Konstantin Yuon (USSR), People of the Future, 1929.

कोंस्टेंटिन युओन (यूएसएसआर), भविष्य के लोग, 1929.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

युद्ध के हथियारों की उग्रता, हवाई बमबारी की कुरूपता, और उनके बीच फँसे नागरिकों के डर से आप पर किसी प्रकार का कोई असर न हो, ऐसा नामुमकिन है। इन नागरिकों को उन विकल्पों में से कुछ चुनना है जो उन्होंने ख़ुद तय नहीं किए थे। यदि आप इन पंक्तियों को पढ़ते हुए यह सोच रहे हैं कि मैं यूक्रेन के बारे में बात कर रहा हूँ, तो आप सही हैं। लेकिन मैं केवल यूक्रेन के बारे में बात नहीं कर रहा। जब रूसी सेना ने यूक्रेन में प्रवेश किया, ठीक उसी सप्ताह संयुक्त राज्य अमेरिका ने सोमालिया में हवाई हमले शुरू किए, सऊदी अरब ने यमन पर बमबारी की, और इज़राइल ने सीरिया और गाज़ा में फ़िलिस्तीनियों पर हमला किया।

युद्ध मानवता पर लगने वाला एक बदनुमा दाग़ है। यह क़ीमती सामाजिक परिसंपत्ति को नष्ट कर देता है। कार्ल मार्क्स ने ग्रंड्रिस (1857-58) में लिखा है कि ‘युद्ध का प्रभाव स्वयं स्पष्ट है, चूँकि, आर्थिक रूप से, यह बिलकुल किसी राष्ट्र द्वारा अपनी राजधानी के एक हिस्से को समुद्र में गिराने जैसा है’। युद्ध सामाजिक एकता को बाधित करता है और अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता की संभावना को नुक़सान पहुँचाता है।  रोज़ा लक्ज़मबर्ग ने आइदर ऑर (1916) में लिखा है कि ‘दुनिया के मेहनतकश शांतिकाल में एकजुट होते हैं, लेकिन युद्ध में [वे] एक दूसरे का गला काटते हैं’।

युद्ध कभी भी ग़रीबों के लिए अच्छा नहीं होता। श्रमिकों के लिए युद्ध कभी अच्छा नहीं होता। युद्ध अपने आप में एक अपराध है। युद्ध अपराध पैदा करता है। शांति प्राथमिकता है।

 

Anton Kandinsky (Ukraine), Grenade, 2012.

एंटोन कैंडिंस्की (यूक्रेन), ग्रेनेड, 2012.

 

यूक्रेन में युद्ध रूसी हस्तक्षेप से शुरू नहीं हुआ था। इस युद्ध को कई चीज़ों ने मिलकर गढ़ा है, जिन्हें समझना ज़रूरी है ताकि हम समझ सकें कि आज हो क्या रहा है।

बहु-राष्ट्रवाद बनाम जातीय अंधराष्ट्रवाद: यूक्रेन लिथुआनियाई, पोलिश और ज़ारिस्ट साम्राज्यों के अंगों से मिलकर बना एक देश है। जहाँ रूसी, हंगेरियन, मोल्डावियन और रोमानियाई बोलने वाले अल्पसंख्यकों के बड़े समूह रहते हैं। इस प्रकार से यह एक बहु-राष्ट्रीय देश है। जब यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था, तो जातीयता के सवाल को कुछ इस तरह पेश किया जाता रहा था कि यूक्रेन के सभी निवासी सोवियत नागरिक थे और सोवियत नागरिकता बहु-जातीय थी। 1990 में, जब यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ, तो जातीयता का सवाल सभी यूक्रेन वासियों के लिए समाज में पूर्ण भागीदारी के लिए एक बाधा के रूप में उभरा। यूक्रेन के सामने खड़ी सामाजिक-राजनीतिक समस्या अद्वितीय नहीं थी; 1991 में क्रोएशियाई स्वतंत्रता के चलते यूगोस्लाविया के विघटन और 2008 में जॉर्जिया और रूस के बीच सैन्य टकराव को देखें तो उत्तर-साम्यवादी दौर में पूर्वी दुनिया के लगभग हर देश में जातीय राष्ट्रवाद उभर रहा था। जातीय संहार पूरी तरह से सामान्य हो गया था। उदाहरण के लिए, जब 1995 में क्रोएशिया के क्रजिना से पाँच लाख सर्बों को जबरन निकाला गया था तो इसपर पश्चिम ने ख़ुशी जताई थी। इसके विपरीत, चेकोस्लोवाकिया, जो कि साम्यवादी पूर्वी दुनिया के देशों में से एक देश था, 1993 में जातीय आधार पर टूटा और दो देशों में बँट गया: चेक गणराज्य और स्लोवाकिया, लेकिन ये शांतिपूर्वक ढंग से हुआ था। 

क्षेत्रीय शांति बनाम नाटो का साम्राज्यवाद (भाग 1):  सोवियत संघ के पतन और वारसॉ संधि (1991) के विलय के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका ने पूरे पूर्वी यूरोप को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में समाहित करने की माँग की। यह 1990 में सोवियत संघ की आख़िरी सरकार के साथ किए गए समझौते के बावजूद हुआ। तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जेम्स बेकर ने कहा था कि, नाटो ‘एक इंच पूर्व की ओर’ नहीं बढ़ेगा। नये दौर में, पूर्वी यूरोपीय देश और रूस राजनीतिक और आर्थिक उद्देश्यों के लिए यूरोपीय संघ और सैन्य कारणों से नाटो में प्रवेश करने की कोशिशें करने लगे ताकि वे यूरोपीय परियोजना का हिस्सा बन सकें। बोरिस येल्तसिन (1991-1999) के राष्ट्रपति काल के दौरान, रूस नाटो का भागीदार बन गया था और जी-7 में शामिल हो गया था (इसलिए जी-7 कुछ समय के लिए जी-8 हो गया था)। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के शुरुआती वर्षों में भी रूस यह सोचता रहा कि यूरोपीय परियोजना में उसका स्वागत किया जाएगा। 2004 में, नाटो ने पूर्वी यूरोप के सात देशों (बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया) को सम्मिलित कर लिया। उस समय, नाटो के महासचिव जाप डी हूप शेफ़र ने कहा था कि रूस समझ गया है कि नाटो का ‘कोई परोक्ष उद्देश्य नहीं’ हैं। लेकिन आख़िरकार मॉस्को ने लगातार पूर्व की ओर बढ़ते नाटो पर सवाल उठा दिया, और 2007 में, पुतिन ने नाटो पर पूर्वी यूरोप में ‘ताक़त का प्रदर्शन’ करने का आरोप लगाया। तब से, नाटो के विस्तार का मामला लगातार विवादास्पद बनता चला गया। हालाँकि नाटो में यूक्रेन के प्रवेश को फ़्रांस और जर्मनी ने 2008 में रोक दिया था, लेकिन यूक्रेन के नाटो परियोजना में शामिल होने के सवाल ने रूसी-यूक्रेनी राजनीति को परिभाषित करना शुरू कर दिया। यह आख़िरी बिंदु इस बात पर प्रकाश डालता है कि रूस के बारे चल रही ‘सुरक्षा गारंटी’ की चर्चा किस प्रकार से अधूरी है। यह केवल रूस की सुरक्षा हेतु चिंताओं का मसला नहीं है, क्योंकि रूस एक प्रमुख परमाणु शक्ति है। बल्कि यह रूस के साथ यूरोप के संबंधों का मसला है। अर्थात्, क्या यूरोप रूस के साथ एक ऐसा संबंध बनाने में सक्षम है, जो कि रूस को अधीन करने हेतु अमेरिकी फ़रमानों पर आधारित न हो?

लोकतंत्र बनाम तख़्तापलट: 2014 में, यूक्रेनी राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने रूस से ऋण माँगा, और पुतिन ने कहा कि रूस क़र्ज़ा देगा, यदि यानुकोविच देश के कुलीन वर्ग नियंत्रित वित्तीय नेटवर्क को दरकिनार कर देते हैं तो। इसके बाद, यानुकोविच ने यूरोपीय संघ (ईयू) की ओर रुख़ किया, और वहाँ से भी उन्हें यही सलाह मिली। लेकिन अमेरिका की सहायक विदेश मंत्री विक्टोरिया नुलैंड ने यूक्रेन में अमेरिकी राजदूत जेफ़्री पायट से कहा कि ‘भाड़ में जाए ईयू’। और इस तरह से संयुक्त राज्य अमेरिका ने ईयू की चिंताओं को खुले तौर पर ख़ारिज कर दिया। इससे पहले, नूलैंड प्रचार कर रही थीं कि अमेरिका ने यूक्रेन में ‘लोकतंत्र को बढ़ावा देने’ के लिए अरबों डॉलर ख़र्च किए हैं, जबकि लोकतंत्र को बढ़ावा देने का वास्तविक मतलब था पश्चिम-हितैषी और रूस-विरोधी ताक़तों को मज़बूत करना। यानुकोविच को एक संसदीय तख़्तापलट द्वारा हटा दिया गया और उनकी जगह पर आए आर्सेनी यात्सेन्युक और पेट्रो पोरोशेंको जैसे अमेरिका समर्थित नेता। राष्ट्रपति पोरोशेंको (2014-2019) ने ‘आर्मिया, मोवा, वीरा’ (सेना, भाषा, धर्म) के नारे के इर्द-गिर्द यूक्रेनी राष्ट्रवाद का एजेंडा चलाया। 2014 में रूस के साथ सैन्य सहयोग तोड़ने; 2019 के यूक्रेनी को ‘एकमात्र आधिकारिक राज्य भाषा’ बनाने तथा रूसी और अन्य अल्पसंख्यक भाषाओं के उपयोग को प्रतिबंधित करने वाले क़ानून ; और 2018 में यूक्रेनी चर्च द्वारा मॉस्को के पैट्रिआर्क किरिल के साथ संबंध तोड़े जाने जैसे उपायों के साथ यूक्रेनी राष्ट्रवाद एक हक़ीक़त बन गया। इन उपायों और नव-नाज़ी तत्वों के सशक्तिकरण ने, देश की बहु-राष्ट्रीयता को चकनाचूर कर दिया और इसके साथ शुरू हुआ पूर्वी यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र में गम्भीर सशस्त्र संघर्ष। ये वो क्षेत्र है जहाँ रूसी भाषा बोलने वाले अल्पसंख्यक बड़ी संख्या में रहते हैं। राज्य की नीति और नव-नाज़ी रक्षकों के डर से, इस अल्पसंख्यक आबादी ने रूस से सुरक्षा माँगी। जातीय नरसंहार को कम करने और डोनबास क्षेत्र में युद्ध को समाप्त करने के लिए, सभी पक्षों ने संभावित हिंसक स्थिति को टालने के लिए युद्धविराम सहित अन्य उपायों पर मिन्स्क समझौता (2014-15) किया।

 

Vasiliy Tsagolov (Ukraine), Untitled, 2008.

वसीली त्सागोलोव (यूक्रेन), शीर्षकहीन, 2008.

 

क्षेत्रीय शांति बनाम नाटो का साम्राज्यवाद (भाग 2): पश्चिम के समर्थन में यूक्रेन के अति-राष्ट्रवादियों की शक्ति बढ़ रही थी, और डोनबास क्षेत्र के संघर्ष को सुलझाने के लिए बातचीत की संभावनाएँ कम हो रही थीं। सभी पक्षों द्वारा मिन्स्क समझौतों के उल्लंघन ने इस प्रक्रिया को कमज़ोर कर दिया था। आठ वर्षों तक, डोनबास के लोग निरंतर युद्ध की स्थिति में रहे, जिसमें, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के अनुसार, 2014 से 2021 के बीच 14,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 50,000 से अधिक लोग हताहत हुए हैं। उस स्थिति से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था। जो हो रहा था, वह अनिवार्य रूप से जातीय नरसंहार ही था, जिसमें रूसी भाषा बोलने वाले बड़ी संख्या में सीमा पार कर रूस के रोस्तोव क्षेत्र की ओर जा रहे थे और यूक्रेनी बोलने वाले लोग पश्चिम की ओर पलायन कर रहे थे। इस संकट और नव-नाज़ी तत्वों के उदय पर बहुत कम अंतर्राष्ट्रीय ध्यान दिया गया। नाटो शक्तियों ने इन मुद्दों को गंभीरता से लेने या मास्को को सुरक्षा गारंटी प्रदान करने से इनकार कर दिया; विशेष रूप से, यह गारंटी देने से इंकार कर दिया कि यूक्रेन को परमाणु हथियार उपलब्ध नहीं कराए जाएँगे और वह नाटो का सदस्य नहीं बनेगा। इसके बाद, रूस ने क्रीमिया -जहाँ रूस की नौसेना के पास गर्म पानी का बंदरगाह है- को क़ब्ज़े में करने के लिए हस्तक्षेप किया। इन क़दमों ने स्थिति को और अस्थिर कर दिया, जिससे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए और बड़ा ख़तरा पैदा हो गया। रूस की सुरक्षा पर बातचीत करने से नाटो का इनकार ही वह कारण था जिसने रूस को हस्तक्षेप करने के लिए उकसाया।

 

Otto Dix (Germany), Schädel (‘Skull’), 1924.

ओटो डिक्स (जर्मनी), खोपड़ी, 1924.

 

युद्ध में बहुत जटिल ऐतिहासिक प्रक्रियाएँ सरल दिखने लगती हैं। यूक्रेन का युद्ध केवल नाटो या जातीयता के कारण नहीं है; इसके पीछे इन सब के अलावा और भी बहुत से कारण हैं। हर युद्ध किसी-न-किसी समय पर आकर ख़त्म होना चाहिए और कूटनीति फिर से बहाल होनी चाहिए। इसलिए इस युद्ध को बढ़ने देने और स्थिति को और तेज़ी से ख़राब होने देने के बजाए, ये ज़रूरी है कि अब गोलियाँ बंद हो जाएँ और चर्चाएँ शुरू हों। और जब तक कम-से-कम निम्नलिखित तीन मुद्दों पर बात नहीं होती, तब तक कुछ भी आगे नहीं बढ़ेगा:

1. मिन्स्क समझौतों का पालन।

2. रूस और यूक्रेन के लिए सुरक्षा की गारंटी, जिसके लिए ज़रूरी होगा कि यूरोप रूस के साथ अमेरिकी हितों के अनुसार नहीं बल्कि एक स्वतंत्र संबंध विकसित करे।

3. यूक्रेन के अति-राष्ट्रवादी क़ानूनों को वापस लिए जाए और बहु-राष्ट्रीयता बहाल की जाए।

यदि अगले कुछ हफ़्तों में इन आवश्यक सवालों पर ठोस बातचीत और समझौते नहीं होते हैं, तो इस बात की पूरी संभावना है कि इन दोनों के बीच ख़तरनाक हथियारों के साथ युद्ध होगा और ये युद्ध अन्य देशों में फैलकर नियंत्रण से बाहर हो जाए।

सोवियत यूक्रेनी लेखक मायकोला बाज़न ने ‘Elegy for Circus Attractions (1927)’ (सर्कस के प्रलोभनों पर एक शोकगीत) नामक एक शक्तिशाली कविता लिखी थी। हमारे समय के लिए इससे बेहतर कोई रूपक नहीं हो सकता:

एक महिला कानों को छेदते हुए चीख़ेगी …

फिर दहशत निशाना साधती है और उड़ जाती है

उनकी हृदय विदारक चीख़ों में,

उनके नंगे मुँह को झुर्रियों में सिकोड़ते हुए!

थूक और आँसू छिटकर,

होंठों को एंठ लो!

धागों पर लाशों की तरह झूल रही हैं,

आवाज़ें।

स्नेह-सहित,

विजय।