प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
बुलेटिन ऑफ़ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स ने अब क़यामत की घड़ी को खिसकाकर 90 सेकंड से आधी रात के बीच कर दिया है, यह 1947 के बाद से मानवता और पृथ्वी के विनाश के प्रतीकात्मक समय के सबसे क़रीब है। यह चिंताजनक स्थिति है। यही वजह है कि दक्षिणी गोलार्ध के नेता यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध को रोकने और चीन के ख़िलाफ़ नफ़रत तथा युद्धोन्माद को रोकने की बात कर रहे हैं। जैसा कि नामीबिया के प्रधान मंत्री सारा कुगोंगेलवा–अमधिला ने कहा, ‘हम उस संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा दे रहे हैं ताकि पूरी दुनिया और दुनिया के सभी संसाधनों का उपयोग दुनिया भर के लोगों की स्थिति में सुधार करने के लिए किया जा सके न कि हथियार ख़रीदने, लोगों को मारने और लोगों के बीच शत्रुता पैदा करने के लिए‘।
क़यामत के दिन की चेतावनी और कुगोंगेलवा–अमाधिला जैसे लोगों के विचारों के अनुरूप, इस न्यूज़लेटर के बाक़ी हिस्से में साम्राज्यवादी ‘नियम–आधारित व्यवस्था‘ के आठ विरोधाभास नामक एक नये पाठ को शामिल किया गया है (जिसे आप यहाँ पीडीएफ़ के रूप में डाउनलोड कर सकते हैं)। क्यारेत्वी ओपोकू (घाना के समाजवादी आंदोलन के संयोजक), मैनुअल बर्टोल्डी (पैट्रिया ग्रांडे/फेडेरासिओं रूरल पैरा ला प्रोड्यूसिओं वाई एल एराइगो), डेबी वेनेज़ियाले (वरिष्ठ फ़ेलो, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान) और मैंने सामूहिक रूप से इसका प्रारूप तैयार किया है, इस क्रम में हमने दुनिया भर के वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं और बुद्धिजीवियों के विचारों को शामिल किया है। हम यह पाठ इसलिए प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि इसपर संवाद और बहस हो। हम आशा करते हैं कि आप इसे पढ़ेंगे, दूसरे लोगों से भी इसे साझा करेंगे और चर्चा करेंगे।
अब हम गुणात्मक रूप से विश्व इतिहास के नये चरण में प्रवेश कर रहे हैं। 2008 के महान वित्तीय संकट के बाद के वर्षों में महत्वपूर्ण वैश्विक परिवर्तन हुए हैं। इसे साम्राज्यवाद के एक नये चरण के रूप में देखा जा सकता और जिसे इन आठ विरोधाभासों के माध्यम से बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।
1.मरणासन्न साम्राज्यवाद और चीन के नेतृत्व में उभरते हुए सफल समाजवाद के बीच का विरोधाभास।
चीन की विशेष परिस्थितियों में निर्मित समाजवाद के शांतिपूर्ण उदय के कारण यह अंतर्विरोध तेज़ हो गया है। 500 वर्षों में पहली बार, अटलांटिक साम्राज्यवादी शक्तियों का सामना एक बड़ी, ग़ैर–श्वेत आर्थिक शक्ति से हो रहा है जो उनका मुक़ाबला कर सकती है। यह 2013 में स्पष्ट हो गया जब क्रय शक्ति समानता (पीपीपी) में चीन की जीडीपी संयुक्त राज्य अमेरिका से आगे निकल गई। चीन ने पश्चिम की तुलना में बहुत कम समय में इस लक्ष्य को पूरा किया है, जबकि चीन की आबादी काफ़ी अधिक है, और ऐसा करने के लिए न तो उसने कोई उपनिवेश बनाया, न किसी को ग़ुलाम बनाया या न ही किसी पर सैन्य आक्रमण किया। जिस समय चीन शांतिपूर्ण संबंधों की वकालत कर रहा है, ठीक उसी समय अमेरिका तेज़ी से युद्ध की ओर बढ़ रहा है।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अमेरिका ने साम्राज्यवादी खेमे का नेतृत्व किया है। जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल के सत्ता से हटने के बाद और यूक्रेन सैन्य अभियान शुरू होने के साथ, अमेरिका ने रणनीतिक रूप से यूरोपीय और जापानी बुर्जुआ वर्ग के प्रमुख समूहों को अपने अधीन कर लिया। इसके परिणामस्वरूप साम्राज्यवादी शक्तियों के भीतर का विरोधाभास कम हुआ है। अमेरिका ने पहले अनुमति दी और फिर माँग की कि जापान (दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था) और जर्मनी (चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था) – द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दो फ़ासीवादी शक्तियाँ – अपने सैन्य ख़र्च में बहुत अधिक वृद्धि करें। इसका परिणाम यह हुआ कि रूस के साथ यूरोप के आर्थिक संबंधों का अंत हो गया, जिससे यूरोपीय अर्थव्यवस्था को नुक़सान हुआ और अमेरिका को आर्थिक और राजनीतिक लाभ मिला। यूरोप के अधिकांश राजनीतिक अभिजात वर्ग द्वारा पूरी तरह से अमेरिकी अधीनता स्वीकार कर लेने के बावजूद जर्मन पूँजी के कुछ बड़े वर्ग अपने अमेरिकी समकक्षों की तुलना में चीन के साथ व्यापार पर बहुत अधिक निर्भर हैं। हालाँकि, अमेरिका अब यूरोप पर दबाव बना रहा है कि वह चीन से अपने संबंधों को सीमित करे।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन और समाजवादी शिविर अब एक और नये तथा ख़तरनाक समूह का सामना कर रहा है वह है ट्रायड (संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और जापान की एकीकृत शक्ति)। अमेरिका का बढ़ता आंतरिक सामाजिक क्षय उसकी विदेश नीति को नहीं ढक सकता जिस बात पर राजनीतिक अभिजात वर्ग लगभग पूरी तरह एकजुट है। हम देख रहे हैं कि बुर्जुआ वर्ग अपने अल्पकालिक आर्थिक हितों के ऊपर अपने राजनीतिक और सैन्य हितों को तरजीह दे रहा है।
विश्व अर्थव्यवस्था का केंद्र बदल रहा है, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जिसकी गणना क्रय शक्ति समानता (पीपीपी) में की गई है) में रूस और (चीन सहित) दक्षिण गोलार्ध के देशों की हिस्सेदारी 65% है। 1950 से अब तक, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (पीपीपी में) में अमेरिका का हिस्सा 27% से गिरकर 15% रह गया है। अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में भी पाँच दशकों से अधिक समय से गिरावट आ रही है और अब यह प्रति वर्ष लगभग 2% के दर से गिर रही है। इसका कोई बड़ा नया बाज़ार नहीं है जिसमें विस्तार किया जा सके। पश्चिमी देश पूँजीवाद के सामने उपस्थित सामान्य संकट के साथ–साथ लाभ की दर में गिरावट की दीर्घकालिक प्रवृत्ति के परिणामों से पीड़ित है।
2. G7 के साम्राज्यवादी देशों के सिमटते शासक वर्गों और दक्षिणी गोलार्ध के पूँजीवादी देशों के राजनीतिक तथा आर्थिक अभिजात वर्ग के बीच का विरोधाभास।
1990 के दशक के सुनहरे दिनों के बाद के वर्षों में इस संबंध में व्यापक बदलाव आया है जब अमेरिका दुनिया का एकमात्र सुपरपावर था और उसका अहंकार अपने चरम पर था। G7 और दक्षिणी गोलार्ध के देशों की अभिजात शक्तियों के बीच पहले जिस तरह का गठबंधन था उसमें अब दरार आ गई है। भारत के सबसे बड़े अरबपतियों, मुकेश अंबानी और गौतम अडानी, को रूस से तेल और कोयला चाहिए। मोदी के नेतृत्व वाली धुर दक्षिणपंथी सरकार भारत के एकाधिकार पूँजीपति वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए, भारतीय विदेश मंत्री अब वित्त, प्रतिबंधों और अन्य क्षेत्रों में अमेरिकी आधिपत्य के ख़िलाफ़ कभी–कभार ही बयान देते हैं। पश्चिम के पास अब वैसी आर्थिक और राजनीतिक क्षमता नहीं है कि वह भारत, सऊदी अरब और तुर्की के शक्तिशाली अभिजात वर्ग को वे चीज़ें दे सके जिसकी उसे ज़रूरत है। हालाँकि, यह विरोधाभास उतना अधिक गहरा नहीं हुआ है कि यह अन्य विरोधाभासों का केंद्र बिंदु बन से, जैसे; समाजवादी चीन और अमेरिका के नेतृत्व वाले G7 ब्लॉक के बीच का विरोधाभास।
3. दक्षिणी गोलार्ध के देशों तथा अमेरिका के नेतृत्व वाली साम्राज्यवादी शक्तिशाली अभिजात वर्ग के व्यापक शहरी और ग्रामीण श्रमिक वर्ग तथा निम्न वर्ग के पेटी बुर्जुआ वर्ग (सामूहिक रूप से जिन्हें लोकप्रिय वर्गों के रूप में जाना जाता है) के बीच का विरोधाभास।
यह विरोधाभास धीरे–धीरे तीखा होता जा रहा है। पश्चिमी देशों को इस बात का विशेष लाभ मिलता है कि वह दक्षिणी गोलार्ध के देशों में सभी वर्गों के बीच अपने व्यापक सॉफ़्ट पावर का इस्तेमाल करता है। फिर भी, कई दशकों में पहली बार, पश्चिम अफ़्रीका में माली और बुर्किना फासो से फ़्रांसीसी सैनिकों के निष्कासन के समर्थन में युवा अफ़्रीकी सामने आए हैं। पहली बार, कोलम्बिया में लोकप्रिय वर्ग एक नयी सरकार का चुनाव करने में सफल हो पाया है जिसने अमेरिकी सेना और ख़ुफ़िया बलों के इस दावे को ख़ारिज कर दिया है कि कोलम्बिया उनके लिए एक जागीर से अधिक कुछ नहीं है। श्रमिक वर्ग की महिलाएँ बड़े पैमाने पर मज़दूर वर्ग और समाज दोनों की कई महत्वपूर्ण लड़ाइयों में सबसे आगे हैं। पूँजीवाद के पर्यावरणीय अपराधों के ख़िलाफ़ युवा उठ रहे हैं। श्रमिक वर्ग की बढ़ती आबादी इस बात को पहचान रही है कि उनका संघर्ष साम्राज्यवाद विरोधी है जो शांति, विकास और न्याय के लिए है। वे अब अमेरिकी ‘मानवाधिकार‘ विचारधारा के झूठ, पश्चिम की ऊर्जा और खनन कंपनियों द्वारा पर्यावरण के विनाश, और अमेरिकी हाइब्रिड युद्ध द्वारा की जाने वाली हिंसा और प्रतिबंधों के बारे में समझ पा रहे हैं।
4. किराया की वसूली पर निर्भर उन्नत वित्तीय पूँजी तथा लोकप्रिय वर्गों की ज़रूरतों के बीच का विरोधाभास, जिनमें ग़ैर–समाजवादी देशों में पूँजीपतियों के कुछ ऐसे समूह भी शामिल हैं जो इस बात को मानते हैं कि उद्योग में निवेश, पर्यावरण हितैषी सतत कृषि, रोज़गार, और विकास में निवेश समाज के लिए आवश्यक है।
यह विरोधाभास इसलिए उत्पन्न हुआ है क्योंकि लाभ के दर में गिरावट आई है और पूँजी श्रमिक वर्ग का उस हद तक शोषण नहीं कर पा रही है जिससे वह और अधिक धन इकट्ठा करे और उस धन को निवेश करके ख़ुद को प्रतिस्पर्धी बनाए रख सके। समाजवादी खेमे के बाहर, लगभग सभी उन्नत पूँजीवादी देशों में और दक्षिणी गोलार्ध के अधिकांश देशों में – कुछ अपवादों को छोड़कर, विशेष रूप से एशिया में – निवेश का संकट है। नये प्रकार के फ़र्मों का उदय हुआ है जिनमें ब्रिजवाटर एसोसिएट्स जैसे हेज फ़ंड और ब्लैकरॉक जैसी निजी इक्विटी फ़र्म शामिल हैं। ‘निजी बाज़ारों‘ ने 2022 में 9.8 ट्रिलियन डॉलर मूल्य की संपत्ति को नियंत्रित किया। अब ‘बाज़ार‘ मूल्य के हिसाब से डेरिवेटिव, काल्पनिक और सट्टा पूँजी का एक रूप, की हिस्सेदारी 18.3 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है, लेकिन उसका काल्पनिक मूल्य 632 ट्रिलियन डॉलर है – मूल्य से पाँच गुना अधिक जो दुनिया की कुल वास्तविक जीडीपी से भी अधिक है।
सूचना प्रौद्योगिकी–आधारित नेटवर्क को प्रभावित करने वाली एकाधिकारवादी कम्पनियों का एक नया वर्ग उभरा है, जिसमें Google, Facebook/Meta, और Amazon शामिल हैं – सभी पूरी तरह से अमेरिकी नियंत्रण वाली कम्पनियाँ – जो बिज़नस के रूप में किराए की वसूली करता है। डिजिटल दुनिया पर पूरी तरह से एकाधिकार रखने वाली ये कम्पनियाँ अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों की प्रत्यक्ष देखरेख में काम करती हैं, और कुछ समाजवादी था राष्ट्रवादी देशों को छोड़कर, पूरी दुनिया के सूचना तंत्र को नियंत्रित करती हैं। ये कम्पनियाँ पिछले 20 वर्षों में अमेरिकी सॉफ़्ट पावर के तेज़ी से विस्तार का आधार हैं। सैन्य–औद्योगिक गठजोड़ और मौत के व्यापारी, अपनी ओर निवेश को आकर्षित करते हैं।
पूँजी का यह सघन सट्टा और किराए पर पलने वाले एकाधिकारवादी पूँजी का यह चरण आवश्यक सामाजिक निवेशों के ख़िलाफ़ पूँजी के हमले को और तेज़ कर रहा है। दक्षिण अफ़्रीका और ब्राज़ील ने नवउदारवाद के तहत औद्योगीकरण की दिशा में की जाने वाली भारी कमी को देखा है। उन्नत साम्राज्यवादी देशों ने भी बिजली ग्रिड, पुलों और रेलवे जैसे अपने स्वयं के बुनियादी ढाँचे की उपेक्षा की है। वैश्विक अभिजात वर्ग ने कर दरों और करों में भारी कटौती के साथ–साथ व्यक्तिगत पूँजीपतियों और उनके निगमों दोनों के लिए अधिशेष मूल्य के अपने हिस्से को बढ़ाने के लिए क़ानूनी तौर पर टैक्स हेवन में अपने धन को छुपाया है।
पूँजी द्वारा कर चोरी और सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े निगमों के निजीकरण ने अरबों लोगों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और परिवहन जैसी बुनियादी सार्वजनिक वस्तुओं की उपलब्धता को कम कर दिया है। इससे पश्चिमी पूँजी की क्षमता में वृद्धि हुई है जिससे कि वह (पश्चिम द्वारा) ‘निर्मित‘ ऋण संकट का लाभ उठाते हुए ब्याज दरों में हेरफेर करके दक्षिणी गोलार्ध के देशों से अधिक ऋण वसूली कर सके। ऊपरी स्तर पर जॉर्ज सोरोस जैसे हेज फ़ंड मुनाफ़ाख़ोर सट्टा लगाते हैं और सभी देशों के वित्त को नष्ट कर देते हैं।
श्रमिक वर्ग पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ा है, क्योंकि उनको मिलने वाले काम का स्वरूप अनिश्चित हो गया है और स्थायी बेरोज़गारी दुनिया के युवाओं के बड़े हिस्से को नष्ट कर रही है। पूँजीवाद के तहत जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा बेकार हो गया है। सामाजिक असमानता, दुख और हताशा में भारी वृद्धि हुई है।
5. दक्षिणी गोलार्ध के देशों के लोकप्रिय वर्गों और उनके घरेलू अभिजात वर्ग के बीच का विरोधाभास, जो राजनीतिक और आर्थिक रूप से शक्तिशाली हैं।
अलग–अलग देश और क्षेत्र में यह अलग–अलग रूप में प्रकट होता है। समाजवादी और प्रगतिशील देशों में लोगों के बीच के अंतर्विरोधों को शांतिपूर्ण और विविध तरीक़े से हल किया जाता है। हालाँकि, दक्षिणी गोलार्ध के कई देशों में जहाँ पूँजीवादी अभिजात वर्ग का पूरी तरह से पश्चिमी पूँजी के साथ गठजोड़ है, वहाँ कुछ लोगों की तिजोरियों में ही देश का सारा पैसा जमा होता है। सबसे ग़रीब लोगों की हालत बेहद ख़राब है, और पूँजीवादी विकास मॉडल बहुसंख्यकों के हितों की पूर्ति करने में विफल हो रहा है। नवउपनिवेशवाद और पश्चिमी सॉफ़्ट पावर के इतिहास के कारण दक्षिणी गोलार्ध के अधिकांश बड़े देशों में निश्चित रूप से मध्यवर्ग के बीच पश्चिम–समर्थक भावना है। स्थानीय बुर्जुआ वर्ग के इस वर्ग आधिपत्य और निम्न बुर्जुआ वर्ग के ऊपरी तबक़े का इस्तेमाल करके लोकप्रिय वर्गों (जो देश की बहुसंख्यक आबादी है) को सत्ता और प्रभाव तक पहुँचने से रोका जाता है।
6. अमेरिका के नेतृत्व वाले साम्राज्यवाद तथा राष्ट्रीय संप्रभुता का पुरज़ोर बचाव करने वाले देशों के बीच का विरोधाभास।
इन राष्ट्रों की चार मुख्य श्रेणियाँ हैं: समाजवादी देश, प्रगतिशील देश, अमेरिकी नियंत्रण को अस्वीकार करने वाले अन्य देश और रूस का विशेष मामला। अमेरिका ने हत्याओं, आक्रमणों, नाटो के नेतृत्व वाली सैन्य आक्रामकता, प्रतिबंधों, क़ानून, व्यापार युद्ध और झूठ पर आधारित लगातार प्रचार युद्ध जैसे संकर युद्ध–विधियों के माध्यम से इस विरोधाभास को उत्पन्न किया है। रूस एक विशेष श्रेणी में आता है, क्योंकि जब वह एक समाजवादी देश था, तब उसे यूरोपीय फ़ासीवादी आक्रमणकारियों के हाथों 25 मिलियन से अधिक मौतें झेलनी पड़ीं। आज, रूस – जिसके पास विशेष रूप से अपार प्राकृतिक संसाधन हैं – एक बार फिर नाटो के निशाने पर है और उसको तबाह करने की कोशिश की जा रही है। रूस के समाजवादी अतीत के कुछ तत्व अभी भी देश में मौजूद हैं, और वहाँ की जनता के मन में अब भी अपने देश के लिए काफ़ी देशभक्ति है। अमेरिका का लक्ष्य 1992 में शुरू किए गए काम को ख़त्म करना है: कम से कम, रूस की परमाणु सैन्य क्षमता को स्थायी रूप से नष्ट करना और मॉस्को में एक कठपुतली शासन स्थापित करना ताकि आने वाले समय में रूस के टुकड़े किए जा सकें और इसे कई छोटे, स्थायी रूप से कमज़ोर जागीरों में बदल दिया जाए जो कि पश्चिम के नियंत्रण में हों।
7. उत्तरी गोलार्ध के देशों में लाखों बहिष्कृत श्रमिक वर्ग के ग़रीबों तथा इन देशों पर हावी पूँजीपतियों के बीच का विरोधाभास।
ये श्रमिक अपनी आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों के विरुद्ध विद्रोह के कुछ लक्षण दिखा रहे हैं। हालाँकि, साम्राज्यवादी पूँजीपति इन देशों में मेहनतकश लोगों की एक बड़ी एकता को रोकने के लिए श्वेत वर्चस्ववादी कार्ड खेल रहे हैं। इस समय, कार्यकर्ता लगातार ख़ुद को नस्लवादी युद्ध प्रचार का शिकार होने से नहीं बच पा रहे हैं। पिछले तीस वर्षों में साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होने वाले लोगों की संख्या तेज़ी से कम हुई है।
8. पश्चिमी पूँजीवाद तथा ग्रह और मानव जीवन के बीच का विरोधाभास।
इस विरोधाभास का स्वरूप कुछ इस प्रकार का है कि एक ओर पश्चिमी पूँजीवाद ग्रह तथा मानव जीवन को नष्ट करना चाहता है, परमाणु विनाश की धमकी देता है, और मानवता के लिए आवश्यक चीज़ों के ख़िलाफ़ काम करता है तथा वहीं दूसरी ओर सामूहिक रूप से ग्रह की हवा, पानी और भूमि को फिर से बहाल करने और संयुक्त राज्य अमेरिका के परमाणु सैन्य पागलपन को रोकने के लिए भी कोशिशें हो रही हैं। पूँजीवाद योजना और शांति को ख़ारिज करता है। (चीन सहित) दक्षिणी गोलार्ध के देश ‘शांति के क्षेत्र‘ के निर्माण और विस्तार में दुनिया की मदद कर सकते हैं ताकि प्रकृति के साथ सद्भाव के साथ रहा जा सके।
राजनीतिक परिदृश्य में इन परिवर्तनों के साथ, हम अमेरिका के प्रभुत्व वाली साम्राज्यवादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ एक अनौपचारिक मोर्चे के उदय को देख रहे हैं। यह मोर्चा निम्नलिखित धारणाओं के अनुरूप निर्मित किया गया है:
● लोकप्रिय भावना है कि यह हिंसक व्यवस्था दुनिया के लोगों की मुख्य दुश्मन है।
● अधिक न्यायसंगत, शांतिपूर्ण और समतावादी दुनिया के लिए लोकप्रिय इच्छाएँ।
● समाजवादी या राष्ट्रवादी सरकारों और उनकी संप्रभुता के लिए राजनीतिक ताक़तों का संघर्ष।
● अन्य दक्षिणी गोलार्ध के देशों की इस प्रणाली पर निर्भरता कम करने की इच्छा।
अमरीकी प्रभुत्व वाली साम्राज्यवादी व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष करने वाली मुख्य ताक़तें दुनिया के लोग और समाजवादी व राष्ट्रवादी सरकारें हैं। हालाँकि, साम्राज्यवादी व्यवस्था पर अपनी निर्भरता कम करने की इच्छा रखने वाली सरकारों को एकीकृत करने के लिए कोशिशें की जानी चाहिए।
यह दुनिया वर्तमान समय में एक नये युग की शुरुआत देख रही है जिसमें हम अमेरिकी वैश्विक साम्राज्य के अंत का गवाह बनेंगे। अनेक आंतरिक अंतर्विरोधों, ऐतिहासिक अन्यायों और आर्थिक अव्यवहार्यता के बोझ तले नवउदारवादी व्यवस्था बिगड़ती जा रही है। एक बेहतर विकल्प के बिना, दुनिया और भी अधिक अराजकता में डूब जाएगी। हमारे आंदोलनों ने इस उम्मीद को जगाया है कि इस सामाजिक पीड़ा के अलावा कुछ और भी संभव है।
हम आशा करते हैं कि साम्राज्यवादी ‘नियम–आधारित व्यवस्था‘ के आठ विरोधाभास बहस और चर्चा को प्रोत्साहित करेंगे और ज़हरीले सामाजिक दर्शन के ख़िलाफ़ विचारों की हमारी व्यापक लड़ाई में हमारी सहायता करेंगे जो हमारी दुनिया के बारे में तर्कसंगत सोच का दम घोंटने की कोशिश करते हैं।
स्नेह–सहित
विजय।