प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
पिछले सप्ताह सीओपी26 में होने वाली संयुक्त राष्ट्र संघ फ़्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफ़सीसीसी) बैटक का कुछ भी उपयोगी परिणाम नहीं निकला। विकसित देशों के नेताओं ने जलवायु आपदा को उलटी दिशा में मोड़ने की अपनी प्रतिबद्धता पर वही उबाऊ भाषण दोहराए। उनके शब्द प्रचारकों के घिसे पिटे शब्दों जैसे थे, जिनमें किसी तरह की कोई ईमानदारी नहीं थी, और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए उनकी वास्तविक प्रतिबद्धता ग़ायब थी। एक फ़िलिपिनो जलवायु कार्यकर्ता और फ़्राइडे फ़ॉर फ़्यूचर के प्रवक्ता मित्ज़ी जोनेल टैन ने कहा कि ये नेता ‘खोखले, उबाऊ वादे’ करते हैं, जिसके कारण उनके जैसे युवाओं में ‘धोखे की भावना’ पैदा हो जाती है। उन्होंने कहा कि जब वो बच्ची थीं, तब वो फ़िलीपींस में अचानक आने वाली बाढ़ों में फँसने का ख़तरा लगातार महसूस करती थीं, जोखिमों का समाना कर रहे देशों के लिए बाढ़ के नतीजे भयानक होते हैं। टैन ने कहा, ‘जलवायु आपदा का आघात युवा महसूस कर रहे हैं’, ‘लेकिन यूएनएफ़सीसीसी हमें अपनी चर्चाओं से बाहर रखता है’।
युवाओं के ग्रूप पैसिफ़िक क्लाइमेट वॉरियर्स ने 6 नवंबर को बारिश के बीच ग्लासगो में मार्च किया, दक्षिण प्रशांत द्वीप समूह के उनके झंडे तेज़ हवा में लहरा रहे थे। यह समूह छोटे द्वीप देशों व आदिवासियों की बड़ी आबादी वाले क्षेत्रों के कई समूहों में से एक है, जो अपने अस्तित्व के लिए बड़े और तत्काल ख़तरों का सामना कर रहे हैं। पैकिफ़िक क्लाइमेट वॉरियर्स के रेवरेंड जेम्स भगवान ने कहा कि, ‘हमें आपकी दया नहीं चाहिए, हम कार्रवाई चाहते हैं’।
युद्ध और उससे होने वाले पर्यावरणीय नुक़सान भी कइयों के दिमाग़ में थे। 1981 से 2000 तक, यूनाइटेड किंगडम में ट्राइडेट परमाणु मिसाइलों के भंडारण के ख़िलाफ़ एक स्थायी विरोध के तरीक़े को रूप में ग्रीनहैम कॉमन विमेन पीस कैंप का निर्माण किया गया। पीस कैंप की पूर्व निवासी एलिसन लोचहेड ने दृढ़ता के साथ ग्लासगो में मार्च किया। ‘अब आप अपना कैंप कहाँ स्थापित करोगे?’ मैंने उनसे पूछा। उन्होंने जवाब दिया, ‘दुनिया भर में’, – एक ऐसी दुनिया में जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना सबसे बड़ी संस्थागत प्रदूषक है। एक्टिविस्ट माइशेल हेवुड ने अपने कुत्ते के साथ मार्च किया, उनके पोस्टर पर लिखा था, ‘वैश्विक सेना दुनिया की सबसे बड़ी प्रदूषक है’। पोस्टर की दूसरी तरफ़ लिखा था, ‘तेल इतना क़ीमती है कि जलाया नहीं जाना चाहिए। दवा, प्लास्टिक और अन्य चीज़ें बनाने के लिए इसे बचाएँ’।
7 नवंबर को, सीओपी26 कोएलिशन पीपुल्स समिट के दौरान, यूएनएफ़सीसीसी और कई मुद्दों को संबोधित करने में इसकी विफलता पर होने वाले पीपुल्स ट्रिब्यूनल की न्यायपीठ का मैं हिस्सा रहा। हमने कई तरह के रिपोर्ट-कर्ताओं और गवाहों को सुना, जिनमें से प्रत्येक ने प्रकृति और मानव जीवन पर अलग-अलग जलवायु आपदाओं के बारे में गहरी भावना के साथ बात की। जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी देने के लिए हर मिनट 11 मिलियन डॉलर ख़र्च किए जाते हैं (यानी अकेले 2020 में ही 5.9 ट्रिलियन डॉलर ख़र्च किए गए); यही पैसा व्यापक जलवायु तबाही की पटकथा लिख रहा है। वहीं दूसरी ओर जीवाश्म ईंधन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने या ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की ओर बदलने की दिशा में मामूली फ़ंड्ज़ इकट्ठे होते हैं। इस न्यूज़लेटर के शेष भाग में ट्रिब्यूनल के निष्कर्षों का विवरण है; जिसमें राजदूत लुमुम्बा डि-अपिंग (G77 और चीन के लिए पूर्व मुख्य जलवायु वार्ताकार), कैटेरीना अनास्तासियो (ट्रांसफ़ॉर्म यूरोप से), सामंथा हरग्रीव्स (वोमिन अफ़्रीकन अलाइयन्स से), लैरी लोहमैन (द कॉर्नर हाउस से), और मैं न्यायाधीश थे।
‘पीपुल्स ट्रिब्यूनल: लोग और प्रकृति बनाम यूएनएफ़सीसीसी’ का फ़ैसला
7 नवंबर 2021
यूएनएफ़सीसीसी की विफलताओं के संबंध में ट्रिब्यूनल के समक्ष छह आरोप पेश किए गए थे:
• जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों का पता लगाना;
• वैश्विक सामाजिक और आर्थिक अन्याय को संबोधित करना;
• भविष्य की पीढ़ियों के अधिकारों सहित ग्रह के और सामाजिक अस्तित्व के लिए उपयुक्त जलवायु वित्त का उपाय करना;
• ऊर्जा के स्रोतों में न्यायसंगत बदलाव के लिए मार्ग बनाना;
• निगमों को विनियमित करना और यूएनएफ़सीसीसी प्रक्रिया पर कॉर्पोरेट क़ब्ज़े से बचना; तथा
• प्रकृति के अधिकारों पर क़ानून को मान्यता देना, बढ़ावा देना और उसकी रक्षा करना।
पाँच न्यायाधीशों की न्यायपीठ ने विशेष अभियोजक, रिपोर्ट-कर्ताओं और गवाहों की बात ध्यान से सुनी। हम सबने ने एक ही निष्कर्ष पाया कि यूएनएफ़सीसीसी, जिस पर 1992 में 154 देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे और 1994 तक जिसे 197 देशों ने अपना समर्थन दिया था, ने दुनिया के लोगों और उन सभी प्रजातियों, जो जीवित रहने के लिए एक स्वस्थ ग्रह पर निर्भर हैं, को जलवायु परिवर्तन रोकने में अपनी विफलता के कारण धोखा दिया है। यह ख़तरनाक निष्क्रियता औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि को सीमित करने में विफल रही है।
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अपनी 2021 की रिपोर्ट में पाया है कि पृथ्वी औसत तापमान में 1.1 डिग्री की वृद्धि तक पहुँच गई है, जबकि उप-सहारा अफ़्रीका ‘सुरक्षित’ 1.5 डिग्री के निशान को तोड़ने के क़रीब पहुँच चुका है।
यूएनएफ़सीसीसी ने उन्हीं निगमों के साथ घनिष्ठ साझेदारी की है जिन्होंने जलवायु संकट पैदा किया है। इसके कारण शक्तिशाली सरकारों को ग़रीब देशों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करने की ताक़त मिली है, जिसके नतीजे में अगले दो दशकों तक दुनिया के सबसे ग़रीब हिस्सों में रहने वाले करोड़ों लोग दुःख और मौत से जूझते रहेंगे।
यूएनएफ़सीसीसी की निष्क्रियता ने शक्तिशाली तेल, खनन, कृषि, लॉगिंग, विमानन, मछली पकड़ने जैसे अन्य निगमों को अपनी कार्बन उत्सर्जन गतिविधियों को बेरोकटोक जारी रखने की अनुमति दी है। इसने बढ़ते जैव विविधता संकट में योगदान दिया है: हाल के अनुमानों से पता चलता है कि हर साल 2,000 प्रजातियाँ (निचले सिरे पर) से लेकर 100,000 प्रजातियाँ (उच्च अंत में) नष्ट हो रही हैं। यूएनएफ़सीसीसी को सामूहिक विलुप्ति के लिए दोषी पाया गया है।
यूएनएफ़सीसीसी ने प्रक्रिया का लोकतंत्रीकरण करने और सबसे ज़्यादा संकट का सामना कर रहे लोगों की बात सुनने से इनकार किया है। इन लोगों में उन 33 देशों में रहने वाले एक अरब बच्चे शामिल हैं जो जलवायु संकट के कारण ‘अत्यंत उच्च जोखिम’ का सामना कर रहे हैं – दूसरे शब्दों में, दुनिया के 2.2 अरब बच्चों में से लगभग आधे – और साथ-ही-साथ इन लोगों में उन देशों के आदिवासी समुदायों और मज़दूर वर्ग के लोग और किसान महिलाएँ शामिल हैं, जो देश उस संकट का ख़ामियाज़ा भुगत रहे हैं जिसे उन्होंने पैदा नहीं किया।
जब दुनिया तेज़ी से बढ़ते जलवायु संकट का सामना कर रही है -जो कि बाढ़, सूखे, चक्रवात, तूफ़ान, समुद्र के बढ़ते स्तर, आग और नयी महामारियों से प्रमाणित हो रहा है- दुनिया के सबसे ग़रीब, सबसे कमज़ोर और अत्यधिक ऋणी देशों का जलवायु ऋण का बड़ा हिस्सा बक़ाया है।
यूएनएफ़सीसीसी में शामिल शक्तिशाली देशों ने राष्ट्रों के बीच ग़ैर-बराबर और असमान विकास के लंबे इतिहास के वैश्विक निवारण पर पिछली प्रतिबद्धताओं को वापस लेने का दबाव बनाया है। विकसित देशों ने जलवायु कोष के लिए प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर देने का वादा किया था, लेकिन वे उस धन को उपलब्ध कराने में विफल रहे हैं, जिससे उनकी अपनी प्रतिबद्धताओं की उपेक्षा हुई है। इसके बजाय, विकसित देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और गर्म जलवायु के अनुकूलन का समर्थन करने के लिए अपने स्वयं के राष्ट्रीय प्रयासों में ख़रबों डॉलर लगा रहे हैं, जबकि सबसे ग़रीब और सबसे अधिक ऋणग्रस्त राष्ट्रों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।
हम, न्यायाधीशों, ने यह पाया है कि यूएनएफ़सीसीसी ने संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर का उल्लंघन किया है, जो कि (अध्याय 1 में) माँग करता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य ‘शांति के ख़तरों को रोकने और हटाने के लिए प्रभावी सामूहिक उपाय करें’। चार्टर ‘अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने’ के लिए कहता है।
यूएनएफ़सीसीसी ने संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर के अध्याय 9 का भी उल्लंघन किया है, अनुच्छेद 55 की ‘स्थिरता और कल्याण की स्थिति’ के साथ-साथ ‘आर्थिक प्रगति और सामाजिक प्रगति’ स्थापित करने और ‘मानवाधिकारों के सार्वभौमिक सम्मान, और पालन’ को बढ़ावा देने की माँग की अनदेखी की है। इसके अलावा, यूएनएफ़सीसीसी ने अनुच्छेद 56 का उल्लंघन किया है, जो कि सदस्य राज्यों को संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ ‘सहयोग में संयुक्त और अलग कार्रवाई’ करने का आदेश देता है।
हम, पीपुल्स ट्रिब्यूनल के न्यायाधीश, यूएनएफ़सीसीसी को विशेष अभियोजक द्वारा लगाए गए और गवाहों द्वारा स्थापित आरोपों के लिए दोषी पाते हैं। हमारे बयान के आलोक में, हम दुनिया के लोगों की क्षतिपूर्ति के निम्नलिखित उपायों का दावा करते हैं:
- बदनाम और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना यूएनएफ़सीसीसी को उसके वर्तमान स्वरूप में भंग कर दिया जाना चाहिए और उसे निचले स्तर से पुनर्गठित किया जाना चाहिए। जन-नेतृत्व वाले नये वैश्विक जलवायु मंच के लिए सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण है कि वो लोकतांत्रिक हो और पर्यावरण तथा जलवायु पतन के नतीजों को झेलने वालों को केंद्र में रखे। हमारी पृथ्वी के प्रदूषक उस जलवायु मंच का हिस्सा नहीं हो सकते हैं, जिसके लिए लोगों और ग्रह की सेवा करने पहले उद्देश्य है।
- ऐतिहासिक रूप से विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन को समाप्त करने के ख़र्च और दक्षिणी गोलार्ध के लोगों पर बक़ाया जलवायु ऋण के संपूर्ण भुगतान का ज़िम्मा उठाना चाहिए; इस तरह की कार्रवाई से सबसे ज़्यादा प्रभावित आबादी को जलवायु के ख़राब परिणामों को कम करने और तेज़ी से गर्म हो रही जलवायु के अनुकूल होने में मदद करने के लिए आवश्यक है। दक्षिणी गोलार्ध की कामकाजी महिलाओं, जिन्होंने उनके सामने आए संकट से रास्ता निकालते हुए अपने घरों की देखभाल करने में कठिन और लंबे समय की मेहनत की है, पर एक विशिष्ट ऋण बक़ाया है। ऐसे ऋणों को लोकतांत्रिक, जन-केंद्रित तंत्रों के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिए, जो भ्रष्ट सरकारों और संकट से मुनाफ़े कमा रहे निगमों से बाहर काम करते हों।
- अवैध वित्तीय प्रवाह को काट दिया जाना चाहिए और इसे पहले के उपनिवेश राष्ट्रों में जलवायु अनुकूलन तथा ऊर्जा-स्रोतों के न्यायसंगत बदलाव को फ़ंड करने के लिए तत्काल ज़ब्त कर लिया जाना चाहिए। इन अवैध वित्तीय प्रवाहों के कारण हर साल अफ़्रीका से 88.6 बिलियन डॉलर की चोरी होती है, जबकि 32 ट्रिलियन डॉलर के लगभग अवैध टैक्स स्वर्गों में पड़े हैं।
- वैश्विक सैन्य ख़र्च -जो कि अकेले 2020 में लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर रहा, और पिछले दशकों में ख़रबों डॉलर रहा है- को जलवायु न्याय पहलों के लिए फ़ंड में परिवर्तित किया जाना चाहिए। इसी तरह, ग़रीब राष्ट्रों के अस्वीकार्य और नाजायज़ कर्ज़ की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें रद्द किया जाना चाहिए। इससे बुनियादी ढाँचे, सेवाओं और समर्थन के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजस्व मुक्त होगा, जिससे अरबों लोगों को जलवायु आपातकाल से छुटकारा पाने में मदद मिलेगी। धनी राष्ट्रों की राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाओं पर ख़र्च की जाने वाली विशाल राशि, जिसका उद्देश्य है जलवायु परिवर्तन से प्रेरित आपदाओं से भाग रहे लोगों से प्रदूषण के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार इन राष्ट्रों को बचाना, को भी इसी तरह दक्षिणी गोलार्ध के लोगों का समर्थन करने के लिए डायवर्ट किया जाना चाहिए।
- एक रूपांतरित और ज़िम्मेदार संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा को पारिस्थितिक एवं जलवायु क्षतिपूर्ति ऋण, दासता व उपनिवेशवाद से संबंधित नुक़सान, और दक्षिणी गोलार्ध की महिलाओं पर लागू प्रजनन ऋण के लिए एक विशेष सत्र बुलाना चाहिए।
- इस पीपुल्स ट्रिब्यूनल को क़ानूनी कार्रवाई के माध्यम से प्रकृति और लोगों के ख़िलाफ़ अपराधों के लिए यूएनएफ़सीसीसी को ज़िम्मेदार ठहराना चाहिए।
- अंतर्राष्ट्रीय निगमों और मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र संघ बाध्यकारी संधि, न केवल सभी मानवाधिकारों का सम्मान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय निगमों के दायित्व की पुष्टि करती है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय निगमों द्वारा किए गए मानवाधिकार उल्लंघन के ख़िलाफ़ सुरक्षा प्रदान करने के राज्यों के अधिकारों की भी पुष्टि करती है। इसके अलावा, यह संधि व्यापार और निवेश संधियों के हितों के ऊपर मानवाधिकारों की पुष्टि करती है और कॉर्पोरेट संचालित ‘विकास’ परियोजनाओं का सामना करने वाले समुदायों से मुफ़्त, पूर्व, सूचित और निरंतर सहमति लेने की पुष्टि करती है।
- संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा को ‘व्यापार उदारीकरण’ और ‘बाज़ार प्रौद्योगिकियों’ पर एक विशेष सत्र शुरू करना चाहिए, जिसमें कृषि, जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र पर उनके नकारात्मक प्रभावों की पूरी तरह से जाँच की जाए, और इस बात का विश्लेषण किया जाए कि वे कैसे संकट को उत्पन्न और पुन:उत्पन्न करते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा को धरती माता के अधिकारों की सार्वभौम घोषणा पर तुरंत सुनवाई करनी चाहिए।
मार्शल द्वीप समूह, जो कि मूंगा चट्टानों और ज्वालामुखी से बने द्वीपों की एक शृंखला है, ओशिनिया के उन चौदह देशों में से एक है, जो समुद्र के बढ़ते स्तर से अत्यधिक ख़तरे में है। हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि राजधानी माजुरो के 96% भाग में बार-बार बाढ़ आने का ख़तरा है, जबकि शहर की 37% मौजूदा इमारतें किसी भी प्रकार के अनुकूलन के अभाव में ‘स्थायी सैलाब’ का सामना कर रही हैं।
2014 में, मार्शल द्वीप की एक कवयित्री, कैथी जेटनील-किजिनेर ने अपनी सात साल की बेटी माटेफेल पीनम के लिए एक उत्तेजक कविता लिखा था:
…हज़ारों लोग सड़कों पर हैं
पोस्टर टाँगे
हाथों मे हाथ लिए
वे तत्काल परिवर्तन की माँग कर रहे हैं
और वे तुम्हारे लिए चल रहे हैं, बिटिया
वे हमारे लिए चल रहे हैं
क्योंकि हमें बस ज़िंदा रहने
का हक़दार नहीं है
हमें अधिकार है कि
हम फलें-फूलें…
स्नेह-सहित,
विजय।