प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार –और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की फ़ौजें– बीस साल बाद अफ़ग़ानिस्तान से वापस जा रही हैं। उन्होंने कहा था कि वो दो काम करने के लिए आए थे: 11 सितंबर 2001 को संयुक्त राज्य अमेरिका पर हमला करने वाले अल–क़ायदा और उसके आधार तालिबान को नष्ट करने के लिए। अनगिनत ज़िंदगियाँ बर्बाद कर और अफ़ग़ानी समाज को अधिक बर्बरता की ओर धकेल कर अब हारा हुआ अमेरिका वहाँ से जा रहा है –जैसे 1975 में वह वियतनाम से गया था: अल–क़ायदा दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पुनर्गठित हो रहा है, और तालिबान देश की राजधानी काबुल में वापसी करने के लिए तैयार है।
अफ़ग़ानिस्तान की संसद के अध्यक्ष मीर रहमान रहमानी ने चेतावनी दी है कि देश 1992 से 2001 तक चले भयानक गृहयुद्ध की तरह फिर से गृहयुद्ध के एक नये दौर में प्रवेश करने वाला है। संयुक्त राष्ट्र संघ की गणना के हिसाब से 2021 की पहली तिमाही में, पिछले साल की तुलना में, नागरिक हताहतों की संख्या में 29% बढ़ौतरी हुई है, जबकि महिला हताहतों की संख्या 37% बढ़ी है। यह स्पष्ट नहीं है कि तालिबान, राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी की सरकार, तुर्क्स, क़तरीज़, संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के बीच आगे बातचीत होगी या नहीं। अफ़ग़ानिस्तान हिंसा की कगार पर बैठा है, जिसके प्रभाव को कवि ज़ारलात हाफ़िज़ के शब्दों में वर्णित किया जा सकता है:
दुःख और संताप, ये स्याह शामें,
आँसुओं से भरी आँखें और शोक से भरे हुए दिन,
ये जले हुए दिल, नौजवानों की हत्याएँ
ये अधूरी उम्मीदें और अधूरे सपने दुल्हनों के
अफ़ग़ान महिलाओं की ‘सुरक्षा‘, मानवाधिकारों का विस्तार: ये शब्द दो दशकों बाद अब अपने मायने खो चुके हैं। जैसा कि एडुआर्डो गैलेनियो कहते है, ‘जब भी अमेरिका किसी देश को ‘बचाता‘ है, तो वह उसे पागलख़ाने या क़ब्रिस्तान में बदल देता है।.
अमेरिकी सरकार के अनुसार यह युद्ध, जिसे अब बीस साल होने वाले हैं, आधुनिक काल में लड़ा गया सबसे लंबा अमेरिकी युद्ध है (वियतनाम में अमेरिकी युद्ध चौदह वर्षों 1961-1975 तक चला था)। लेकिन, अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राज्य सरकार द्वारा चलाया गया ये युद्ध सबसे लंबा अमेरिकी युद्ध नहीं है। अमेरिका के दो युद्ध लगातार जारी हैं: अगस्त 1950 से डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया –डीपीआरके– के ख़िलाफ़ युद्ध और सितंबर 1959 से क्यूबा के ख़िलाफ़ युद्ध। इन दोनों में से कोई भी युद्ध अभी ख़त्म नहीं हुआ है; अमेरिका ने डीपीआरके और क्यूबा दोनों के ख़िलाफ़ हाइब्रिड युद्ध जारी रखा है। हाइब्रिड युद्ध के लिए संपूर्ण शस्त्रागार से लैस सेना की हमेशा ज़रूरत नहीं होती; यह युद्ध सूचना और वित्तीय प्रवाह के नियंत्रण के साथ–साथ आर्थिक प्रतिबंधों और समाज को नुक़सान पहुँचाने के अवैध तरीक़ों के माध्यम से लड़ा जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सबसे लंबे और अब भी जारी अमेरिकी युद्ध कोरिया और क्यूबा के ख़िलाफ़ हुए हैं।
साठ साल पहले, 17 अप्रैल 1961 को सीआईए की ब्रिगेड 2506 क्यूबा के प्लाया गिरोन में उतरी। क्यूबा के लोगों ने इस आक्रमण का विरोध किया, जैसे कि वे अपनी संप्रभु क्रांतिकारी प्रक्रियाओं के ख़िलाफ़ हाइब्रिड युद्ध के हमलों का पिछले छः दशकों से विरोध कर रहे हैं। क्यूबा ने संयुक्त राज्य अमेरिका को कभी भी धमकाया नहीं है; न ही क्यूबा ने कभी संयुक्त राष्ट्र संघ के 1945 चार्टर का उल्लंघन किया है। दूसरी ओर, संयुक्त राज्य अमेरिका लगातार क्यूबा के लोगों के लिए डर का सबब बना रहा है। अक्टूबर 1962 में, जब सोवियत संघ ने क्यूबा की रक्षा के लिए मिसाइल कवर भेजा, तो अमेरिका के ज्वाइंट चीफ़्स ऑफ़ स्टाफ़ के प्रमुख जनरल मैक्सवेल टेलर ने फ़ुल–स्केल आक्रमण की योजना बनाई थी। एक गुप्त ज्ञापन में, जो अब सार्वजनिक है, टेलर ने लिखा था कि इस तरह के सैन्य उपक्रम का परिणाम यह हो सकता है कि अपनी ज़मीन और अपनी राजनीतिक परियोजना की रक्षा के लिए क्यूबा के लोगों के दृढ़ संकल्प के कारण अमेरिका की तरफ़ के 18,500 लोग हताहत हो जाएँ। उनकी परियोजना थी कि मियामी में शरण ले चुके क्यूबा के पुराने कुलीनतंत्र को फिर से सत्ता में स्थापित कर क्यूबा को गैंगस्टरों के स्वर्ग में वापस बदल दिया जाए।
क्यूबा सरकार द्वारा नवम्बर 1975 में अंगोला के राष्ट्रीय मुक्ति परियोजना में मदद के लिए अपने सैनिक भेजे जाने के बाद, अमेरिकी के तात्कालीन विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने अपनी टीम से 24 मार्च 1976 को कहा कि, ‘अगर हम सैन्य शक्ति का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो यह अनिवार्य रूप से सफल होना चाहिए। आधे अधूरे क़दम नहीं उठाए जाने चाहिए– हमें सैन्य शक्ति को कम इस्तेमाल करने के लिए कोई पुरस्कार नहीं मिलेगा। यदि हम नाकाबंदी करने का फ़ैसला कर रहे हैं, तो यह क्रूर, तीव्र और कुशल होनी चाहिए‘। अमेरिका ने हवाना के बंदरगाह और क्यूबा के शहरों को तबाह करने की योजना बनाई थी। ‘मुझे लगता है हम कास्त्रो को नष्ट कर देंगे‘, किसिंजर ने अमेरिका के राष्ट्रपति गेराल्ड फ़ोर्ड से कहा था। फ़ोर्ड का जवाब था, ‘आई अग्री‘। 1961 से लेकर आज तक अमेरिकी सरकार का यही रवैया रहा है।
जनवरी 2021 में अपना पद छोड़ने से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने क्यूबा का नाम अमेरिकी सरकार की ‘आतंकवाद के राज्य प्रायोजकों‘ की सूची में डाल दिया था। पचहत्तर अमेरिकी सांसद उनके बाद राष्ट्रपति बने जो बाइडेन से इस निर्णय को पलटने के लिए कह चुके हैं। 16 अप्रैल को, बाइडेन के प्रेस सचिव जेन साकी ने ब्रीफ़िंग रूम को बताया कि, ‘क्यूबा नीति में बदलाव करना या इससे जुड़े हुए क़दम उठाना वर्तमान में राष्ट्रपति की शीर्ष विदेश नीति प्राथमिकताओं में नहीं हैं’। इसका मतलब है कि बाइडेन ने चुपचाप फ़्लोरिडा के रिपब्लिकन सीनेटर मार्को रुबियो और रिक स्कॉट और टेक्सास के सीनेटर टेड क्रूज़ (व साथ ही न्यू जर्सी के डेमोक्रेटिक सीनेटर रॉबर्ट लेन्डेज़) द्वारा तय की गई ट्रम्प की नीति के साथ खड़े रहने का फ़ैसला किया है। बाइडेन ने छह दशक से क्यूबा के लोगों का दम घोंटने वाली इस क्रूर नीति को जारी रखने का फ़ैसला किया है।
1959 की क्यूबा क्रांति के ठीक बाद ही, अमेरिकी सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह फ़्लोरिडा के तट से केवल 145 किलोमीटर की दूरी पर एक संप्रभु क्यूबा को बर्दाश्त नहीं करेगा। जनता को मुनाफ़े के ऊपर रखने की क्यूबा की प्रतिबद्धता संयुक्त राज्य अमेरिका के पाखंडों की सबसे बड़ी आलोचना है। इस महामारी के दौरान ये एक बार फिर से स्पष्ट हो गया है, जब संक्रमण और मृत्यु के प्रति लाख आँकड़े अमेरिका में क्यूबा से कई गुना ज़्यादा हैं (हाल के आँकड़ों के अनुसार अमेरिका में प्रति दस लाख पे 1724 मौतें दर्ज हुईं हैं, जबकि क्यूबा में प्रति दस लाख पे 4.7 मौतें हुईं हैं)। और ये तब है जब अमेरिका अपनी आबादी की ज़रूरत से कई गुना ज़्यादा वैक्सीन अपने लिए सुरक्षित कर वैक्सीन राष्ट्रवाद फैला रहा है, और क्यूबा के डॉक्टरों की हेनरी रीव ब्रिगेड दुनिया के सबसे ग़रीब लोगों के बीच काम कर रही है (इसके लिए, निश्चित रूप से उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए)।
क्यूबा पर सफल आक्रमण करने में असमर्थ अमेरिका ने इस द्वीप की नाकाबंदी जारी रखी है। सोवियत संघ, जो कि क्यूबा की इस नाकाबंदी को नाकाम करने में मदद करता था, के पतन के बाद अमेरिका ने क्यूबा पर अपनी पकड़ मज़बूत करने का प्रयास किया। अमेरिकी सांसदों ने क्यूबा के लोकतंत्र अधिनियम (1992) और क्यूबा लिबर्टी एंड डेमोक्रेटिक सॉलिडेरिटी एक्ट (1996) के माध्यम से क्यूबा की अर्थव्यवस्था पर हमला किया। 1992 से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इस नाकाबंदी को समाप्त किए जाने के पक्ष में भारी मतदान किया है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के विशेष रैपर्टियर्स के एक समूह ने एक बयान में अमेरिका को इन उपायों –जिनसे क्यूबा के महामारी से लड़ने के प्रयासों को कठिन ही बनाया है– से पीछे हटने का आह्वान किया है।
क्यूबा सरकार ने बताया कि अप्रैल 2019 से मार्च 2020 के बीच, नाकाबंदी के कारण क्यूबा को संभावित व्यापार में 5 बिलियन डॉलर का नुक़सान हुआ है; पिछले लगभग छह दशकों में उन्हें 144 बिलियन डॉलर के बराबर नुक़सान हुआ है। अब अमेरिकी सरकार ने क्यूबा तक तेल लाने वाली शिपिंग कंपनियों पर प्रतिबंध और कड़े कर दिए हैं। यूएस सदर्न कमांड के प्रमुख एडमिरल क्रेग फॉलर ने चिकित्सा क्षेत्र में क्यूबा के अंतर्राष्ट्रीयतावाद को ‘क्षेत्रीय हानिकारक प्रभाव‘ के रूप में वर्णित किया है। इससे वाशिंगटन की क्रूरता साफ़ ज़ाहिर होती है।
अमेरिकी सरकार की कड़वाहटों से दूर, क्यूबा के कम्युनिस्टों ने आठवीं पार्टी कांग्रेस का आयोजन किया, जहाँ इन बातों पर चर्चा हुई कि राज्य के उद्यमों को कैसे बेहतर बनाया जाए और क्यूबा के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किस प्रकार के नवाचार किए जाएँ। उप प्रधानमंत्री इनेस मारिया चैपमैन ने कहा कि समाजवाद के निर्माण और उसकी रक्षा करने के लिए पार्टी सदस्यों को अपने समुदायों में सक्रिय होना चाहिए। नेशनल एसोसिएशन ऑफ़ स्मॉल फ़ार्मर्स के अध्यक्ष, राफेल सेंटिएस्टेबन पोज़ो ने कहा कि कामकाजी लोगों को उन्हें उपलब्ध संसाधनों से ज़्यादा से ज़्यादा उत्पादन करना चाहिए। अर्थव्यवस्था और योजना मंत्री एलेहांद्रो हिल ने राज्य उद्यम प्रणाली की दक्षता बढ़ाने, स्वरोज़गार का विस्तार करने और सहकारी समितियों के विस्तार की आवश्यकता की बात की।
ये गंभीर लोग हैं जो समस्याओं को पहचानते हैं लेकिन उनसे अभिभूत नहीं होते हैं; ये लोग 1959 से लगातार भारी बाधाओं के बीच अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं। हार शब्द उनकी शब्दावली में ही नहीं है। अमेरिकी सरकार और मियामी स्थित क्यूबा के कुलीन वर्ग से आने वाले द्वेषपूर्ण एजेंडे के विपरीत, उनका एजेंडा आशान्वित करने वाला है।
इस पार्टी कांग्रेस में राउल कास्त्रो ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। क्यूबा के शुरुआती क्रांतिकारियों में से एक, कास्त्रो, 1953 के मोंकाडा विद्रोह में अपनी भूमिका के कारण क़ैद किए गए थे। क़ैद से रिहा होने के बाद, वे अपने भाई फ़िदेल के साथ मैक्सिको गए और फिर अमेरिका समर्थित तानाशाह फुलगेन्सियो बतिस्ता के ख़िलाफ़ विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए ग्रानमा लौट आए। क्रांति की जीत के बाद, कास्त्रो सरकार में भी रहे और उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी में एक नेता के रूप में भी काम किया। उन्होंने विशेष अवधि (1991-2000) के दौरान फ़िदेल और अन्य लोगों के साथ पार्टी का मार्गदर्शन किया और फिर 2016 में फ़िदेल की मृत्यु के बाद पार्टी का नेतृत्व जारी रखा। क्यूबा की क्रांति की रक्षा करने और उसका विस्तार करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
सीआईए द्वारा प्लाया गिरोन पर हमला किए जाने के बाद, स्पैनिश कवि जेमी हिल दे बिएदमा ने क्यूबा पर एक कविता ‘आक्रमण के दौरान‘ लिखी। ये कविता (मॉरालीडाड्स, 1966 नामक उनके कविता संग्रह में शामिल है) प्लाया गिरोन में अमेरिका के हार की साठवीं सालगिरह मनाते हुए ये कविता पढ़ी जानी चाहिए:
मेज़पोश पर सुबह का अख़बार खुला है।
चश्मे में सूरज चमक रहा है।
छोटे ढाबे में दोपहर का खाना होगा,
यही है काम का दिन।
हममें से ज़्यादातर लोग चुप रहते हैं। कोई मद्धम आवाज़ में करता है बातें;
ख़ास दुःख के साथ
उन चीज़ों की जो हमेशा होती रहती हैं और
जो कभी ख़त्म नहीं होती, या ख़त्म होती हैं बदनामी में।
मुझे लगता है कि इस समय, सिएनेगा में सूरज चढ़ता है;
अभी तक कुछ भी तय नहीं है, युद्ध रुका नहीं है,
और मैं अख़बार में कुछ उम्मीद की किरणें खोज रहा हूँ
जो मियामी में नहीं मिलतीं।
ओह, सुदूर कटिबंधों की भोर में बैठे क्यूबा,
जब सूरज हल्का गर्म हो, और हवा साफ़ हो:
मैं आशा करता हूँ कि
तुम्हारी ज़मीन टैंक बोए और तुम्हारा खंडित आसमान
हवाई जहाज़ के पंखों से धूसर हो जाए।
तुम्हारे साथ हैं गन्ना खेतों में काम करने वाले,
ट्राम चलाने वाले, ढाबों में काम करने वाले,
हम हज़ारों लोग जो आज दुनिया में ज़रा–सी उम्मीद खोज रहे हैं
उम्मीद जो मियामी में नहीं मिलती।
क्यूबा के गर्म सूरज से उम्मीद मिलती है।
स्नेह–सहित,
विजय।
सुजी गिल्बर्ट, शोधकर्ता, अंतर क्षेत्रीय कार्यालय।
मैं ट्राईकॉन्टिनेंटल में नई हूँ, और यहाँ की टीम के साथ काम करके खुश हूँ। मैं यहाँ के काम करने के तरीक़ों से बेहद उत्साहित होती हूँ, क्योंकि हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों के साथ मिल कर कर काम करते हैं -कभी विशेष आयोजनों के माध्यम से, तो कभी शोध संस्थानों और प्रकाशकों के नेटवर्क बनाकर। इस तरह से काम करने से लोगों के साथ दीर्घकालिक रचनात्मक संबंध बनते हैं। मौजूदा दौर के अंधकार में, अंतर्राष्ट्रीयतावाद ही हमारी मानवता को ज़िंदा रखता है, इसलिए केरल से आने वाली खबरें, लूला की वापसी, चीन पर प्रति-कथन (जैसे कि उनका जलवायु नेतृत्व कर रहा है), या असांजे के पक्ष में अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता हमें हिम्मत देती है। ट्राईकॉन्टिनेंटल में अभी तक मैंने ‘साउथ ऑफ़ द बॉर्डर’, ‘कैस्ट्रो इन विंटर’, ‘द अन्टोल्ड हिस्ट्री ऑफ़ द यूनाइटेड स्टेट्स’ व अन्य डॉक्युमेंटरीज़ के सह-उत्पादन के साथ साथ लैटिन अमेरिका में एकजुटता अभियान आयोजित किए हैं। फिल्म और संचार माध्यमों में मेरी शैक्षिक पृष्ठभूमि होने के कारण, मैं विचारों की लड़ाई में ट्राईकॉन्टिनेंटल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपना भरपूर योगदान देना चाहती हूँ।