प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
2019 के बाद से 15 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि के साथ, वैश्विक ऋणग्रस्तता की कुल रक़म अब 277 ट्रिलियन डॉलर हो गई है। यह राशि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 365% के बराबर है। सबसे ग़रीब देशों पर क़र्ज़ का बोझ सबसे अधिक है, जहाँ कोरोनोवायरस की वजह से ऋण अदायगी संभव नहीं है; ज़ाम्बिया इसका सबसे हालिया उदाहरण है। ऋण सेवा भुगतानों को स्थगित करने के लिए प्रायोजित विभिन्न कार्यक्रम –जैसे कि G20 ऋण सेवा निलंबन पहल– या अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की COVID-19 वित्तीय सहायता और ऋण राहत पहल जैसे विभिन्न सहायता कार्यक्रम इस विशाल ऋण को चुका पाने में निश्चित तौर पर देशों की न के बराबर ही मदद कर सकेंगे। जी 20 पैकेज कई निजी और बहुपक्षीय लेनदारों को अपने समझौतों में शामिल करने में विफल रहा है और इसने केवल 1.66% ऋण भुगतान कवर किया है।
ऋण का भार उन देशों के लिए ख़ास तौर पर विनाशकारी है, जिनके पास अपना क़र्ज़ चुकाने की क्षमता ही नहीं है; कोरोनावायरस मंदी ने हालात और ख़राब किए हैं। पिछले महीने यूएनसीटीएडी की स्टेफ़नी ब्लैंकनबर्ग ने ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान से कहा था कि ‘आख़िरकार, सबसे कमज़ोर विकासशील देशों का ऋण रद्द करना अपरिहार्य हो जाएगा, और हर कोई यह जानता है, पर सवाल यह है कि ये किन शर्तों पर होगा‘।
आईएमएफ़ देशों से उधार लेने का आग्रह कर रहा है क्योंकि ब्याज दरें आमतौर पर कम हैं। लेकिन इससे एक और महत्वपूर्ण सवाल उठता है: सरकारें जो पैसा उधार लेंगी उसका उन्हें क्या करना चाहिए? महामारी के विभेदकारी प्रभाव ने हमें दिखाया है कि बड़ी संख्या में सभी ज़रूरी उपकरणों से लैस सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की उपस्थिति के साथ मज़बूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली वाले देश महामारी का संक्रमण चक्र तोड़ने में उन देशों की तुलना में अधिक सक्षम रहे हैं जहाँ सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियाँ नष्ट कर दी गईं हैं। सभी प्रकार के राजनीतिक दलों में इस तथ्य के लिए बड़े पैमाने पर स्वीकृति होने के कारण, ये उपयुक्त होता कि देश ये नया ऋण अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के पुनर्निर्माण में ख़र्च करते। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा।
यह एक स्वागत योग्य ख़बर है कि संभावित वैक्सीन अलग–अलग दवा फ़र्मों और देशों से हैं, जिनमें Pfizer और Moderna के m-RNA वैक्सीन, Gamaleya का Sputnik V और Sinovac का CoronaVac भी शामिल हैं। इन और अन्य संभावित वैक्सीनों की रिपोर्ट सकारात्मक परिणाम दिखा रही है, जिससे उम्मीद है कि हम जल्द ही कोविड-19 के ख़िलाफ़ किसी तरह का वैक्सीन बनाने में कामयाब हो जाएँगे। हालाँकि वैज्ञानिक निजी दवा कंपनियों, जिन्होंने प्रेस बयान तो जारी किए हैं, लेकिन अपने क्लिनिकल परीक्षणों के निष्कर्ष सार्वजनिक नहीं किए, के द्वारा किए गए दावों के प्रति पूर्ण रूप से निश्चिंत नहीं हैं। उनके संदेहों में कई प्रकार के सवाल शामिल हैं: क्या वैक्सीन संक्रमण रोकेगा, या मृत्यु दर को कम करेगा, या वायरस का संचरण रोकेगा, और वैक्सीन कितने समय के लिए काम करेगा?
वैक्सीन बनने की उम्मीद पर ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ का ग्रहण निराशाजनक है। दुनिया की केवल 13% आबादी वाले अमीर देशों ने संभावित वैक्सीन की 340 करोड़ ख़ुराकें पहले से ही बुक कर ली हैं; इसकी तुलना में बाक़ी दुनिया के देशों ने 240 करोड़ ख़ुराकों का ऑर्डर दिया है। सबसे ग़रीब देशों ने, जहाँ दुनिया के 70 करोड़ लोग रहते हैं, वैक्सीन के लिए कोई ऑर्डर नहीं दिए हैं। ये सभी लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन, वैक्सीन एलायंस (जीएवीआई), और कोअलिशन फ़ॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन्स (सीईपीआई) की साझेदारी में बन रहे कोवैक्स वैक्सीन पर निर्भर हैं। कोवैक्स ने लगभग 50 करोड़ ख़ुराक सुरक्षित रखने का समझौता किया है –जिनसे 25 करोड़ लोगों यानी सबसे ग़रीब देशों की लगभग 20% आबादी का टीकाकरण हो सकेगा। इसके विपरीत, संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी कुल आबादी के 230% के बराबर लोगों के टीकाकरण के लिए ज़रूरी ख़ुराक ख़रीदने का समझौता कर चुका है; इसका मतलब है कि अमेरिका निकट समय में उपलब्ध होने वाली वैक्सीन आपूर्ति में से एक चौथाई, यानी 18 करोड़ ख़ुराकों पर अपना क़ब्ज़ा जमाने की स्थिति में होगा।
भारत और दक्षिण अफ़्रीका ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सामने कोविड-19 की रोकथाम और उपचार के संबंध में बौद्धिक संपदा अधिकारों के परित्याग का प्रस्ताव रखा है; इसका मतलब होगा बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार–संबंधित पहलुओं (ट्रिप्स) के समझौते का निलंबन। अधिकांश ग़रीब देश महामारी के दौरान दवाओं और चिकित्सा उत्पादों तक समान और सस्ती पहुँच की माँग कर रहे हैं; डब्ल्यूएचओ ने डब्ल्यूटीओ की ट्रिप्स परिषद में इस माँग का समर्थन किया है। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जापान और ब्राज़ील ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है। उनका तर्क है कि महामारी के दौरान बौद्धिक संपदा अधिकारों पर रोक लगाने से नवाचार (इनोवेशन) पर प्रभाव पड़ेगा। सच्चाई ये है कि कुछ प्रमुख वैक्सीन उत्पादक (पीफ़ाइजर, मर्क, ग्लैक्सोस्मिथक्लीन, और सनोफी) वैक्सीन के उत्पादन पर अपना एकाधिकार रखते हैं, जबकि उनके द्वारा तैयार किए गए वैक्सीन अक्सर सार्वजनिक सब्सिडी का उपयोग करके उत्पादित किए जाते हैं; (उदाहरण के लिए, मॉडर्ना को वैक्सीन बनाने के लिए 24.8 करोड़ डॉलर का सार्वजनिक फ़ंड मिला)। फ़ार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में नवाचार अक्सर सार्वजनिक धन से वित्त पोषित होते हैं, लेकिन उनपर स्वामित्व निजी कम्पनी का होता है।
14 मई को, 140 विश्व नेताओं ने एक प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें माँग की गई थी कि सभी परीक्षण, उपचार और टीके पेटेंट–मुक्त हों और ग़रीब देशों को किसी प्रकार की लागत के बिना टीके निष्पक्ष रूप से वितरित किए जाएँ। चीन सहित कई देशों ने इस दृष्टिकोण का समर्थन किया है। आइडिया ये है कि वैक्सीन का फ़ॉर्मूला किसी सार्वजनिक साइट पर अपलोड कर दिया जाए, और फिर सरकारें अपने–अपने देश की सार्वजनिक क्षेत्र की दवा कंपनियों को वैक्सीन बनाकर उन्हें मुफ़्त या सस्ती क़ीमत पर जनता में वितरित करने का निर्देश दें या फिर निजी क्षेत्र की कंपनियाँ वैक्सीन बनाकर उन्हें सस्ती क़ीमतों पर सभी देशों में निष्पक्ष रूप से वितरित करें। उत्पादन में विविधता लाने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि दुनिया भर में टीकों के परिवहन के लिए डीप–फ्रीज़ कूरियर की क्षमता पर्याप्त नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्र की फ़ार्मास्युटिकल कंपनियों की क्षमता का मुद्दा एक अहम मुद्दा है, क्योंकि हम जानते हैं कि पिछले पाँच दशकों में आईएमएफ़ ने सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण और बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों पर भरोसा करने के लिए देशों को मजबूर किया है। इस प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर करने वाली सरकारों का कहना है कि अब समय आ गया है जब ये ट्रेंड उलट दिया जाए और सार्वजनिक क्षेत्र की दवा कंपनियों का पुनर्निर्माण किया जाए।
जो हालात हैं और जिस तरह से चीज़ें हो रही हैं, उसमें दुनिया की दो–तिहाई आबादी के पास 2022 के अंत से पहले वैक्सीन नहीं पहुँचेगा।
‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ और ‘पीपुल्ज़ वैक्सीन‘ के बीच का संघर्ष उत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी गोलार्ध के बीच ऋण के सवाल और मानव विकास के विस्तृत आयामों के बीच के संघर्ष को दर्शाता है। संसाधनों का इस्तेमाल वायरस का संक्रमण चक्र तोड़ने के लिए टेस्टिंग, ट्रेसिंग, और आइसोलेशन के कामों में किया जाना चाहिए; सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे के निर्माण और आने वाले समय में जो हेल्थ–केयर पेशेवर अरबों लोगों को वैक्सीन का इंजेक्शन लगाएँगे उनको प्रशिक्षित करने के लिए संसाधनों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए; उनका इस्तेमाल क्षेत्रीय स्तर पर दवा उत्पादन के लिए किए जाने की आवश्यकता है; और निश्चित रूप से संसाधनों का इस्तेमाल लोगों को तत्काल राहत देने के कार्यों में किया जाना चाहिए, जैसे इंकम सपोर्ट, खाद्य का प्रावधान और महामारी में बड़ी पितृसत्तात्मक हिंसा के ख़िलाफ़ सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना।
वैक्सीन के बारे में योगेश जैन और प्रबीर पुरकायस्थ जैसे डॉक्टरों और वैज्ञानिकों से बात करते हुए, मुझे फ़िलिस्तीन की 2002 की यात्रा याद आ गई; ये यात्रा महमूद दरवेश ने लेखकों के लिए आयोजित की थी, जिसमें वोले सोयिंका, जोस सरमागो, और ब्रेयटन ब्रेयटनबैक शामिल थे। दरवेश ने सबका अभिवादन करते हुए ‘उम्मीद‘ के बारे में कहा:
हम एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित हैं: इसका नाम है उम्मीद। मुक्ति और स्वतंत्रता की उम्मीद। उम्मीद एक सामान्य जीवन की, जहाँ हम न तो शोषक हों और न ही शोषित। उम्मीद कि हमारे बच्चे सुरक्षित रूप से अपने स्कूलों में जाएँगे। उम्मीद कि एक गर्भवती महिला अस्पताल में एक जीवित बच्चे को जन्म देगी, न कि सेना के किसी चेकप्वाइंट के सामने मृत बच्चे को; उम्मीद कि हमारे कवि ख़ून के बजाय गुलाब में लाल रंग की सुंदरता देखेंगे; उम्मीद कि यह धरती अपने असल नाम से जानी जाएगी: मुहब्बत और अमन–चैन की धरती।
29 नवंबर को फ़िलिस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता का अंतर्राष्ट्रीय दिन है। ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान, मुक्ति के लिए फ़िलिस्तीनियों के संघर्ष के साथ अपने स्नेह और एकजुटता की पुष्टि करता है। हम लिखित तौर पर सभी फ़िलिस्तीनी राजनीतिक क़ैदियों की रिहाई की माँग करते हैं, जिनमें फ़िलिस्तीनी महिला समितियों के संघ की अध्यक्ष, ख़ितम साफ़िन, और पॉप्युलर फ़्रंट फ़ॉर द लिबरेशन ऑफ़ फ़िलिस्तीन की एक नेता, ख़ालिदा जर्रार शामिल हैं। जिन जेलों में इज़रायल फ़िलिस्तीनियों को क़ैद रखता है, वहाँ कोविड-19 का भयानक प्रकोप देखने के मिला है।
फ़िज़ीशियंस फ़ॉर ह्यूमन राइट्स इज़रायल (इज़रायल के मानवाधिकार के लिए प्रतिबद्ध चिकित्सक) ने द लैंसेट में ‘बैटलिंग कोविड-19 इन द ऑक्युपायड पैलेस्टिनियन टेरिटॉरी‘ शीर्षक के साथ एक संक्षिप्त नोट लिखा है। उन्होंने लिखा है कि फ़िलिस्तीन के समर्पित हेल्थ–केयर कार्यकर्ताओं के प्रयासों में ‘फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य प्रणाली के सामने खड़े निराले प्रतिबंध बाधा डालते हैं‘। ये प्रतिबंध हैं: पूर्वी यरुशलम, ग़ाज़ा और वेस्ट बैंक के बीच विभाजन, ‘इज़रायल द्वारा लगाए गए प्रतिबंध‘ और क़ैदियों की तरह रहने को मजबूर फ़िलिस्तीन की पूरी आबादी। वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम के तीस लाख फ़िलिस्तीनियों के लिए वेंटिलेटर सहित केवल 87 इंटेंसिव केयर बेड हैं (ग़ाज़ा के बीस लाख फ़िलिस्तीनियों के लिए इससे भी बहुत कम संख्या में बेड उपलब्ध हैं), जबकि इज़रायल ने फ़िलिस्तीनियों पर पानी और बिजली का संकट लगातार बनाया हुआ है।
हालात बहुत बुरे हैं। संघर्ष और उम्मीद ही सहारा है।
स्नेह–सहित,
विजय।