प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से नये साल की बधाई।
मई 2021 में, संयुक्त राष्ट्र के महिला विभाग की प्रमुख – फुमज़िले म्लाम्बो न्गकुका – और संयुक्त राष्ट्र के निरस्त्रीकरण मामलों के कार्यालय की प्रमुख – इज़ुमी नाकामित्सु – ने एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने सरकारों से अत्यधिक सैन्य ख़र्च में कटौती करके सामाजिक और आर्थिक विकास पर ख़र्च बढ़ाने का आग्रह किया था। उनकी सलाह किसी ने नहीं सुनी। उन्होंने लिखा था, युद्ध के लिए ख़र्च में कटौती करना और सामाजिक विकास के लिए ख़र्च में वृद्धि करना, ‘कोई काल्पनिक आदर्श नहीं है, बल्कि एक ज़रूरत है, जिसे हासिल किया जा सकता है‘। यह बात महत्वपूर्ण है – कोई काल्पनिक आदर्श नहीं है, बल्कि एक ज़रूरत है, जिसे हासिल किया जा सकता – जो समाजवादी परियोजना का बख़ूबी वर्णन करती है।
हमारा संस्थान साढ़े पाँच साल से काम कर रहा है। हम इस विचार से प्रेरित हैं कि इस दुनिया को एक ऐसी दुनिया में बदला जा सकता है जहाँ इंसानों की ज़रूरतें पूरी होंगी और प्रकृति की सीमाओं का ख़याल रखा जाएगा। हमने इस दौरान सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों के साथ काम किया है, उनके सिद्धांतों को जाना है, और उनके काम का अवलोकन किया है, तथा दुनिया को बदलने की दिशा में जारी उनके प्रयासों के आधार पर अपनी समझ बनाई है। यह प्रक्रिया बेहद प्रेरणादायक रही है। इस प्रक्रिया से हमने सीखा है कि पुराने सिद्धांतों के आधार पर एक नया सिद्धांत बनाने की कोशिश करना भर काफ़ी नहीं है, बल्कि ज़रूरी है दुनिया के साथ जुड़ना, यह स्वीकार करना कि जो लोग दुनिया को बदलने की कोशिश कर रहे हैं, वे छोटे–छोटे टुकड़ों में दुनिया के आकलन भी विकसित करते हैं, और ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के शोधकर्ताओं के रूप में हमारा काम है उन टुकड़ों को जोड़कर दुनिया की एक व्यापक समझ का निर्माण करना। इस विश्वदृष्टि, जिसे हम तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं, का मक़सद केवल दुनिया के यथार्थ को समझना नहीं है, बल्कि उस गतिशीलता को भी समझना है जो दुनिया को वैसा बनाने की कोशिश कर रही है जैसी वह होनी चाहिए।
हमारा संस्थान सामाजिक उत्थान के अंत:संबंधों को समझने के लिए प्रतिबद्ध है, कि हम उस विश्व व्यवस्था से कैसे बाहर निकल सकते हैं जो हमें विनाश और विलुप्त होने की ओर ले जा रही है। हम समझते हैं कि दुनिया में अब भी पर्याप्त उत्तर मौजूद हैं, भले ही चीज़ें एकदम निरर्थक लगती हों। दुनिया में हमारी कुल सामाजिक संपत्ति की सीमा असाधारण है, हालाँकि – उपनिवेशवाद और हिंसा के लंबे इतिहास के कारण – धन का उपयोग सामान्य समस्याओं के समाधान के लिए नहीं, बल्कि मुट्ठी भर लोगों को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, सभी को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन है, फिर भी अरबों लोग भूखे रहते हैं। इन सच्चाइयों के बारे में बचकानी सोच नहीं होनी चाहिए, लेकिन उम्मीद छोड़ने से भी काम नहीं चलेगा। परिवर्तन की संभावना मौजूद है, लेकिन अभी तक बहुत कम काम पूरा हुआ है।
2018 में जब हमने यह संस्थान शुरू किया था, उस साल के अंतिम न्यूज़लेटर में हमने लिखा था कि ‘पूंजीवाद के अंत की कल्पना करने की तुलना में पृथ्वी के अंत की कल्पना करना आसान है, यह कल्पना करना आसान है कि पिघलती ध्रुवीय बर्फ की बाढ़ हमें लुप्त कर देगी और एक ऐसी दुनिया की कल्पना जहां हमारी उत्पादक क्षमता हम सभी को समृद्ध करेगी उसकी कल्पना मुश्किल है‘। यह आज भी सच है। लेकिन फिर भी, ‘लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने वाला एक भविष्य बन सकता है। … इन उम्मीदों को ना–समझी समझना क्रूरता है‘।
हमारी समस्याओं का कारण संसाधनों की कमी या तकनीकी और वैज्ञानिक ज्ञान की कमी नहीं है। बल्कि हमारे संस्थान का मानना है कि हम अपनी सामान्य समस्याओं से पार पाने में असमर्थ रहे हैं क्योंकि आगे बढ़ने के लिए राष्ट्रों के लोकतांत्रीकरण और सामाजिक धन के लोकतांत्रीकरण की आवश्यकता है, लेकिन पूँजीवाद की सामाजिक व्यवस्था इसमें बाधा डालती है।
ऐसे करोड़ों लोग हैं जो किसी–न–किसी तरह के राजनीतिक और सामाजिक संगठनों से जुड़े हैं और हमारी दुनिया के वंचित समुदायों को समाज की मुख्य धारा के साथ जोड़ने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, हर तरह की बाधाओं से लड़ते हुए उस आदर्शलोक को बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं जो बेहतर जीवन जीने के लिए ज़रूरी है। लेकिन, यह स्वीकार करने के बजाय कि ये संगठन वास्तविक लोकतंत्र को साकार करना चाहते हैं, उन्हें अपराधी संगठन कहा जाता है, उनके नेताओं को गिरफ़्तार किया जाता है और उनकी हत्याएँ की जाती हैं, और इस तरह से इन संगठनों द्वारा अर्जित किया गया क़ीमती सामाजिक विश्वास ख़त्म कर दिया जाता है। और लगभग ऐसा ही व्यवहार उन राष्ट्रीय परियोजनाओं के साथ किया जाता है जो ऐसे राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में निहित हैं, ऐसी परियोजनाएँ जो सामाजिक धन का उपयोग सबसे ज़रूरी कामों (जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य) के लिए करने की प्रतिबद्धता दिखाती हैं। तख़्तापलट, हत्याएँ और प्रतिबंध सामान्य घटनाएँ हैं, जो बार–बार होती हैं (पेरू तख़्तापलट और क्यूबा पर लगे प्रतिबंध) जबकि इस बात से आम तौर पर इनकार किया जाता है कि सामाजिक प्रगति को अवरुद्ध करने के लिए इस तरह की हिंसा का सहारा लिया जाता है।
1996 में दर्शन (फ़िलॉसफ़ी) के परिचय में, जर्मन मार्क्सवादी दार्शनिक अर्नस्ट ब्लोच ने लिखा था, ‘मैं हूँ। लेकिन मुझ में मेरा कुछ नहीं है। और हम इसी तरह बनते हैं‘। यह एक रोचक कथन है। ब्लोच ने, रेने डेसकार्टेस के आदर्शवादी प्रस्ताव कि ‘मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ‘ को सुधारा है। ब्लोच अस्तित्व की पुष्टि करते हैं (‘मैं हूँ‘), लेकिन फिर सुझाव देते हैं कि अलगाव और अकेलेपन के रूपों से मानव अस्तित्व नहीं पनपता है (‘लेकिन मुझ में मेरा कुछ नहीं है‘)। परमाणुकृत, खंडित और अकेला व्यक्ति ‘मैं‘ अकेला रह कर चीज़ों को नहीं बदल सकता। सामाजिक उत्थान की दिशा में किसी प्रक्रिया का निर्माण करने के लिए एक सामूहिक पहचान (‘हम‘) के निर्माण की आवश्यकता होती है। और यह सामूहिक वह व्यक्तिपरक (सब्जेक्टिव) शक्ति है जिसे मानव प्रगति के रास्ते में खड़े विरोधाभासों पर क़ाबू पाने के लिए ख़ुद को मज़बूत करना होगा। ब्लोच ने लिखा था कि, ‘इंसान होने का वास्तविक मतलब है काल्पनिक आदर्शों का होना‘। मैं पूरी तरह से इस बात में विश्वास करता हूँ और मुझे उम्मीद है कि यह वाक्य आपको भी छूएगा।
इस साल हम ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान में समाजवाद के रास्ते पर इन विषयों और दुनिया के अरबों लोगों के जीवन की समस्याओं पर विस्तार से विचार करेंगे, ताकि हम उस व्यवस्था से पार पा सकें जो लोगों का सामाजिक श्रम चूसती है और उन्हें बड़े–बड़े सपने दिखाती है लेकिन जीवन की न्यूनतम ज़रूरतें भी बमुश्किल पूरा करती है। हम इस नये साल की शुरुआत इस साधारण से सिद्धांत – कि समाजवाद एक ज़रूरत है, जिसे धरातल पर उतारा जा सकता है – के साथ नये सिरे से प्रतिबद्धता दिखाकर करना चाहते हैं।
मैं इस अवसर पर ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की पूरी टीम के प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, जो ब्यूनस आयर्स से शंघाई, और त्रिवेंद्रम से रबात तक फैली है। हम आपकी राय भी जानना चाहते हैं। यदि आप हमारे काम में सहायता करना चाहते हैं, तो कृपया याद रखें कि हम डोनेशन स्वीकार करते हैं (यदि आप हमारी वेबसाइट में नीचे जाएँगे, तो आपको एक डोनेट बटन दिखेगा)।
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स्नेह–सहित,
विजय।