प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
1869 में, पंद्रह साल की उम्र में, होसे मार्ती और उनके युवा दोस्तों ने क्यूबा में ला पैट्रिया लिबरे (‘आज़ाद मातृभूमि’) नामक एक पत्रिका निकाली, जिसमें उन्होंने खुलकर स्पैनिश साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ लिखा। उस पत्रिका के पहले और एकमात्र अंक में मार्ती की कविता ‘अब्दाला’ शामिल थी। यह कविता एक आदमी, अब्दाला के बारे में है, जो अपनी जन्मभूमि, जिसे मार्ती नूबिया कहते हैं, को मुक्त कराने के लिए सभी बाधाओं से लड़ने के लिए उठ खड़ा होता है। मार्ती ने लिखा, ‘साहस की साँस लेने वालों को न प्रशंसा और न ताज की ज़रूरत पड़ती है। बहादुरों, आओ युद्ध के लिए…लड़ें हम’। और अब्दाला के जोशीले संबोधन में ये गीतात्मक शब्द आते हैं:
हमारी आत्माओं की जंगी वीरता को
एक ढाल की तरह, तुम्हारी सेवा करने दो, मेरी मातृभूमि।
मार्ती को गिरफ़्तार कर लिया गया और छ: साल की बामुशक्कत सज़ा सुनाई गई। फिर, स्पैनिश साम्राज्यवादी सरकार ने 1871 में उन्हें निर्वासन में भेज दिया। उन्होंने निर्वासन का अधिकांश समय न्यूयॉर्क में बिताया, और इस दौरान वे देशभक्ति की कविताएँ, राजनीतिक निबंध व टिप्पणियाँ लिखते रहे और स्पैनिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष को व्यवस्थित किया। 1891 में जब वो अपने देश वापिस लौटे, उसके कुछ ही समय बाद उन्हें एक मामूली झड़प में मार दिया गया, लेकिन 1895 में स्पैनिश साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ हुआ युद्ध और 1959 में शुरू हुई क्यूबा की क्रांति उन्हीं की विरासत है।
क्यूबा के नये टीके, अब्दाला, के नाम का रहस्य मार्ती की कविता की पंक्तियाँ, ‘हमारी… जंगी वीरता’ को देश की ‘ढाल(शील्ड)’ की तरह सेवा करने दो, में छिपा हुआ है। क्यूबा में उत्पादित होने वाला यह पाँचवाँ टीका, हवाना में सेंटर फ़ॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (सीआईजीबी) द्वारा विकसित किया गया था। अपने परीक्षणों के परिणामों की घोषणा करते हुए, देश के अग्रणी जैव प्रौद्योगिकी और दवा संस्थान, बायोक्यूबाफ़ार्मा ने उल्लेख किया था कि इसकी प्रभावकारिता दर 92.28% है, जो कि फ़ाइज़र (95%) और मॉडर्ना (94.1%) द्वारा बनाए गए टीकों की प्रभावकारिता दर के लगभग बराबर है। यह टीका दो-दो सप्ताह के अंतराल के साथ तीन डोज़ में दिया जाता है। क्यूबा के अधिकारियों की योजना है कि सितंबर तक तीन चौथाई आबादी का टीकाकरण हो जाए। अभी तक, द्वीप के 110 लाख लोगों को 22.3 लाख टीके लगाए जा चुके हैं। 13.46 लाख लोगों को कम-से-कम टीके का पहला डोज़ लग चुका है, 7,70,390 लोगों को टीके का दूसरा डोज़ लग गया है, और 1,48,738 लोगों को तीनों डोज़ लग चुके हैं।
क्यूबा ने दुनिया भर के देशों को अपने टीके निर्यात करने की योजना बनाई है और अब पाँच अलग-अलग वैक्सीन तैयार किए हैं, जिनमें सोबराना 02 और सुई-रहित नाक के अंदर डाले जाने वाला वैक्सीन, माम्बिसा शामिल हैं। माम्बिसा, जो कि कम संसाधन वाले देशों में वैक्सीन लगाने के लिए वरदान साबित हो सकता है, का नाम स्पेन से स्वतंत्रता हासिल करने के लिए दस साल तक चले युद्ध (1868-1878) के गुरिल्ला सैनिकों के नाम पर रखा गया है।
ये टीके अवैध अमेरिकी नाकाबंदी के अवरोधों के बीच में बनाए गए हैं। 1992 से लगातार संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा ने हर साल, अमेरिकी नाकाबंदी के ख़िलाफ़ मतदान किया है, केवल साल 2020 को छोड़कर जब महामारी के कारण कोई वोट नहीं हुआ था। 23 जून 2021 को संयुक्त राष्ट्र संघ के 184 सदस्य देशों ने फिर से इस नाकेबंदी को समाप्त करने के हक़ में वोट दिया। कोरोनावायरस महामारी के संदर्भ में, क्यूबा के विदेश मंत्री ब्रूनो रोड्रिग्ज़ पैरिला ने कहा, ‘वायरस की तरह, नाकाबंदी दम घोंटू और जानलेवा है। यह ख़त्म होना चाहिए’। नाकाबंदी से होने वाले नुक़सानों में सबसे बड़ा नुक़सान था कि क्यूबा अपने गंभीर रूप से बीमार रोगियों के इलाज के लिए वेंटिलेटर नहीं ख़रीद पाया, क्योंकि जो दो स्विस कंपनियाँ (आईएमटी मेडिकल एजी और एक्यूट्रोनिक) वेंटिलेटर बना रहीं थीं, उन्हें अप्रैल 2020 में एक अमेरिकी कंपनी (व्यायर मेडिकल, इंक.) ने ख़रीद लिया था। पर क्यूबा अब अपने ख़ुद के वेंटिलेटर बना रहा है।
वहीं, क्यूबा सीरिंज की कमी से जूझ रहा है। सिरिंज निर्माता किसी-न-किसी तरह से अमेरिकी दवा उद्योग से जुड़े हुए हैं। टेरमो (जापान) और निप्रो (जापान) का काम संयुक्त राज्य अमेरिका में भी चलता है, जबकि बी. ब्राउन मेल्संगेन एजी (जर्मनी) की कंकॉर्डन्स हेल्थकेयर सोल्यूशंज़ (अमेरिका) के साथ साझेदारी है। एक भारतीय सिरिंज फ़र्म, हिंदुस्तान सीरिंज एंड मेडिकल डिवाइसेस लिमिटेड, एनविगो (अमेरिका) से जुड़ी हुई है, जिसके कारण यह भारतीय कंपनी अमेरिकी सरकार की निगरानी में काम करती है। क्यूबा के साथ अपनी एकजुटता दिखाने के लिए, सीरिंज की ख़रीद के लिए धन जुटाने का एक अभियान चल रहा है।
आवर वर्ल्ड इन डेटा प्रोजेक्ट के अनुसार 29 जून तक, दुनिया के 7.7 अरब लोगों को 3 अरब टीके के डोज़ लगाए जा चुके हैं, यानी 1 अरब से भी कम लोगों को ये टीके लगे हैं। दुनिया की 23% आबादी पहला टीका लगवा चुकी है। लेकिन आँकड़ों से पता चलता है कि टीकाकरण अभियान अनुमानित रूप से असमान रहा है। कम आय वाले देशों में, केवल 0.9% आबादी को टीके की कम-से-कम एक ख़ुराक मिली है। अप्रैल 2021 में डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टेड्रोस एडनॉम घेबरेसस ने कहा था कि, ‘टीकों के वैश्विक वितरण में भयानक असंतुलन बना हुआ है। उच्च आय वाले देशों में औसतन चार में से एक व्यक्ति को टीका लग गया है। कम आय वाले देशों में, यह संख्या 500 से अधिक में से एक है। मैं इसे फिर से दोहराता हूँ: चार में से एक बनाम 500 में से एक’। मई 2021 आते-आते घेबरेसस ने कहना शुरू कर दिया था कि दुनिया ‘वैक्सीन रंगभेद’ की स्थिति में है।
फ़रवरी 2021 में, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के एक न्यूज़लेटर में हमने उल्लेख किया था कि हम ‘तीन रंगभेदों’ के समय में जी रहे हैं। इन रंगभेदों में भोजन, धन और दवा शामिल हैं। दवा/चिकित्सा रंगभेद के केंद्र में है वैक्सीन राष्ट्रवाद, वैक्सीन जमाख़ोरी और, जैसा कि घेबरेसस ने कहा, वैक्सीन रंगभेद है। स्थिति काफ़ी गंभीर है। अमीर देशों और वैक्सीन निर्माताओं के बीच किए जा रहे द्विपक्षीय सौदों और अमीर देशों की ओर से ग़रीब देशों को वित्तीय सहायता न मिलने के कारण टीके कोवैक्स वैक्सीन अलायंस की पहुँच से बाहर जा रहे हैं। तो वहीं इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट का कहना है कि मौजूदा रुझान के अनुसार 2023 से पहले कई देशों में पर्याप्त संख्या में आबादी का टीकाकरण नहीं हो सकेगा।
इन तीन रंगभेदों का कारण क्या है? इनका कारण है, पाँच प्रकार के एकाधिकारों द्वारा संचालित मुट्ठी भर कंपनियों का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण, जैसा कि हमारे स्वर्गीय मित्र समीर अमीन ने बताया था:
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर एकाधिकार
- वित्तीय प्रणालियों पर एकाधिकार
- संसाधनों तक पहुँच पर एकाधिकार
- हथियारों पर एकाधिकार
- संचार पर एकाधिकार
हम इन एकाधिकारों के बीच के संबंधों को समझने की कोशिश कर रहे हैं और यह देखने के लिए इस सूची का विश्लेषण कर रहे हैं कि क्या इसमें कुछ छूट भी गया है। अमीन ने तर्क दिया कि केवल औद्योगीकरण की कमी ही देशों की अधीनता को प्रभावित नहीं करती है; उनका सुझाव था कि ये पाँच एकाधिकार हैं जिनके कारण दुनिया गंभीर असमानता की स्थिति में है। आख़िरकार, दुनिया के कई देशों ने पिछले पचास वर्षों में उद्योग विकसित किए हैं लेकिन अपनी जनता के सामाजिक एजेंडे को आगे बढ़ाने में वे तब भी असमर्थ रहे हैं।
वैक्सीन रंगभेद के केंद्र में इनमें से कम-से-कम दो एकाधिकार हैं: वित्तीय प्रणालियों पर एकाधिकार और विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर एकाधिकार। वित्त की कमी दुनिया के कई देशों को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विभिन्न सार्वजनिक निवेशकों (पेरिस क्लब), या वाणिज्यिक पूँजी (लंदन क्लब) की ओर खींचती है। ये फ़ाइनेंसर आईएमएफ़ की तर्ज़ पर माँग करते हैं कि देश मानव जीवन के महत्वपूर्ण क्षेत्रों -उदाहरण के लिए, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल- में कटौती करें। शिक्षा में कटौती से देशों की पर्याप्त संख्या में वैज्ञानिक विकसित करने की क्षमता व वैक्सीन बनाने जैसी आवश्यक तकनीकों को विकसित करने के लिए आवश्यक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी समाप्त हो जाता है। स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में कटौती और बौद्धिक संपदा नियमों -जो कि प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण को रोकते हैं- को अपनाने से देश महामारी जैसी स्थिति से उचित रूप से निपटने में सक्षम नहीं रहते।
धन की कमी के कारण कई देश अपने लोगों की ज़िंदगियाँ बेहतर करने की ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ने को मजबूर हो रहे हैं (अप्रैल 2020 में, चौंसठ देश स्वास्थ्य देखभाल की तुलना में ऋण चुकाने के लिए अधिक ख़र्च कर रहे थे)। महामारी के बीच देशों को वैक्सीन बनाने की प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने की माँग करना काफ़ी नहीं होगा। प्रौद्योगिकी बीते समय का विज्ञान है; विज्ञान आने वाले समय की प्रौद्योगिकी है।
जनता की सामाजिक संपत्ति का उपयोग कर, विज्ञान पढ़ाना और वैज्ञानिक साक्षरता का एक बुनियादी मानदंड स्थापित करना ही महामारी के बीच एक ज़रूरी सबक़ है। क्यूबा ये सबक़ अच्छी तरह से सीख चुका है। यही कारण है कि क्यूबा ने, सभी बाधाओं के बावजूद, पाँच अलग-अलग टीके विकसित किए हैं। अब्दाला और क्यूबा के चार अन्य टीके कोविड-19 के ख़िलाफ़ ढाल की तरह खड़े हैं। ये टीके समाजवादी क्यूबा की सामाजिक उत्पादकता का परिणाम हैं, जिसने पाँच एकाधिकारों की क्रूरता के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया।
स्नेह-सहित,
विजय।