छेद 27, पैराग्राफ 3 के तहत वीटो इस्तेमाल नहीं करना चाहिए‘। लेकिन इस बयान का कोई असर नहीं हुआ। 2012 में S5 समूह के भंग हो जाने के बाद 27 देशों ने जवाबदेही, सुसंगतता और पारदर्शिता (ACT) समूह बनाया, जिसका मुख्य उद्देश्य है ‘वीटो के अधिकार‘ में सुधार करना। 2015 में, ACT समूह ने मानवीय क़ानून के गंभीर उल्लंघन के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई से संबंधित विशेष आचार संहिता प्रसारित की थी। 2022 तक, 123 देश इस आचार संहिता पर हस्ताक्षर कर चुके थे, हालांकि पिछले कुछ वर्षों में वीटो का सबसे अधिक उपयोग करने वाले तीन देश (चीन, रूस और अमेरिका) उनमें शामिल नहीं हैं। जिस तरह अमेरिका, चीन और रूस के लिए तनाव बढ़ा रहा है, उससे लगता नहीं कि ये दोनों देश – अमेरिका द्वारा दी जा रही युद्ध की धमकियों के मद्देनज़र – वीटो को ख़त्म करने पर सहमत होंगे।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर दुनिया में मौजूद सबसे महत्त्वपूर्ण संधि है, जिसका उद्देश्य है युद्ध का अंत करना और मानवीय जीवन के मूल्य पर ज़ोर देना। इसके बावजूद, हमारी दुनिया मानवता के एक अंतरराष्ट्रीय विभाजन से बंटी हुई है, जिसके अनुसार कुछ लोगों का जीवन दूसरों के जीवन से कहीं अधिक मूल्यवान है। यह विभाजन मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948) और सामाजिक समानता की बुनियादी साझा प्रवृत्ति का उल्लंघन है। उदाहरण के लिए, फ़िलिस्तीनी बच्चों की रक्षा के मामले में यूक्रेनी बच्चों की तुलना में कम तत्परता दिखाई जाती है (एनबीसी न्यूज़ लंदन के संवाददाता केली कोबिएला ने कहा कि, यूक्रेनी कहीं से भी आ गए शरणार्थी नहीं हैं: ‘स्पष्ट रूप से कहें तो… वो ईसाई हैं; श्वेत हैं।) मानवता का यह अंतरराष्ट्रीय विभाजन पीढ़ी–दर–पीढ़ी सार्वजनिक चेतना का हिस्सा बनता जाता है।
द बुक ऑफ एम्ब्रेसेस (1992) में, हमारे साथी एडुआर्डो गैलियानो ने दुनिया में व्याप्त गंभीर विभाजन पर एक टीप लिखी थी। यह विभाजन मानवता की भावना को खा रहा है। ‘द नोबॉडीज़ (नगण्य लोग)‘ नामक यह टीप इस प्रकार है:
धनाढ्य अपने लिए एक कुत्ता ख़रीदने का सपना देखते हैं, और नगण्य लोग ग़रीबी से बचने का सपना देखते हैं, उस एक जादुई दिन का, जब क़िस्मत अचानक उन पर बरस पड़ेगी, छप्पर फाड़ कर। लेकिन क़िस्मत है कि कल, आज, या आने वाले कल, कभी नहीं बरसती। क़िस्मत की हल्की बूंदाबांदी भी नहीं होती, वो चाहे कितना ज़ोर लगा लें, चाहे उनका बायां हाथ फड़कता हो, या वो नए दिन की शुरुआत अपने दाहिने पैर को आगे रख कर करें, या नए साल की शुरुआत नया झाड़ू लेकर करें।
नगण्य लोग: किसी के बच्चे नहीं, किसी चीज़ के मालिक नहीं होते। नगण्य लोग: अपनी रूह से, अपने शरीर तक से वंचित, खरगोशों की तरह दौड़ते हुए, जीवन भर मरते हुए, हर तरह से सताए जाते हैं।
जो कुछ हैं नहीं, पर हो सकते हैं।
जो कोई भाषा नहीं, पर कई बोलियाँ बोलते हैं।
जो किसी धर्म के अनुयायी नहीं, पर अंधविश्वास रखते हैं।
जो कला नहीं बनाते, हस्तशिल्प बनाते हैं।
जिनके पास संस्कृति नहीं लोकसंस्कृति है।
जो मानव नहीं, मानव संसाधन हैं।
जो चेहरे नहीं, बस बाजू हैं।
जो नाम नहीं, बस नंबर हैं।
जो दुनिया के इतिहास में नहीं, स्थानीय अख़बार के पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज होते हैं।
नगण्य लोग, उन्हें मारने वाली गोलियों के भी लायक नहीं होते।
स्नेह–सहित,
विजय।