प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
9 दिसंबर को, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने खाड़ी देशों व चीन के बीच मज़बूत हो रहे संबंधों पर चर्चा करने के लिए सऊदी अरब के रियाद में खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के नेताओं से मुलाक़ात की। एजेंडे में चीन और जीसीसी के बीच व्यापार में वृद्धि का मुद्दा सबसे ऊपर था, और चीन ने ‘कच्चे तेल को लगातार व बड़ी मात्रा में जीसीसी से आयात करने‘ के साथ–साथ प्राकृतिक गैस के आयात को बढ़ाने का वादा किया। 1993 में, चीन तेल का शुद्ध आयातक बन गया था और 2017 आते–आते वह कच्चे तेल के सबसे बड़े आयातक के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका से भी आगे निकल गया। उस तेल का लगभग 50% अरब प्रायद्वीप से आता है, और सऊदी अरब अपने कुल तेल निर्यात का एक चौथाई से अधिक चीन को निर्यात करता है। तेल का बड़ा आयातक होने के बावजूद चीन ने अपना कार्बन उत्सर्जन कम किया है।
रियाद पहुँचने से कुछ दिन पहले, शी ने अल–रियाद में एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें ‘5जी संचार, नयी ऊर्जा, अंतरिक्ष और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे उच्च तकनीकी क्षेत्रों में सहयोग‘ सहित [खाड़ी] क्षेत्र के साथ अधिक रणनीतिक और वाणिज्यिक साझेदारी की घोषणा की गई थी। सऊदी अरब और चीन ने 30 बिलियन डॉलर के वाणिज्यिक सौदों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को मज़बूत करने वाले कुछ सौदे भी शामिल हैं। शी की रियाद यात्रा कोविड-19 महामारी के बाद से उनकी केवल दूसरी विदेश यात्रा है; इससे पहले शी सितंबर में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के लिए मध्य एशिया गए थे, जहाँ एससीओ के नौ सदस्य देशों ने (जो कि दुनिया की 40% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं) अपनी स्थानीय मुद्राओं के माध्यम से एक दूसरे के साथ व्यापार बढ़ाने पर सहमती जताई थी।
इससे पहले चीन–जीसीसी शिखर सम्मेलन में, शी ने खाड़ी राजाओं से ‘चीनी मुद्रा का उपयोग कर तेल और गैस की बिक्री हेतु शंघाई पेट्रोल एंड गैस एक्सचेंज मंच का पूर्ण उपयोग करने‘ का आग्रह किया। इस साल की शुरुआत में, सऊदी अरब ने कहा था कि वह चीन को बेचे जाने वाले तेल के लिए अमेरिकी डॉलर के बजाय चीनी युआन स्वीकार कर सकता है। हालाँकि जीसीसी शिखर सम्मेलन में या चीन और सऊदी अरब द्वारा जारी किए गए संयुक्त बयान में इस विषय पर कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन जो संकेत मिल रहे हैं उनसे लगता है कि ये दोनों देश आपसी व्यापार में चीनी युआन का अधिक उपयोग करने की ओर आगे बढ़ेंगे। हालाँकि, वे ऐसा धीरे–धीरे करेंगे, क्योंकि वे दोनों अमेरिकी अर्थव्यवस्था के संपर्क में हैं (उदाहरण के लिए, अमेरिकी ट्रेज़री बांड में चीन के लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर पड़े हैं)।
युआन के ज़रिए चीन–सऊदी व्यापार करने की बात पर संयुक्त राज्य अमेरिका भौहें चढ़ा रहा है। अमेरिका पचास वर्षों से डॉलर को स्थिर रखने के लिए सऊदियों पर निर्भर रहा है। 1971 में, अमेरिका डॉलर को स्वर्ण मानक से हटाकर अमेरिकी ट्रेज़री सुरक्षा में दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों के मौद्रिक भंडार व अन्य अमेरिकी वित्तीय संपत्तियों पर निर्भर हो गया। 1973 में जब तेल की क़ीमतें आसमान छू गईं, तो अमेरिकी सरकार ने सऊदी तेल मुनाफ़ों के ज़रिए डॉलर के स्वामित्व की व्यवस्था बनाने का फ़ैसला किया। 1974 में, अमेरिका के ट्रेज़री सचिव, विलियम साइमन (जो कि उससे पहले निवेश बैंक, सॉलोमन ब्रदर्स, के व्यापार विभाग में नियुक्त थे) अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के निर्देश पर सऊदी तेल मंत्री, अहमद ज़की यामानी, के साथ गंभीर बातचीत के लिए रियाद गए थे।
साइमन ने प्रस्ताव रखा कि अमेरिका बड़ी मात्रा में सऊदी तेल को डॉलरों में ख़रीदेगा और सऊदी तेल से मिलने वाले बड़े मुनाफ़ों को री–साईकिल करने के लिए उन डॉलरों से अमेरिकी ट्रेज़री बांड और हथियार ख़रीद सकता है या अमेरिकी बैंकों में निवेश कर सकता है। इस तरह से पेट्रोडॉलर का जन्म हुआ, जिसने डॉलर के प्रभुत्व वाली नयी विश्व व्यापार व निवेश प्रणाली को सहारा दिया। अगर सऊदी इस व्यवस्था से हाथ खींचने का संकेत देता है, जिसे लागू करने में कम–से–कम एक दशक लगेगा, तो यह अमेरिका के मौद्रिक विशेषाधिकार के लिए एक गंभीर चुनौती होगी। इंस्टीट्यूट फ़ॉर एनालिसिस ऑफ़ ग्लोबल सिक्योरिटी के सह–निदेशक गैल लुफ्ट ने द वॉल स्ट्रीट जर्नल को बताया कि, ‘तेल बाज़ार, और उसके ज़रिए पूरा वैश्विक कमोडिटी बाज़ार, आरक्षित मुद्रा के रूप में डॉलर की स्थिति की बीमा पॉलिसी है। यदि उस ब्लॉक को दीवार से हटा दिया जाए, तो दीवार ढहने लगेगी‘।
पेट्रोडॉलर प्रणाली को एक के बाद एक दो गंभीर झटके लगे।
सबसे पहले, 2007-08 के वित्तीय संकट ने साफ़ कर दिया कि पश्चिमी बैंकिंग प्रणाली उतनी स्थिर नहीं है जितनी समझी जाती है। बड़े विकासशील देशों सहित कई देशों ने तुरंत व्यापार और निवेश के लिए अन्य प्रक्रियाओं को खोजना शुरू कर दिया। ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका द्वारा ब्रिक्स की स्थापना ‘एक नयी वित्तीय प्रणाली के मापदंडों पर चर्चा‘ करने की इस तात्कालिक ज़रूरत का एक उदाहरण है। ब्रिक्स देशों ने कई प्रयोग किए हैं, जैसे कि ब्रिक्स भुगतान प्रणाली का निर्माण।
दूसरा, हाइब्रिड युद्ध के तहत अमेरिका ने अपने डॉलर प्रभुत्व का इस्तेमाल कर 30 से भी अधिक देशों पर प्रतिबंध लगाए हैं। ईरान से लेकर वेनेज़ुएला तक, इनमें से कई देश सामान्य वाणिज्य के संचालन के लिए अमेरिकी–प्रभुत्व वाली वित्तीय प्रणाली के विकल्पों की मांग कर रहे हैं। जब अमेरिका ने 2014 में रूस पर प्रतिबंध लगाना शुरू किया और 2018 में चीन के ख़िलाफ़ अपना व्यापार युद्ध तेज़ किया, तब से दोनों शक्तियों ने डॉलर–मुक्त व्यापार की प्रक्रियाओं को बढ़ाना शुरू कर दिया है; अन्य प्रतिबंधित देश पहले से ही मजबूरन इन प्रक्रियाओं का निर्माण शुरू कर चुके थे। उस समय, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने तेल व्यापार के डी–डॉलरीकरण का आह्वान किया था। मॉस्को ने अपनी डॉलर होल्डिंग को तुरंत कम करना शुरू कर दिया और सोने व अन्य मुद्राओं में अपनी संपत्ति रखनी शुरू कर दी। 2015 में चीन और रूस के बीच 90% द्विपक्षीय व्यापार डॉलर में होता था, लेकिन 2020 आते–आते यह 50% से भी नीचे गिर गया। जब पश्चिमी देशों ने अपने बैंकों में रखे रूसी केंद्रीय बैंक के भंडार को फ़्रीज़ कर दिया, तब अर्थशास्त्री एडम टूज़ ने लिखा था कि यह ‘क्रॉसिंग द रूबिकॉन‘ है (उनका मतलब था कि अब संबंध इतने ख़राब स्तर पर पहुँच चुके हैं, जहाँ से लौटा नहीं जा सकता)। ‘यह अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली के केंद्र में कॉन्फ़्लिक्ट खड़ा कर देगा। यदि किसी जी20 सदस्य द्वारा किसी अन्य जी20 सदस्य के केंद्रीय बैंक में जमा किए गए केंद्रीय बैंक भंडार सुरक्षित नहीं हैं, तो वित्तीय दुनिया में कुछ भी सुरक्षित नहीं है। हम वित्तीय युद्ध की स्थिति में हैं‘।
ब्रिक्स और प्रतिबंधित देश ऐसे नये संस्थानों का निर्माण शुरू कर चुके हैं जो डॉलर पर उनकी निर्भरता को कम कर सके। अब तक, बैंक और सरकारें यूएस फ़ेडरल रिज़र्व के क्लियरिंग हाउस इंटरबैंक पेमेंट सर्विसेज़ और अमेरिका की फ़ेडवायर फ़ंड्स सर्विस द्वारा संचालित सोसाइटी फ़ॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फ़ाइनेंशियल टेलीकॉम (SWIFT) नेटवर्क पर भरोसा करते रहे हैं। ईरान और रूस जैसे देश एकतरफ़ा अमेरिकी प्रतिबंध के कारण दुनिया भर में 11,000 वित्तीय संस्थानों को जोड़ने वाली स्विफ़्ट प्रणाली से बाहर हैं। 2014 के अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद, रूस ने सिस्टम फ़ॉर ट्रांसफ़र ऑफ़ फ़ाइनेंशियल मैसेजिज़ (SPFS) बना लिया। मुख्य रूप से घरेलू उपयोगकर्ताओं के लिए बनी यह प्रणाली, मध्य एशिया, चीन, भारत और ईरान के केंद्रीय बैंकों को भी अपनी ओर आकर्षित कर चुकी है। 2015 में, चीन ने पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना द्वारा संचालित क्रॉस–बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम (CIPS) बनाया, जिसका अन्य केंद्रीय बैंक भी धीरे–धीरे उपयोग कर रहे हैं।
रूस और चीन द्वारा उठाए गए इन क़दमों के अलावा कई अन्य विकल्प भी विकसित हुए हैं, जैसे वित्तीय प्रौद्योगिकी (फ़िनटेक) की प्रगति में निहित भुगतान नेटवर्क और केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राएँ। हालाँकि वीज़ा और मास्टरकार्ड इस उद्योग की सबसे बड़ी कंपनियाँ हैं, लेकिन चीन का यूनियनपे और रूस के मीर के साथ–साथ चीन के निजी खुदरा तंत्र जैसे अलीपे और वीचैटपे इन कंपनियों को नये प्रतिद्वंद्वियों की तरह चुनौती दे रहे हैं। दुनिया के लगभग आधे देश केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं के विभिन्न रूपों का प्रयोग कर रहे हैं। डिजिटल युआन (ई–सीएनवाई) इनमें से सबसे महत्वपूर्ण मंच है, जो बीआरआई के साथ स्थापित की गई डिजिटल सिल्क रोड में डॉलर को दरकिनार करना शुरू कर चुका है।
‘मुद्रा शक्ति‘ पर चिंता के चलते, दक्षिणी गोलार्ध के कई देश ग़ैर–डॉलर व्यापार और निवेश प्रणाली विकसित करने के इच्छुक हैं। 1 जनवरी 2023 से फ़र्नांडो हद्दाद ब्राज़ील के नये वित्त मंत्री होंगे। उन्होंने अंतर्क्षेत्रीय व्यापार में स्थिरता लाने और ‘मौद्रिक संप्रभुता‘ स्थापित करने के लिए दक्षिण अमेरिकी डिजिटल मुद्रा ‘सुर‘ (जिसका अर्थ स्पेनिश भाषा में ‘दक्षिण‘ होता है) के निर्माण का समर्थन किया है। सुर पहले से अर्जेंटीना, ब्राज़ील, पैराग्वे और उरुग्वे द्वारा उपयोग की जा रही स्थानीय मुद्रा भुगतान प्रणाली, एसएमएल, पर आधारित होगा।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की मार्च 2022 की रिपोर्ट ‘द स्टील्थ इरोसियन ऑफ़ डॉलर डोमिनेंस‘ से पता चला है कि ‘केंद्रीय बैंकों द्वारा अमेरिकी डॉलर में रखे गए भंडार का हिस्सा सदी की शुरुआत के बाद से 12 प्रतिशत नीचे गिरकर, 1999 में 71 प्रतिशत से 2021 में 59 प्रतिशत पर आ गया है‘। आँकड़ों से पता चलता है कि केंद्रीय बैंक रिज़र्व प्रबंधक अपने मुद्रा भंडार को चीनी रेन्मिन्बी (जहाँ एक चौथाई खाते शिफ़्ट हुए हैं) और ग़ैर–पारंपरिक आरक्षित मुद्राओं (जैसे ऑस्ट्रेलियाई, कनाडाई, न्यूज़ीलैंड और सिंगापुरी डॉलर, डेनिश और नार्वेजियन क्रोनर, स्वीडिश क्रोना, स्विस फ़्रैंक और कोरियाई वोन) में बदलकर अपने पोर्टफ़ोलियो में विविधता ला रहे हैं। आईएमएफ़ का निष्कर्ष है, ‘यदि डॉलर का प्रभुत्व समाप्त होता है, तो डॉलर के मुख्य प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि वैकल्पिक मुद्राओं का एक व्यापक समूह ग्रीनबैक (अमेरिका के नोट) को गिराएगा‘।
वैश्विक मुद्रा विनिमय, नेटवर्क–प्रभाव एकाधिकार के पहलुओं को प्रदर्शित करता है। ऐतिहासिक रूप से, देशों के बीच व्यापार प्रणाली के बजाय दक्षता बढ़ाने और जोखिम कम करने के लिए विभिन्न मुद्राएँ एक सार्वभौमिक माध्यम बनकर उभरी थीं। वर्षों तक, सोना इसका मानक रहा।
किसी शुद्ध सार्वभौमिक तंत्र को बल का प्रयोग किए बिना हटाना मुश्किल होता है। अभी के लिए, अमेरिकी डॉलर आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार के लगभग 60% हिस्से के साथ प्रमुख वैश्विक मुद्रा है। पूँजीवादी व्यवस्था की मौजूदा परिस्थितियों में, चीन को डॉलर के बजाय वैश्विक मुद्रा के रूप में युआन को प्रतिस्थापित करने के लिए युआन को पूर्ण परिवर्तनीयता की अनुमति देनी होगी, पूँजी नियंत्रण समाप्त करने होंगे और अपने वित्तीय बाज़ारों को लीब्रेलाइज़ करना होगा। ये विकल्प असंभावित हैं, जिसका मतलब है कि डॉलर के आधिपत्य का तुरंत पतन नहीं होने वाला, और ‘पेट्रोयुआन‘ की बात करना जल्दबाज़ी है।
2004 में, चीनी सरकार और जीसीसी ने मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत शुरू की थी। 2009 में सऊदी अरब और क़तर के बीच तनाव के कारण समझौता ठप पड़ गया था, लेकिन अब वार्ता फिर से आरंभ हो गई है क्योंकि खाड़ी देश लगातार BRI से जुड़ रहे हैं। 1973 में, सऊदियों ने अमेरिका से कहा था कि वे ‘अपनी [तेल की बिक्री से होने वाली] आय को अपने स्वयं के विविध प्रकार के उद्योगों में लगाना चाहते हैं या उन क्षेत्रों में निवेश करने का तरीक़ा खोजना चाहते हैं जिससे कि उनके राष्ट्र का भविष्य बेहतर हो‘। पेट्रोडॉलर शासन की शर्तों के तहत किसी प्रकार की वास्तविक विविधता संभव नहीं थी। अब, कार्बन के अंत को एक संभावना के रूप में देखते हुए, खाड़ी अरब विविधता के लिए उत्सुक है; सऊदी विज़न 2030 इसका एक उदाहरण है, जिसे बीआरआई में शामिल किया गया है। चीन के पास अमेरिका के मुक़ाबले तीन फ़ायदे हैं जो इस विविधता में सहायता कर सकते हैं: एक पूर्ण औद्योगिक प्रणाली, (बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजना प्रबंधन और विकास के रूप में) एक नये प्रकार की उत्पादक शक्ति, और एक विशाल व बढ़ता हुआ उपभोक्ता बाज़ार।
शी की रियाद यात्रा के दौरान पश्चिमी मीडिया [खाड़ी] क्षेत्र की आर्थिक प्रतिष्ठा और प्रभुत्व के अपमानजनक नुक़सान पर लगभग चुप रहा। चीन अब एक साथ ईरान, जीसीसी, रूस और अरब लीग के देशों के साथ जटिल संबंधों को नेविगेट कर सकता है। इसके अलावा, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका में एससीओ के विस्तार को नजरअंदाज़ नहीं कर सकता है। एससीओ की भूमिका विकसित हो रही है तथा मिस्र, सऊदी अरब, ईरान, तुर्की और क़तर या तो इससे संबद्ध हो चुके हैं या उसके साथ चर्चा कर रहे हैं।
पाँच महीने पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बहुत कम तामझाम – और निश्चित रूप से अमेरिका और सऊदी अरब के बीच कमज़ोर हुए संबंधों को मज़बूत करने के लिए बहुत मामूली प्रस्तावों – के साथ रियाद का दौरा किया था। शी की रियाद यात्रा के बारे में पूछे जाने पर, अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि, ‘हम दुनिया के देशों को संयुक्त राज्य अमेरिका और पीआरसी के बीच चयन करने के लिए नहीं कह रहे हैं।‘ यह कथन अपने आप में शायद कमज़ोरी की निशानी है।
स्नेह–सहित,
विजय।