मोनिर शाहरौदी फ़रमानफ़रमाइयाँ (ईरान), सूर्यास्त, 2015.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

संयुक्त राष्ट्र हमारे लिए एक गंभीर ख़बर लेकर आया है। कुछ दिन पहले जारी हुई मानव विकास रिपोर्ट (2021–22) ने बत्तीस वर्षों में पहली बार मानव विकास सूचकांक में लगातार दूसरे साल गिरावट दर्ज की गई है। स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में पिछले पाँच वर्षों के दौरान जो प्रगति हुई थी इस गिरावट की वजह से उसमें कमी आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘इस पीढ़ी के अरबों लोग ठीक से गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अरबों [लोग] पहले से ही खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे हैं, जिसका मुख्य कारण धन और शक्ति में असमानता है, जो भोजन के अधिकार को निर्धारित करती है। वैश्विक खाद्य संकट उन्हें सबसे ज़्यादा प्रभावित करेगा’।

संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट महामारी और यूक्रेन युद्ध को इस संकट के तात्कालिक स्रोत के रूप में देखती है, लेकिन मानव सुरक्षा पर जारी एक पूर्ववर्ती रिपोर्ट के अनुसार ‘दुनिया भर में हर 7 में से 6 से अधिक लोग कोविड-19 के प्रकोप से ठीक पहले ही थोड़ा या ज़्यादा असुरक्षित महसूस कर रहे थे’। निश्चित रूप से, महामारी और यूरेशिया में चल रहे युद्ध के कारण हुई मुद्रास्फीति के दबाव ने जीवन को कठिन बना दिया है, लेकिन यह संकट इन दोनों घटनाओं से पुराना है। सबसे गहरी समस्या है विश्व पूँजीवादी व्यवस्था, जो एक संकट से दूसरे संकट की ओर बढ़ रही है, और जिसने दुनिया के 600 करोड़ से भी अधिक लोगों के लिए जीवन बहुत कठिन बना दिया है।

 

Merikokeb Berhanu (Ethiopia), Untitled XLIV, 2020.

मेरिकोकेब बरहानु (इथियोपिया), शीर्षक रहित XLIV (44), 2020.

 

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान में, हम लगभग पाँच साल पहले अपनी स्थापना से ही, लगातार इन व्यापक संकटों की प्रकृति और उनके अंतर्निहित कारणों को समझने की दिशा में काम कर रहे हैं। इस दौरान, हमने भूख, बेरोज़गारी, सामाजिक निराशा, जलवायु आपदा आदि से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग में वृद्धि के बजाये ऐसी मानसिकता और संरचनाओं का उदय देखा है जो युद्ध को इन सभी समस्याओं के समाधान के रूप में बढ़ावा देती है। इस मानसिकता की अगुवाई, निस्संदेह, संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा है। उदाहरण के लिए, अमेरिका ने चीन के ख़िलाफ़ एक व्यापार युद्ध छेड़ रखा है और चीन के प्रौद्योगिक विकास को नुक़सान पहुँचाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा के तर्कों का इस्तेमाल करने की कोशिश की है। जबकि अधिकांश देश – जनता के बीच बढ़ती सामाजिक अशांति के कारण – अपने देशों की चिंताओं को दूर करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की कामना कर रहे हैं। लेकिन अमेरिका ने ख़ुद को आर्थिक रूप से आगे रखने के लिए वाणिज्यिक तरीक़े से कोशिश करने के बजाये राजनीतिक धमकियाँ देने और सैन्य टकराव की ख़तरनाक रणनीति अपनाई है।

हमारे समय को परिभाषित करने वाले मुद्दों को और अधिक गहराई से समझने के लिए ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने अमेरिकी सैन्य रणनीति और उसके शस्त्रागार में होने वाली नयी प्रगति का अध्ययन करने के लिए समाजवादी पत्रिका ‘मन्थ्ली रिव्यू और शांति मंच ‘नो कोल्ड वॉर‘ के साथ भागीदारी की। यह अध्ययन एक नयी सीरीज़ ‘स्टडीज़ इन कंटेम्परेरी डिलेमाज़’ में पहले प्रकाशन के रूप में सामने आया है। ‘द यूनाइटेड स्टेट्स इज़ वेजिंग ए न्यू कोल्ड वॉर: ए सोशलिस्ट पर्सपेक्टिव’ के नाम से जारी इस पुस्तिका में, जॉन बेलामी फ़ोस्टर (मन्थ्ली रिव्यू के संपादक), जॉन रॉस (नो कोल्ड वॉर के सदस्य), और डेबोरा वेनेज़ियाल (ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के एक शोधकर्ता) के निबंध शामिल हैं। इस पुस्तिका के लिए मैंने जो इंट्रोडक्शन लिखा था, उसे यहाँ न्यूज़लेटर के बाक़ी हिस्से में शामिल कर रहा हूँ।

 

स्टडी का कवर पेज

 

23 मई 2022 को स्विट्जरलैंड के दावोस शहर में हुई वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की बैठक में, पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने यूक्रेन के बारे में घबराहट पैदा करने वाली टिप्पणी की। ‘समय की नज़ाकत’ को ध्यान में रखे बिना किसिंजर ने कहा कि पश्चिम को – संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में – रूसियों को संतुष्ट करने वाला शांति समझौता करवाने की आवश्यकता है। किसिंजर ने कहा, ‘युद्ध को [इस] बिंदु से परे खींचने का मक़सद यूक्रेन की स्वतंत्रता नहीं, बल्कि रूस के ही ख़िलाफ़ एक नया युद्ध खड़ा करना होगा’। पश्चिमी विदेश नीति प्रतिष्ठान के अधिकांश बयानों में किसिंजर की टिप्पणियों को ख़ारिज किया गया है। किसिंजर, जो कि किसी शांति-वादी दल के सदस्य नहीं हैं, ने फिर भी एशिया के चारों ओर एक नये आयरन कर्टेन की स्थापना तथा पश्चिम और रूस व चीन के बीच शायद खुले – और घातक – युद्ध की ओर बढ़ने के बड़े ख़तरे का संकेत दिया है। इस तरह का अकल्पनीय परिणाम किसिंजर तक के लिए भी बहुत व्यापक है। जबकि किसिंजर के बॉस, पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन, अक्सर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के बारे में ‘पागल आदमी के सिद्धांत (मैडमैन थिऑरी)’ की बात करते थे; निक्सन ने अपने तत्कालीन चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ बॉब हाल्डमैन से कहा था कि हो ची मिन्ह को आत्मसमर्पण करने के लिए डराने हेतु उनका ‘हाथ परमाणु बटन पर’ था।

2003 में इराक़ पर अवैध अमेरिकी आक्रमण की शुरुआत के दौरान, मैंने अमेरिकी विदेश विभाग के एक वरिष्ठ सदस्य से बात की थी। उन्होंने मुझे बताया था कि वाशिंगटन में उस वक़्त प्रचलित सिद्धांत एक साधारण से नारे पर टिका है: दीर्घकालिक लाभ के लिए अल्पकालिक हानि। उन्होंने समझाया कि सामान्य दृष्टिकोण यह है कि देश का एलीट वर्ग अन्य देशों के लिए अल्पकालिक हानि को सहन करने के लिए तैयार है। शायद वे संयुक्त राज्य के कामकाजी लोगों की भी अल्पकालिक हानि सहने को तैयार हैं, क्योंकि कामकाजी वर्ग भी युद्ध के व्यवधानों और नरसंहार के कारण आर्थिक कठिनाइयों का अनुभव कर सकता था। हालाँकि, उन्होंने कहा कि अगर सब कुछ ठीक रहा, तो इस क़ीमत को चुकाने के बदले उन्हें दीर्घकालिक लाभ मिलेगा। क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से जिस प्रधानता को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, वह उसे क़ायम रखने में सफल हो जाएगा। जब उन्होंने ‘अगर सब कुछ ठीक रहा’ कहा तो एक तरफ़ तो मुझे डर लगा, लेकिन जिस सवाल ने मुझे झकझोरा वह यह था कि इस हानि को कौन सहेगा और लाभ का आनंद किसे मिलेगा। वाशिंगटन में यह काफ़ी निंदनीय रूप से कहा जा रहा था कि इराक़ियों और मज़दूर वर्ग के अमेरिकी सैनिकों पर नकारात्मक प्रभाव (यानी उनका मरना) तब तक जायज़ है जब तक कि बड़ी तेल और वित्तीय कंपनियों को इराक़ पर जीत के फल का मज़ा मिलता रहे। अल्पकालिक हानि, दीर्घकालिक लाभ का रवैया संयुक्त राज्य अमेरिका के एलीट वर्ग के मूड को परिभाषित करता है, जो मानव गरिमा और प्रकृति की लंबी उम्र के लिए बनने वाली परियोजना में योगदान देने को तैयार नहीं हैं।

 

Boštjan Jurečič Vega (Slovenia), Amerikana, 2011.

बोस्टजन जूरेकिच वेगा (स्लोवेनिया), अमेरिका, 2011.

 

अल्पकालिक हानि, दीर्घकालिक लाभ का सिद्धांत ही संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों द्वारा रूस और चीन पर हमलों में होने वाली ख़तरनाक वृद्धि का आधार है। संयुक्त राज्य अमेरिका के बारे में जो बात चौंकाने वाली है, वह यह है कि वह एक ऐसी ऐतिहासिक प्रक्रिया को रोकना चाहता है जो अपरिहार्य लगती है। यह प्रक्रिया है यूरेशियाई एकीकरण। अमेरिकी आवास बाज़ार के पतन और पश्चिमी बैंकिंग क्षेत्र में प्रमुख ऋण संकट के बाद, चीनी सरकार ने, दक्षिणी गोलार्ध के अन्य देशों के साथ मिलकर, ऐसे प्लेटफ़ॉर्म बनाने के प्रयास किए, जो उत्तरी अमेरिका और यूरोप के बाज़ारों पर निर्भर नहीं हों। इन प्लेटफ़ार्मों में 2009 में बना ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका) और 2013 में शुरू हुआ वन बेल्ट, वन रोड (जिसे बाद में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव या बीआरआई कहा जाने लगा) जैसे मंच शामिल हैं। रूस की ऊर्जा आपूर्ति और धातु तथा खनिज के बड़े भंडार तथा चीन की औद्योगिक व तकनीकी क्षमता ने कई देशों को, उनके राजनीतिक  अभिरुचि के बावजूद, बीआरआई के साथ जुड़ने के लिए आकर्षित किया। इस जुड़ाव में रूस के ऊर्जा निर्यात की अहम भूमिका है। इन देशों में पोलैंड, इटली, बुल्गारिया और पुर्तगाल शामिल हैं। और आज के समय में जर्मनी चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।

यूरेशियाई एकीकरण का ऐतिहासिक तथ्य संयुक्त राज्य अमेरिका और अटलांटिक अभिजात वर्ग के प्रभुत्व के लिए ख़तरा पैदा करता है। यही वह ख़तरा है जो संयुक्त राज्य अमेरिका को रूस और चीन को ‘कमज़ोर’ करने के उद्देश्य में किसी भी प्रकार के साधन का उपयोग करने के लिए प्रेरित करता है। वाशिंगटन पर उसकी पुरानी आदतें हावी हैं। वो लंबे समय से शांति बनाए रखने के सिद्धांत को नकार रहा है और अपनी परमाणु प्रधानता बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपना रवैया और परमाणु क्षमता को इस प्रकार से विकसित किया है कि वह उसे अपना आधिपत्य बनाए रखने के लिए ग्रह को नष्ट करने की अनुमति भी देता है। रूस और चीन को कमज़ोर करने की रणनीतियों में इन देशों पर अमेरिका द्वारा लगाए गए हाइब्रिड युद्ध (जैसे प्रतिबंध और सूचना युद्ध) को तेज़ कर उन्हें अलग-थलग करने के प्रयास शामिल हैं। ताकि इन देशों को अंदर से तोड़कर उन पर हमेशा के लिए प्रभुत्व स्थापित किया जा सके।

 

Ludwig Meidner (Germany), Apocalyptic Landscape, 1913.

लुडविग मीडनर (जर्मनी), सर्वनाशक परिदृश्य, 1913.

 

‘द यूनाइटेड स्टेट्स इज़ वेजिंग ए न्यू कोल्ड वॉर’ एक चौंकाने वाला दस्तावेज़ है। हम उम्मीद करते हैं कि दुनिया भर के संवेदनशील लोग इसे पढ़ेंगे और तत्काल एक वैश्विक शांति अभियान को गति देने में मदद करेंगे। शांति स्थापित करने की ज़रूरत है, और सिर्फ़ यूक्रेन में ही नहीं। फ़ॉरेन अफ़ेयर्स के सितंबर/अक्टूबर अंक में, फियोना हिल (जो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की उप सहायक थीं) और प्रोफ़ेसर एंजेला स्टेंट ने लिखा है कि अप्रैल में, ‘रूसी और यूक्रेनी वार्ताकार, बातचीत के अंतरिम समझौते की रूपरेखा पर अस्थायी रूप से सहमत हुए थे’, जिसके तहत रूस को 23 फ़रवरी से पहले तक उसकी सीमा रही जगहों की ओर वापसी करनी थी और यूक्रेन ने नाटो सदस्यता नहीं लेने का वादा किया था। लेकिन पश्चिम के एजेंडा का ख़ुलासा तब हुआ जब ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री, बोरिस जॉनसन, ने कीव जाकर यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की से समझौता तोड़ने का आग्रह किया। जॉनसन ने कहा, भले ही यूक्रेन रूस के साथ सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने को तैयार हो, पश्चिम इसका समर्थन नहीं करेगा। इसलिए, ज़ेलेंस्की ने बातचीत बंद कर दी और युद्ध जारी रहा। हिल और स्टेंट का लेख पश्चिम की ख़तरनाक चाल की पोल खोलने वाला है। पश्चिम इस तकरार को लम्बा खींचना चाहता है, जिससे यूक्रेन और रूस में तो मुसीबतें बढ़ी ही हैं, और दुनिया भर में अस्थिरता फैल गई है, ताकि वह चीन और रूस दोनों के ख़िलाफ़ अपने नये शीत युद्ध को क़ायम रख सके।

 

17 सितंबर के इवेंट का कार्ड

 

17 सितंबर को, इस अध्ययन के लेखक नो कोल्ड वॉर द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शांति मंच के केंद्रबिंदु होंगे। आप भी जुड़ें

संयुक्त राष्ट्र मानव विकास रिपोर्ट बताती है कि ‘विभिन्न समूहों को जोड़ने वाले पुल हमारी सबसे महत्वपूर्ण संपत्तियों में से एक हैं’। हम भी इस बात से पूरी तरह सहमत हैं। बमबारी से ज़्यादा पुल बनाने की ज़रूरत है।

स्नेह-सहित,

विजय।