प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
यूक्रेन में चल रहे युद्ध ने विश्व व्यवस्था में हो रहे बदलावों पर ध्यान केंद्रित कर दिया है। रूस के सैन्य हस्तक्षेप के बदले में पश्चिम ने रूस के ख़िलाफ़ कड़े प्रतिबंध लगाए हैं और यूक्रेन में हथियार और भाड़े के सैनिक सप्लाई किए जा रहे हैं। इन प्रतिबंधों का रूसी अर्थव्यवस्था के साथ-साथ मध्य एशियाई देशों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा; लेकिन ऊर्जा और खाद्य क़ीमतें बढ़ने के साथ इनका यूरोप की जनता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। अब तक पश्चिम ने सीधे सैन्य बल हस्तक्षेप या ‘नो-फ़्लाई ज़ोन’ बनाने का प्रयास न करने का निर्णय लिया है। क्योंकि इस तरह के हस्तक्षेप से संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बीच सीधे युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, परमाणु हथियारों से लैस दोनों देशों को देखते हुए जिसके परिणाम की कल्पना नहीं की जा सकती है। किसी अन्य प्रकार की प्रतिक्रिया न दे पाने के चलते, पश्चिम को -जैसा कि 2015 में सीरिया में रूसी हस्तक्षेप के मामले में हुआ था- मॉस्को के ऐक्शन स्वीकारने पड़े हैं।
वर्तमान वैश्विक स्थिति को समझने के लिए, 1990 से अमेरिका के अनुसार बनी विश्व व्यवस्था की स्थापना से लेकर आज रूस और चीन की बढ़ती शक्ति के सामने चरमराती उस व्यवस्था के बारे में छ: प्रस्ताव पेश किए जा रहे हैं। ये प्रस्ताव हमारे जनवरी, 2021 में आए डोज़ियर न. 36, ‘साँझ: संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभुत्व का क्षरण और बहुध्रुवीय भविष्य’ पर आधारित हैं और चर्चा के लिए खुले। इसलिए इन पर आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है।
पहली प्रस्तावना: एकध्रुवीयता। सोवियत संघ के पतन के बाद, 1990 से लेकर 2013-15 के बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक ऐसी विश्व प्रणाली विकसित की जिसने संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य जी-7 देशों (जर्मनी, जापान, यूनाइटेड किंगडम, फ़्रांस, इटली और कनाडा) में स्थित बहुराष्ट्रीय निगमों को लाभान्वित किया। अमेरिका की वढ़त को परिभाषित करने वाली घटनाएँ थीं इराक़ पर आक्रमण (1991), यूगोस्लाविया पर हमला (1999) और विश्व व्यापार संगठन का निर्माण (1994)। यूएसएसआर के पतन से कमज़ोर हो चुके रूस ने, जी-7 में शामिल होकर और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में ‘शांति के भागीदार’ के रूप में सहयोग करके इस प्रणाली में प्रवेश करना चाहा। इस बीच, चीन ने राष्ट्रपति जियांग जेमिन (1993-2003) और हू जिंताओ (2003-2013) के शासनकाल के दौरान अमेरिका के वर्चस्व वाली वैश्विक व्यवस्था में अमेरिका को चुनौती नहीं देते हुए अपने श्रम बल तो इस व्यवस्था में स्थापित करने के माध्यम से सावधानीपूर्वक अपनी भूमिका का निर्वाह किया।
दूसरी प्रस्तावना: संकेत संकट। अमेरिका दो कारणों से अपनी ताक़त से आगे निकल गया: पहला, उसने अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को अत्यधिक छूट दी (ओवर- लीवरेज्ड बैंक और उत्पादक परिसंपत्तियों की तुलना में अधिक ग़ैर-उत्पादक संपत्ति होना); और दूसरा, 21वीं सदी के पहले दो दशकों के दौरान इसने एक ही समय में कई युद्ध (अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, साहेल) लड़ने की कोशिश की। अमेरिका की कमज़ोर होती ताक़त का संकेत इराक़ पर आक्रमण (2003) और अमेरिकी शक्ति के प्रक्षेपण में उस युद्ध में अमेरिका की हार और क्रेडिट संकट (2007-08) के रूप में सामने आया। इन घटनाक्रमों के बाद अमेरिका में आंतरिक राजनीतिक ध्रुवीकरण हुआ और यूरोप में वैधता का संकट सामने आया।
तीसरी प्रस्तावना: चीन और रूस का उद्भव। 21वीं सदी के दूसरे दशक में आते आते, अलग-अलग कारणों से, चीन और रूस दोनों अपनी सापेक्ष निष्क्रियता से उभरे।
चीन के उदय के दो कारण हैं:
1) चीन की घरेलू अर्थव्यवस्था। चीन ने बड़े पैमाने पर व्यापार अधिशेष बनाया और इसके साथ ही उसने व्यापार समझौतों और उच्च शिक्षा में अपने निवेश के माध्यम से वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान का निर्माण किया। रोबोटिक्स, हाई-टेक, हाई-स्पीड रेल और हरित ऊर्जा में चीनी फ़र्में पश्चिमी फ़र्मों से आगे निकल गईं।
2) चीन के बाहरी संबंध। 2013 में, चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की घोषणा की, जिसने अमेरिका द्वारा संचालित अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विकास और व्यापार एजेंडे के विकल्प का प्रस्ताव रखा। बीआरआई एशिया से बाहर निकलकर यूरोप के साथ-साथ अफ़्रीका और लैटिन अमेरिका में भी फैल गया।
रूस के उदय के भी दो कारण हैं:
1) रूस की घरेलू अर्थव्यवस्था। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बड़े पूँजीपतियों के कुछ वर्गों के साथ ख़ासी टक्कर ली ताकि प्रमुख वस्तु निर्यात क्षेत्रों पर राज्य नियंत्रण स्थापित किया जाए और इनका उपयोग राज्य की संपत्ति (विशेषकर तेल और गैस) के निर्माण के लिए किया। रूसी संपत्ति को केवल अपने विदेशी बैंक खातों में भेजने के बजाए ये रूसी पूँजीपति रूस की शक्ति और प्रभाव के पुनर्निर्माण के लिए अपनी महत्वाकांक्षाओं को कुछ हद तक कम करने के लिए सहमत हुए।
2) रूस के बाहरी संबंध। 2007 के बाद से रूस ने पश्चिमी वैश्विक एजेंडे से दूर होना शुरू कर दिया और पहले ब्रिक्स (ब्राज़ील-रूस-भारत-चीन-दक्षिण अफ़्रीका) एजेंडे के माध्यम से और फिर बाद में चीन के साथ घनिष्ठ संबंधों के माध्यम से अपनी ख़ुद की परियोजना को चलाना शुरू कर दिया। रूस ने अपनी सीमाओं पर नियंत्रण साबित करने के लिए ऊर्जा का निर्यात बढ़ाया, जो कि उसने तब नहीं किया था जब 2004 में नाटो ने उसकी पश्चिमी सीमा के पास के सात देशों में विस्तार किया था। क्रीमिया (2014) और सीरिया (2015) में रूसी हस्तक्षेप से रूस ने सेबेस्टोपोल (क्रीमिया) और टार्टस (सीरिया) में अपने गर्म पानी के बंदरगाहों को सुरक्षित करने के लिए अपने सैन्य बल का इस्तेमाल किया। 1990 के बाद अमेरिका के लिए यह पहली सैन्य चुनौती थी।
इस दौरान चीन और रूस ने सभी क्षेत्रों में अपना सहयोग बढ़ाया।
चौथी प्रस्तावना: वैश्विक मोनरो सिद्धांत। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने 1823 मोनरो सिद्धांत (जिसके तहत अमेरिका अन्य अमेरिकी देशों पर अपने नियंत्रण का दावा कर सकता है) को वैश्विक रूप दिया और सोवियत काल के बाद के इस युग में पूरी दुनिया पर अपना प्रभुत्व प्रस्तावित किया। उसने (ओबामा के एशिया की धुरी के माध्यम से) चीन और (रशियागेट और यूक्रेन के द्वारा) रूस के उदय के ख़िलाफ़ हमले शुरू किए। अमेरिका द्वारा संचालित इस नये शीत युद्ध ने दुनिया को अस्थिर कर दिया है, जिसमें ईरान और वेनेज़ुएला जैसे तीस देशों के ख़िलाफ़ कड़े प्रतिबंधों के रूप में हाइब्रिड युद्ध शामिल है।
पाँचवीं प्रस्तावना: टकराव। नये शीत युद्ध से तेज़ हुए टकरावों ने एशिया में और लैटिन अमेरिका में स्थिति को अस्थिर कर दिया है; एशिया में ताइवान स्ट्रेट एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है और लैटिन अमेरिका में संयुक्त राज्य अमेरिका ने वेनेज़ुएला में युद्ध करने का प्रयास किया (और बोलीविया जैसे देशों में उसने अपनी शक्ति का प्रसार करने की कोशिशें कीं पर विफल रहा)। यूक्रेन का वर्तमान संकट -जिसकी उत्पत्ति कई कारकों से हुई है, जिसमें यूक्रेन के बहु-राष्ट्रीय समझौते की समाप्ति भी शामिल है- यूरोप की स्वतंत्रता के सवाल पर भी टिका है। अमेरिका ने यूरोप पर अपनी ताक़त जमाने और उसे अमेरिकी हितों के अधीन रखने के लिए ‘ग्लोबल नाटो’ को बेलगाम घोड़े की तरह इस्तेमाल किया है; भले ही उससे यूरोपीय लोगों को नुक़सान पहुँचता हो, क्योंकि वे खाद्य अर्थव्यवस्था के लिए ऊर्जा आपूर्ति और प्राकृतिक गैस नहीं प्राप्त कर सकते। रूस ने यूक्रेन की क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन किया है, लेकिन नाटो ने कुछ ऐसी स्थितियाँ बनाईं, जिन्होंने इस टकराव को तेज़ किया – ये स्थितियाँ यूक्रेन के लिए नहीं बल्कि यूरोप में अपनी परियोजना विकसित करने के लिए बनाई गईं थीं।
छठी प्रस्तावना: आवधिक संकट। मौजूदा समय में अमेरिकी शक्ति को समझने की कुंजी है अस्थिरता। इसमें ज़बरदस्त गिरावट नहीं आई है लेकिन यह ज्यों की त्यों बरक़रार भी नहीं है। अमेरिकी शक्ति के तीन स्रोत हैं जो अपेक्षाकृत अछूते हैं:
(1) भारी सैन्य शक्ति। संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया का एकमात्र देश है जो संयुक्त राष्ट्र के किसी भी सदस्य देश पर बमबारी करके उसे पाषाण युग में पहुँचाने में सक्षम है।
(2) डॉलर-वॉल स्ट्रीट-आईएमएफ़ शासन। डॉलर पर विश्व की निर्भरता और वैश्विक वित्तीय प्रणाली में डॉलर के वर्चस्व के कारण अमेरिका अपने प्रतिबंधों को युद्ध के हथियार के रूप में कमज़ोर देशों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर सकता है।
(3) सूचनात्मक शक्ति। किसी भी देश का इंटरनेट पर उतना निर्णायक नियंत्रण नहीं है जितना कि अमेरिका का है, न इंटरनेट के भौतिक बुनियादी ढाँचे पर और न ही उसकी एकाधिकार कंपनियों, जैसे कि फ़ेसबुक और यूट्यूब पर, जो किसी भी सामग्री और किसी भी प्रदाता को अपनी इच्छा से हटा देते हैं; किसी भी देश का विश्व समाचार को आकार देने पर उतना नियंत्रण नहीं है जितना कि अपनी वायर सेवाओं (रॉयटर्स और एसोसिएटेड प्रेस) सीएनएन जैसे समाचार नेटवर्कों की शक्ति के कारण अमेरिका का है।
अमेरिकी शक्ति के अन्य स्रोत बहुत कमज़ोर हो चुके हैं, जैसे कि इसका राजनीतिक परिदृश्य, जो कि बुरी तरह से ध्रुवीकृत है, और चीन व रूस को उनकी सीमाओं के अंदर वापस भेजने के लिए अपने संसाधनों का इस्तेमाल करने में अमेरिका की असमर्थता।
जन-आंदोलनों को जनता को शक्तिशाली संगठनों में संगठित करने की ज़रूरत है और एक ऐसे कार्यक्रम के इर्द-गिर्द अपनी शक्ति विकसित करने की ज़रूरत है, जो हमारे समय की तात्कालिक समस्याओं, हमारे समय के रंगभेद -खाद्य रंगभेद, चिकित्सा रंगभेद, शिक्षा रंगभेद और धन रंगभेद- से परे एक वैकल्पिक प्रणाली में समाज को ले जाने के दीर्घकालिक सवाल का जवाब देने में सक्षम हो। इन रंगभेदों से परे जाने का रास्ता हमें पूँजीवादी व्यवस्था से निकाल कर समाजवाद की ओर ले जाएगा।
पिछले एक हफ़्ते में हमने पुराने और नये कई साथियों को खो दिया है। उनमें से एक हैं, हमारे वरिष्ठ साथी एजाज़ अहमद (1941-2022), हमारे समय के महान मार्क्सवादियों में से एक, जो 81 साल की उम्र में हमें छोड़ गए। यूएसएसआर के पतन के बाद जब मार्क्सवाद पर हमला तेज़ हो गया था, तो एजाज़ मार्क्सवाद की लाइन पर डटे रहे और कई पीढ़ियों को मार्क्सवादी सिद्धांत की आवश्यकता के बारे में बताया; यह सिद्धांत इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह आज भी पूँजीवाद की सबसे शक्तिशाली आलोचना है और जब तक पूँजीवाद हमारे जीवन की संरचना करना जारी रखेगा, तब तक इस आलोचना की आवश्यकता बनी रहेगी। हमारे लिए ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान में एजाज़ द्वारा दी गई सलाह अमूल्य थीं। वास्तव में, हमारा डोज़ियर ‘साँझ’, जिसने हमें वर्तमान संदर्भ में ख़ुद को उन्मुख करने में मदद की, एजाज़ के साथ पर्याप्त विचार विमर्श के बाद ही लिखा गया था।
हमने अयांडा न्गीला (1992–2022) को भी खो दिया। वे दक्षिण अफ़्रीका के झोंपड़पट्टियों के विद्रोही आंदोलन, अबहलाली बासे मजोंडोलो (एबीएम) के ईखेनाना भूमि क़ब्ज़े के डिप्टी चेयरपर्सन थे। अयांडा एबीएम के एक साहसी नेता थे, जो हाल ही में झूठे आरोपों के तहत दूसरी बार जेल में बंद रहने के बाद से रिहा हुए थे। वह अपने साथियों के प्रति संवेदनाएँ रखने वाले कामरेड थे और फ्रांत्ज़ फ़ैनन स्कूल में एक छात्र भी थे और शिक्षक थे। जब अफ़्रीकी नेशनल कांग्रेस में उनके विरोधियों ने उन्हें गोलियों से भून दिया, उस समय अयांडा ने जो टी-शर्ट पहन रखी थी उस पर स्टीव बीको के शब्द लिखे थे: ‘एक जीवित रहने वाले विचार के लिए मरना, एक मरणासन्न विचार के लिए जीने से बेहतर है’। फ्रांत्ज़ फ़ैनन स्कूल की दीवारों पर, एबीएम के साथियों ने अपने आदर्शों को स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है: भूमि, सभ्य आवास, गरिमा, स्वतंत्रता और समाजवाद।
हम सहमत हैं। ऐजाज़ भी सहमत होते।
स्नेह-सहित,
विजय।