प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
12 अगस्त 2021 को ज़ाम्बिया के लोग नया राष्ट्रपति चुनने के लिए वोट डालेंगे। यदि मौजूदा राष्ट्रपति चुनाव हारते हैं तो, 1964 में यूनाइटेड किंगडम से स्वतंत्रता हासिल करने के बाद से इस पद पर सातवाँ व्यक्ति नियुक्त होगा। वर्तमान राष्ट्रपति एडगर लुंगु को सोशलिस्ट पार्टी ज़ाम्बिया के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार फ्रेड एममेम्बे से कड़ी चुनौती मिल रही है।
एममेम्बे चुनौती का महत्व जानते हैं। 1991 में शुरू हुए ’द पोस्ट’ के संपादक के रूप में, एममेम्बे लगभग अख़बार की शुरुआत से ही लांछनों और राजनीतिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। एममेम्बे की द पोस्ट सच बयान करती थी; इसलिए उसे 2016 में बंद कर दिया गया। जिसके बाद ’द मास्ट’ के नाम से उसी अख़बार को पुनर्जीवन मिला।
2009 में, द पोस्ट के एक संपादकीय में बताया गया कि कैसे, स्वतंत्रता हासिल करने के दशकों के बाद, आज भी ज़ाम्बिया एक अन्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था के पंजों में जकड़ा हुआ है। द पोस्ट में लिखा था, ’आर्थिक रूप से कहें तो, ज़ाम्बिया वैश्विक कुत्ते की पूँछ का सिरा है। जब कुत्ता ख़ुश होता है, तो हम अपने आप को इधर से उधर झूमते हुए पाते हैं; जब कुत्ता दुखी होता है, तो हम ख़ुद को एक अंधेरी और बदबूदार जगह पर घिरा हुआ पाते हैं’। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि फ्रेडरिक चिलुबा (1991-2002) से लेकर मौजूदा राष्ट्रपति एडगर लुंगु तक हर सरकार ने बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और विदेशी बॉन्डहोल्डर्स के सामने ज़ाम्बिया के राजनीतिक अभिजात्य वर्ग के आत्मसमर्पण पर रौशनी डालने वाले इस अख़बार और उसके संपादक को चुप कराने की कोशिश की होगी। अब द पोस्ट के संपादक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं।
फ्रेड एममेम्बे एक विनम्र व्यक्ति हैं, जो राष्ट्रपति चुनाव की शंका को मुस्कुराकर टाल देते हैं। मार्च 2018 को स्थापित हुई अपनी सोशलिस्ट पार्टी के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि ’हमारा एक सामूहिक नेतृत्व है’। उनकी पार्टी के घोषणापत्र में वादा किया है कि वे ज़ाम्बिया में बढ़ते निजीकरण, वि-औद्योगीकरण और सामाजिक ताने-बाने को नष्ट कर जनता के बीच निराशा की भावना पैदा करने वाली सामाजिक प्रक्रियाओं को उलटने का काम करेंगे। कोविड-19 के दौर में उनका घोषणापत्र एक और भयानक सच्चाई की ओर ध्यान दिलाता है: आधी आबादी तक स्वच्छता प्रणालियों की पहुँच न होने के कारण ’पानी और स्वच्छता की ख़राब स्थिति के कारण, शहरी क्षेत्रों में पानी से होने वाली बीमारियाँ फैलने का ख़तरा है, जो लगभग हर साल फैलती हैं’।
ज़ाम्बिया के पहले राष्ट्रपति केनेथ कौंडा (1964-1991) की सरकार के बाद से जो नवउदारवादी नीतियाँ लागू हुईं वो ज़ाम्बियावासियों के लिए विनाशकारी साबित हुई हैं। एममेम्बे ने मुझे बताया, ये नीतियाँ, ’हमारे देश में एक विशाल टाइम बॉम्ब की तरह हैं। हमें ख़ुद को भूख, बेरोज़गारी, मलिनता, बीमारी, अज्ञानता, निराशा और उदासी के गर्त में गिरने से रोकना है। बेहतर ज़ाम्बिया के लिए संघर्ष करने का, एक मतलब है, बेहतर ज़ाम्बिया बनाना’।
ज़ाम्बिया ग़रीब लोगों का समृद्ध देश है। ज़ाम्बिया की ग़रीबी दर लगभग 40% से 60% के बीच है (और केवल 2015 तक के आँकड़े उपलब्ध हैं)। जून 2020 की शुरुआत में किए गए विश्व बैंक के एक घरेलू सर्वेक्षण में पाया गया कि कृषि आधारित परिवारों में से आधे परिवारों की आय में भारी कमी आई है, जबकि ग़ैर-कृषि व्यवसायों से आय अर्जित करने वाले 82% परिवारों की आजीविका कम हुई है। विश्व बैंक ने पाया कि ज़ाम्बिया में आने वाले मुद्रा प्रवाह (रेम्मिटेन्स फ़्लो) में भी गिरावट आई है।
आय में गिरावट के कारण, परिवारों ने अपनी खपत, विशेषकर भोजन की खपत कम कर दी है। महामारी से पहले, 2019 में, ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने ज़ाम्बिया में भूख की स्थिति को ’ख़तरनाक’ स्तर पर पाया था। लेकिन महामारी के कारण बढ़ी भुखमरी पर कोई विश्वसनीय आँकड़ा उपलब्ध नहीं है; इसलिए वैश्विक भुखमरी सूचकांक स्थिति का सही आकलन नहीं कर पाया है और उसने स्थिति को ’गंभीर’ बताया है। एममेम्बे ने मुझे बताया, ’जाम्बिया एक बड़ी तबाही की कगार पर खड़ा है’।
नवंबर 2020 में, ज़ाम्बिया यूरोबॉन्ड को 42.5 मिलियन डॉलर का भुगतान नहीं कर पाने के कारण डिफ़ॉल्टर बन गया। राष्ट्रपति लुंगू की सरकार तब से कठोर उदारीकरण की नीतियाँ लागू किए बिना अपने लिए कोई रास्ता खोजने के लिए आईएमएफ़ से बात कर रही है। उदारीकरण की नीतियाँ लागू करने से अगस्त 2021 के चुनावों में लुंगु के पुन: जीतने की संभावनाओं को धक्का लग सकता है, और महामारी के दौर में सार्वजनिक सेवाओं में कटौती करना देश पर भारी पड़ेगा। मार्च की शुरुआत में, आईएमएफ़ के पदाधिकारियों की यात्रा के बाद कहा गया कि एक ’उचित पॉलिसी पैकेज’ की दिशा में ’महत्वपूर्ण प्रगति’ हासिल कर ली गई है; लेकिन इस सिलसिले में कोई विवरण या समय सारिणी जारी नहीं की गई है।
आईएमएफ़ टीम की ज़ाम्बिया के अधिकारियों के साथ हुई मीटिंग से एक महीने पहले ज़ाम्बिया के खनन मंत्री रिचर्ड मुसुक्वा ने घोषणा की कि देश का तांबा उत्पादन 882,061 टन तक पहुँच गया है। 2019 के आँकड़ों के मुक़ाबले ताँबे के उत्पादन में 10.8% की वृद्धि हुई है, मुसुक्वा के अनुसार यह ’ऐतिहासिक वृद्धि’ है। इलेक्ट्रिक कारों और उच्च तकनीकी उपकरणों की ओर बढ़ती दुनिया में, तांबे की तारों की माँग ज़ाहिर तौर पर बढ़ेगी; यही वजह है कि ज़ांम्बिया अगले कुछ वर्षों में हर साल 10 लाख टन से अधिक तांबा उत्पादित कर पाने की क्षमता तक पहुँचना चाहता है। तांबे की क़ीमत (4 डॉलर प्रति पाउंड) 2011 की ऊँची क़ीमत (4.54 डॉलर प्रति पाउंड) की ओर बढ़ रही है। तांबे से बहुत पैसा बनाया जा सकता है, यह ख़ासतौर पर ज़ाम्बिया के लोगों की सच्चाई है।
ज़ाम्बिया के तांबे पर चार कंपनियों का वर्चस्व है: कनाडा की बैरिक गोल्ड की बैरिक लुमवाना, कनाडा की फ़र्स्ट क्वांटम की एफक्यूएम कांसांशी, स्विट्जरलैंड की ग्लेनकोर की मोपानी और यूके की वेदांता की कोंकोला कॉपर माइंस। ये वो बड़ी खनन कंपनियाँ हैं जो तरह-तरह के रचनात्मक तरीक़ों -जैसे ट्रांसफ़र मिसप्राइसिंग और रिश्वत- से ज़ाम्बिया के संसाधनों पर क़ब्ज़ा किए बैठी हैं। 2019 में, ट्राइकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने ’संसाधन संप्रभुता’ की स्थिति के बारे में अकरा (घाना) में स्थित थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क-अफ़्रीका की राजनीतिक अर्थव्यवस्था इकाई के प्रमुख ग्येक्ये तानोह से बात की थी। ज़ाम्बिया की स्थिति पर उनकी टिप्पणियों को फिर से पढ़ा जाना चाहिए:
क्योंकि ज़ाम्बिया अब पूरी तरह से तांबे के निर्यात पर निर्भर है, अंतर्राष्ट्रीय स्तर के तांबा मूल्य परिवर्तनों का क्वाचा [ज़ाम्बिया की मुद्रा] की विनिमय दर पर एक प्रतिकूल और विकृत प्रभाव पड़ता है। यह विकृति और तांबे के निर्यात से प्राप्त होने वाला सीमित राजस्व, क्वाचा के उतार-चढ़ाव के परिणामस्वरूप अन्य, गैर-तांबा निर्यात की प्रतिस्पर्धा और व्यवहार्यता को प्रभावित करते हैं। ये उतार-चढ़ाव सामाजिक क्षेत्र को भी प्रभावित करते हैं। 2018 में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि 1997 से 2008 के दौरान विनिमय दर -11.1% से + 3.4% के बीच रही। ज़ाम्बिया के स्वास्थ्य मंत्रालय को डोनर्ज़ से मिलने वाली सहायता में 13 मिलियन डॉलर या 1.1 मिलियन डॉलर प्रति वर्ष की हानि हुई थी। 2015 और 2016 के बीच क्वाचा का मूल्य गिरने के कारण, ज़ाम्बिया में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य व्यय 44 डॉलर (2015) से घटकर 23 डॉलर (2016) हो गया था।
एममेम्बे ने बताया कि ज़ाम्बिया के धन के केंद्र कॉपरबेल्ट प्रांत में ग़रीबी का स्तर बहुत अधिक है। ज़रा सोचें कि इस तांबा संपन्न क्षेत्र के 60% बच्चे पढ़ नहीं सकते हैं। उन्होंने समझाया, ’विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ प्रमुख लाभार्थी रही हैं’। ज़ाम्बियाई अभिजात्य वर्ग के साथ उनके अच्छे संबंधों के कारण इन कम्पनियों को कम टैक्स देना पड़ता है; वे आउटसोर्सिंग और उप-ठेकेदारी जैसे तरीक़े अपनाकर ज़ाम्बिया के श्रम क़ानूनों की अनदेखी करती हैं और सारा मुनाफ़ा देश से बाहर ले जाती हैं। एममेम्बे ने कहा, ’यह उद्योग अभी भी औपनिवेशिक तरीक़े से चलता है’। फीलिस डीन की किताब कलोनीयल सोशल अकाउंटिंग (1953) में उन्होंने दिखाया है कि उत्तरी रोडेशिया -जो कि औपनिवेशिक शासन के दौरान ज़ाम्बिया का नाम था- में मुनाफ़े का दो-तिहाई विदेशी शेयरधारकों को भुगतान करने के लिए देश से बाहर चला जाता था, शेष बचे मुनाफ़े का दो-तिहाई हिस्सा यूरोपीय श्रमिकों में बाँटा जाता था और इस बड़े मुनाफ़े में से जो थोड़ा बहुत बचता था वो अफ्रीका के खनिकों को मिलता था।
एममेम्बे ने कहा, ‘विकास के लिए खनिजों जैसे ग़ैर-नवीकरणीय संसाधनों पर निर्भर होना, अंतत: अव्यवहार्य है’। ज़ाम्बिया में किसी भी सरकार को तांबे पर निर्भर रहना होगा -जिसके कुल संसाधन का आज तक केवल एक तिहाई ही खनन किया गया है- जब तक कि देश की अर्थव्यवस्था और समाज को पूरी तरह से विविध नहीं बनाया जाए। सोशलिस्ट पार्टी ने तांबे के संसाधनों का दोहन करने के लिए कई नीतियों का प्रस्ताव दिया है,जिसमें मौजूदा मालिकों के साथ बेहतर सौदे करने से लेकर पूर्ण-राष्ट्रीयकरण जैसे क़दम तक शामिल हैं। (फ़र्स्ट क्वांटम और ग्लेनकोर ने अपने निवेश में कटौती कर सरकार को आगे आने के लिए मजबूर किया है, इसलिए वर्तमान समय में पूर्ण-राष्ट्रीयकरण की नीति ज़ाम्बिया में लागू किए जाने की बात हो रही है)। एममेम्बे ने न्याय-सम्मत खनन नीति के लिए सात बिंदु निर्धारित किए हैं:
1. समाजवादी सरकार खनिजों को रणनीतिक धातु घोषित करेगी और उनके खनन के लिए एक सुरक्षात्मक क़ानूनी वातावरण बनाएगी। धातुओं के कॉन्सेंट्रेट्स का निर्यात ग़ैरक़ानूनी घोषित किया जाएगा, और खनिजों की मार्केटिंग को सरकार समन्वित करेगी।
2. क़ानूनों और राजनीतिक कोशिशों की वजह से ज़ाम्बिया के मज़दूरों की ताक़त बढ़ेगी।
3. खनन कंपनियों को कम-से- कम 30% औद्योगिक इनपुट ज़ाम्बिया से प्राप्त करना होगा, जिससे विनिर्माण बढ़ेगा।
4. ज़ाम्बिया कंसॉलिडेटेड कॉपर माइन्स लिमिटेड-इन्वेस्टमेंट होल्डिंग्स (ZCCM-IH), जो कि एक सरकारी निगम है, सभी नयी खानों का नियंत्रित करेगी।
5. अतिरिक्त खनिज किराए को सुरक्षित करने के लिए रीसॉर्स रेंट या वेरीएबल टैक्स लागू किया जाएगा।
6. खनिज बिक्री से होने वाली सारी कमाई पहले बैंक ऑफ़ ज़ाम्बिया के खातों में जमा की जाएगी- जो कि मुद्रा और भुगतान प्रबंधन व स्थिरता बनाए रखने के लिए एक अनिवार्य पहलू है।
7. खानों को अत्याधुनिक पर्यावरणीय तकनीकों, प्रथाओं और मानकों का पालन करना होगा।
इसके अलावा, समाजवादी सरकार खनिकों की सहकारी समितियों के निर्माण को प्रोत्साहित करेगी, ख़ासकर मैंगनीज के खनिकों के लिए, जिसका खनन सस्ता पड़ता है।
ज़ाम्बिया के लिए सोशलिस्ट पार्टी के एजेंडे में उद्देश्य की गंभीरता है। एममेम्बे इस एजेंडे को लोगों तक ले जाने के लिए देश भर में यात्राएँ कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘हम जिस चीज़ में विश्वास रखते हैं वो हमें ज़रूर जिताएगी’। वो चाहते हैं कि ज़ाम्बिया का हर बच्चा पढ़ाई कर सके और भूख से मुक्त होकर रात को सो सके। हर इंसान की यही चाहत होनी चाहिए।
स्नेह-सहित,
विजय।
<मैं हूँ ट्राइकॉन्टिनेंटल>
लौरा कपोत, शोधकर्ता, अर्जेंटीना कार्यालय।
मैं ट्राइकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान, ब्यूनस आयर्स के ऑबज़रवेटरी ऑन द कनजंक्चर इन लैटिन अमेरिका एंड द कैरेबियन (OBSAL) के साथ-साथ ‘द पॉलिटिकल कॉन्टेक्स्ट इन लैटिन अमेरिका एंड द कैरिबियन’ नाम के द्वि-मासिक रिपोर्ट पर भी काम कर रही हूँ। हम लैटिन अमेरिका में प्रमुख राजनीतिक और सामाजिक मामलों पर शोध कर रहे हैं। हाल ही में, मैं एक ऐसे प्रश्न के उत्तर खोजने पर ध्यान केंद्रित कर रही हूँ, जो हम अपने आप से OBSAL में महीनों से पूछ रहे हैं कि ऐसे उपकरण और तंत्र खोजने की तत्काल आवश्यकता है जिससे हम बेहतर तरीक़े से संवाद कर सकतें साथ ही यह भी कि हम अपनी रिपोर्ट के साथ क्या करते हैं और उसकी पहुँच का विस्तार करने के लिए विभिन्न स्वरूपों और भाषाओं के माध्यम से हम ऐसा क्या कर सकते हैं जो पाठ को पाठक तक पहुँचाने में सहयोग करे।